Monday, March 17राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

कविता

बेटी
कविता

बेटी

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** रिश्तों की हरियाली बेटी, जग में सबसे न्यारी बेटी। उन्मुक्त गगन में पंछी जैसी, निच्छल, अविरल नदियाँ सी लाखों स्वप्न हिय में भरकर परी लोक की परियों जैसी। सुंदर मन, कोमल तन से जो लगे गुलों में फूल सी बेटी। रिश्तों की हरियाली बेटी, जग में सबसे न्यारी बेटी। घोर तम में दीपशिखा जैसी जीवन समर ने अमृत वर्षा सी प्राणों में स्पंदन को भरकर कानन में टेसू के जैसी नाजुक है कमजोर नही जो लगे नूर में मेरी हूर सी बेटी। रिश्तों की हरियाली बेटी, जग में सबसे न्यारी बेटी। प्रचंड शीत में सूर्योदय जैसी, उष्ण बयार में शीत फुहार सी। दो कुलों की मर्यादा सहेजकर परिवारों की मनुहार जैसी उदासी में मुस्कान भरे जो लगे ईश्वर का उपहार सी बेटी। रिश्तों की हरियाली बेटी, जग में सबसे न्यारी बेटी। परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर म.प्र. सम्प्रति - शिक्षिका (ह...
साहित्य साधना…
कविता

साहित्य साधना…

बिपिन कुमार चौधरी कटिहार, (बिहार) ******************** साहित्य है एक साधना, लोकहित की यह कामना, नीजहित में मानव पतित, साहित्य जनहित की आराधना, साहित्य संगम रहा ढूंढ़, साहित्यकारों का महाकुंभ, शपथ बेहतर भविष्य बनाना, आओ करें साहित्य साधना, सृजन का यह अद्भुत जुनून, बोल सकता यही अंधा कानून, इसका साधक कब कहां डरा, इससे भयभीत कितना बेमौत मरा, फिर भी एक सवाल कठिन, पूछता सबसे कलमकार बिपिन, अंधकार घना और क्यों भयभीत धरा, परिवर्तन की दरकार, कैसे बदले विचारधारा... परिचय :- बिपिन बिपिन कुमार चौधरी (शिक्षक) निवासी : कटिहार, बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आद...
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है
कविता

ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है यहाँ न रिश्तों की परवाह है न खुशियों की चाह है ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है... हर तरफ मतलब ही मतलब ... और सिर्फ बेमतलब का ही शोर है।। न बच रही कहि मानवता, और न ही प्रेम का कहि छोर है।। अपने स्वार्थ की खातिर, नए रिश्ते बना लेते है लोग, या यू कहे कि गधे को भी बाप बना लेते है लोग।। भरोसा उठ रहा सबका यहाँ इंसानियत और ईमानदारी से... भरोसा उठ रहा सबका यहाँ रिश्तों की वफादारी से... ये बेदिल, और मतलब परस्तों की दुनिया ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है।। रुचि!!!! दुनिया के मिलने की चाह को छोड़ अब खुद के मिलने को तलाश कर... खुद को खुद में ही खोजकर अब खुद पर ही विश्वास कर।। छोड़ सब उम्मीदों को अब... ये इंसानी लाशों की दुनिया ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२...
बच्चों का दर्द
कविता, बाल कविताएं

बच्चों का दर्द

सपना दिल्ली ******************** कोई तो समझे बच्चों का दर्द शिक्षा के नाम पर हम पर होता अत्याचार बस्ता तले दबे कंधे चारों पहर बस पढ़ाई का क़हर। घर में पढ़ाई स्कूल में पढ़ाई वापिस आकर टूशन में पढ़ाई इतना ही नहीं घर आने पर फिर पढ़ाई। जीना मुश्किल कर दिया है इस पढ़ाई ने हम बच्चों का सोते-जागते दिमाग में चलता रहता बस पढ़ाई-पढ़ाई का ही दृश्य। जैसे ही पढ़ाई से ध्यान भटके शुरू हो जाती घर पर डांट स्कूल में डांट टूशन में डांट जैसे सबने हमे डाँटने की डिग्री ही पाई हो। न उछल-कूद न कोई शरारत न मौज-मस्ती मानो बचपन ही सिमट गया हमारा, इस पढ़ाई में। सबको लगता बच्चा होना सबसे आसान न कोई टेंशन न कोई परवाह जीवन में बस मौज-मस्ती! होता बिलकुल उलट पढ़ाई का बोझ लादा जाता इतना नीचे दबकर दम घुटा हम मासूमों का। बच्चा क्यों नहीं बन जाते एक दिन के लिए हमारे जैसा फिर समझ पाओगें हमारे मन के मासूम अहसासों को। फिर तुम बच्च...
कोरोना से बचाव ही ईलाज है।
कविता

कोरोना से बचाव ही ईलाज है।

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए कर लो आप सर-सफाई, स्वंय और परिवार को लो कोरोना बीमारी से बचाई। सर्वप्रथम घर के रोज उपयोग वाली चीजों का करोआप रोज-रोज सफाई, तभी आप और आपका परिवार का कोरोना बिमारी से बचाव हो पाई। स्कूल-कालेज वाले करावे रोज सेने-टाईजर का छिड़काव और सफाई, समाजिक दुरी बना के करे सावधानी से पढ़ाई। कोरोना बिमारी उसको कभी न लगे भाई, जो कोई करे रोज-रोज सर-सफाई। सर्वप्रथम अपने घर-परिवार के प्रति सकारात्मक सोच रखे भाय, सभी को दो कोरोना संक्रमरण से बचाव के उपाय से अवगत कराय। जो कोई नातेदार-रिस्तेदार घर आय, आप दो कोरोना से बचाव के उपाय समझाय। पड़ोसियो से मिल कोरोना से उतपन्न आपातकालीन स्थिति का योजना लो बनाय, कोरोना संक्रमित या बीमारो की सूची लो बनकर औरलोगों को दो अवगत कराय। अगले कुछ दिनों तक कोरोना संक्रमित से मिलने ...
शब्दों के पैमाने
कविता

शब्दों के पैमाने

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** यदि कुछ बनने को कहूं तो सागर बन सकते हो क्या? जैसे वह अमृत हो या गरल, खुद में पचाकर शांत रहता है। वैसा धीरज तुम भी दिखा सकते हो क्या? अगर नहीं, अगर नहीं तो बोलो मत, चुप बैठो। संविधान ने स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की दी है, शब्दों से घाव करने की नहीं। भाषा के गलत प्रयोग से तुम जो इतना ज़हर फैला रहे हो मानवता को जला रहे हो। जो संबंध ही नहीं बचे तो अकेले रह सकोगे क्या? अकेलेपन की व्यथा सह सकोगे क्या? ये भारत देश है जहाँ हर तरह के फूल खिलते, हर विचार के लोग मिलते। अपनी घृणा को त्याग, इस पावन मही पर स्नेहिल भाषा की गंगा फिर बहा सकते हो क्या? हिंन्दी जो देश की आन,बान शान है, हिन्दी प्रेमियों के गर्व की पहचान है। हिन्दी तो हिंद के जन जन की जान है, इसे बोलने में लेकिन कभी गलत संधान न हो। हिन्दी है प्यार, स्नेह की भाषा, इससे किसी का...
आस रहती है
कविता

आस रहती है

संजय जैन मुंबई ******************** न खुशी की कोई लहर, हमे आगे दिखती है। जीवन और मृत्यु का डर, अब हमें नहीं लगता है। बस एक आस दिल में, सदा हम रखते है। अकाल मृत्यु न हो, इस काल में।। न कर पाते क्रिया कर्म, न बेटा निभा पाते धर्म। अनाथो की तरह से, किया जाता अंतिम क्रियाकर्म। न उनको चैन मिलता है, न परिवारवालो को शांति। मुक्ति पाई भी तो, बिना लोगो के कंधों से।। किये होंगे पूर्वभव में, कुछ उसने बुरे कर्म। तभी इस तरह से, उसे मिली है मुक्ति। इसलिए मैं कहता हूँ, करो अच्छे कर्म तुम। और सार्थक जीवन जीकर, पाओ अपनी मुक्ति को।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे ...
दिनकर
कविता

दिनकर

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** साहित्य जगत के "अनल" कवि का, धैर्य जब चक्रवात पाता है। तब "दिनकर "भी "दिनकर" से, दीप्तिमान हो जाता है। "ओज" कवि "रश्मिरथी "पर, जब-जब हुंकार लगाता है। "आत्मा की आंखें " कैसे ना खुलेगी। पत्थर भी पानी हो जाता है। साहित्य जगत के "अनल "कवि का। "भारतीय संस्कृति के चार अध्याय" रच कर, भारत का विश्व में नाम किया। "कुरुक्षेत्र "रच कर। आधुनिक गीता का निर्माण किया। "शुद्ध कविता की खोज" में निकला। "उजली आग का स्वाद" चखा। रेणुका, उर्वशी, रसवंती, यशोधरा का द्वंद गीत लिखा। सपना देख के "सूरज के विवाह" का। "हारे को हरी नाम "भज कर। अंतिम इतिहास रचा। कैसे भूल सकता। साहित्य दिनकर को, उसने जो इतिहास रचा। "अर्धनारीश्वर "की सार्थकता को, साहित्य वन में छोड़ चला। साहित्य भूला नहीं सकता। ज्ञान, पदमभूषण, भूदेव के अधिकारी को। सिमरिया की माटी क...
डर लगता है
कविता

डर लगता है

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** सहमा - सहमा सारा शहर लगता है कोई गले से लगाए तो, डर लगता है। आशीष लेने कोई नहीं झुकता यहाँ स्वार्थ के चलते पैरों से, सर लगता है। अपना कहकर धोखा देते लोग यहाँ ऐसा अपनापन सदा, जहर लगता है। इंसान-इंसान को निगल रहा है ऐसे इंसान-इंसान नही, अजगर लगता है। साजिश रच बैठे हैं सब मेरे खिलाफ छपवाएंगे अखबार में, खबर लगता है। साथ पलभर का देते नही लोग यहाँ टांग खींचने हर कोई, तत्पर लगता है। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल...
तुम्हे अब भूल ही जाऐं तो अच्छा है।
कविता

तुम्हे अब भूल ही जाऐं तो अच्छा है।

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** तुम्हे अब भूल ही जाऐं तो अच्छा है। ये फासले और भी बढ़ जाऐ तो अच्छा है। तुम्हारी चाहतें तो हमको नही हुई हासिल, तू अब गैर ही बन जाए तो अच्छा है। हमारी तो उम्र गुज़र गई तेरी चाहत में, अब तू इस आग में ना जले तो अच्छा है। बरसों से थी दुआ की तू मेरे साथ रहे, शुक्र है तू अब मेरे करीब नही तो अच्छा है। क्या फर्क पड़ता है तुझे कि मैं कैसा हूँ, तुझे मेरी याद ही ना आये तो अच्छा है। वैसे भी तूने मुझे कहीं का तो छोड़ा नही, तू अब मेरे सामने ही ना आये तो अच्छा है। दिन किये थे खर्च खराब की थी रातें, ऐसा वक्त तुम्हारा ना आये तो अच्छा है। तुमने जो किया वो सरासर गलत था, प्यार का अर्थ कोई धोखा बताए तो अच्छा है। रहता था तेरी मोहब्बत का साया मेरे साथ। अबतो तेरी परछाई भी ना हो तो अच्छा है। मोहब्बत की सज़ा तो जहन्नुम से बत्तर है, अब तो बस मौत ही मिल ज...
आंसू
कविता

आंसू

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** प्रिय, आंसुओ को बहने न देना! जब कभी मन भर आये, रख सिर अपनो के कांधे, मन को हल्का कर लेना,.... आंसुओ को बहनें न देना!.... सुख के दिन सदा न रहते, दुख सबके जीवन में आते, दिल को "आह" न कहने देना,.... प्रिय, आंसुओ को बहने न देना!.. जब रिश्तों की दीवार दरकती, साथ सदा कड़वाहट लाती, कटु वचनों को जब्त कर लेना,.... प्रिय, आंसुओ को बहने न देना!..... हृदय जब पीड़ा से भर जाये, और जब सहन न होने पाए, बन पर्वत खडी हो जाना,...... प्रिय, आंसुओ को बहने न देना!.... परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रका...
सुमिरन
कविता

सुमिरन

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** जिंदगी का क्या भरोसा ये किसी को पता नहीं मृत्यु अटल सत्य ये सब को पता। स्वस्थ मन तन मीठी वाणी अपनाकर तनाव को मस्तिष्क से परे कर दो पल आराध्य को याद करो। जीवन की दौड़भाग में ये कार्य भी उतना ही आवश्यक जितना माता -पिता की सेवा। क्योंकि इच्छाए अनंत होती हर कोई एक दूसरे से बड़ा बनना चाहता इस होड़ में उम्र गुजरती जाती बाकि रोजी रोटी की जुगाड़ में गुजरती। जीवन को पटरी पर लाना बीमारियों और महँगी शिक्षा से उभरना चाहता इंसान मगर ,फिर तनाव घर बसा लेता मस्तिष्क में। जीवन चक्र में उलझ कर भूल जाता इंसान आराध्य को याद करना किंतु विपत्ति में स्वतः याद आजाते अपने अपने आराध्य जिनका सुमिरन कुछ तो कम करेगा मस्तिष्क में तनाव। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल ...
सपने
कविता

सपने

सपना दिल्ली ******************** सपने देखना जितना सरल प्राप्त करना उन्हें कठिन है उतना ही। सपने को पूरा करने में करना पड़ता है, ख़ुद से संघर्ष होना पड़ता है परिवार के ख़िलाफ़ भी कभी ठोकर खाकर गिरना भी पड़ता ख़ुद को हिम्मत देकर, ख़ुद ही संभलना पड़ता। नाकामयाबी पर लोगों के कड़वे वचन, अमृत समझ पीना पड़ता। फिर भी अपने सपने को पूरा करने की मन में आस अभी बाकी है... अपनी कामयाबी दिखाना, अभी बाकी है। मेरी नाकामयाबी के जो क़िस्से सुनाते फिरते हैं, उन्हीं के मुँह से वाहवाही सुनना अभी बाकी है। आँसू  के घूँट भी पीना है... नहीं छोड़ना है, संघर्ष का दामन सपनों को हकीकत में बदलकर कामियाब होकर दिखलाना अभी बाकि है। परिचय :- सपना पिता- बान गंगा नेगी माता- लता कुमारी शैक्षणिक योग्यता- एम.ए.(हिंदी), सेट, नेट, जेआर. एफ. अनुवाद में डिप्लोमा ( अंग्रेज़ी से हिंदी), पी.एचडी. (ज़ारी) साहित्यिक उपलब्धियां- १५ से अधिक राष्ट्र...
नारी है नारायणी
कविता

नारी है नारायणी

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** नारी है नारायणी, नारी नर की खान, नारी से ही उपजे नर, ध्रव प्रहलाद समान। घर परिवार का सबका, रखती ध्यान अनन्य गुणों की खान। बंधनों के निबद्ध भावनाओं की स्वतंत्र, अभिव्यक्ति हैं नारी। कटीली नागफनी राहों मे गुलाब है नारी। सोच का आंकडा बनाना, जटिलताएं विवशताऐं, समाज की समस्याएं, रुढ़ी वादी परम्पराऐं, सब निभाती नारी। झरणें की मानिन्द शान्त, कितनी पीड़ाऐं सहती, है नारी। रिश्तों की परिधि में घिरकर सब कुछ, सहती है नारी। दुर्गा लक्ष्मी अहिल्या, सीता सावित्री मीरा, न जाने कितने रुप है नारी। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती...
तो कितना अच्छा होता
कविता

तो कितना अच्छा होता

दीवान सिंह भुगवाड़े बड़वानी (मध्यप्रदेश) ******************** इस संसार में कोई देश ना होता धरती सबकी माता, पिता अंबर होता ब्रह्मांड सारा एक ही परिवार होता सारा मानव एक साथ ही रहता। तो कितना अच्छा होता। इस पृथ्वी पर एक ही धर्म होता ना मंदिर बनता, ना मस्जिद बनता गुरुद्वारा और गिरिजा ना बनता संपूर्ण मानव प्रकृति पूजक होता। तो कितना अच्छा होता। इस धरा पर एक ही समाज होता ना अल्पसंख्यक, ना कोई पिछड़ा होता मनुष्य भी किसी को दुख न देता एक दूसरे का समझ रहा दुखड़ा होता। तो कितना अच्छा होता। मानव-मानव एक ही वर्ग मे रहता ना निम्न, मध्यम, ना उच्च वर्ग होता एक दूसरे का हमेशा सहयोग करता मानव-मानव के प्रति समभाव रखता। तो कितना अच्छा होता। दुनिया में धन दौलत ना होता तो कोई किसी का बेरी ना होता मानव एक दूसरे से घुलमिल रहता दुखों को सभी के मिलकर सहता। तो कितना अच्छा होता। इस संसार में भेदभाव ना होता ...
खामोशी और शब्दों का खेल
कविता

खामोशी और शब्दों का खेल

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** खामोश रहे फिर भी कहे, यह अजब खेल होता है, देख-देख इन नजारों को, दर्द में आंखें भिगोता है। दृश्य- १. लुट गया सुहाग अबला, मौन दर्द में वो रहती है, उसकी आंखें जगत को, कष्टों के आंसू कहती है। दृश्य- २. हार गया सैनिक युद्ध में, मौन अपने को छुपाता है, उसके दिल के शब्द ही, खामोश हाल बताता है। दृश्य- ३. मलयुद्ध लड़ा पहलवान, हार गया लगा एक दाव, लोग उसको निहार रहे हैं, खामोशी कहे डूबी नाव। दृश्य- ४. फेल हो गया मेहनत कर, खामोश है लगता है डर, आंखें उसकी बोल रही, कैसे जाऊंगा अपने घर। दृश्य- ५. मृत्यु शैया पर लेट रहा , खड़े परिजन चारों ओर, खामोश सभी कुछ कहे, नहीं दो प्रभु विपत्ति घोर। दृश्य- ६. अमीर स्वाद लेता मिठाई, गरीब की आंखें ललचाई, खामोश रहे फिर भी कहे, हमने बासी रोटी ही खाई। दृश्य- ७. बूढ़े को निकली लाटरी, खुशी के मारे हुआ मौन, धन देख उ...
मेरी बूढ़ी माँ
कविता

मेरी बूढ़ी माँ

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** कभी हँसता खेलता बचपन था उनका भी सखि हर विपता से दूर बिन चिंता के उनके थे लम्हें सखि समय होता है बहुत ही बलवान कभी-कभी सखि वक्त ने ली करवट व्याह हुआ दुल्हन बनी मेरी बूढ़ी माँ ससुराल में पाई गईं सबसे बड़ी छोटे थे देवर और ननदें सखि फिर भी नहीं घबराई घर को लेकर सास संग वो चली सखि फिर वो दिन भी आया उन्हें माँ बनने का सौभाग्य मिला सखि जिसमें उन्होंने ढूँढ़ा अपना बालपन जब माँ बनी मेरी बूढ़ी माँ जीवन के पन्ने पलटे और वो बन गईं चार बच्चों की माँ सखि पालन-पोषण किया सबके व्याह भी रचाए उन्होंने सखि उस पर विधाता को भी दया ना आई उनपर सखि सुहाग छूटा और पिता का साथ छूटा विधवा बनी मेरी बूढ़ी माँ जिन्दगी अब भी वही है नाती, पोते हैं पर कभी-पिता की कमी भी खलती है सखि पिता की पेंशन है हर सुख से लदी है पर तन्हाई उनके साथ है सखि कभी वो (पिता) याद आए तो...
ढिलाई बनी बुराई
कविता

ढिलाई बनी बुराई

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** बचपन की ढिलाई ने जीवन राह बताई सबको ही सिखलाई,कितनों ने अपनाई। समयचाल ने कर्म ज्ञान महिमा समझाई बेफिक्री लापरवाही ने निज सूरत दर्शाई परिणाम साक्षी खुद की कुशल चतुराई बचपन की ढिलाई ने जीवन राह बताई सबको ही सिखलाई कितनों ने अपनाई। समझदार को इशारा या चपत चिपकाई मानव चले यथेष्ट अथवा हार गई खुदाई भ्रमित परिवार चुकाता जिसकी भरपाई बचपन की ढिलाई ने जीवन राह बताई सबको ही सिखलाई कितनों ने अपनाई। बिन पैरों चलकर सच बन जाए वरदाई सच सुन पाने का साहस सत्व सुखदाई बुराई रूपी रावण का अंत करे अच्छाई बचपन की ढिलाई ने जीवन राह बताई सबको ही सिखलाई कितनों ने अपनाई। श्रेष्ठ मार्ग में निरंतर मिलती है कठिनाई प्रभु 'राम-कृष्ण' जीवन झलक प्रभुताई दर द्वार के दामन दहके दारुण हरजाई बचपन की ढिलाई ने जीवन राह बताई सबको ही सिखलाई कितनों ने अपनाई। कहा सुना 'समरथ क...
घर
कविता

घर

संजय जैन मुंबई ******************** न गम का अब साया है, न खुशी का माहौल है। चारो तरफ बस एक, घना सा सन्नाटा है। जो न कुछ कहता है, और न कुछ सुनता है। बस दूर रहने का, इशारा सबको करता है।। हुआ परिवर्तन जीवन में, इस कोरोना काल में। बदल दिए विचारों को, उन रूड़ी वादियों के। जो घरकी महिलाओं को, काम की मशीन समझते थे। और घरके कामो से सदा, अपना मुँह मोड़ते थे।। घर में इतने दिन रहकर, समझ आ गये घरके काम। घर की महिलाओं को कितना होता है काम। जो समयानुसार करती है, और सबको खुश रखती है। पुरुषवर्ग एकही काम करते है, और उसी पर अकड़ते है।। देखकर पत्नी की हालत, खुद शर्मिदा होने लगा। और बटाकर कामों में हाथ, पतिधर्म निभाना शुरू किया। और पत्नी का मुरझाया चेहरा, कमल जैसा खिल उठा। और मुझे सच्चे अर्थों में, घरगृहस्थी समझ आ गया।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं...
मां
कविता

मां

डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, (राजस्थान) ******************** मां की परिभाषा संसार। ममता ईश्वर का आकार। मां करती जीवन साकार। बिन तेरे यह जग बेकार। मां ईश्वर का अहसास, जन्नत होता मां का प्यार। मां..... मां बिन प्रभु भी लाचार। चुकता नहीं मां का उपकार। मां खुश होती है, जग में जीवन अपना वार। मां..... मां अनगिनत तेरे प्रकार। तूं ही दुनिया की सरकार। भिन्न नहीं ईश्वर से मां, बनता नहीं बिन मां संसार। मां..... संतान में मां होती संस्कार। मां ही जग की तारनहार। प्रकृति संवारने में होती, ईश्वर को मां की दरकार। मां की परिभाषा संसार। ममता ईश्वर का आकार। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौ...
आधुनिक मानव
कविता

आधुनिक मानव

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** पूर्व मानव समाज में एकता गाव-गाव घर-घर रहे भाय, दादा बाबा के समय में पिता जी अकेले कमाय। एक बड़ा परिवार का खर्चा पिता जी के कमाने से चल जय। एक दूसरे के दुख-सुख को रहे मिल-जुल बटाय। दस पंद्रह सदस्यों का भोजन एक जगह रहे पकवाय। कृषन सुदामा के बचपन के मित्रता को कभी नहीं दिये भुलाय। द्वारिकाधीश होने पर भी सुदामा को लिए गले लगाय। आधुनिक मानव तुने ये मानव समाज दिये कैसा बनाय। आधुनिक मानव कितना मतलबी हुआ जाय। अपने बड़े-बड़े घर को दिये तुने चिड़िया का घोसला बनाय। बिन स्वार्थ के कोई किसी का हाल-चाल भी न पुछे भाय। आधुनिक मानव तू कितना मतलबी हुआ जाय। माँ-बाप को तूने क्यो दिया भूलाय। जो माँ-बाप तुम्हे बड़ी मेहनत से पढ़ाय। पल भर में तुमने क्यो दिये भूलाय। मानव तुने आधुनिक मानव समाज ये कैसे दिये बनाय। एक-दूसरे मित्र की मित्रता को दिये...
जाता लम्हा
कविता

जाता लम्हा

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** जाता लम्हा मेरे लिये रूक जा कुछ बात मेरे से भी कर जा सदियों से इंतजार किया जिसका चांदनी रात मे अमृत बरसा कर जा दिल का इरादा चाॅद भी जान रहा सितारो की बारात ले कर जा समुद्र की लहरे शहनाई बजा रही मौजे अपनी जगह नृत्य कर जा साहिल ने भी देखो करवट बदली ए पलों आज उनको मिला कर जा कभी के बे कशी में जीये जा रहे है बारात फूलों की मोहन सजाकर जा परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीयहिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं,...
गाँव की खुशबू
कविता

गाँव की खुशबू

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** गांँव: सोंधी-सोंधी माटी की खुशबू! सुरम्य हरियाली बिखरी चहुँओर भू!! भोर की लाली क फैला है वितान! कंधे पर हल रखकर चल पड़ा किसान!! शीतल सुरभित मंद पवन मन हरसाय! प्रदूषण मुक्त वातावरण अति भाय!! अमराई में कूके विकल कोयलिया ! कामदेव-बाण-सी आम्र मंजरियांँ !! अनगिन सरसिज विहंँस रहे हैं ताल में!! सारा गांँव गुँथा सौहार्द्र-माल में!! खेतों-झूमे शस्य-श्यामल बालियाँ ! खगकुल-कलरव से गुंजित तरु डालियाँ!! पक्षियों का कूजन हर्षित करता हृदय! बैलों की घंटियों की रुनझुन सुखमय!! नाद पर सहलाता होरी बैलों को! चाट रही धेनु मुनिया के पैरों को!! चूल्हे पर पकती रोटियों की महक! सबके मुखड़े पर पुते हर्ष की चमक!! यहांँ सभी उलझन सुलझाती चौपाल! हर बाला राधा हर बालक गोपाल!! मर्द गाँव का सिर पर पगड़ी सजाए! और आंँचल में हर धानी मुस्काए!! लज्जा की लुनाई में नारी लि...
स्त्री….. तुम हो
कविता

स्त्री….. तुम हो

सुनीता पंचारिया गुलाबपुरा (भीलवाड़ा) ******************** घर आंगन की दहलीज में, पूजा घर की महक में, तुम हो ....... रसोईघर के स्वाद में, बर्तनों की खन -खनाहट में, तुम हो.... भोर का सूर्य, सांझ का तारा, तुम हो ...... बगिया का महकता फूल, और फूल की खुशबू, तुम हो......... निर्झर झरनों में, नदियों की कल -कल में तुम हो.... बाल मन की किलकारियो में, बुजुर्गों के अंतर्मन में तुम हो .... बहनों का दुलार, भाइयों का रक्षा सूत्र, तुम हो...... ममता की छाँव, और प्यार की आस में तुम हो....... मान मर्यादाओं में, विचारों व संस्कारों में, तुम हो ....... संगीत के सुरों में, वायु के झोंकों में, तुम हो........ होली के रंगों में, विजय की लक्ष्मी, तुम हो..... गौतम की यशोधरा, और राम की सीता, तुम हो...... क्योंकि ....................... मां में ............ बहन में ...... बेटी में ....... बहू में ......... पत्नी में ....
कर्मो का हिसाब है जिदंगी
कविता

कर्मो का हिसाब है जिदंगी

मनीषा जोशी खोपोली (महाराष्ट्र) ******************** कभी-कभी उदासी की, आग है जिदंगी। कभी-कभी खुशियों का, बाग है जिदंगी । हँसता और रूलाता, राग है जिदंगी। खट्टे-मीठे अनुभवों, का स्वाद है जिदंगी। चंद लम्हों को पाने की होड़ है जिदंगी। रिश्तों में, एक खूबसूरत मोड़ है जिदंगी। कोरे कागज पर लिखी, किताब है जिदंगी। प्यार का एक महकता गुलाब है जिंदगी। जागी आंखों का एक ख्वाब है जिंदगी। अपने किऐ हुए, कर्मो का हिसाब है जिदंगी। परिचय : मनीषा जोशी निवासी : खोपोली (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंद...