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कविता

रोटी
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रोटी

********** संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) भूख में स्वाद जाने क्यों बढ़ जाता रोटी का झोली/कटोरदान से झांक रही रख रही रोटी भूखे खाली पेट में समाहित होने की त्वरित अभिलाषा ताकि प्रसाद के रूप में रोटी से तृप्त हो ऊपर वाले को कह सके धरा पर रहने वाला तेरा लख -लख शुक्रिया रोटी कैसी भी हो धर्मनिर्पेक्षता का प्रतिनिधित्व करती भाग -दौड़ भी रोटी के लिए करते फिर भी कटोरदान धरा पर रहने वालों को नेक  समझाइश देता कटोर दान में ऊपर-नीचे रखी रोटी मूक प्राणियों के लिए होती सदैव सुरक्षित दान के पक्ष के लिए रखी एक रोटी की हकदारी से भला उनका पेट कहाँ से भरता ? रोटी की चाहत रोटी को न मालूम रोटी न मिले तो भूखे इंसान की आँखें रोती यदि  रोटी मिल जाए ख़ुशी  के आंसू से वो गीली हो जाती बस इंसान को और क्या चाहिए ऊपर वाले से किन्तु रोटी की तलाश है अमर . परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा...
क्या थे क्या बना दिया
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क्या थे क्या बना दिया

********** संजय जैन मुंबई मैं करू क्या अब जब अपनो ने ही धोका दे दिया। क्या जबाब दे उन लोगो को जो कर रहे है मुझ पर व्यंग की तुम्हारे खास के होते हुए ये क्या हो गया।। . अब क्या करे और क्या बोले। उन लोगो को जो उतार रहे है। मेरी और उसकी समझ नही आ रहा। और क्या कहे क्या न कहे । जब पाला है सांप हमने आस्तीन में। तो कभी न कभी वो हमे काटेगा ही।। . तमन्ना तो बहुत थी कुछ करके दिखाने की। पर अब क्या करे जब तोड़ दिया दिल अपने ने । और डस लिया अपने ने अपना बन के।। . जीवन के अंतिम मोड़ पर मजाक बनाकर रख दिया। पूरी जिंदगी की मेहनत का, क्या मिला फल देख लिया। कैसे खुद को समझाए ये सब होने पर, की मैंने क्या किया ऐसा ? जिसकी मिली केरियर के,  अंत मे शर्मनाक सजा।। .लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मै...
बरसे बदरा
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बरसे बदरा

शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) आज बरसे बदरा मुझको मौसम सुहाना लागे  खेत हो रहे हरे भरे खलिहान लाॅन सी लागे बरसे बदरा... मन भर गया उमंगो से दूर कोश कोश तक भागे सिर पर लाखों बोझ रखे थे वो भी हल्के हल्के लागे बरसे बदरा... मन भी झूमा तन भी झूमा अंग अंग खिली बहारें मन मस्त जमीं पर घूूम रहा है रंगीला रंगीला लागे बरसे बदरा... . लेखक परिचय :-  नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिं...
यूँ ही ना आया करो मौसम
कविता

यूँ ही ना आया करो मौसम

पवन मकवाना (हिंदी रक्षक) इंदौर मध्य प्रदेश ******************** चाहे जब यूँ ही ना चले आया करो मौसम यूँ उनकी याद ना दिलाया करो मौसम रूठा हो जब दिलबर हमसे, तब यूँ आकर ना सताया करो मौसम गर आना हो जो मजबूरी तुम्हारी, आकर मुझे हौले से बताया करो मौसम जब तुम आते हो तो याद करते हैं, हम उन्हें कितना इस बात का अहसास उन्हें भी तो कराया करो मौसम उनकी याद में हम गाते हैं जो नग़मे, करीब जाकर कभी, उनके कानों में गुनगुनाया करो मौसम चाहते हैं हम उन्हें कितना वो ना मानेगें कभी, तुम्ही जाकर उन्हें प्यार जताया करो मौसम प्यार के दीप से ही है दुनियां रोशन मेरी, उनके दिल में भी इकरार का इक दीप जलाया करो मौसम चाहे जब यूँ ही ना चले आया करो मौसम .... परिचय : पवन मकवाना जन्म : ६ नवम्बर १९६९ निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश सम्प्रति : संस्थापक- हिन्दी रक्षक मंच सम्पादक- hindirakshak.Com हिन्दीरक्षकडॉटकाम सम्पादक- divyo...
ज़िंदगी बीत गयी
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ज़िंदगी बीत गयी

********** सिद्धि डोशी  प्रतापगढ़ ज़िंदगी बीत गयी रोते रोते जो ना था उसे पाने के लिए हालातों से लड़ते रहे पर यह वक़्त है जनाब यह भी गुज़र जाएगा बस सबर रख जो तेरी क़िस्मत में है वो ख़ुद चल कर तेरे पास आएगा .लेखक परिचय :- १९ वर्षीय सिद्धि डोशी बीबी.ए द्वितीय वर्ष की छात्रा हैं आप प्रतापगढ़ की निवासी होकर अभी इंदौर में अपनी पढ़ाई जारी रखे हुए हैं हिंदी अध्यन मैं आपकी गहन रुचि है अभी तक आपने ४० शायरियां व ५० कविताओं की रचना की है आपकी कविता पढ़ने-लिखने और हिंदी साहित्य में रुचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद ...
बावरा है
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बावरा है

शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) गुमसुम क्यों रहता है      मन बावरा देखे किसी को भी न बुलाए बावरा चल साथ तेरे हम   रहते हैं रोज़   मेरे यारा गुमसुम क्यों रहता है     मन बावरा है अब हँसता नहीं    मेरा लाडला चल रहा है आख़िर किससे मुकाबला न हँसता न बोले   ये मन बावरा   क्या प्यासा है   क्यों उदासा है     ये बावरा . लेखक परिचय :-  नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर...
आभास
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आभास

*********** भारती कुमारी (बिहार) दुनिया आभास आभास जीवन का जिस पर रंग जाने कैसे चढ़ा एक बोझ पाप का सत्य आवाज किसको देती अंधकार में संसार जो पड़ी चुपचाप धीरे-धीरे चली सहसा उठाई सत्य विचार बस पल-भर मौन हो गयी इतने में जीवन धीरे-धीरे ज्योतिर्मय हो गयी . लेखक परिचय :-  भारती कुमारी निवासी - मोतिहारी , बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें...🙏🏻 आपको यह रचना अच्छी लगे तो...
मेरी सहेली
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मेरी सहेली

********** कंचन प्रभा दरभंगा, बिहार वो तुम थी। जिसकी तलाश थी मुझे                    वो तुम थी। जिसकी आस थी मुझे                    वो तुम थी। जिसे ढूंढा हर कली में                     वो तुम थी। जिसे पाया हर गली में                     वो तुम थी। जो मेरी हमजुबां बनी                      वो तुम थी। जो मेरी कहकशाँ बनी                      वो तुम थी। मैं बंधी जिसके पाश मे                      वो तुम थी। जिसे पाया हमेशा पास मे                      वो तुम थी। जब दूर जाती हो आँखे नम हो जाती है                       वो तुम हो। जब पास आती हो उदासी कम हो जाती है                        वो तुम हो। . लेखिका का परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी र...
पानी
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पानी

************ रचयिता : सौरभ कुमार ठाकुर पानी पियो खाना बनाओ सिंचाई करो पानी फेंको या बर्बाद करो। कुछ फर्क नही पड़ता खत्म तो होगा पानी ही और प्रभाव पड़ेगा इंसान पर पर्यावरण पर जानवरों पर पेड़-पौधों पर और सारी दुनिया पर। . परिचय :- नाम- सौरभ कुमार ठाकुर पिता - राम विनोद ठाकुर माता - कामिनी देवी पता - रतनपुरा, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार) पेशा - १० वीं का छात्र और बाल कवि एवं लेखक जन्मदिन -१७ मार्च २००५ देश के लोकप्रिय अखबारों एवं पत्रिकाओं में अभी तक लगभग ५० रचनाएँ प्रकाशित सम्मान-हिंदी साहित्य मंच द्वारा अनेकों प्रतियोगिताओं में सम्मान पत्र, सास्वत रत्न, साहित्य रत्न, स्टार हिंदी बेस्ट राइटर अवार्ड - २०१९ इत्यादी। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित कर...
कहाँ खो गई गोधूलि
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कहाँ खो गई गोधूलि

********** संजय वर्मा "दॄष्टि" शाम को उड़ती धूल में देखता आकाश की लालिमा सूरज की धुँधली छवि सूरज लेता शाम को सबसे अलविदा गाय के गले में बंधी घंटिया सूरज की करती हो शाम की आरती गोधूलि की धूल बन जाती गुलाल धरा से आकाश को कर देती गुलाबी नित्य ये पूजन चला करता वर्षा ऋतु  धूल और सूरज छिप जाते देव कर जाते शयन ये गाँव की कहानी शहरों में धूल कहाँ औऱ सूरज भी कहाँ सीमेंट की ऊंची बिल्डिंग सड़के डामर की कहाँ गाय के गले मे आरती की घँटी गोधूलि का महत्व गाँव मे होता शहरों में तो काऊ महज पढ़ाया जाता गाँव प्रकृति से सजा इसलिए तो सुंदर है सोचता हूँ गॉव जाकर प्रकृती को पुनःपहचानू। परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं मे...
क्यो छोड़ दिया साथ
कविता

क्यो छोड़ दिया साथ

********** संजय जैन मुंबई कितना लूटोगे तुम अपना बनकर। कितना और सताओगे अपना बनकर। कभी तो तुमको शर्म आयेगी वे गैरत इंसान। या काटोगे उसी डाली को जिस पर बैठा करते थे कभी तुम।। सफलता तुमको मिल है, बहुत खुशी की ये बात है। परन्तु अपनी सफलता में तुम इतना मत इतराओ। की जिन्होंने तुम्हे पहुंचाया है शिखर पर। कही वो ही तुम्हारे पतन का कारण न बन जाये।। इसलिए संजय कहता है एक सही बात। बनाकर तुम चलो सदा अपनो के साथ। नही तो छोड़ देंगे तुम्हे तुम्हारे ही अपने लोग। फिर तुझे एहसास होगा की क्या खोया क्या पाया है।। सफलता की चकाचौन्ध  में, तुझे हो गया था घमंड। अब आ गया वही जहां से तू उठता था कभी। तुझे अपने असलियत अब पता चल गया। क्योकि छोड़ दिया तेरा साथ अपनो ने ही।। .लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिट...
तेरी याद आई
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तेरी याद आई

********** निधि मिश्रा पाण्डेय खरेया गोपालगंज . सूरज की लाली से पहले जगने वाली आंखों को, जब तेज धूप ने जगाई तो तेरी याद आई। . आंखे खुली सुबह में खुद को अकेली पाया, चिड़ियों ने आवाज लगाई तो तेरी याद आई। . फसल के मौसम में करती इंतजार सी मैं, घिर के काली बदली छाई तो तेरी याद आई। . सूखे खेत वाले किसान सी थी मैं, रिमझिम बारिश आई तो तेरी याद आई। . इलायची में वो खुशबू नहीं अद्रक में वो स्वाद नहीं, एक लाचार सी जब चाय पी तो तेरी याद आई। . तरस रहे थे मेरे कान बस सुनने को एक आवाज, वो प्यारी सी आवाज नहीं आई तो तेरी याद आई। . सूरज की लाली से पहले जगने वाली आंखों को, जब तेज धूप ने जगाई तो तेरी याद आई। . लेखक परिचय :-  नाम:- निधि मिश्रा पेशा : गृहणी निवासी : पाण्डेय खरेया गोपालगंज (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने...
जली दीपक प्रेम की
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जली दीपक प्रेम की

*********** भारती कुमारी (बिहार) मृदुल मन में पुलक-पुलक कर पुलकित ह्रदय विह्वल प्रेम में उलझ-सी गयी जैसे मधुरस में ह्रदय प्रणय स्वप्न में खो गयी जली दीपक प्रेम की उत्थान-पतन मधुमय जीवन में होती सिंचित प्रेम दिगमंडल रूप-सी बोलूं मधुर स्वर मधुमय ध्वनी-सी जली दीपक प्रेम की तन-मन मुग्ध हो गयी प्रेमरस-सी रोम-रोम असीम प्रकाश भर गयी फूटी ह्रदय में गहन विधुत प्रेममयी अणु जली दीपक प्रेम की .... . परिचय :-  भारती कुमारी निवासी - मोतिहारी , बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु ड...
गम के आंसू पिये जा…
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गम के आंसू पिये जा…

********** दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ ज़िन्दगी बेकार है,गम के आँसू पिये जा ! ज़िन्दगी बेकार है, गम के आँसू पिये जा !! इतनी ज़ेहमत उठानी होगी ज़िन्दगी मे आकर, क्या मिला इन्सान को इतना पैसा कमाकर ! क्या हुआ खुदको शरीफ़ दिखाकर, क्या कर लिया दूसरो पर उंगलियां उठाकर !! अबतो मरने मारने को भी तैयार है बस तु पिये जा……………………!! कंजूसी मे एक ईट पर पर भी घर टिक जाता है, चंद पैसो के लिये आजकल इंसान बिक जाता है ! कोई खरीदना बेचना इन इन्सानो से सीखे, “राज” तो इन जैसो पर ग़ज़ल लिख जाता है !! मुफ़्त का खा पीकर सब लेते डकार है- बस तु तो पिये जा……………………!! रूठी है ज़िन्दगी अब ज़ोर दो मनाने मे, पेहले लोग वक्त बिताते थे सबको हंसाने मे ! अबतो चाहे सारा जहाँ लुट जाये, कोई नही सुनने वाला… ग़रीब वहीं पीछे और अमीरो की वही रफ़्तार है- बस तु तो पिये जा………………….!! इंसानियत कहाँ चली गई कोई समझ नही पाया, लेकिन मेरे दिम...
बचपन
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बचपन

********** रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) कभी दौड़ना बागों में प्यारी रंगीली तितलियों पीछे, स्वछंद मदमस्त हो खेलते, नीले आसमान तले हर मौसम होते अजीज लुत्फ प्रफुल्लित मन उठाते, दिल को भाता हर चीज बहारें रंगीन करते रहते। अपना पराया का समझ नहीं घर-घर प्यार बरसाते ही बसती है ईश्वर की मूरत, मुस्काते सभी देख भोली सूरत।   लेखीका परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपन...
कलम का कमाल
कविता

कलम का कमाल

********** संजय जैन मुंबई लिखता में आ रहा, गीत मिलन के में। कलम मेरी रुकती नही, लिखने को नए गीत। क्या क्या में लिख चुका, मुझको ही नही पता। और कब तक लिखना है, ये भी नही पता। लिखता में आ रहा.....।। . कभी लिखा श्रृंगार पर। कभी लिखा इतिहास पर। और कभी लिख दिया,  आधुनिक समाज पर। फिर भी आया नही, सुधार लोगो की सोच में।। लिखता में आ रहा...।। . लिखते लिखते थक गये, सोच बदलने वाली बाते। फिर नही बदले लोगो के विचार। इसे ज्यादा क्या कर सकता, एक रचनाकार।।  लिखता हूँ सही बात, अपने गीतों में... अपने गीतों में......।। . .लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का...
हिंदी दिवस पर देखें ऐसे ही नज़ारे
कविता

हिंदी दिवस पर देखें ऐसे ही नज़ारे

********* विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) अगवानी में लगे देश के मंच सारे उसे राष्ट्र के माथे की बिंदी पुकारे लगेंगे उसके सम्मान में जयकारे हिंदी दिन पर देखें ऐसे ही नज़ारे . परायेपन का बोझ ले विवाहित बेटी निज घर आती  सहमती औ बौराती पल सम्मानित, उपेक्षा युगों युगों की मुखर हो बात कभी न ये कह पाती . राष्ट्र भाषा का सपना आँखों में धारे हिंदी दिन पर देखे ऐसे ही नज़ारे।। . अंग्रेजीयत का रोमांच हमको भाता हिंदीवालों को समझते गंवार भ्राता यूं विश्वमंच पर  ध्वज फहरा आते और सालों उस भाषण के गुन गाते . लेकिन अब भी हम अंग्रेजी के सहारे हिंदी दिन पर देखे ऐसे ही नज़ारे।। . लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप मे...
मेरी बेटी बड़ी नखराली से
कविता

मेरी बेटी बड़ी नखराली से

********** अलका जैन (इंदौर) मेरी बेटी बड़ी नखराली से लड़के उसे बहुत दिखाये हमने ना ना ना हर कोई को कह रही से एक से एक अमीर दिखाये ना वो कर जाये एक से एक होशियार दिखाते ना वो कर डाले एक दिन बोली मैंने लड़का पसंद आ गया मैं बोली अरी बावरीये कैसे हुआ बेटी मेरे इश्क में लड़का पागल हे ये मा शादी के बाद लड़का बेटी ने आगरा ले गया बेटी बोली मेरे इश्क में पागल है ताज दिखाने ले जाया है अम्मा मेरी पागल से इश्क में पागल से लड़का ये आगरा पहुंची लाडली मेरी बेटी दो राहें पर बारत रूकी एक राह जाती पागल खाने की ओर दूजी ताज की ओर बारत चली पागल खाने की ओर बेटी उलझन में पड़ गई लाडली पागलखाना पहुंचा दुल्हा सारे पागल खूश छोड़ दें हकीम ये पागल नहीं मेरे इश्क में पागल है ये हकीम बोला कोन बोला तेरे इश्क में पागल नहीं है ये ये तो जन्मजात पागल है मेरा पुराना मरीज से ये . परिचय :- इंदौर निवासी अलका जैन की शिक्षा ब...
आतिश बाज़ी सीं
कविता

आतिश बाज़ी सीं

********** सिद्धि डोशी  प्रतापगढ़ आतिश बाज़ी सीं होंगी आसमान मैं जब तु आयेगा ज़िन्दगी मैं जशने बहारें सी होगी ज़िंदगी जब तू मेरे नाम होगा मेहन्दी से भी गहरा ये प्यार तेरे लिये होगा ये नसीब की बात है जब मिले एक दूजे से हम अब मेरा इन्तज़ार ख़त्म होगा जब तू मेरे साथ हो जाएगा खूशी होगी अब इतनी ज़िंदगी में सिर्फ़ नशा तेरे नाम का होगा ज़िंदगी से प्यार होगा जब तू मेरे साथ हो जाएगा .लेखक परिचय :- १९ वर्षीय सिद्धि डोशी बीबी.ए द्वितीय वर्ष की छात्रा हैं आप प्रतापगढ़ की निवासी होकर अभी इंदौर में अपनी पढ़ाई जारी रखे हुए हैं हिंदी अध्यन मैं आपकी गहन रुचि है अभी तक आपने ४० शायरियां व ५० कविताओं की रचना की है आपकी कविता पढ़ने-लिखने और हिंदी साहित्य में रुचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी क...
पराया
कविता

पराया

********** रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) लाडली तेरे आँगन की मैं तेरे आँचल की पराया धन नहीं पराया शब्द से होती हृदयाघात, जीवनपर्यंत दूँगी आप सबका साथ। मैं तेरे बगिया की मनमोहक पुष्प भूल न यूँ जाना, विदा कर पराया घर हृदयावास मुझे भी बसाना। मेरा भी अस्तित्व है बाबुल अँगना, मैंने भी देखा है स्वर्णिम सपना।   लेखीका परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर...
रिश्तों की राह
कविता

रिश्तों की राह

********** संजय वर्मा "दॄष्टि" जिंदगी की राह कुछ ऐसी ही होती जब बेटी का विवाह हो नजदीक पिता की आँखे डबडबाई  रहती मानों आसुंओं का बाँध टूट रहा हो बचपन से पाला पोसा वो अब घर छोड़ कर जाना होता है ये नियम तो है ही किंतु त्यौहार और घर का सूनापन भर जाता आँसू बेटी के न होने पर परिवार का भूख उड़ जाती बहुत कठिन रिश्ता होता है मध्यांतर का पिता ही इस बात को समझता है फिक्र अपनी जगह सही मगर बिछोह उसकी नींद उडाता ख्वाब तो रास्ता ही भूल जाते दिल का टुकडा उस समय जिसकी कीमत नहीं वो बिछड़ जाता है ये विरहता कुछ सालों तक ही अपना अभिनय निभाती फिर भी बेटी तो बेटी है पिता की याद उसे और पिता को बिटियाँ की फिक्र सताती पिता के बीमार होने पर बेटी ही संदेशा देकर हाल पूछती फिर झूटी आवाज दोहराती मै ठीक हूँ तुम अपना ख्याल रखना ये संवेदना बूढ़े होने तक चलती है मायका मायका होता स्वतंत्र तितल...
हमसफर
कविता

हमसफर

********** निधि मिश्रा पाण्डेय खरेया,गोपालगंज . एक झलक देखते ही होश गवां बैठे है, हलचल सी हुई है सीने में जैसे दिल लगा बैठे है। . नजरे मिलते ही सुर्ख होठों पे मुस्कान आना, लगता है बिजली गिराने के इरादे लिए बैठे है। . पाबंदी है मेरे कदमों पे राहे-अंजान निकलने को, क्योंकि उनकी सायरी के मुझे चाँद समझ बैठे है। . खफा होके खुदा भी सोचे बस सवाल यही, की ये हुस्न या कोई बला बना बैठे है। . "निधि" में होता है विकास अक्सर जाने है जहां, अपनी हर सफर का उसे हमसफर बना बैठे है। . एक झलक देखते ही होश गवां बैठे है, हलचल सी हुई है सीने में जैसे दिल लगा बैठे है। . लेखक परिचय :-  नाम:- निधि मिश्रा पेशा : गृहणी निवासी : पाण्डेय खरेया, गोपालगंज (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हि...
मन में तूफान
कविता

मन में तूफान

********** रूपम आनंद तिवारी अटवा महादेवा मन में तूफान से क्यों है, हर शख्स परेशान से क्यों है? आँखों में ज्वार सा क्यों है, दिलो दिमाग सुनसान सा क्यों है? . शहर का हर चौक चौराहा जाम सा क्यों है, दौड़ता भागता इंसान से क्यों है? चीखता चिल्लाता हर इंसान क्यों है, औकात से ज्यादा बोझ उठाता इंसान क्यों है? . बचपन में ही बूढ़ों सा चाल क्यों है, शोरगुल में भी मन सुनसान सा क्यों है? कुछ पाने से पहले ही उसे खोने का डर क्यों है, न पाने पर खुला मौत का मुंह हैरान क्यों है? . चढ़ते हुए ऊंचाइयों पर गिरता हर इंसान क्यों है, गिरने पर फिर न उठने की चाह क्यों है? मंजिल पाने की चाह में कुछ खोने से डरता इंसान क्यों है, न पाने पर मौत के कुएं में कूदता इंसान क्यों है? . हर रूप है तेरे "रूपम" में, होके मेरे इतने करीब, फिर भी तू इतना अंजान सा क्यों है? मन में तूफान सा क्यों है, हर शख्स परेशान सा क...
लौटना चाहता हूँ
कविता

लौटना चाहता हूँ

********** पुरु शर्मा अशोकनगर (म.प्र.) . लौट जाना चाहता हूँ दोबारा बचपन की उन संकरी सी तंग गलियों में जिनमें सिमटा था जहां सारा समेटना चाहता हूँ उस गली में बिखरे यादों के पत्तों को और सुनना चाहता हूँ उन पत्तों की खड़खड़ाहट का मधुर संगीत महसूस करना चाहता हूँ दोबारा उस गली में गूँजते पदचिन्हों की चाप, देखना चाहता हूँ दोबारा उस बरगद पर चिड़ियों का डेरा जिसकी डालों पर झूलते बीता बचपन मेरा . जाना चाहता हूँ उस गली के अंतिम छोर तक और पार करना चाहता हूँ दोबारा उस पुराने घर की मीठी दहलीज को जिसे लाँघ कर गया था कड़वाहटों की दुनिया में . खोलना चाहता हूँ सालों से बंद जर्जर किवाड़ अपने अंतर्मन के जिनमें कैद हैं वक्त की मार से झुक चुके पंछी कई खटखटाना चाहता हूँ बंद कमरे की खिड़की को और ढूढ़ना चाहता हूँ दुबारा उन्ही चारदीवारों में खुद को चढ़ना चाहता हूँ दोबारा उस छत की मुंडेरों पर जहाँ सूर्य स...
पत्थर दिलों की यादें
कविता

पत्थर दिलों की यादें

********** शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) मुझे वक्त याद आया पत्थर बना रहा हूँ उन जख्मों वाले घावों पर मरहम लगा रहा हूँ मेरा तर बतर ये होना मेरे जीवन की है ये गवाही छाँव के नीचे धूप से मैं पिघला जा रहा हूँ उम्मीद की वो राहें छूटी नहीं हमसे तेरी यादों में अब तक आशूँ बहा रहा हूँ तेरे कहे वो लफ्जों को अपने होंठों से भुला रहा हूँ मुझे जोङ करके तोङा उनको... वही भुला रहा हूँ इतना भी याद रखना जो प्यार था मेरा झूठा तो अब तक खुद को क्यों रूला रहा हूँ प्यार के शहर में रहकर अब नफरत जगा रहा हूँ बिछङे पत्थर दिलों की यादों में अन्तापुरिया नवगीत लिखा रहा हूँ . लेखक परिचय :-  नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमख...