मुस्कुरा रहा वतन
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रचयिता : कार्तिकेय त्रिपाठी 'राम'
हरी-भरी वसुंधरा को
देख कर मेरा वतन,
मुस्कुरा रहा है ऐसे
फूल का कोई चमन।
हर जवान देखता है
सीना तानकर यहां,
आजाद,भगत,बोस ने
जन्म लिया है जहां।
जमीं है मेरे प्यार की
जमीं है मेरे दुलार की,
महक ये बिखेरती
प्रेम,पावन,प्यार की।
ये धरा भी देखो हमको
कैसे यूं लुभा रही,
छा रही अमराई है
गंगा सुधा बरसा रही।
इसका थोडा़ गुणगान करें
और इसका मान धरें,
गीत भी अर्पण करें
और मन दर्पण करें।
पा रहें हैं इससे मनभर
खुशियों का जहान हम,
रक्त रंजित ना धरा हो
इसका धरें ध्यान हम।
संजीवनी है ये धरा
मुस्कानों से भर दें घडा़,
इससे बढ़कर कुछ नहीं है
इस धरा पर है धरा।
पाकर धरा पर हम ये जीवन
जीते ही तो जा रहे,
शीर्ष पर फहरा तिरंगा
हिन्द जन मुस्का रहे।
लेखक परिचय :- कार्तिकेय त्रिपाठी 'राम'
जन्म - ११.११.१९६५ इन्दौर
पिता - श्री सीताराम त्रिपाठी
पत्नी - अनिता, पु...