लुप्त हुआ अब सदाचरण
संतोष नेमा "संतोष"
आलोक नगर जबलपुर
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लुप्त हुआ अब सदाचरण है
बढ़ता हर क्षण कदाचरण है
आशाओं की लुटिया डूबी
स्वार्थ सिद्धि में नर हर क्षण है
निशदिन बढ़ते पाप करम अब
कलियुग का ये प्रथम चरण है
अपनों की पहचान कठिन है
चेहरों पर भी आवरण हैं
झूठ हुआ है हावी सब पर
सच का करता कौन वरण है
कब तक लाज बचायें बेटी
गली गली में चीर हरण है
देख देख कर दुनियादारी
"संतोष" दुखी अंतःकरण है
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परिचय :- संतोष नेमा "संतोष"
निवासी : आलोक नगर जबलपुर
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