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कविता

राखी
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राखी

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** आषाढ़ की बादली, सावन की रिमझिम सी, नेह सिंचित राखी लिए, बहिन छबीली आई। चमकीली रेशम की डोरी, भाव जड़ी माणिक, वात्सल्य की बहती गंगा, रिश्तों के सागर आई। भाई बहिन के प्रेम की, नन्हीं राखी प्रति छाया, अमर आत्मिक गाथा, सुख-दुःख की यह पुरवाई। संकट से जब घिरी बहिन, तो भाई बना रक्षक, आन पड़ी जब भ्राता पर, बहिन फ़र्ज़ निभाई। खुशियों की सौगात, अपनों की मिठास राखी, अटूट बंधन नेह समरस, वचन मोली कहलाईं। पंख पैर में लगा आत्मजा, बाबुल के घर पहुंचे, भर - भर आंगन निरखती, प्रीत नैहर की पाई। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भ...
मेरे पापा
कविता, बाल कविताएं

मेरे पापा

रीति सिन्हा हाजीपुर ******************** कहो अगर गुड़िया लाने को, ले आते वो पूरी दुकान। मेरे लिए जादूगर है वो और मैं हूँ उनकी जान। सुबह में काम पर जल्दी जाते रात को देर से लौट के आते। खून पसीना करके एक, घर को क्या वो खूब चलाते। सारे सपने भूल के अपने, सपनों से बढ़कर है अपने। वही तो हैं घर का रखवाला, उन्हीं ने तो घर को सँभाला। अपने दर्द का जिक्र न करते, परिवार की फिक्र हैं करते। मुझे जरा सी चोट लगे तो, पापा कच्ची नींद में सोते। माँ की आँखें बरबस रोती, पिता अश्रु को पी जाता है। माँ का नेह सभी को दिखता, पिता भी तो छुपकर रोता है। परिचय :-  रीति सिन्हा निवासी :  हाजीपुर शिक्षा : संत पाॅल्स हाई स्कूल कक्षा - 6 घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि ...
ख्वाब अधूरे रह जाते है
कविता

ख्वाब अधूरे रह जाते है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** इस जीवन के आपाधापी में कितने गलती और माफ़ी में सपने ख्यालो में सज पाते है कुछ ख्वाब अधूरे रह जाते है अपना अब कोई नहीं होता है आँखे बरबस ही अब रोता है अपने सब बेगाने हो जाते है कुछ ख्वाब अधूरे रह जाते है इस जगत की जद्दोजहद में कोई हद और कोई बेहद में कैसे कब सफल हो पाते है कुछ ख्वाब अधूरे रह जाते है एक मिट्टी के घरौंदा के लिये कुछ दिल की चाहत के लिये अपनों को भी भूलाये जाते है कुछ ख्वाब अधूरे रह जाते है कोई कहाँ जग में सदा रहेगा अपनी बीती किस से कहेगा राज सीने में दफनाये जाते है कुछ ख्वाब अधूरे रह जाते है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्षक शिक्षा : बी.एस.सी.(बायो),एम ए अंग्रेजी, डी.ए...
कलम का सिपाही
कविता

कलम का सिपाही

शैल यादव लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज) ******************** जन्म इकतीस जुलाई अट्ठारह सौ‌ अस्सी। जन्मस्थल उत्तर प्रदेश के लमही जिला काशी।। माता‌ थी आनंदी पिता थे अजायब राय। धनपत राय बचपन का नाम उर्दू में नवाब राय।। अमृत राय पुत्र का नाम पत्नी का शिवरानी। लिखकर चले गए लगभग तीन सौ कहानी।। कहानियों का संग्रह है 'मानसरोवर' नाम से। प्रसिद्धि उनकी विश्व में लेखन के काम से।। बनारस से निकालते थे वे पत्रिका 'हंस'। लेखन में अब तक चल रहा है इनका वंश।। 'बड़े भाई साहब' पढ़ा पहुंचे जब अष्टम् में। दो बैलों की कथा पढ़ी आ गये जब नवम् में।। फटे जूते के बहाने मौका मिला दशवीं में। ईदगाह पढ़ने का मौका मिला ग्यारहवीं में।। 'प्रेमचंद घर में', 'कलम का सिपाही' की कहानी। पत्नी और पुत्र ने लिख डाला उनकी जीवनी।। गद्य की विधाओं में उनकी बहुत पकड़ थी। नम्र थे विनम्र थे ‌उ...
विश्वगुरु
कविता

विश्वगुरु

सूर्य कुमार बहराइच, (उत्तर प्रदेश) ******************** शर्म हुई बेशर्म लोक हुआ शर्मशार। लोक-लाज लज्जित हुई फिर भी इज़्ज़तदार। यही तो मर्म हमारा।। धर्म-सुख की चाह में हिन्द का बण्टाधार। बन गयी पहचान हमारी नफरत की झंकार। यही वसूल हमारा।। हमें भारत है प्यारा।। वैष्णवी हो गये राम जी, शंकर शैव समाज। टुकड़े-टुकड़े बांट रहे हैं, नेता ग़रीबनवाज़। यही है रीति हमारी और हम सब पर भारी।। यही सुकृत्य हमारा।। हमें भारत है प्यारा।। नफ़रत से नफ़रत मिटे और दंगे से दंगा। खुल कर करें सियासत अब होकर नंगम -नंगा। मणिपुर जैसे मुद्दों पर बन जाएं हम अंधा। सनातन धर्म हमारा हमें प्राणों से प्यारा। गाँधी थे अधनंगे हम होंगे पूरा नंगा। उनसे आगे जाना हमको, सब हो जाए चंगा।। यही है कर्म हमारा हमारा हिन्द है न्यारा। नैतिकता-मर्यादा का जब कोई करे उल्लंघन। नेता-नेता कहने ...
पक्षियों का सुखी संसार
कविता

पक्षियों का सुखी संसार

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** ये पक्षियों का अपना जीवन जीने की अपनी इनकी शैली कितनी सूंदर कितनी होती अलबेली निर्भरता बिन खुद खुशियों में बीतती पशु पक्षियों की कार्यशैली करते काम वही जिनमें लगता आराम घोंसला स्वयं बनाते एक एक पत्तियों तिनखे चुगने को निकल जाते भोर में शाम तक ये प्यारे न्यारे पक्षी अपना काम जिमेवारी से स्वयं निभाते किसी को किसी से नहीं होता भरोसा खुद घरौंदा बनाने निकल जाते बच्चो को पहले खिलाते जुगाड़ में दूर दूर तक जाकर उदरपूर्ति के जुगाड़ में उड़ जाते पक्षियों की अलबेली दुनिया शांति सुख से जीवन बिताते पेड़ पर रहने का बसेरे एक एक तिनका चुगकर मुहं में लपेट लपेटकर अपना आवास बेरोकटोक बनाते किसी पर निर्भरता नहीं ये पक्षियों का संसार हंसते हंसते जिंदगी जीना हमको सिखलाते हरे भरे घने जंगलों पेड़ो पौधे में चिंतामुक्त ये...
तेरी शहादत अमर रहेगी
कविता

तेरी शहादत अमर रहेगी

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** जब तक अर्श-जमी रहेगी, तेरी शहादत अमर रहेगी। होंगे चर्चे तुम्हारे ही दर-दर, हस-हस शूरता समर सहेगी।। फ़िर होगा न कारगिल-सा, छल-छदम भरा संग्राम। मुस्तेद खड़े प्रहरी सीमा के, हो निर्भय अविचल अविराम।। भारतीय वीर बांकुरें पलते, पल-पल तूफ़ानी आगोश में। लेगा न प्रतिपक्षी फ़िर पंगा, आकर कभी क्षणिक जोश में।। सैंकड़ों शहीदों की कुर्बानी, नही,व्यर्थ जाने दी हमने। ख़ून का बदला सिर्फ़ ख़ून, कुछ को फ़िर मारा ग़म ने।। कारगिल विजय दिवस पर, है सादर नमन तुम्हें हमारा। अमर रहेगा बलिदान यह, रहेगा गर्वित भारत प्यारा।। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविता...
दिलवाले बहुजन
कविता

दिलवाले बहुजन

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** गा खेल कूद या नाच, भरपूर समय है तुम्हारे पास, जगराता कर, उपवास रह या महीने भर कांवड़ उठा, मस्तिष्क में सिर्फ इसी बात को बिठा, यहीं सब तो कर सकते हो, यहीं तो सबसे महत्वपूर्ण प्रतियोगी परीक्षाएं हैं, पूरे समाज को यहीं सब करने की आपसे अपेक्षाएं हैं, बरसते फूलों का आनंद लीजिए, घोर आस्थावान होने का परिचय दीजिए, पढ़ाई लिखाई की क्या जरूरत है, देखो भंडारे कराने की कब मुहूरत है, डॉक्टर, इंजीनियर,कलेक्टर, या कोई भी नौकरी करने की, वकील, न्यायाधीश बनने की, बताओ भला आवश्यकता ही क्यों है, खुश रहो भले मानुषों प्राचीन काल से तुम्हारी स्थिति ज्यों की त्यों है, बिजिनेस करने, धंधा करने, विधायक, सांसद, मंत्री बनने, या सत्ता हासिल करने का झंझट भूलकर भी मत लेना, देने वालों में से हो हमेशा दूसरों को ही अपना हिस्...
शब्द
कविता

शब्द

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** १८ दिनों के संग्राम ने द्रौपदी को ८० वर्ष का कर दिया ! द्रौपदी कृष्ण से लिपट कर रो पड़ती हैं, कृष्ण उनको ढाढस नहीं बंधाते रोने देते हैं, द्रौपदी का दिल डूब रहा है, उसके दिल की व्यथा आंसुओ में बह रही है। बोल पड़ती हैं, मैंने ये कदापि नहीं सोचा था, केशव समझा रहे हैं, नियति क्रूर भी होती है, वो हमारे सोचने से नहीं चलती हमारे शब्द भी उसका निर्धारण करते हैं। तुम्हारा प्रतिशोध तो पूर्ण हुआ कौरवों का विध्वंस हुआ।। द्रौपदी पूछ पड़ती है केशव से क्या विनाश का कारण बनी मैं?? या विनाश लीला की उत्तर दाई हूँ?? नही हो इतनी महत्वपूर्ण तुम, क्रूर बनी परिस्थितियां, होती दूरदर्शी तुम जो बदली होती स्थितियाँ, नहीं पाती घोर कष्ट, यातना और अपमान!! क्यों मौन रही जब कुंती ने तुम्हें पांच पतियों ...
चुप्पी तोड़नी होगी
कविता

चुप्पी तोड़नी होगी

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* हमें चुप्पी तोड़नी होगी उन लोगों के लिए जो हांक दिए जाते हैं सांप्रदायिकता की आग में, जिन्हें धर्म के नाम पर तो कभी भाषा के नाम पर कभी क्षेत्र के नाम पर लड़ाया जाता है . जो लगातार उपेक्षित हैं विकास की दौड़ में जो कैद है अंधविश्वास की जंजीरों में जिनकी आंखों में बंधी है अज्ञानता की पट्टियां जिनकी आंखों में गुम हो रहे हैं सपने जिनकी स्वपनहीन आंखों में भर दी गई है नफरतें हमें चुप्पी तोड़नी होगी उन लोगों की जो दबंगों के आगे चुप है उंची नीच की दीवारों में बंद है हमें चुप्पी तोड़नी होगी उन कन्या भ्रूण के लिए जो मार दी जाती हैं गर्भ में उन बेटियों बहू और माताओं के लिए जो हो रही है मानसिक-शारीरिक प्रताड़ना और अपने परायों से बलात्कार की शिकार. हमें चुप्पी तोड़नी होगी सभ्यता...
निर्धनता है मन का भाव
कविता

निर्धनता है मन का भाव

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** स्वाभिमानी जन श्रम का मान किया करते है जो न श्रम का सम्मान करें निर्धन वही हुआ करते हैं। नहीं भावना हो जिनमे न श्रम का वो मान करें जो शब्दों के बाण चलाते अंतस् उनके रीते रहते हैं। श्रम करना ही मानवता श्रम का फल मीठा मीठा मन का श्रम, तन का श्रम पुष्ट रहे सारा तन-मन। कुटुंब, समाज या मानवता हित जो भरपूर परिश्रम करते हैं कड़ी धूप या जल प्लावन हो स्वाभिमानी वो पूज्य हुआ करते हैं। भीषण लू गर्मी में स्वेद बहा कर घर बाहर भोज्य बनाकर महल अटारी सबको दिलवा कर सबको तृप्त किया करते हैं। जिसकी जो सामर्थ्य जिसको जो आता है उसमें अपना सर्वस्व लुटाकर वो जन मानस को तुष्ट किया करते हैं मान सम्मान के असली अधिकारी वो हर रोज़ हुआ करते हैं। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलि...
सावन का महिना
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सावन का महिना

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** सावन का महिना रिमझिम-रिमझिम देखो बरसे मेघ, पिया प्रियतम देखो झूला झूले हरियाली ओढ़े वन उपवन, फूलों से महके चमन, पपीहा करे वन मै शोर, सावन की उमंग नाचे देखो उन्मद मोर, रिमझिम-रिमझिम सावन की फुहार, कोयल का देखो है शोर, उमड-घुमड कर बरसे बादल, कान्हा के होठौ पर मुरली तान सुनाये मीठे बोल। सखिया देखो भई बावरी, डोलत देखो हे मधुबन, काना की बंशी की धुन पर नाचत देखो ब्रजबाला सब, देखो वन मै झूले राधा संग कृष्ण। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर...
ये पब्लिक है
कविता

ये पब्लिक है

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** ये पब्लिक है कुछ नहीं जानती है, हवाबाज जादूगर जो दिखा दे उसे ही सब कुछ मानती है, कोई कुछ व्हाट्सएप पर फेंक दिया, फेसबुक पर टैग किया, ट्विटर पर बकलोली की, किसी ने हंसी ठिठोली की, और ये पब्लिक मान जाती है, सभी झूठों को सही मान जाती है, आई टी सेल वालों की बातें बन ज्ञान सुहाती है, अब कैसे कहें कि ये पब्लिक है सब जानती है, प्राचीन काल से ही सभी झूठ को सच मानती है, यदि ऐसा है तो क्यों है कभी नहीं लगाती तर्क, मीठे,मनभावन और दिव्य लगते हैं सारे के सारे कुतर्क, जब तक गप्पों को उचित तर्कों से काटेंगे नहीं, सच को वैज्ञानिकता के आधार पर अलग कर छांटेंगे नहीं, तब तक एक ही बात कहता रहूंगा, ये पब्लिक है कुछ भी नहीं जानती। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र...
समय ही समय पर आदमी को नाम देता है
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समय ही समय पर आदमी को नाम देता है

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** समय ही समय पर आदमी को नाम देता है। समय ही आदमी को, कर गुमनाम देता है।। वक्त बदले अच्छा तो, तुम मगरूर मत होना। आदमी को गिराता वक्त, बहुत गरूर का होना।। समय की ताकत समझो, ये कर नीलाम देता है। समय ही समय पर आदमी को नाम देता है।। कुछ लोग वक्त के साथ, अभिमानी हो जाते हैं। कुछ लोग समय के अनुभव से, ज्ञानी हो जाते हैं।। जो वक्त से सीखते, वक्त ही उनको ईनाम देता है। समय ही समय पर आदमी को नाम देता है।। वक्त में ताकत है, हाथों की लकीर बदलने की। समय में शक्ति है, आदमी की तकदीर बदलने की।। समय हीआदमी को, पहचान और सलाम देता है। समय ही समय पर आदमी को नाम देता है।। समय का नियम कि, समय कभी रुकता नहीं है। समय की मिसाल है कि, कभी झुकता नहीं है।। समय अपने अनादर पर, नाम बदनाम देता है। समय ही समय पर आदमी को नाम देता है।।...
रखें हौसला हम जीवन में
कविता

रखें हौसला हम जीवन में

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** मानव जीवन कठिन पहेली, नहीं समझ में आती। सारी दुनिया की आबादी, समझ नहीं क्यों पाती? जीवन में बाधा आ जाना, सहज सरल होता है। बुद्धिमान लड़ता बाधा से, पर कायर रोता है। बिना समस्या वाला जीवन, कभी मान ना पाता। पल-पल घिरा समस्याओं से, कहते जिसे विधाता। परेशानियाँ विपदा आना, जीवन का हिस्सा है। बिना बुलाए आ जाती हैं, यह सच्चा किस्सा है। सम्मुख देख समस्या मानव, पल में घबरा जाते। बुद्धिमान जन इनसे लड़कर, सदा सफलता पाते। डटकर लड़ें समस्याओं से, समाधान पाएंगे। रखें हौसला हम जीवन में, मंजिल पा जाएंगे। ऐसी नहीं समस्या कोई, मिल न सके हल जिसका। भला चढ़े वह क्या पर्वत पर, लगे जिसे वह खिसका? ढूढें समाधान दृढ़ता से, कर विचार निज मन में। कदम सफलता उनके चूमे, पग-पग पर जीवन में। चाहे जैसी द...
श्री गुरु पद पंकज नमन
कविता

श्री गुरु पद पंकज नमन

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** बड़ा कठिन सदगुरु बिना, मिलना जग में नव ज्ञान। जो करे कृपा गुरुवर अगर, बन जाता अविज्ञ गुणवान।। प्रथम गुरु कहलाई जाती, निज जननी ही सदा जग में। चुरा ब्रम्हा से खुशियां अगनित लिख देती संतति के भग में।। माटी भी उगलती है मोती, पड़ जाती है जब गुरु दृष्टि। कण-कण कुंदन बन जाता, पग-पग प्रमुदित होती सृष्टि।। कैसी भी आएं बाधा पथ पर, आसा करे गुरुवर की सीख। कलियों से महके स्वप्न-सिंदूरी, ऐतिहासिक बन जाए तारीख।। छल-बल, घृणा, द्वेष मिटाकर, सत्य-न्याय, दया-धर्म प्रचारे। मुखरित हो मानवता जग में, प्रतिपल यही जयघोष उचारे।। गुरु से ही बड़ते हैं यश-वैभव, करते हैं गुरु ही सौभाग्य सृजन। गोविंद की जो कराए अनुभूति ऐंसे, श्री गुरु पद पंकज नमन।। परिचय :-  गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोर...
शिकायत
कविता

शिकायत

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** क्या बादल इंसानों से बात नही करते बेचैन निगाहे ताकती बादलों को। मन ही मन दुआएं माँगती ऊपर वाले से बादलों से कहे की बरस जा काले घन को देख मयूर नाचता पीहू पीहू बोल मनाता। बादलअपना अभिमान दुनिया को दिखाता गर्जन कर बिजलियां चमकाता। ये देख रहवासी बरसने की अर्जियां वृक्षों -हवाओं से मौसम की कोर्ट में लगाने लगे। वृक्षो ने खिंचे बादलों को अपनी औऱ हवाएं टकराने लगी बादलों को आपस में। वृक्ष ,हवाओं ने छेड़ दिया युध्द बादलों से अभिमान हुआ खत्म झुकना ही पड़ा आखिर बादलो को। खेतों की फसलों का ग़ुस्सा हुआ थम। सब ने मिलकर की बादलों पर कार्यवाही जब भी घुमडो हमारे सर पर बरसना जरूर। अबकी बार ऐसा नही करोगे तो घन श्याम से करेंगे तुम्हारी शिकायत। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन...
काले-काले जामुन
कविता

काले-काले जामुन

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** खट्टे मीठे काले जामुन, बच्चे बूढ़े सबको भाये जामुन, काले काले गोल मटोल, फायदे करते है भरपूर। ब्लड प्रेशर को कंट्रोल है करते, मोटापे को दूर है करते हैं, चेहरे को चमकाये जामुन, फाइबर से भरपूर हैं जामुन। कोई खट्टे कोई मीठे, खाते ही दाँत कटकटाये जामुन। खाते ही देखो आँख मिचते, आँख मारते हम हे जामुन। भला लगे चाहे बुरा लगे, बस जामुन तो बस होते है जामुन। देखो खट्टे खट्टे जामुन। मीठे जामुन गुटली कड़वी, चूस चुस कर खाते जामुन। मौसम का एक पल है जामुन, स्वास्थवर्धक होते हे जामुन। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय श...
गांव का पेड़
कविता

गांव का पेड़

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** रह गया गांव का पेड़ वहीं उसी जगह गांव में, बस, ट्रक, ट्रेन, नाव व जहाज की सफर कर फल पहुंच गए शहर गगनचुंबी कंक्रीटों के छांव में, गांव के पेड़ आज भी कर रहे अपने वादे पूरे, नहीं तोड़ा भरोसा, नहीं छोड़ रहे अधूरे, तोड़ रहा फल बच्चा, बुजुर्ग, किसान, मजदूर और पल-पल रखवाली करती महिलाएं, डंटे रह दूर करती वृक्ष की बलाएं, जो सिर्फ अकेले नहीं खाते कोई फल, मिलकर खा रहे आज व कल, जो लेकर चंद कागज के टुकड़े शहर वालों के जायका व तिजारत के लिए, जो महसूस नहीं कर पाते थोड़ा सा अपनत्व और लगाव, फिर पका डालते है रातों रात रासायनिक क्रिया या हत्या कर उस फल की, फिर इंतजार करते हैं तिजारती कल की, चिंता करते हुए खुद की, बीबी बच्चों व आलीशान महल की, जी हां पेंड़ कभी नहीं जाते शहर और भेज देते हैं अपने जि...
फुहारों के बीच
कविता

फुहारों के बीच

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रिमझिम, रिमझिम फुहारों के बीच मदमाती, इठलाती बयार बह रही हरीतिमा धरा को सहलाती नजर आती। पाखी पौधों, पौधों पर मंडराती। उमड़ते-घुमड़ते कजरारे बादलों के बीच विद्युलता चमक, चमक अंधकार मिटातीं मानो वह चमक कर धरा की हरीतिमा निहारतीं पितृ, पृण पर पड़ी बूंदें धरा का अभिषेक करती। नदियां कलकल कर बहती तट बन्धन तोड़ उछल जाती आगे सागर में संगम की आतुरता नदी पर्वत चढ़ झरना बन बहती। चट्टानों से आहत होकर भी किसी रमणी के चरण धोती कहीं धरा की क्षुधा बुझाकर बीजाकुरण कर फसलें लहलहाती। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक सं...
वृद्ध हो रहा हूं …
कविता

वृद्ध हो रहा हूं …

रोहताश वर्मा "मुसाफिर" हनुमानगढ़ (राजस्थान) ******************** टूट रही है शाखें, झड़ रही है पत्तियां, धीरे धीरे; चेहरे पर उभरती झुर्रियां, आपस में लड़ रही है... होता शिथिल तन, पुनः बालक सा अब, समृद्ध हो रहा हूं। कांपने लगे हैं हाथ-पैर... हां! मैं वृद्ध हो रहा हूं।। कंघी केश बिखरने लगे हैं सफेद होना है नियम, धंसने लगी है आंखें भीतर, जड़ें मजबूती है छोड़ रही... उकेरे है जो साल मैंने जीवन की स्लेट पर, उनसे आज प्रसिद्ध हो रहा हूं। धीमी हुई चाल मेरी... हां! मैं वृद्ध हो रहा हूं।। धूंधला होने लगा है सवेरा, स्मृति अभी बदली नहीं, सावन सा योवन बीत रहा, आता जो बसंत की तरह... पल पल, लम्हा लम्हा बीते सूख रहा तना हरा, ठंडा मौसम सा घिरता... माह वो सर्द हो रहा हूं। झुकने लगी है भौंहें मेरी... हां! मैं वृद्ध हो रहा हूं।। परिचय :- रोहताश वर्मा "मुसाफिर" निवासी : गां...
राहु
कविता

राहु

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** राहु हूँ नई राह दिखता हूँ। पथ पर अग्रसर कर अपार सफलता दिलवाता हूँ। कर्म बुरे करते तो रोग, शत्रुता और ऋण बढ़ाता हूँ। शुभ कर्मो पर धनार्जन के नये मौके दिखलाता हूँ। शुक्र, शनि, बुध मित्रों संग मिलकर राज पाठ का अधिकारी भी बनाता हूं। १८ साल की महादशा में सब के रंग दिखलाता हूँ। तभी तो अपने रंग में रंगा रह कर कैपुट कहलाता हूँ। जापता जो नाम मेरा महादशा में उसके बिगड़े हर काम बनाता हूँ। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हि...
चाँद
कविता

चाँद

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** चौखट की ओट से जब तुम्हारी निगाहे निहारती लगता सांझ को इंतजार हो रोशनी का राह पर गुजरते अहसास दे जाते तुम्हारी आँखों मे एक अजीब सी प्रेम की चमक पूनम का चाँद देता तुम्हारे चेहरे पर चांद सी रोशनी तुम्हें देख लगता चांदनी भरा जीवन। चांद देखोगी तो मेरी याद आएगी जो जीवन और प्रेम का अदभुत समन्वय बन चांदनी की रोशनी में कर देगा तुम्हें मदहोश। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय ...
परिवर्तन का आगाज
कविता

परिवर्तन का आगाज

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** आओ सौपे तन-मन-धन और जीवन को नव प्रयत्न, नव सृजन और परिवर्तन को परिवर्तन ऐसा कि जिसमें असर हो प्रखर हो, परिवर्तन ऐसा कि जो यकिनन परिवर्तन हो परिवर्तन का आगाज हुआ वह हमसे दूर नहीं पर हमारे पास हुआ बालोद आयोजित समाजिक कार्यक्रम सफलता पूर्वक आगाज हुआ जहां विशाल जनसंख्या लिए सामाजिक बंधुओं का आगमन व जनहित सुकृत काज हुआ परिवर्तन जिसका आगाज़ हुआ जिस भांति विकट परिस्थितियों में भी राम दूत बनकर घर-घर जाकर समाजिक संगठन की महत्ता का संचार किया धीरे-धीरे लोगों में जागरूकता आई समाज को जागृत कर नई कीर्तिमान स्थापित करने का सर्वजन में आशा कि नई किरण छाई और फिर सबने मिलकर विचार किया समाज में क्रांति लाए कैसे ? संगठित समाज की महत्ता सब को बताए कैसे फिर मंनथन से निर्णय निकला जहां-तहां समाजिक बन्धु का निवास है ...
छाई हरियाली (सिहरी)
कविता

छाई हरियाली (सिहरी)

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** १ छाई हरियाली गाती गीत कोयल काली बरसे बदरा !! २ घिरी घटा लगती मोहक निर्झरिणी छटा उत्ताल तरंग !! ३ बहते निर्झर कली-कली मंडराए मधुकर महके प्रसून !! ४ रिमझिम-रिमझिम रही बरस बरखा रानी पानी-पानी !! ५ प्रकृति हरसाई दुल्हन बन धरा मुस्काई पल्लवित कानन !!! परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हम...