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कविता

साथ हर कोई नहीं देता
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साथ हर कोई नहीं देता

श्वेतल नितिन बेथारिया अमरावती (महाराष्ट्र) ******************** हकीकत को छिपा जाते हो हजार किस्से सुना जाते हो! कभी गुस्सा तो कभी प्यार यूँ नाज,नखरे उठा जाते हो! साथ हर कोई नहीं देता यहाँ उम्मीद सबसे लगा जाते हो! जो दिल ने चाहा हुआ कब फ़ज़ूल सपने सजा जाते हो! साथ जिसके हंसे जी भर के अब उसी को रुला जाते हो! परिचय :- श्वेतल नितिन बेथारिया निवासी- अमरावती (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३...
जीवन उत्सव
कविता

जीवन उत्सव

सपना दिल्ली ******************** जीवन उत्सव है सुख-दुःख का संगम.... दुश्मनी, जलन ऊंच-नीच की बात अकड़, जाति-पाति बन्धन से ऊपर उठकर प्रेम करके देखो जीवन उत्सव है। छोड़ कल की चिंता आज में जी बड़ी खुशियों के पीछे न भाग छोटी-छोटी खुशियां बटोर कर तो देखो जीवन उत्सव है। बड़ों का आदर छोटों से प्रेम सहारा बेसहारा का ज़रूरतमंद की मदद करके तो देखो जीवन उत्सव है। छोड़ मोबाइल, लेपटॉप चंद लम्हे अपनों के साथ कुछ अपनी सुनाएं कुछ उनकी सुनो जीवन उत्सव है। उगते सूरज की पहली किरण चांदनी रात चिड़ियों की चहचहाहट... सप्तरंगी दुनिया क़ुदरत की खोकर तो देखो... जीवन उत्सव है। परिचय :- सपना पिता- बान गंगा नेगी माता- लता कुमारी शैक्षणिक योग्यता- एम.ए.(हिंदी), सेट, नेट, जेआर. एफ. अनुवाद में डिप्लोमा ( अंग्रेज़ी से हिंदी), पी.एचडी. (ज़ारी) साहित्यिक उपलब्धियां- १५ से अधिक राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में सहभ...
मंगल प्रभात
कविता

मंगल प्रभात

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** प्राची का पथ लीप सहेली घर घर मे मंगल प्रभात हो। दीन दुखी नंगे भूखों के, खुशहाली मय दिवस रात हो। अरुण थाल रोली भर लावे, आंगन मे सब के बिखरावें रहे न कोई इस वसुधा पर हर घूघट में मुस्कुराहट हो। जन मे मंगल घर घर मंगल, मंगल मय जंगल मे मंगल प्रांची तुम से एक अर्चना? अरुणोदय खुशियां लुटात हो। घर घर मंगल प्रभात हो। जन मन मे उल्लास भरा हो, खिल खिल करती धाम घरा हो। अश्व जुते रथ भरा आ रहा, हर्ष हर्ष गम को मिटात हो घर घर मे मंगल प्रभात हो। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का ...
छठ व्रत करते है।
कविता

छठ व्रत करते है।

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** हे! सूर्य देव प्राणों के वेग हम प्रणाम करते है। छठ व्रत करते है। जीवन को तुम ही, प्रकाशित करते हो। चर-अचर जीवन का, तुम ही संचालन करते हो। जीवन को, ज्ञान और आशा से, परिभाषित करते हो। नित उठ हम आपका वंदन करते है। आभार व्यक्त करते है। तुम्हें प्रणाम करते है। छठ व्रत करते है। उर्जा का तुम स्रोत किरणों से, जगत को करते ओतप्रोत। नित-नित हम वंदन करते है। हम छठ व्रत करते है। रहे तुम्हारा आशीर्वाद यहीं शुभ मंगल गान करते है। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करक...
रहना मीत जहाँ, खुश रहना
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रहना मीत जहाँ, खुश रहना

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** मजबूरी से बँधा हुआ मैं बस इतना ही कह सकता हूँ, मेरी याद सँजोये मन में, रहना मीत जहाँ, खुश रहना।। कहना तो आसान बहुत पर क्या ऐसा कुछ हो पायेगा, जब कोई मुसकान चिकोटी काटे, कोई सो पायेगा; पावन अधरों के संगमतट पर जो किया आचमन हमने, मीता उसकी कसम तुम्हें है, रहना जहाँ, वहाँ खुश रहना!! मेरी याद सँजोये मन में रहना मीत जहाँ, खुश रहना!! माना इस समाज ने बाँधे अनगिन सम्बन्धों के बन्धन, जिनमें बँध कर, हृदय तड़पता, उन्मन रहता, करता क्रन्दन; पर सुधियों के चन्दन से मन के नन्दन वन को महकाये, हँसते-मुसकाते ओ मीता रहना जहाँ, वहाँ खुश रहना!! मेरी याद सँजोये मन में रहना मीत जहाँ, खुश रहना!! साथ तुम्हारे बीता हर पल, मेरे जीवन की थाती है, शेष बचे जो,ऐसे जैसे नेह बिना जलती बाती है; लोकलाज से बँधे हुये तुम भी ऐसा ही कुछ बोलोगे, मन में सौ तूफान ...
बचपन की शरारतें
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बचपन की शरारतें

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** अल्हड़ बचपन याद आता, जब करते थे कुछ शरारतें। भूल नहीं पाते उनको अब, वो बन चुकी हैं वो इबारतें।२। नंगे पैर, अर्ध नग्र बदन था, पतंग की पकड़ते थे डोर। देख देखके मात पिता का, मच जाता था जमकर शोर।४। कंचे खेलते, ताश खेलते, कभी भागते चिडिय़ा पीछे। कभी किसी से झगड़ा करे, गुरुजन पकड़ कान खींचे।६। झीरनी, खुलिया, टेम था, शरारत भरे सारे थे काम। उलहाना आता गन्ने तोड़े, कभी होता नाम बदनाम।८। खिलौने से खेला करते थे, दिनभर हंसते थे गली गली। क्या मनमोहक, बचपन था, लगती थी ज्यों फूल कली।१०। किसी की चोटी पकड़ते, कभी बहुत अकड़ते थे। कभी किसी बात लेकर, आपस में ही झगड़ते थे।१२। कभी घूसंड मारते देखे, कभी झूठ बोलते आगे। कभी किसी चीज उठा, कभी शरारत कर भागे।१४। नहीं डर था मारपीट में, झगड़ा करते पल में हम। कभी बेर तोड़ लाते थे, बातों में होता एक दम।१६...
चरैवेति चरैवेति
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चरैवेति चरैवेति

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** मत फड़फड़ा पंछी मर्जी उसकी ही चलेगी कर कोशिश भले ही थकहार हाथ ही मलेगी। तेज बहती हवा से तिनके बुलंदी पा जाते है थमते ही हवा का शोर जमीन पर आ ही जाते है। भरम में मत रह नादान कोई सम्बल दे जाएगा सिर पर रख पाव तेरे वो ऊपर चढ़ जाएगा। लेकर फूल अपने हाथ मे उससे मिलने क्यो जाएगा ऐसी क्या मजबूरी है तेरी जो बारम्बार मिलने जाएगा। तू तब तक ही मीठा है जब तक तुझ में रस है जब हो जाएगा खाली कहेंगे सब ये तो नीरस है। तेरे साथ सिर्फ तू है बात कड़वी पर सच है उतार फेंक फालतू बोझ यही रिश्तों का सच है। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर hindi...
दीपावली
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दीपावली

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** आजकल चहुँ ओर है चर्चा चली! आगई फिर प्रतीक्षित दीपावली! गृह सजे,आँगन हैं सज्जित सारे पथ-परिसर सुशोभित देख मन सबके प्रफुल्लित सज गए हैं सब मुहल्ले हर गली! आ गई फिर प्रतीक्षित दीपावली! हुए हैं दीपक प्रकाशित पूर्णतः तम है विलोपित व्याप्त है आलोक असीमित लग रही नगरी दुल्हनिया-सी भली! आ गई फिर प्रतीक्षित दीपावली! किसी ने क्रय की है वाहन किसी ने गृह लिया नूतन कोई लाया है सुसाधन वस्त्र सुन्दर क्रय करेगी श्यामली! आ गई फिर प्रतीक्षित दीपावली! दीप चमकेंगे क्षितिज तक प्रभा देगी नभ में दस्तक यत्न होंगे तम विनाशक जगमगाएगी अमावस साँवली! आ गई फिर प्रतीक्षित दीपावली! परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (ह...
जीत आसान और कठिन है हारना
कविता

जीत आसान और कठिन है हारना

दीवान सिंह भुगवाड़े बड़वानी (मध्यप्रदेश) ******************** जीत आसान और कठिन है हारना गिर कर उठना फिर संभल कर चलना खाकर ठोकरे भी तुम ना विचलना मुसीबतों में गिर कर भी तुम ना पिघलना। हालातों में इस कदर खुद को ढालना दृढ़ संकल्प आत्मविश्वास अटूट पालना बीच राह आए काटे तो तुम हटाते बढ़ना साथ ना देगा कोई भी खराब है जमाना। गर मिले हार तो भी तुम ना घबराना सोच सकारात्मक अपनी हमेशा रखना महत्वपूर्ण जितना है जहां में जीत जाना जरूरी है उससे भी अधिक कुछ सीख पाना। मिले ना जब तलक मंजिल चलते रहना कमजोरियां अपनी किसी से ना कहना शिक्षा ही जीवन का अनमोल है गहना रोशन कर जीवन,यह देगी हमें हार पहना। पसीने की बूंदों से अपने तुम खुद को सींचना रिवाज है यहां बढ़ते हुए को पीछे खींचना मंजिल भी मिलेगी "दिवान" पूरा होगा हर सपना लंबा सफर नापना,मगर कभी शॉर्टकट ना अपनाना। परिचय :- दीवान सिंह भुगवाड़े निवासी : बड़वा...
दीप जलायें
कविता

दीप जलायें

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** दीप जलाने का दिन आया, घर घर दीप जले ऐसा। दीप मालिका सजे सभी की, प्यार हिलोरें ले ऐसा। आओ ऐसा दीप जलायें, तम मिटे हमारे तन मन का, दीपशिखा की हर बाती से, जगमग हो मन हम सब का। राग द्वेष का कलुषित साया, छाये नहीं किसी जन में, ऐसा दीप जले मन प्रांगण, आलोक भरे हर जीवन में। तिमिर अमावस का छट जाये। दीपों की ऐसी ज्योति जले, बैर भाव को त्याग सभी के मन में करुणा का भाव पले। मन मंदिर रोशन हो जाये, आओ एक दीप जलायें हम, राह सुगम हो जीवन की, इक दूजे के हो जायें हम। परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप ...
मजबूरी या मंजूरी
कविता

मजबूरी या मंजूरी

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** तुझसे मिलना मिल के बिछुड़ना तेरे मेरे बीच की दूरी मजबूरी या मंजूरी हाथ थामना साथ निभाना फिर यूँ अचानक अकेला करना अपनापन पाने की तेरी मेरी ख़्वाहिश अधूरी मजबूरी या मंजूरी विचारों के जब मतभेद पनपते एक - दूसरे को है हम खटकते फिर भी आँखों में एक आस भरी मजबूरी या मंजूरी तू वह चाहे जो मैं ना चाहूँ तू ना चाहे जो मैं चाहूँ जीवन के इस कठिन सफर में कैसे होगी चाहत पूरी क्या कहूँ इसे निज स्वार्थ हेतु स्वयंनिर्मित संस्कारो की मजबूरी या मंजूरी? परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी र...
दीपो का त्योहार
कविता

दीपो का त्योहार

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** दीपो का मेरा त्योहार है रोशनी तेरी देख कर दीप जलते देख कर चेहरो पर मुस्कान है कितना प्यारा अपना त्योहार है दीपो का मेरा त्योहार है रोशनी तेरी देख कर चेहरो पर मुस्कान है रूप लक्ष्मी का देख कर कुदरत भी हैरान है सोने के जैसी चमक, हिरानी के जैसी चाल है अंधेरे घरो को करे जो रोशन खुद दीपक भी हैरान है भिन्न भिन्न रंग के टिमटिमाते दीपो को देख कर चेहरो पर मुस्कान है फूलो सी महक तेरी मधुर मुस्कान है दीपो का मेरा त्योहार रोशनी तेरी देख के दीप जलते देख के चहुँ ओर खीलते गुलदान है सारे जहा मे दीप के जैसा कोई त्योहार नही जिसने दिया है सब कुछ है तुझको मा लक्ष्मी का वो रूप है करते है यारो लक्ष्मीकी पूजा जीवन मे उसके कांटे नही दीपो का मेरा त्योहार है रोशनी तेरी देख कर दोप जलते देख कर 'मोहन' भी हेरान है परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नाराय...
पहाड़
कविता

पहाड़

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** पेड़ों की पत्तियां झड़ रही मद्धम हवा के झोकों से चिड़िया विस्मित चहक रही मद्धम खुशबू से हो रहे पहाड़ के गाल सुर्ख पहाड़ अपनी वेदना किसे बताए वो बता नहीं पा रहा एक पेड़ का दर्द लोग समझेंगे बेवजह राइ का पर्वत पहाड़ ने पेड़ो की पत्तियों को समझाया मै हूँ तो तुम हो तुम ही तो कर रही मौसम का अभिवादन गिरी नहीं तुम बिछ गई हो और आने वाली नव कोपलें जो है तुम्हारी वंशज कर रही आने इंतजार कोयल मीठी राग अलाप लग रहा वादन शहनाई का गुंजायमान हो रही वादियाँ में गुम हुआ पहाड़ का दर्द जो खुद अपने सूनेपन को फूलों की चादर से ढाक रहा कुछ समय के लिए अपना तन... परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व...
दीपावली आयी है
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दीपावली आयी है

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** दीपो का दिवाली आयी है, दीप जगमगाते दिवाली आयी है, मीठे मीठे मिष्ठान लेकर आयी है, लाल, पीले, हरे, नारंगी लेकर आयी है, धरती के मिट्टी से दीप जलाएंगे, दुनिया मे प्रेम का मिलन कराएंगे, चक-मक दीपों का त्यौहार आयी है, दीपों का पर्व दीपावली आयी है, फुलझड़ी, अनार, चिटपुटीया का पर्व आयी है, मोमबत्ती, रंग बिरंगे मिठाइयों का पर्व आयी है, आपस मे मिलकर धर्म-जाति का पर्व आयी है, दीपो से दुनिया का उजाले करने का पर्व आयी है, बम-बारूद पटाखे से, विषाणुओं को समाप्त करने का त्यौहार आयी है, मनुष्यों का अस्तित्व बचाने का त्यौहार आयी है, दुनिया मे रोशनी, उजाले करने का पर्व आयी है, हिंसा पे अहिंसा से, विजय दिवस मनाने का त्यौहार आयी है, अशांति पे शांतिपूर्ण तरीके से जीतने का पर्व आयी है, दीपों का पर्व दीपावली आयी है! परिचय :- रूपेश कुमार शिक्षा - स्न...
कुछ कहना है
कविता

कुछ कहना है

मित्रा शर्मा महू - इंदौर ******************** दीप! तुम रोशन करो उन घरों को जहां तुम्हे जलाने को रुई भी न हो, तेल खरीदने को पैसे न हो तुम्हे जलाने को दिये न हो। तुम वहां दैदीप्यमान रहो, जहां तमस हो अंधियारा हो अज्ञानता का वास हो। बढ़ा दो ज्योति की लौ मन का उजियारा शिक्षा मिले बेटियों को चमके चमन । बदल दो दुनियां को तुम जो आपसी रंजिश में मानवीय मूल्य की आपसी भाईचारे की भुल रहा इंसान दंभ में। तुम सुगन्ध फैला दो सामंजस्य की नैतिक मूल्य की प्यार भावना की परोपकार की। ऐसे आ दीवाली ! जहां राधा और सलमा खुशियों के मिठाई बांटे आफताब और सूरज देश के लिए मर मिटे। परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्...
आओ मनायें खुशियों का पर्व
कविता

आओ मनायें खुशियों का पर्व

आनन्द कुमार "आनन्दम्" कुशहर, शिवहर, (बिहार) ******************** आओ मनायें खुशियों का पर्व, झूमें गायें इसमे सब आओ जलायें उन दियों को, जो वर्षो पहले बूझ चूके थे वजह क्या था, गलती किसकी थी, सारी बातों को भूलकर आओ आज मै और तुम हम हो जायें, जैसे दिया और बाती आओ हम सब मिलकर, जलायें खुशियों का दिया आओ मनायें खुशियों का पर्व, झूमें गायें इसमे सब परिचय :- आनन्द कुमार "आनन्दम्" निवासी : कुशहर, शिवहर, (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail....
घर घर दीप जलाएं हम
कविता

घर घर दीप जलाएं हम

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** ज्योतिर्मय जग कर दें तो सुख पाएं हम। आओ मिलकर घर घर दीप जलाएं हम।। दीप जलाएं मेटें मिलकर अंधियारे, रोशन कर दें अवनी अम्बर हम सारे। ये त्यौहार नहीं है सिर्फ अकेले का, याद उन्हें भी रक्खें जो हैं दुखियारे।। उनको भी खुशियों में भागीदार करें, पल खुशियों के आए भूल न जाएं हम। ज्योतिर्मय जग कर दें तो सुख पाएं हम, आओ मिलकर घर घर दीप जलाएं हम।। सुख बांटो तो कई गुना बढ़ जाता है, रगरग से ये स्नेहसुधा बरसाता है। इंसानों की एक अलग पहचान रही, मिलजुल करके खाना इनको आता है।। हम दानव के वंशज नहीं न दानव हैं, इंसां हैं, ये इसां को समझाएं हम। ज्योतिर्मय जग कर दें तो सुख पाएं हम, आओ मिलकर घरघर दीप जलाएं हम।। धन प्रकाश का सुन्दरता का वर ले लें, लक्ष्मी माता से अपने जेवर ले लें । विजय न्याय की होती है विश्वास करें, अन्यायी का उठें उतारें सर ले लें।। स...
स्वप्निल झिलमिल दीप जलायें
कविता

स्वप्निल झिलमिल दीप जलायें

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** जिस तरह रजनीगंधा से जीवन की हर शाम सुवासित। तारों की नन्ही उमंग से मन की आशायें हुईं प्रकाशित। अब न कहीं भी रहे मूक, एक दिया भी कुम्भकार का। चहुंदिश हो जाये उजियारा, निराकार उस निर्विकार का। सत्य ही जब जब जला है, आस्था का एक दीपक, सदियों से गवाही दी है समय ने अंधियारे मन के, विलीन हुए हैं। ले उसकी ज्योति प्रज्ञ प्रभा हम कर्म के पथ पर लीन हुए हैं। इस दीप पर्व भी संकल्पों के, कुछ ज्योति कलश हम भी छलकाएं! प्रेरणा के, आस्था के स्वप्निल, झिलमिल दीप जलाएं!! परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप...
गाय चराना शर्म, कुत्ता घुमाना गर्व
कविता

गाय चराना शर्म, कुत्ता घुमाना गर्व

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** दुर्भाग्य इस देश में गाय चराना शर्म है कुत्ता घुमाना गर्व है, कुत्ते से मनाते पर्व है। दुर्भाग्य है इस देश में गंदगी को गले लगाते, बुराई को दिल लगाते गाय नहीं पास बुलाते। गाय गोबर काम का, लिपते चूल व चौका कुत्ता पालकर पाते हैं, मल उठाने का मौका। गाय का घी दूध भी बहुत सेहतमंद होता, कुत्ता काटे जब कभी, फिरता रहे जन रोता। गाय को माता कहते देश में यह प्रथा रही, कुत्ते से करते प्यार वे कहते उसे बाप नहीं? गाय पालो धर्म काम मां की सेवा करते हैं लेकिन ये लोग अब गायों से ही डरते हैं। कुत्ता गंदगी करता हैं घर में कोई काम नहीं, कुत्ता काटता जब कभी, मिले कभी आराम नहीं। अब पाल लो घर गाय सेहत बुद्धि बढ़ जाएगी, पूरे जगत में होगा नाम, खुशियां लौट आएगी। कुत्ता का मल उठाओ, नहीं किसी काम का, कुत्ता रोगों का घर है, राम का न श्याम का।। परि...
आओ मनाएं दीवाली।
कविता

आओ मनाएं दीवाली।

धीरेन्द्र कुमार जोशी कोदरिया, महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** पूनम सी दमकेंगीं राते ये काली। आओ सब मिलके मनाएं दीवाली। दीपों की कड़ियाँ हैं, फूलों की लड़ियाँ हैं, रंगोली द्वारे पर, झिलमिल फुलझड़ियाँ हैं। आशा की जोत हो,मन में उजियाली। आओ सब मिलके मनाएं दीवाली। लक्ष्मीजी पूजित हैं, नारायण वन्दित हैं, है अर्चन हृदयों से, आराधन गूंजित है। झोली में सबकी बरसे खुशहाली। आओ सब मिलके मनाएं दीवाली। अब कोई रोये ना, खुशियों को खोये ना, राहों मे कोई भी, शूलों को बोये ना। भण्डार भर जाएँ, बौराये थाली। आओ सब मिलके मनाएं दीवाली। शांति का प्रकाश हो, शक्ति का विकास हो, हो धरती हरियाली, रिमझिम आकाश हो। हो भारत सिरमौर , परम शक्तिशाली। आओ सब मिलके मनाएं दीवाली। परिचय :- धीरेन्द्र कुमार जोशी जन्मतिथि ~ १५/०७/१९६२ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म.प्र.) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़...
मिट्टी की दीया
कविता

मिट्टी की दीया

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** मिटटी की बनी ये जो कुम्हार का दीया है, हमारी सांस्कृति तथा परम्परा को जीवित किया है। दीया हमारी सास्कृति विरासत की ढाल है, तमसो मां ज्योति की कायम मिसाल है। मिट्टी की दीया हम भारतीय की पहली पसंद है, आधुनिक युग में भी दिया का प्रयोग नहीं बंद है। दीये से आती हमारी मातृ भूमि की सोधी-सोधी सुगंध है, हम सब का इस दीये से बहुत पुराना सम्बंध है। दीयों का पर्व मन भावनी दीपावली आई है, हर घर-घर की सफाई और रंगाई कराई है। टूटे-फूटे पुराने बर्तनों को नये में बदलवाई है, मिट्टी के दिये हम सभी के मन को लुभाई है। माताए और बहने मिट्टी के दीये खरीद कर लाई हैं, घर को खूब अच्छे से खूबसूरत सजाई हैं। मिट्टी के दीये से अपने घर में प्रकाश फैलायेगी, दीपावली के पावन पर्व को हँसी-खुशी मनायेगी। दीपावली दीपो का पर्व बहुत नजदीक है, ये मिट्टी के दीये हमारी...
चिड़ियों की चहचहाहट
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चिड़ियों की चहचहाहट

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** बादलों की ओट में खिला छुपा चाँद पहाड़ों पर जाती पगडण्डी मन आकाश में चाँद के इंतजार में घुप्प अंधेरा रात स्याही विरहन सी। पत्तो की सरसराहट उल्लू की कराहती आवाजे लगता मृत्यु जीवन को गले लगाए बैठी चाँद निकला बादलों से। सूखे दरख्तो सूखी नदियों ने ओढ रखा हो धवल चाँदनी का कफ़न। जंगल कम नदियाँ प्रदूषित हो सूखी मानों ऐसा लगता मौत हो चुकी पर्यावरण की। धरा से आँखे चुराता चाँद छूप जाता बादलों की ओट निंद्रा टूटी स्वप्न छूटा भोर हुई उजाला आया नई उम्मीदों से जंगल सजाने। नदियों की कलकल चिड़ियों की चहचहाहट ने दिया पर्यावरण को पुनर्जन्म। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार प...
आखिर हो क्या गया जमाने को
कविता

आखिर हो क्या गया जमाने को

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** सच्चे दिल से साथ निभाए उसे पागल समझा जाता है दंगा, बात-विवाद को ही समस्या का हल समझा जाता है। कड़वी हकीकत कहने में जरा भी देर नहीं करता हूँ मैं दुख है कि मेरी बातों को आज नही कल समझा जाता है। पर पीड़ा देख आखों से बहते गंगाजल जैसे पावन आंसू निर्मम लोगो द्वारा आंसू को भी सादा जल समझा जाता है। बदलने वाले तो अक्सर बदल ही जाया करते हैं जमाने में ईमान, वफा,सच्चाई को भी अब केवल छल समझा जाता है। अदब से झुका वही करता, जिसमें होते संस्कार सभी अच्छे अफ़सोस जमाने में ऐसे लोगों को निर्बल समझा जाता है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां,...
हमें गर्व है
कविता

हमें गर्व है

विकाश बैनीवाल मुन्सरी, हनुमानगढ़ (राजस्थान) ******************** हमें गर्व है बुजुर्गों के किए हुए उपकारों पर, गर्व है हमें माँ-बाप ने दिए सभ्य संस्कारों पर। हमें गर्व है अपने परम् पूजनीय हिंदुस्तान पर, गर्व है हमें राष्ट्र की आन-बान-शान-ईमान पर। हमें गर्व है भारत माता के वीर जवानों पर, गर्व है हमें अन्नदेवता भूमी पुत्र किसानों पर। हमें गर्व है क्रन्तिकारी कवियों के विचारों पर, गर्व है हमें कलमरूपी अमिट हथियारों पर। हमें गर्व है अपनी सामाजिक संस्कृति पर, गर्व है हमें सबसे निराली भारतीय प्रकृति पर। हमें गर्व है हमारी अनेकता में एकता की शक्ति पर, गर्व है हमें यहां भगवान के प्रति प्रेम की भक्ति पर। हमें गर्व है अशफ़ाक़, आज़ाद और सरदार पर, गर्व है हमें उस सच्चे बादशाह के पहरेदार पर। हमें गर्व है लाला, लोहपुरुष, कलाम और अटल पर, गर्व है जवानों की बंदूकों और किसानों के हल पर। हमें गर्व है ...
ले गया है सब लुटेरा भीड़ में…
कविता

ले गया है सब लुटेरा भीड़ में…

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** ले गया है सब लुटेरा भीड़ में। लुट गया संसार मेरा भीड़ में। बादलों ने ढँक लिया है सूर्य को सांझ में बदला सवेरा भीड़ में। रूठकर बैठी कहीं है रोशनी शेष है केवल अंधेरा भीड़ में। अजनबी अनजान है इन्सान वो डालकर बैठा जो डेरा भीड़ में। गा रहा है कोई सुन्दर प्रेम गीत रेशमा के साथ शेरा भीड़ में। धातु के बर्तन नहीं,फल-सब्ज़ियाँ बेचता है अब कसेरा भीड़ में। वह अकेला क्या करेगा अब 'रशीद' आफ़तों ने उसको घेरा भीड़ में। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेर...