होली-हुडदंग
बृजेश आनन्द राय
जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
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रंग से भरी नादें होंगी,
अबीरा रहेगा झोली में।
अबकी तुम जो आए साजन,
रंग डालूंँगी होली में।।
बाला थी, अब नारि भई मैं,
बीस-बसन्तन पार गयी मैं।
वय से अपने हारी प्रियतम,
यौवन का शृंगार भई मैं।
इक दिन तूने रँग डाला था,
जब थी बहुत ही भोली मैं।
उसका बदला आज मैं लूंँगी,
याद रखूँगी इस होली में।
अबकी तुम जो आए साजन,
रंग डालूंँगी होली में।।
अनंग, अंग में तपन बढ़ाए,
तुम्हें मिलन को जी ललचाए।
अबकी 'फगुन' बही है ऐसी,
'हिय-जलना, अब सही न जाए'।
वर्षों याद करीं हूँ तुमको,
ग्रीष्म-शीत की हमजोली 'मैं'।
सिहरन की बारात चली है, देखो,
बसन्त की डोली में।
अबकी तुम जो आए साजन,
रंग डालूंँगी होली में।।
होली की अब धूम उठेगी,
रंगों की बौछार सजेगी।
आना बरसाने में साजन,
मुझ सी मोहक कौन मिलेगी?
अबकी बार करुँगी प्रियतम,
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