Friday, January 31राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

कविता

मै झूक जाऊंगा
कविता

मै झूक जाऊंगा

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** वक्त ओर हालात के आगे मै झूक नही पाऊंगा तेरे हर इम्तां के आगे मै झूक नही पाऊंगा इसां की लाशों के ढेर का हो रहा हे अपमान पत्थर न हो, इंसां के आगे मै झूक नहीं पाऊंगा सियासत बड़ी या इंसा की पड़ी हुई ख़ाक दे इंसाफ़, उस ख़ाक के आगे मै झूक पाऊंगा तूने तो बनाया ये संसार, रूठ गया हे क्यूं आज मेरे यार जवाब दे सब के आगे मै झूक पाऊंगा बस तेरे ही बंदो का ख्याल करले ए मालिक हैसियत नहीं, अपनो के आगे मै रूक पाऊंगा झोली फेला दुआ करता हे ये "मोहन" अब ये कलयुग समेट ले तेरे आगे मै झूक जाऊंगा परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कह...
आशा की किरण
कविता

आशा की किरण

मंजू लोढ़ा परेल मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** हो घनघोर अंधियारी रात या हो गहरी अमावस की रात, एक नन्हा सा दिया आशा की किरण बनकर जगमगाता है. वह थी एक मुसलधार बारिश की रात, जब जेल की दीवारें, प्रकाशमान हो उठी, एक अद्भूत अलौकिक बालक श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, आशा और विश्वास का एक सुरज जगमगाया. वह थी अमावस की रात जिसमें नन्ही-नन्ही दिपमालाओं ने पूनम की रात बना दिया, श्री राम का आगमन अयोध्या का घर-घर प्रकाशमान हो गया. वह थी अमावस की रात जब अहिंसा, क्षमा, अभय के प्रतिक, प्रभु महावीर का निर्वाण कल्याणक हुआ, ज्ञान, तप, त्याग की मूर्ति से हमारा विछोह हुआ, तब माटी के छोटे-छोटे दीपों ने ज्ञान की ज्योत को जलाये रखा। वह गौतम बुद्ध थे, जो यह संदेश दे गये, "अप्प दीपो भवः" अपना प्रकाश खुद बनो, चाहे कितनी भी हो गहरी घनघोर काली अमावस की रात, उसमें भी आशा की एक किरण मुस्कुराती है, जीने का नया हौसला देती...
आजादी का मान
कविता

आजादी का मान

मंजुषा कटलाना झाबुआ (मध्य प्रदेश) ******************** संविधान मिला तुम्हे आजादी का। यारो इसे नही गवाना। मिटे कई वीर तुम्हारे लिए। बलिदान उनका नही भुलाना। वो ना होते तो तुम कैसे आज ऐसे जी पाते। गुलामी की जंजीरों के घाव तुमसे ना सहे जाते। रक्त से लतपत हुई इस धरा ने अपने बेटों का लहू भी पी लिया। आजादी की तरसती भारत माँ ने जाने क्या क्या सह लिया। गर्व करो उन वीरो पर जिन्होंने दे दी तुम्हें आजादी। धर्म जात ओर बंटबारे पर मत करो तुम बर्बादी। एक है हम एक हमारा प्यार ये स्वराष्ट्र है। झुका के शीश नमन करो देश पर मुझे नाज है। परिचय :- मंजुषा कटलाना निवासी : झाबुआ (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, रा...
हार ही हुई है
कविता

हार ही हुई है

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** बहुत बार कर के देख ली है कोशिश....! हर बार हमेशा कि तरह हार ही हुई है....!! दफ़न हो गई है तमन्नाएं सारी मन के भीतर ही....! ओर कितनी मन्नतें मानू एक भी कहा साकार हुई है....!! जब भी चाहा किसी चीज को शिद्दत से....! सारी कायनात हमेशा की तरह दूर करने में ही लग गई है....!! पुराने ख्वाब ज़हन में भला आयेंगे भी कैसे....! नींद जो हमारी अब नयी हुई है....!! सोच के बारे में ओर कितना सोचूं, सोचती हूँ सोचना ही छोड़ दू....! सोच हमेशा सभी कार्यों के विपरीत ही हुई है....!! परिचय :- कु. आरती सुधाकर सिरसाट निवासी : ग्राम गुलई, बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रक...
चलो आज हम अक्षय तृतीया मनाते है
कविता

चलो आज हम अक्षय तृतीया मनाते है

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** चलो आज हम अक्षय तृतीया मनाते है गुड्डे और गुड़िया की शादी रचाते हैं तुम रानी दीदी बन जाना घराती और राजा भैया बनेंगे बराती ऐसे ही संग संग नाचते और गाते हैं गुड्डे और गुड़िया की शादी रचाते हैं लाल लाल चुनरी में गुड़िया है सजती पीली पीली पगड़ी गुड्डे को है जंचती मोतियों वाला चलो हार पहनाते हैं गुड्डे और गुड़िया की शादी रचाते है मंडप को मैंने तोरण से सजाया साथ साथ थोड़ा झालर भी लगाया नाच गाने के लिए डीजे लगवाते है गुड्डे और गुड़िया की शादी रचाते है देखो देखो जाकर बारात है आई बैंड बाजे के संग बजी है शहनाई द्वारचार के लिये चौक बनाते हैं गुड्डे और गुड़िया की शादी रचाते हैं गाजर का हलुवा और बाम्बे मिठाई कही पर है गुपचुप, कही रसमलाई दोस्तों के संग चलो पार्टी मनाते हैं गुड्डे और गुड़िया की शादी रचाते हैं मंडप में बैठी है गुमसुम स...
हार मत मान
कविता

हार मत मान

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आत्म समर्पण हार को, करो न है यह पाप। दृढ़ संकल्प लिये चलो, होगा जीत मिलाप। असफलता से हार कर, जो न कभी घबराय। आ जाता उस पुरुष के, पास सफलता धाय। भूतकाल की भूल से, ग्रहण करो उपदेश, आने वाली जीत का, समझो नव संकेत। घबराओं मत हार से, करो न हिम्मत पस्त, हार निकटतम जीत का करती मार्ग प्रशस्त। असफल हुऐ तो क्या हुआं? जब कि आत्म विश्वास, है तो निश्चय समझ लो, बदलोगे इतिहास। बाहर उजियारी नहीं, भीतर भरा प्रकाश, हार वहाँ पर है कहाँ? जहाँ आत्म विश्वास। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपक...
वो स्कूल की यादें
कविता

वो स्कूल की यादें

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** वो स्कूल की यादें, वो छेड़िया की बातें जो हम कभी भूल ना पाते वो छेड़िया की हवा डोमन होटल का भजिया लहसुन मिर्चा की चटनी। वह दोपहर का लंच साइकिल स्टैंड का हड़कंप वो बघेल सर जी का खौफ, वो प्रिंसिपल सर जी का रौब वो एन.पौसारिया मैडम जी का स्नेही दुलार और वो सी.पी.मैडम जी का मार के साथ प्यार वो चेलक सर जी का हिंदी में इंटरेस्ट वो साहू सर जी का गणित परफेक्ट वो एच. आर. हिरवानी सर जी का कवक, शैवाल और जीवाणु वायरस क्लास में हो जाता था हर बच्चा सीरियस वो लास्ट बेंच का मज़ा हर परेड में मिलती की सजा वो छेड़िया भरदा की सड़कें ना जाने कितने लड़कों के दिल धड़के वो स्कूल की यादें वो छेड़िया स्कूल की बातें जो हम कभी भूल ना पाते ... परिचय :- खुमान सिंह भाट पिता : श्री पुनित राम भाट निवासी : ग्राम- रमतरा, जिला- बालोद, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं ...
इजहार प्रेम का
कविता

इजहार प्रेम का

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** पेड़ पर मौसम आने पर लगते फूल और फल पेड़ प्रेम का प्रतीक बन जाते जब बांधी जाती प्रेम के संकल्प की धागे की गठान पेड़ की टहनी पकड़े करती प्रेम का इजहार या पेड़ के तने से सटकर खड़ी रहती पेड़ एक दिन बीमारी से सूख गया प्यार भी कही खो गया चाहत भी गम में हुआ बीमार एक दिन चला गया मृत्यु की आगोश में संयोग वो जब जला दाहसंस्कार में लकड़ियाँ उसी पेड़ की थी अधूरा इश्क रहा जीवन मे रूह तृप्त हुई इश्क़ की चाहत ने कभी टहनियों को छुआ तो था कभी। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन...
क्यों करें हम शिकायत
कविता

क्यों करें हम शिकायत

अन्नू अस्थाना भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** नहीं करते तरु शिकायत पत्तों के गिर जाने पर, नहीं मांगते एक फूटी कौड़ी, फल फूल के बदले में देते रहते ये हमें प्राणवायु की निरंतरता, छाया देने का नहीं मांगते एक किराया, अंगद की तरह खड़े रहकर, झेला करते रवि किरणों की तीव्रता। नहीं करती शिकायत सरिता, पाट के कट जाने कि, तरंगिणी कभी नहीं करती शिकायत, मलिन अपशिष्ट पानी में मिल जाने कि सागर कभी अश्रु नहीं बहाते, अपने खारे पानी पर पंछी, पखेरू किसके पास है जाते लेकर अपनी शिकायत को। ये नीड़ किसने गिरा दिया ? तिनका-तिनका जोड़कर जिसे बनाया था हमने अपनी चोंच से। प्रकृति हमें सिखा रही है, सीखो, तुम मनुज इनके उदाहरणों से। आंसुओं कि धारा से नहीं भर सकते नदी, कुएं और तालाब। माना कई दीप बुझ गए, बिखर गए कई कुटुंब और परिवार व्रज सा प्रहार हुआ है म...
ढ़लान
कविता

ढ़लान

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ****************** गुस्से में निकल गए दहलीज़ पार कर गए जाते-जाते रुक गए फिर पलट गए फिर झुक गए एक पल श्वास लेने ठहर गए ! वेदनाओं में बह गए भावनाओं में कह गए जीने के अंदाज बदल गए इस धारे में जाने कितने बह गए ! जो ऐंठ गए वो टूट गए जो हार गए वो जीत गए तुम मुझे क्षमा करों मैंने तुम्हें माफ़ किया ऐसा ही कुछ कह गए !! परिचय : विश्वनाथ शिरढोणकर मध्य प्रदेश इंदौर निवासी साहित्यकार विश्वनाथ शिरढोणकर का जन्म सन १९४७ में हुआ आपने साहित्य सेवा सन १९६३ से हिंदी में शुरू की। उन दिनों इंदौर से प्रकाशित दैनिक, 'नई दुनिया' में आपके बहुत सारे लेख, कहानियाँ और कविताऍ प्रकाशित हुई। खुद के लेखन के अतिरिक्त उन दिनों मराठी के प्रसिध्द लेखकों, यदुनाथ थत्ते, राजा-राजवाड़े, वि. आ. बुवा, इंद्रायणी सावकार, रमेश मंत्री आदि की रचनाओं का मराठी से किया हुआ हिंदी अनुवाद भी अनेक पत्र-पत्रि...
धन कमाने के …
कविता

धन कमाने के …

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** https://www.youtube.com/watch?v=TuERJHasVx0 धन कमाने के मित..... धन कमाने के मित बेचता आत्मा, सब यहीं छोड़कर तू चला जायेगा। नाम जप में लगा अपने मन को मनुज, नाम जप का ही धन,साथ में जायेगा। धन कमाने के.......... बच्चों को सींच संस्कारों के जल से तू, तो ही कर्मठ और उद्द्योगी बन पाएंगे। दूषित धन से अगर उनका पालन हुआ, धर्म क्या है नहीं वे समझ पाएंगे। देगा सतपुत्र यदि राष्ट्र को एक तू, तो तेरा नाम रोशन वो कर जाएगा। धन कमाने के........ सात्विक भाव मन मे जगेंगे तभी, जब उचित भोज उनके उदर जाएगा। तामसी खाद्य है नहीं मानव के मित, जो भी खायेगा वो अंत पछतायेगा। आचरण अपना यदि तू सुधारेगा तो , तेरे बच्चों को सदमार्ग दिख जाएगा। धन कमाने के....... चाहे जिस पद पे है,जन का सेवक है तू, कार्य मित इक उचित राशि पाता है तू। अपना कर्तव्य पूरा करें यदि सभ...
हवाओं में कैसा घुला ये ज़हर है
कविता

हवाओं में कैसा घुला ये ज़हर है

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** हवाओं में कैसा घुला ये ज़हर है गलियाँ हैं ख़ामोश सूना शहर है उजड़ने लगे हैं चमन औ बगीचे गमगीन चेहरे हैं सूनी नज़र है शमशान ख़ाली न क़ब्र में जगह है जिधर देखिए बस क्रंदन क़हर है न देखा किसी ने कभी ऐसा मंजर हैं मायूस आँखें तड़पता जिगर है जमाख़ोरों का है सतत खेल जारी गरम उनकी जेबें मरे दुनिया सारी कफ़न नोच कर बेंच देते दुबारा गिद्धों का ये झुंड कितना निडर है कोविड जनक मुस्कराता ख़ुशी में मगन हो रहा है औरों की बेबसी में है मारीच सदृश मायावी जिनपिंग न साहिल किसी का न कोई फ़िकर है परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि : पुस्तक लेखन, सम्पादन, कविता, ग़ज़ल, १०० शोध पत्र प्रकाशित, मनोविज्ञान पर १२ पुस्तके...
प्रकृति संरक्षण
कविता

प्रकृति संरक्षण

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** देखो आज कितना बुरा समय है आया चारों ओर दिख रही है मृत्यु की छाया। आदमी हर पल हर तरह से मजबूर है, ऑक्सीजन बनी जैसे छाया खजूर है। हर तरफ ऑक्सीजन की मांग हो रही, अस्पतालों में जिंदगी मौत में खो रही। मानव अब भी समझ जा अपनी गलती, झूठे विकास से ही बंजर हुई यह धरती। साफ कर जंगलों को तूने महल हैं बनाए, स्वकृत्य से धरा को खून के आंसू रुलाए। धन की वासना में मानवता की बलि चढ़ाई, माया के लिए तूने संस्कारों की होली जलाई। तुच्छ जीव ने विकास का दर्पण दिखा दिया, बड़े-बड़े देशों को मृत्यु के आगे झुका दिया। अब प्रकृति के संरक्षण का बीणा उठाओ, भविष्य की आपदाओं से जग को बचाओ।। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : ...
शब्दों की गरिमा
कविता

शब्दों की गरिमा

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** शब्दों के हाहाकार ने कहीं किया सत्कार तो कहीं तिरस्कार पर इन सब के बीच है दरकार कि शब्दों की गरिमा को बरकरार रखना भी है एक करिश्मा बस वाणी सँभाल ले यह अनिवार्य जिम्मा परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद ह...
‘है’ और ‘था’ में अंतर
कविता

‘है’ और ‘था’ में अंतर

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** देश कभी सोनचिरैया था, अब दुष्कर हाल हुआ है कल था साथ सभी के, आज नज़रों से दूर हुआ है रूह कांपती है देखदेख, कैसा बना है शेष सफर अकाल खोते देख स्वजन, जज़्बे बन गए सिफर कसूर नहीं लेशमात्र भी, कोरोना कातिल हुआ है कल था साथ सभी के, आज नज़रों से दूर हुआ है देश कभी सोनचिरैया था, अब दुष्कर हाल हुआ है बेढब चाल लापरवाही हद, खून में रचा बसा था लाख समझाइश पर भी, भूलों का नशा चढ़ा था कालाबाज़ारी चोरी भी, नकली दवा चलन हुआ है कल था साथ सभी के, आज नज़रों से दूर हुआ है देश कभी सोनचिरैया था, अब दुष्कर हाल हुआ है कवि 'प्रदीप' भजन दर्द, मुसीबतों से देश लड़ा था बात घात से देखा पतन, पर नमन वतन को था वतन सौदागरों से भारत, संकटों से घिरा हुआ है कल था साथ सभी के, आज नज़रों से दूर हुआ है देश कभी सोनचिरैया था, अब दुष्कर हाल हुआ है खैरियत हैसियत बीच, नज़रियों का कटु ...
ह्दय वेदना
कविता

ह्दय वेदना

सपना आनंद शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** यह कैसा सन्नाटा है, चारों और बस एक आस लिए खड़ा हर कोई है, अपनों को पाने की चाह तो कहीं अपनों से बिछड़ने का रंजो गम पसरा है, यह कैसा सन्नाटा है,... यह कैसा सन्नाटा है... देख व्यथा हर किसी की हृदय कॉप सा जाता है, मर्मस्पर्श ता झंझोर रख देती है, आज इंसानियत इंसानों पर भारी है, सबको पास रखने के लिए सबसे बस दूरिया ही जरूरी है, यह कैसा सन्नाटा है ... यह कैसा सन्नाटा है ...? परिचय :- सपना आनंद शर्मा निवासी - इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी क...
ये जिंदगी
कविता

ये जिंदगी

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ये जिंदगी थोड़ा तो मुस्कुराने दे अभी कल ही तो माँ गांव से आई है कुछ मीठी गुजिया लाई है कुछ तो मजे कर लेने दे ये जिंदगी थोड़ा तो मुस्कुराने दे।। तिनका तिनका जोड़ा कोई सपना तोड़ा कोई सपना जोड़ा आँसू भरी आँख से मुस्कुराया थोड़ा थोड़ा आ तू भी हो जा मेरी खुशियों में शामिल तू भी मुस्करा थोड़ा थोड़ा कुछ तो तुझे समझ पाने दे ये जिंदगी थोड़ा तो मुस्कुराने दे।। माना कि मुझसे गलतियां हुई है हजार तूने समझने की कोशिश भी की बार बार बस अब और नही माफ कर दे एक बार अपनो को दिल खोल के गले से लगाने दे ये जिंदगी थोड़ा तो मुस्कुराने दे।। बिटिया की आंखों में है ढेरो सपने बेटा भी गुनगुना रहा ख्वाब अपने बीवी जोड़ रही आड़े वक़्त के लिए पैसा पैसा मैं भी काम किये जा रहा हूँ कैसा कैसा दिप आशाओं के जल जाने दे ये जिंदगी थोड़ा तो मुस्कुराने दे।। दोस्तो की संगत में निवाले खुशी ...
जबान
कविता

जबान

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** https://www.youtube.com/watch?v=m1FM9mfW0UY परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर मध्य प्रदेश सम्प्रति - शिक्षिका (हा.से. स्कूल में कार्यरत) शैक्षणिक योग्यता - डी.एड, बी.एड, एम.फील (इतिहास), एम.ए. (हिंदी साहित्य) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻 आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अ...
संघर्ष
कविता

संघर्ष

मधु अरोड़ा शाहदरा (दिल्ली) ******************** संघर्षों की अथक कहानी, बिन संघर्ष अधूरी है जिंदगानी जिंदगी कदम-कदम पर कुछ सिखाती परेशानी ही आदमी के जीने के नए आयाम बनाती संघर्ष करते, हौसला बढ़ता जाता। वही मानव जीवन में सफल होता जाता। ऐसा कोई जीवन नहीं जिसमें ना हो संघर्ष जिंदगी फूलों की सेज नहीं, कदम-कदम पर कांटों का हे मेल , सबकी जिंदगी में संघर्षों का खेल। यह भी गुजर जाएगा। हौसला रख हिम्मत ना हार, वक्त गुजर जाएगा। गर्भ में आने से मरने तक, जीवन संघर्षों की कहानी। जीवन धूप छांव जैसा, सुख-दुख की बदली ने घेरा। मानव हिम्मत ना हार, यह भी गुजर जाएगा। यह भी गुजर जाएगा।। परिचय :- मधु अरोड़ा पति : स्वर्गीय पंकज अरोड़ा निवासी : शाहदरा (दिल्ली) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ...
कातिल कोरोना
कविता

कातिल कोरोना

डॉ. गुलाबचंद पटेल अहमदाबाद (गुज.) ******************** एक बार न्यूमोनिया कोरोना बनकर हमसे जा टकराया डटकर किया मुकाबला हमने उल्टे सिर लटकाया वो इतना कातिल था, गले में जा अटका कफ सिरप ने दांतों से खूब चबाया डॉ. दीपेन ने रेमडीसीवर दिया उसने खूब आराम से वो पिया औषध का नदी बहाया कोरो ना कहे मे कहा से आया डॉ. ने गोलियों से बूंद डाला सिर उसका काट डाला हमने कहा, अब तुम वापस मत आना सीधे अपने घर पहुँच जाना तुम करोना हो या फिर कोई भी हमरी ताकत तूने नहीं देखी कवि गुलाब कहे, कोरों ना से मत डरना डटकर मुकाबला करना मास्क मुह पर जरूर लगाना औरों को तुम जगाना दो गज की दूरी तुम रखना सेनेटराइज़ पास रखना टीका जरूर तुम लगवाना बिना काम घर से बाहर न निकलना परिचय :-  डॉ. गुलाबचंद पटेल अहमदाबाद (गुज.) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप...
कलम की आत्मकथा
कविता

कलम की आत्मकथा

संजू "गौरीश" पाठक इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हां, मैं कलम हूं ! अनगिनत रूप हैं मेरे। ज़रा सदियों पीछे जाइयेगा। मुझे एक अलग ही रूप में पाइएगा।। बड़ा गहरा नाता रहा है मेरा, भारत की पावन भूमि से।। ऋषियों मुनियों के सानिध्य में, ना जाने कितने पवित्र ग्रंथों के सृजन में काम आई हूं मैं।। महापुरुषों के जीवनी को बड़ी शिद्दत से उकेरा है मैने। राजाओं, महाराजाओं को भी बखाना है मैने।। नेताओं, राजनेताओं के तो कहने ही क्या ! इनके बड़े बड़े वादे लिख लिख कर, थक सी गई हूं मैं।। नमन है उन शूर वीरों को चिकित्सकों, शिक्षकों सिपाहियों और मेरे ही बहादुर सिपह सालारों को जिन्होंने अनवरत प्रदान की अपनी सेवाएं।। मेरी है यही फितरत कि कभी हंसाती, कभी गुदगुदाती हूं। और कभी दिल का दर्द खींचकर बाहर लाती हूं।। बोलने को है मेरे पास, अकथनीय अवर्णनीय भी। आज के बस इतना ही, बाकी फिर कभी।। परिचय :- संजू "ग...
माँ क्या होती है
कविता

माँ क्या होती है

गायत्री ठाकुर "सक्षम" नरसिंहपुर, (मध्य प्रदेश) ******************** कोख में रखकर नौ महीने, सौ सौ तखलीफें सह सह कर। रात रात भर, जाग-जाग कर, खुद गीले में रह-ह कर। बच्चे को सुलाती सूखे में, प्यार भरी थपकी देकर। बड़े चाव से सेवा करती, कभी न उसमें नागा करती। हो जाए बड़ा, कितना ही बालक, हर विपदा से उसे बचाती, बन करके, उसका रक्षक। नहीं है कोई दुनिया में, उसके जैसा, त्याग, तपस्या और प्रेम की मूरत जैसा। माथे पर उसके, देख शिकन, हो जाती व्याकुलता से बेचैन। बालक के सुख से होती सुखी, बालक के दुख से होती दुखी। माँ की कीमत वो ही जाने, मिली न "सक्षम" जिन्हें देखने। परिचय :- गायत्री ठाकुर "सक्षम" निवासी : नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी ...
मां
कविता

मां

हरप्रीत कौर शाहदरा (दिल्ली) ******************** मां ममता, प्यार, त्याग और पवित्रता की मूर्त है। जिसका कर्ज हम कभी नही उतार सकते हैं। मां जो सबका ख्याल रखती है, हमारी खामोशी को भी आसानी से समझ लेती है, हमे कुछ हो जाए परेशान हो जाती है, मां हमें प्यार करती दुलार करती है, भूख न लगने पर भी हमें जबरदस्ती खाना खिलाती है। सबके दिल की धड़कन होती है मां। हमनें कभी भगवान को तो नही देखा पर मां ही हमारे लिए भगवान का रूप होती है। मां के लिए कोई शब्द ही नहीं है जो मेरी कलम लिख पाए। मेरी कलम में इतनी ताकत नहीं जो मां के चरित्र को बयां कर पाए। मां तो अनमोल है। जो मां अपनी औलाद के लिए कर सकती है, वो औलाद भी अपनी मां के लिए नही कर सकती। क्योंकि मां तो मां है। अगर संसार में कुछ सच्चा है, तो वो सिर्फ मां का प्यार है। परिचय :- हरप्रीत कौर निवासी : शाहदरा (दिल्ली) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वा...
पलाश और अमलतास
कविता

पलाश और अमलतास

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रकृति का लिए श्रृंगार दोनों आते साथ-साथ। एक मित्र है पलाश और दूसरा है अमलतास। जब सुन्दर रक्तिम आभा से झिलमिलाता पलाश। स्वर्ण कली से पुष्पित होकर इठलाता अमलतास। जो प्रेम से मदमस्त होकर, नाच उठता है पलाश। होले-होले लहराता फिर, झूम उठता अमलतास। तपती दोपहरी में लगे युद्धभूमि-सा क्रुद्ध पलाश। शीतलता को सरसाता, शान्त पवन-सा अमलतास। सुर्ख लाल-लाल प्यार का रंग, दे जाता जब पलाश। पीत पावड़े होने तक संग, दोस्ती निभाता अमलतास। सूद-बुद खोकर जब अपना सर्वस्व लुटाता पलाश। नित न्यौछावर हो, कोमल पुष्प बरसाता अमलतास। प्रेम में लूट जाने की अनोखी रीत निभाता पलाश। मित्रता की जग में अद्भुत मिसाल बनाता अमलतास। विपत्ति में भी जीने की राह दिखलाता है पलाश। हो विषमपथ धीरज धरना, सिखलाता अमलतास। परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर मध्य प्रद...
सुख का सागर
कविता

सुख का सागर

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** बचपन में मेंने कितनी शरारत की मां कभी तूने मुझे कुछ न कहकर अनदेखा कर बस थोड़ा सा मुस्कराई मां बड़ा होकर सब भूल जायेंगे जब जिम्मेदारी आयेगी, समझ जायेगा प्रेरणा बनी रही सागर की तरह मां। धैर्य, धीरज की अनमौल मुरत थी मां, स्वर्ण कमल की आभा लिए हर परिस्थितियों से निपटना वह जानती थी, दुःख सुख से कभी न घबराती, मौसम बदलते ही चन्द्रकला सा निखार आ जाता था मां हमेशा तेरे प्यार दुलार में कोई कमी नही आई तेरे चरणों में देखा सुख का सागर मां। कभी भेद नहीं किया अपने व परायों में तूने मां, अपने हाथों से तुमने भरपूर ममता लुटाई मां, बीती बातें जानकर गगन मां को कभी भूला नहीं पाया मां सदा देखा तेरे चरणों में स्वर्ग सा सागर मां। परिचय :- गगन खरे क्षितिज निवासी : कोदरिया मंहू इन्दौर मध्य प्रदेश उम्र : ६६वर्ष शिक्षा : हायर सेकंडरी मध्य प्रद...