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कविता

माँ की वीरता
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माँ की वीरता

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** बच्चे की एक चोट देख कर माँ का कलेजा मुंह को आये माँ की वीरता से ही कोई बेटा सीमा पर जाए जहाँ बच्चे को धूप से बचाने ओदनी बन जाती है माँ वहाँ तपते रेतीले टीलों पर करते रहते गश्तिया जवाँ बर्फीली घाटी में जब जब शीत लहर चलती है माँ की रजाई और दुशाले की वो गर्माहट कहाँ मिलती हैं स्कूल से आने में देरी वो पांच मिनट का होता है जाबांजो के माओ के जीवन में अनवरत प्रतीक्षा होता है उन बहनों की हम बात करे जिनका कोई भाई नही पर भाई होकर भी बहनों की राखी को नसीब कलाई नही छाती चौड़ी हो जाती है जब बेटा सेना में जाता है गर शहीद हो जाए तो फिर नाम अमर हो जाता है सेना के लाखो जवानों में भी किस्मत की ही चलती है वो शहीद हो जाता है जिसे भारत माता चुनती है तुम धन्य हो तुम महान हो तुम पर हमको भी नाज है तुम जैसों के बलबुते से ही भारत में ‘सुकून’ आज...
दर्द
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दर्द

श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** कतरा कतरा टूटती क्यू ज़िन्दगी हर पल दर्द में डूबी हुई क्यू ज़िन्दगी उन पलों में जिनमें हंसना चाहिए था खिलखिलाकर, अश्क की धारा बनी क्यू ज़िन्दगी हर पल दर्द में डूबी हुई क्यू ज़िन्दगी भोर की पहली किरण मेरी कभी होगी कही, पूर्णिमा की चांदनी भी मुझको अपनी सी लगेगी, स्वप्न में ही बस मुझे क्यू ये बताती ज़िन्दगी, हर पल दर्द में डूबी हुई क्यू ज़िन्दगी तेरी स्नेह ज्योति से जीवन को पाकर ज़िन्दगी सबको बांटा करूगी, ये सपना मेरा अगर सच होता तो कतरा कतरा टूटती ना ज़िन्दगी हर पल दर्द में डूबी हुई क्यू ज़िन्दगी। परिचय :- श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव जन्म दिनांक : ५/११/१९६२ निवासी : महाकाल वाणिज्य केंद्र उज्जैन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं...
पहली बारिश
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पहली बारिश

रमेश चौधरी पाली (राजस्थान) ******************** यह पहली बारिश नया जोश नई उम्मीद लाई है। बारिश की बूंदों से टपकता हुआ वह मोती मानो एक नई उम्मीद लाई है। यह पहली बारिश नया जोश नई उम्मीद लाई है। गावों की मिट्टी महक उठी है, शहरों की गलियां चहक उठी है, बच्चो के चेहरे खिल उठे है। यह पहली बारिश नया जोश नई उम्मीद लाई है। बूंदों के ऊपर बूंदे इस कदर समा रही है, मानो दरिया बना रही हो। यह पहली बारिश नया जोश नई उम्मीद लाई है। अन्नदाता पेनी नजरो से इस कदर मुझे ताक रहा है, मानो मैने उससे बेवफ़ाई की हो। यह पहली बारिश नया जोश नई उम्मीद लाई है। कोयल मधुर गीत से कर रही है मेरा आलीगन, मोर नाच कर कर रहा है मेरा स्वागत। यह पहली बारिश नया जोश नई उम्मीद लाई है। परिचय :- रमेश चौधरी निवासी - पाली राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपन...
कहो पर सुनो मत
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कहो पर सुनो मत

संजय जैन मुंबई ******************** लिखे वो लेखक पढ़े वो पाठक। जो पढ़े मंच से वो होता है कवि। जो सुनता वो श्रोता होता है। यही व्यवस्था है हमारे भारत की। लिखने वाला कुछ भी लिख देता है। पढ़ने वाला कुछ भी पढ़ लेता है। और कुछ का कुछ अर्थ लगा लेता है। पर सवाल जवाब का मौका किसे मिलता है? यही हालात आजकल हमारे महान देश का है। न कोई सुनता है न कोई कुछ कहता है। अपनी अपनी ढपली हर कोई बजता रहता है। और अपनी धुन में वो मस्त रहता है। इसलिए अब हिंदुस्तान में संवाद खत्म हो गया है। और भारत को विश्वस्तर पर पीछे कर दिया है। जिसका सबसे ज्यादा असर, हिंदी साहित्य पर पड़ा है। और भारत की संस्कृति व इतिहास लुप्त हो रहा है। मंदिर मस्जिद गुरूद्वरा तक भी अब धर्म नही बचा है। और इंसानियत का मानो जनाजा निकल चुका है।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई...
शांत… सुशांत
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शांत… सुशांत

बिपिन कुमार चौधरी कटिहार, (बिहार) ******************** छोटे शहर से आया था एक बड़ा सितारा, कुकर्मों की काली छाया ने जिसे मार डाला, मर कर भी तूं लाखों दिलों पर राज करता रहेगा, पूछे सारा देश तेरे कातिलों को सजा कब मिलेगा, जांच के नाम पर साक्ष्यों पर आंच आती रही, आख़िर क्यों, मुंबई पुलिस सच छिपाती रही, कुछ सफ़ेदपोशों के इशारों पर सब काम हुआ है, मायानगरी की रंगीन दुनिया फ़िर बदनाम हुआ है, खूबसूरत किरदारों से दुनियां को छलने वालों, अंदर कुछ, बाहर से कुछ और दिखने वालों, एक कमिनी ने अपनी सारी हदों को पार कर दिया, झुठे प्यार का तिलिस्म, धोखे से वार कर दिया, मोहब्ब्त की खूबसूरती ही तेरा वजूद, इसी से चमकता है यह पर्दे की दुनियां, बना कर चार यार, प्यार को हथियार, पावन प्रेम को तूने कलंकित कर दिया, सीबीआई जांच का पूरा देश करता इस्तकबाल, न्याय पर हमें भरोसा, गुनहगारों जुर्म करो इकबाल, संघर्ष हमा...
अनमोल  हीरा  बेटियाँ
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अनमोल हीरा बेटियाँ

सपना आनंद शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मेहँदी रोली कंगन का सिंगार नही होता रक्षाबंधन भाईदूज का त्योहार नही होता रह जाते है वो घर सुने आँगन बन कर जिस घर मे बेटियों का अवतार नही होता जन्म देने के लिए माँ चाहिये राख़ी बांधने के लिए बहन चाहिये कहानी सुनाने के लिए दादी चाहिये जिद पूरी करने के लिए मौसी चाहिये खीर खिलाने के लिए मामी चाहिये साथ निभाने के लिए पत्नी चाहिये पर यह सभी रिश्ते निभाने के लिए बेटियाँ तोह ज़िन्दा रहनीं चाहिये घर आने पर दौड़ कर जो पास आए उससे कहते है बेटियाँ.... थक जाने पर प्यार से जो माथा सहलाए उससे कहते है बेटियाँ.... "कल दिला देंगे" कहने पर जो मान जाए उससे कहते है बेटियाँ..... हर रोज़ समय पर दवा की जो याद दिलाएं उससे कहते है बेटियाँ..... घर को मन से फूल सा जो सजाए उससे कहते है बेटियाँ.... सहते हुए भी अपने दुख को चुपा जाए उससे कहते है बेटियाँ.... दूर जान...
परछाई
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परछाई

रवि कुमार बोकारो, (झारखण्ड) ******************** सुकून की तलाश मे अकेले चल पड़े थे हम, ना कोई आगे नजर आए ना कोई पिछे। नजर आती तो बस एक लम्बी सी सड़क जो मिलो तक फैली है,, लगने लगा मानो सबने साथ छोड़ दिया हो मेरा जैसे सुकून की तलाश में गुमनाम हो बैठे खुद से। समय ढलने को आया तलाशी जारी थी मेरी, सुकून तो मिला नही पर मिला कोई हमसफर, चल रहा था साथ मेरे मेने पुछा कोन हो आप? विनम्रता से बोलीं...परछाई।। परछाई है हम।। परिचय :- रवि कुमार निवासी - नावाड़ीह, बोकारो, (झारखण्ड) घोषणा पत्र : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।\ आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hi...
ओ मेरी प्यारी बहना
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ओ मेरी प्यारी बहना

दीवान सिंह भुगवाड़े बड़वानी (मध्यप्रदेश) ******************** ओ मेरी प्यारी बहना तू हमेशा खुश ही रहना। आये विपदा कोई तेरे जीवन में बेझिझक तुम मुझसे कहना दुखों को तेरे मुझे है सहना प्रण लिया है यह मैने बहना। माँ की लाड़ली, पापा की परी मेरे लिए बहना तू है सर्वोपरी। मंदिर में ममता के, तू है प्यारी मूरत माँ भी नजर आती है, पिता भी जब मै देखता हूं तेरी सूरत। अगर हो अंधेरा तेरे सफर में तो खुद को जला दूँगा मै राहों में तेरी यदि हो कांटे तो खुद को बिछा दूँगा मै। दुख ना आये कभी तेरे जीवन में बहना मुझ पर रखना प्रेम हमेशा और जीवन भर संग ही रहना। ओ मेरी प्यारी बहना तू हमेशा मुस्कुराते रहना। परिचय :- दीवान सिंह भुगवाड़े निवासी : बड़वानी (म.प्र.) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपन...
वीर शहीद
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वीर शहीद

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** जन्म से मृत्यु तक मैं फर्ज निभा ऊंगा, अपना जीवन मां को अर्पण कर जाऊंगा, मां तुम ना रोना, उदास ना होना विश्वास तुम रखना, मैं फिर से आऊंगा। जो वीर वतन पर, शहीद हो गए, आंचल छोड़ मां की गोद में सो गए, खून के कतरे कतरे से इतिहास जो रचा, वही दुनिया की पहचान हो गए, उनके पद चिन्हों पर चल इतिहास दोहराऊंगा, विश्वास तुम रखना मैं फिर से आऊंगा। वीरों की बदौलत यह देश खड़ा होता है, सीमा पर देते पहरे, तब देश चैन से सोता है, यादों में मां, पत्नी न ही लाल होता है, मातृभूमि की रक्षा का सवाल होता है, श्रद्धा के सुमन उनके चरणों में चढ़ाऊंगा, विश्वास तुम रखना मैं फिर से आऊंगा। कुर्बानियों से उनके, आजादी पाई है, मुफ्त में नहीं मिली इसकी कीमत चुकाई है, फांसी पर झूले ,सीने में गोली खाई है, तब तीन रंग की विजय पताका गगन में फहराई है, तो मां के माथे पर खून का...
कैसे गाएँ गीत मल्हार
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कैसे गाएँ गीत मल्हार

मुकेश गाडरी घाटी राजसमंद (राजस्थान) ******************** ना देखीं इस वर्ष ये बारिश की बूंदे, क्या होगा पता नहीं जगाई जो उम्मीदें। देख रहा किसान जो आसमान में, बादल छाए बारिश हो जाए। सावन में झूला झूलने का है इंतजार, की कैसे गाए गीत मल्हार -२ देश में बढ़ रहा आतंकवाद, रोकना हमको पापियों का पाप। ईमान का नष्ट होना भ्रष्टाचार का है पनपना, समाज में बढ़ती जा रही बुराइयां। बहन, बेटी, बहू ना जा सकती बाहर, की कैसे गाए गीत मल्हार -२ मानव जो करता खिलवाड़ प्रकृति से, भू-श्रृंगार जो मिटने आया। जीव-जंतु की ना तु दया करता, इसलिए यह कोरोना का प्रकोप आया। अब ठहर जा मानव नहीं तो काल्पनिक होगी पृथ्वी, ईश्वर को ही लेना होगा अब अवतार वरना कैसे गाएं गीत मल्हार-२ परिचय :- मुकेश गाडरी शिक्षा : १२वीं वाणिज्य निवासी : घाटी (राजसमंद) राजस्थान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना...
शतरंज के मोहरे की तरह हो गयी ये जिंदगी…
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शतरंज के मोहरे की तरह हो गयी ये जिंदगी…

दिनेश शर्मा 'डीन सा' भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** बिछी हुई बिसात की तरह करते हुए नुमाइंदगी शतरंज के मोहरे की तरह हो गयी ये जिंदगी। मन का यह सुंदर सफेद घोड़ा चलता रहता है सदा ढाई चाल मचल-मचल कर खुद होता बेहाल। सिपाही बना संकल्प मन के घोड़े पर हुआ सवार करता है कोशिश चले सदा सीधा पर अपने ही टेढ़े पन से होता सब बेकार। इच्छा रूपी ऊंट को जिंदगी के इस अंतहीन रेगिस्तान में मिलता नही कोई जब सहारा केवल भागना ही विकल्प है यह सोचकर मन मसोस कर रह जाता बेचारा। गज बना देह का आलस्य हिलता डुलता कभी मचलता किये हो जैसे सूरा पान कभी है चलता अधिक है रुकता चल रहा मतवाली चाल। और जिसको थी इन्हें डालनी जंजीर ऐसा इक वो बुद्धि रूपी वजीर रख नही सका इन पर कोई अंकुश लगा विचरने खुद धरा के चारो कोनो में निरंकुश। शत्रु की तरह लगे ये सभी दिन-रात देने अपने जीवन दाता देह रूपी बादशाह को शह-मात। ऊंचे-नीचे, ख...
आओ साथी अयोध्या चलकर राम- पर्व मनाएँ
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आओ साथी अयोध्या चलकर राम- पर्व मनाएँ

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** राम हमारी अयोध्या जन्मे कण-कण राम बसे हैं, सरयू नदी के तट पे अयोध्या पावन नगरी बसे हैं। पावन नगरी अयोध्या को हम राम- नगरी बनाएँ, आओ साथी अयोध्या चलकर राम- पर्व मनाएँ। राजा दशरथ परम प्रतापी अयोध्या नरेश हुए थे, कैकेई सुमित्रा और कौशल्या के चार पुत्र हुए थे। राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न के दर्शन कर आएँ, आओ साथी अयोध्या चलकर राम- पर्व मनाएँ। राम हैं मर्यादा पुरुषोत्तम परम पूज्य कहलाए, सीता मैया आदर्श जननी जग में पूजी जाएँ। राम सीता के मंदिर को हम जाकर शीश नवाएँ, आओ साथी अयोध्या चलकर राम- पर्व मनाएँ। राम की महिमा गाने से ही कष्ट निवारण होता, राम नाम लेने से ही बस मोक्ष प्राप्त हो जाता। हम भी आज राम दर्शन से थोड़ा पुण्य कमाएँ, आओ साथी अयोध्या चलकर राम पर्व मनाएँ। परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, साहित्यकार एवं समाजसेविका) शिक्षा -...
विरह वेदना
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विरह वेदना

अन्नू अस्थाना भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** पथराई आंखो में छलकते आंसुओं के समंदर का दर्द है विरह किसे पता है, ये किसकी आँखें है, किसे पता है किसके आंसु हैं, आंसुओं के समंदर पर ये अश्रु है किसके पिया मिलन कि आस लिए, विरह में पथराई सजनी कि आंखे अपने बच्चों से विरह हुए, माँ कि आँखें भी हो सकती है, या पिता के अश्रुओं का समंदर भी हो सकता है विरह केवल बौझिल बेदम नहीं है जीत का मार्ग भी होता है विरह। सीता से विरह के बाद ही लंका पर विजयश्री का मार्ग प्रशस्त किया, श्री राम ने पत्नी रत्नावली के प्रेम से विरक्त होकर, विरह जीवन बिताकर रामबोला से गोस्वामी तुलसीदास बन, रचित किया श्रीरामचरित्रमानस ग्रंथ विरह में केवल डूबना हि नहीं होता भव सागर भी पार हो जाता। परिचय :-  अन्नू अस्थाना निवासी :- भोपाल, मध्य प्रदेश कविता लिखने कि प्रेरणा :- कवि संगोष्ठीयों में भाग लेते थे एवं...
सुनो स्त्रियों
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सुनो स्त्रियों

निमिषा सिंघल आगरा (उत्तर प्रदेश) ******************** सुनो स्त्रियों! हां !तुम्ही से कुछ कहना है मुझे। ईश्वर ने चुना स्त्रियों को सहनशक्ति की परीक्षा के लिए। समय-समय पर ली गई परीक्षाएं उतरती रहीं खरी.. हर परीक्षा में। धैर्य, दुख, शोषण, पीढ़ा अस्तित्व रहित रहकर भी जिया जीवन आत्महत्या नहीं की जिंदा रखा खुद को। इतना ही नहीं अनेक विषमताओं में घिरकर चेहरे पर खिलाए रखी भुवनमोहिनी मुस्कान। फूल से कोमल मन पर झेलती रही तंजो के बाण जब निकल पड़ी अस्तित्व की तलाश में तो फिर पूछा गया उनसे एक सवाल अब क्या करोगी अपने लिए जीकर तुम्हारा समय निकल गया अब परिवार को देखो। सुनो! तुम उनकी बातों में ना आना समय कभी नहीं निकलता। हाथ से छुटती डोर को भी अगर झटका दो वापस आ जाती है। जीने का कोई मौका हाथ से ना जाने दो। कर्तव्य निष्ठा के बाद निकाला गया समय तुम्हारा है उन पलों में अपने सपनों को ऊंचाइयों दो। रंग भरो ...
मम्मी मेरी प्यारी है
कविता

मम्मी मेरी प्यारी है

रिंकू बाबू यादव नवाबगंज, बरेली (उत्तर प्रदेश) ******************** मम्मी मेरी प्यारी है। सारे जग से न्यारी है।। जब भी मुझको भूख लगती है। अपने हाथों से खिलाती है।। जब भी मैं डर जाता हूं। अपने आँचल में मुझे छिपा लेती है।। जब भी मुझको नींद नही आती। लोरी गाकर सुलाती है।। जब भी गलती करता हूं। प्यार से मुझे समझाती है।। मम्मी मेरी प्यारी है। सारे जग से न्यारी है।। जब भी मैं स्कूल जाता हूं। तैयार मुझे कराती है।। जब भी मैं थक जाता हूं। आराम मुझे कराती है।। जब भी मुझको कुछ लेना होता। झट से समझ जाती है।। जब भी गन्दा हो जाता हूं। साबुन से नहलाती है।। मम्मी मेरी प्यारी है। सारे जग से न्यारी है।। जब भी बाहर जाता हूं। काला टीका मुझको लगाती है।। जब भी मुझको खेलना होता। बागों में ले जाती है।। जब भी मैं गिर जाता हूं। मुझको वो उठाती है।। जब भी मुझको चोट लगती है। मरहम वो लगाती है।। मम्मी मेरी प्यारी है...
मुखौटे की सजा
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मुखौटे की सजा

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ******************** अयोध्या में भव्य 'राम मन्दिर' बनने लगा है, धर्मग्रंथ"रामायण"ज़हन में ताने बाने बुनने लगा है! 'राम 'के साथ ही 'रावण'तुम भी याद आ रहे हो, क्यों? लंका मिट्टी में मिली, समझा रहे हो! इस मन्दिर से भव्य, तुम्हारी लंका रही होगी, आखिर किस 'श्राप' से, लंका तुम्हारी ढही होगी? अकूत धन था, बाहुबल था, सब तुम्हारे पास था, मंदोदरी थी, कुंभकर्ण था, मेघनाथ का 'नाग पाश'था! ज्ञान था, प्रकांड पांडित्य था, शिव वरदान था, दस सिर, नाभि में अमृत, अलौकिक विमान" था! एक ही गलती से, तुम्हारे सारे अलंकरण जल गए, "साधु का मुखौटा पहनकर, 'जानकी' जो छल गए! परिचय :- मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर...
माखन के चोर
कविता

माखन के चोर

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** माखन के चोर, गोपियों की नैनो के मोर, तूने कैसा खेल किया, दुनिया सारी तुम्हारे है ओर, मीरा तुम्हारी दीवानी, राधा तुम्हारी दीवानी, दुनिया तुम्हारे दीवाने, तेरे हाथों युग बना घनगोर, कहीं जन्मा तू, कहीं पला तू, कहीं खेला तू, कहीं रहा तू, तेरे रूप अनेक, तेरे रंग अनेक, किसी के दिल में तू, किसी के सांसो में तू, तू दुनिया के पालन हारी, तू दुनिया के सबके दुलारे, तू है तो दुनिया है, तू है तो हम है! परिचय :- रूपेश कुमार छात्र एव युवा साहित्यकार शिक्षा - स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली यूपी) वर्तमान-प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी ! निवास - चैनपुर, सीवान बिहार सचिव - राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान प्रकाशित पुस्तक - मेरी कलम रो रही है सम्मान : कुछ सहित्यिक स...
कान्हा की सीख
कविता

कान्हा की सीख

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** छूटने का दर्द जानते हो??? कितना पीड़ादायक! कितनी टीसभरी !! कितना टभकता हुआ!!! क्या जीवन में कुछ छूटने के बाद भी मुस्कुरा सकते हो??? एक बार देखो ----- कान्हा को! सबसे पहले गर्भ छूटा माँ का! (जन्म से पहले ही) फिर माँ बाप!! फिर छूटे पालक माता-पिता! बचपन का आंगन छूटा!! संगी साथी छूटे!!! छूट गए सब ग्वाल-बाल ! छूटा पास-पड़ोस सारा !! छूटी यमुना अति प्यारी !!! और छूटे सरस सघन लता-कुंज सारे ! भरी जिनमें जीवन की प्याली!! छूट गईं... गोकुल की भोरी गोपियां! गोकुल का मिश्री-माखन!! और छूटी.... आत्मा की संगी! प्रिय राधा रानी!! आह! " चिर बिछोह"!!! क्रीड़ा भूमि गोकुल छूटा! कर्म भूमि मथुरा छूटी!! सबको आह्लाद की सरिता में अंतरात्मा तक डुबोती! *जीवनदायी मुरली!! भी छूट गई हाय!!! कान्हा! जाने कितनी पीड़ा तुमने झेली!! कितना पीड़ादायक रहा होगा तुम्हारे लिए जी...
कृष्ण अष्टमी
कविता

कृष्ण अष्टमी

डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, (राजस्थान) ******************** भाद्रपद कृष्ण अष्टमी, काली रात अंधियारी। कंस तेरी जेल में, जन्म लिएं बनवारी। वसुदेव गोकुल पहुंचे, संग ले कृष्ण मुरारी। कंस के कारागार पहुंची, यशोदा राज दुलारी। मामा तेरे अंत की, अब हो गई तैयारी। खुशियां छाई गोकुल में, मुस्काते नर नारी। देवकी के प्रसव की, खबर लें आये संचारी। क्रोधित हो नवजात को, मारने आया अत्याचारी। दुष्ट तुझे मारने, गोकुल आ गया गिरधारी। घबराया कंस, अपनी माया रची मुरलीधारी। गढ़ गोकुल की गोपियां, तुझे बोलें माधव मुरारी। ग्वाल बाल संग कान्हा, करता माखन चोरी। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आ...
बाल विवाह
कविता

बाल विवाह

प्रिया पाण्डेय हूघली (पश्चिम बंगाल) ******************** मैंने देखा है कम उम्र की, शादी-शुदा लड़कियों को, सपने सारे टूटे, झूठी मुस्कुराहट की लदी तस्वीरें, अपनों से खुद को छुपाती हुई.... ससुराल मे हर किसी की ख्वाहिश पूरी करती सबका पूरा ध्यान रखती, रिश्तो के डोर मे फंसी, जिम्मेदारीयों के बोझ तले दबी हुई.... थोपे गये समाज के गलत फैसलों से, बंधनो के बेड़ियों से बाहर निकलकर, कुछ पल अपने लिए, जीना चाहती है.... अपनी ख्वाईशो को किसी का साथ पाकर पूरा करना चाहती है, किसी अपने से लिपटकर जी भर कर रोना चाहती है, चाहती है वो अपने दबे सपनो को फिर से पूरा करना, एक सच्चा दोस्त जो प्रेमी से कम ना हो, हर तकलीफ और दर्द मे उसका साझेदार हो, मुश्किलों मे उसका सहारा बने और, अकेलेपन मे उसकी होंठो की मुस्कान, फिर.... लांछन का डर, समाज की बेड़िया, उसके बढ़ते हुए कदम, और उसके हर सपने को रोक लेती है.... जैसे पिंजरे मे तड़प...
रोम-रोम में राम
कविता

रोम-रोम में राम

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ******************** बरसों से ही बसे हुए हैं, हम सबके रोम रोम में राम। राम का नाम लेते ही देखो, कितना आ जाता आराम।। सदियों से हम तो करते अभिवादन, कह के राम राम। राम राम ही रटते रहो, इसी से मिल जाते हैं चारों धाम।। राम के नाम पर ही लड़ते रहे, भूल गये बाकी,तुम सब काम। अपरम्पार है राम की महिमा, करते रहो, क्या लगता है दाम।। कृष्ण हो या करीम, राम हो या रहमान, क्या फर्क है। लहू एक है, रंग भी कहाँ भिन्न, फिर ये कैसा तर्क है।। राम हो या अल्लाह, एक नूर से ही तो सब उपजा है। मंदिर मस्जिद की तकरार में ये कैसी मिल रही सज़ा है।। बरसों से चुभ रही थी एक चुभन, ह्रदय में बन कर शूल। आई घड़ी सुहानी तो खिलखिला उठे खुशियों के फूल।। कण कण में ही तो हैं राम विराजत, संग रहते वीर हनुमान हैं। जो पा जाते इनकी कृपा, उनको राम मिलना हो जाता आसान है।। अब छंटे हैं बादल, अंत हु...
आराध्य राम
कविता

आराध्य राम

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** वर्ष पाँच सो बाद सफलता मिली अयोध्या धाम कों मिले हमें आराध्य हमारें नमन प्रभु श्री राम कों आज अयोध्या नगरी सारी सजी दुल्हन सी लगती हैं वर्षो का संघर्ष झेलना प्रभु राम की भक्ति हैं धेर्य और विश्वास लिऐ हम आस लगाए बेठे थे कार सेवकों की सेवा का उपवास लिऐ हम बेठे थे आज पुनः वह अवसर आया घर घर दीप जलाएंगे राम लला की अगुवाई में फिर भगवा लहराएंगे परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) विशेष : कवि, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव - अ.भा.वंशावली संरक्षण एवं संवर्द्धन संस्थान म.प्र, रचनाएँ : हम हिन्दुस्तानी, नई दुनिया, पत्रिका, नवभारत देवभूमि, दिन प्रतिदिन, विजय दर्पण टाईम, मयूर सम्वाद, दैनिक सत्ता सुधार में आए दिन लेख एवं रचनाएँ ...
हे वर्षा के देवता
कविता

हे वर्षा के देवता

दिलीप कुमार पोरवाल “दीप” जावरा मध्य प्रदेश ******************** हे वर्षा के देवता आस लगाए बैठे हैं देख रहे हैं मेघो की और कर दो मेघ गर्जना बरसा दो पानी हे वर्षा के देवता प्यासी है धरती प्यासे हैं खेत प्यासे हैं जीव जंतु मरणासन्न है पेड़ पॊधे उड़ेल दो अपना स्नेह नीर और कर दो सबको तृप्त हे वर्षा के देवता सरसराती हवाओं के साथ उमड़ घुमड़ कर दो नाद चमका दो बिजलियों से गगन भर दो सप्तरंगी रंग और बरसा दो स्नेहनीर हे वर्षा के देवता ताक रहे हैं धरती पुत्र आस लगाए बैठे हैं अब तो बरसा दो स्नेहनीर महका दो बाग बगिया और खेत और कर दो धरा का श्रृंगार हे वर्षा के देवता कूप है खाली खाली सरोवर है सूखे सूखे नदिया है आतुर मिलन से सागर को बरसा दो अपना स्नेहनीर हे वर्षा के देवता करते है अनुनय विनय दे दो अपना स्नेहाशीष और बरसा दो स्नेहनीर। परिचय :- दिलीप कुमार पोरवाल “दीप” पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल म...
सच्ची मित्रता
कविता

सच्ची मित्रता

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** जग में मिलने हजारों जन, पर कुछ में बड़ी पवित्रता, दर्द मिटाके, सुख का दाता, कहलाती है सच्ची मित्रता। एक है दोस्त, दूजा दुश्मन, दोनों में जरा करलो मंथन, दोस्त चाहे सदा ही भला, दुश्मन चाहे काट दूं गला। दुश्मन के दिल में नफरत, चाहे वो जन की हो दुर्गत, सदा करता रहे उल्टे काम, यूं होता है जग में बदनाम। दोस्त के दिल में बहे बयार, खुद दुख में देता सच्चा प्यार, दोस्त मिल जाएं कई हजार, सच्चे मित्र मिले बस दो चार। मित्र वहीं है मित्रता निभाए, दुख पहाड़ सम, वो हंसाए, सदा ही गले से वारे लगाये, कुर्बानी दे दे, नहीं घबराये। सच्ची मित्रता सुनने मिलती, सुन दोस्ती कलियां खिलती, ईश्वर भी देखे, जोड़ी ,प्यारी, दोस्ती नहीं है कभी दोधारी। सच्ची मित्रता कृष्ण-सुदामा, युगों युगों तक रहेगा ये नाम, जब-जब बात सुदामा चले, याद आयेंगे तब-तब श्याम। सच्ची...
क्या बताऊं
कविता

क्या बताऊं

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कलम करती सृजन कृपा दृष्टि मां से पाऊं दुष्कर हालातों में, क्या समझूं क्या बताऊं। मन पिंजरा विचित्र, चाहे कुछ भी भरना है जो मन के अंदर, काश बने वो झरना सोचो तुम खुद ही, क्या रखूं,क्या बहाऊं विपरीत समय में, कुछ तो दिमाग लगाऊं दुष्कर हालातों में क्या, समझूं क्या बताऊं। मोबाइल नितांत जरूरी, बन गया जो आत्मा राहों के दुरुपयोग में, बहुतों का हुआ खात्मा बिन मोबाइल के अब, देखो कितना बौराउं नए विचार की पैठ, मॉडल नया मंगाउँ दुष्कर हालातों में, क्या समझूं क्या बताऊं। नया युग चल रहा, साथ रहे सद्व्यवहार खाली रहकर व्यस्त, अब कैसे जीवन पार सुने नहीं समझे नहीं, कैसे खुद को जगाऊं आत्मनिर्भर बनने, कितना बोध कराऊँ दुष्कर हालातों में क्या, समझूं क्या बताऊं। बिना अक्ल व मेहनत, काम हो आराम का ज्ञान और मौका जहां, स्थान नहीं काम का श्रेष्ठ यदि मिलता हो, खु...