Tuesday, April 29राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

कविता

जीवन और कठिनाई
कविता

जीवन और कठिनाई

डॉ. विभाषा मिश्र कोटा, रायपुर (छ.ग.) ******************** जीवन और कठिनाइयों के बीच झूलती मेरी ज़िंदगी अब थक-सी गई है अल्पविराम लग जाये उस पर ऐसा कोई विकल्प चाहिए जिससे कुछ तो हल निकले इस जटिल समस्या का उलझती हुई मेरी ज़िंदगी हमेशा यह सोचकर सम्हल जाती है समय है अभी बहुत जीना है आगे और नित नए संघर्षों के बीच अपने आप को निखारना भी है फिर एक दिन ज़रूर आएगा जब मेरे सामने स्वर्णिम भविष्य के निर्माण के द्वार भी अपने आप खुलते जाएंगे। . परिचय :-  नाम - डॉ. विभाषा मिश्र जन्मतिथि : २३.०३.१९८२ पिता : डॉ.चित्तरंजन कर माता : श्रीमती माधुरी कर पति : श्री बजरंग मिश्र शिक्षा : एम.ए.(हिंदी),एम.एड., पी.जी.डिप्लोमा योग एवं दर्शनशास्त्र, पी-एच.डी. (हिंदी), राज्य पात्रता परीक्षा (सेट), पी.जी.डिप्लोमा छत्तीसगढ़ी भाषा एवं साहित्य (अध्ययनरत) सम्प्रति : अतिथि व्याख्याता (हिंदी/छत्तीसगढ़ी) पंडित रविशंक...
नयन
कविता

नयन

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** नीर भरे नयन पलकों पर टिके रिश्तों का सच बिन बोले कहते यादों की बातें ठहर जाते है पग सुकून पाने को थके उम्र के पड़ाव निढाल हुए मन पूछ परख रास्ता भूलने अब लगी राहें इंतजार की रौशनी चकाचोंध धुंधलाए से नयन कहाँ खोजे आकृति जो हो गई अब दूरियों के बादलों में तारों के आँचल में निगाह से बहुत दूर जिसे लोग देखकर कहते-वो रहा चाँद . परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से...
आज नहीं तो कल संभव
कविता

आज नहीं तो कल संभव

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** थाली, लोटे, शंख बजाये, और खुशी में नाचे हम। यज्ञ, हवन भी कर डाले, देव ऋचायें वांचे हम।। राम नाम के दीपक भी घर-घर सभी उजारे थे। देवों जैसे वो क्षण पाकर, सारे दुख विसारे थे।। विनाश काल विपरीते बुद्धि, मति कैसी बौराई है। अर्थतंत्र को पटरी लाने, व्यर्थ की सोच बनाई है। किसने तुमको रोका-टोका, वेतन हिस्सा दान किया। देश समूचा साथ तुम्हारे, किसने यहाँ अभिमान किया।। महिलाओं का छिपा हुआ धन, बच्चों ने गुल्लक फोड़ी है। आपदा के इस संकट में, नहीं कसर कोई छोड़ी है।। गर और जरूरत थी तुमको, आदेश का ढोल पिटा देते। खुद को गिरवी रख करके, ढेरों अर्थ जुटा देते।। किंतु नहीं ये करना था मंदिर भूले, मदिरा खोले। पवित्र घंटियां मूक रहीं, प्यालों के कातिल स्वर बोले।। मदिरालय सब खोल दिये। देवालय सारे बंद पड़े। कोरोना को आज हराने बुलंद हुए स्वर मंद पड़े।। बोतल और प्...
मुझे अफसोस रहेगा
कविता

मुझे अफसोस रहेगा

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** मुझे .......अफसोस रहेगा। जिदंगीयों को, अंधविश्वासों से दूर ले जाता। प्यार से जिंदगी है। यह बात समझा पाता। विश्वास का, एक छोटा-सा ही सही। पर... एक घर बना पाता। समझ कर भी, न-समझी का खेद रहेगा। मुझे .......अफसोस रहेगा। अंधेरे दूर हो जायें, दिलदिमाग से भरमों के। अंधविश्वास की सोच से, निकाल कर, जो तर्क समझा पाता। चिराग तो बहुत जलायें। लेकिन........? चिरागों तले जो रहे अंधेरे, उन्हीं का भेद रहेगा। मुझे ......अफसोस रहेगा। जिदंगी ईश्वर की अमूल्य नेमत। नही दे सकता। किसी बाबा का....कोई धागा। हिम्मत से संवारो, अपने जीवन को। न खोना, बहमों में अपने , आज और कल को। भटकन को अपनी समेट कर। ईश्वर का सत्य-संवाद रहेगा। और तब तक वेद-विज्ञान रहेगा। फिर न कोई खेद और न भेद रहेगा। समझ जायें तो.... अच्छा है। फिर न कोई अफसोस रहेगा। . परिचय :- प्रीति ...
मुर्दे
कविता

मुर्दे

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** कौन कहता है वे जी रहे थे सालो से आंख बंद कर सो रहे थे वे तो मुर्दा थे जो चल रहे थे जिंदगी का बोझ ढो रहे थे। किसने कत्ल किया उन्हें मत पूछ, ये सब झूठ है जिनको तुम जिंदा समझ रहे हो वे मुर्दे सिर्फ जिंदगी ढो रहे थे जिंदगी का बोझ ढो रहे थे। उनके जिस्म में खून था ही नही जो बह निकला वो पानी है पानी तो बहता रहता है पानी बहने पर कौन रोता है हम लखपति हो गए है, वे आसमान से खुश हो कह रहे थे जिंदगी का बोझ ढो रहे थे। अच्छा है चिर निद्रा में सो गये वे तो जागते भी सोए हुए थे एक जरूरत पड़ जाती थी उनसे वे पांच साल में एकबार तर्जनी पे सोते में अमिट शाही लगवाते थे वे तो मुर्दा थे जो चल रहे थे जिंदगी का बोझ ढो रहे थे। . परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती...
मैं नारी हूँ
कविता

मैं नारी हूँ

पूनम आदित्य इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** यह कविता आकाशवाणी इंदौर में प्रसारित हो चुकी है एवं कुछ यूट्यूब चैनलों पर भी उपलब्ध है। २००८ में जीवन मंच पुस्तक जो की काव्य संग्रह है उसमें भी प्रकाशित हो चुकी है। मैं चिन्तन से परे, सुशोभित चिन्तनीय नारी हूँ मैं यौवना मधु कलश सी शोभित सुकुमारी हूँ मैं मृदु भावी, कोमल आगंना कली न्यारी हूँ मैं तम हरिणी, तीमिर निवारणकारी हूँ मैं चिन्तन से परे, सुशोभित चिन्तनीय नारी हूँ मैं चिन्तन से परे, सुशोभित चिन्तनीय नारी हूँ मैं सर्वदा कलुषित यम विजयकारी हूँ मैं आतूरता से भरी मृगनैनी नारी हूँ, मैं सर्वस्व न्यौछावर करने वाली अधिकारी हूँ मैं चिन्तन से परे, सुशोभित चिन्तनीय नारी हूँ मैं चिन्तन से परे, सुशोभित चिन्तनीय नारी हूँ मैं कमला, कमलेश्वरी, जीवित प्यारी हूँ मैं शक्तिस्वरूपा मुण्ड मालाधारी हूँ मैं अलंकार, निरअलंकृत नारी हूँ मैं चिन्तन स...
जिन्दगी के पन्ने
कविता

जिन्दगी के पन्ने

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** तन्हा बैठी देख रही थी, अन्तस्तल की पुस्तक को, हर पन्ना उल्टा पल्टा, मन की तसल्ली करने को, कुछ पन्नों मे सूनापन था, कुछ मे छाई रंगीनी थी, पर कुछ पन्ने सूने क्यों हैं?, क्या इनकी कोई कहानी है?, क्या इनको मिला न कोई रंग? वह रंग, जो रहता इनके संग, इनमे भी बन जाती कोई तस्वीर सुहानी क्यों न बनी, क्यों सूने हैं यह, पूछा मैने उन पन्नों से, मूक रहे वह पन्ने, बोल न सके वह कुछ मुॅह से, आगे के पन्नों पर बढी़ उत्सुकता वश पर यह क्या? आगे तो हर पन्ना सूना है, एक दो चार दस हर पन्ना तो सूना है, पल्टा हर पन्ना यही सोचकर, शायद कुछ होगा आगे के पन्ने पर, हाॅ आगे कुछ था, कुछ बजी थी शहनाईयाॅ, थिरके थे कदम मिली थी बधाईयाँ, फिर छा गया अन्धकार, आया तूफान करता हा हा कार, उड़ गये उन पन्नों के सारे रंग, फिर थी सूनी जिन्दगी की किताब, जैसे किसी मतवाली वाला के, टूट चुक...
यक्ष प्रश्न
कविता

यक्ष प्रश्न

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चित बढ़ा उद्वेग हैं, सोच कर व्याकुल हैं... संवेदना को कर परे, भाग रहा इंसान है... धाम है ना विश्राम है, ना तृष्णा पर लगाम है... ओर है ना छोर है, बस!निरन्तर दौड़ है... अंत है! वो जानता,पर मान कर ना मानता... इन्द्रियों के वशीभूत, बस! दौड़ रहा इंसान है... सिन्धु की प्यास लिये, क्षितिज की आस लिये... मरीचिका के जाल में उलझा हर नादान है... क्यों और किसलिये, यक्ष प्रश्न हैं खड़ा... अबूझ हर सवाल है, बस!वक्त ही बलवान हैं... . परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपन...
आज मैंने
कविता

आज मैंने

मनीषा शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज मैंने यह क्या खूब नजारा देखा, पहली बार साथ में परिवार सारा देखा। सभी को है फुर्सत कोई ना व्यस्त है , एक दूसरे के साथ सब बड़े मस्त हैं। हंसते पापा भी बड़ी जोर जोर से हैं , खामोशी के बीच भी बड़े शोर शोर से हैं। मम्मी को भी कैरम खेलना खूब भाता, दादी को भी तो ताश खेलना है आता। भैया भी करते हैं ढेर सारी बातें , बस कभी-कभी मुझे बड़ा सताते। बस एक बात को लेकर है मन बड़ा रोता, काश यह सब डर के साए में ना हो रहा होता। . परिचय :-  मनीषा शर्मा जन्म : २८/८/१९८२ शिक्षा : बी.कॉम., एम. ऐ. लेखन शुरुआत वर्ष : लेखन में रुचि बचपन से है लेखन विधा : कविता ,व्यंग्य ,कहानी समसामयिक लेखन। व्यवसाय : आकाशवाणी केंद्र इंदौर उद्घोषक पता : इंदौर म.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशि...
माँ
कविता

माँ

रंजना फतेपुरकर इंदौर (म.प्र.) ******************** माँ, देखा है हर सुबह तुम्हें तुलसी के चौरे पर मस्तक झुकाए हुए जब भी हथेलियां उठीं दुआओं के लिए तुम्हारी पलकों पर हमारे ही सपने सजे होते हैं जब भी आँचल फैलाया मन्नतों के लिए तुम्हारे होंठों पर हमारी ही खुशियों के फूल खिले होते हैं जब जिंदगी अंधेरों में घिरने लगती है खामिशियों से भरी रातें मंझधार में डुबोने लगती हैं माँ, तुम रोशन करती हो अंधेरों को चाँद का दीपक जलाए हुए माँ, देखा है हर सुबह तुम्हें तुलसी के चौरे पर मस्तक झुकाए हुए . परिचय :- नाम : रंजना फतेपुरकर शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य जन्म : २९ दिसंबर निवास : इंदौर (म.प्र.) प्रकाशित पुस्तकें ११ हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान सहित ४७ सम्मान पुरस्कार ३५ दूरदर्शन, आकाशवाणी इंदौर, चायना रेडियो, बीजिंग से रचनाएं प्रसारित दे...
तुम
कविता

तुम

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** नींद से भरी आंखों की बोझिल सी पलकों पर बिखरी शबनम की बूंदे सुर्ख होठों पर मदहोश करने वाली कशिश इश्क का एक एक लम्हा और हर लम्हों में तुम.... ख्वाबों में तुम हकीकत में तुम आसमान के चांद में भी तुम मेरे दिल की धड़कन में तुम जिंदगी की तमाम खुशियों में तुम क्योंकि हर खुशी में हो तुम बस तुम ही तुम.... नींदों से भरी आंखों की बोझिल सी पलकों पर.... . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा साहित्यिक : उपनाम नेहा पंडित जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल,हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरंगिणी मुंबई, दैनिक ...
मातृभूमि
कविता

मातृभूमि

रीना सिंह गहरवार रीवा (म.प्र.) ******************** है धन्य धरा ये मातृभूमि जिसके आंचल मे है विश्व पला। तृण-तृण नग-पग विशाल धरा, शीतल भू-जल जग जीत रहा, सागर पग पृच्छाल रहा, नग शीष धरा मुकुट पहनाय रहा, षड़ ऋतु शोभित गीतों की गुंजान यहाँ, रंग-बिरंगे पुष्पों से शोभित है ऋतुराज यहाँ, गंगा-यमुना की निर्मल धार यहाँ, ब्रहमपुत्र की झंकार यहाँ, इसकी रक्षा करने को, हो रहे नित नए आविष्कार यहाँ, कोटि-कोटि कर प्रणाम इसे, तन पुलकित मन हर्षाय रहा। है धन्य धरा ये मातृभूमि जिसके आंचल में है विश्व पला। . परिचय :- रीना सिंह गहरवार पिता - अभयराज सिंह माता - निशा सिंह निवासी - नेहरू नगर रीवा शिक्षा - डी सी ए, कम्प्यूटर एप्लिकेशन, बि. ए., एम.ए.हिन्दी साहित्य, पी.एच डी हिन्दी साहित्य अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते...
मै हूं
कविता

मै हूं

मित्रा शर्मा महू - इंदौर ******************** मै हूं तेरे बिना कुछ नहीं हूं मै, तेरे पसीने की कर्जदार हूं मैं। क्या लौटा पाऊंगा तेरी वफादारी का कीमत, कभी कर पाऊंगा तेरे भूखे नंगे बच्चो पर रहमत। नहीं हूं काबिल तुझ से आंख मिलाने के डर है मुझे मुझे मेरे हाथ खाली रह जाने के। छोड़ दिया अब तुझे सड़क पे मरने को, कुछ बचा नहीं तेरे पास पेट भरने को। खुदगर्ज इंसान हूं यह फितरत है मेरी, तेरे पसीने का खाकर तुझ से उलझने की ताकत है मेरी। बख्श दे प्राण दाता तेरे रहमों कर्म पर, जिंदा हूं इठलाता हूं अपने गुमान पर। . परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमे...
पावन पानी आंसू भी
कविता

पावन पानी आंसू भी

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** कहते हैं गंभीर कहानी आँसू भी। कहलाते हैं पावन पानी आँसू भी! आँखों को छलकाते आँसू ! पलकों को नहलाते आँसू! उर जब-जब होता है भारी, उसे क्षणिक सहलाते आँसू! करते बातें याद पुरानी ऑंसू भी। कहलाते हैं पावन पानी ऑंसू भी। समाचार दुखदाई आता! अत्याचार हृदय पर ढाता! छिन्न-भिन्न हो जाता आनंद, सुख-सुविधा का भवन ढहाता! करते नीरस शाम सुहानी आँसू भी। कहलाते हैं पावन पानी ऑंसू भी! कभी-कभी आँखों तक आते! पतित नहीं होते रुक जाते! मुख स्मित कर अंतर्मन की, वापस जाकर आग बुझाते! कभी-कभी होते हैं ज्ञानी आँसू भी। कहलाते हैं पावन पानी ऑंसू भी! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी...
संगीत-महिमा
कविता

संगीत-महिमा

कु. हर्षिता राव चंदू खेड़ी भोपाल म.प्र. ******************** जब तुम बजाते हो कोई गीत, मेरे हृदय का बन जाता है वो मधुर संगीत... सरगम के सुर बस जाते मन में, ऐसे सहला जाते हैं तेरे गीत... कभी सुर सितार में बहते हैं, गुनगुनाने लगती है मेरी प्रीत... सुख-दुख के सारे मौसम, तेरे गीतों में सजते हैं... यह साज़ नहीं है तारों में, यह साज़ दिलों से बजते हैं... . परिचय : कु. हर्षिता राव पिता - श्री रमेश राव पेंटर (प्रेरणा स्त्रोत) निवासी - चंदू खेड़ी भोपाल म.प्र. शिक्षा - एम.ए.हिंदी साहित्य में अध्ययनरत, राष्ट्रीय सेवा योजना (एन.एस.एस) की स्वयं सेविका एवं सामाजिक कार्यकर्ता। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में ...
कोरोना से भयमुक्त रहे
कविता

कोरोना से भयमुक्त रहे

जितेन्द्र रावत हमदर्द मलिहाबाद लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** मत डर भयरहित साहस दिखा। खुद को प्रचण्ड हीम्मत सीखा। कोरोना का रुप बड़ा विकराल है। तेरा धैर्य, विश्वास इसका काल है। चतुर है वह भेद भाव नही करता। अमीर गरीब किसी से नही डरता। उस से डरो नही उसे ही भेद देंगे। बस कुछ दिन और उसे खेद देंगे। समय बलवान समय रुख बदलेगा। एक दिन कोरोना देश से निकेलगा। हौसला रखो परिस्थियाँ प्रतिकूल है। हराने की हम में ताकत अनुकूल है। ना जाने कितनी जिंदगी खा गया है। कितनो को बिना कन्धे के रखा गया है। मात नही खाई कोरोना से जंग जारी है। धरती का ईश्वर कर चुका पूरी तैयारी है। साथ देना होगा कोरोना योद्धाओं का। यह समय नही रहा प्रतिस्पर्धाओं का। सक्रिय रखे मन तन और उम्मीदों को। बेजुबान भूखे जीवित रखे परिदों को। समय शेष रहा जीत हमारी पक्की है। घर पर सतर्क रहें, देश की तरक्की है। बने हमदर्द ...
प्रकृति
कविता

प्रकृति

सौरभ कुमार ठाकुर मुजफ्फरपुर, बिहार ************************ जहाँ जाने के बाद वापस आने का मन ना करे जितना भी घूम लो वहाँ पर कभी मन ना भरे हरियाली, व स्वच्छ हवा भरमार रहती है जहाँ सच में वही तो असली प्रकृति कहलाती है। जहाँ पर चलती गाड़ियों की शोर नही गूंजती जिस जगह की हवा कभी प्रदूषित नही रहती सारे जानवरों की आवाजें सदा गूंजती है जहाँ सच में वही तो असली प्रकृति कहलाती है। जहाँ नदियों व झड़नों का पानी पिया जाता है जहाँ जानवरों के बच्चों के साथ खेला जाता है बिना डर के जानवर विचरण करते हैं जहाँ सच में वही तो असली प्रकृति कहलाती है। पहाड़ जहाँ सदा शोभा बढ़ाते हैं धरती की नदियाँ जहाँ सदा शीतल करती हैं मिट्टी को वातावरण अपने आप में संतुलित रहता है जहाँ सच में वही तो असली प्रकृति कहलाती है। . परिचय :- नाम- सौरभ कुमार ठाकुर पिता - राम विनोद ठाकुर माता - कामिनी देवी पता - रतन...
मदिरालय
कविता

मदिरालय

गोविंद पाल भिलाई, दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** राजस्व कमाने का जरिया क्यों शराब में ढूंढते हो? मौत से जिन्दगी की तुलना क्यों शबाब में ढूंढते हो? कौन जाने कितनी लाशें दफ्न है इन मदिरालयों में, तबाह हो चुकी जिन्दगियों में क्या हिसाब ढूंढते हो? अनाथ हुए मासूमों के चेहरे पर लिखे इबारत पढ़ लो, क्यों बेकार बेफिजूल इधर-उधर का किताब ढूंढते हो? पांव में पड़े छाले और दिल में जहाँ आग लगी हुई हों, बुझाने मानवता का जल चाहिए क्यों तेजाब ढूंढते हो? माना गाड़ी को चलाये रखने इंधन की जरूरत होती है, पर पेट के इंधन का समाधान क्यों हिजाब में ढूंढते हो? . परिचय :-गोविंद पाल शिक्षा : स्नातक एवं शांति निकेतन विश्व भारती से डिप्लोमा इन रिसाइटेशन। लेखन : १९७९ से जन्म तिथि : २८ अक्तूबर १९६३ पिता : स्व. नगेन्द्र नाथ पाल, माता : स्व. चिनू बाला पाल पत्नी : श्रीमति दीपा पाल पुत्र : प्लावनजीत पाल निवासी : ...
आंखों आंखों में
कविता

आंखों आंखों में

संजय जैन मुंबई ******************** तेरी आँखों में हमें, जाने क्या नज़र आया। तेरी यादों का दिल पर, शुरुर है छाया। अब हम ने चाँद को, देखना छोड़ दिया। और तेरी तस्वीर को, दिल में छुपा लिया।। दिल की धड़कनो को, पढ़कर तो देखो। दिल की आवाज को, दिलसे सुनकर देखो। यकीन नहीं है तो, आंखों में आंखे डालकर देखो। तुम्हें समाने दिख जाएंगे, और दिल में तेरे बस जाएंगे।। जो बातें लवो पर न आये, उन्हें दिल से कह दिया करो। मुझे चेहरा पढ़ना आता है, एक बार समाने दिखा दो। जब में तन्हा होता हूँ तो, तुम्हें दिलसे आवाज़ देकर। अपने दिल में बुला लेता हूँ।। . परिचय :-बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित ...
अग्नि परीक्षा
कविता

अग्नि परीक्षा

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** सीता की अग्नि परीक्षा..... ..कब तक सीता की अग्नि परीक्षा ...कब तक नारी के आत्मसम्मान पर, उठते रहेगें। प्रश्न???? शायद जब तक। सीता की अग्नि परीक्षा ...तब तक। जब तक नारी तुम मूक रहकर, सब सहती जाओगी। भीख में कैसी...... इज्जत पाओगी। बस हां में हां मिलाओंगी तब तक तुम देवी रूप पूजी जाओगी। तुम्हारे विद्रोह का ......एक शब्द, विचलित ना कर दे, "पुरुष" अहम को जब तक सीता की अग्नि परीक्षा ....तब तक। नारी के आत्मसम्मान पर उठेंगे प्रश्न जब तक। खोखले आदर्शों की वेदी पर सती होगी तुम तब तक। आंखों में नमी पर होठों पर हंसी लेकर हंसोगी जब तक। अपने आत्मसम्मान के लिए लड़ोगी जब तक। सीता की अग्नि परीक्षा होगी हर नारी रूप में तब तक। . परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी...
जिंदगी की सफर
कविता

जिंदगी की सफर

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** जिंदगी की सफर में याद कोई आता है! गुजर गई जो कारवाँँ वह मुकाम याद आता है! जब चेहरे पर थकान होता वह 'दीपदान' याद आता है! जब चाँदनी भरपूर होती वह राग याद आता है! 'रजनीगंधा' की महक होती 'हँसनी' सी तेरी चहक होती! वह 'कदमताल' याद आता है इस उम्र की ढलान में! वह कसक याद आता है रच रहा हूं नीत 'कविता' तुम गाओ सुरीली कंठ से ' नीलकंठ' मै भी बन गया! मजबूरियां भी ऐसी थी ' वियोगिनी' तू बनी वियोगी मैं बना! ना तुझे कोई शिकवा हो, न कसक हो मुझे! इस दुनिया में असंख्य रह रहे जुदा-जुदा! इस कोरोना काल में तो सुरक्षित रहो सदा! गंगा सी तू निर्मल बनो अनवरत बहती रहो! ऋषियों कि इस देश में अभय दान देती रहो! . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द...
वर्ण से व्यतिक्रम तक
कविता

वर्ण से व्यतिक्रम तक

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** एक समय में वर्ण व्यवस्था थी भारत की शान दिग दिगांतर में भारत की थी विशिष्ट पहचान सामाजिक संरचना का था कर्म ही बस आधार जाति पाति का भेद नही था सुखी बहुत संसार कर्म ही कर्ता कर्म ही धर्ता कर्म ही जीवन सार कर्म ही जीवन कर्म सृजन है यही था मूलाधार कालांतर में जाने कैसा किसी ने फेंका पाशा वर्ण के बदले जाति आ गई बदल गई परिभाषा जाति प्रधान देश हो गया बदल गई फिर सूरत अपनी धपली अपना राग़ें सबकी अपनी मूरत घुसे देश में आक्रांता तो शुरू हुआ नव खेला संस्कृति पर आघात हुआ दंश मज़हबी झेला करना था बदलाव तंत्र में लेकिन ऐसा नही हुआ देश हो गया ग़ौण सोच में खेल मज़हबी शुरू हुआ मज़हब के कुछ हैवानों ने माँ का सीना चीर दिया कत्लेआम हुआ लाखों का हर साहिल को पीर दिया . परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्...
मैं भी लिख दूँ नाम कोई
कविता, ग़ज़ल

मैं भी लिख दूँ नाम कोई

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** दिल तो करता है दिल पर मैं भी लिख दूँ नाम कोई, वो नाम ही बन जाये चेहरा हो आँखों में पैग़ाम कोई। जीवन की आपाधापी में बस संघर्षों का प्यार मिला, मन का मधुवन महक उठे ऐसी भी आये शाम कोई। वाइज़ भी था मैखाने में,साकी ! कई लुढ़के जाम दिखे, मदभरे नयन जब छलकेंगे पियूँ उसी का जाम कोई। कोई मसल गया मासूम कली मैंने उसको बेदर्द कहा, नज़र लग गयी है फूलों की अब कर ना दे बदनाम कोई। बिखरी ज़ुल्फ छनकती पायल पर विवेक क्यों तुम घायल, तुमने ही नहीं बनना चाहा था मजनूँ या गुलफ़ाम कोई। जिस रौशन मकसद की खातिर अँधियारी तुम राह चले, तुम चलो फ़क़त चलते ही रहो चाहे करता हो आराम कोई। . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी ह...
कदम दरकदम
कविता

कदम दरकदम

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** https://youtu.be/6E9P66cpf30 हर कदम, दरकदम सब होते है हैरान, हर मन अशांत, हर शक्श परेशान, हर कोई आतुर है, अपना भविष्य जानने को कैसे भी बस पता लग जाये कि अब क्या है बाकी आने को।। हर शक्श उलझा उलझा सा है तारों में, नक्षत्रो में, जन्मपत्रिका के फेरो में, कभी हाथों की लकीरों मे कभी साधु सन्यासी के डेरों में कि मिल जाये कोई खजाना आने वाले वक्त का, अच्छा हो या हो बुरा लेकिन उसको हो सब पता.... ये है एक ऐसी जिज्ञासा जिसका कोई अंत नहीं.... अज्ञात को जानना तो कोई उचित विकल्प नहीं।। जानकर भी क्या कर लेना है जो होना है, वही होकर रहना है।। इसलिये इस अज्ञात की दौड़ में, अपना वर्तमान भी खोना है।।। जो सच है उसको तुम स्वीकार करो इस मृगतृष्णा को छोड़ तुम अपने कर्मो पर विश्वास करो भागो मत, अब जागो और जागकर भवसागर को पार करो . परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म...
मकान अब घर लग रहे हैं
कविता

मकान अब घर लग रहे हैं

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** धरती की बेजान हुई परतों पर अब विधाता के आशीर्वाद की नजर दिख रही है उफनते समुद्र में दशहत की सोनामी हुआ करती थी वहीं सपनीले रेत पर शांत सी समंदर दिख रही है। प्रदूषण के जंग की जो नजर लग चुकी थी प्रकृति में प्रेमसुधा सी असर दिख रही है। गर्म हवाओं में कभी चिलचिलाहट हुआ करती थी सुनहली धूप में अब नमी की पहर दिख रही है। जहाँ सुखी पत्तियों की हरदम चरमराहट हुआ करती थी उस हरे दरख्त पर चिड़ियों की बसर दिख रही है। कभी बेजान सी खंडहर चुपचाप रोया करती थी बदले बदले से अब सब शहर दिख रहें हैं। जहाँ ईंट पत्थरों के मकान हुआ करते थे अब उसकी जगह हँसती हुई हर घर दिख रही है। . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित  ...