Monday, February 10राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

कविता

लुप्त हुआ अब सदाचरण
कविता

लुप्त हुआ अब सदाचरण

संतोष नेमा "संतोष" आलोक नगर जबलपुर ********************** लुप्त हुआ अब सदाचरण है बढ़ता हर क्षण कदाचरण है आशाओं की लुटिया डूबी स्वार्थ सिद्धि में नर हर क्षण है निशदिन बढ़ते पाप करम अब कलियुग का ये प्रथम चरण है अपनों की पहचान कठिन है चेहरों पर भी आवरण हैं झूठ हुआ है हावी सब पर सच का करता कौन वरण है कब तक लाज बचायें बेटी गली गली में चीर हरण है देख देख कर दुनियादारी "संतोष" दुखी अंतःकरण है . परिचय :-  संतोष नेमा "संतोष" निवासी : आलोक नगर जबलपुर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर ...
नया साल
कविता

नया साल

परमानंद निषाद छत्तीसगढ, जिला बलौदा बाज़ार ******************** उगते हुए सूरज का निकलना नया साल है। उदय होते सूरज का ढल जाना नया साल है। किसी भूखे को खाना खिलाना नया साल है। किसी प्यासे को पानी पिलाना नया साल है। सपनों को सच कर दिखाना नया साल है। भ्रष्टाचार को मिटाना नया साल है। रोगी की सेवा करना नया साल है। अनपढ़ को शिक्षा देना नया साल है। बेरोजगार को रोजगार देना नया साल है। पर्यावरण को स्वच्छ बनाना नया साल है। शादी मे दहेज ना लेना नया साल है। कन्या हत्या ना करना नया साल है। बेटा-बेटी मे भेद ना करना नया साल है। किसी बेसहारा को सहारा देना नया साल है। गिरते हुए को थामना नया साल है। फूल का डाली से मुरझा कर गिर जाना नया साल है। बीते हुए बुरे पलों को भूलाकर आगे बढ़ना नया साल है। कामयाबी की शिखर पर पहुंचकर नई ऊंचाईयों को छुना नया साल है। बुढ़े मां-बाप का सहारा बनकर उन्हे गले लगाना नया साल ...
एक शहीद की पत्नी का दर्द
कविता

एक शहीद की पत्नी का दर्द

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** ये चूड़ी ये कंगन अब भाते है नही मुझको, जब से इस देश के लिए खोया है तुझको। ना चैन है ना सुकून है ना नींद आती है, अब बस तुम्हारी याद में सारी रात जाती है। वो सजने संवरने के ख़ाब सताते नही मुझको...। जब से इस देश के लिए खोया है तुझको। ये चूड़ी ये कंगन... बैवा हूँ, अबला हूँ, अकेली हूँ शहर में। आती रहती हूँ अक्सर लोगों की नज़र में। सोचती हूँ बच्चों को लेकर गांव चली जाऊं मैं। मगर वहां भी कोई नही फिर कहाँ जाऊं में। अब बच्चों के खिलौने दिलायेगा कौन? मैं रूठ जाऊंगी तो अब मनाएगा कौन? अब खुदको समझाने के तरीके आते नही मुझको...। जबसे इस देश के लिए खोया है तुझको। ये चूड़ी ये कंगन... वो मेरे जन्मदिन पर बाहर खाने पर जाना, वो दिवाली पर बेग भरकर पटाखे, मिठाई लाना। वो करवाचौथ पर तुम्हारा घर जल्दी आ जाना, खुदके बारे में न सोच बस हमे सबकुछ दिलाना।...
अँग्रेजी की आग
कविता

अँग्रेजी की आग

भारत भूषण पाठक धौनी (झारखंड) ******************** एक आग कल भी लगी थी। एक आग आज भी लगी है।। कल आग अंग्रेजों ने लगाया। आज अँग्रेज़ी ने लगा रखी है।। अँग्रेज़ी का खेल तो देखिये हुजूर। जीवित पिता को डेड बना डाला। भला इसमें उस पिता का क्या कसूर।। कल तक जो बेटा चरणों तक झूकता था। आज घुटनों पर ही रुक जाया करता है।। कल पिता की चलती थी जो अंगुली पकड़ कर। आज उंगली छुड़ाती बरबस ही दिख जाती है।। कल लोगों में प्रेम भरपूर दिख जाता था। आज प्रेम का व्यवसाय सा दिखता है।। एक आग कल लगाई थी भारत को बनाने को। एक आग आज लगाई जाती है भारत को मिटाने को।। कल लोग गुलाम थे पर मन में आजादी थी। आज जब आजादी है मन में सिर्फ बरबादी है।। . परिचय :-  नाम - भारत भूषण पाठक लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका(झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्य...
इस संसार में
कविता

इस संसार में

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** यह सोचा मैंने इस संसार में अकेला हूं मैं यूं कहने को यहां। मेरे साथ प्रकृति की सन्नाटा चिरपरिचित झींगुर की आवाज। काली स्याह रात कभी धवल धूसर चांदनी जिसकी दूधिया प्रकाश। फिर भी इस सब के बीच अपने आप को अकेला और तन्हा पाता हूं अपने आप को। सोचता हूं यहां कोई अपना होता बोध करा पाता उसे अपने अंतस की गहराइयों को सृजनशील मानव अपनी राह खुद बनाते हैं। उस पथ पर बढते चले जाते हैं। उद्धत अविराम कर्म पथ पर सृजनशीलता की परिचय देते हैं। अपने एहसास के अनगढ पत्थरों को अपनी कल्पनाओ की पैनी छैनी तथा कर्मठता की हाथौड़ो से प्रहार कर नई जीवंत मूर्ति तराश लेते सृजनशीलता तो प्रकृति की अटूट नियम है। प्रकृति की शक्ति को नियंत्रित करने की व्यर्थ कोशिश की गई है। उनकी भाव भंगिमा ओं के साथ छेड़छाड़. करके मानव महा विनाश की ओर निर्बाध अपनी गति को बढ़ाई। . परिचय :-...
आपके लबों से
कविता

आपके लबों से

केदार प्रसाद चौहान गुरान (सांवेर) इंदौर ****************** देख कर लगता है की। गुलाब ने भी। आपके लबों से।। लाली चुराई होगी। देख कर आपका सौंदर्य।। पूर्णिमा की चांदनी भी। शरमाई होगी।। बादलों में घूमते हुए। जैसे यह जल भरे बादल।। है वैसे ही आपकी आंखों का। यह सुंदर काजल।। पेड़ों पर झूमती लताओं का वेश। ऐसे ही सुंदर लग रहे हैं आपके केस।। देखकर यह सुंदर परिदृश्य। बदल गया सारा परिवेश।। फूलों से सज कर जैसे। झुक गई हो डाली।। वैसे ही आपकी। सुंदरता है निराली।। . परिचय :-  "आशु कवि" केदार प्रसाद चौहान के.पी. चौहान "समीर सागर"  निवास - गुरान (सांवेर) इंदौर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप कर...
रे माधो
कविता

रे माधो

लज्जा राम राघव "तरुण" बल्लबगढ, फरीदाबाद ******************** रे माधो! सुख है दुख के आगे।.. मन की तनिक लगाम खींच, फिर सोई आत्मा जागे। रे माधो सुख है दुख के आगे।.. मन तुरंग पर चढ रावण ने सीता जाय चुराई। हनुमत संग सुग्रीव लिए श्री राम ने करी चढ़ाई। देख सामने मौत दुष्ट को नहीं समझ में आई। फिर राम लखन ने जा लंका की ईंट से ईंट बजाई। लंका भस्म हुई सारी सब छोड़ निशाचर भागे। रे माधो! सुख है दुख के आगे।.. बाली ने कर घात भ्रात से पाप किया था भारा। भाई की घरवाली छीनी नाम सुमति था तारा। गदा युद्ध प्रवीण बालि सुग्रीव बिचारा हारा। राम सहायक बने तुरत पापी को जाय संहारा। बड़े बड़े बलवान सूरमा काल के गाल समागे। रे माधो! सुख है दुख के आगे।. भक्ति में हो लीन 'ध्रुव' तारा बन नभ में छाये। शबरी की भक्ति वश झूठे बेर राम ने खाए। भागीरथ तप घोर किया गंगा धरती पर लाये। दानव सुत प्रह्लाद बचाने भू पर विष्णु आये। "विष...
ख़त की ख़ुशबू
कविता

ख़त की ख़ुशबू

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** मन करता है ख़त लिख दूँ। ख़ुशबू ..... फूलों में भर दूँ। रोज़ सफ़लता पाता हूँ। फ़िर भी क्यों अकुलाता हूँ? वो बात नहीं मोबाइल से। लफ्ज़ लफ्ज़ हैं घायल से। सन्देश खतों में प्यारा था। अद्भुत.......दौर हमारा था। थी ख़ुशबू बहुत प्रसूनों में। थी ठंडक, मई और जूनों में। क़ायनात जभी मुस्काती थी। बरसात तभी हो जाती थी। घूँघट में चाँद सुहाना था। माहौल पूरा दीवाना था। माँ बाप धरोहर होते थे। दुख में गोदी में सोते थे। अब कहाँ प्यार है अपनों में? शुभता गायब है सपनो में। मोबाइल ने ख़त ख़त्म किये। जी भर कर कोई नहीं जिये। नक़ली फूलों में प्यार नहीं। रिश्तों का कोई सार नहीं। यादें अब बहुत सतातीं हैं। दिल की दिल में रह जाती हैं। लिख दो ख़त पहले जैसा तुम। उस युग में लौट चलें हम तुम। बिजू का मन फ़रियाद करे। ख़त लिख कर यूँ कुछ याद करे।   परिचय :- डॉ. बी....
फिर भी मै पराई हूँ
कविता

फिर भी मै पराई हूँ

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** कैसी ये दुनिया है हरजाई जिसने ये एक शब्द बनाई मैं कौन हूँ घर कहाँ है मेरा सब कहते मुझको तो पराई जब मैं इस धरती पर आई सबकी लाड़ से मुस्काई सब ने फिर मुझे याद दिलाया लड़की तो होती है पराई ये क्या अम्मा तु ही बता दे तु तो अपना राज जता दे या तुझ मे भी वही बात समाई तु भी मुझको कहे पराई फिर सब ने मुझे किया विदाई साजन के घर डोली चढ़ आई सबसे मिल जुल घर तो बसाई फिर भी मैं कही गई पराई ये तो पिया का घर कहलायी ससुराल मे भी मै कही गई पराई भगवान ने ही ये नियम बनाई औरतों के लिये घर कहाँ बनाई . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने ह...
हिन्दी हमारा स्वाभिमान
कविता

हिन्दी हमारा स्वाभिमान

डॉ. अर्चना राठौर "रचना" झाबुआ म.प्र. ******************** अंग्रेजी अनिवार्यता है मगर हिन्दी हमारी माता है, अंग्रेजी विदेशी भाषा है, मगर हिन्दी मातृभाषा है। उपयोग इसका अधिक करें, माता का सम्मान करें, मातृ भाषा है हमारी, सदैव इस पर अभिमान करें। भूल रहे सब कलियुगी बच्चे, हिन्दी हमारी भाषा है, विदेशी अंग्रेजी भाषा को ही, समझें अपनी भाषा है। चल रहा षडयंत्र ये कैसा क्या मासूम समझता है, मात-पिता को भी क्या समझ नही कुछ आता है। बाहरी कार्यों के लिये उपयोग की भाषा अंग्रेजी है, मगर न बोले हिन्दी घर पर ऐसी क्या मजबूरी है। देश कोई भाषा का अपनी करता नही अपमान है, करता जो अपमान वो सिर्फ अपना हिन्दुस्तान है। आजादी को प्राप्त करके, हो गये वर्ष पिचहत्तर हैं, बुखार चढ़ा अंग्रेजियत का, मानसिक ये गुलामी है। महत्वपूर्ण क्यों हिन्दीं है, बच्चों को हमें बताना है, बिल्कुल मां जैसी है हिन्दी, उनकोे ये समझाना है...
अंतर्मन में ज्योति जलाएँ
कविता

अंतर्मन में ज्योति जलाएँ

संतोष नेमा "संतोष" आलोक नगर जबलपुर ********************** अंतर्मन में ज्योति जलाएँ। आओ तम को दूर भगाएँ।। पग पग पर अवरोध बहुत हैं। लोगों में प्रतिशोध बहुत है।। आओ मिलकर द्वेष हटाएँ। अंतर्मन में ज्योति जलाएँ।। छल, प्रपंच, पाखंड ने घेरा। लोभ, मोह का सघन अंधेरा।। मन से तृष्णा दूर भगाएँ। अंतर्मन में ज्योति जलाएँ।। असल सत्य को जान न पाये। स्वयं अहंता से इतराये।। क्षमा, दया, करुणा अपनाएँ। अंतर्मन में ज्योति जलाएँ।। चिंतन और चरित्र की सुचिता। परोपकार आचार संहिता।। अंतर से हँसे मुस्काएँ। अंतर्मन में ज्योति जलाएँ।। अनीति का तिरस्कार करें हम साहस का संचार करें हम "संतोष" यह कौशल अपनाएँ। अंतर्मन में ज्योति जलाएँ।। सब मिल ऐसे कदम बढ़ायें। दिव्य गुणों को गले लगायें।। आओ तम को दूर भगाएँ। अंतर्मन में ज्योति जलाएँ।। . परिचय :-  संतोष नेमा "संतोष" निवासी : आलोक नगर जबलपुर आप भी अपनी कवित...
सूत्रधार
कविता

सूत्रधार

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** हमारी आंखों में तुम, हमारे सपनों में तुम, कजरे की धार में तुम, मेरे माथे की बिंदिया में तुम, मांग का सिंदूर हो तुम, और तुम ही से हैं हम, वो और कोई नहीं, प्रियतम तुम ही तो हो, हमारे कंगन हो तुम, हमारे बिछूएं हो तुम, हमारा सोलह सिंगार हो तुम..,. हमारे दिल की धड़कन में तुम, हमारी सांसों में तुम, हमारे दिल की आरजू हो तुम, हमारी सौगातो का खजाना हो तुम, मेरी चाहत हो तुम, मेरी इबादत हो तुम, मेरी आहट हो तुम, मेरी परछाई हो तुम, सातों जन्म में, कदम से कदम मिलाकर, चलने वाले, मेरी हमसफर हो तुम... और कोई नहीं मेरे जीवन के सूत्रधार हो तुम....!! . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहा...
मजाक न बनाये
कविता

मजाक न बनाये

संजय जैन मुंबई ******************** तेरी यादों को अब तक, दिल से लगाये बैठा हूँ। सपनो की दुनियां में, अभी तक डूबा हुआ हूँ। दिल को यकीन नही होता, की तुम गैर की हो चुकी हो। और हकीकत की दुनियां से, बहुत दूर निकल गई हो।। मूनकिन नहीं की, मोहब्बत परवान चढ़ेंगी। तुम तो उसे दिल से, चाह रहे हो। पर उसकी निगाह, किसी ओर पर लगी हैं। और उसे लुभाने के लिए, तुम्हारे दिल से खेल रही हो।। अक्सर ऐसा देखा गया, मोहब्बत किसी और से। और दिल्लगी किसी, ओर से करते है। और अपनी निगाहों से दो को घायल करते है। ऐसे लोग प्यार मोहब्बत को खेल समझते हैं। और जमाने के लोग इन्हें मूर्ख समझते है।। क्योकिं ऐसे लोग, प्यार का मतलब जानते नहीं। फिर भी दिल की बातें करते हैं। और मोहब्बत को मजाक बनाते हैं। और अपनी जग हासाई खुद करवाते है।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करी...
बौनी उड़ान
कविता

बौनी उड़ान

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** ये उड़ान अभी बौनी है मुझे ऊपर बहुत ही जाना है । ये थकान अभी थोड़ी है मुझे अन्त समय तक निभाना है। आसमां को छूने की तमन्ना नही है दिल मे अनपढ़ो को आसमान से मिलवाने ले जाना है। ये उड़ान अभी बौनी है मुझे ऊपर बहुत ही जाना है.... पर्वतों पर चढ़ जाऊँ ये चाहत नही है मन मे माँ पिता के चरणों तक ही जा कर रुक जाना है। ये उड़ान अभी बौनी है मुझे ऊपर बहुत ही जाना है.... ये सोचती नही हूँ कि भगवान मिले मुझको हँस कर मिलूँ मै सब से और मुझे जिन्दगी से चले जाना है। ये उड़ान अभी बौनी है मुझे ऊपर बहुत ही जाना है.... लिखती हूँ मैं शब्दों को पिरोती हूँ मोतियों की तरह ये तो बस एक झोपड़ी है मुझे कविताओं का महल बनाना है। ये उड़ान अभी बौनी है मुझे ऊपर बहुत ही जाना है.... ये थकान अभी थोड़ी है मुझे अन्त समय तक निभाना है.... . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लह...
हम दोनों
कविता

हम दोनों

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** हम दोनों में कोई विशेष फर्क नही है । तू स्वार्थी मैं भी तू लालची मैं भी तू धूर्त मैं भी तू कमीना मैं भी तू दगा बाज़ मैं भी तू कपटी मैं भी तू अवसरवादी मैं भी तू झगड़ालू मैं भी तू ईर्ष्यालू मैं भी बस एक ही बात में हम अलग है तेरी प्राथमिकता धर्म है मेरी देश। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com प...
खुशखबरी
कविता

खुशखबरी

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** उसका गुनाह इतना सा जब जुल्म हुआ तब ख़ामोश थी शायद इसलिए कि आज्ञापालन की उम्र थी सोच में उसके भावना कि प्रबलता थी हम उम्र की संख्या भी शून्य थी जीवन में सन्नाटा इतना था कि खुद की सांसों से डर लगता था उसे धूत्तकार, धिक्कार, बन्दी सा बचपन मैं एक बोझ हूँ, कोई इंसान नहीं उसकी कोई चाहत नहीं, कोई सपने नहीं इस बात से परेशान होकर हर दिन थोड़ा–थोड़ा सा हृदय आह्लादित करती एकाकीपन में खुद से बातें करती किसी ने बताया एक दिन! मुस्कुराहट हर मर्ज की दवा हैं उसने मुस्कुराना भी सीख लिया आदत ऐसी डाली मुस्कुराने कि हर लब्ज पर अब मुस्कान हैं उसके उस मुस्कान ने उसे महान बना डाला लोगों की नजरों में गुनेगार बना डाला वह ‘वह’ नहीं रही आदर्श की प्रतिमूर्ति उसे बना डाला मुस्कान ने उसे हर दिन ऐसा पाला अब लगता हैं वह मुस्कान भी बूढ़ी हो गई हैं मुस्कुरात...
नव वर्ष
कविता

नव वर्ष

वन्दना पुणतांबेकर (इंदौर) ******************** नव पल्लव, नववर्ष आया। सुख-समृद्धि छोली भर लाया। खिले पुष्प सा जीवन सबका। मन की आशा हो पूरी। कभी न हो नीरवता जग में। द्वेष नही कोई मन में रखना। मिलो तो सदा अपनो से लगना। जीवन है, यह सुन्दर सपना। हो हर आशा पूरी। घर चहके पल-पल महके। हर दिल में मुस्कान खिले। अरमान के फूल खिले। खुशियॉ सबकी हो पूरी। यही मंगल कामना मेरी । आशा और विश्वास रखो तुम। निराशा मन कि दूर करो तुम यही जीवन की धुरी। हँसो, खिलो ख़िला- खिलाओ स्वजन। नव वर्ष नई आशा, नई खुशियों का संसार खुला हो। हर घर मंगल गीत बजे। घर, आँगन में दीप जले। सबकी आस हो पूरी। यही कामना मेरी। नव पल्लव, नववर्ष आया। खुशियों की सौगात लाया। किसी चहरे पर मुस्कान खिला सको तो। जीवन सार्थकता हो पूरी। यही कामना मेरी। . परिचय :- वन्दना पुणतांबेकर जन्म तिथि : ५.९.१९७० लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कव...
तूफान अंतर्मन का
कविता

तूफान अंतर्मन का

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** कभी तो वो तूफान उठेगा मेरे अंतर्मन में, जो बहा ले जायेगा अपने साथ हर विरोधाभास और बचेगा सिर्फ विश्वास खत्म हो जाएगा हर दोहराव और सिर्फ रह जायेगा एक ही पड़ाव फिर ये हर राह की भटकन न होगी सिर्फ एक राह ही मंजिल तक होगी कभी तो वो शीतल चांदनी फैलेगी मेरे अंदर के गगन में, जो भर देगी मन को असीम आनन्द में फिर न कोई उन्माद होगा बस अनाहत का नाद होगा अब बस इंतजार है मुझे उस तूफान का जो हर लहर के साथ एक उम्मीद छोड़ जाता है और दे जाता है इंतज़ार, इंतज़ार और इंतजार . परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फ...
प्रेम-संचार
कविता

प्रेम-संचार

भारती कुमारी मोतिहारी (बिहार) ********************** प्रेम भरी रात में प्रिये पी लेती हूँ मधुमास बंसी की धुन से मन को टटोल लेती हूँ प्रेम में अनुराग-मय अर्थ को पा लेती हूँ जब हृदय से प्रेम पर जीत जाती हूँ तब मन को नयी धुन से सजाती हूँ हृदय को समझा कर एकान्त मन में प्रेम जगाती हूँ बहते नीर को पीकर उस प्रेम अर्थ को ढूंढती हूँ, जो प्रिये के प्राण को संचार कर सके मेरे प्रिये उस दिशा की ओर जा रहे है जहाँ मेरे लिये फूलों की बरसात होगी कान्हा का प्रेम कष्ट हरने वाली हर दिशा को कल्याण करने वाली है सूने मन में जीवन भर के लिए नई तरंग भरने वाली है होगा प्रभात नये उमंग से प्रभु के संग से निष्ठा के प्रेम अंग से अनंत प्याले मधुमय बनेंगे आँसू रुपहले सुनहली मुस्कान में बदलेंगे बंसी की धुन जब नुपूर-झंकार में बदलेंगे।। . परिचय :-  भारती कुमारी निवासी - मोतिहारी , बिहार ...
बरगद की छांव
कविता

बरगद की छांव

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** मां-बाप बरगद की छांव, से होते है। जिंदगी देते है। और जिंदा , रखने के लिए, अपनी टहनियों को, अपनी जड़ें तक दे देते है। मां बाप बरगद की, छांव से होते है। उनकी घनी छाया में, सारा परिवार, पल जाता है। जो भी आता, बड़े प्यार से, खुली बांहों में, समेट लिया जाता है। मां-बाप बरगद की छांव, से होते है। कोई भेद-भाव नही, बच्चों को अपनी, जड़ों से, मजबूती का, स्तम्भ दिये रहते है। जिंदगी के साथ, जिंदगी के बाद भी, जड़ों और टहनियों से, जुड़े रहते है। मां-बाप, बरगद की छांव से, हमेशा हरे रहते है। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं,...
फन कुचलो इस विषधर का
कविता

फन कुचलो इस विषधर का

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** फन कुचलो इस विषधर का। जो विष वमन नित करते हैं भारत मां की गौरवमयी भूमि पर नित्य नई कुचक्र को रचते हैं। इस महापापी को धराशायी कर फिर से तू नई सृजन कर। जहां प्रेम हो आपस में हर आर्य वंशी हो भाई-भाई फन कुच लो इस विषधर का जो विष वमन नित करते हैं। अपनी कुकृत्यो से भारत मां की जिसने आंचल मैली की। अबलाओं की इज्जत पर जो लाठी तंत्र की वर्षा की। जिसे दंभ है भ्रष्टाचार पर दुशासन के शासन पर रक्षक की मूरत में भक्षक इसे अब तू सर्वनाश कर फिर तू नवसृजन कर हर माता है सीता राधेय हर बालक है राम कृष्ण तू है अर्जुन, भीम, नकुल, धृतराष्ट बनकर है जिसने कुशासन का नींव डाला। उंघ रहा है मद में यह छिछोरेपन करता करता। . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
यश वो ही पाएगा
कविता

यश वो ही पाएगा

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** नि:स्वार्थ भाव से काम कर, तो तू यश को पाएगा। आ गया स्वार्थ, तो पाया सम्मान भी खो जाएगा।। दोस्त का हमदर्द बनकर, जो उसका दर्द बटाएगा। जख्मों पर हकीकत में, वो ही मरहम लगाएगा।। मतलबी दुनिया, जीवन चरितार्थ ना हो पाएगा। करता रह नि:स्वार्थ कार्य, तू सफलता पाएगा।। प्रभु घर देर अंधेर नहीं, तू सार्थक कर पाएगा । आँखों के अंधों को, आईना तू ही दिखाएगा।। नि:स्वार्थ भाव रख, तू जग में अमर हो जाएगा। बाकी स्वार्थ में डूबा, दर दर ठोकर खाएगा।। सब कुछ पाकर स्वार्थी जन, सम्मान न पायेगा। एक झूठ छुपाने में, जीवन उसका गुजर जाएगा।। कहती वीणा नि:स्वार्थ रह, जग नहीं बिसराएगा। अपने श्रेष्ठ भावों से वो, जग में अमरता पाएगा।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी ...
मैं भी तो शहीद था
कविता

मैं भी तो शहीद था

दीपक मेवाती 'वाल्मीकि' सुन्ध - हरियाणा ******************** बारिशों के बाद जो बीमारियों की घात हो जंग का ऐलान तब मेरी ख़ातिर हो चुका मानकर आदेश को मन में सोच देश को ना ख़याल आज का ना फ़िकर बाद का सिर्फ़ एक लक्ष्य है जो मुझे है भेदना सीवर हो जहाँ रुका वो मुझे है खोलना बाल्टी, खपच्ची, रस्सी ली उठा हाथ में दो मेरे संगी भी चल-चले थे साथ में सुबह-सुबह की बात है थोड़ी पर ये रात है खोला ढक्कन जैसे ही बदबू आई वैसे ही । कुछ नहीं था सूझता कुछ नहीं था बूझता बदन से कपड़े दूर कर कमर में रस्सी बांधकर सुरक्षा की ना बात है ईश्वर का ही साथ है आसपास मेरे सब नाक-भौंह सिकोड़कर साथ मे खड़े हैं सब पास में ना कोई अब मैं अकेला ही भला हूँ जो भी हो देखेगा रब काली-काली गंदगी कितनों का ये मल है और कितनो की ये लेट्रिन दुश्मन से लड़ना है अब सोच छोड़ उतरना है अब एक को पकड़ा के रस्सी देह नरक की ओर बढ़ दी गर्दन तक मल में हू...
विरह की ज्वाला
कविता

विरह की ज्वाला

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** कहीं विरह की ज्वाला ने, मेरे अंतस से निकस तुम्हारे मन में डेरा डाला होगा। आह! आज दिन काला होगा।...। तुमने तो मुड़कर नहीं देखा, शब्दों में बस भाव पिरोए। यादों में नीरस गए सावन, नैन, मेघ बन दिन भर रोए।। क्या-क्या स्मृति लाऊं तुमको, आह! रुदन में हाला होगा ...। उस पथ पर मैं आज खड़ा हूँ जहां चैन पाते थे नैना। निरख-निरख कर भेद छुपाते, नहीं बताते थे मन बैना।। ऑखो में पल तैर गए हैं, आह! हृदय मतवाला होगा।...। अंदर तक झकझोर रही है, धड़कन भी सहमी-सहमी है। अब तक कह पाये ना तुमसे, आज मगर, कहनी-कहनी है।। पिछले जन्मों का कुछ तूने, आह ! नेह संभाला होगा।...।। . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा...
मां शारदे
कविता

मां शारदे

डॉ. संध्या जैन इन्दौर म.प्र ******************** मां शारदे! मां शारदे! तुमको पुकारतीऽऽ मैं। इस धरती पर तुम्हें आना होगा हम सबको मां तारना होगा मां शारदे! मां शारदे! तुमको पुकारतीऽऽ मैं। विद्या के मंदिर में देखो कैसा छा गयाऽऽ तमस अब दूर करो सारा तमस लाओ मां उजास अब मां शारदे! मां शारदे! तुमको पुकारतीऽऽ मैं। हमसे हुई क्या भूल अब? हमें जो चुभ रहे हैं शूल इस बगिया में खिला दो फूल रहे जिससे सब ही प्रफुल्ल। मां शारदे! मां शारदे! तुमको पुकारतीऽऽ मैं। मीठी वाणी, कलम, कागद क्या खो गए मां अब ये सब? अच्छे-अच्छे प्रियजन क्या सो गए मां सब? मां शारदे! मां शारदे! तुमको पुकारतीऽऽ मैं। आओ मां! आओ मां! वीणा के तारों के संग कर दो हृदतंत्री को मां आज तुम झंकृत। मां शारदे! मां शारदे! तुमको पुकारतीऽऽ मैं।   परिचय :- डाॅ. श्रीमती संध्या जैन पिता का नाम : डाॅ. नेमीचन्द जैन जन्म दिनांक : ३० अक्टूबर, ...