नन्हा दीया
प्रभा लोढ़ा
मुंबई (महाराष्ट्र)
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सहमी सहमी प्रकृति थी,
पक्षी लौट रहे थे क़तार में,
सूरज झांक रहा था,
बादलों की ओट से,
नभ में रंग उड़ेल दिया
चित्रकार ने,
पवन की गति थी घीमी,
स्थिर थे वृक्ष के पत्ते,
साँस की गति हो गई घीमी,
छा गई उदासी मन में
जीवन में न थी कोई ख़ुशी
भरी थी नमी आँखों में,
आँसू बैचेन थे लुढ़कने को,
अमावस्या ने चुरा लिया था चाँद को,
तभी नन्हे दीये ने सिर उठाया,
आशा की लौ जलाई
प्रकाशित हुआ कोना
यह देख अनगिनत दीयों ने
हाथ मिला सब हुये साथ
एक एक दीया प्रज्वलित हुआ,
जगमगा उठी सृष्टि सारी
मानवता जाग उठी
दिया सबने सहयोग अपना
प्रकृति ने सँभाली
अपनी कमान
आज की विषम
परिस्थिति का मुक़ाबला
किया सबने मिलकर
नन्हे दीये का
प्रयास हुआ सार्थक,
ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ
छाई चारों और।
परिचय :- प्रभा लोढ़ा
निवासी : मुंबई (महाराष्ट्र)
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