ॐ सदृश्य माँ
ॐ सदृश्य माँ
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रचयिता : डॉ सुनीता श्रीवास्तव
ॐ का जब जब उच्चारण होता हैं
मृत जीवन में प्राणों का संचार होता हैं
माँ तो ॐ के समान शाश्वत हैं
स्वर्ग सिधार गई पर प्रतीक स्वरूप
हम भाई बहनों को छोड़ गई
माँ ना होती तो क्या हम होते
पता नही किस लोक में होते
जब जन्म हुआ तो माँ की कोख
से धरती पर पाया
पर माँ धरती तो आज भी है
पर तू क्षितिज से धरती तक
कहा है .....
अंतर्मन "चीत्कारता" हैं
माँ तो रोम रोम में "व्याप्त" हैं
तेरा वजूद माँ की देन है
मन करता है माँ
तुझे पर्वत की संज्ञा दे डालू
पर तू तो दया का "सागर" है
फिर क्या तुझे समुद्र कहूं?
नही तू तो उससे भी गहरी है
माँ तू तो भगवान है?
पर भगवान तो महसूस किये
जाते हैं ,माँ तू ईश से बढ़कर हैं?
नही माँ केवल तू माँ हैं
कोई संज्ञा तेरी नही हो सकती
तू तो विशेषण है।
रातो में तारों में माँ क...