सभ्यता और संस्कृति का जन्मदाता
सलिल सरोज
नई दिल्ली
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मैं पावापुरी का जैन मंदिर हूँ।
मैं तुम्हारी सभ्यता और संस्कृति का जन्मदाता हूँ,
मुझे पहचानो।
अब मैं वृद्ध और रुग्ण हो चला हूँ,
मुझे संभालो।
मैं विलाप करता हूँ अपनी वर्तमान स्थिति पर,
मुझे सँवारो।
मैं रेत में पड़ा ठंडा हुआ राख हूँ,
मुझे फिर जला लो।
जिस तरह मिलते हो अपने बच्चे से,
मुझे भी गले लगा लो।
शरीर सारा जलता हैं ग्रीष्म में मेरा,
मुझे आँचल में छुपा लो।
मेरे हृदय के कमल कुम्भलाने लगे हैं,
प्यास तुम बुझा दो।
मैं ठूँठ सा मंज़िल हुआ पड़ा हूँ,
राह तुम बना लो।
मैंने सदियाँ दी हैं सौगात में तुम्हें,
मेरा भी अस्तित्व जिला दो।
महावीर ने निर्वाण लिया मेरे ही प्रांगण में,
उसकी तो लाज बचा लो।
मैं पावापुरी का जैन मंदिर हूँ,
तुमसे गुहार लगाता हूँ-
मेरा भी सिंचन करो,
मेरी भी सम्मान करो।
मैं तुमसे वादा करता हूँ,
बिहार को मस्तक पर धरता हूँ,
आलौकिक इतिह...