चिड़ियों की चहचहाहट
संजय वर्मा "दॄष्टि"
मनावर (धार)
********************
बादलों की ओट में
खिला छुपा चाँद
पहाड़ों पर जाती पगडण्डी
मन आकाश में
चाँद के इंतजार में
घुप्प अंधेरा रात स्याही
विरहन सी।
पत्तो की सरसराहट
उल्लू की कराहती आवाजे
लगता मृत्यु
जीवन को गले लगाए बैठी
चाँद निकला बादलों से।
सूखे दरख्तो सूखी नदियों ने
ओढ रखा हो
धवल चाँदनी का कफ़न।
जंगल कम
नदियाँ प्रदूषित हो सूखी
मानों ऐसा लगता
मौत हो चुकी पर्यावरण की।
धरा से आँखे चुराता चाँद
छूप जाता बादलों की ओट
निंद्रा टूटी स्वप्न छूटा
भोर हुई उजाला आया
नई उम्मीदों से जंगल सजाने।
नदियों की कलकल
चिड़ियों की चहचहाहट ने दिया
पर्यावरण को पुनर्जन्म।
परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि"
पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा
जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन)
शिक्षा :- आय टी आय
व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग)
प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार प...