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कविता

मैं राष्ट्र प्रहरी हूँ
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मैं राष्ट्र प्रहरी हूँ

मंजू लोढ़ा परेल मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** मैं राष्ट्र प्रहरी हूँ मरने से नहीं डरता...! सिर पर कफन बांधकर चलता हूँ युद्ध के मैदान में, सीना ताने दुश्मनों के छक्के छुड़ा देता हूँ...! न माइनस डिग्री की ठंड न भयंकर गर्मी मुझे परेशान करती है....! विचलित करती है तो घर से आई कोई चिट्ठी जिसमें पत्नी के आंसुओं में डूबे धुंधले शब्द , जब खत में उभरते हैं तो जज़्बातों पर क़ाबू करना मुश्किल सा लगने लगता है..! याद आ जाती हैं बच्चों की मासूम बातें , उनकी मासूम शरारतें , मानस पटल पर कौंध जाती हैं, मैं भी कैसा बेबस हूँ जो उन्हें पल-पल बढ़ते देख नहीं सकता बूढ़े माता-पिता की सेवा से वंचित होने का तो ख़याल आते ही रुलाई आ जाती है....! क्या-क्या याद करूँ! दिल को टीस देने वाली ऐसी कितनी ही बातें हैं....! हाँ, पर यह सोच .... अधिक वक्त तक क़ायम नहीं रहती, विचारों को झटक देता हूँ मातृभूमि को वंदन क...
मां पर लिखना आसान नहीं
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मां पर लिखना आसान नहीं

अखिलेश राव इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मां के श्री चरणों में मातृ दिवस पर शब्दांजली माँ पर लेखन कोई आन नहीं मां पर लेखन कोई मान नहीं मां पर लेखन कोई सम्मान नहीं मां पर लेखन कोई स्वाभिमान नहीं अथक प्रयासों का भी कोई भान नहीं मां पर लिखना आसान नहीं मां पर लिखना आसान नहीं।। कैसे लिक्खूं जिससे तुतलाती भाषा सीखी है कैसे लिक्खूं जिससे जीवन परिभाषा सीखी है कैसे लिक्खूं जिससे आशा ही आशा सीखी है कैसे लिक्खूं जिससे प्रेम नेह अभिलाषा सीखी है सहज सरल अभिव्यक्ति का मुझको भान नहीं मां पर लिखना आसान नहीं।। बिन मां के बच्चा खड़ा नहीं होता है बिन मां के बच्चा बड़ा नहीं होता है बिन मां चुनौती समक्ष अडा नहीं होता है मां का संबंध नो माह सभी से बड़ा होता है सुख-दुख ममता करूणा का ध्यान नहीं मां पर लेखन कोई आसान नहीं।। मां प्रभुसत्ता पूजा भक्ति आराधन है मां जगत पूर्ण संसाधन हैं मां की छबि सुंदर ...
सृष्टि
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सृष्टि

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जड़ चेतन दो वस्तु हैं, महाशक्ति भगवान। जड़ चेतन संयोग से, करता जग निर्माण। क्षिति जल पावक पवन, खम अहंकार मन बुद्धि, मिश्रित कर निज चेतना, रचता सृष्टि प्रबुद्ध। समझ न सकती बुद्धि नर ईश्वरीय व्यवधान, वैज्ञानिक उपलब्धियां, है परमाणु समान। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहित्य शिरोमणि सम्मान, हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक सम्मान और सुशीला देवी सम्मान प्रमुख रुप से आपको मिले हैं। उप...
कर्मठ भारतीय हूं
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कर्मठ भारतीय हूं

जयप्रकाश शर्मा जोधपुर (राजस्थान) ******************** संकट प्रसन्नचित हूं मैं, थोड़े में संतुष्ट हूं मैं। ना उम्मीदों में उम्मीद हूं मैं, मैं कर्मठ भारतीय हूं। सम्पूर्ण संसार में व्याप्त है मेरी भुजाएं, सम्पूर्ण कमियों पर है मेरी शब्दावली। सम्पूर्ण धर्मों से सजती है मेरी बांगे। में कर्मठ भारतीय हूं। उम्मीद के प्रफुल्लित हूं मैं। शक्ति के वास में मैं हूं। भारत के वीर पुरूषों के अनंत ज्ञान में हूं। में कर्मठ भारतीय हूं। परिचय :- जयप्रकाश शर्मा निवासी : जोधपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानिय...
समानता
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समानता

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) धवारी सतना (मध्य प्रदेश) ******************** ज्यों स्कूल के यूनिफार्म में, दिखते हैं बच्चे एक समान। इसी तरह इस कोरोना ने भी, दिया है सबको एक सा मान।। न भेद भाव अमीर गरीब का, न भेद रखा है ऊँच नीच का। न ज्यादा खाओ न भूखे रहो, मार्ग बताया है उसने बीच का।। कहीं अमीर के घर शादी में, फिंकता था पकवानों का अम्बर। और कहीं गरीब के घर का, भूखा सोता था सारा परिवार।। प्रकृति हमारी माता है, कैसे सहन करे पक्षपात। अतः साम्यता लाने सबमें, दिया कोरोना का आघात।। रोक दिये धनपतियों के व्यापार, कि, तुम भी समझो धन की व्यथा। सीमित कर आयोजनों की शान, एक सी कर दी सबकी मनोव्यथा।। किसी गरीब की मिट्टी में, जाना थी लोंगों की शान नही। और अमीर के घर, गरीब, होता कभी मेहमान नहीं।। अब सब कुछ होगा वैसा ही, जैसा चाहे प्रकृति हमारी। देने अपने हर सुत को सुख, उसने ही यह लीला धारी। उसने ही ...
माँ तुझे सलाम
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माँ तुझे सलाम

मईनुदीन कोहरी बीकानेर (राजस्थान) ******************** माँ तुझे सलाम, माँ तुझे सलाम तेरे कदमों तले, जन्नत का मकाम माँ तुझे सलाम, माँ तुझे सलाम।। माँ तू है जननी, माँ तू है महान दुनियां करती है, तुझको सलाम माँ तुझे सलाम, माँ तुझे सलाम।। माँ तू धन्य है, माँ तू है महान् माँ तेरा ऋणी है, ये सारा जहांन माँ तुझे सलाम, माँ तुझे सलाम।। माँ तू पूजनीय है, तू स्मरणीय है माँ तेरा देवत्व रूप, तू वन्द्नीय है माँ तूझे सलाम, माँ तुझे सलाम।। माँ तेरे ममत्व में, तो असंख्य रूप हैं सृष्टि की जननी, माँ-सादर प्रणाम माँ तुझे सलाम, माँ तुझे सलाम।। परिचय :- मईनुदीन कोहरी उपनाम : नाचीज बीकानेरी निवासी - बीकानेर राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के स...
उम्मीद का दामन
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उम्मीद का दामन

भूपेंद्र साहू रमतरा, बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** समस्या बड़ी है, ये परीक्षा की घड़ी है हालात कल बुरे थे आज बुरे हैं, लेकिन सब्र रख, वक्त कल बेहतर परिस्थिति लेकर आयेगा मंजिल के पास आकर अपने रास्ते न मोड़ कोरोना संकट टल जाएगा, उम्मीद का दामन न छोड़ उम्मीद की नोक पे दुनिया टिकी है उम्मीद मुर्दों में जान लाती है उम्मीद पत्थर को भगवान बनाती है वही उम्मीद आज इन्सान और इंसानियत को बचायेगा। चुनौतियों का महासागर पार होगा हौसलों के पंख न तोड़ कोरोना संकट टल जाएगा उम्मीद का दामन न छोड़ परिचय :- भूपेंद्र साहू पिता : श्री मोहन सिंह निवासी : रमतरा, बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट...
प्यारी माँ
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प्यारी माँ

योगेश पंथी भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश ******************** माँ जब भी प्यार देती थी अपना सब वार देती थी। मेरी एक मुस्कान पर वो आशीष हजार देती थी॥ और पिता जी ऐसेे थे मानो ईश्वर के जैसे थे। जो मांगा ला देते थे चाहे कम ही पैसे थे॥ हमको सु:ख देने को जो अपने सब सु:ख भूले थे। जब अपनी आँखो मे आँसू उनकी बाहो के झूले थे॥ उनके दामन के साये मे महलो के वैभव भूले थे। सब संभव था बाबु जी को अब लेकिन वो बात कहाँ॥ एक नाता न हमसे संभला वो दस को भी न भुलाते थे। एक चूले आंच पे जब माँ स्वादिष्ठ भोज बनाती थी।। नित प्रेम से भोजन पाते थे अपने हाथो से खिलाती थी। इतने प्रेम से प्यारी माँ सबको भोजन देती थी॥ वो भी अमृत लगती थी जो रूखी सूखी रहती थी। माँ की ममता के आंचल मे प्रेम की धारा बहती थी॥ अपने लाड़ प्यार से वो जब सारे दू:ख हर लेती थी। जब माँत पिता का साया था वो दिन बडे सुहाने थे।। परिचय :- योगेश पंथ...
पाती तेरे नाम
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पाती तेरे नाम

पूनम शर्मा मेरठ ******************** कर्मों की खेती कभी सूखती, तो कभी लहराती थी पर, तुझे काटने की कितनी जल्दी थी, काटता चला गया उनींदी सी आंखों से, आधा अधूरा छोड़, सरक लिया, मेरी आंखें ताउम्र तलाशेंगी तुझे, तू तस्वीर में कैद हो गया मेरे भाई, मोबाइल का दायरा उलांघ, कानों में फुसफुसाता है, ऐसा लगता है, यहीं आसपास है तू कब भाई का दायरा लांघकर दोस्त बन गया था मेरा, खट्टी-मीठी सारी बातें साझा करते-करते, कौन से लोक चला गया,, अब कभी फोन नहीं आएगा ना मैं मैसेज करूंगी ना ही नीला "टिक" बनेगा मेरे छोटे भाई विजय ! तू कितना बड़ा हो गया रे समझदारी की बातें समझाते समझाते फुर्र से उड़ चला, अभी कल की ही तो बात है "अस्पताल जा रहे हैं जीजी !" झूठा... तू तो निकला था अनंत सफर को नंगे पांव, किसका हाथ थामा तूने ! हम सभी का हाथ छोड़ कहां चला गया मेरे भाई मुझसे ज्यादा चाहने वाला कौन मिल गया रे, कितना चाहती थी ...
वृक्ष और बेटी
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वृक्ष और बेटी

पारस परिहार मेडक कल्ला ******************** तुम फलते हो मैं खिलती हूँ, तुम कटते हो मैं मिटती हूँ; तुम उनके स्वार्थ की खातिर, मैं उनके सपनों की खातिर। मैं बनकर माँ बेटी पत्नी लुटती और लूटाती अपनी ख्वाहिशों की मंजिल ढहाकर उनका घर आँगन सजाकर। तुम चहकाती आँगन उनका मैं भर देता दामन उनका, फिर क्यों तुम मारी जाती हो क्यों फिर मै काटा जाता हूँ। मैं देता हूँ शीतल छाया फिर भी जलती मेरी काया, तुम उनका हो वंश बढाती क्यों गर्भ में मारी जाती। हे!मगरुर मनुज तु रखना याद हमारी बातों को, दरक़ जाएंगे जब हम तेरी ढह जाएगी ऊँची मंजिल। क्योंकि हम है नींव तुम्हारे सपनों की कंगुरों की। हम लुटाते रहे अपना सर्वस्व, वो मिटाते रहे हमारा अस्तित्व। परिचय :- पारस परिहार निवासी : मेडक कल्ला घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, क...
पर्यावरण
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पर्यावरण

हरप्रीत कौर शाहदरा (दिल्ली) ******************** कोरोना हर देश में, हर शहर में दुनिया के हर देश में, बरपा रहा है अपना कहर। आक्सीजन के बिना आदमी मर रहा है पूरे देश में हाहाकार मचा है चारों और निराशा छा रही है घनघोर। आज लोगों को आक्सीजन का महत्व समझ आ रहा है। वर्षो से इंसान जिसे मुफ्त में लेता आ रहा है। हवा में आक्सीजन तो पेड़ ही उपजाते है, जो हमे प्राण वायु देते है। खुदगर्ज इंसान उसी पर कुल्हाड़ी चलाते है। इस महामारी से हमें कुछ तो शिक्षा लेनी चाहिए। आने वाली पीढ़ी की प्राण रक्षा के लिए हमें एक वृक्ष लगाना चाहिए। बस करो प्रकृति का अनादर, अब बहुत हुआ जो हमे प्राण वायु देते है उस पर कुछ तो रहम खाओ। आओ ये संकल्प उठाए, पर्यावरण को नष्ट होने से बचाएं। प्रकृति को हरा भरा बनाएं। हर एक दिन नया वृक्ष लगाएं। प्रकृति ही जीवन है, अपने जीवन को बचाएं। परिचय :- हरप्रीत कौर निवासी : शाहदरा (दिल्ली) घोषणा प...
मधुसूदन
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मधुसूदन

अजयपाल सिंह नेगी थलीसैंण, पौड़ी (गढ़वाल) ******************** मधुसूदन में मधुसूदन लूट आया ना करो, यूं मधुसूदन पर इज्जत गवा या ना करो, यूं मधुसूदन का मूल दूसरों को चुकाना पड़ता, यूं प्यालो से प्यालो पे दूसरों को रुलाना पड़ता है, मुस्कुराती जिंदगी को बंदी बनाना तो छोड़ो, नहीं तो उन जनों को पर बुलाना पड़ता है, और उस रूमझूमु रात को भी खिलाना पड़ता है, परिवार को परिवार से हटाना पड़ता है, क्यों? प्यालो पे प्यालो को लगाना पड़ता है, यहां चिड़ियों की चंचकरियो की तरह प्यार भरे पलों को तुड़ाना पड़ता है, और जिंदगी को जिंदगी से भुलाना पड़ता है, खुशनसीब नहीं हैं वे जो प्यालो पर प्यालो को लगाया करते हैं, खुशनसीब तो वह है जो प्यालो पे प्यालो को तुड़ाया या करते हैं, और समय को समय पर गवाया न करते हैं, परिचय :- अजयपाल सिंह नेगी निवासी : थलीसैंण पौड़ी गढ़वाल घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार ...
जिन्दगी से मुलाकात हो गई
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जिन्दगी से मुलाकात हो गई

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** मौतों के शहर में हम रहते थे जहाँ एक रोज जिन्दगी से मुलाकात हो गई हर एक सांसों की होती है गिनतीयाँ जहाँ पैदा हुए थे जिस पल शुरुआत हो गई सूरज की रोशनी से चकाचौंध थी आँखें जब देखने लगे तो फ़िर रात हो गई सारी उम्र बूँदों के लिये तरसते रहे हम आंखें जो बंद हुई तो बरसात हो गई देखकर हर तरफ बरबादियों का मंजर लगता है आज खफा कायनात हो गई इस दिल को मैंने लाख समझा रखा था पर सामने जो देखा तो वही बात हो गई पूछने चला था मैं पता "सुकून" का लोग कहने लगे कि तहकीकात हो गई परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकत...
मौसम पुनः सुहाना होगा
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मौसम पुनः सुहाना होगा

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** मौसम पुनः सुहाना होगा हर नुस्ख़ा अजमाना होगा चाहे रूप बदल ले जितना कोविड को निपटाना होगा जिनपिंग से ख़ुद पूछो जाकर क्या पाए मुझको पैदा कर थूक रही है सारी दुनिया तुमको भी जल जाना होगा हम भारत वंशी सचेष्ट हैं बुद्धि विवेक में बहुत श्रेष्ठ हैं बना लिया ब्रह्मास्त्र देश ने अब तुमको मर जाना होगा माना कि तूफ़ान बड़ा है भस्मासुर मुँह खोल खड़ा है धैर्य और परहेज़ दवा संग हर अभियान चलाना होगा कोविड़ से संसार त्रस्त है शासन भी हो चुका पस्त है मास्क और दो गज की दूरी साहिल इन्हें बनाना होगा परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि : पुस्तक लेखन, सम्पादन, कविता, ग़ज़ल, १०० शोध पत्र प्रकाशित, मनोविज्ञान पर १२ पुस्तके...
मौत की खुशबू
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मौत की खुशबू

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** प्रकृति ने ओर इक बार दहाड़ लगायीं है....! विकराल रूप लेकर, मौत की खुशबू पवन में फिर से छायीं है....!! न अस्पताल में जगह है, न शमशान में जगह है....! सब तेरा ही तो किया धराया है, तूँ ही तो इस महामारी की वजह है....!! तेरी औकात तुझे क्यों समझ में नहीं आती है ये इंसान....! कभी तूँ माटी पर तो, कभी माटी तेरे ऊपर, बस इतनी सी तो है तेरी पहचान....!! किस बात का अलंकार तुझ पर छाया है....! दौलत, शोहरत ये तो एक तेरे मन की मोह माया है....!! बोल अपने तूँ अनमोल रख यहीं तो जीवन की सच्ची कमाई है....! प्राणी मात्र पर दया करना सिख ले इसी में तेरी भलाई है....!! परिचय :- कु. आरती सुधाकर सिरसाट निवासी : ग्राम गुलई, बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी क...
बंधन रिश्तों का
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बंधन रिश्तों का

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** रिश्तों का बंधन कही छूट न जाये। और डोर रिश्तों की कही टूट न जाये। रिश्ते होते है बहुत जीवन में अनमोल। इसलिए रिश्तों को हृदय में सजा के रखे।। बदल जाए परस्थितियां भले ही जिंदगी में। थाम के रखना डोर अपने रिश्तों की। पैसा तो आता जाता हैं सबके जीवन में। पर काम आते है विपत्तियों में रिश्ते ही।। जीवन की डोर बहुत नाजुक होती है। जो किसी भी समय टूट सकती है। इसलिए संजय कहता है रिश्तों से आंनद वर्षता है। बाकी जिंदगी में अब रखा ही क्या है।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती ह...
मजदूर हैं हम
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मजदूर हैं हम

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** मजदूर हैं, मजदूरी देना, बहुत दुख दर्द सहते हैं, दिनरात काम ही काम, मजदूर लोग यूं कहते हैं। तन पर कपड़े फटे हुए, खाने को नहीं दो रोटी, हाय गरीबी मजदूर की, कैसी किस्मत है खोटी। कई दिन भूखे प्यासे रहे, फिर नहीं मिलता काम, भूख प्यास मिटा लेते हैं, बस लेकर प्रभु का नाम। मजदूर की मजदूरी देख, आंखें भी हो जाएंगी नम, प्रभु की माया निराली है, कितना दिया उनको गम। धनवान के घरों में सदा, मजदूर करते हैं मजदूरी, अपने सगे संबंधियों से, बनाए रखते सदा ही दूरी। भूखे प्यासे उनके बच्चे, हाथ पसारने से डरते हैं, दवा अभाव में कभी तो, सड़कों किनारे मरते हैं। कोई ना सुने मजदूर की, गरीब बेचारे ये सारे है, प्रभु की नजरों में तो ये, आंखों के कहाते तारे हैं। कभी ना बनाना मजदूर, तरस खा कुछ भगवान्, इनका घर धन से भरो, जीने की बढ़ जाए शान। फटे हाल रहते मजद...
कभी नदियों में
कविता

कभी नदियों में

मुस्कान कुमारी गोपालगंज (बिहार) ******************** कभी नदियों में छलछलाहट थी चिडियो की चहचहाट थी चुड़िओ में खनखानाहट थी पेड़ो में सनसनाहट थी आज सब शांत दिख रहा क्योंकि मनुष्य खुद के बारे में सोचकर खुद का ही नाश कर रहा। कभी रास्तों पे भीड़ थी अपनो से मिलना था नई संस्कृति का चलन था कॉरोना ने सब सिखला दिया पुरानी संस्कृति को याद दिला दिया। परिंदे आज आजाद हुए इंसान घरों में कैद हुए देश पूरा शमशान हुआ ऑक्सीजन की किल्लत हुई तो पेड़ पौधों को लगाए और बचाए पहले से नहीं थी चिंता अब जल रही है चिता। गलती हुई इंसानों से निकल रहा उसका परिणाम अब गलती को सुधार भी लो एक पेड़ अब भी जरूर लगाओ प्रकृति के साथ खिलवाड़ नहीं। समस्या बड़ी है गलती भी बड़ी ही हुई है लेकिन ये भी एक वक्त है गुजर ही जायेगा जब खुशी के पल न ठहरे तो ये भी धीरे-धीरे निकल ही जायेगा। घर में रहे, स्वस्थ रहे। परिचय :- मुस्कान कुमारी ...
मज़दूर
कविता

मज़दूर

राम प्यारा गौड़ वडा, नण्ड सोलन (हिमाचल प्रदेश) ******************** हर सृजन से भरपूर होता है मज़दूर, सुख चैन मजे से दूर होता है मज़दूर मानवीय कल्पनाओं को मूर्त रूप देता है मज़दूर। सर्दी मे ठिठुरता. गर्मी में तपता ...... बरसात में भीगे तन काम में लगा रहता है मज़दूर धूल मिट्टी से हर वक्त सना रहता सिर पर साफा बांधे, टोकरी उठाए, मन ही मन गुनगुनाता है मज़दूर। रुखी सूखी रोटी खाकर सपनो का तानाबाना बुनता है मज़दूर बीबी बच्चों को सब कुछ दे पाऊँ दो जून की रोटी के जुगाड़ में सब कुछ सहता है मज़दूर। हर तरक्की हर उन्नति हर विकास में सहयोगी है मज़दूर नवनिर्माण का प्रतीक है मज़दूर आखिर क्यों? कदम कदम पर शोषित होता है मज़दूर। ईश्वर करे, मज़दूर कभी न हो मज़बूर मज़दूर कभी न हो मजबूर।। परिचय :-  राम प्यारा गौड़ निवासी : गांव वडा, नण्ड तह. रामशहर जिला सोलन (सोलन हिमाचल प्रदेश) आप भी अपनी ...
गुरु तेग बहादुर
कविता

गुरु तेग बहादुर

रश्मि लता मिश्रा बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ******************** सिक्खों के नवें गुरु, तेगबहादुर नाम। वैरागी त्याग की मूर्ति थे। साधना उनका काम। बाबा बकाला में करी तपस्या सालों साल, प्रयाग,बनारस, पटना असम,किया अध्यात्म प्रचार। शीश गंज, रकाब गंज दिलाते स्मरण आज। आदर्शो की रक्षा हेतु किये जन्म भर काज। धर्म के सम्मान में झुकने दिया न शीश कटा दिया सिर आपना हो गए रे शहीद। धर्म के नाम पे मर मिटे याद करें जब नाम। तेग बहादुर का भी लें कर इज्जत सम्मान। हिन्द दी चादर गुरु त्यागमल था नाम शहादत दिवस पर शान से ले लो उनका नाम। परिचय :- रश्मि लता मिश्रा निवासी : बिलासपुर (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट...
स्त्री
कविता

स्त्री

मधु अरोड़ा शाहदरा (दिल्ली) ******************** हां मैं स्त्री हूं, युगों-युगों से तुम्हारी सहचरी हूं, सृष्टि की निर्माता मैं, लालन-पालन करती हूं। अपने शरीर से, नव शरीर की संरचना करती। मुझे नाज है अपने पर मैं शक्ति स्वरूपा दुर्गा भी नर हो तुम तो नारायणी में, मेरे बिन जीवन तुम्हारा अपूर्ण। हां मैं स्त्री हूं, धरा बन जग को जीवन देती, पालित, पुष्पित भी करती, मेरी गोद में पलते सब पुष्पित, पल्लवित होते सब। हां मैं स्त्री हूं जीवनदायिनी में गंगा कल-कल-कल-कल करके बहती, प्यास बुझाती अमृत बन में शीतलता से मन को भर देती मैं ज्ञानदायिनी, न्याय कारिणी, शारदा बन बुद्धि का विकास करती। अग्नि बन दुखों को हरती सहनशीलता गुण है मेरा, हर किसी का सम्मान हूं करती। मुझको ना सताओ तरसाओ तुम, ना काली बनने पर मजबूर करो संस्कारों में बंधी हूं, मैं एक नाजुक सी डोर हूं मैं, कंधे से कंधा मिलाकर चलती हूं, हरदम मेहनत मै...
मजदूर हूं मैं
कविता

मजदूर हूं मैं

अमिता मराठे इंदौर (म.प्र.) ******************** मजदूर हूं मैं, मजबूर नहीं हूं। मेहनत ही मेरी पूंजी है। धरती ही मेरी माँ है। उसकी गोद में खेलता हूं, प्यार से माटी सहलाता हूं, हीरे मोती उगाता हूं। मज़दूर हूं मैं, मजबूर नहीं हूं। हाथों में गेती फावड़ा, दृढ़ता से कदम उठाता हूं। कड़ी धूप में भी शीतलता, महसूस कर चलता हूं। जब माटी में मिलता पसीना, नवीनता के दर्शन करता हूं। मजदूर हूं मैं, मजबूर नहीं हूं मैं। ऊंची अट्टालिकायें यें, जन मन को दिलासा देती हैं। मैं सबका साथ निभाता हूं, बस व्यर्थ न जायें मेरा श्रमफल। दिन रात मेहनत करता हूं, परिवार की रोजी-रोटी पाता हूं। मजदूर हूं मैं, मजबूर नहीं हूं। विघ्नों के तूफान जब आते हैं, पहले श्रमिक ही भुगतता हैं। सहना तो है सह लेता हूं, जन की इच्छा पूर्ति करता हूं। खुशियां देना मेरा काम है, बदले में अल्पधन पा लेता हूं। संतुष्टता मेरा मूल गुण है, उसके ही बल ...
हसंते-हसंते
कविता

हसंते-हसंते

अक्षय भंडारी राजगढ़ जिला धार(म.प्र.) ******************** जिंदगी थम गई खुशियों वाली गम बदल जाए, खुशियां मिल जाए कितने वायरस बदलते रहे दुनिया फिर कोरोना मुक्त हो जाए। चेहरे पर हो मुस्कान जब ये दुनिया मुस्कराती रहे आएगे अच्छे दिन ओर खुशियों गीत गाया करे। करे हम सकरात्मक बात जान से जान आती रहे। हर पल हर दिन फिर से अच्छे आए फिर सब त्योहार बने ईश्वर सबका भला करे फिर से हमे सकंट से मुक्ति मिल जाए हसंते-हसंते लॉकडाउन कट जाए। परिचय :- अक्षय भंडारी निवासी : राजगढ़ जिला धार शिक्षा : बीजेएमसी सम्प्रति : पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिय...
होती नही पुरानी कविता
कविता

होती नही पुरानी कविता

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** कड़वाहट जीवन की जीकर, आंसू बन बहती है कविता। पीड़ाएं पी पीकर अनगिन, जख्म बड़े सहती है कविता।। कितने गम के सैलाबों से, टकराती रहती है कविता। चेतनता की वाहक बनकर, सत्य मगर कहती है कविता।। दंश प्यार का पाकर देखा, मजनू बनी दीवानी कविता। कालजयी किरदार लिए पर, होती नहीं पुरानी कविता।। अंतर रोता तो कविता का, शब्द-शब्द जीभर रोता है। अर्थों में पीड़ा बहती तो, सैलाबी मंजर होता है।। घनीभूत पीडाओं से ही, कोई सुध अपनी खोता है। क्रांति हुआ करती है तब ही, जब कोई आंसू बोता है।। आहत अपमानों से होकर, बनकर तनी भवानी कविता। कालजयी किरदार लिए पर, होती नहीं पुरानी कविता।। भक्तिभवन में जाकर कविता, गंगा जल बन जाती लोगों। पार लगाती भव सागर से, दुःखसे मुक्ति दिलाती लोगों।। वात्सल्य में डुबा बदन को, सूरज बन चमकाती लोगों। फंसे भंवर में जो-जो तम क...
बेटी का घर टूटा है
कविता

बेटी का घर टूटा है

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** माना कि घर छूटा है पर रिश्ता नहीं टूटा है माँ से बेटी का घर टूटा है ये सरासर झूठा है हर बार उसकी बेटी से कोई रूठा है इस बात पर एक माँ का दिल कचोटा है फिर भी माँ का उस रूठे पर, उमड़ा आशीष अनूठा है बेटी के दर्द से माँ का मन घुटा है तो चलो मान लिया कि बेटी का घर तोड़ने की माँ के मन मे कुंठा है पर फिर घर टूटा तब वहाँ समक्ष खड़े सब लोगों की समझदारी को किसने लूटा है ? चिंगारी को आग में बदलने के लिए तो कितनों का कदम उठा है समझदारी के ठेकेदार मार रहे बस एक ही बात का जूता है कि बेटी की माँ से बेटी का घर टूटा है पर सोचो, जो लोग समझदार है वो बचाने के बजाय क्यों दिखा रहे अँगूठा है ? प्रत्यक्ष है कि घर तोड़ने में कौन-कौन जुटा है पर स्वदोष छुपाने के लिए उड़ा रहे बस झूठा है बेटी की माँ से बेटी का घर टूटा है ये सरासर झूठा है, ये सरासर झूठा है ...