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कविता

सफल जन्म
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सफल जन्म

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** सफल जन्म मेरो भायो मानव जीवन पाकर। धन्य हुआ मानव जीवन माँ बाप के संग रहकर। कितना कुछ वो किये मुझे पाने के लिए। अब हमारा भी फर्ज बनता है उनकी सेवा आदि करने का।। सफल जन्म मेरो भायो मानव जीवन पाकर।। सब कुछ समर्पित किये वो लायक मुझे बनाने के लिए। कैसे अब में छोड़ दूँ उनको उनके हाल पर। नहीं उतार सकता मैं कर्ज उनका मरते दम तक। पर कुछ ऋण चुका सकता उन की औलाद बनकर।। सफल जन्म मेरा हो जायेगा पुत्र धर्म को निभाकर।। जब तू भी माँ बाप बनेगा पुन: यही दोहराया जायेगा। तेरे किये अच्छे कर्मो का तुझे फल यही मिल जायेगा। मात पिता से बड़कर इस जग में और कुछ हैं नहीं। ये बातें औलाद समझ जायेगी फिर ईश्वर की तरह तुझे पूजेगी।। सफल जन्म हमारा तब ये मानव जीवन हो जायेगा। ये मानव जीवन हो जायेगा।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई मे...
प्रथम पूज्य नारी
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प्रथम पूज्य नारी

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** प्रथम पूज्य नारी कहलाई आदि अनंत तुम शक्ति कहलाई थी कायनात की रचयिता वो शिव गामीनी कहलाई नही अबला थी नहीं आज की नारी पूज्य बन कर नारी शक्ति कहलाई बडे बडे दैत्यों का कर संहार वो वैश्व पालन वो शक्ति कहलाई बन सरस्वती ब्रह्मणी, रूप लक्ष्मी मै नारायणी ओर शिव वरदाई कहलाई यश गाऊ मै नारी का, गा नहीं पाऊगा माॅ बनी है बहन बनी, वाम अंग समाई जन कल्याण मे त्रिशूल उठा कर महिषासुर मर्दिनी कहलाई कष्ट निवारणी दया की देवी आज तू अन्तः मन से शिवकल्याणी कहलाई कैलाश वासिनी पूछता हूॅ तुझसे मै तेरा ही ये रूप ले माॅ दुर्गे कहलाई मनमोहन अब बतादो इन सबको तूम नारी जग मे रूप मेरा कहलाई परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता ह...
जुनून
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जुनून

रश्मि नेगी पौड़ी (उत्तराखंड) ******************** जोश सा था, मेरे अंदर मेरा जोश, मेरा जुनून बन गया रास्ते में मेरे आई कई रुकावटें मेरे जुनून ने उनका डटकर सामना किया लाखों लोगों ने कोशिश की मेरे हौसलों को दबाने की मेरे जुनून ने मेरे हौसलों को दबने न दिया जोश सा था, मेरे अंदर मेरा जोश, मेरा जुनून बन गया हुई कभी हताश, हुई कभी परेशान मेरे जुनून ने मुझे व्यर्थ की चिंता त्यागने को कहा लाख चाहा कुछ लोगों ने मुझे गिराना, मेरे जूनून ने मुझे गिरने न दिया जोश सा था, मेरे अंदर मेरा जोश, मेरा जुनून बन गया हुई जब भी मैं निर्बल, मेरा जुनून साथी बनकर मेरे साथ रहा न होने दिया निराश, न होने दिया उदास हमेशा मुझे आगे बढ़ने को प्रेरित किया कैसे करूं मैं धन्यवाद उस जुनून का, जिसने हर कदम पर मेरा साथ दिया जोश सा था, मेरे अंदर मेरा जोश, मेरा जुनून बन गया परिचय : रश्मि नेगी निवासी : पौड़ी उत्तराखंड शिक्षा : ए...
अपने हिस्से की भूख
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अपने हिस्से की भूख

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** परहित में जीना है बड़ा, हित में जाता गला सूख, दूसरे को नहीं दे सकता अपने हिस्से आई भूख। भूख सभी को लगती है, जिसने जन्म यहां लिया, पर भूख खत्म हो जाये, भलाई नामक रस पिया। कैसी विडंबना इस जग, शांत नहीं हो जन भूख, हड़प लेते हैं निर्धन का, उल्टे सीधे रखता रसूख। निज भूख जो कम माने, दूसरे की भूख माने अति, पुण्य कर्म में जीवन बीते, जग में हो उसकी सद्गति। गरीब को भूख लगती है, कोई पूछता नहीं है हाल, कितने निर्धन चले गये हैं, जग से काल के ही गाल। खाने की भूख नहीं लगे, धन दौलत पर यूं मरते हैं, अमीर लोग बात अजब, भोजन खाने से डरते हैं। भूख के रूप अनेकों होते, बिन भूख के मिलते कम, भूख देखते गरीब जन की, आँखें खुद हो जाती नम। नहीं मिट सकती इस जहां, भूख अजब निराली होती, कुछ को रोटी भूख सताये, कुछ को भूख हो हीरे मोती। नहीं बाट सकता कोई यहां...
माँ तारा
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माँ तारा

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** तू हो समर्पिता, अर्पिता तू हो सृष्टि की मूल बिंदु तुम्ही हो। माँ तू हो अनय की सृंखला बनी तू हो भोग की ग्रहिका बनी। तू हो धरा पर अर्चिता, गर्विता अनादि अनन्त तू विभु सम्पन हो। प्रचंड मार्तण्ड की सुप्त किरणों से तू शशि सम्पन्न धरा करती हो। माँ तू मनु की सतरूपा अनादि अभिन हो जब भी धारा पर गहन अंध छाता है मां तू महा ज्योति प्रभा बनकर आती मां तारा तू अनादि अनन्त हो मातेश्वरी तू प्रीति संपन्न हो पुरुरवा की मेनका रमभा तुम्हीं हो साहचर्य सहगामनी सत्य सनातनी हो महाभोगनी फिर भी योगिनी हो कुंडलिनी सर्पनी तू महआभैरवी हो धधकती चिताय महाश्मशान में जीवन की नश्वरता चिंता की रेखाएं। जीवन की कोलाहल में मृत्यु की निरव शांति में मातेश्वरी तारा तुम्ही छुपी हो। इस जीवन की संध्या में मां तू अपूर्व लालिमा हो। परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय ...
ऋतुराज बसंत में
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ऋतुराज बसंत में

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** बसंत में शब्द भी रंग जाते हैं, बाँसती रंग में, दिन चढते चढते आ जाते तरंग में महक उठते हैं, मौलसिरी की गंध से, साँसों में बस जाते हैंं छंदों के अनुराग से एक एक अक्षर बदल जाता मधुमास में, टेसू के फूल बन बिखर जाते पी के संदेश में मन के भाव उमड़ जाते, कोयल की तान में, छलक जाते आँसू बन विहरणी के दर्द में, कानों में रस घोलते संवेगो के आवेग से, बिखर बिखर पत्तो से रचते स्वर्णिम विहान रह रह मचल जाते, करते कविता का अभिसार परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी : महू जिला इंदौर सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानिय...
भारत माँ का वंदन
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भारत माँ का वंदन

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, म.प्र. ******************** अंधकार में हम साहस के, दीप जलाते हैं। आज़ादी के मधुर तराने, नित हम गाते हैं।। चंद्रगुप्त की धरती है यह, वीर शिवा की आन है राणाओं की शौर्यभूमि यह, पोरस का सम्मान है संविधान है मान हमारा, जन-जन का अरमान है भारत माँ का वंदन है यह, जन-गण-मन का गान है वतनपरस्ती तो गहना है, हृदय सजाते हैं। आज़ादी के मधुर तराने, नित हम गाते हैं।। शीश कटा,क़ुर्बानी देकर, जिनने फर्ज़ निभाया अपने हाथों से अपना ही, जिनने कफ़न सजाया अंग्रेज़ों से लोहा लेने, जिनने त्याग दिखाया अधरों पर माता की जय थी, नित जयगान सुनाया हँस-हँसकर जो फाँसी झूले, वे नित भाते हैं। आज़ादी के मधुर तराने, नित हम गाते हैं।। सिसक रही थी माता जिस क्षण, तब जो आगे आए राजगुरू, सुखदेव, भगतसिंह, बिस्मिल जो कहलाए जिनका वंदन, अभिनंदन है, जो अवतारी थे सच में थे जो आग...
उठो नारी तुम्हें अब उठाना होगा
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उठो नारी तुम्हें अब उठाना होगा

सपना दिल्ली ************* उठो नारी तुम्हें अब उठाना होगा नारी क्यों तू हारी तोड़ चुप्पी अपनी आवाज़ उठानी होगी बहुत सह लिया तुमने अब नहीं सहेगी बहुत जिया अपनों के लिए तुम्हें अब अपने लिए भी जीना होगा.... देखा जाएगा जो भी होगा यह ख़ुद को सिखा री ख़ुद को न समझ तू कमज़ोर बिना तेरे सृष्टि का अस्तित्व मिट्टी में मिल जाएगा ज़ोर से कह, मचा शोर दुर्गा भी तू चंडी भी तू ममता की मूरत भी तुझसे री ... इस धोखे में न रहना तू तेरी लाज़ बचाने को कृष्ण बन कोई आएगा तुझे बचाएगा बन काली  अपनी लाज़ ख़ुद ही बचानी होगी विश्वास कर तू सब कुछ करने जोगी और न बन बावरी.... रुकना नहीं, झुकना नहीं तोड़ विवशताओं के बंधन सारे बस आगे ही बढ़ते जाना है अपनी मंज़िल को पाना है कर  ख़ुद पर  यकीन अपने सपनों को कर नवीन अपना सम्मान तुम्हें पाना होगा अपना गीत गाना होगा दूसरों के लिए ही तो जीती रही हो अब तक ख़ुद के लिए अब जीना होगा देखा जाएगा...
काहे का अभिमान रे मानव
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काहे का अभिमान रे मानव

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) धवारी सतना (मध्य प्रदेश) ******************** काहे का अभिमान रे मानव, काहे का अभिमान। जल्दी ही है होने वाला इस माया का अवसान, रे मानव, इस माया का अवसान।। क्या अभिमान करे है तू, इस तन, मन और यौवन का। पर तुझको कैसे ज्ञान नही, नश्वरता मय इस जीवन का।। कितने आये राजा महाराजा, कितने आये साधू सन्त। क्या कभी बचा वे पाये खुद को क्या नही हुआ है उनका अंत।। या दौलत की बात करे तू यह भी तो है कितनी चंचल। कितनी भी अकूत सम्पदा, पर कभी रहे न स्थिर, अचल।। केवल तेरे कर्म हैं सच्चे, और सभी के प्रति अपनापन। इससे ही तू करले प्रेम, यही है तेरा जीवन धन।। अतः बचा ले इनको तू, और इन्हीं का रख तू ध्यान। और अपने तन और अपने धन का, कभी न करना तू अभिमान।। परिचय :- ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) निवासी - धवारी सतना (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सु...
भगवान शिव
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भगवान शिव

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** जहाँ सारा दुनिया जिसकी शरण मे, नमन है उस भगवान शिव के चरण मे, हम बने उस महाकाल के चरणों की धूल, आओ हम-सब मिल कर चढ़ाये उनके चरणों में श्रद्धा के फूल! महाकाल की हमेशा बनी रहे मुझ पर छाया, पलट दे मेरी किस्मत की काया, मिले मुझको सब कुछ इस दुनिया में हमेशा, जो कभी किसी को न मिल पाया इस जीवन में! महाकाल जब आएंगे मेरे द्वार, मेरे जीवन के गोद में भर देंगे सारी खुशियां, कभी रहे न जीवन में मेरे दुखः-दर्द, मेरे चारों तरफ हमेशा हो जाए सुख ही सुख! प्रभु शिव का नारा लगा कर हम, सारी दुनिया में हो गए हैं प्यारे-न्यारे, मेरे दुश्मन भी मुझसे बार-बार बोले, मेरे प्यारे भगवान महाकाल के भक्त हो गए हो तुम सबसे न्यारे! परिचय :- रूपेश कुमार शिक्षा - स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यू...
छत्रपति  श्री शिवराया
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छत्रपति श्री शिवराया

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** गतिहीन राष्ट्र को जो दे गति वो शिवराया है वो छत्रपति।। जीजा माता के संस्कार से दूर रहा जो सदा विकार से स्वामी समर्थ का रहा आशीर्वाद कोंडोबा की शिक्षा निर्विवाद लिए स्वराज का स्वप्न वो भगवा है जिसकी संस्कृति वो शिवराय है वो छत्रपति।। हिंदवी का जो सागरमाथा है पराक्रम शौर्य की महागाथा है सुरक्षित रखा जिसने हिंदुत्व राष्ट्र निर्माण का किया कर्तुत्व माँ तुलजा के आशीर्वाद से भवानी में रही धार और गति वो शिवराया है वो छत्रपति।। नर केसरी तानाजी की आन बाजी प्रभु के प्राणों की शान विधर्मी को घर मे घुस मारा डूबते सनातन को उसने तारा आगरा के परकोटे रोक न पाये जिसके व्यक्तित्व में वो गति वो शिवराया है वो छत्रपति।। शत-शत नमन हे पितृपुरुष निर्भय हो घूम रहे स्त्रीपुरुष अगर न होता आपका पराक्रम नष्ट हो जाता सनातन धर्म समरसता के महायज्ञ में जिसने दी ...
रश्मियां भोर की।
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रश्मियां भोर की।

मित्रा शर्मा महू, इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सुबह की लाली धरा पर उतर रही बसंत की उमंग भर रही रश्मियां भोर की। पीले पीले सरसों के खेत महक रहे ओस की बूंद चमक रहीं पत्ता-पत्ता सौंदर्यमय हो रहा उन्मुक्त हवा बह रही चारों ओर फागुन के गीत गुनगुनाने लगी रश्मियां भोर की। गुदगुदाने लगी सताने लगी याद प्रियतम की भ्रमर को बुलाने लगी रश्मियां भोर की। परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻 आप...
मेरी बेटी
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मेरी बेटी

आनंद यादव पुर्णिया (बिहार) ******************** यूंही छुप-छुप के जो आंसू बहाए, उनसा मत बनना, मेरी बेटी... जमाने के डगर पे तुम नहीं चलना ! जमाना ये डराएगा, जमाना रंग दिखाएगा, हां करना सामना, इस छली दुनिया से नही डरना ! जमाने में मिलेंगे कई तुमको रोकने वाले, जमाने में, मिलेंगे कई तुमको टोकने वाले, नहीं रुकना नही थमना नहीं तुम कभी भी झुकना मेरी बेटी... तुम अंतिम सांस तक, उस गगन तक बढ़ना ! मेरी बेटी, क्या कहते हैं सभी सोचा नहीं करते, मेरी बेटी, फरिश्तों पर, भरोसा नहीं करते, जमाने में यही वो लोग है, जो पीठ सहलाते, मगर तुम याद रखना वक्त पर धोखा यही करते ! प्रखर जो रवि सा हो, तेज खुद में वैसा तुम भरना जिसका नाम ले हो चौड़ा सीना, काम वो करना ; मेरी बेटी, जमाना बुरा है, बस युक्ति से चलना मेरी बेटी.. जो आंचल साफ है, मत मैला तुम करना ! मेरी बेटी जमाने के डगर पे तुम नहीं चलना, जमाना ये डराएगा, मगर...
जंग इसी को कहते हैं
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जंग इसी को कहते हैं

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* मेरी बात पर गौर देकर कहना कुछ लोगों का है कहना मीडिया भी यही कहता और दिखाता है की सेना ने कई सालों से जंग नहीं देखी है। कोई इनकों लेकर आये और जम्मू कश्मीर तथा सीमांत का दौरा कराये जहां पर हजारों की गिनती मे सैनिक घायल होते है जो आंतकवादियो और देश द्रोहियों से लड़ते हैं। इनके परिवार गम के आसूं पीते है मुसीबत और तंगी की जिंदगी जीते हैं और दोस्तों आप कहां रहते हैं शायद जंग इसी को कहते हैं। आइये आपको सियाचिन की सैर कराये बर्फ से ढके हुए पर्वत व नदियाँ दिखाये जहाँ का तापमान माइनस ४० डिग्री सेल्सियस है क्या आप जानते हैं ? लेकिन हमारा सैनिक यहां पर निरंतर रहता है और दुश्मन की गोलियों को अपने सीने पर सहता है इनमें से आधे तो सर्दी का शिकार हो जाते है सीमा से अंदर न आ जाये दुश्मन इसलिए कई तो अपने हाथ या पैर गंवाते है शायद जं...
नाजुक उम्र है तुम्हारी
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नाजुक उम्र है तुम्हारी

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** सूरत मनमोहक प्यारी, आगे बढऩे की तैयारी, देवजन की राजदुलारी, नाजुक उम्र है तुम्हारी। सदा आगे यूं ही बढऩा, अच्छे से तुम यूं पढऩा, बस यही दुआ हमारी, नाजुक उम्र है तुम्हारी। पढ़ लिख आगे बढऩा, परहित के करना काम, आएगा एक दिन ऐसा, होगा पूरे जगत में नाम। मां बाप का करो नाम, जन कीमत एक छदाम, आनंद से घर में रहना, घर होता है सुंदर धाम। सुख दुख आए जीवन, डगमग जब करे नैया, उस प्रभु का रख याद, वो ही है जगत खेवैया। बिछुड़ जाए सारे साथी, यादें बन आती बाराती, बस आगे यूं ही बढऩा, चाहे ना हो घोड़े हाथी। सच की है राह कठिन, सुख नहीं दुख ही गिन, बनेगी तब जग पहचान, यूं बनना है तुम्हें महान। देंगे दगा जगत के लोग, पाप कर्म लगते हैं भोग, चुगली चाटा बुरे कहाते, कैंसर भांति होते ये रोग। जाना हो धरती से कभी, रो रोकर आंसू बहे सभी, ऐसा दिन जब भी आये, मान...
तिरंगे के खातिर
कविता

तिरंगे के खातिर

रवि यादव कोटा (राजस्थान) ******************** जहाँ तिरंगे के खातिर वो सूली पर, चढ़ जाते हैं, जहाँ तिरंगे की खातिर, हंसते-हंसते मर जाते हैं, जहाँ तिरंगे के खातिर, जीवन अर्पण कर जाते है, जहां तिरंगे की खातिर भारत, दर्पण बन जाते हैं, उसी तिरंगे का भारत में, ऐसा हालात बना देखो, कहीं जलाकर फेंका है, ऐसा आघात करा दे, रोते होंगे राजगुरु, सुखदेव भगतसिंह आंखों से, जिनके लिए दिया जीवन, जलते देखा उन हाथों से, भगत सिंह कहते है....... हमने उसके लिए सदा, माँ-बाप को पीछे छोड़ा है, इसकी आजादी के हित, अपनों से चेहरा मोड़ा है, भूखे प्यासे रहकर भी, शोणित से नित श्रंगार किया, खुद हुए चुपचाप मगर, अपने हिस्से का प्यार दिया, परिवार हमारे भी थे, गर सोच बनाते जीवन में, छोड़ के आजादी सपना, गर मौज बढ़ाते जीवन में, गुलाम दासता जीते फिर, ऐसा आबाद नहीं होता, गर सोच जो ऐसी रखते तो, भारत आजाद नही होता।। परिचय - रवि ...
आलोक
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आलोक

जया आर्य भोपाल म.प्र. ******************** बुझा हुआ है दिल का कोना आलोकित उसको कर दें, वक्त फागुनी आ गया है दिल का दिया जला ले। खोलें खिड़की और दरवाज़े खुली हवा में जी लें, वक्त फागुनी आ गया है मन आलोकित कर लें। सूरज ने भी किरण बिखेरी कीट पतंगे झूमे ईश्वर ने दुनिया रच डाला हम सब संग संग जी लें। नहीं भरोसा है राहों का अगले पल क्या होगा, जीवन के इस पगडंडी को हम आलोकित कर दें। परिचय - जया आर्य जन्म : १७ मई १९४७ निवासी : भोपाल म.प्र. शिक्षा : तमिल भाषी अंग्रेज़ी में एमए. उपलब्धि : ग्रेड १, हिंदी उदघोषक आकाशवाणी मुम्बई, जगदलपुर और भोपाल में कार्यरत। अध्यक्ष शांतिनिकेतन महिला कल्याण समिति। प्रख्यात उद्घोषिका होते हुए उभरते हुए उदघोषकों को प्रशिक्षित किया। जेलों में कैदियों पढ़ने लिखने हेतु प्रेरित किया, जेल मंत्री से सम्मानित। झुग्गी इलाकों में ९५० महिलाओं और बच्चो को साक्षर व्यावसायिक प्रशिक्ष...
सृष्टि की जननी
कविता

सृष्टि की जननी

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हो! पंचतत्व की वाहिनी तो, इस सृष्टि की जननी भी तुम, हर भाव समाहित हैं तुझमें, नव रसों की पोषनी भी तुम... बहता हैं निर्मल आब तुझमे, (वात्सल्य भाव) मन पुलकित हैं सुन रागिनी, (लोरी/ममत्व) हर ताप छूपा उर में महकी, (सहनशीलता ) थिरकी बन कभी तु मोरनी... (अर्पण/समर्पण) सप्त रंगों की तूलिका तुम, (निपूर्णता) उकेरे आँगन बनी दामिनी, (प्रगतिशील) स्याह हुआ, छाया तम तो, (मुसीबत) खिली बन तू फिर चाँदनी... (सृजनशील) नारी हो! या प्रकृति हो तुम, तू ही अवनि, तू ही जननी, कृति अंनत की, सबसे सुंदर, तुम ही हो, वो जीवनदायिनी... परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि र...
औरत की परिभाषा
कविता

औरत की परिभाषा

डॉ. मिनाक्षी अनुराग डालके मनावर जिला धार (मध्य प्रदेश) ******************** ऊंचे ऊंचे सपनों की उड़ान भरती है कभी डरती है कभी सहम् सी जाती हैं जीवन जीने का जो तरीका सिखाती है मुश्किलों में भी आशाओं का जो दीपक जलाएं रखती हैं यही नारी की परिभाषा कहलाती है.... मान सम्मान की जो हकदार होती हैं यह दुनिया जिसकी कर्जदार होती है कठिन मार्ग पर भी जो हंस के गुजरती हैं हर इच्छा को अपना जुनून बनाती हैं यही नारी की परिभाषा कहलाती है नारी है तो दो कुलों की शान है नारी से ही घर की रौनक हैं नारी ही अभिमान है नदी के दो छोरो को जो जोड़ना जानती है यही नारी की परिभाषा कहलाती है परिचय : डाॅ. मिनाक्षी अनुराग डालके निवासी : मनावर जिला धार मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने...
महिला दिवस
कविता

महिला दिवस

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** "नारी रिश्तों की गरिमा है" मौन को जो शब्द दे सके ऐसी मुखरित वाणी है।। समूचे समंदर को एक बूंद में समाहित करना ही महिला दिवस की सार्थकता है नारी ईश्वर प्रदत्त एक नायाब तोहफ़ा है जगत नियंता द्वारा रचित नारी मात्र शब्द नहीं है झांसी की रानी लक्ष्मी बाई है नारी रानी पद्मनी के जौहर की पीड़ा है नारी राजपूताना गौरव पन्ना धाय है नारी असहाय देवकी की करूण गाथा है नारी नारी संसार है जगत जननी है नारी तीरथ है नारी मोक्ष है मैं इस मंच से यह विचार रखना चाहूँगी कि ईश्वर को भी धरा पर जब अवतरित होना होता है तो उसे भी नारी की कोख का सहारा लेना पड़ता है।। "आज महिला स्वविवेक से चुनौतियों को स्वीकार कर चौखट से चाँद तक जा पहुँची है" हर मौसम की बहार है नारी गुणों को बीच कचनार है नारी तन मन को जो कर दे शीतल मेघों से छलकी फुहार है नारी फूलो...
महिलाएं क्या चाहती हैं।
कविता

महिलाएं क्या चाहती हैं।

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** महिलाएं तो बस सम्मान चाहती है। बदलें में हर रिश्ते से, फर्ज निभाती हुई भी जब अपमान ही पाती है। महिलाएं तो बस सम्मान चाहती है।। शक्ति स्तंभ होते हुए भी, समर्पित कर देती हैं खुद को। वह प्रेम में कहां.... कोई व्यापार चाहती हैं। महिलाएं तो बस सम्मान चाहती हैं। बेटियां पराई है। बहू भी पराई है। वह अपने होने का एक अलग एहसास चाहती हैं। महिलाएं तो बस सम्मान चाहती हैं। ना देह से आंकी जाए। ना वस्तु समझ कर जांची जाए। जो सृजक है पूरे संसार की, अपने संसार का अधिकार चाहती हैं। महिलाएं तो बस सम्मान चाहती हैं।। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने प...
चलो महिला दिवस मनाते हैं
कविता

चलो महिला दिवस मनाते हैं

ममता रथ रायपुर ******************** प्रतिवर्ष की भांति चलो फिर से महिला दिवस मनाते हैं नारी सशक्तिकरण के नारों से वसुंधरा को फिर से गुंजायमान करते हैं चलो एक बार फिर से संगोष्ठी, परिचर्चाओं में नारी को सम्मान देते हैं वेदों, पुराणों ग्रंथों में जो नारी है चलो आज फिर से उसका गुणगान करते हैं चलो महिला दिवस मनाते हैं यह रंग बदलती दुनिया है यहां सब अपने रंग दिखाते हैं कुछ दिनों नारी का सम्मान कर फिर वहशी, दरिंदें बन जाते हैं महिला दिवस पर जो समाज की वशिष्ठ महिला का सम्मान करते हैं वहीं फिर अपने घर की बेटी, बहन, मां, पत्नी के साथ दुर्व्यवहार करते हैं, और फिर महिला दिवस मनाते हैं परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली...
इंसान बनो
कविता

इंसान बनो

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** जीवन भर हम खुद को मकड़जाल में उलझाए रखते हैं, सच तो यह है कि हमें बनना क्या है? ये ही नहीं समझ पाते। मृग मरीचिका की तरह भटकते रहते हैं, इंसान होकर भी इंसान नहीं रहते हैं। हम तो बस वो बनने की कोशिशें हजार करते हैं, जो हमें इंसान भी नहीं रहने देते हैं। हम खुद को चक्रव्यूह में फँसा ही लेते हैं, और इंसान होने की गलतफहमी में जीते रहते हैं। काश ! हम इतना समझ पाते इंसानी आवरण ढकने के बजाय वास्तव में इंसान बन पाते, काश ! हम अपने विवेक के दरवाजे का ताला खोल पाते जो बनना है वो तो हम बन ही जायेंगे मगर अच्छा होता हम पहले इंसान तो बन पाते। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९ पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव पुत्री : संस्कृति, गरिमा पैतृक निवास : ग्राम-बरसैनिय...
स्वयं की खोज
कविता

स्वयं की खोज

अनुराधा बक्शी "अनु" दुर्ग, (छत्तीसगढ़) ******************** महिलाएं कभी अपने आप को अबला और कमजोर ना समझे। उनमें हर प्रकार की क्षमता और ताकत निहित है जिसे उन्हें पहचानना है और विकसित करना है और इस राह में निर्णय लेकर मेहनत की राह पर अकेले चलने से कभी डरना नहीं है। सचमुच "डर के आगे जीत है" इस अनुभव से स्वयं को रूबरू कराना है। वो सृजनकर्ता हैं। ये गुण हर स्त्री के अंदर है। सबसे पहले तो महिलाएं सहारा लेना छोड़ दे, क्योंकि वह प्रकृति की सर्वोत्तम रचना है। उनके अंदर अनगिनत रंग भरे हुए हैं जिन्हें उनको समझ कर उन्हे निखारना होगा। शील की तरह स्त्री में भी निर्माण और विनाश की दोनों का गुण है। वो सृष्टिकर्ता है, सृजनकर्ता हैं। अपनी अहमियत समझ उनको अपनी इन गुणों को विकसित कर परिवार और समाज और राष्ट्र के निर्माण में अपनी मजबूत भूमिका निभाना है। स्त्री अपने इन गुणों में तभी निखार ला सकती है जब वह हर परि...
रंग
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डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** बीत गई पतझड़ की ऋतु आया है वसंत मौसम हुआ सुहाना शीत का हो गया अंत चहुँओर प्रकृति में छा गई है मादकता प्रीत की मृदु बयार लिए आ जाओ ना कंत कूके रे कोयलिया मानो पिए भंग है आम्र मंजरियों के बाण लिए अनंग हैं ठौर ठौर गली गली दहक उठे हैं पलाश इंद्रधनुषी आभा- से होली के रंग हैं देख! सब ओर सखी :फागुन की बयार बही पीतवर्णी बसंती परिधान में सजी मही मन के प्रेमिल भाव सब हो रहे हैं मुकुलित राग में भरकर राधा मोहन के कर गही परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय निवासी : पटना (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्र...