पत्थर हुआ इंसान
डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय"
ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी
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आजकल इंसान
नही रहा इंसान ।
हो गया है
पत्थर समान।
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प्रत्येक इंसान अपनी
दुनियां में खो गया है।
इसलिये शायद
भावना शून्य हो गया है।
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समाज में होनी वाली
घटना का उस पर
कोई असर नहीं होता है।
वह तो केवल अपनी
मस्ती में मस्त होता है।
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चाहे हो जाय हत्या
चाहे हो जाय बलात्कार
उसके कानों पर
जूं नही रेंगती।
उसको तो केवल
अपनी पड़ी रहती हैं।
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दया,करुणा और
सहनुभूति आजकल
इंसानों में नहीं मिलती
इसलिये दुनियां में अब
खुशहाली नही दिखती।
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अब इंसानियत
खो चुका है इंसान।
इसलिये पत्थर दिल
हुआ है इंसान।
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परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय"
निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी
घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है।
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