Thursday, February 6राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

कविता

संगीत-महिमा
कविता

संगीत-महिमा

कु. हर्षिता राव चंदू खेड़ी भोपाल म.प्र. ******************** जब तुम बजाते हो कोई गीत, मेरे हृदय का बन जाता है वो मधुर संगीत... सरगम के सुर बस जाते मन में, ऐसे सहला जाते हैं तेरे गीत... कभी सुर सितार में बहते हैं, गुनगुनाने लगती है मेरी प्रीत... सुख-दुख के सारे मौसम, तेरे गीतों में सजते हैं... यह साज़ नहीं है तारों में, यह साज़ दिलों से बजते हैं... . परिचय : कु. हर्षिता राव पिता - श्री रमेश राव पेंटर (प्रेरणा स्त्रोत) निवासी - चंदू खेड़ी भोपाल म.प्र. शिक्षा - एम.ए.हिंदी साहित्य में अध्ययनरत, राष्ट्रीय सेवा योजना (एन.एस.एस) की स्वयं सेविका एवं सामाजिक कार्यकर्ता। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में ...
कोरोना से भयमुक्त रहे
कविता

कोरोना से भयमुक्त रहे

जितेन्द्र रावत हमदर्द मलिहाबाद लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** मत डर भयरहित साहस दिखा। खुद को प्रचण्ड हीम्मत सीखा। कोरोना का रुप बड़ा विकराल है। तेरा धैर्य, विश्वास इसका काल है। चतुर है वह भेद भाव नही करता। अमीर गरीब किसी से नही डरता। उस से डरो नही उसे ही भेद देंगे। बस कुछ दिन और उसे खेद देंगे। समय बलवान समय रुख बदलेगा। एक दिन कोरोना देश से निकेलगा। हौसला रखो परिस्थियाँ प्रतिकूल है। हराने की हम में ताकत अनुकूल है। ना जाने कितनी जिंदगी खा गया है। कितनो को बिना कन्धे के रखा गया है। मात नही खाई कोरोना से जंग जारी है। धरती का ईश्वर कर चुका पूरी तैयारी है। साथ देना होगा कोरोना योद्धाओं का। यह समय नही रहा प्रतिस्पर्धाओं का। सक्रिय रखे मन तन और उम्मीदों को। बेजुबान भूखे जीवित रखे परिदों को। समय शेष रहा जीत हमारी पक्की है। घर पर सतर्क रहें, देश की तरक्की है। बने हमदर्द ...
प्रकृति
कविता

प्रकृति

सौरभ कुमार ठाकुर मुजफ्फरपुर, बिहार ************************ जहाँ जाने के बाद वापस आने का मन ना करे जितना भी घूम लो वहाँ पर कभी मन ना भरे हरियाली, व स्वच्छ हवा भरमार रहती है जहाँ सच में वही तो असली प्रकृति कहलाती है। जहाँ पर चलती गाड़ियों की शोर नही गूंजती जिस जगह की हवा कभी प्रदूषित नही रहती सारे जानवरों की आवाजें सदा गूंजती है जहाँ सच में वही तो असली प्रकृति कहलाती है। जहाँ नदियों व झड़नों का पानी पिया जाता है जहाँ जानवरों के बच्चों के साथ खेला जाता है बिना डर के जानवर विचरण करते हैं जहाँ सच में वही तो असली प्रकृति कहलाती है। पहाड़ जहाँ सदा शोभा बढ़ाते हैं धरती की नदियाँ जहाँ सदा शीतल करती हैं मिट्टी को वातावरण अपने आप में संतुलित रहता है जहाँ सच में वही तो असली प्रकृति कहलाती है। . परिचय :- नाम- सौरभ कुमार ठाकुर पिता - राम विनोद ठाकुर माता - कामिनी देवी पता - रतन...
मदिरालय
कविता

मदिरालय

गोविंद पाल भिलाई, दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** राजस्व कमाने का जरिया क्यों शराब में ढूंढते हो? मौत से जिन्दगी की तुलना क्यों शबाब में ढूंढते हो? कौन जाने कितनी लाशें दफ्न है इन मदिरालयों में, तबाह हो चुकी जिन्दगियों में क्या हिसाब ढूंढते हो? अनाथ हुए मासूमों के चेहरे पर लिखे इबारत पढ़ लो, क्यों बेकार बेफिजूल इधर-उधर का किताब ढूंढते हो? पांव में पड़े छाले और दिल में जहाँ आग लगी हुई हों, बुझाने मानवता का जल चाहिए क्यों तेजाब ढूंढते हो? माना गाड़ी को चलाये रखने इंधन की जरूरत होती है, पर पेट के इंधन का समाधान क्यों हिजाब में ढूंढते हो? . परिचय :-गोविंद पाल शिक्षा : स्नातक एवं शांति निकेतन विश्व भारती से डिप्लोमा इन रिसाइटेशन। लेखन : १९७९ से जन्म तिथि : २८ अक्तूबर १९६३ पिता : स्व. नगेन्द्र नाथ पाल, माता : स्व. चिनू बाला पाल पत्नी : श्रीमति दीपा पाल पुत्र : प्लावनजीत पाल निवासी : ...
आंखों आंखों में
कविता

आंखों आंखों में

संजय जैन मुंबई ******************** तेरी आँखों में हमें, जाने क्या नज़र आया। तेरी यादों का दिल पर, शुरुर है छाया। अब हम ने चाँद को, देखना छोड़ दिया। और तेरी तस्वीर को, दिल में छुपा लिया।। दिल की धड़कनो को, पढ़कर तो देखो। दिल की आवाज को, दिलसे सुनकर देखो। यकीन नहीं है तो, आंखों में आंखे डालकर देखो। तुम्हें समाने दिख जाएंगे, और दिल में तेरे बस जाएंगे।। जो बातें लवो पर न आये, उन्हें दिल से कह दिया करो। मुझे चेहरा पढ़ना आता है, एक बार समाने दिखा दो। जब में तन्हा होता हूँ तो, तुम्हें दिलसे आवाज़ देकर। अपने दिल में बुला लेता हूँ।। . परिचय :-बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित ...
अग्नि परीक्षा
कविता

अग्नि परीक्षा

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** सीता की अग्नि परीक्षा..... ..कब तक सीता की अग्नि परीक्षा ...कब तक नारी के आत्मसम्मान पर, उठते रहेगें। प्रश्न???? शायद जब तक। सीता की अग्नि परीक्षा ...तब तक। जब तक नारी तुम मूक रहकर, सब सहती जाओगी। भीख में कैसी...... इज्जत पाओगी। बस हां में हां मिलाओंगी तब तक तुम देवी रूप पूजी जाओगी। तुम्हारे विद्रोह का ......एक शब्द, विचलित ना कर दे, "पुरुष" अहम को जब तक सीता की अग्नि परीक्षा ....तब तक। नारी के आत्मसम्मान पर उठेंगे प्रश्न जब तक। खोखले आदर्शों की वेदी पर सती होगी तुम तब तक। आंखों में नमी पर होठों पर हंसी लेकर हंसोगी जब तक। अपने आत्मसम्मान के लिए लड़ोगी जब तक। सीता की अग्नि परीक्षा होगी हर नारी रूप में तब तक। . परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी...
जिंदगी की सफर
कविता

जिंदगी की सफर

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** जिंदगी की सफर में याद कोई आता है! गुजर गई जो कारवाँँ वह मुकाम याद आता है! जब चेहरे पर थकान होता वह 'दीपदान' याद आता है! जब चाँदनी भरपूर होती वह राग याद आता है! 'रजनीगंधा' की महक होती 'हँसनी' सी तेरी चहक होती! वह 'कदमताल' याद आता है इस उम्र की ढलान में! वह कसक याद आता है रच रहा हूं नीत 'कविता' तुम गाओ सुरीली कंठ से ' नीलकंठ' मै भी बन गया! मजबूरियां भी ऐसी थी ' वियोगिनी' तू बनी वियोगी मैं बना! ना तुझे कोई शिकवा हो, न कसक हो मुझे! इस दुनिया में असंख्य रह रहे जुदा-जुदा! इस कोरोना काल में तो सुरक्षित रहो सदा! गंगा सी तू निर्मल बनो अनवरत बहती रहो! ऋषियों कि इस देश में अभय दान देती रहो! . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द...
वर्ण से व्यतिक्रम तक
कविता

वर्ण से व्यतिक्रम तक

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** एक समय में वर्ण व्यवस्था थी भारत की शान दिग दिगांतर में भारत की थी विशिष्ट पहचान सामाजिक संरचना का था कर्म ही बस आधार जाति पाति का भेद नही था सुखी बहुत संसार कर्म ही कर्ता कर्म ही धर्ता कर्म ही जीवन सार कर्म ही जीवन कर्म सृजन है यही था मूलाधार कालांतर में जाने कैसा किसी ने फेंका पाशा वर्ण के बदले जाति आ गई बदल गई परिभाषा जाति प्रधान देश हो गया बदल गई फिर सूरत अपनी धपली अपना राग़ें सबकी अपनी मूरत घुसे देश में आक्रांता तो शुरू हुआ नव खेला संस्कृति पर आघात हुआ दंश मज़हबी झेला करना था बदलाव तंत्र में लेकिन ऐसा नही हुआ देश हो गया ग़ौण सोच में खेल मज़हबी शुरू हुआ मज़हब के कुछ हैवानों ने माँ का सीना चीर दिया कत्लेआम हुआ लाखों का हर साहिल को पीर दिया . परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्...
मैं भी लिख दूँ नाम कोई
कविता, ग़ज़ल

मैं भी लिख दूँ नाम कोई

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** दिल तो करता है दिल पर मैं भी लिख दूँ नाम कोई, वो नाम ही बन जाये चेहरा हो आँखों में पैग़ाम कोई। जीवन की आपाधापी में बस संघर्षों का प्यार मिला, मन का मधुवन महक उठे ऐसी भी आये शाम कोई। वाइज़ भी था मैखाने में,साकी ! कई लुढ़के जाम दिखे, मदभरे नयन जब छलकेंगे पियूँ उसी का जाम कोई। कोई मसल गया मासूम कली मैंने उसको बेदर्द कहा, नज़र लग गयी है फूलों की अब कर ना दे बदनाम कोई। बिखरी ज़ुल्फ छनकती पायल पर विवेक क्यों तुम घायल, तुमने ही नहीं बनना चाहा था मजनूँ या गुलफ़ाम कोई। जिस रौशन मकसद की खातिर अँधियारी तुम राह चले, तुम चलो फ़क़त चलते ही रहो चाहे करता हो आराम कोई। . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी ह...
कदम दरकदम
कविता

कदम दरकदम

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** https://youtu.be/6E9P66cpf30 हर कदम, दरकदम सब होते है हैरान, हर मन अशांत, हर शक्श परेशान, हर कोई आतुर है, अपना भविष्य जानने को कैसे भी बस पता लग जाये कि अब क्या है बाकी आने को।। हर शक्श उलझा उलझा सा है तारों में, नक्षत्रो में, जन्मपत्रिका के फेरो में, कभी हाथों की लकीरों मे कभी साधु सन्यासी के डेरों में कि मिल जाये कोई खजाना आने वाले वक्त का, अच्छा हो या हो बुरा लेकिन उसको हो सब पता.... ये है एक ऐसी जिज्ञासा जिसका कोई अंत नहीं.... अज्ञात को जानना तो कोई उचित विकल्प नहीं।। जानकर भी क्या कर लेना है जो होना है, वही होकर रहना है।। इसलिये इस अज्ञात की दौड़ में, अपना वर्तमान भी खोना है।।। जो सच है उसको तुम स्वीकार करो इस मृगतृष्णा को छोड़ तुम अपने कर्मो पर विश्वास करो भागो मत, अब जागो और जागकर भवसागर को पार करो . परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म...
मकान अब घर लग रहे हैं
कविता

मकान अब घर लग रहे हैं

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** धरती की बेजान हुई परतों पर अब विधाता के आशीर्वाद की नजर दिख रही है उफनते समुद्र में दशहत की सोनामी हुआ करती थी वहीं सपनीले रेत पर शांत सी समंदर दिख रही है। प्रदूषण के जंग की जो नजर लग चुकी थी प्रकृति में प्रेमसुधा सी असर दिख रही है। गर्म हवाओं में कभी चिलचिलाहट हुआ करती थी सुनहली धूप में अब नमी की पहर दिख रही है। जहाँ सुखी पत्तियों की हरदम चरमराहट हुआ करती थी उस हरे दरख्त पर चिड़ियों की बसर दिख रही है। कभी बेजान सी खंडहर चुपचाप रोया करती थी बदले बदले से अब सब शहर दिख रहें हैं। जहाँ ईंट पत्थरों के मकान हुआ करते थे अब उसकी जगह हँसती हुई हर घर दिख रही है। . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित  ...
वर्तमान
कविता

वर्तमान

गोरधन भटनागर खारडा जिला-पाली (राजस्थान) ******************** दोस्तों युग बदल रहा हैं, झोपड़ियां टूट रही हैं। भवन विशाल बनाये जा रहे, गाँवों में सन्नाटा हैं । शहर भरे यू जा रहे हैं। युग बदल रहा हैं....।। गाये भी परेशान हैं, चारा इन्सान खा रहे। गीद्ङ मना रहे हैं, दीवाली। कुत्ते चले गए कोमा में।। युग बदल रहा हैं.....।। पता लगा जब कुत्तों को, तलुए इन्सान चाट रह्। बिल्ली ङर रही चूहों से, क्योंकि युग.....।। हजार की बन्द हैं, दो हजार की चल रही। सब कुछ धुन्धला सा हो गया। जमाने में पहलवान भी 'रो' गया। युग बदल.....।। सत्य कोने में रो रहा हैं। झूठों की ही चल रहीं।। जो बोले झूठ, दाल उन्हीं की गल रही। युग बदल.....।। . परिचय :- नाम : गोरधन भटनागर निवासी : खारडा जिला-पाली (राजस्थान) जन्म तारीख : १५/०९/१९९७ पिता : खेतारामजी माता : सीता देवी स्नातक : जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी जोधपुर ...
तेरी ख़ातिर
कविता

तेरी ख़ातिर

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** खुदी को, पढ़ रहा हूं मैं, तुझे,पाने की ही खातिर, हर चोट सह, सजता रहा, मुरत सा, जग ख़ातिर, है वक्त भी, हैरान हुआ, प्रहर विलीन जो मुझ में, सौदा किया, रातो से दिन, रोशन हो, की खातिर... बचा रखे है, लम्हें कुछ तुम्हें, सुनने की ही खातिर, चुराये हैं, सपन भी कुछ, सँग रमने, की ही खातिर, जो देखे ख़्वाब, खुली आँखों से, खो ना जाये पलको में, सोया नहीं, तब से हैं वो मूर्त, करने की खातिर... . परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रका...
विश्व युध्द
कविता

विश्व युध्द

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** ये युध्द अनोखा युध्द हैं, इसमे योद्धा नहीं क्रुद्ध हैं। इसमे ना कोई रणभूमि है, ना शत्रु सेना कहीं घूमी है। रणबाँकुरे हुंकार न भरते हैं, योद्धा आपस में न भिड़ते है। गृह स्थपित जो सतत है, वो पूर्ण रूप से स्वस्थ हैं। जो चुप बैठा वो बुद्ध हैं, जो मौन रहे वो सिद्ध है। ये युध्द अनोखा युध्द हैं, इसमे ना योद्धा क्रुद्ध हैं। ना रात्रि में युध्द विराम है, ना दिवस में होता संग्राम है। हृदय फिर भी कंपकपता हैं, जब जन-रक्षक दुख पता हैं। संवेदनशील ही महान हैं, उसने तो पकड़ी कमान है। ये निर्मल मन से समृद्ध हैं जो नादान है -विशुध्द है। ये युध्द अनोखा युद्ध है, इसमे नही योद्धा क्रुद्ध है। सैनिक ना कोई घायल है, वो भी पुलिस का कायल है। डॉक्टर देश का रक्षक है, हर एक रोग का भक्षक है। सेवा-त्याग से शुध्द उर-वक्ष है, वो आज प्रभु के समकक्ष है...
प्यार का एहसास
कविता

प्यार का एहसास

ओमदीप वर्मा महाजन, बीकानेर, राजस्थान ****************** प्यार का एहसास होते थे घर आज वह मकानों में बदल गए। अपनों से अलग होकर कहते हैं चलो अच्छा है वक्त से संभल गए। सब अपनी पकाते अपनी खाते दो-दो लोगों के परिवार हो गए। रिश्तेदारी का किसी को पता नहीं मौसाजी भी दूर के रिश्तेदार हो गए। मां बाप को निकाला था घर से वहां हार लगी तस्वीर लटकती रहती है। इंसान इंसान क्यों ना रहा 'ओम' दिल में यही पीड़ खटकती रहती है।। . परिचय : ओमदीप वर्मा निवासी : महाजन, बीकानेर, राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८...
चुप क्यों हो?
कविता

चुप क्यों हो?

रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) ******************** चुप क्यों हो माँ? क्या विवशता है माँ? करता है सदा अन्याय इह लोक तुम्हारे साथ कर दिया जाता कभी बेटी भ्रूण हत्या लगने नहीं दिया जाता अरमानों के पंख कभी सहती जाती व्यथा सभी चुप क्यों हो माँ? प्रतिकार करो शक्ति स्वरूपा सहमी रहती तेरी गुड़िया देख दानवों क्रूर क्रिया तपती राह है असहनीय अस्तित्व रहा है असुरक्षित किया जा रहा जीवन अंत खिलाकर जहरीली पुड़िया क्यों चुप हो माँ? क्या शक्ति तुम्हारी नश्वर हो गयी है माँ? माँ तुम्हीं हो महिषासुरमर्दिनी तुम्हीं हो रक्तबीज संहारिणी सकल लोक कल्याणी संतान रक्षार्थ कर सदा सुख दायिनी चुप क्यों हो माँ वेदना के सागर से अब तो निकलो माँ रहती असहाय गाय समान सहती रहती सभी अपमान बन रह गयी हो कठपुतली हुंकार भरो माँ खोलकर जुल्मों की पोटली क्या तुम्हारा खुद पर कुछ भी अधिकार नहीं क्या तुम इज्जत की मानव समाज में अधिका...
लिखना क्या है
कविता

लिखना क्या है

तेज कुमार सिंह परिहार सरिया जिला सतना म.प्र ******************** लिखना क्या है पढ़ना क्या है लिखने के पहले पढ़ने के बाद एक बार पुनः देखने की इच्छा हुई देखा तो वह गीली पड़ी अक्षर लगभग मिट गए शब्द भी बर्वाद हुए उसी समय एक मित्र आये बोले क्या कर रहे भाये मैंने कहा कुछ नही यू ही बेकार बैठा था कागज कलम हाथ लगा कुछ लिखना चाह रहा था यार मुझे खुद पता नहीज मुझे करना क्या है मेरे मित्र ये एक घटना है जो घट चुकी हैं उनकी चिट्ठी थी जो नेत्र नीर से गीली हो चुकी हैं . परिचय :- तेज कुमार सिंह परिहार पिता : स्व. श्री चंद्रपाल सिंह निवासी : सरिया जिला सतना म.प्र. शिक्षा : एम ए हिंदी जन्म तिथि : ०२. जनवरी १९६९ जन्मस्थान : पटकापुर जिला उन्नाव उ.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताए...
जज्बात छलकते हैं
कविता

जज्बात छलकते हैं

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ******************** जिंदा हूं खिलौना समझकर, यूँ ना हमसे खेलिए जिंदगी जो दांव लगाये, उससे क्या हिसाब कीजिए ! कड़वे घूंट पिए हों जिसने, उसको शर्बत क्या दीजिए जज्बात छलकते हैं आंखों से, शब्द जाया क्यों कीजिए! आदत हो जिद्दी आज भी, तो क्या कर लीजिए क्या पाएंगे इस झूठे खेल में, फुर्सत से जीने दीजिए! खुशी के लिए ही सही, हारकर हमसे खेलिए, सब खेल खुद जीतकर, ऐसा जुल्म ना कीजिए! बच्चे की तरह हम भी मान जाएंगे, मनाकर देखिए यकीन ना हो तो मेरी माँ से पूछ लीजिए! बड़े बनकर हंस लिए बहुत, अब ना हमको रोकिए, जमाने से डरना क्या? बच्ची बनकर खिलखिलाने दीजिए! . परिचय :- मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, क...
दानवता स्वीकार
कविता

दानवता स्वीकार

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** समर्पित - अवनि से अम्बर तक प्रत्यक्ष परोक्ष रूप से मानव जाति के अधिकृत अतिक्रमण पर। उद्देश्य - प्रकृति-जीव संरक्षण। पशु-पक्षी पर बाज ना आये, करके अत्याचार। मानवता की अति कर्मगति, धरा देय चित्कार। अंध मार्ग औचित्यहीनता, हुआ बहु विस्तार। स्व स्वारथ निज सुविधा हेतु, रौंदे तिमिर हज़ार। छीन लिए मासूम खगों से, उनके घर- संसार। स्वास् वास् अब शुद्ध नहीँ, हवा में ज़हर घुलाया है। मानव के अधिकारों ने कुछ, ऐंसा तांडव मचाया है। जीवन से बढ़कर हो चले, वैनाशिक आविष्कार? मैं मानव हूँ और हैं केवल, मेरे ही अधिकार। इस विकार से कर चुका, दानवता स्वीकार। मति भ्रमित कर ली स्वयंमय, करके अंगीकार। सर्वाधिकार सुरक्षा पर, लगातार प्रहार? राष्ट्र हितैषी नीति की पगबेड़ि, बने हर बार। ऐंसे मानवाधिकार को, बार-बार धिक्कार। इसी हेतु कर्तव्यवाद की, हुई पुनः दरकार। शास...
कहर
कविता

कहर

निर्मला परिहार पाली (राजस्थान) ********************** मेरा देश लहलहता था। फूलों की वादियों से। अचानक यह क्या हो गया? इस कदर मची है त्राहि-त्राहि चारों ओर। दरबार कभी जिनका बंद ना हुआ। वह मंदिर मस्जिद गिरजाघर शांति से बैठे आज। कहर ये कैसा छा गया? अचानक ये क्या हो गया? कि मातृभूमि का लाल। रात दिन हर पहर। गली-गली दे रहा है पहरा। दूजी तरफ वो मां का लाल, अस्पताल में बेफिक्र कर्तव्य निभाता। अचानक ये क्या हो गया? जो मानव कभी रुका नहीं शांति से बैठा आवास में। विडंबना की स्थिति में। सरकार का सहयोग सही। क्योंकि कोरोना का कहर है ऐसा सांसे छीन ली जीव की। तो क्यों ना हम सब। इस मुश्किल दौर में। मातृभूमि और मां के लाल की, तरह अपना कर्तव्य निभाएं। घर पर रहे! सुरक्षित रहे। रास्ता बस यही एक सही संकल्प लिया यह। पुनः देश लहराएगा।। . परिचय :-  निर्मला परिहार आयु : २३ वर्ष शिक्षा : बी.एड. द्वितीय वर्ष छात्रा...
जहर का प्याला
कविता

जहर का प्याला

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** होठों पर है जहर का प्याला एक तुम्हारा नाम कान्हा जब मीरा के मन को भाता है स्मृति में सब आ जाता है जाने ऐसा क्यों होता है सब कुछ मन बिसराता है प्रेम भरी लगती है दुनिया प्रेम पुजारी मीरा का मन जाने क्यों कान्हा में खो जाता है एक तुम्हारा नाम कान्हा जब मीरा के मन को भाता है जहर का प्याला पी जाती है प्रेम दीवानी मीरा हो जाती है।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा साहित्यिक : उपनाम नेहा पंडित जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल,हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरंगिणी मुंबई, दैनिक जागरण अखबार, अ...
दावानल
कविता

दावानल

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** आग जिस्म के तहखाने में लगी सारे जिस्म में फैल रही है। निकलने लगी है, चिंगारियां, आँखों की खिड़कियों से। सावधान सावधान, निजाम चलाने वालों लग रहा है, आग बेकाबू हो कर फैलने वाली है। चिंगारियों की जगह कुछ ही देर में निकलेगी आँखों से आग की लपटें धधक उठेगा सारा जिस्म आग से। खोजो, खोजो आग लगने के कारण खोजो वरना, सारा निज़ाम आग की चपेट में आ जायेगा। फिर कुछ न बचेगा न निज़ाम न भूख। बचेगी, सिर्फ राख इतिहास की राख। निज़ाम - प्रशासन व्यवस्था दावानल - जंगल की आग . परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० स...
कामयाबी का मंजर
कविता

कामयाबी का मंजर

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** क्यों हार हुई उस गलती को तुम फिर से अपने अंदर देखो, ना इधर देखो, ना उधर देखो सिर्फ भविष्य में कामयाबी का मंजर देखो सोचो क्यों आगे बढ़ती है, लहरों से नौका लड़ती है। तब जाकर नौका उस, दरिया को पार करती हैं। भूल जाओ सब को बस खुशियों का समंदर देखो, ना इधर देखो, ना उधर देखो सिर्फ भविष्य में कामयाबी का मंजर देखो मंजिल की करो तालाश तुम, खुद पर रखलो विश्वास तुम। कभी आये जीवन में मुश्किल तो, ना होना कभी निराश तुम, तुम जीतोगे हर मुश्किल से, बस अपने आप मे सिकंदर देखो। ना इधर देखो, ना उधर देखो सिर्फ भविष्य में कामयाबी का मंजर देखो सुख दुःख तो मेहमान हैं, जीवन मे सदा ही आते हैं कभी देते है जी भर खुशियां, कभी सबको यही रुलाते है। क्यों हार हुई उस गलती को तुम फिर से अपने अंदर देखो, ना इधर देखो, ना उधर देखो सिर्फ भविष्य में कामयाबी का मंजर देखो ...
पत्र जो लिखा पर भेजा नहीं
कविता

पत्र जो लिखा पर भेजा नहीं

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** एक पत्र भगवान के नाम लिखा था मैने भगवान से गुजारिश ये किया था मैने हे भगवान मेरी माँ मुझे वापस दे दो बदले में तुम मुझसे चाहे ले लो हे भगवान मेरे पिता मुझे वापस दे दो बदले में तुम मुझसे चाहे जो ले लो मैं माँ की गोद में एक बार सोना चाहती हूँ पिता से खिलौना की जिद करना चाहती हूँ हे भगवान एक बार मेरी विनती सुन लो बदले में चाहे तुम मेरे प्राण ले लो माँ पिता आज भी बसते हैं दिल की क्यारी में वो पत्र आज मुझे मिली पुरानी डायरी में . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान से सम्मानित  आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताए...
लाकॅडाउन से छूटा नशा
कविता

लाकॅडाउन से छूटा नशा

राधा शर्मा इंदौर मध्य प्रदेश ******************** माना करोना को करना है हमे बहार लगी है जिन्हें बुरी आदते तम्बाकू,गुटका और शराब छोड़ बुराई आज रे नशा बुरा इक काज रे लाकॅडाउन का है ये फायदा सिखा रहा तुम्हें सही कायदा छोड़ रे बन्दे अब ये काम नशे से होता काम तमाम तम्बाकू,सिगरेट और शराब बन्द पड़ी सब दुकान मन से इसको दूर भगाना इस पर भी तो रोक लगाना छूट जायेगी लत ये बन्दे नशे के काम बहुत है गन्दे थूक-थूक घर किया खराब अब पियो न तुम ये शराब करती घर को यह बर्बाद दारू सिगरेट हो या तम्बाकू मन को रोककर कर लो काबू मानो तुम ये मेरी बात रहना हो यदि सबके साथ नशे से दूरी बनालो आज . परिचय :- राधा शर्मा निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ...