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कविता

परिश्रमि राहि
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परिश्रमि राहि

============================= रचयिता : राजेश कडोले "मिली है, जिंदगी इसे तू बेकार मे मत गवाना। थोड़ा सब्र रखना और बहुत पसीना बहाना। आज नहीं तो कल तू जीत जाएगा। यही भरोसा तू अपने आपको दिलाना। मिली है जिंदगी इसे तू बेकार में मत गवाना। और एक बात याद जरूर रखना। भला दूसरों का करना और अपना कर्तव्य मत भूलना। भले ही कछुए की चाल चलना पर खरगोश की तरह मत उछलना। मिली है जिंदगी से तू बेकार में मत गवाना। लोग तुझे रोकेंगे, तू मत रुकना और उनको कुछ मत समझाना। बस तू चलते रहना और लोगों से किताबों से सीखते रहना। विश्वास रखना कि एक न एक दिन मंजिल मिलना है, यही हौसला रखना। बस तू चलते रहना और आगे बढ़ते रहना। मिली है जिंदगी इसे तू बेकार में मत गवाना। लेखक परिचय :-  राजेश कडोले उपनाम :- कविराज जन्मतिथि :- २६/०६/१९९८ भाषा ज्ञान :- हिंदी, अंग्रेजी शिक्षा :- इंजीनियरिंग  ट्रेड  (आईटीआई),बीएससी, जर्नलिज्म (...
हिंदी रक्षक  मंच तुम्हें नमन
कविता

हिंदी रक्षक  मंच तुम्हें नमन

============================= रचयिता : श्याम सुन्दर शास्त्री हिंदी रक्षक  मंच तुम्हें नमन करते हम अभिनन्दन विश्व पटल  भारत धरा पर स्थित तेरा सदन लेखक,कवि, रचनाकार का हो रहा यहां सम्मिलन वेद ऋचाओं से जहां होता पूजन ,हवन मातृ , पितृ, देवों का जहां होता चरण वंदन गद्य,पद्य , साहित्य रचना  तुम्हें सुमन समर्पण नव उपवन सृजन पाता छत्रछाया में मार्गदर्शन सब पाते सम्मान अलंकरण, पुलकित जन मन लेखक परिचय :- श्याम सुन्दर शास्त्री, सेवा निवृत्त शिक्षक (प्र,अ,) मूल निवास:- अमझेरा वर्तमान खरगोन शिक्षा:- बी,एस-सी, गणित रुचि:- अध्यात्म व विज्ञान में पुस्तक व साहित्य वाचन में रुचि ... आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करन...
मै कल भी अकेला था आज भी अकेला हूँ
कविता

मै कल भी अकेला था आज भी अकेला हूँ

============================= रचयिता : जीतेन्द्र कानपुरी खतरो से खेला हूँ बहुत दर्द झेला हूँ ।। मै कल भी अकेला था आज भी अकेला हूँ ।। लोग मिलते है हजारो मगर सब स्वार्थ से बस इसी बात का गम बहुत झेला हूँ ।। मै कल भी अकेला था आज भी अकेला हूँ ।। लेखक परिचय :- राष्ट्रीय कवि जीतेन्द्र कानपुरी का जन्म ३० -०९ १९८७ मे हुआ। बचपन से कवि बनने का कोई सपना नही था मगर अचानक जब ये सन् २००३ कक्षा ११ मे थे इनको अर्धरात्रि मे एक कविता ने जगाया और जबर्जस्ती मन मे प्रवेश होकर सरस्वती मॉ ने एक कविता लिखवाई। आर्थिक स्थित खराब होने की बजह से प्रथम कविता को छोड़कर बॉकी की २०० कविताऐ परिस्थितियों पर ही लिखीं, इन्हे सबसे पहले इनकी प्रथम कविता को नौएडा प्रेस क्लब द्वारा २००६ मे सम्मानित किया गया।इसके बाद बिवॉर हीरानन्द इण्टर कॉलेज द्वारा हमीरपुर मे, कानपुर कवि सम्मेलन द्वारा, अरमापुर पुलिस द्वारा, प्रकाश मह...
मेरा मन
कविता

मेरा मन

======================== रचयिता : अनुपम अनूप "भारत" कई दिनों से पूछँ रहा मैं, भूले भटकें मेरे मन से। कहा गई शरारते क्यूँ, खुश रहता यूँ बेमन से। कभी हुआ करती थी बातें, क्लास रूम फुल्की ठेले में। कितना मजा आया करता था, सब संग जाते थे जब मेले मे। बेल्ट मे रस्सी बाधँ बाधँ कर, फिर सबकी पूछँ बनाते थे। बिना बताए हसँ हसँ कर, सब अपना पेट दुखाते थे। कितनी बारी ही सबसे ज्यादा, नम्बर लाने की शर्त लगाई थी। प्रभू कृपा दुआ मेहनत से, हर बार सफलता पाई थी। बड़ा मजा आया करता था, थके हुए कोमल बचपन मे। कई दिनों से पूँछ रहा मैं, इस भूले भटकें मेरे मन से। लड़ते थे खुब ताल ठोककर, खूब शरारत करते थे। काम पड़े तो बड़े प्यार से, भाई भाई कहते थे। नादानी थी मनमानी थी, कुछ हरक़त बचकानी थी। कितनी भी करें गलतियाँ, पर दिल मे न बेमानी थी। आज सोचता कभी कभी मैं, कितना बदल चुका सच से। कई दिनों से पूछँ रहा मैं, भूले ...
लगा मैं हवा हूँ
कविता

लगा मैं हवा हूँ

======================== रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' लिखूँ मौसम की क्या ताकत   तेरे कदमों में लाने को    मुशाफ़िर बन चुका हूँ मैं      तेरी चाहत को पाने को... बना हूँ सिरफ़िरा खुद मैं अभी आज़ाद बनने को लगा मैं हूँ हवा की बारिश खुद को भिगाने को...   यहाँ की भीड़ बस्ती को मैं हवा का झोंका लगता हूँ यहाँ की ख्वाब खामोशी के बदले ज़रा सा प्यार दो मुझको... लेखक परिचय : नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन " आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं...
इतना आसान नहीं की कोई मेरी जड़ों को खोद लेे
कविता

इतना आसान नहीं की कोई मेरी जड़ों को खोद लेे

============================= रचयिता : जीतेन्द्र कानपुरी आज भी मै अपने हालातो से लड़ रहा हूँ । कोई मेरी जड़े खोद रहा है मै और भी गहरा हो रहा हूँ ।। इतना आसान नहीं की कोई मेरी जड़ो को खोद ले । क्योंकि मै पाताल के पानी से सिंचित हो रहा हूँ  ।। लेखक परिचय :- राष्ट्रीय कवि जीतेन्द्र कानपुरी का जन्म ३० -०९ १९८७ मे हुआ। बचपन से कवि बनने का कोई सपना नही था मगर अचानक जब ये सन् २००३ कक्षा ११ मे थे इनको अर्धरात्रि मे एक कविता ने जगाया और जबर्जस्ती मन मे प्रवेश होकर सरस्वती मॉ ने एक कविता लिखवाई। आर्थिक स्थित खराब होने की बजह से प्रथम कविता को छोड़कर बॉकी की २०० कविताऐ परिस्थितियों पर ही लिखीं, इन्हे सबसे पहले इनकी प्रथम कविता को नौएडा प्रेस क्लब द्वारा २००६ मे सम्मानित किया गया।इसके बाद बिवॉर हीरानन्द इण्टर कॉलेज द्वारा हमीरपुर मे, कानपुर कवि सम्मेलन द्वारा, अरमापुर पुलिस द्वारा, प्रकाश महि...
मां
कविता

मां

============================= रचयिता : श्याम सुन्दर शास्त्री  मेरी कविता हो तुम मन विचार की सरिता हो तुम विष्णु की रमा, शिव की उमा कृष्ण की राधिका ,जगत जननी जगदम्बा हो तुम रिश्ते, परिवार, आचार विचार जग के सारे व्यवहार की शुचिता हो तुम जाति-धर्म, संस्कृति , संस्कार आगत स्वागत ,विगत विचार दुनिया नहीं दुहिता हो तुम वेद पुराण , बाइबिल, कुरान सांई, नानक, गुरु ग्रंथ आख्यान ज्ञान विज्ञान की गीता हो तुम गंगा-यमुना, सरस्वती सती, गौरी या पार्वती रामायण की जनकनंदिनी सीता हो तुम यम , नियम, आसन , प्राणायाम क्षिति, जल , पवन,समीर आसमान हृदय कमल की सविता हो तुम नव जीवन सृजन पालन पोषण स्नेह, वात्सल्य, प्रेम, आलिंगन ज्ञान की गायत्री गरिमा हो तुम सप्तवर्ण, वार , सप्तर्षि, सप्तसागर,सप्तविवाह संस्कार सप्तलोक,सप्तस्वर की रचयिता हो तुम लेखक परिचय :- नाम - श्याम सुन्दर शास्त्री सेवा निवृत्त शिक्ष...
राज
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राज

============================= रचयिता : डॉ. अर्चना राठौर "रचना" ये राज न कोई जान सका , दुनियाँ ये कैसे चलती है , दिन - रात ये कैसे होते हैं और घूमती कैसे धरती है| ये राज न कोई जान सका, क्यों सूरज आग उगलता है , क्यों चाँद ये घटता - बढ़ता है, कैसे शीतलता देता है | साइंस ने राज ये खोल दिया, कि धरती कैसे घूमती है , सूरज क्यों आग उगलता है, ये चाँद क्यों घटता-बढ़ता है| पर क्या ये साइंस बता सका कि क्यों केदारनाथ शेष रहा , क्यों दैदीप्यमान ज्वालादेवी,क्यों गौमुख से जल बह रहा | धरती क्यों गोल-गोल घूमें , किस पर आखिर ये टिकी हुई , क्यों आसमान नीला दिखता , क्यों दिखे है बादल जैसे रुई | क्या राज ये कोई जान सका, क्यों सागर में ही हैं मोती , क्यों सोना उगले ये धरती, क्यों इस पर ही होती खेती | गर साइंस में इतनी है शक्ति, तो आसमान में करें खेती | क्या राज ये कोई जान सका, क्यों नारी ही सृष्टि कर्त...
खत हजारों मुझे
कविता

खत हजारों मुझे

============================= रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' तूने लिखे थे खत   हजारों मुझे... मगर उस वक़्त एक भी न मिल सका मुझे... आज देख रहा हूँ तेरे पुराने से पुराने खत में रखी हैं छिपी तेरी यादें उन्हीं में उलझकर दिल ने तेरी याद दी मुझे... तेरी यादों ने मज़बूर   कर दिया अब तेरे साथ बीते पल    के लम्हों को लिखने को मुझे... लेखक परिचय : नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं रुचि :- अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन " आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्...
हम कब जिम्मेदार बनेंगे
कविता

हम कब जिम्मेदार बनेंगे

======================= रचयिता : मंजुला भूतड़ा क्यों करें प्रदूषित अपने जल संसाधन, अमूल्य निधि में फैला रहे प्रदूषण। स्वयं गलती कर,दोष देना दूसरों को बंद करें,आओ कुछ हम भी करें। मूर्ति विसर्जन हम करेंगे, पर प्रभु मूरत, अपने संग रखेंगे। भगवान भरोसे हैं, कहते हैं हम भगवान को किसी ओर के भरोसे, छोड़ देते हैं हम। नहीं हो पाती मूर्तियां विसर्जित, यहां वहां पड़ी देख,मन होता व्यथित। सब मिलकर पूजन करें,भोग लगाएं सब मिलकर यह गाएं, गणपति बप्पा मोरया खेतों में आ के बस जा। मन में मूरत एक बिठा लें, चाहे मूर्ति गमले में बिसरा दें। प्रभु सानिध्य का लाभ छोड़ो मत जिम्मेदारी किसी ओर पर ढोलो मत। समझें और समझाएं वरना हम कब जिम्मेदार बनेंगे। लेखिका परिचय :-  नाम : मंजुला भूतड़ा जन्म : २२ जुलाई शिक्षा : कला स्नातक कार्यक्षेत्र : लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता रचना कर्म : साहित्यिक लेखन विधाएं ...
वो शहर कब हमारा था
कविता

वो शहर कब हमारा था

====================== रचयिता : ईन्द्रजीत कुमार यादव वो शहर कब हमारा था, वहाँ तो बस बंजारों की तरह गुजारा था, लाख समंदर था तेरे पास, फिर भी तेरे कूचे से मैं गुजरा प्यासा था, ये गुल गुलिस्तां हो तुझे मुबारक, मुझे तो बस तेरे काँटो का सहारा था। वो शहर कब हमारा था, सड़क पर वो बंगला तुम्हारा था, वो सड़क जो जंगल से होकर गुजरती थी, उसी विराने में एक छोटा सा मकान हमारा था, ये रात,ये चाँद, ये ठंडी हवाएं हो तुझे मुबारक, मुझे तो बस आसमां का चादर और एक खाट का सहारा था, वो शहर कब हमारा था, वो आंधी बेवफ़ाई की जो हर रात आती थी मेरा घर तोड़ने को, उसके पास पता सिर्फ हमारा था, ये महफ़िल, ये नगमे, ये शामे रंगीन हो तुझे मुबारक, मुझे तो बस ये मशान और एक जुगनु की रौशनी का सहारा था। लेखक परिचय :-  नाम : ईन्द्रजीत कुमार यादव निवासी : ग्राम - आदिलपुर जिला - पटना, (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
कविता
कविता

कविता

====================== रचयिता : मनीषा व्यास आत्मा के सौंदर्य का ख़्बाव है कविता काग़ज़ रूपी खेतों में शब्द रूपी क़लम से बीजों  का अंकुरण  है  कविता आत्मीय सौंदर्य का काव्यदीप है कविता पल पल संजोकर सपने  भी सच कर हौसलों की उड़ान भर जाती है कविता मन जब अकेले पन के आग़ोश में छिपा हो तो उस अकेलेपन का   भी साथी  बन न जाने कब साथ आ जाती है कविता मन जब भावना के अधीन बहक रहा हो तो भावना के साथ अश्रु बन कर बह जाती है कविता आसमान सी नीली धवल चाँदनी बन चंचल मन की चपलता में भी भाव गढ़ जाती है कविता तिमिर में जब राह भूल जाय कोई राही तो पथिक की राह में भी दीप जला जाती है कविता   लेखिका परिचय :-  नाम :- मनीषा व्यास (लेखिका संघ) शिक्षा :- एम. फ़िल. (हिन्दी), एम. ए. (हिंदी), विशारद (कंठ संगीत) रुचि :- कविता, लेख, लघुकथा लेखन, पंजाबी पत्रिका सृजन का अनुवाद, रस-रहस्य, बिम्ब (शोध पत्र), मालवा क...
देखता रहता हूँ मैं छत से तुम्हें देर तलक
कविता

देखता रहता हूँ मैं छत से तुम्हें देर तलक

========================== रचयिता : मुनीब मुज़फ्फ़रपुरी याद आजाए तो एक बार बता भी देना शहर तो देख लिया दिल का पता भी देना मेरी आँखों ने तुम्हें देख लिया है यारा पास अजाऊँ तो आवाज़ सुना भी देना देखता रहता हूँ मैं छत से तुम्हें देर तलक ऐसे मौक़ों पे कभी हाथ हिला भी देना ये बड़ा काम है इसका भी अजर पाओगे रह चलते हुए पत्थर को हटा भी देना बेज़बाँ को भी शजर याद तो आता होगा यार पिंजरे से परिंदो को उड़ा भी देना हर घरी चुप नही रहना ज़रा मूनीब सुनो ज़ुल्म होता हो तो आवाज़ उठा भी देना लेखक परिचय :- नाम: मुनीब मुजफ्फरपुरी उर्दू अंग्रेजी और हिंदी के कवि मिथिला विश्वविद्यालय में अध्ययनरत, (भूगोल के छात्र)। निवासी :- मुजफ्फरपुर कविता में पुरस्कार :- १: राष्ट्रीय साहित्य सम्मान २: सलीम जाफ़री अवार्ड ३: महादेवी वर्मा सम्मान ४: ख़ुसरो सम्मान ५: बाबा नागार्जुना अवार्ड ६: मुनीर न...
बांध लिए पग में घुंघरू
कविता

बांध लिए पग में घुंघरू

======================= रचयिता : विनोद सिंह गुर्जर मैंने बांध लिए पग में घुंघरू, ये सारा जहां ही बहका रे । जब याद में तेरे नाच उठी, सारा ही गुलिस्तां महका रे।।... मेरे अंतर्मन के तारों में, प्रिय, तूने छेड़ा राग नया । धड़कन कुछ गति तेज हुई, अनुराग  सिहर फिर जाग गया।। चाहत का पंछी निकल पड़ा, सारी रात का आलम चहका रे...। मैंने बांध लिए पग में घुंघरू .. ये सारा जहां ही बहका रे...।। मैंने अधरों पर नाम लिया, वीणा से स्वर  सप्तक फूटे। मेरी मांग सजाने को आतुर, अंबर से तारे आ  टूटे ।। तेरी याद में टपके जब आंसू, सारा मधुबन ही दहका रे... । मैंने बांध लिए पग में घुंघरू .. ये सारा जहां ही बहका रे...।। परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी...
सफर
कविता

सफर

======================== रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर गर! सफर में साथ हो अपनो का, तो सफर आसां हो ही जाता है। तलाश हो गर! सही मंजिल की, तो कारवाँ बन ही जाता है। वादियां खिली-खिली सी हो। गर! ना हो दोस्त साथ तो। चमन भी, चुभ ही जाता है। गर! साथ हो दोस्त, परिवार तो। विराना! चमन हो ही जाता है। मुक़द्दर सभी का अपना-अपना। लेकिन! कोई मंजिल तो होगी। जहाँ में! जहाँ, हमसाथ हो ही जाता है। मत कर! तलाश बिखरे पन्नो की। कसूर पन्नो का नही। गर! वक्त साथ ना हो तो। हवा का रुख बदल ही जाता है। चलते रहो, मुस्कुराते रहो। सफर में! धूप-छावं तो होगी। गर! सफर हो साथ अपनो का तो। सफर आसां हो ही जाता है।   परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर जन्म तिथि : ५.९.१९७० लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं, लेख, शिक्षा : एम .ए फैशन डिजाइनिंग, आई म्यूज सितार, प्रकाशित रचनाये : कहानियां:- बिमला बुआ, ढलती शाम, प्...
साहित्य और समाज
कविता

साहित्य और समाज

********** रचयिता : रूपेश कुमार हम सभी जानते हैं कि साहित्य समाज का दर्पण होता है ! साहित्य के बिना समाज की कल्पना करना निरर्थक है ! साहित्य से ही समाज का निर्माण होता है एवं समाज की कुरीतियों का विनाश न  होता अगर साहित्य न होता , तो समाज की कुरीति राजनीतिक कुरीति का विनाश भी नहीं होता ! साहित्य समाज को रास्ता दिखाता है किस रास्ते से समाज को चलना चाहिए ! राजनीतिक को भी गिरने से साहित्य ही बचाता है वरना साहित्य नहीं होता तो आज की राजनीतिक और कचरा हो गई होती ! साहित्य के बिना समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है ! वर्तमान में समाज में जितने  कुरीतियां हो रही है वह साहित्य के अनदेखा मे ही हो रहा है समाज से ही साहित्य का उदय होता है और साहित्य से ही समाज का उदय होता क्योंकि साहित्य समाज का दर्पण है मेरी कविता ~~~ समाज को साहित्य का मिला है सहारा , भला उनको कचड़े से बचाओगे कब तक ? जो मिलते हृध्य...
बंद आँखों से सितारों का जहाँ देख रहे हो
कविता

बंद आँखों से सितारों का जहाँ देख रहे हो

=================================== रचयिता : मुनीब मुज़फ्फ़रपुरी यहाँ से तुम खड़े हो कर के कहाँ देख रहे हो पता है किसने दी नज़रें जो जहाँ देख रहे हो बज़मे जाना में जो बैठोगे तो खाओगे ज़ख़्म ये सही है के वहीं देखो जहाँ देख रहे हो इस तरह खोए हुए हो कहाँ आकाश में तुम बंद आँखों से सितारों का जहाँ देख रहे हो तुम बहुत देर से कोशिश में हो पढलो मुझको क्या नजूमि हो,मेरा दर्द ए नहाँ देख रहे हो वो नज़र फेर रहा है अजीब तुम हो मगर तुम यहाँ देख रहे हो के वहाँ देख रहे हो लेखक परिचय :- नाम: मुनीब मुजफ्फरपुरी उर्दू अंग्रेजी और हिंदी के कवि मिथिला विश्वविद्यालय में अध्ययनरत, (भूगोल के छात्र)। निवासी :- मुजफ्फरपुर कविता में पुरस्कार :- १: राष्ट्रीय साहित्य सम्मान २: सलीम जाफ़री अवार्ड ३: महादेवी वर्मा सम्मान ४: ख़ुसरो सम्मान ५: बाबा नागार्जुना अवार्ड ६: मुनीर नियाज़ी अवार्ड आने व...
दर्द लिखते हैं
कविता

दर्द लिखते हैं

=================================== रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' हम तो आवाम का दर्द लिखते हैं, दुनियां जिसको भूलती है हम उसका नाम लिखते हैं, सारी खताओ को माफ़ करो मेरी, हम ऐसा इस दुनियां को पैगाम लिखते हैं... ममता रूपी समुन्दर में डुबा सबको देती है लेकिन साहब ये माँ की ममता ही है जिसमें डूबते तो हैं लोग मगर मरते नहीं हैं दुनिया में मानव का सच्चा साथ तो सिर्फ "आँशू" देते हैं... बाकी तो सब दिखावा मात्र होते हैं... मोहब्बत में मेरी आकर वो सियासत भूल जाती है मोहब्बत इश्क की जन्ज़ीर है जो एक दिन टूट जाती है मेरे खिलाफ़ तेरा बड़े से बड़ा सुबूत भी काम नहीं आयेगा... क्योंकि तूने मोहब्बत की है जिसे करने तेरा भाईजान नहीं आयेगा... एक घर जला है गर तो दूसरा जलाने की तुम कोशिश न करो कारण भी हो फ़िर भी किसी को विद्रोह की आग में झोंकने की कोशिश न करो लेखक परिचय : नाम :- शिवम यादव रामप...
आलोक प्रखर होता है
कविता

आलोक प्रखर होता है

======================= रचयिता : विनोद सिंह गुर्जर अंबर से टकराकर। रविरश्मि कुछ गाकर। वैभव नभ के लाकर। प्रकाश अमर होता है।।... आलोक प्रखर होता है ।।... बचपन में स्वप्न संजोना । धैर्य युवा में खोना। देख बुढापा रोना। जीवन नश्वर होता है।।... आलोक प्रखर होता है ।।... वंशी मधुर बजाना। स्वर साधक बन पाना। चित्त में राग सजाना। मनमोह असर होता है।।... आलोक प्रखर होता है ।। परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता रही है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके ह...
बहक जाता था
कविता

बहक जाता था

============================= रचयिता : आशीष तिवारी "निर्मल" खिलता गुलाब थी, तू खिलता गुलाब है सूरत तेरी लाजवाब थी, लाजवाब है। तुझे देख के अक्सर बहक जाता था मैं मेरी आदत खराब थी, आदत खराब है। तू मीठे शहद सी थी, मीठे शहद सी है तेरी कीमत बेहिसाब थी बेहिसाब है। नशा छा जाता है जो तू पास से गुजरे मनमोहक अदाएँ शराब थी शराब है। कोई नही है मिसाल तेरी, बेमिसाल है तू सच में माहताब थी, और माहताब है। यूँ तुझको पाना है द्विवास्वप्न के जैसा तुम एक ख्वाब थी और एक ख्वाब है। रिश्ता सदा पाकीजा था हम दोनों का सब खुली किताब थी खुली किताब है। लेखक परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाण...
अपना सा
कविता

अपना सा

==================== रचयिता : माधुरी शुक्ला एक दोस्त की तरह नायाब हीरा है जिनकी  चमक से चेहरे पर उजाला भर जाये।। बातो के जादूगर है यो मीठे बोल भी मिश्री सी मिठास घोल देती । जब भी आते है कुछ नया रंग नए रूप में आते है जैसे भी आते है उमंग से भरपूर नजर आते हैं।। काश की, काश कि पहले आ जाते तो थोड़ा हम भी आशिकी कर जाते, तो थोड़ा सा सही रुमानियत से हो जाते। वजूद और कद से बहुत बड़े है हम अदने से होकर आपके लिए क्या कहे, नाचीज जो हूँ।। लेखीका परिचय :-  नाम - माधुरी शुक्ला पति - योगेश शुक्ला शिक्षा - एम .एस .सी.( गणित) बी .एड. कार्य - शिक्षक निवास - कोटा (राजस्थान) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने ...
जय श्री गणेश
कविता

जय श्री गणेश

================================= रचयिता :  राम शर्मा "परिंदा" इनकी पूजा पहले करें ये दाता विशेष। जय श्री गणेश ------ जय श्री गणेश।। हरी -हरी  दूब सिंदूर  चढ़ाओ और मोदक का भोग लगाओ पीत रंग इन्हें पसंद धरते जिसका वेश। जय श्री गणेश ------  जय श्री गणेश।। सब कहे इन्हें मंगल मूर्ति गजब की है इनमें स्फूर्ति अपने बुद्धिबल से जीते हर इक रेस। जय श्री गणेश ------ जय श्री गणेश।। गण देवों के ये है स्वामी सब जाने ये अन्तरयामी दस दिवस गणेश रंग में झूमे मेरा देश। जय श्री गणेश ------- जय श्री गणेश। परिचय :- राम शर्मा "परिंदा" (रामेश्वर शर्मा) पिता स्व. जगदीश शर्मा आपका मूल निवास ग्राम अछोदा पुनर्वास तहसील मनावर है। आपने एम.कॉम बी एड किया है वर्तमान में आप शिक्षक हैं आपके तीन काव्य संग्रह १- परिंदा, २- उड़ान, ३- पाठशाला प्रकाशित हो चुके हैं और विभिन्न समाचार पत्रों में आपकी रचनाओं का प्रकाशन...
कुछ भी हो
कविता

कुछ भी हो

=================================== रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' मेरे हर प्यार पर वो प्यार को सहने वाले चलो हम साथ चल रहे अपनी जिंदगी से    डरने वाले हक़ीक़त कुछ भी हो   मगर हम नहीं हैं इस दुनियां से डरने वाले कोई अल्फ़ाज़ में अपने    मेरी बातों को    लाकर रख दे चाहें कितना भी कटु हो      मेरा वो सच फ़िर भी नहीं हम उससे    पीछे हटने वाले लेखक परिचय : नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं रुचि :- अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन " आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां,...
यह है जिन्दगी
कविता

यह है जिन्दगी

==================== रचयिता : मनोरमा जोशी प्यास की दास है जिन्दगी तल्ख आभास है जिन्दगी। दर्द की गीत गाती हुई जिन्दगी। एक अभ्यास है जिन्दगी, भाष्य में व्याकरण की तरह, वाक्य विन्यास है जिन्दगी। मन विधा के लिये सर्वदा, स्वच्छ आकाश है जिन्दगी। द्धन्द को मत समर्पित करो, एक महाराज है जिन्दगी। हमको लगती है सायास ये, कब अनायास है जिन्दगी। लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहित्य शिरोमणि सम्मान और सुशीला देवी सम्मान प्रमुख रुप से आपको मिले हैं। उ...
जिंदगी की बेरूखी से
कविता

जिंदगी की बेरूखी से

======================= रचयिता : विनोद सिंह गुर्जर जिंदगी की बेरूखी से ऊब चले हम। सांझ ढले गिरे मगर, खूब चले हम।।.... जो मिला उसीने प्यार इस कदर किया। मेरी चाहतों को लूट दर्द भर दिया।। रूसवाई के भंवर में गहरे डूब चले हम।।.. जिंदगी की बेरूखी से ऊब चले हम। सांझ ढले गिरे मगर, खूब चले हम।।.... सोचा चांद को तो सिर्फ हमसे प्यार है। क्या पता उसके तो आशिक हजार हैं।। आसमां के तारे जैसे टूट चले हम ।।.. जिंदगी की बेरूखी से ऊब चले हम। सांझ ढले गिरे मगर, खूब चले हम।।.... गीत विरह में कभी गाया नहीं था।। प्रेम का बसंत जब आया नहीं था। हरी-भरी साख थे, सूख चले हम।।... जिंदगी की बेरूखी से ऊब चले हम। सांझ ढले गिरे मगर, खूब चले हम।।.... परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिक...