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कविता

इश्क ही वो इश्क ही क्या
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इश्क ही वो इश्क ही क्या

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** इश्क ही वो इश्क ही क्या, जिसमें जीवन की ना रुसवाईया हो, ना उसमें दर्द भरी तनहाईयाँ हो, और ना नयनों मे आँशु की बरसात हो, और ना उसमें तड़प हो ना गरज हो, तो वो फिर इश्क ही क्या है! इश्क ही वो इश्क ही क्या , जिसमें सातों जन्मों-जन्मों का स्वप्न ना हो, जिसमें खुशियों की अंबार ना हो, जिसमें तारों को तोड़कर लाने जैसी स्वप्न ना हो, जिसमें रात को दिन और दिन को रात ना लगे, तो वो फिर इश्क ही क्या है! इश्क ही वो इश्क ही क्या, जिसमें बिन दर्द का दर्द ना हो, जिसमें बिन नींद का चैन ना हो, जिसमें बिन रोग का रोगी ना हो, जिसमें जाति-धर्म मिट ना जाएँ, तो वो फिर इश्क ही क्या है ! इश्क मे अंधापन होना चाहिए, ना जाति ना धर्म सिर्फ प्रेम का भूत हो, जिसमें ना जिस्म की लालसा हो, ना कुछ लेने का लोभ-लालच, सिर्फ निस्वार्थ प्रेम की चाह हो, असली इश्क तो वही है जो ...
इश्क की सुबह कब होगी
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इश्क की सुबह कब होगी

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** इश्क की सुबह कब होगी जाने, वो रात कब होगी गुजर रही है ये धीरे धीरे ढा रही है वो गज़ब होगी रास्तो की नही मंज़िले है जो मर्जी रब की होगी बात तुम चाहो वही हो वह रात यहां तब होगी तेरे वादो से लिपटा हूॅ मै वो बाते यहा सब होगी कुछ तुम्हारी कुछ हमारी यहा अपनी अदब होगी जमाना देखेगा मोहन को इश्क मे बात अजब होगी परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवा...
नारी की वेदना… नदी से
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नारी की वेदना… नदी से

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** सरिता सी सर-सर बहती हो, जाने कितनी वेदना सहती हो, जब सागर से जा मिलती हो। तब नारी की उपमा बनती हो।। सुख-दुःख भी तुझमे सारा है, जीवन की तु परिभाषा है, हर नारी की तुम आशा हो। सुख-दुःख जीवन का साया है।। नारी ममता की धारा है, तीनो पक्षो को लेकर जब चलती है, सात पुस्तो का नाम रोशन करती है। हे, तटिनी, तरंगिणी, निर्झरिणी, कुलंकषा, अपगा तुमसे मेरी ये विनती है, जीवन की धार नदी करदो, सागर से जाकर मिल जाऊं। साहिल में जाकर लग जाऊं।। ये झील सी आँखों में लेकर पीड़ा, मीरा की वेदना बन जाऊं, गिरधर गोपाला मैं गाऊ। नदियाँ हूँ सागर से मिल जाऊं।। तेरे प्यार के रंग में रंग जाऊं।।। परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह शिक्षा : एम.ए हिन्दी साहित्य, डीएड शिक्षाशात्र, पी.जी.डी.सी.ए. कंप्यूटर...
बेइंतेहा मोहब्बत
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बेइंतेहा मोहब्बत

श्वेतल नितिन बेथारिया अमरावती (महाराष्ट्र) ******************** दिल है मेरा तुम्हारे लिए ही बेकरार दिल को मेरे सिर्फ तुम्हारा है इंतज़ार। नहीं कटते हैं पल-पल दिन और रात करा दो एक बार तुम अपना दीदार। कर बैठे हैं तुमसे ही हम बेइंतेहा प्यार अब कैसे यकीं दिलाऊं तुम को यार। सिर चढ़के बोल रहा मुझमे तेरा खुमार जनम-जनम के लिए चाहिए तेरा प्यार। आगोश में समेटो श्वेतल को जाने बहार करूंगी टूटकर मोहब्बत तुमसे बेशुमार। परिचय - श्वेतल नितिन बेथारिया निवासी - अमरावती (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र - मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाई...
मौसम
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मौसम

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** मोहब्बत को याद करों दिल फिर से जवां हो जाता ख़्वाब हो पुराने मगर आंखों में फिर चमक दे जाता। वसंत के आने से मन गुनगुनाता प्यार का पंछी भी गीत गाता धड़कन ऐसी धड़कती की डालियों से पत्ता टूट जाता। कहते वसंत ऋतु में ऐसे ही आता आमों पर लगे मोर फूल सुहाते ताड़ी के भी ऊँचें पेड़ शोर मचाते सूने पहाड़ भी गीत गुंजाते टेसू भी ये सब देख मुस्कुराते। मौसम भी यदि बेमौसम हो जाते प्यार के मौसम को कैसे भूल जाते रूठना हो तब औऱ मौसम रूठ जाते वसंत ऋतु प्यार को सभी प्रेमी मनाते। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवा...
हे वीणा वादिनि कृपा कर दो
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हे वीणा वादिनि कृपा कर दो

सपना मिश्रा मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** हे वीणा वादिनी, हे ज्ञान की देवी, कृपा कर दो। ज्ञान से अपने हमें भर दो। हे ममता की मूरत, है वर्णों की ज्ञाता, वेद पुराणों की भाषा, हे भाग्य विधाता, आशीष से अपने हमें तर दो। हे वीणा वादिनी, कृपा कर दो। हे मां शारदे, सुर ताल से अपने हमें स्वर दो। हे वीणा वादिनी, हे संगीत की देवी, सरगम में स्वर भर दो। करती हो कृपा सब पर हम पर भी कृपा कर दो। ज्ञान से अपने हमें तर दो। परिचय :- सपना मिश्रा निवासी : मुंबई (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाई...
ऋतुराज बसंत
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ऋतुराज बसंत

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** जब हुआ जग के सृष्टि का प्रारम्भ, जग के सृष्टिकर्ता है भगवान बह्म। खास रुप से मनुष्य की किये रचना, परंतु स्वयं को ही न जची ये संरचना। तब ब्रह्मा ने किया बिष्णु का आवाहन, जो प्रयोग करते गरुणपंक्षी का वाहन। विष्णु लिये शक्ति की देवी को बुलाये, शक्तिदेवी,विष्णु दिये नयी देवी बनाये। ये नयी देवी जीवो में वाणी दी जगाय, नव देवी माता सरस्वती देवी कहलाय। ये देवी धारण की अपने कर में वीणा, वो पलभर में हरती जगत की पीड़ा। वीणा बजाकर वीणावादीनी कहलाई, शारदे ने सबको ज्ञान का पाठ पढ़ाई। आज माँ सरस्वती की जाती है पूजा, शारदे के अतिरिक्त नाम न आये दूजा। हिन्दू मनाये बसंंत पंचमी का त्यौहार, बना के रखे अपना आपसी व्यवहार। प्रकृति बहुरंगी रुप धर सबको लुभाये, आम पेड़ की डाल पर बौर लग जाये। सरसों के पीले रंग देख मनमुग्ध हो भाई, लगे नयी दुल्हन पीली ओ...
आया बसंत
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आया बसंत

राहुल सावनेर पुनासा (मध्य प्रदेश) ******************** स्वागत है ऋतुराज तुम्हारा ऋतुओं पर हे राज तुम्हारा नाही शरद ओर नाही ग्रीष्म है कबसे था आसरा तुम्हारा अमुओ पर हे बौर है आए डाल डाल पर सुमन हे छाए भोरे भी अब लगे गूंजने कोयल मीठे गीत है गाए झांके सूर्य बादल इतराए किरणे छन छन धरा पे आए ऋतुराज आए हे धरती पर सुबह शाम ये सब को बताए परिचय :- राहुल सावनेर निवासी - पुनासा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अ...
अपेक्षा और उपेक्षा
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अपेक्षा और उपेक्षा

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) धवारी सतना (मध्य प्रदेश) ******************** जब मन में न हों अपेक्षाएं, तब दर्द नहीं देती उपेक्षाएं। दर्द को समेटे अपनी झोली में, ये मन सदा यूँ ही मुस्कुराये।। खुशियों को जब हम ढूंढते है, किसी और की निगाह से। और जब मिलते हैं वहाँ कांटे, फिर भटक जाते हैं हम राह से।। आ जाती है मन में एक हुक, कि, ऐसा क्यों हुआ मेरे साथ। अरे ये जमाने का ही चलन है, क्यों न समझी अब तक बात।। कभी जमाना साथ चले न, जब तक आप चलें अकेले। पर जिनको है लक्ष्य को पाना, चलें अकेले वे अलबेले।। और जब मिल जाती उनको मंजिल, सब आ जाते हैं देने साथ। और दिखाते हैं अपनापन, थाम के अपने हाँथो में हाँथ।। अतः अपेक्षा और उपेक्षा की, हमको हो परवाह नही। हम सदा चलें अकेले ही, बस चलें हम राह सही।। परिचय :- ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) निवासी - धवारी सतना (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित क...
तुम जब
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तुम जब

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** बसंत तुम जब आते हो। प्रकृति में नव-उमंग, उन्माद भर जाते हो। बसंत तुम जब आते हो हवाएं चलती हैं सुगंध ले कर। जीवन में खुशबू बिखराते हो। बसंत तुम जब आते हो। कितने नए एहसास जागते हैं। सृजन की प्रेरणा दे। नित-नूतन संसार सजाते हो। हर तरफ फूलों से बगियाँ तुम सजाते हो।। कहीं पीले -कहीं नारंगी। लाल गुलाब महकाते हो। बसंत तुम जब आते हो। जीवन में उमंग भर जाते हो। नदिया इठला कर चलती है। दिनों में मस्ती छा जाती है। मीठी-मीठी धूप में , शीतल चांदनी-सी रात झिलमिलाती है । आसमां में चहकते हैं पक्षी। कोयल के साथ मधुर गीत गाते हो। बसंत तुम जब आते हो। जीवन में उमंग भर जाते हो। नई आस-नई प्यास नए विचार-नए आधार। बन कर रच जाते हो। बसंत तुम आते हो। नई तरंग से जीवन को, तरंगित कर जाते हो।। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घ...
प्यार के किस्से
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प्यार के किस्से

धीरेन्द्र पांचाल वाराणसी, (उत्तर प्रदेश) ******************** मिले थे कल जो तुमसे हम, उसी बाजार के किस्से। लिखूंगा आज कागज पर, हमारे प्यार के किस्से। पलटकर देखता था मैं, इरादे नेक थे अपने। थोड़ी शैतानियां भी थी, थोड़े एहसास थे अपने। तलाशा अंजुमन में भी, तेरे दीदार के किस्से। लिखूंगा आज कागज पर, हमारे प्यार के किस्से। हसरतें मिटती कहाँ थीं, मामला तब दिल का था। बोतलें टिकती कहाँ थीं, कश्मकश महफ़िल में था। कह रहा था नाव से मझधार के किस्से। लिखूंगा आज कागज पर, हमारे प्यार के किस्से। तड़पना लाजमी था पर, मुझे मालूम था इतना। सफर कांटों का भी होगा, गुलाबों का जतन जितना। तबियत से लिखूंगा मैं तेरे रुख़सार के किस्से। लिखूंगा आज कागज पर, हमारे प्यार के किस्से। परिचय :- धीरेन्द्र पांचाल निवासी : चन्दौली, वाराणसी, उत्तर प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक ...
पुलवामा के वीर सपूत
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पुलवामा के वीर सपूत

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** पुलवामा के वीरों से, घात करें थे घाटी में। बैठे गोडसे दिल्ली में, जयचंद पावन माटी में। गीदड़ पहुंचे शेरों तक, छल कर तेरी गोदी में। हंसते-हंसते शहादत पाये, नगराज की चोटी में। गंगा-यमुना चीख उठी, सिंदूर मिली जब माटी में। भेंट चढ़ थी कितनी राखी, जन्नत तेरी छाती में। बेबस बूढ़ी आंखें छलकी, इन वीरों की यादों में। बिलख-बिलख मां रोई, उम्मीदे बिखरी लाशों में। नन्हीं-नन्हीं परियां चीखी, सपने मिल गये माटी में। हिंदुस्तानी धरती रोये, इन शेरों की शहादत में। कदम उठा लो अंतिम, गोली दागो दुश्मन में। अब मत खोजो मानवता, इन नरभक्षी गिर्द्धो में। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेर...
हर तरफ यार का तमाशा है
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हर तरफ यार का तमाशा है

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** खिलखिलाकर वो हँस रहे, मन से हटी सब निराशा हैं, लो हम सभी हँसे खुलकर, हर तरफ यार का तमाशा है। मंजिल के करीब पहुंच गये, नय कह रहे अजब भाषा है, नहीं कभी हम यूं पीछे हटेंगे हर तरफ यार का तमाशा है। खेल रहे हम मिल बागों में, जीत की मन लिये आशा है, आखिर बाजी जीत ही लेंगे, हर तरफ यार का तमाशा है। नयन मिले जब दोनों के तो, समझ गये नैनों की भाषा है, प्रेम आलिंगन नजर आये वे, हर तरफ यार का तमाशा है। चांद पर जरूर कदम रखेंगे, पहुंच गये सीधे यूं नासा है, आखिर चांद को छू लें हम, हर तरफ यार का तमाशा है। हमने क्या खोया विगत वर्ष, लो करते आज खुलासा है, नये वर्ष में होंगे काम सुंदर, हर तरफ यार का तमाशा है। हंसना चाहिए दिनरात सदा, क्यों बैठ गये अब उदासा है, निठल्ले बैठ पाप लगता चूंकि हर तरफ यार का तमाशा है। पा जाये विश्व ज्ञान एक दिन, चूंकि दिल...
बेटी
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बेटी

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** आधुनिक बेटीयाँ पढ़ लिखकर छू रही आसमान, बेटी किसी की भी हो उनका करो हर समय सम्मान। आधुनिक समाज में दानव बनता जा रहा दहेज, दहेज का बढ़ता जा रहा कलयुग में तेजी से क्रेज। दुल्हन को सदा समझे पढ़े-लिखे युवा दहेज, अपने समाज से दहेज के दानव को दे दूर भेज। बेटियाँ होती सदा हर घर-परिवार का गहना, बेटियाँ मानती सदा परिवार के सभी सदस्यों का कहना। सभी बेटियाँ होती बहुत ही कीमती व अनमोल, समाज बेटियों को दहेज के रूप में दूसरों को देता तोल। शादी के बाद वही बेटी दूसरे परिवार में बहू बन के जाय, नित्य प्रतिदिन ससुराल में भी सबको पिलाये वह चाय। सभी बहु-बेटियों का समाज में करे मान सम्मान, दहेज के कारण किसी भी बेटी का न जाने पाये जान। देश, समाज की बेटीयों को बचाओ! मानव सृष्टि विलीन होने से बचाओ! परिचय :- विरेन्द्र कुमार यादव निवासी : गौरा बस...
बसंत ऋतुराज है आया
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बसंत ऋतुराज है आया

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कहीँ भौरो की गुंजन है कही कोयल की कूके है कही बौराये है जो आम कही महकी हुईं हर शाम कभी आलस्य ने घेरे है खालीपन कही छाया कही सूनी है दुपहरी कही अति धूप कहीं छाया कही कुछ छूटा सा लगता कही कुछ खोया सा लगता पहेली लाख सुलझा लौ मगर उलझा हुआ लगता चिड़ियों की मस्ती भी झलकती साफ ऐसी है सामने आईना रख दो झपटती गिद्ध जैसी है खेतों में खलिहानों में आबादी में वीरानों में इधर देखो उधर देखो बसंत ऋतुराज है आया सभी ऋतुओं में उत्तम है असर इसका कुछ ऐसा है चले जहाँ बात जब इसकी तो चलती सांस मद्धम है सुनहरी गेहूँ की बाली पलाश और टेसू की लाली मदमस्त कर डाली बसंती बयार निराली परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कव...
मै आदत से लाचार हूँ
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मै आदत से लाचार हूँ

ममता रथ रायपुर ******************** बहुत कोशिश करती हूँ जमाने के साथ चलने की दिखावे की चादर ओढ़ने की पर क्या करू यारो मै आदत से लाचार हूँ बहुत कोशिश करती हूँ खुद मे बदलाव करने की बड़ी - बड़ी बातें करने की छोटो को नजर अंदाज करने की मगर हो नही पाता क्या करू यारो मै आदत से लाचार हूँ बहुत कोशिश करती हूँ सिर्फ अपनी तारीफ करूँ किसी के दुख मे खुश होऊँ किसी की परवाह किए बगैर खुद मे ही व्यस्त रहूँ मगर हो नही पाता क्या करू यारो मै आदत से लाचार हूँ बहुत कोशिश करती हूँ सब जगह दिखावे का दान करूँ फायदे देखकर बात करूँ अपने कर्तव्यों को भूलकर सिर्फ वाहवाही के लिए काम करूँ मगर हो नही पाता क्या करू यारो मै आदत से लाचार हूँ परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्...
बसंती मोसम
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बसंती मोसम

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** आ गया बसंती मोसम सुहाना, गा रहा मन तराना। मिली राहत जिंन्दगी को, चेन दिल को आ गया, प्यार की अमराहयों से, गीत याद आ गया , आज अपने रंज गम को, चाहता हैं गम भुलाना, आ गया बसंती मोसम सुहाना। बाग की हर शाक गाती, झूमती कलियाँ दिवानी, पात पीले मुस्कुराते, मिली जैसे है जवानी, हर तरफ ही लुट रहा है, आज खुशियों का खजाना , आ गया बसंती मोसम सुहाना। सब मगन मन गा रहें है, आ गई ऐसी बहारें, प्राण बुन्दी मुक्त मन, दिलों की टूटी दिवारें, बहुत दिन के बाद उनका, आज आया है बुलावा, आ गया बसंती मोसम सुहाना। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख ल...
कोरोना के कोहरे
कविता

कोरोना के कोहरे

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** कोरोना की घने कोहरे की वीरानगी में छिपी दुबकी जिंदगी सूर्य की प्रखर किरणों की ताप से उल्लासित,सुवासित,मुखरित हो उठी है। विधालयो में पुनः मै देखता हूं कि छात्र -छात्राओं की संख्याओ में बेतहासा बृद्धि समृद्धि सी हो गई है। खिले धूप में फिर से पढन-पाढन आरम्भ हो गई है पढन से उत्साहित छात्र छत्राए एक नई जीवन की उम्मीद बांध एक नईं स्फूर्ति के साथ नये वर्ग में माँ सरस्वती की आराधना में अपने आपको सतर्कता के साथ संलग्न कर। जिन्दगी की डोर को स्नेह और करुणामयी याचना के साथ इस कोरोना के कालखण्ड में। ओत प्रोत हो माँ शारदे कि कर कमलों में समर्पित अर्पित कर रहा है अपना सब कुछ। कोरोना के घने कोहरे की वीरानगी में छिपी दुबकी जिंदगी ,उल्लासित,सुवासित फिर से मुखरित हो उठी है। वैक्सिन के लिए अपने राष्ट्र के महान वैज्ञानिको को धन्यवाद ज्ञापित कर रहे है। पर...
इतना मत डूबो…
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इतना मत डूबो…

संजय जैन मुंबई ******************** देखकर दर्द को कठोर से कठोर। इंसान का पत्थर दिल भी पिघलता है। और हमदर्दी के दो शब्द उसे बोलता है। जिससे उसका दर्द थोड़ा कम होता है।। दौलत के नशे में इतना मत डूबो। की समाने तुम्हें कुछ दिखे ही नहीं। क्योंकि रास्ते हमेशा सीधे सीधे नहीं होते। इसलिए उन्हें देख कर ही चलना पड़ता है।। मिट गई हस्तियां बड़े बड़े साहूकारों और जमीरदारो की। फिर भी ये संसार आज तक चल रहा है। और अपनी-अपनी करनी का वो फल भोग रहे है। और संसार चक्र में उलझकर अपना जीवन जी रहे है।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते र...
पीपल
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पीपल

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मैं एक वृक्ष पीपल का अनेक झंझावात झेल आज खड़ा हूँ सुद्रढ़ तना व गहरी जड़ो के साथ। दीर्घ जीवन का प्रतीक हूँ प्राणवायु उत्सर्जन ही मेरा कर्मयोग है कच्चे धागों से बंध मैं खड़ा हूँ जीवन के साथ। मैं विश्वास भी हूँ और आस्था भी जड़ हूँ पर चेतन भी मैं गतिमान हूँ निष्काम भाव के साथ। तुझ सी सुकोमल लता के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकता है मेरा सुद्रढ़ तना मेरा भाग्य तय करेगा की तुम पुष्प पल्लवित लता बन मुझे महकाती हो या छा जाओगी मेरे ऊपर अमरबेल सी अपनी नियति के साथ। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर hindirakshak.com द्वारा हिंदी रक्...
वसंत गीत
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वसंत गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** मधुर भूतकालीन क्षणों को, मानस पट पर लाता है। मन में प्रेम हिलोरें लेता, जब वसंत आ जाता है। जब मन प्रिय की यादों में खो, मौन-मुखर संवाद करे। अनुरागी अंतर का उपक्रम, तन-मन का संताप हरे। नयन चमकते हैं उत्साही, हर्षित उर इठलाता है। मन में प्रेम हिलोरें लेता, जब वसंत आ जाता है। हृदय कल्पना लोक लीन है, धड़कन 'प्रिय-प्रिय' गाती है। हवा वही परिचित प्रिय सौरभ, सांसों में भर जाती है। अभिलाषा-सागर अंतर में, बार-बार लहराता है। मन में प्रेम हिलोरें लेता, जब वसंतआ जाता है। आदिकाल से प्रीति धरा पर, दिशा-दिशा में छाई है। मनुज ही नहीं जड़-चेतन ने, इसकी महिमा गाई है। सुखद प्रेम का धरा-गगन से, युगों-युगों से नाता है। मन में प्रेम हिलोरें लेता, जब वसंत आ जाता है। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान...
जिंदगी का सफर
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जिंदगी का सफर

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** अगर जिंदगी है तो मुश्किलें आती रहेंगी, अगर आगे बढ़ना है तो मुश्किलें आती रहेंगी... जैसे नदियां बहती जाती है, पर्वतों को काटकर, जैसे सूरज निकलता है रोज, अंधेरे को मिटाकर।। जैसे चंदा बढ़ता पूनम को, अमावस को पारकर, वैसे ही मन्ज़िल को पाना है, तो मुश्किलों को हराकर।। हार कर यूं बैठ जाना किसी समस्या का हल नहीं, ऐसे मुश्किलों से घबराना, जिंदगी का मक़सद नही।। थककर बैठने वालों को मंजिल कहा मिलती है, और कोशिश करने वालो की कभी हार नही होती है।। अगर जिंदगी है तो मुश्किलें तो आती ही रहेंगी, तू मुश्किलों का सामना कर, और कर्म पथ पर बढ़ता चल, बढ़ता चल।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी...
आँसू
कविता

आँसू

ममता रथ रायपुर ******************** बड़े मासूम से होते है आँसू मेरे दोस्त दिखते है मोतियो से पर पानी से होते है दुख हो या सुख, भावनाओं के रूप मे बहते है कह जाते है वो भी जो बातें अनकहे होते है जीवन के सूनेपन मे ये दोस्त बन जाते है आँखों से ये पतझड़ के पत्तों के तरह गिरते है आँसू की बरखा मे जो भीगते है वही जीवन का मधुर गीत सीख पाते है बहुत तकलीफ देते है वो जख्म जो बिना कसूर के मिलते है परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी क...
आत्म चिंतन सूत्र
कविता

आत्म चिंतन सूत्र

संजय जैन मुंबई ******************** चार रोटी हजम कर लेते हो तो। किसी की चार बातें भी हजम करना सीखो। कह गये कड़वे शब्दो पर मौन रहकर विचार करो। और समय का इंतजार करो उन्हें अपनी की करनी का फल इसी भव में मिल जायेगा। इसलिए अपनी शक्ति को यू ही बर्बाद मत करो।। अमीरी दिलसे होती है धन से नहीं। सुखकी प्राप्ति दान से होती है धन संग्रह से नहीं। पाप की नींव पर पुण्य का महल खड़ा नहीं होता है। इसलिए धर्म को चुने और परिग्रह से बचे।। कोई भी संकट मनुष्य के साहस से बड़ा नहीं। हारा वही, जो संकट से लड़ा नहीं। इसलिए अपने कर्म पर यकीन करो। और वेबजह की चिंता करना तुम छोड़ दो।। धन से सुविधायें तो जुटाई जा सकती हैं। किंतु आत्म सुख सन्तोष नहीं। क्योंकि साम्राज्य की अपेक्षा सम्यग्दर्शन अधिक मूल्यवान है। इसे प्राप्त करने की अपने जीवन में कोशिश करो।। जितने की आवश्यकता है उतने का उपयोग करे। बाकी का उन्हें दे जिन्हें ...
मेरी कलम नहीं मेरे वश में
कविता

मेरी कलम नहीं मेरे वश में

डॉ. सुभाष कुमार नौहवार मोदीपुरम, मेरठ (उत्तर प्रदेश) ******************** मेरी कलम नहीं मेरे वश में मुझे ‘क’ से कविता लिखनी थी, कविता के लिए कविता लिखनी थी। बड़े शब्द सँजोए थे मैंने, एक प्रेम धार जो बहनी थी। पर ‘क’ से कातिल दिखा गई जो खाते हैं झूठी कसमें... मेरी कलम नहीं मेरे वश में ‘ख’ से खुश मिजाज होकर मुझको, कुछ गीत खुशी के लिखने थे, बोली मुझसे खामोश रहो, तुम कुछ तो धीरज धरा करो। जो खास तुम्हारे बनते हैं, धोखा है उनकी नस-नस में... मेरी कलम नहीं मेरे वश में ‘ग’ से गर्वित होकर मैं कुछ क्षण, अपने गणतंत्र पे इतराया। बोली चौकन्ने रहो सदा, बुन रहा जाल काला साया। जो पाक नाम से दिखते हैं, है ज़हर भरा उनके मन में... मेरी कलम नहीं मेरे वश में ‘घ’ से घर लिखना चाहा तो, बोली घमंड किस बात का है? माँ-बाप रहें वृद्धाश्रम में, बेटा-बंगले में सोता है! ऐसा हर घर वो खाल...