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कविता

आत्मदाह
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आत्मदाह

बिपिन कुमार चौधरी कटिहार, (बिहार) ******************** जिंदगी आसान नहीं, लेकिन मर कर, क्या हासिल होगा, मरने के बाद भी जलना है, फिर जिंदा जल कर, क्या हासिल होगा, अगर जलना है, तो ऐसे जलो, परेशानियां जल कर, भस्म हो जाय, कर्म पथ पर नित्य यूं आगे बढ़ो, सारे विघ्न हल हो जाय, कौन रखेगा याद तुम्हें, इस मेले में रोज की यही कहानी है, अंतिम सांस तक, जिसने किया यहां संघर्ष, दुनियां उसी की दिवानी है, मूर्खता में उठा कर, यह मूर्खतापूर्ण कदम, करके तूने अपना अंग भंग, जीवन खुद का नरक बनाया है, क्षणिक आक्रोश में सब कुछ गंवा कर, बता तूने क्या पाया है... परिचय :- बिपिन बिपिन कुमार चौधरी (शिक्षक) निवासी : कटिहार, बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित कर...
टूटी है सिंदूर दानी
कविता

टूटी है सिंदूर दानी

अनन्या राय पराशर संत कबीर नगर (उत्तर प्रदेश) ******************** पैरों में गाढ़ा महावर हाथ में मेहंदी रची है और माथे पर चमकती रेख कुमकुम की बची है बोलती बिंदिया सलोनी और होंठो पे है लाली पलकों पे सपने हजारों हाथ में पूजा की थाली आंसूओं से आचमन कर और जलाकर के दिए मांगती है वर कि पति मेरा जुग जुग जिए बस यही है कामना वो जल्द आए और क्या बीती है कैसे सब सुनाए हाथ से अपने मेरा श्रृंगार करते और मेरी मांग भी खुद ही से भरते पर नियति का खेल भी है क्या निराला ऐसे कैसे भाग्य का सिक्का उछाला एक चिट्ठी आई है लेकर कहानी टूटी है सिंदूर दानी... एक पल में है लुटा संसार सारा बेंदी बेसर और नथनी को उतारा कानो से बालों को खुद ही नोच डाला और कुमकुम हाथ से ही पोछ डाला आंख में बस आंसूओं की लड़ी थी मौन होकर एक कोने में खड़ी थी चित्र पर बस हाथ अपने धर रही थी और पति के साथ ही में ...
बेफ़िक्री का नायक
कविता

बेफ़िक्री का नायक

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** जाने किस दौर में ये जग प्रवेश कर गया मानो बुराई अंत हेतु अति निवेश कर गया। होली तो आस्था मित्रता की परिचायक रही होली-पर्व तो बेफिक्री का नायक बन गया। घुसपैठ, साजिशें नित्य सुना रही चाप है शातिर 'वाज़े' के नगाड़े की मूक थाप है चुनावी-हिंसा मानव रंगों से बना नाप है उमड़ती भीड़ से कोरोना बम फट गया गुबारमय गुलाल उड़ाना चाहत बन गया जाने किस दौर में ये जग प्रवेश कर गया होली-पर्व तो बेफिक्री का नायक बन गया। चुनावी दम दिखाने नेता सत्ता हाजिर हैं बनावट मिलावट रंग से हो जाते जाहिर हैं हृदय परिवर्तन ढकोसला रंगों में माहिर हैं घूमना आना जाना दिवा स्वप्न सा बन गया सम्मान का तिलक गुलाल सवाल बन गया जाने किस दौर में ये जग प्रवेश कर गया होली-पर्व तो बेफिक्री का नायक बन गया। बसंत पतझड़ उपरांत होली त्योहार प्रसंग है पतन का पर्याय रूप तीज त्योहार उमंग गिरग...
अप्रैल फूल
कविता

अप्रैल फूल

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** अप्रैल फूल कही नहीं खिलता मगर खिल जाता एक अप्रैल को क्या, क्यों, कैसे? अफवाओं की खाद से और मगरमच्छ के आँसू से सींचा लोगो ने इस अप्रैल फूल को। इसीलिए ये झूठ का पौधा एक अप्रैल के गमले में फल फूल रहा वर्षो से। लोग झूठ को भी सच समझने लगे झूट के बाजारों में क्या अप्रैल फूल के बीज मिलते जब पूछे, तो लोग कहते-हाँ बस एक अप्रैल को ही दुकानों पर मिलते है। आप को विश्वास हो तो आप भी लगाए घर की बालकनी में और आँगन में लोगो को जरूर दिखाए कहे कि हमारे यहाँ एक अप्रैल का फूल खिला ताकि उन्हें कुछ तो विश्वास हो। एक अप्रेल को भी सुंदर सा फूल खिलता है जैसे वर्षों बाद खिलता ब्रह्म कमल जिसे देखा होगा सबने मगर अप्रैल फूल कभी देखा नहीं शायद एक अप्रैल को हमारे द्वारा बोया ही हमे देखने का सौभाग्य प्राप्त हो। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतील...
होली गीत
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होली गीत

शिव कुमार रजक बनारस (काशी) ******************** अवधपुरी काशी से लेकर ब्रज में बाल गोपाल के रंगे जा रहे गाल सभी के रंगों और गुलाल से।। प्रेम के रंग में राधा नाचें प्रीत के रंग में सखियाँ बाल सखा संग मोहन नाचें वृंदावन की गलियाँ लट्ठमार की रीति अमर है, होली के त्योहार से रंगे जा रहे गाल सभी के, रंगों और गुलाल से।। ढोल मृदंग की ताल पर थिरकें अवधपुरी के वासी अंग से रंग लगाकर भागे देवर से सब भाभी गीत फाग के गाए जाएं सुबह शाम चौपाल से रंगे जा रहे गाल सभी के, रंगों और गुलाल से।। मंदिर में कैलाश सज रहे घाटों पर सन्यासी भांग के मद में मस्त पड़े हैं मुक्तिद्वार के वासी चिता के भस्म की होली होवे काशी के श्मशान में रंगे जा रहे गाल सभी के, रंगों और गुलाल से।। परिचय :- शिव कुमार रजक निवासी : बनारस (काशी) शिक्षा : बी.ए. द्वितीय वर्ष काशी हिंदू विश्वविद्यालय घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ क...
आओ रंजोगम दूर भगाये
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आओ रंजोगम दूर भगाये

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** आओ रंजोगम दूर भगाये!....... खुशियों के संग होली मनाये!..... हैं नई फ़िज़ा और नया जमाना, गाये सब खुशियो का तराना करे काष्ठ छोड़ कर्कट दहन, भीतर बाहर सब शुद्ध बनाये, सपनो के संग होली मनाये!...... अमन चैन की हवा सुस्त हैं, बाकी तो सब कुछ दुरुस्त हैं दिल से सब को लगा गले, आओ गीत सौहार्द के गाये, अपनो के संग होली मनाये!..... चहुँ ओर हो हँसी व ठिठोली, खेले मिल-जुल कर सब होली, लेकर ढोल मंजीरे व ताशे, नाच-नाच कर फ़ाग सुनाये, रंग रंगीली सब होली मनाये!.... है खिल उठे जंगल मे पलाश, जागी मन मे मीत की आस, देख सजनी के सराबोर वसन, तन मन मादकता भर जाए, प्रिय संग खूब होली मनाये!..... जलाये जो हैं अशुभ असुंदर, और सृजन करे नूतन निरंतर, यह पर्व हैं नव पल्लवो का, युवा नव पथ पर पग बढ़ाये, संकल्पो के संग होली मनाये!.... रंगों से भर कर के प...
पहली होली
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पहली होली

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** खेलूंगी-खेलूंगी मै तो पहली होली कान्हा जी के संग...। खेलूंगी-खेलूंगी मै तो पहले होली कान्हा जी के संग....। कान्हा जी के संग कान्हा जी के संग छोड़-छाड़ मे सबको आई ढोल बजाऊ ओर चंग नाचूंगी गाऊगी मेतो कान्हा जी के संग....। थोड़ा इठलाऊगी थोड़ा शरमाऊगी कभी मुस्काऊगी रंग लगवाउंगी देखो गाल गुलाबी करवाउंगी ओर मालवाउंगी सब अंग हंस कर बोले कान्हा रंग खेलोगे मेरे संग उड़ान गुलाबी रंग बुलाओ तुम सखियाँ .........। खेलूंगी-खेलूंगी मै तो कान्हा जी के संग पहली होली कान्हा जी के संग ...। इत इत देखूं उत उत देखूं पाऊ ग्वाल बाल संग कान्हा बजाने बासूरिया सखा बजावे चंग सखा बजावे चंग खेलूंगी खेलूंगी मै तो कान्हा जी के संग मौका पाकर कान्हा आये खूब उठाये रंग गाल मले हे ओर मले सब अंग खेलूंगी खेलूंगी मै तो कान्हा जी के संग अंग अंग मेरो योवन झूमे र...
सितारों से आगे …
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सितारों से आगे …

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** मचा हुआ जहां अति शोर भी है, रात कभी बीतती होती भोर भी है, पतंग जब उड़ती साथ डोर भी है, सितारों से आगे जहां और भी हैं। हिम्मत जिसमें होती आसमां तोड़े, निठल्ले उड़ाते रहते हैं कागजी घोड़े, इंसान वो जो काम से थकता थोड़े, देव वो है जो कष्ट में मुख ना मोड़े। झुक जाता है आसमान जो झुकाता, छुपता नहीं झूठ बेशक लाख छुपता, महान है जो हँसकर समय बीताता, राक्षसी लोगों से संत इज्जत बचाता। कभी अपनों पर भरोसा अधिक नहीं, चलते चलते मिल जाये प्रभु भी कहीं, दर्द होता है दिल से आंसू भी हैं बही, शुभ कर्म करते रहो मिलता दूध दही। हिम्मत जिसमें हो तो किनारा मिलता, पतझड़ जब गुजर जाये फूल खिलता, बिछुड़ा हो अगर एक दिन है मिलता, पवन के झोंके जब चले पर्वत हिलता। सांझ बीत जाये तब सवेरा भी आएगा, बल दिल में हो तो सुबह भी आयेगा, करने की तमन्ना हो तो, जरूर पाए...
जीवन के रंग
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जीवन के रंग

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** जिंदगी तो हर पल ही रंगीन है, एक रंग में रंगना, इसकी तौहीन है।। तरह तरह के रंग है इसमें हर रंग के अनुभव है इसमें हर उम्र की एक नई है भाषा, हर उम्र में एक नूतन अभिलाषा, हर भाव का अपना विशेष रंग चलो हम भी भीगे उसके संग, बचपन, जवानी और बुढ़ापा, जैसे लाल, गुलाबी और जामुनिया।। हर रंग अपना असर दिखलाता वक़्त के साथ बदलता जाता।। तरह तरह के अनुभवों ने जीवन मे अनेक रंग है बिखराये।। कभी गुलाबी खुशीयों की बहार आई, कभी गहरे आँसुओं के सैलाब आये।। कभी सुनहरा पल आया जब क़ामयाबी ने कदम चूमे, तो कभी अंधियारे राहों पर चलते सीधे कदम भी डगमगाए।। कभी हर तरफ लाली छाई, जब खुशियों के क्षण है आये तो कभी श्वेत रंग में डूब गए, जब अपने हम से रूठ गए।। हर सुबह नारंगी धूप एक नई शुरुआत है लाई।। हर शाम की नीलिमा एक नया परिणाम है लाई। हर एक पल बस बीत गया ऐसे, चित्र पटल पर च...
रिश्तों को लगी नजर
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रिश्तों को लगी नजर

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** बड़े आराम की थी रिश्तों भरी जिंदगी लग गयी हैं अब रिश्तों को भी नजर। किसने की ये हिमाकत दूर करने की अपनों से ही अपनों ने फेर ली नजर। हर कोई निश्चंत था संबंधों को लेकर आनाजाना भी सरल था बैखौफ होकर मस्ती में मस्त थे सब खुशियां थी भरपूर कोरोना ने लील लिया बनकर एक नासूर। हवा कुछ ऐसी चली दुनिया बदल गई मुंह तो ढक लिया पर नजरें बदल गई पास पास थे हम जितने अब दूर हो गये कुछ बोलने के लिए मुंह से मजबूर हो गये । हर कोई पूछ रहा हैं कब तक रहेगें ऐसे सरकारें भी मौन हैं जो जी रहा हैं जैसे बारबार के लाकडाउन ने कमर तोड़ दी उम्मीदों की महफिल ने आशाऐं छोड़ दी जब भी जरा सी उम्मीद नजर आती हैं दूर से फिर गम की यह खबर आती हैं। चला गया रिश्तों का एक रिश्ता भी हमसे अब कोरोना के डर में हर रात गुजर जाती हैं। सुबह कोई अखबार हमें फिर डरा देता हैं। चैन...
गाँव की होली
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गाँव की होली

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** होली आते ही मुझे याद गाँव की आ गई। कैसे मस्ती से गाँव में होली खेला करते थे। और गाँव के चौपाल पर होली की रागे सुना थे। अब तो ये बस सिर्फ यादे बनकर रह गई।। क्योंकि मैं यहां से वहां वहां से जहां में। चार पैसे कमाने शहर जो आ गया।। छोड़कर मां बाप और भाई बहिन पत्नी को। चार पैसे कमाने शहर आ गया। छोड़कर गाँव की आधी रोटी को। पूरे के चक्कर में शहर आ गया। अब न यहाँ का रहा न वहाँ का रहा। सारे संस्कारो को अब भूल सा गया।। चार पैसे कमाने....। गाँव की आज़ादी को मैं समझ न सका। देखकर शहर की चका चौन्ध को। मैं बहक कर गाँव से शहर आ गया। और मुँह से आधी रोटी भी मानो छूट गई।। चार पैसे कमाने...। सुबह से शाम तक शाम से रात तक। रात से सुबह तक सुबह से शाम तक। मैं एक मानव से मानवमशीन बन गया। फिर भी गाँव जैसा मान शहर में न पा सका।। चार पैसे कमाने यहाँ वहाँ भटकता रहा...
होली का हुड़दंग
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होली का हुड़दंग

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** फागुन का मास लाया गीतो और रंगों भरा उल्लास होलिका के संग दहन हो आलोचना, ईर्ष्या, अंतर्द्वंद आज न माने दिल कोई प्रतिबंध मन मे हिलोरे लेती तरंग पिया लगाये गौरी को प्रीत का पक्का रंग अनुबंध मे बहके, जैसे चढ़ी प्रेम की भांग परंपरागत व्यंजनों की सजी रंगोली फागुन के गीतों ने, कानों मे है मिश्री घोली जात्त-पात, ऊँच-नीच के भिन्न-भिन्न गुब्बारे एकता का रंग बरसाते हुए जैसे भाईचारे के चले फव्वारे बोल रहा हर एक इंसान, बस मस्ती की बोली हास्य रंग से भरी पिचकारी, छोड़े हँसी ठिठोली इन्द्रधनुष-सा मनमोहक समाँ, उड़ा जो महकता अबीर तन भीगा, अंग रंगीन, जो बरसा रंगोंं से सरोबार नीर गूँज रहे ढोल, मँजीरे और संग में बज रहा मृदंग हर दिल बचपने में रंगा, मचा रहा होली का हुडदंग परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्...
होली आई रे
कविता

होली आई रे

रूपेश कुमार चैनपुर, सीवान (बिहार) ******************** होली आई रे आई रे होली आई रे, जीवन को रंगों से रंगायी रे, मन मे पुलकित पंख लगायी रे, लाल हरा रंग रंगाई रे ! होली आई रे आई रे होली आई रे, मन तन के दिल मे आग लगायी रे, जीवन को मदहोश करायी रे, मन में बसंत बहार लायी रे ! होली आई रे आई रे होली आई रे, जीवन को सातों रंगों से रंग मे मिलाई रे, प्यार और भाईचारे का नदियाँ बहाई रे, हिंदू-मुस्लिम का भेदभाव मिटायी रे ! होली आई रे आई रे होली आई रे, रिश्ते नाते को एक डोरे मे बाधि रे, मंदिर मस्जिद को अपनाई रे, दिल मे दुनिया-जहान को समाई रे ! होली आई रे आई रे होली आई रे ! परिचय :- रूपेश कुमार शिक्षा : स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डिप्लोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली यूपी) वर्तमान-प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी ! निवास : चैनपुर, सीवान बि...
होली में
कविता

होली में

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ईर्ष्या द्वेष को मिटा दे होली में, नफरत की दीवार गिरा दें होली में, प्रेम सहिष्णुता को अंगीकार करें, जीवन को रंगीन बना दे होली में। जीवन के वृंदावन में, रंगों की बौछार, हवा के रथ पर रंग अबीर, उड़ते घर- घर द्वार, सत्यम शिवम -सुंदरम सा, सुंदर हो विचार, सुदृढ़ एकता के बंधन में, बंध जाए संसार, रंग-भंग और मस्ती के संग, फाग गाएं होली में, जीवन को रंगीन, बना दे होली में। सुख समृद्धि हो जीवन में, चारों ओर प्रकाश, ढोल नगाड़ों के संग नाचे, मन में हो उल्लास, तन-मन केशरिया हुआ, जीवन हुआ मधुमास, आसमान रंगीन हुआ, धरती हुई पलाश, अहं के पर्वत को पिघला दे होली में, जीवन को रंगीन बना दे होली में। परिचय :- श्रीमती शोभारानी तिवारी पति - श्री ओम प्रकाश तिवारी जन्मदिन - ३०/०६/१९५७ जन्मस्थान - बिलासपुर छत्तीसगढ़ शिक्षा - एम.ए समाजश शास्त्र, बी...
बसंत
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बसंत

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** सुमन सुवास सुरभित उपवन, मन को अतिशय भाया है। तन हर्षित है, मन हर्षित, मौसम बासंती आया है।। माँ भगवती को करूँ नमन, रोली कुमकुम और चंदन। धूप दीप अक्षत अर्पण, हाथ जोड़ करूँ मैं वंदन।। विद्या वाणी सुरों का दान, वरद मुझे दो बनूँ गुणवान। वास करो माँ कंठ मे मेरे, बनूँ मैं जग में सदा महान।। भक्तिमय सकल संसार, बुद्धि भंडार समाया है। तन हर्षित और मन हर्षित, मौसम बासंती आया है।। लहराती गेहूँ की बाली, फूली सरसो पीली वाली। बौर सजे है अमुआ डाली, कोयल कूके है मतवाली।। धरा कर रही है श्रृंगार, बहे बाग में शीत बयार। शीत ऋतु की करे विदाई, दिनकर ने थामी तलवार।। पीली धरणी पीला अंबर, पीत वर्ण ही भाया है। तन हर्षित और मन हर्षित, मौसम बासंती आया है।। रसमय फूलों के मकरंद, तितली भरती अपने रंग। प्रेम प्रीत बरसाती अपना, ले जाती हैं अपने सं...
जिंदगी के रंग
कविता

जिंदगी के रंग

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** कोई रंग भरने, जीवन में तेरे, बाहर से नहीं आएगा। तेरे जीवन में रंग, तो .........तेरे ही भरने से आएगा। कोई रंग भरने, जीवन में तेरे, बाहर से नहीं आएगा। किस सोच में .......हो। कोई बांध के, रंगों को सारे, इंद्रधनुष.....! तेरे हाथ में थमा जाएगा। जिंदगी को तेरी, रंगों से रंगीन, वह कर जाएगा। कोई रंग भरने, जीवन में तेरे, बाहर से नहीं आएगा। हकीकत के, उन बदरंग दागों से लड़। तू अपनी...... हिम्मत से, जिंदगी में रंग नये ... जब तक ना भर पाएगा। दुनिया के, रंगों के इंतजार में, बंदरंग तू हो जाएगा। कोई रंग भरने, जीवन में तेरे, बाहर से नहीं आएगा। तेरे जीवन में असल रंग तो, तेरे भरने से ही आएगा। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौल...
दयाभाव
कविता

दयाभाव

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** चिलचिलाती धूप में राष्ट्रीय राजमार्ग पर दुर्घटना ग्रस्त बाइक सवार को देख पहले तो मैं घबड़ाया, फिर हिम्मत करके अपनी बाइक को किनारे लगाया। घायल युवक के पास गया, उसकी हालत देख मैं काँप गया, फिर वहाँ से भाग निकलने का विचार किया। परंतु दया भाव से मजबूर हो गया। अब आते-जाते लोगों से मदद की उम्मीद में सड़क पर आते-जाते लोगों से दया की भीख माँगने लगा। बमुश्किल एक अधेड़ सा व्यक्ति आखिर रुक ही गया, मेरी उम्मीदों को जैसे पंख लग गया। मैंने हाथ जोड़ मदद की गुहार की, मेरी बात उसे बड़ी नागवार लगी। उसने समझाया लफड़े में न पड़ भाया, तू बड़ा भोला दिखता है फिर लफड़े में क्यों पड़ता है? ऐसा कर तू भी जल्दी से निकल ले पुलिस के लफड़े से बच ले। ये तेरा सगेवाला नहीं है मरता है तो मरने दो दया धर्म का ठेकेदार न बन, तुम्हारे दया धर्म के चक्कर में वो मर गया...
प्रीति चित्रण
कविता, डायरी

प्रीति चित्रण

भारमल गर्ग जालोर (राजस्थान) ******************** मौन धारण कर वचन मेरे, लज्जा आए प्रीत मेरे। मगन प्रेम सांसे सत्य ही है, शब्द अनुराग है मेरे।। दुखद: प्रेम सदियों से चला आया। माया, लोभ ने विवश बनाया।। कामुक कल्पनाएं प्रेम सजाए, विनम्र प्रेम जगत सौंदर्य दिखाएं। प्रीति, प्यार अनोखा चित्रण मन को भाता यह बोध विधान।। बजता प्रेम का है यह अलौकिक संदर्भ जगत में। देखो सजना सजे हैं हम प्रेम इन जीवन अब हाट पे।। स्वर का विश्वास नहीं, देखो माया संसार में। वाणी के बाजे भी अब तो, टूट गए हैं आस में।। प्याला मदिरा का मनमोहक दृश्य लगे जीवन आधार में। बिखरे हैं यह सज्जन देखो, टुकड़े-टुकड़े कांच जैसे कांच के।। कलयुग में सजती है स्वर्ण कि यह लंका। ताम्र भाती प्रेम बना है, प्रेम यह संसार में।। मैं चला हूं उस पथ पर अग्रसर कटु सत्य वचन से। मिथ्य वाणी ना बोलता सदा करूं मनमोहक जीवन से।। एहसास है मेरे, हमदम प...
होली का रंग
कविता

होली का रंग

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** तुम्हें कैसे रंग लगाएं, और कैसे होली मनाएं? दिल कहता है होली, एक-दूजे के दिलों में खेलो क्योंकि बहार का रंग तो, पानी से धुल जाता है पर दिल का रंग दिल पर, सदा के लिए चढ़ा जाता है॥ प्रेम-मोहब्बत से भरा, ये रंगों का त्यौहार है। जिसमें राधा कृष्ण का, स्नेह प्यार बेशुमार है। जिन्होंने स्नेह प्यार की, अनोखी मिसाल दी है। और रंग लगा कर, दिलों की कड़वाहट मिटाते हैं॥ होली आपसी भाईचारे, और प्रेमभाव को दर्शाती है। और सात रंगों की फुहार से, सात फेरों का रिश्ता निभाती है। साथ ही ऊँच-नीच का, भेदभाव मिटाती है। और लोगों के हृदय में, भाईचारे का रंग चढ़ाती है॥ परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इ...
रंग-रंग के रंग
कविता

रंग-रंग के रंग

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रंग-रंग के रंग खिले लाल हरे नीले पीले जीवन उल्लास रे आनंद घट पीले आनंद घट पीले झूम रहा टेसू है झूम रहा अमलतास है गुलमोहर की छांव में बीत रहा मधुमास है क्षण क्षण भंगुर यहाँ क्षण क्षण को जीले आनंद घट पीले आनंद घट पीले। रंग आकाश का रंग प्रकाश का रंग माटी का पवन के रंग में घुला रंग सलिल का जीवन का हर तल छूले आनंद घट पीले आंनद घट पीले आमोद है प्रमोद है रसरंग से भरी भरी प्रकृति की गोद है ऋतुएँ सीखा रही सप्तसुरो के भेद है गा गीत प्रेम के लगा सभी को गले आनंद घट पीले आनंद घट पीले ह्रदय के आलोक में बरसा प्रेम त्रिलोक में जन्म हो सार्थक तेरा जन हो समर्थक तेरा जीवन ऐसा जीले आनंद घट पीले आनंद घट पीले रंग रंग के रंग खिले लाल हरे नीले पीले। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्...
गुलाबी गुलाल
कविता

गुलाबी गुलाल

विकाश बैनीवाल मुन्सरी, हनुमानगढ़ (राजस्थान) ******************** गुलाबी गुलाल लगाए, हाथ जो भी लग जाए। गुड़िया के लगा रंग, देखो मुन्ना खूब हर्षाए। प्रफुल्लीत हुए तन-मन, आज दिल बड़ा प्रसन्न। झाँझर चमके गोरी के, बंगड़ी बजे खन्न-खन्न। ओ यारों की टोली सजी, लगी महफिल की अर्जी। भांग पीकर मस्ती हुए है, चलाते सब अपनी मर्जी। पिचकारी फव्वार चली, रंगो-रंग हुई गली-गली। घर लौट आए अब सब, जब दोपहर-शाम ढली। दरवाज़े की कुंडी खोली है, जो दिखी सूरत भोली है। अरे लगा ग़ुलाल भागकर, यार बुरा न मान होली है। परिचय :- विकाश बैनीवाल पिता : श्री मांगेराम बैनीवाल निवासी : गांव-मुन्सरी, तहसील-भादरा जिला हनुमानगढ़ (राजस्थान) शिक्षा : स्नातक पास, बी.एड जारी है घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मं...
आओ मिलकर रंग सजाएँ
कविता

आओ मिलकर रंग सजाएँ

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** तुमसे, मुझसे,उससे, इससे माँग कर थोड़ा साथ तो लाएँ। आओ मिलकर रंग सजाएँ। लाल, गुलाबी, चटक रंग को हर सूने मन पर बरसाएँ। आओ मिलकर रंग सजाएँ। बीमारी ने पकड़ रखा है, पंजों में अपने जकड़ रखा है। दूर हुए जो घर आँगन से फिर से सबको साथ में लाएँ। आओ मिलकर रंग सजाएँ। दूर हुए बस तन ही तन से जुड़े हैं तार तो मन के मन से। क्या होता जो दो सालों से होली गुलाल की खेल न पाए। आओ मिलकर रंग सजाएँ। गीतों से कुछ रंग चुराकर होली के दिन मेल मिला कर आभासी माध्यम को अपनाकर क्यों न पुराना फगुआ गाएँ। आओ मिलकर रंग सजाएँ। जो न मिला फिर याद करें क्यों, बस सबसे फरियाद करें क्यों? सूने पड़ते चौबारों में फिर से रंगों को बिखराकर आस का क्यों ना दीप जलाएँ। आओ मिलकर रंग सजाएँ। परिचय :- श्रीमती विभा पांडेय शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी एवं अंग्रेजी), एम.एड. जन्म : २३ सितम...
सार्व भौम चेतना
कविता

सार्व भौम चेतना

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) धवारी सतना (मध्य प्रदेश) ******************** निराकार परमात्म प्रभु का, होता नही है कोई आकार। भक्त के मन के भाव सदा, दे, देते हैं प्रभु को आकार।। मन में प्रतिक्षण चिंतन आता, इस सृष्टि का कौन नियामक। कौन बिगाड़े, कौन बनाये, कौन बना है इसका नायक।। क्या नायक हैं ब्रह्मा, विष्णु, या हैं नानक, ईशा, राम आओ तनिक विचारें हम, खोज उन्हें, हम करें प्रणाम।। खोजे किसी सहृदय के मन में, हमें मिलेगा प्रभु का वास। ईश रूप का तत्व समेंटे, ये जन होते आस ही पास।। कभी कला के रूप में आकर, बन जाते हैं, वे कलाकर। फिर कला निखरती कलाकार की, कला में दिखता प्रभु का आकार।। कभी लेखनी में बस कर ईश्वर, करते शब्दों का निर्माण। कवि की निर्जीव इस लेखनी में ईश तत्व से ही बसते प्राण।। अतः किसी को करें न आहत, सबमें पायें प्रभु का दर्शन। अब न भटकें हम आकारों में, निराकार का यही है चिंतन।। ...
मां
कविता

मां

रश्मि नेगी पौड़ी (उत्तराखंड) ******************** मेरा संसार ही तू मां मेरी ईश्वर ही तू मां है सब कुछ तू ही मेरी मेरा प्राण ही तू माँ तुझमें बसती मेरी जान है… तू ही मेरी शान है तू ही मेरी मित्र मां तू ही मेरे जीवन का सार मां तू सबसे मीठा बोल है मां संसार में सबसे अनमोल है मां मेरे हर मर्ज की दवा है तू मां तेरे जैसा इस संसार में कोई नहीं है मां तुलना तेरी किसी से कर नहीं सकती क्योंकि तू स्वयं में सर्वश्रेष्ठ है मां परिचय : रश्मि नेगी निवासी : पौड़ी उत्तराखंड शिक्षा : एम.ए. प्रथम वर्ष राजनीति विज्ञान सम्प्रति : अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद पौड़ी जिले की जिला सह संयोजिका। घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक ...
मौत
कविता

मौत

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** बैठे है कब से मेरे सिरहाने आस-पास वे भी, जिन्हें फुर्सत ना थी कभी मुझसे मुलाकात की। जिन्हें पसंद ना थी मेरी शक्ल फूटी आंख भी, अब दर्शन को भीड़ लगी है सारी कायनात की। जिनसे तोहफे में नसीब ना हुआ इक बोल भी, आज वे भी मुझ पर बरसा रहे फूल कचनार की। तरसे- रोये है मुश्किलों में हम एक कन्धे को, और अब बानगी देखिए जरा हजारों कन्धों की। कल दो कदम साथ चलने वाला ना था कोई, अब गणना असंभव है साथ चल रहे कारवां की। कमबख्त जिंदगी मौत से बदत्तर लगी आज, कितने रो रहे यहां कमी नहीं चाहने वालों की। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप ...