बस हैं भटकन
निर्मल कुमार पीरिया
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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आ खड़ा हूँ, आज फिर मैं,
ज़िंदगी तेरे, तंग गलियारे में,
ताक रहा हूं, तन्हा अम्बर,
उलझा जलते बुझते तारों में...
भटक रहे हैं,वलय में अपने,
दिखते हैं, यो तो पास-पास,
चाहें भी तो, मिल नही पाते,
कोई गुरुत्व नही,आस-पास...
नही कोई, संभावना उनमें,
स्याह, प्रहर बस,ख़ालीपन,
निर्वात में नही जीवन ऊर्जा,
पर हैं कितना चमकीलापन...
छूपा हुआ हैं स्रोत कही दूर,
तू सोख रहा ,रोशनाई को,
चमक भर तुझमें, हैं उसकी,
बस वक्ती फ़लक सजाने को...
बंद होते पल्लों के ही फिर,
अंनत जहां यो रोशन होगा,
विलीन हो जायेगे तारे भी,
गलियारे में, तन्हा मन होगा.
परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया
शिक्षा : बी.एस. एम्.ए
सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि.
निवासी : इंदौर, (म.प्र.)
शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं
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