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कविता

कोहरे की धुँध
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कोहरे की धुँध

रंजना फतेपुरकर इंदौर (म.प्र.) ******************** कोहरे की धुँध में तुम्हारे अहसास नज़र आते हैं बदलते मौसम के खूबसूरत अंदाज़ नज़र आते हैं जरूरी नहीं हर बात होंठों से कही जाए झुकी पलकों में भी तो जज़बात नज़र आते हैं सांझ के सुनहरे रंग गुलाबों पर बिखरे नज़र आते हैं किनारे लहरों को ढूंढते नज़र आते हैं ज़रूरी नहीं रोज़ रोज़ आकर हमसे मिलो हम तो खुश हो लेते हैं जब आप हमारे ख्वाबों में नज़र आते हैं . परिचय :- नाम : रंजना फतेपुरकर शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य जन्म : २९ दिसंबर निवास : इंदौर (म.प्र.) प्रकाशित पुस्तकें ११ हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान सहित ४७ सम्मान पुरस्कार ३५ दूरदर्शन, आकाशवाणी इंदौर, चायना रेडियो, बीजिंग से रचनाएं प्रसारित देश की प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएं प्रकाशित अध्यक्ष रंजन कलश, इंदौर  पूर्व उपाध्यक्ष वामा साहित्य...
कैसी ये होली
कविता

कैसी ये होली

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** अब कहां मिलते कोकिल स्वर है। कौओ की हमजोली अब कहां राग कहा फाग कैसी ये होली ऐसा लगा जैसे आसमान से प्रीत की बूंद-बूंद बरसी हो तेरे छूने के संग। और मैं भीगी की धरती सी रंग गई तेरे रंग। जहां-जहां तू छुए ना जाए तेरा रंग ना सुगंध। आज मैंने भी भांग पी रखी है तेरे दो नैनो के प्यालो से। आज तेरा नशा सर चढ बोल रहा है। आज सारी दुनिया डोल रहा है। अपने जी का पोल खोल रहा है आज मैं झगड़ना चाहूं जी खोल के तुमसे भी बुलवाना चाहू तुम्हारे एहसास अपना बोल के तुम्हारे नजरों के नटखट से आजाद होने आई हूं। तुम्हें छूने की इजाजत आज मैं घर से लेकर आई हूं कहीं हो ना जाऊ बदनाम भी फिकराना छोड़ कर आई हूं। आज तेरे संग मे तेरे रंग में रंगनेआई हूँ । . परिचय :-  नाम - चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आद...
शिव आराधना
कविता

शिव आराधना

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** शिव शंकर के श्री चरणों में, अपनी जगह बनाता चल। भाँग धतूरा बिल्वपत्र सँग, दधि घृत शहद चढ़ाता चल। पंचाक्षर को नित्य जाप ले, सुधरे यह जीवन सबका। नित्य आरती महादेव की, नित उनके गुण गाता चल। भक्ति भाव से नित शंकर का, सुबह शाम गुणगान करो। भजन हृदय से खुद भी भज कर, जग को संग सुनाता चल। भक्तों का कल्याण सदा शिव, दुष्टों का संहार करें। श्रद्धानत होकर मन ही मन में, धूनी नित्य रमाता चल। कैलाशी का ध्यान धरो नित, त्याग मोह-माया सारी। सांसारिक सुख डिगा न पायें, दिल से शपथ उठाता चल। दानी भोले शंकर जैसा, सकल सृष्टि में मिले नहीं। निर्मल छवि को हृदय बसा कर, शिव की अलख जगाता चल। आशुतोष सच्चे भक्तों को, देते हैं वरदान सदा। उपकारी बन सदा भक्ति से, सही राह अपनाता चल। . परिचय :- प्रवीण त्रिपाठी नोएडा आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर ...
सब छोड़ दिया
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सब छोड़ दिया

अमरीश कुमार उपाध्याय रीवा म.प्र. ******************** एक नाम से नाता तोड़ लिया जो खास था उसको छोड़ दिया मै रहा अब अपने अपने में वो हमको कब का छोड़ दिया कुछ रात सुबह गुजरी ऐसे फिर एक सुबह सब छोड़ दिया अब जोश जुनून नया कुछ था चल नाम नया करते फिर से वो समझ रहा है सब मुझसे एक राह भी ना निकले जिससे है दर्द बहुत इस सागर में लहरों से मचलना छोड़ दिया जाना था सागर की गहराई में नदियों में भी जाना छोड़ दिया चिल्लाकर मै भी कहता था आवाज़ न अब निकली मुझसे . परिचय :- अमरीश कुमार उपाध्याय निवासी - रीवा म.प्र. पिता - श्री सुरेन्द्र प्रसाद उपाध्याय माता - श्रीमती चंद्रशीला उपाध्याय शिक्षा - एम. ए. हिंदी साहित्य, डी. सी. ए. कम्प्यूटर, पी.एच. डी. अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर ...
बिरह की पीड़ा
कविता

बिरह की पीड़ा

सरिता कटियार लखनऊ उत्तर प्रदेश ******************** किसी की नफरत ने शायर बना दिया किसी की चाहत ने शायर बना दिया किसी के शब्दों ने शायर बना दिया किसी के लफ़्ज़ों ने शायर बना दिया किसी की नज़रों ने शायर बना दिया किसी के अधरों ने शायर बना दिया किसी के मिलन ने शायर बना दिया सिसक और बिछुड़न ने शायर बना दिल की धड़कन में जिसको बसा लिया उसी की तड़प ने शायर बना दिया दिल जीतने की लगन ने शायर बना दिया दिल में बसने की ज़िद ने शायर बना दिया फेर के नज़रों से जो जख़्म बढ़ा दिया उसके इंतज़ार ने सरिता को शायर बना दिया . परिचय :-  सरिता कटियार  लखनऊ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाई...
तुम से सपूत के होने से
कविता

तुम से सपूत के होने से

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** समर्पित - क्रांतिवीर श्री चंद्रशेखर आज़ाद जी के बलिदान दिवस पर विनम्र अश्रुपूर्ण श्रद्धांजली। रस - वीर, करुण, भाव - देश भक्ति इस माटी की खुशबु का दीवाना था एक शोला था। शत्रु भी था चकित, सिंह वो कर गर्जन जब बोला था ।। मैं पैदा आज़ाद हुआ आज़ाद धरा से जाऊंगा। तुझमें है ताकत जितनी कर ज़ुल्म मैं ना घबराउंगा।। हूँ स्वतंत्रा का राही इस वसुंधरा का लाल हूँ। तेरे जैसे निसाचारों का साक्षात् ही काल हूँ।। बांध कफ़न आया सर पर हूँ। मौत का डर तू ना दिखला।। है जननी अवनि मेरी यह। इसका आँचल जो कुचला।। इसकी ही रक्षा की ख़ातिर। शीश कटाने आया हूँ।। तुझको तेरे हर कर्मों का। दंड दिलाने आया हूँ।। शान से बोला जय भारत। यूँ फिरंगियों को डरा दिया। मिटा गया निज हिन्द पे यौवन । कर्ज धरा का अदा किया।। है अफ़सोस मुझे इतना। वो कैसा भाग्य का फेरा था? अल्फ्रेड पार्क में ...
होली
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होली

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** होली है मस्त होली सब ने जो मिलकर खेली यारों की मस्त टोली खेली जो सबने होली। चढ़ा दो रंग तन पर सब झूम रहे संग में खाए जो भांग पकोड़े कहीं उड़ाई जा रही ठंडाई। होली मिलन है आया बढ़ गया भाईचारा मिटा कर द्वेष सारा खुमार चढ़ गया निराला। अबीर गुलाल लगाकर सब ने जो खेली होली यारों की मस्त टोली खेली जो सब ने होली।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल,हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरंगिणी मुंबई, दैनिक जागरण अखबार, अमर उजाला अखबार, सौराष्ट्र भारत न्यूज़ पेप...
लेखनी हाथों में लेकर
कविता

लेखनी हाथों में लेकर

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** लेखनी हाथों में लेकर, यूँ डगर में मत रुको। वरदान कवि का है मिला मत डरो मत तुम झुको।। भावनाओँ के भंवर में डूब शब्दों को चुनो। कवि हो तो कुछ शर्म से, कुछ धर्म से कुछ तो लिखो।। गद्य में या पद्य में, गीत में संगीत में तुम अंधेरे में रहो, और उजालों से कहो।। तम हटा ..प्रकाश भर, रवि जरा आकाश पर।। रश्मियाँ फिर झूमकर। लेखनी को चूमकर। स्वागत करें। तुझसे कहें। कवि मत दिखो। पर कुछ लिखो।। मावस गहन कालिख रहे, निशा कराहे और सहे। कवि उठाना कलम अपनी, चीरना अंधकार को, विभा पारावार को।। चांदनी बिखेर देना, लाना चंद्रक हार को। पूर्णिमा खिल उठे, नीर सागर हिल उठे।। पुरबा बहे। हंसकर कहे। कवि मत दिखो। पर कुछ लिखो।। . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य...
पत्नी से बेतकल्लुफ दोस्ती
कविता, व्यंग्य

पत्नी से बेतकल्लुफ दोस्ती

डाॅ. हीरा इन्दौरी इंदौर म.प्र. ******************** ।।हजल।। करी पत्नी से भी यूँ बेतकल्लुफ दोस्ती मैंने। कहा उसने गधा मुझको कहा उसको गधी मैंने।। बहुत बेले हैं पापङ तेरी खातिर जिंदगी मैंने। कभी लेने गया तेल और कभी बेचा है घी मैने।। सरे बाजार चप्पल लात जूते से हुआ स्वागत। समझकर हिजँङा महिला की सारी खेंच ली मैंने।। तेरे गम में बढाकर मूँछ दाढी कुछ ही दिन पहले। बना रक्खा था अपने आपको सरदारजी मैने।। कभी खाना पकाता हूँ कभी बच्चे खिलाता हूँ। क्लर्की उसने पाई घर में कर ली नौकरी मैने।। मेरा पैसा तुम्हारा रूप अक्सर काम आया है। रकीबों को जलाया है कभी तुमने कभी मैंने।। रफीकों की तरह पेश आता है अपने रकीबों से। नहीं देखा कहीं "हीरा" के जैसा आदमी मैने।। . परिचय :-  डाॅ. राधेश्याम गोयल, प्रचलित नाम डाॅ. "हीरा" इन्दौरी  जन्म दिनांक : २९ - ८ - १९४८ शिक्षा : आयुर्वेद...
मेरा भारत
कविता

मेरा भारत

मित्रा शर्मा महू - इंदौर ******************** यह कैसी रीत चली है खून बहाना, भाईचारा भूलकर दुश्मनी निभाना। चहुं ओर अंधियारा फरेब की राह पर देश की गरिमा को रखकर ताक पर। जिस राधा का लहंगा सलमा ने सिला था चांद तारे भरे गोट चुनरी में जड़ा थी। बेरंग हो गया हलकी धूप की आंच पर प्रेम भावना सदाचार लगी सब दांव पर। त्रासदी और भयावह अमानवीय काम से राजनैतिक वैमनस्यता धर्म के नाम से। . परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमेंhindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३...
याज्ञसेनी १
कविता

याज्ञसेनी १

मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द' मुज्जफरपुर ******************** बोलो, आखिर कब तक सहते? थक गये थे कहते-कहते। विश्व बिरादरी मान रही थी। तुमने किया है, जान रही थी। किसके बल तुम तने हुए थे? क्यों यों भोले बने हुए थे? रोना है, तुझको रोना है। तेरे किए न कुछ होना है। प्रतिशोध की ज्वाला में हम कबतक दहते रहते- बोलो, आखिर कबतक सहते? सोचो, अब तुम कहाँ खड़े हो? चारो खाने चित्त पड़े हो। करनी का फल भोग रहे हो। दो-दो युद्ध की हार सहे हो। रे मूर्ख, मूर्खता छोड़ो अब तो। रे दुष्ट, दुष्टता छोड़ो अब तो। वीरों की है हुई शहादत, मौन भला हम कबतक रहते- बोलो, आखिर कबतक सहते? . परिचय :- मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द' पिता - रामनन्दन मिश्र जन्म - ०२ जनवरी १९६० छतियाना जहानाबाद (बिहार) निवास - मुज्जफरपुर शिक्षा - एम.एस.सी. (गणित), बी.एड., एल.एल.बी. उपलब्धियां - कवि एवं कथा सम्मेलन में भागीदारी पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प...
आरक्षी
कविता

आरक्षी

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** आरक्षी प्रखण्ड में कार्य करती है सिर्फ देह। प्राणवायु का संचालन जिसमे पूर्णतः बन्द हो चुका है ऐसी देह। भावना, विचारों, इच्छाओं से शून्य देह। जो जैसा चाहे वैसा व्यवहार कर सकता है उसके साथ कोई प्रतिक्रिया नही देती ये देह। सबलता के भ्रामक आवरण से ढकी निर्बल देह। ग्रीष्म में सूखती बारिश में भीगती शरद में ठिठुरती चौराहे चौराहे दिन रात खड़ी देह। देश भक्ति जन सेवा खल दलन योग क्षेम जैसे नियमित कर्मो को निष्काम भाव से सम्पन्न करती देह। पर सुखों में प्रसन्न होती अपने दुःखो को छुपाती देह। लाख त्रुटियां जन जन की परिलक्षित परिभाषित नही, कर्तव्य की बलिवेदी पर शीश अपना चढ़ाती देह। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म....
मन की पीर
कविता

मन की पीर

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** आज मे किसको सुनाऊँ, व्यथित मन की पीर। नयन अपलक जागते हैं, बहुरि भरते नीर। वेदना के शूल चुभते, मन पटल पर भाव भरते, कोन जो आकुल हर्दय को, आ बँधावे धीर ,बहुरि भरते नीर। याद मुझको हैं सताती, विरह की ज्वाला जलाती, कब मिलन कैसे मिलन हो, श्वास श्वास अधीर, दूर बसते प्रिय हमारे, मन पखेरु जारे जारे, सरस प्रिय के बिना, अब एक पल गंभीर, बहुरि भरते नीर। . . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर...
हृदय प्रफुल्लित
कविता

हृदय प्रफुल्लित

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** मदहोशी का आलम ऐसा खिल गये पुष्प अन्तस्तल में, नृत्य करे यह मन मयूर कोयल की कून्क मरुस्थल में। पुष्पित हो महका हर कोना, झूम उठा मेरा तन मन, आज प्रफुल्लित रोम रोम होगा प्रियवर से मधुर मिलन। अब नहीं कलुष मन में कोई, हर पल मुस्कायें होंठ मगन, झूम झूम नाचें इत उत, बाजे पायल रुनझुन-रुनझुन। . परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प...
माँ कंकाली स्तुती
कविता

माँ कंकाली स्तुती

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** तापा सेमरौन गढ़ में विराजत तू माँ महामाया कंकाली- ध्यावत तुमको निश दिन नेपाल-भारत के वासी सदियो से माँ पूजित-सिद्धयोगी बाबा मंशा राम की हरछन जलती धुनी। जय माँ कंकाली जय माँ कंकाली दुखियो की दुख हारती माँ तू सुख शांति की दाती। जय माँ काली कंकाली। ऋषि मुनि से तू पूजित धन वैभव की दाती। तापा सेमरौन गढ़ में विराजत तू सुख शांति की दाती। सत्रु मर्दन करती छन में सेवक को हो हर्षाती। पुत्र हीन को तू पुत्र देती हो हरदम तू मदमाती उच्च सिघासन पर विराजत हरछन घंटा नद घहराती जय माँ काली कंकाली भक्त जन जब तुम को देखे सारा संकट टर जाती जय माँ काली कंकाली बड़े बड़े साधक का माँ तू सिद्ध साधन कर जाती अनुभव स्वयं साधक को होती जब तेरी किरिपा ही जाती जय माँ काली कंकाली। सदियो से तू माँ विराजत औघड़ सिद्घ बाबा मंशा राम थे वा...
अब जाने दो मुझको
कविता

अब जाने दो मुझको

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** तुम पर जो शेष है वही उधार हो गया हूँ मैं चुकाकर तेरा मोल कर्जदार हो गया हूँ मैं। नही समझी तू मुझे किसी लायक भले ही एक तेरा ही तो दारोमदार हो गया हूँ मैं। मर चुके हैं दिल में पनपे सारे ही जज्बात ना तो गुल और ना ही खार हो गया हूँ मैं। आता नही था मुझे कभी यूँ शायरी का फ़न तू देख बड़े शायरों में शुमार हो गया हूँ मैं। केवल सच के बुनियाद पर टिका हुआ हूँ मैं तू मानती है झूठ का करोबार हो गया हूँ मैं। जाने दे मुझे,तू अब खुद से दूर रोकना मत किसी का सच्चा वाला प्यार हो गया हूँ मैं।   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प सम...
महाकाल हूँ
कविता

महाकाल हूँ

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** काल हूँ महाकाल हूँ अनंत का विस्तार। रुद्र का भी अवतार भाव से करता भक्तों को भव पार हूँ। न दिखे सत्य तो संपूर्ण संसार का करता विनाश हूँ। काली का महाकाल हूँ विष्णु का आराध्या मैं विश्वनाथ हूँ। मैं स्थिर हूँ अस्थिर भी हूँ इसीलिए सदाशिव हूँ। देवों का भी देव हूँ इसीलिए मैं महादेव हूँ। आदि हूँ, अनादि हूँ अनंत हूं, अपार हूं। अव्यय हूँ, अव्यग्र हूँ तभी तो जगद्व्यापी मैं सदाशिव हूँ। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्...
धर्म बनाम पंथ
कविता

धर्म बनाम पंथ

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** महज़ सनातन मूल्य अनूठा बाक़ी सारा जग ही झूठा मज़हब नहीं पंथ कह भाईं मझहब से छिड़ जात लड़ाई मठाधीश मज़हब चलवाते पन्थी दिल से दिल मिलवाते लक्ष्य एक पर पंथ अनेका पंथ से ही सम्भव है एका मज़हब तर्क नहीं स्वीकारे पंथ प्रेम बस प्रेम पुकारे मज़हब मन संकीर्ण बनाता पंथ सदा भ्रातृत्व सिखाता। . परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि : पुस्तक लेखन, सम्पादन, कविता, ग़ज़ल, १०० शोध पत्र प्रकाशित, मनोविज्ञान पर १२ पुस्तकें प्रकाशित, ११ काव्य संग्रह सम्पादित, अध्यक्ष साहित्यिक संस्था जौनपुर उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिच...
प्रेम
कविता

प्रेम

श्रीमति सीमा मिश्रा सागर मध्यप्रदेश ******************** प्रेम तुमसे क्या कहूँ! और कितना कहूँ न कह पाऊगी पूरा, जितना कहूँ! प्रेम की गागर कहूँ या प्रेम का सागर कहूँ ! रचे बसे हो आत्मा में, या फिर आत्मा ही कहूँ! प्रेम तुमसे क्या कहूँ............!! तुम्हें अपना सखा कहूँ, या अपना सगा कहूँ! चित्त में बसी चितवन कहूँ, या चितचोर मै कहूँ! प्रेम तुमसे क्या कहूँ............!! सांसो की पतवार कहूँ, या पतवार का माछी कहूँ! आंखों में समाया चांद कहूँ, या धड़कनों का साज कहूँ! प्रेम तुमसे क्या कहूँ..........!! निश्छल सी प्रीत कहूँ, या प्रीत की कोई रीत कहूँ! रामचरित की चौपाई कहूँ, या गीता सा ज्ञान कहूँ! न कह पाऊगी पूरा, चाहे जितना कहूँ! प्रेम तुमसे क्या कहूँ.........!! मन में प्रज्वलित चाहत की पवित्र ज़्योत कहूँ, या मुझमें बसा बेइंतहा इंतजार मै कहूँ दूर रहके भी हरपल ...
बेशकीमती मोती
कविता

बेशकीमती मोती

अंजना झा फरीदाबाद हरियाणा ******************** नहीं अब तो कदापि भी नहीं सौपूंगी तुझे उस मैले भावों में सीप से ढूंढ ढूंढकर निकाले हुए वो अनमोल बेशकीमती मोती क्योंकि नहीं है तेरे लोलुप से नज़रों में अतुलनीय मोती की पहचान लगा दोगे इक कीमत बिंदास और बेच दोगे बाजार भाव में क्योंकि जीवन बन चुका भौतिकवादी हर भाव में ढूँढते हो बस स्वार्थ अतृप्त रहते हो शायद हर वक्त मृगतृष्णा में पड़ने की है आदत क्योंकि कभी कर्मठ बन नहीं कमा पाते ना ही इच्छाओं से हो उबर पाते आइना देखने का वक्त भी नहीं है पर मोती की है अदम्य सी चाहत क्योंकि उंचाई पर पहुँच कर गरज लेते फिर उन सीढ़ियों को गिरा देते भूल जाते हो उन सबकी कीमत जिसने सौंपा आज तुझे वो राह इसलिए अब कर दूंगी साफ उस मोती को अपने इस बेदाग पाक आंचल से पुनः वापस बंद कर सहेज दूंगी मैं अनमोल मोती पुनः उस सीप में पर न लगने दूंगी तेरे ...
आरज़ू
कविता

आरज़ू

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म .प्र.) ******************** चुपचाप, भीगे भीगे से पल बहकने की कोशिश में भी सजते गये हैं राह में, और चाह ये कि सिलसिला आज़ाद नगमों, नज्मों का आबाद यूँ ही हुआ करे। आज, कल की फिक्र ना हो ज़िक्र अब बीते पलों का, आँधियों के बीच भी हर दीप रौशन हुआ करे। मातम, गमी सब दूर कर हो प्यार का मौसम कभी, आवाज़ मेरे दिल की थी कल और हमेशा रहेगी !! . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में विभिन्न सीमेंट संस्थानों से समबद्ध हैं। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय ए...
रचनाकार
कविता

रचनाकार

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** अक्षर-साधक शब्दों का संसार बसाता रचनाकार! भावों और विचारों को साकार बनाता रचनाकार! दृष्टिकोण है उसका अपना! पूरा करता स्वर्णिम सपना! सृजन पूर्व अपनी रचना से, उसे बहुत पड़ता है तपना! अधिक समय तक नहीं सहन सकता है वह रचना-भार! भावों और विचारों को साकार बनाता रचनाकार! प्रातः-संध्या या दिन-रैन! सृजन बिना पाए न चैन! उर विशाल,व्यापक मस्तिष्क, सूक्ष्मदर्शी हैं उसके नैन! कथनों के वाहन से जग का भ्रमण कराता बारम्बार ! भावों और विचारों को साकार बनाता रचनाकार! श्रेष्ठ सृजन ही उसका कर्म! अभिव्यक्ति ही उसका धर्म श्रोता अथवा पाठक तक, प्रेषित करता अपना मर्म! अनुपम रचनाओं पर मोहित होता है सारा संसार ! भावों और विचारों को साकार बनाता रचनाकार! सुखद कल्पनाओं का स्वामी! कंटक पथ का वह अनुगामी! सतत व्याख्याक्रम चलता हैं, उसकी रचना बहुआयामी! अति संवेद...
दर्द
कविता

दर्द

मित्रा शर्मा महू - इंदौर ******************** तपती रेत में चलने की आदत सी हो गई, जिंदगी अनसुलझे सवालों से घिर गई। हमने भी देखे थे कभी हसीन सपने, भावना और जज्बातों को समझेंगे हमारे अपने। मगर क्या था कि कुदरत को कुछ और ही मंजूर था, नजारा दिखाना ही उसका दस्तूर था। जिंदगी मिलती है यहां पनाह नहीं मिलती, हर किसीको मुकम्मल जहां नहीं मिलती। दर्द के सैलाबों पे आंसूओं को पीते है, छलनी होता है दिल नस्तरों को चुभने से फिर भी हम जीते है। . परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमेंhindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हम...
कलम बना तलवार
कविता

कलम बना तलवार

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** कवि, कलम बना तलवार। जिनके मन में कलुषित तन में, पनप रहा व्यभिचार.. पहन तू नरमुंडो के हार..।। शासन चुप, शासक सोये हैं। सब अपनी धुन में खोये हैं। अंधा रेबड़ी बांट रहा है। बेहरा सबको डांट रहा है। संविधान के जयकारे हैँ। किंतु आज फिर हम हारे हैं।। अपराधों का बड़ता जाता अजब ही कारोबार।।.. पहन तू नरमुंडो के हार..।। पांडव की सेना घटती है। कौरव की सेना बढ़ती है । कान्हा, अर्जुन यहाँ कहाँ पर, दुशासन बैठे यहाँ घर-घर। भीष्म मूक, विधुर शांत है। भीम शोक में फिर क्लांत है।। द्रोपदी की लाज बचाने, कौन आये इस बार।।.. पहन तू नरमुंडो के हार..।। नरभक्षी और पिशाचों के कर्मों से अपराध बड़ा। क्या बोलूं क्या नाम दूं इसको, शोकग्रसित मन आज खड़ा। तोड़ कलम फेंकू क्या पथपर, और बंदूक उठा लूं हाथ। बोलो कवि क्या बागी होगे, दोगे कदम-कदम पर साथ।। बलात्कार करने वा...
जीवन के सपने
कविता

जीवन के सपने

अंजना झा फरीदाबाद हरियाणा ******************** सपनों से घिरी है हमारी जिंदगी औ जिंदगी के हर पड़ाव पे सपने रहते हैं उलझे हुए हमसब ताउम्र ख्वाब में इन्हें पूर्ण करने के सपने। कुछ पूरे होते कुछ रह जाते अधुरे हमारे ही विचारों से बुने हुए सपने कभी धागे में पिरो ओढ़ लेते सपने कभी जालियों में उलझे रहते सपने। कुछ आसमां को छू लेने के सपने काल्पनिक उड़ान से ओतप्रोत हो यथार्थ की धरातल को स्पर्श कर सागर की गहराई मापने के सपने। प्रेमातुर आलिंगनबद्ध होने के सपने अलौकिक उर्जा से परिपूर्ण स्व को कर्मपथ पर निर्बाध अग्रसित होकर कर्मयोगी बनने के अर्थयुक्त ये सपने। आध्यात्मिक दर्शन के पश्चात अंततः बस आराधक बनकर श्री हरि को अपनी स्तुति से मग्न होकर रिझाने और उनमें समाहित होने के सपने। मंदिर औ श्मशान के धूएं के रंग की तासीर के अंतर को आत्मसात कर अंततोगत्वा उस चरमोत्कर्षानंद के ख्वाब में डूबने उतरने के ये...