Saturday, February 1राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

कविता

शहीद की विधवा की करुण पुकार
कविता

शहीद की विधवा की करुण पुकार

संजय सिंह मुरलीछापरा बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** https://www.youtube.com/watch?v=EwqM3U6fpiw परिचय :- संजय सिंह पिता : स्व. लाल साहब सिंह निवासी : ग्राम माधो सिंह नगर मुरलीछपरा जिला बलिया उत्तर प्रदेश सम्प्रति : प्रधानाध्यापक कम्पोजिट विद्यालय रामनगर घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। https://youtu.be/4NSBGzwFVpg आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻 आपको यह रचना अ...
नव बना रहे हिंदुस्तान
कविता

नव बना रहे हिंदुस्तान

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** संवत् विक्रम करते हैं तुमको नमन आनंद बन लाए नव चितवन है तुमसे नवागत गुड़ी पड़वा चैत्र नवरात्र का है जलवा बैसाखी करती मन पुरवा राजीव लोचन आए पलना झूलेलाल की झांकी महान् नवरोज की भी रखते शान आम्रफल से सज गया उद्यान देखो, नव पल्लव, नव धान वसुधैव कुटुंबकम् की तुम पहचान नव निधि साथ लिए नव बना रहे हिंदुस्तान https://youtu.be/0GKyIN1ETfA परिचय :- डॉ. निरुपमा नागर निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gm...
कोरोना दूर भगाना है
कविता

कोरोना दूर भगाना है

शिवेंद्र शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जाग उठो, अब जाग उठो, हम सबकी जान बचाना है, इस कोरोना महामारी से, भारत को मुक्त कराना है। इटली, चीन सी दशा देश की, अब न देखी जाती है, कीड़े, मकोड़ों की नाई, ये मौत न देखी जाती है। देख के मंजर अति भयानक, फिर तुम्हे समझाना है, इस कोरोना महामारी से,.... घर में ही रहना है भाई, बाहर नहीं निकलना है साबुन लगा के बार बार, हाथों को धोते रहना है दूर ही रहना है सबसे, नहिं करीब अब आना है इस कोरोना महामारी से,.... बहुत जरूरी होने पर ही, तुमको बाहर जाना है निकलो मास्क पहन कर ही, फिर जल्दी घर में आना है। आई भीषण विपदा से, सबको हमे बचाना है। इस कोरोना महामारी से,... जरा सी लापरवाही भी, मँहगी बड़ी पड़ सकती है। खुद के साथ साथ मुसीबत, घर वालों की बड़ सकती है। जरा सी दिक्कत होने पर, डॉक्टर को दिखलाना है। इस कोरोना महामारी से, भारत को मुक्त कराना है...
पेपर आए, पेपर आए
कविता

पेपर आए, पेपर आए

साहिल नवांकुर चरखी दादरी ******************** (अध्यापक बच्चो से) हरदम हंसने वाले बच्चे, पता नहीं कहा गुप हुए। शोर शराबा जिनकी आदत, पता नहीं क्यों चुप हुए? ये बात समझ मुझे जरा ना आई! क्यों बच्चे चिंतित दे रहे दिखाई? क्या बात हुई बच्चो बतलाओ? क्या दिक्कत है मुझको समझाओ डरे हुए, सहमें हुए, तुम अच्छे नहीं लगते हो। अचानक जैसे बड़े हुए, तुम बच्चे नहीं लगते हो। (बच्चे अध्यापक से) ये दिक्कत है बहुत पुरानी, सब बच्चो की यही कहानी। हर साल जो आती है, खुशी छीन ले जाती है। फिर से सबके मन में आए, पेपर आए, पेपर आए, जाने कैसे राहत पाए। अब एक ही अरमान है दिखता, बच्चो को भगवान है दिखता। अब सब उस प्रभु को याद करेंगे। हाथ जोड़ फ़रियाद करेंगे। अब प्रभु जी ही हमें बचाएं, पेपर आए, पेपर आए, जाने कैसे राहत पाए। परिचय :- साहिल नवांकुर निवासी : चरखी दादरी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिक...
युगपुरुष
कविता

युगपुरुष

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** युग पुरुष किसे हम माने, जो कर्म पथ पर डटा रहा। जो टूटा नही, सलाखों मे, रणभेदी, डंका बजा रहा।। नभ पर खुशियाँ छायी, बाल के घर मे लाल हुआ। जब पैर पालने मे खोले, युगपुरुष का जन्म हुआ।। जब युवा अवस्था मे पहुँचे, तब जन्मभूमि चीत्कार उठी। तब कूद, पडे अंदोलन मे, मन मे स्वाधीनता जाग उठी।। काॅलेज मे अव्वल आये पत्रकारिता से जयघोष किया। जन-जन मे पैदल भटके स्वाधीनता का सम्मान दिया।। अपने पथ से विचलित न हुऐ न उन्हे सलाखें, डिगा सकी। बनकर जन जन के कर्णधार, स्वाधीनता, अधिकार दिला दिया।। वो जीवट थे, 'लौहपुरुष, भारत माँ, के बेटे थे। दुश्मन के दाँत किऐ खट्टे, है,नमन उन्हे, वो सच्चे थे।। परिचय :- रीमा महेंद्र सिंह ठाकुर निवासी : झाबुआ (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
अजनबी पर दोस्त
कविता

अजनबी पर दोस्त

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** ज़रा सी दोस्ती कर ले.., ज़रा सा साथ निभाये। थोडा तो साथ दे मेरा ..., फिर चाहे अजनबी बन जा। मिलें किसी मोड़ पर यदि, तो उस वक्त पहचान लेना। और दोस्ती को उस वक्त, तुम दिल से निभा देना।। वो वक़्त वो लम्हे, कुछ अजीब होंगे। दुनिया में हम शायद, खुश नसीब होंगे। जो दूर से भी आपको, दिल से याद करते है। क्या होता जब आप, हमारे करीब होते।। कुछ बातें हमसे सुना करो, कुच बातें हमसे किया करो..। मुझे दिल की बात बता डालो, तुम होंठ ना अपने सिया करो। जो बात लबों तक ना आऐ, वो आँखों से कह दिया करो। कुछ बातें कहना मुश्किल हैं, तो चहरे से पढ़ लिया करो।। जब तनहा तनहा होते हो तुम। तब मुझे आवाज दे देना। मैं तेरी तन्हाई दूरकर दूंगा। बस दिल से याद हमे करना।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई मे...
तेरा आज यूॅ मुस्कराना
कविता

तेरा आज यूॅ मुस्कराना

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** तेरा आज यूॅ मुस्कराना हमें मिला है यूॅ खज़ाना बहारो का भी खीलना दो दिलो का यूॅ मिलना हजार महफिल हो सजी ओर तुम्हारा यूॅ संवरना तेरे दीदार का होना ही हमारे दिल का यूॅ हंसना तुम हो दिल का खजाना कहता हे सब, ये जमाना तुम्हारा यूॅ खिले रहना ओर मेरा यूॅ गुन गुनाना तस्वीर सजाई हे "मोहन" मानो दिल का यूॅ सपना परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने ...
धरती की संतान
कविता

धरती की संतान

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** हम सब धरती की संतान हैं अच्छा है, समझ है हममें, हम है समझदार भाइयों-बहनों हमारा क्या कहना इसलिए तो भगवान ने हमें बनाया साहित्यकार धरती की भलाई करने को हम सदा है तैयार। हमें अब बहुत कुछ करने की ज़रूरत है आखिर जब धरती माँ ने अपना विशाल आँचल फैला रखा है हमें कष्ट न हो इसीलिए एक विशाल परिवार बना रखा है। हमारे खाने पीने जीने के लिए लाखों लाख जतन कर रही है। लायक बच्चों पर धरती माँ अब नाज़ कर रही है। नदी, झील, झरने, नदियां जलस्रोतों को हम बचाने का कर रहे उत्तम प्रयास इसलिए तो रचनाकार है धरती माँ के बालक खास। पेड़-पौधों से भरी रहे धरा हर तरफ हो वृक्ष हो हरा-हरा। प्राकृतिक संपदाओं का हो संरक्षण खुशहाल बने सभी का जीवन पशु-पक्षी, पेड़ पौधे, जीव जंतु सदा के लिए हो सुरक्षित। हमें अपनी धरती माँ की शान बढ़ानी है सचमुच तभी तो हम ज्ञ...
भूख
कविता

भूख

मईनुदीन कोहरी बीकानेर (राजस्थान) ******************** भूख नहीं होती तो प्रगति भी नहीं होती पाषाण युग से लेकर अंतरिक्ष तक की यात्रा भी नहीं होती। तन-मन-धन की भूख सुख-चैन छीन लेती है राज की भूख पागल बना देती है भूख अदना से आला आला से अदना बना देती है। भूख आदमी की कमजोरी है भूख आदमी की आशा है भूख से पाप, अनाचार व भृष्टाचार बढ़ता है भूख धर्मात्मा को पापी बना देती है। भूख तो भूख ही है भूख सुख-सुख का संसार है भूख ऋषि मुनियों का ईमान डगमगा देती है। भूख से इंसान घर से बेघर दर-दर की ठोकरें खाए भूख इंसान को शैतान बनाए भूख इंसान को भगवान से मिलने की राह ले जाए। भूख न होती तो ये जीव-जगत ये सृष्टि भी न होती भूख इंसान की फितरत में है भूख से भीख-भोजन-भोग का रिश्ता है। मान-सम्मान-यश की भूख इंसान को याचक बनाती है जन्म से मृत्यु तक भूख भूख अंधी होती है भूख इंसान को भी अंधा बना देती है भूख तो भूख है। परिचय...
रिश्ते…
कविता

रिश्ते…

प्रभा लोढ़ा मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** आज हुई ज़िन्दगी से मुलाक़ात, हंस कर पूछा मैंने क्यों है इतनी नाराज़ कभी गुदगुदा कर हंसा देती है तो कभी रुला देती है, क्या तेरी यही चाहत है? सोच समझ कर दिया जबाब उसने हँसती गाती आती हूँ तुम्हें सिखा जाती हूँ रिश्तों को हमेशा रखना ज़िन्दा, ये ही है तुम्हारी ख़ुशी का अनमोल ख़ज़ाना ।। माँ पत्नी बहना, ये है जीवन के मोती दादा पिता चाचा ये है रंगीन धागे दादी नानी बुआ है जीवन की ख़ुशबू बेटी बेटा बहू व जवाई है सब अपने ।। रिश्तों की महत्ता को मत भूलो प्रेम से रखो सबको अपना बनाकर, गलती होने पर मुस्कुरादो रिश्तों की यही खूबी माफ़ी माँगने से रिश्ते और होते मज़बूत ।। मित्र सखा, ये तो है प्रेम के प्याले, मीठे रस से तृप्त होती है मन की बगिया, आँधी तुफान भी नहीं उजाड़ सकते झुक जाते हैं जो पेड़ रिश्तों की भी यही है अपूर्व महिमा सँभाल कर रखना हर रिश्त...
जीवन उत्थान मार्ग
कविता

जीवन उत्थान मार्ग

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** योग, जीवन उत्थान मार्ग है योग, षष्टांग-अष्टांग मिलन है योग, साधन संयम ध्यान समाधि प्राकृती परिभाषा है योग, मंत्र योग, लययोग, राजयोग और हठयोग का ज्ञान है योग, मनका रंजन एवं उसका विस्तार है योग, आत्मा से परमात्मा का मिलन है योग, चेतन केंद्रित का साधन है योग,जगत कल्याण के लिए अर्पित है योग, आत्मा साक्षात्कार अनुभव है योग, परब्रह्म-जीवात्मा अविरल संबंध है योग, मन एवं प्राण का आधार है योग, प्रकृतिधर चेतन पथ प्राप्ति है योग, अणु परमाणु संबंध है योग, मनुष्य से आध्यात्मिकता का बोध है योग, पंच तत्व दर्शन है योग, ज्ञान अनंत है जानो यह सब कोय, योग, करें सोय जीवन मंगलमय होए परिचय :-  खुमान सिंह भाट पिता : श्री पुनित राम भाट निवासी : ग्राम- रमतरा, जिला- बालोद, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित म...
यूँ  ना ऐसे दिन आए
कविता

यूँ ना ऐसे दिन आए

अक्षय भंडारी राजगढ़ जिला धार(म.प्र.) ******************** यूँ ना ऐसे दिन आए जो दूरियां बढ़ाए दुनिया को कौंन सी ये हवाए लग गई हर बात में दूरियां बढ़ गई वरना यू दिन आए क्यो परेशान है वो दुनिया वीरान है वो गलियां चलते हुए इंसान में आज ये मजबूरियां केसे दिन ढल रहे अपनो के जाने के बाद कैसे दिन कट रहे जाने ये दिन कब गुजरे फिर से दुनिया का पहिया चलता जाए यूँ ना ऐसे दिन आए जो दूरियां बढ़ाए। परिचय :- अक्षय भंडारी निवासी : राजगढ़ जिला धार शिक्षा : बीजेएमसी सम्प्रति : पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपन...
मेरी दोस्त गोरैया
कविता

मेरी दोस्त गोरैया

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** दस्तक मेरे दरवाजे पर चहकने की तुम देती गौरैया चाय,बिस्किट लेता मैं तुम्हारे लिए रखता दाना-पानी यही है मेरी पूजा मन को मिलता सुकून लोग सुकून के लिए क्या कुछ नहीं करते ढूंढते स्थान। गोरैया का घोंसला मकान के अंदर क्योकि वो संग रहती इंसानों के साथ हम खाये और वो घर में रहे भूखी ऐसा कैसे संभव दान और सुकून इन्हें देने से स्वतः आपको मिलेगा हो सकता है हम अगले जन्म में बने गोरैया और वो बने इंसान दोस्ती-सहयोग कर्म के रूप में साथ रहेंगे। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे...
हार-जीत भूलकर
कविता

हार-जीत भूलकर

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** जीवन में मिले हार जीत, बस दोनों से कर ले प्रीत, जिंदगी का कहते हैं गीत, दुख का बना अपना मीत। गीता में बस कहते कृष्ण, हार जीत को सम समझ, मेहनत से बस कर काम, होगा एक दिन तेरा नाम। हार का गले हार पहनो, जीत का कर लेना ध्यान, हार में कभी रोना नहीं हैं, कहाता है गीता का ज्ञान। हार-जीत सदा भूलकर, बस दे जगत को पैगाम, प्रीत रीत सबसे बड़ी है, बिगड़े बनाती सारे काम। हार देखकर जो रोता है, मिलता उसे नहीं किनारा, जीत देखकर सम रहता, प्रभु को लगता वो प्यारा। हार जीत को भूलकर जो, रखता है जो लक्ष्य ध्यान, वहीं मंजिल को पा जाता, कहलाता है वो जग महान। हार से मिलती एक सबक, जीत पर क्यों जन इतराये, हार में जो जन मुस्कुराता, वहीं एक दिन जग हँसाये। हारे नहीं जो जन हारकर, जीते ना जो जन जीतकर, काम से काम रखता है जो, बस उस नर से प्रीत कर। हार जीत को...
मां का आंचल
कविता

मां का आंचल

साधना मिश्रा विंध्य लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** आंचल में आकर छुपी जब भी मानी हार। दे दुलार उत्साह को भरदे मां का प्यार।। रोती आंखों में सजे जुगनू सा प्रकाश। जब मां आंचल प्यार का मुख पर देती डाल।। आंचल मां का जब छिना सुना सब संसार। रिश्ते खारे लग रहे जैसे हो अंगार।। मां के आंचल की समता कर ना सके संसार। जीती हारी बाजी का मां न करे व्यापार।। मां का आंचल मौन से समझे मौन की बात। कभी दृश्य कभी अदृश्य रहे सदा ही साथ।। परिचय :- साधना मिश्रा विंध्य निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानिया...
मुझे अफसौस रहेगा
कविता

मुझे अफसौस रहेगा

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** वक़्त कभी रूकता नहीं, समय के चक्र को खुद आदमी ने अवरूद्ध कर दिया साथ ही मौत का जिम्मेदार हैं, मौत के सौदागर बन गये हवाओं में ज़हर नहीं घुला, पत्थरों के जंगल आज की समस्या है, वन उपवन, जल-थल उजाड़कर अब आंसू बहा रहा है। फिर उसने आकर कहा मौत हूं मैं पहचाना हमदम हूं तेरी, तेरी जिज्ञासा को जानकर आई हूं करीब तेरे आदमी आदमी का दुश्मन है, ज़िन्दगी का उसके लिए कोई मायने नहीं वहां ईश्वर को झुठलाने लगा है, उसकी बनाई सृष्टि को अणु परमाणु हथियारों से तबाही मचाने वाला है। अगर समय रहते नहीं जागा तो महाप्रलय आयेगा सब नष्ट हो जायेगा। मौत हमेशा समय के चक्र साथ होगी परन्तु जिन्दगी नहीं फिर कई युगों तक मुझे जिंदगी के आने का इंतजार रहेगा मुझे कभी दोष न देना मुझे दुःख है पत्थर दिल नहीं गगन इंसानौं की तबाही याद रहेगी हम दर्द साथी में आंसू बहाती रह...
वक्त का ये दौर
कविता

वक्त का ये दौर

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** वक्त का ये दौर भी गुजर जायेगा, बारिशों का मौसम, फिर आयेगा, गर, महफूज़ रहे, अपने घर में हम, खुशियों की, सौगात, फिर लायेगा, मायूसी को दर किनार कर ए दोस्त, फिज़ा की रौनक, को, लौटा लायेगा, न रहो आप किसी भी कशमकश में, जहां, ये फिर जिन्दादिल ही कहलायेगा, फिक्र न कर तू, बेबुनियाद खबरों की, कल का सूरज, फूलों की खुशबू लायेगा परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुये हैँ. संप्रति...
हुनर
कविता

हुनर

रीतु देवी "प्रज्ञा" दरभंगा (बिहार) ******************** हुनर के बाजार में मेरे सीखने की चाह की उड़ायी जाती है हंसी। रहूं खुश रख सकूं दूसरों को खुश चाहे जितनी जतन करनी पड़े मुझे। देख मेरी लगनशीलता टीका टिप्पणी होती बहुत पर परवाह करती न कभी। न बननी मुझे कठपुतली बनना है सच्चा नागरिक हुनर के बाजार में उड़ायी जाती है हंसी। कहती हूं दिल की बातें चाहे माध्यम हो कोई खेलती हूं मिट्टी से भी सीखना चाहती कला हिम्मत की डरू नहीं,लड़खड़ाऊं नहीं। बस चलती रहूं अनवरत हुनर के बाजार में उड़ायी जाती है हंसी। हो मुझमें देशप्रेम न करूं धोखा सीख कर कोई हुनर हुनर के इस बाजार में उड़ायी जाती है हंसी। परिचय  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्र...
मन की विवेचना
कविता

मन की विवेचना

भारमल गर्ग जालोर (राजस्थान) ******************** अनुराग अनुभूति मिला आज आनुषंगिक, निरूपम अद्वितीय शून्यता हुआ! देख अपकर्ष अपरिहार्य के साथ। यदा-कदा अनुकंपा, अनुकृति अहितकर असमयोचित इंद्रियबोध रहित! अक्षम अनभिज्ञ बता रहे पारायण ज्ञान। अदायगी अविराम ले रहा तंद्रालु बन गया में, क्लेश अग्रवर्ती पूर्वाभास से अचवना कर रहा में, अचल मन पर अज्ञ तन अशिष्ट बेतहाशा बढ़ रहा में। मीठा कथन सबसे बड़ा, होता भेषज प्रतीक हरती विपदा सब जहाँ, मनुज ये तू है तीक्ष्ण! मुकुर निरर्थक बन जा पहली बार, वृत्ति की मुक्ति अन्वेषण सुरभोग सुधा बन बैठा में। सिमरसी वैराग्य सर्वस्व अर्पण सारथी मन टूट रहा अपरिग्रह कर गया में! पुलकित आलोक अत्युच्च उत्सर्ग अनुग्रह आज, स्मरणीय दायित्व निर्वहन नवीन नवोन्मेष के संग। बड़भागी पुरईन बोरयौ परागी प्रीति में, बिहसी कालबस मंद करनी काज, विलम्ब विद्यमान जनावहीं आज घोरा मोहि लागे छमिअ...
औरत ही औरत की शिकारी
कविता

औरत ही औरत की शिकारी

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** औरत ही औरत की शिकारी सबसे भयानक रूढिवादिता की बीमारी न दे उचित योग्यता को महत्व स्त्री ही स्त्री पर जमाए उच्च पद का प्रभुत्व स्वाधिकार मे अधीन स्त्री का क्षीण करे अस्तित्व कभी सास रूप में बंधिश बहु पर, हो जैसै बंधुआ मजदूर कुछ गलती होने पर ओरो से तुलना और कर दे मशहूर स्वैच्छिकता पर रोक, बस ताने सुनने को करे मजबूर पराए घर से आई सास, पराए घर से ही आई बहु स्वनिर्मित प्रथाओ को, सास की जैसे बहू निभाए हूबहू सास-बहू दोनो का ही है समान अधिकार उच्च पद के रौब में, उत्पन्न होता मानसिक विकार जरा सी सोच कि, स्वयं को मुझसे ज्यादा न समझ ले हमने जो जो सहा तो वही सब, ये क्यों ना सह ले मानसिक तौर पर वही औरत, दूसरी औरत का करती शिकार जिसमें अयोग्यता और आत्मविश्वास की कमी का हो विकार समान कार्यस्थल पर नए योग्य सहकर्मी से ऐसा विद्वेष जैसे स्त्री ही स्त्र...
कण कण में भगवान
कविता

कण कण में भगवान

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) धवारी सतना (मध्य प्रदेश) ******************** मन को बनाकर मंदिर अपने, प्रभु की मूरत को बैठाना। सबके अंदर वास प्रभु का, बात कभी तुम भूल न जाना।। प्रभु का कोई स्थान नही है, और नही है कोई आकार। खोजो तो प्रभु नित्य मिलेंगे, लेकर भिन्न भिन्न रूप साकार।। जिस क्षण तुमको मदद चाहिए, तब बन प्रभु आते मददगार। और देकर अपना कोमल स्पर्श, वे ही लुटाते तुम पर प्यार।। कभी वे आते मातृत्व रूप में, देते हमको लाड़ दुलार। माँ की आँखों में झाँको तो, दिखेगा ईश्वर का संसार।। कभी किसी कृतज्ञ को देखो, दिखेंगे उसकी आँख में भगवन। उसके भावों को गर पढ़ लो, तब हो जायेगा प्रभु का दर्शन।। देखो एक नन्हें से बच्चे को, गौर से देखो भोलापन। जहाँ नही छल ,कपट ,द्वेष, हो ऐसे मन में प्रभु का वंदन।। देखो हरे भरे खेतो को, लहलहाती गेहूं,,चना की बाली। क्षुधा उदर की शांत हो जिससे, यही है प्रभु की मुस्...
आँसुओं की कहानी
कविता

आँसुओं की कहानी

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** अश्रु हमेशा कहते कहानी। कभी नई तो कभी पुरानी। अश्रु हमेशा कहते कहानी। खुशी के पल में भी आंँखों से ढुलक आते। दुख में भी पलकों का बाँध तोड़ बह जाते। हमेशा चुगली करते दुखों की। प्रेम की कहानियाँ भी सुनाते। नैनों में झिलमिलाते आँसुओं की है ये रीत पुरानी। अश्रु हमेशा कहते कहानी। कोई अपना हो या पराया, दर्द का समंदर हो या नन्हा-सा साया। आंँखों की ढकनों से छलक ही जाते। इनकी कथा जानी-पहचानी। अश्रु हमेशा कहते कहानी। इन्हें चाहो या तिरस्कार करो, इकरार करो या इंकार करो। कहाँ ये सुनते किसी की। जब भी भाव से भरे मन, बहने लगता आँखों से पानी। अश्रु हमेशा कहते कहानी। कभी नई तो कभी पुरानी, अश्रु हमेशा कहते कहानी। परिचय :- श्रीमती विभा पांडेय शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी एवं अंग्रेजी), एम.एड. जन्म : २३ सितम्बर १९६८, वाराणसी निवासी : पुणे, (महारा...
पंथी अभी चलना है
कविता

पंथी अभी चलना है

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पंथी तुझको पंथ पर चलना है, तुझको चलता देख दिवाकर, नभ से अनल झरेगा। तेरे पाँवों को टकराने, सांसे पवन भरेगा, पंथी ये बांधायें तुझे, कुचलना है। पंथी तुझे पंथ पर चलना है। तुझको पथ पर देख चँन्दमा, मेघों मे छुप जायेगा, पूनम की उजली रात दूधिया, काजल सी कर जायेगा। दीपक बन कर तुझे रात में चलना है। यदि राह पर चलें निरंन्तर आशा बगियां फूलेगी, सपनों की कोयल सच्चाई के सुघर हिडोलें झूलेगी। दिनकर बनकर तुझे, भोर में पलना है। तुझे पंथ पर चलना है। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखन...
भारत मां के वीर जवान
कविता

भारत मां के वीर जवान

अनन्या राय पराशर संत कबीर नगर (उत्तर प्रदेश) ******************** हम दिल से करते हैं बस एक ही काम भारत मां के वीर जवानों तुमको सलाम चट्टानों से डट के अड़े हैं मां के वीर सरहद पे तैयार खड़े हैं मां के वीर इस मिट्टी के कण कण में है तेरा नाम हम दिल से करते हैं बस एक ही काम भारत मां के वीर जवानों तुमको सलाम सारी कली का बाग़ यहीं है दुनिया में देश हमारा सबसे हसीं है दुनिया में देश ये अपना ईश्वर का है इक इनाम हम दिल से करते हैं बस एक ही काम भारत मां के वीर जवानों तुमको सलाम मीठी मीठी बोली में है देश का हुस्न रंगो की रंगोली में है देश का हुस्न इसकी छाया में ही मिलता है आराम हम दिल से करते हैं बस एक ही काम भारत मां के वीर जवानों तुमको सलाम संदल की खुशबू वतन का वातावरण गंगा जी से शुद्ध हुआ हर अंतःकरण चारो दिशाओं में है यहां पाकीज़ा मक़ाम हम दिल से करते...
यह कैसा …… वैशाख
कविता

यह कैसा …… वैशाख

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जिंदगी की बैसाखियों पर, चलकर ..............यह आज, कैसा ..........वैशाख आया। न आज भांगड़े हैं। न मेले सजे हैं। फसल कटने -काटने का, किसे ख्याल आया।। ज़िंदगी की बैसाखियों पर, चलकर आज, कितना मजबूर वैशाख आया। गेहूँ की फसल का, घर के, आंगन में आज न ढेर आया। कोरोना विस्फोटक हुआ। मेलों की रौनक का, न किसी को चाव रहा। जिंदगी को, पिछले साल से, कहीं ज्यादा मजबूर पाया। दिहाड़ी -दार अपना दर्द, ढोल की तान पर ना भूल पाया। जिंदगी की बैसाखियों पर, चलकर यह कैसा वैशाख आया। वह हल्की गर्म हवाओं के साथ, न तेरी धानी चुनर का, पैगाम आया । यह कैसा ......!!! उदास ...........???? ऊबा हुआ वैशाख आया। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक...