राखी
डॉ. भगवान सहाय मीना
जयपुर, (राजस्थान)
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आषाढ़ की बादली, सावन की रिमझिम सी,
नेह सिंचित राखी लिए, बहिन छबीली आई।
चमकीली रेशम की डोरी, भाव जड़ी माणिक,
वात्सल्य की बहती गंगा, रिश्तों के सागर आई।
भाई बहिन के प्रेम की, नन्हीं राखी प्रति छाया,
अमर आत्मिक गाथा, सुख-दुःख की यह पुरवाई।
संकट से जब घिरी बहिन, तो भाई बना रक्षक,
आन पड़ी जब भ्राता पर, बहिन फ़र्ज़ निभाई।
खुशियों की सौगात, अपनों की मिठास राखी,
अटूट बंधन नेह समरस, वचन मोली कहलाईं।
पंख पैर में लगा आत्मजा, बाबुल के घर पहुंचे,
भर - भर आंगन निरखती, प्रीत नैहर की पाई।
परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार)
निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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