लाचारी
डॉ. बी.के. दीक्षित
इंदौर (म.प्र.)
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जो राशन मिला था ख़तम हो गया।
गरीबों पर हाय क्या सितम हो गया।
भूख लगती अधिक, दोष उनका नहीं,
कल मिले न मिले ऐसा मन हो गया।
बंद पाउच हुए,पान गुटका ख़तम।
कोरोना ने ढाया...ये कैसा सितम।
तम्बाखू रुलाती..कहीं आती नहीं।
ज़िन्दगी बिन उसके...भाती नहीं।
दीन नेता हुए,अब दिखते नहीं हैं।
न निकलें घरों से, मिलते नहीं हैं।
वोट बस्ती के उनको लुभाने लगे।
घर भरे हैं जहाँ, फिर भराने लगे।
चंद पैकेट लेकर निकलते हैं वो।
बनके हीरो कोरोना मचलते हैं वो।
खींच फोटो....दनादन डाला करें।
आपदा है विकट, मुंह काला करें।
मोहल्ले में बांटों, ये व्यवस्था रहे।
मन शुद्ध हो, सच्ची आस्था रहे।
झाँकी न तुम यूँ दिखाया करो।
कभी मेरी गली में आया करो।
मुँह सुरसा हुआ, देश खाने लगा।
कोरोना अब सच में रुलाने लगा।
काम भी है जरूरी...मिलता रहे।
पेट खाली और होंठ सिलता रहे?
बना ठीक दूर...
























