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कविता

बेटी बना पाओगे क्या…?
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बेटी बना पाओगे क्या…?

अर्जुन सिंघल जालोर (राजस्थान) ******************** बेटी बना पाओगे क्या...? बहु बनना मुझे आता नही, बेटी बना पाओगे क्या घुंगट मे रहना पसंद नही मुझे, इस प्रथा को ठुकरा पाओगे क्या मै एक बेटी थी, बेटी सा अनुभव करा पाओगे क्या बहु बनना मुझे आता नही, बेटी बना पाओगे क्या अकेली काम करना मुझे पसंद नहीं, आप हाथ बटा पाओगे क्या तवे पर रोटिया सेंकी मुझसे जाती नही, आप सिखा पाओगे क्या बहु बनना मुझे आता नही, बेटी बना पाओगे क्या हर बार मेरा चुप रहना मुझे भाता नही, कभी मेरी भी राय ले पाओगे क्या कभी मम्मी की तो कभी पापा की याद मे, उन जैसा प्यार कर पाओगे क्या बहु बनना मुझे आता नही, बेटी बना पाओगे क्या मम्मी के डाटने पर, पापा की तरह चुप करा पाओगे क्या कभी डर लगने पर, पापा की तरह गले से लगा पाओगे क्या बहु बनना मुझे आता नही, बेटी सा सम्मान दे पाओगे क्या काम करते-करते,...
समय
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समय

मंजुषा कटलाना झाबुआ (मध्य प्रदेश) ******************** पर लग गए हो जैसे, हाथ से फिसली रेत हो जैसे। बचपन से जवानी आ गई, बीत गया कहा समय ये कैसे। कल तक आंगन चिड़िया थी में, बाबुल संग डोला करती थी। कब बड़ी हो कर पराई हो गई, घर से मेरी डोली उठ गई। आम, इमली, फूलो की डाली, तुलसी पौधा रोपी थी। बड़े हो गए ये कब जाने, बातें बीते कल की हो गई। घड़ी की टिक-टिक रोज है कहती, मेरे साथ बढ़ते चलो। में तो यही रहूँगी कल भी, जीवन अपना बिताये चलो। बचपन की वो मेरी सखिया, दर्पण पर इतराती थी। बुढ़ापे में वही सखिया, सफेदी अपनी छुपाती है। समय का पहिया तेज है भागे, यादें छोड़ जाता है। जन्म से लेकर मृत्यु तक का, हिसाब छोड़ जाता है।। परिचय :- मंजुषा कटलाना निवासी : झाबुआ (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप ...
शब्दों की परिभाषा
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शब्दों की परिभाषा

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** आज शब्द मौन क्यू हैं, चुप सभी विकल्प क्यू है! चुप क्यु सारी है "प्रकृति ये, अब हवा'विपरीत क्यू है! ये प्रलय आगाज कैसा हर तरफ, वियोग कैसा! हर तरफ अंधकार फैला, डस रहा है, दंश कैसा! शेर के जबडे मे फंसकर, मौत तांडव 'कर रही है! दीपशिखा की लौ है मध्यम' क्यू उदासी छल रही है! सब तरफ है, डर समाहित, अब भरोसा उठ रहा है! धरा है विहीन होती, संसार सूना हो रहा है! अब हुआ, कमजोर मानव, दंभ से अदृश्य मानव! कल तक पिंजरे था बनाता, अब फंसा अफसोस मानव! फिर से ताल ठोक ले तू' अपने डर को रोक ले तू! मानव तू है उर्जा शक्ति, अपने बल से रोक ले तू! न होगी विहीन प्रकृति, तुझमें ही है, सारी शक्ति! उठ अभी मत हार मानव, तू है एक ब्रह्माण्ड मानव! परिचय :- रीमा महेंद्र सिंह ठाकुर निवासी : झाबुआ (मध्यप्रदेश) घोषणा ...
ऐसा क्यों?
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ऐसा क्यों?

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** नये जमाने में कितना आगे हम आ गए, दिल के भाव सोसल मीडिया में समा गए। आज हम सबका दिवस मनाने लगे, फेसबुक व्हाट्सएप में भाव जताने लगे। मातृ दिवस व पित्र दिवस खूब मनाते हैं, पटलों में श्रद्धा भावो की गंगा बहाते हैं। नये जमाने में कितना आगे हम आ गए, दिल के भाव सोसल मीडिया में समा गए। जो निशदिन सम्मान करते माता का, सच वही श्रद्धा से मातृ दिवस मनाते हैं। जो माता को एक रोटी देने से बचता, वह झूठ मूठ श्रवण बन पटल सजाते हैं। नये जमाने में कितना आगे हम आ गए, दिल के भाव सोसल मीडिया में समा गए। पर्यावरण, पृथ्वी, जल दिवस खूब मनाते हैं, बड़े-बड़े काव्य और आलेख लिख जाते हैं, पर सोचो क्या हम वर्ष में एक पेड़ लगाते हैं, उपदेश तो देते पर स्वयं ही पीछे रह जाते हैं। नये जमाने में कितना आगे हम आगए, दिल के भाव सो...
बुद्ध पूर्णिमा
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बुद्ध पूर्णिमा

प्रभा लोढ़ा मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** धधकी अंतस में ज्वाला, छोड़ राजपाठ सब निकल पड़ा सिद्धार्थ, सत्य की खोज में। दिव्य ज्ञान की मिली ज्योति, पाया महायान उसने बोघी गया में वृक्ष के नीचे मिला उसे बोघी ज्ञान, बोध वृक्ष के नाम से जग में हुआ प्रसिद्ध। तृष्णा को माना सब दुखों का मूल, अष्टांग योग का मार्ग दिखाया दुनिया को, सत्य अहिंसा और शांति का किया प्रसार। प्रथम उद्देश्ना दिया बुद्ध ने सारनाथ की पवित्र भूमि पर, मुक्ति मार्ग का दिया संदेश जग में बौद्ध धर्म का किया प्रसार, अध्यात्मिक सुख शांति का पाठ पढ़ाया मनुज ने किया जन जन का उद्धार भगवान तुम्हें शत शत प्रणाम। परिचय :- प्रभा लोढ़ा निवासी : मुंबई (महाराष्ट्र) आपके बारे में : आपको गद्य काव्य लेखन और पठन में रुचि बचपन से थी। आपने दिल्ली से बी.ए. मुम्बई से जैन फ़िलोसफी की परीक्षा ...
चंदन
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चंदन

प्रीति जैन इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** जीवन की तपती तपिश में, मैं जलकर निखरता मृदु कुंदन मन में बसे घावों पर तेरी प्रीत, मल दिया जैसे शीतल चंदन सांसो में बसे हो ऐसे के संदल की मनमोहक महक रूप सुनहरा चंचल, भोर के प्रहर की हो पहली झलक लिपट जाओ नागिन सी, खड़ा हूं पसारे बाहुपाश का बंधन मैं जलता एक अंगारा, छुअन तुम्हारी भीगा सा चंदन महका मन का उपवन, जब यादें घिरी मन नंदनवन मे घिरी गंध गुलाबों सी, मंत्रमुग्ध हुए प्रिये आलिंगन में घेरे हुए हैं मुझे सांसो की लय पर, अमूर्त जीवन का स्पंदन प्रेम की तपन में या चंद्रमा सी छुअन में, तू महकता चंदन राह तकते तकते प्रिये, पतझड़ सी वीरान हुई सुरमई अखियां शाख से झरने लगे हैं पत्ते, तेज़ आंधियों में झुकी डालियां मधुमास बन उतरो ह्रदयतल में, मन के मरुस्थल को कर दो मधुबन तु मृग कस्तूरी प्रियतम, कस्तूरी गंध से हुआ ...
प्रेरणा गीत
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प्रेरणा गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सुखद सफलता के सपनों को, यत्नों से साकार करें। जीवन में जब मिले चुनौती, आप सहज स्वीकार करें। साहस हो धीरज हो मन में, संकल्पित अभियान रहे। बाधा बन गंतव्य-डगर पर जो आए दीवार ढहे। पर्वत आएँ राहों में तो हँसते-हँसते पार करें। जीवन में जब मिले चुनौती, आप सहज स्वीकार करें। कभी-कभी मिलती हैं हमको, असफलताएँ जीवन में। भाव निराशा के भरती हैं, पीड़ित-विचलित तन-मन में। सकारात्मक सोच रखें नित, शुभ को बारम्बार करें। जीवन में जब मिले चुनौती, आप सहज स्वीकार करें। अच्छे कर्मों का प्रायः जग, आलोचक बन जाता है। ''करे या नहीं करे' हृदय में, महा द्वंद ठन जाता है। हिम्मत हारें नहीं कभी भी, आशा का संचार करें। जीवन में जब मिले चुनौती, आप सहज स्वीकार करें। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ ...
प्रवाह
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प्रवाह

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वो भी न रहा है ये भी न रहेगा समय के प्रवाह में ये भी तो बहेगा बदलती है रुते बदलती है राते रुकता नही जीवन झुकता नही जीवन सुहाने पलो में ये भी तो जियेगा वो भी न रहा है ये भी न रहेगा समय के प्रवाह में ये भी तो बहेगा सुनहरी धूप में सुरमई छांव में दिन और रात में पीपल के गांव में ऊर्जा से भरा ये भी तो गायेगा वो भी न रहा है ये भी न रहेगा समय के प्रवाह में ये भी तो बहेगा काली राते बदलेगी दमकती सुबहे आएगी कौन रुका जो रुकेगा कालचक्र तो चलेगा धुरी पर नही परिधि पर ये भी तो घूमेगा वो भी न रहा है ये भी न रहेगा समय के प्रवाह में ये भी तो बहेगा न ऊँचाई न गहराई कौन तुझे रोक पाई जब जब तूने ठाना तेरी हर बात को माना चल चला चल पीछे तेरे ये भी तो चलेगा वो भी न रहा है ये भी न रहेगा समय के प्रवाह...
अन्वेषण
कविता

अन्वेषण

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हर वृक्ष चुपचाप है सुना है शहर का कोना कोना सहमी-सहमी सड़क सुनसान हर पाखी है सहमा-सहमा किरण में सूरज की होते हैं नितघात यहां स्वार्थ यहां चढ़ बोलता है फुनगीपर बैठे पक्षी सा। मटिया ले पानी सा जीवन रुकता कराहता निढाल हो आगे बढ़ता आगे करने अनवेषण सतपथ का सत चरित्र सतपथ का सज्जनता का पर, पर नहीं कर पाता फलो के अंदर की सडान्ध का अन्वेषण नहीं कर पाता नहीं कर पाता ऊंची आवाज क्योकि फुनंगी पर बैठे पक्षी की आवाज उसे कहीं अधिक ऊंची है बहुत ऊंची.... परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा...
संभव है
कविता

संभव है

अखिलेश राव इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** संभव है क्या रीते मन में या फिर मेरे ही जीवन में होता है विश्वासघात क्यूं या में करता आत्मसात हूं क्यूं अपेक्षा बढती जाती और उदासी छाती। या फिर मेरे ही जीवन में तृप्त ना होता मन मेरा है या फिर जीवन का घेरा है तनिक मुझे इतना बतला दो मुझको भी पथ प्रेम बता दो वरना भटकूंगा वन वन में प्यास बुझेगी ना जीवन में आओ और बसंत बन जाओ मेरे उजड़े से मधुवन में। संभव है क्या रीते मन में या फिर मेरे ही जीवन में। परिचय :- अखिलेश राव सम्प्रति : सहायक प्राध्यापक हिंदी साहित्य देवी अहिल्या कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय इंदौर निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं...
प्रिय डायरी
कविता, संस्मरण, स्मृति

प्रिय डायरी

संजू "गौरीश" पाठक इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रिय डायरी, आज तुम फिर मेरे हाथ आ गईं। अच्छा हुआ !! अब मैं तुमसे ढेर सारी बातें करूंगी। इसलिए कि आज मेरे पापा की द्वितीय पुण्य तिथि है। सुबह से बहुत याद आ रही है उनकी। तुम्हारे माध्यम से मैं अपने पापा से ही बातें करूंगी। पापा, सुनोगे न मेरी बातें। आज के दिन २०१९ में लगभग ११ बजे भैया ने जब मुझे फोन किया तो मैं सिहर सी गई। पिछले चार पांच दिन से मुझे नींद नहीं आ रही थी। एक अजीब सी बेचैनी हो रही थी। आपने फोन उठाना भी बंद कर दिया था। चिंता लगने लगी थी। जरा सी बात करके फोन रख देते थे तो भी मन को शांति मिल जाती थी। दो सेकंड बात करके आप फोन मम्मी को पकड़ा देते थे। जैसे ही भैया ने दीदी बोला, उसका गला रूंध हुआ था। बोल ही नहीं पाया। बोला, दीदी, पापा चले गए। कैसे, क्या, कब इन सब सवालों के जवाब न मैं पूछने की स्थिति में थी, ना वह जवाब द...
स्वयं का पुरूषार्थ
कविता

स्वयं का पुरूषार्थ

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** मत रख किसी से कोई आस सिर्फ पुरूषार्थ पर रख विश्वास हाथ फैलाने पर नहीं मिलती भीख मुफ्त में बँटती सलाह और सीख भाग्य को छोड़ लगा पुरूषार्थ से दौड़ विपत्ति में यही है सच्चा आश्रय भूलकर भी मत बैठ पराश्रय कर आत्म गौरव का अनुभव सफलता करेगी चहुँ ओर कलरव पुरूषार्थ से जो हुआ लगाव तो धन, यश, सम्मान का न होगा अभाव पुरूषार्थ बल से असाध्य भी हो जाता साध्य उन्नति के मार्ग पर चलने को यह कर दे बाध्य हर तरह की मदद के सहारे में तो छिपा है स्वार्थ पर सबसे मीठा फल देगा स्वयं का पुरूषार्थ .... स्वयं का पुरूषार्थ .... स्वयं का पुरूषार्थ .... परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ क...
कोहरा
कविता

कोहरा

मनवीन कौर पाहवा ‘वीना’ पलावा (महाराष्ट्र) ******************** चाँदनी बिखरी पड़ी थी, कुछ शांत निखरी पड़ी थी। चाँद गुमसुम गुनगुनाता, गगन सुनता झूम जाता। ढाँप कर प्रत्येक छोर को, कोहरा बढ़ता ही जाता। मार्तण्ड भी कैसे उदित हों , गया कहीं छिप, वह सोचती। कमलनीय उदास बैठी, रवि किरण को खोजती। धुआँ-धुआँ हुआ प्रभात, प्राण हीन से सभी गात, भयभीत लहर से कांपते, स्थिर हुए सब जलाशय शाख़-पात चुप चाप खड़े, इस विपत्ति को भाँप रहे। कब छटेगा कोहरा, ताकि
मैं नीड़ से निकल सकूँ। नदी पर्वत चीर कर पुनः 
भ्रमण को फिर चलूँ। अंत होगा कोहरे का, नव भोर, फिर से आएगी। पा कर सुनहरा सूर्य प्रकाश, फिर से दुनिया हर्षाएगी। परिचय :-मनवीन कौर पाहवा ‘वीना’ निवासी : पलावा (महाराष्ट्र) शिक्षा : राजस्थान विश्विद्यालय जयपुर से, समाज शास्त्र और राजनीति शास्त्र मै स्नातकोत्तर व बी.एड सम्प्रति : सेवानिवृत...
द्रोपदी का सवाल
कविता

द्रोपदी का सवाल

बबिता अग्रवाल "कँवल" सिलीगुड़ी (पश्चिम बंगाल) ******************** मैं द्रोपदसुता द्रोपदी करतीं रही सवाल। मिला नहीं जवाब मुझे, दुखित मन विकराल। पांडव वंश की कुलवधु, हस्तिनापुर की आन। दास बनें रक्षक मेरे, धूमिल हो गई शान। राजा का धर्म भुला गये, जुएं में लगाया राज। प्रजा का सेवक था फिर, निभाया कौन सा अधिकार। स्वयं को हार दास बना, थी नीची जब नार। हस्तिनापुर की रानी को, कैसे लगाया दांव। दुर्योधन जंघा पीट रहा, कर्ण करें अट्टहास, भरी सभा में करें दुस्साहसन, चीरहरण का दुस्साहस। अटा पड़ा था महल सारा, ज्ञानी और विद्वान से। मौन खड़े थे सभी मुर्दे, जैसे खड़े हो शमशान । धर्म के राजा युधिष्ठिर, भीम सा बलसाली वर, पत्नी की रक्षा हेतु, क्यों हो गए आज निर्बल। तीरंदाज अर्जुन भी है, नकुल और सहदेव ज्ञाणी तुम। बिलख रही पांचाली फिर भी, चुप्पी साधे तुम। धर्मराज का भाई कृष्ण, अर...
तुम्हारे चले जाने से
कविता

तुम्हारे चले जाने से

मुकेश शर्मा कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) ******************** तुम्हारे चले जाने से, उदास है घर, उदास है आँगन, उदास हैं साँसें, उदास है मन। मुरझाने लगी है आँगन की तुलसी, खिलती थी जो तुम्हारे स्नेह से। अस्त-व्यस्त से रहते हैं अब कमरे, दीवारें सभी घर की उदास हो रोती हैं। उदासियाँ और वीरानियाँ ही अब, फैली हुई हैं चारों तरफ। घर भी जैसे काट खाने को दौड़ता है, तुम्हारे चले जाने से। परिचय :- मुकेश शर्मा पिता : स्व. श्री रामदयाल शर्मा माता : श्रीमती किस्मती देवी जन्म तिथि : १५/९/१९९८ शैक्षिक योग्यता : स्नातक निवासी : ग्राम- डुमरी, पडरौना जनपद- कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र क...
बचपन
कविता

बचपन

विनीता मोटलानी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** राह अपनी में बनाने लगी हूं मंज़िल को भी पाने लगी हूं अपने हिस्से का आसमान चुनकर सुनो बचपन में बड़ी होने लगी हूं गुड्डे गुड़ियों का ब्याह रचाना कभी रूठना सभी मनाना खेल खेल में कुछ सीखने लगी हूं सुनो बचपन में बड़ी होने लगी है तुम से जुड़ी है मीठी सी यादें चुलबुली चंचल जाने कितनी बातें यादों की पोटली बनाने लगी हूं सुनो बचपन में बड़ी होने लगी हूं तुम मेरे साथ ताउम्र रहना कभी भी मेरा दामन न छोड़ना इसी वादे के साथ जीने लगी हूं सुनो बचपन में बड़ी होने लगी हूं राह अपनी में बनाने लगी हूं मंजिल को भी पाने लगी हूं अपने हिस्से का आसमान चुनकर सुनो बचपन में बड़ी होने लगी हो... परिचय :-  विनीता मोटलानी निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) प्रकाशन : दो सिंधी पुस्तकें प्रकाशित हैं। जिसमें से एक लघुकथा संग्रह है एवं दुसरी कहानी...
गर खुद पर है विश्वास तो
कविता

गर खुद पर है विश्वास तो

हरप्रीत कौर शाहदरा (दिल्ली) ******************** गर खुद पर है विश्वास तो अड़े रहो। विश्वास वो ताकत है जो, उजड़ी हुई दुनिया में, प्रकाश जगा देती है इसलिए तुम चट्टान बनकर डटे रहो। उदार बनो पर इस्तेमाल मत होने दो, बस खुद पर रखो विश्वास, तो अड़े रहो। गर खुद पर हो विश्वास तो ताकत बनती है, गर दूसरों पर हो विश्वास तो कमजोरी बनती है। इसलिए खुद पर रखो विश्वास, अड़े रहो। खुद पर हो विश्वास तो चढ़ता जा, सफलता की सीढ़ियां, न हिम्मत हार, बनाएं रख तू हौंसला, विश्वास का दीप जलाकर रख, और बढ़ता जा तू प्रगति पथ पर, अडिग है जीवन की धार तुम, अड़े रहो, अड़े रहो, अड़े रहो। परिचय :- हरप्रीत कौर निवासी : शाहदरा (दिल्ली) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक...
दस्तक सुन दरवाजों में
कविता

दस्तक सुन दरवाजों में

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** पीड़ा ने अपना सुर बदला, दस्तक सुन दरवाजों में विषय बहुत से कविहृदय में, अंतर्मन आवाजों में। कदम रुकते थे बचपन में, बुजुर्गों की कुछबातों में गुजरी यादों के अतीत अब, कहर बने दिनरातों में बिना गुनाह के सजा पाती, ये जनता बेचारी है आस्तिक हो अथवा नास्तिक, बराबरी लाचारी है कुली दास किसान श्रमिक या, घरानों महाराजों में विषय बहुत से कविहृदय में, अंतर्मन आवाजों में पीड़ा ने अपना सुर बदला, दस्तक सुन दरवाजों में बेलगाम अश्व के मानिंद, भीड़ तंत्र से जो हारा मदिरा से जब सरकार चले, ठंडा होता है पारा मंथरा बुद्धि से लोग हुए, सियासत करम जारी है सकते में जब परिवार देश, गलती की बीमारी है कितने स्वजन खोये सबने, आशा जगी रिवाजों में विषय बहुत से कविहृदय में, अंतर्मन आवाजों में पीड़ा ने अपना सुर बदला, दस्तक सुन दरवाजों में बेबसी और लूटमार क...
कटाक्ष, व्यथा और संकेत
कविता

कटाक्ष, व्यथा और संकेत

नारायण दोगाया राहड़कोट-खरगोन, (मध्य प्रदेश) ******************** देखो-देखो विकल मानव को प्राणवायु को तरसे जी, और विकट हो गई घटाएं अंबर दुख का बरसे जी... देव समझ बैठा खुद को ये विलासी मानव समुदाय, कुछ क्षण में ही देख लिया अपना स्तर है निरुपाय, स्वार्थ पूर्ति को प्रकृति में रेखाएं खींचे तुमने ही, अब क्या खट्टे क्या मीठे जो बोए, सीचे तुमने ही, हे! भारत के धीर वीर ना भटको लोभी माया में, परोपकार का भाव लिए बस चलो ईश्वर की छाया में, जो तुमने भाई¹ मारे है उन्हें बचालो अब एक बार, तर जाओगे जीवन से मां² रास्ता देख रही उस पार दुःख पीड़ा के दिन बीतेंगे सुखद समय भी आयेगा पतझड़ का मौसम निश्चित ही बरसती ऋतुएं लायेगा.... दो चार दिनों में फिर से आयेगा एक अभिराम, जब तक केवल नाम जपो जय घनश्याम, जय घनश्याम ।। {¹भाई~ प्राकृतिक संसाधनों के लिए} {²मां~ प्रकृति के लिए...
बूंद
कविता

बूंद

जयश्री सिंह बैसवारा सोनभद्र, (उत्तर प्रदेश) ******************** सहसा ही तूं जब गिरती है, धरती की सुखी छाती पर मस्त मलंग होकर तूं लहराती पेड़ों की डाली पर चारों तरफ है मौसम छाया, है तेरी मनमानी से खिल उठे चितवन में फूल बस तेरी मेहरबानी से चारों तरफ है फैली खूशबू, बस तेरे ही आने से है छायी हरियाली तेरे यूँ इठलाने से अनायास ही मन उठ कहता लिख जाऊँ कुछ तेरे कहने से छायी है जो ये हरियाली, तेरे जख्मों के भरने से परिचय :- जयश्री सिंह बैसवारा निवासी : सोनभद्र, (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवा...
जीवन चक्र
कविता

जीवन चक्र

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** विधाता ने श्रृष्टि बनाई और उसके नियम बनाये। जिन्हें पृथ्वीवासियों को मानना सबका कर्तव्य है। अब हम माने या न माने ये सब पर निर्भर करता है। क्योंकि विधाता ने तो सब कुछ आपको दिया।। भावनाओं से ही भाव बनतें है। भावों से ही भावनाएं चलती हैं। जीवन चक्र यूँ ही चलता रहता है। बस दिलमें आस्थायें बनाये रखो।। जीवन बहुत अनमोल है। हर पल को जीना जरूरी है। मूल सिध्दांत ये कहता है। खुद जीओ औरों को जीने दो।। स्नेह प्यार से मिलाकर रहो। ऐसी वैसी बाते मत बोलो। जिससे पीड़ा हो दोनों को। मधुर वाणी से मुंह खोलो।। हमने जितना समझ है बस उतना ही लिखा। बाकी पाठकों पर छोड़ दिया। अब इसे सराहे या ठुकरायें। इस कविता का भविष्य आपके हाथ में हैं। हमें अपनी प्रतिक्रिया आप जरूर ही दें। ताकि आगे भी मैं और लिखा सकू।। ये ही सुख शांति का एक ...
मौन संवाद
कविता

मौन संवाद

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चाँदनी ने चाँद से, यूँ पूछ ही लिया आज। बुझे-बुझे से तुम, क्यों रहने लगे हो उदास। चाँद ने चाँदनी को, दिया न कोई जवाब। नजरों को झुकाकर, और हो गया उदास। देख चाँदनी ने फिर, प्रश्न किया दूजी बार। मेरी धूमिल होती छटा, तुम्हे पसंद है मेहताब? चाँद ने हो सजल, चाँदनी को देखा इस बार। खिन्नता का लिए आभास, वो चिंतित, उदास। फिर बोली चाँदनी, मुस्कुराओ ना एक बार। कोई तो कारण होगा, जो इतने हो उदास। गम्भीर होकर चाँद ने, कही मन की बात। धरा बहन के दर्द से, मुझे होता रोज विषाद। जिंदा रहने के लिए वहॉं होते रोज फसाद। प्रतिदिन चीत्कारों से, हृदयविदारक निनाद। मुस्कुराकर बोली चाँदनी, ऐसा हुआ है कई बार। ये समय भी कभी, न रुका था, न रुकेगा इस बार। जो वक्त बुरा बीत रहा है, जल्द बीत ही जायेगा। सृष्टि का हर ...
इजा (मातृ) शतकम्
कविता

इजा (मातृ) शतकम्

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर दिल्ली ******************** उत्तराखंड राज्य में, पिथौरागढ़ नामका जनपद था। वहाँ पुल्लाके समीप मेंं, गजना नामक गाँव था ।।१।। ऋषिभरद्वाज के वंशज, जोशी कुल में उत्पन्न हैं। महाविप्र इन्द्रदेव जी, बृद्धप्रमातामह भूषण हैं ।।२।। लालमणी प्रमातामह तो, मातामह ईश्वरीदत्त हैं। मातामह पत्नी मातामही, विख्यात भवानी देवी हैं।।३।। लालमणी भवानी के घर में, सुकर्मफलों से कन्या हुई। वह कन्या इसलोक मेंं, पार्वती नाम से ख्यात हुई ।।४।। होकर स्वकुलभूषण भी, माता पिता से हेय हुई । ब्रणकष्ट अति सहकर भी, दक्षिणहस्त से पीडित हुई ।।५।। मातापिता का दुर्भाग्य था उनको, न सुता महत्व का भान हुआ। उनके अकरणीय कर्म से, निष्क्रिय दाहिना हाथ हुआ ।।६।। मौनसगोत्र शिरोमणि, दुन्याँ गाँव में निवासी हुए। बलभद्र जोशी नाम से, प्रसिद्ध प्रपितामह हमारे हुए।।७।। बलभद्र...
पृथ्वीराज चौहान
कविता

पृथ्वीराज चौहान

चन्दन केशरी झाझा, जमुई (बिहार) ******************** हिन्द देश के परमवीर, आर्यावर्त के शान की, ये गौरवमयी गाथा है, पृथ्वीराज चौहान की। बारहवीं सदी में हिन्द ने, ऐसे वीर को पाया था। बिना अस्त्र-शस्त्र जिसने, सिंह को मार गिराया था। शब्दभेदी विद्या में कुशल, वह हिन्द का अभिमान था। वो बुद्धिमान और थे चतुर, उन्हें छः भाषाओं का ज्ञान था। संयोगिता थी संगिनी और मित्र थे कवि चंद्रबरदाई। दोनों मित्र थे साथ चाहे, कितनी भी विपदा आई। शत्रु सेना का शासक, मुहम्मद गौरी, अफगानी था। पृथ्वीराज ने युद्ध में, पिला दिया उसे पानी था। अपनी युद्ध कुशलता से, शत्रु को धूल चटाया था। इनके सामने गजनी का, सुल्तान भी थर्राया था। किया वार पर वार और हर बार मुँह की खाया था। पृथ्वीराज ने गौरी को, सत्रह बार हराया था। जब माफ किया उसे सत्रह बार, फिर से किया उसने वार। अबकी पृथ्वीरा...
जगतगुरू आदि शंकराचार्य
कविता

जगतगुरू आदि शंकराचार्य

बिसे लाल खड़गवां (छत्तीसगढ़) ******************** धर्म और संप्रदाय पर जब था अंधकार का साया, तब केरल के कालडी़ मैं जन्मे महान संत। ८ वर्ष की उम्र में सन्यासी बने सबको दिया ज्ञान, कई ग्रंथ रचकर दिया सबको परम ज्ञान। सनातन धर्म स्थापित किया, अद्वैत चिंतन को पुनर्जीवित करके सनातन हिंदू धर्म का निर्माण किया। बिखरे भारतवर्ष को अध्यात्म मार्ग पर जोड़ा, पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण को चार मठों में जोड़ा। कई ग्रंथ लिखकर समाज को जागृत किया, सभी को अद्वैत वेदांत का दर्शन कराया। कम आयु में महान कार्य किए, धर्म सनातन का उत्थान किया। धन्य हुई धरती धन्य हुआ भारतवर्ष, भारतवासी कृतार्थ हूँ। परिचय :- बिसे लाल सम्प्रति : सहायक शिक्षक शासकीय प्राथमिक शाला मेंड्रा विकासखंड खड़गवां निवासी : खड़गवां जिला कोरिया (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं म...