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कविता

पावन गंगा
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पावन गंगा

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** देव नदी सारी दुनिया में, भारत की पहचान। सारे नर-नारी करते हैं, गंगा का सम्मान। गंगा पावन नदी हिन्द की, गंगा तो है प्राण। जिसने देखा धन्य हुआ वह,पाता अनुपम त्राण। ग्रंथों में भी तो मिलता है, गंगा का गुणगान। गंगा है सारी दुनिया में, भारत की पहचान। स्वच्छकारिणी पापहारिणी, करती हर्ष प्रदान। धरती पर है नहीं कहीं भी, सरिता गंग समान। गंगा तट पर चलते रहते, नित्य नए अभियान। गंगा है सारी दुनिया में, भारत की पहचान। गंगा में जो जल मिलता है, बढ़ता उसका मान। सुरसरिता वह भी कहलाता, होता गंग समान। गर्वित है गंगा-गरिमा पर, सारा हिन्दुस्तान। गंगा है सारी दुनिया में, भारत की पहचान। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी...
सूनापन
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सूनापन

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मनदर्पण सुना है हिलते पत्ते की नोक सा शून्य आकाश सा सूनापनखलता है संध्या का सावन का बिन कौधी बिजली का रितेचक्षुओमेें प्रतिक्षा सा सूनापन खलताा है द्वार देहरी का क्योंकि देहरी पर पायल की झंकार नहीं सुना पनखलताहैै वृक्षों का पतझड़ में जब उसके साथी साथ छोड़ते हैं लहरें भी सुनापन लिए उदास है क्यों क्योंकि बयार ही नही बहती सूनापन खलताा है जब श्रृंग पर वृक्ष नहीं होते ऊंचेश्रृग सूने लगते है नीर भरी कारी बदरी को सूनापन लगता है जब ठंडी बयार नहीं बहती रवि शशि भी मौन होते हैं सुनें होते हैं जब उन्हें ग्रहण लगता है परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं ...
हिन्दी की रक्षा करता हिन्दी रक्षक मंच
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हिन्दी की रक्षा करता हिन्दी रक्षक मंच

अरविन्द सिंह गौर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** हिन्दी की रक्षा करता हिन्दी रक्षक मंच। हम सबको अवसर देता हिन्दी रक्षक मंच।। हिन्दी भाषी के लिए सेतु बनता हिन्दी रक्षक मंच। हिन्दी को मातृभाषा बनाता हिन्दी रक्षक मंच।। हिन्दी को हिंदुस्तान से जोड़ता हिन्दी रक्षक मंच।। हिन्दी को विश्वव्यापी बनाता हिन्दी रक्षक मंच।। युवाओं को साहित्य से जोड़ता हिंदी रक्षक मंच। राष्ट्रीय से अंतर्राष्ट्रीय बनता हिन्दी रक्षक मंच।। "अरविंद" को हिन्दी रक्षक बनाता हिंदी रक्षक मंच।। परिचय :- अरविन्द सिंह गौर जन्म तिथि : १७ सितम्बर १९७९ निवासी : इंदौर (मध्यप्रदेश) लेखन विधा : कविता, शायरी व समसामयिक सम्प्रति : वाणिज्य कर इंदौर संभाग सहायक ग्रेड तीन के पद में कार्यरत घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
आओ बच्चों नया सिखाए
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आओ बच्चों नया सिखाए

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आओ बच्चों नया सिखाए, जीवन की नई नीत रे। अनदेखी इस महाबला की कैसी है तासीर रे। कोरोना के संग जीवन को जीने की तरकीब रे। आओ बच्चों नया सिखाए, जीवन की नई नीत रे। दूर-दूर रहकर भी सीखो, रहना तुम नजदीक रे। एक-दूजे को देते रहना, मन से मन की प्रीत रे। आओ बच्चों नया सिखाए, जीवन की नई नीत रे। साथ-साथ पढ़ते-बढ़ते, देना सदा तदबीर रे। महामारी को मात देते, लिखना तुम तकदीर रे। आओ बच्चों नया सिखाए, जीवन की नई नीत रे। हौसले की लकीरों से, बनाना नई तस्वीर रे। मुस्तेदी से करते जाना, सबको तुम ताकीद रे। आओ बच्चों नया सिखाए, जीवन की नई नीत रे। धीरे से अब लेते जाना, तालीम की ये रीत रे। महफ़ूज रहकर लेना तुम मुसीबतों को जीत रे। आओ बच्चों नया सिखाए, जीवन की नई नीत रे। परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर मध्य प्रदेश सम...
दगा न देना…
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दगा न देना…

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** बरखा का आना दिलको बहलाना जिंदगी होती रंगीन। दिलकी उमंगो से दिलकी तरंगो से महक जाता है यौवन। हो..बरखा का आना...........।। रुख जिंदगी ने मोड़ लिया कैसा। हमे सोचा नहीं था कभी ऐसा। होता नहीं यकीन खुद पर ये क्या हो गया। किस तरह से ये दिल बेबफा हो गया। इंसाफ कर दो मुझे माफ कर दो। इतना तो कर दो मुझे पर तुम रेहम।। हो...बरखा का आना....।। अवरागी में पड़कर बन गया दिवाना। मैंने क्यों तेरे भावनाओं को न जाना। चाहत क्या होती ये तूने मुझे दिखलाया। प्यार में जीना मरना तूने ही सिखलाया। चैंन मेरा ले लो खुशीयाँ मेरी ले लो और दे दो अपने गम।। हो.. बरखा का आना.....।। मेरे अश्क कह रहे मेरी कहानी। इन्हें अब तुम न समझो पानी। रो रो के आंसूओ से मेरे दाग धूल गये है। अब इनमें बफा के रंग भरने लगे है। खुशियाँ मैं दूंगा तुमको हर...
तेरी खूबी
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तेरी खूबी

संध्या नेमा बालाघाट (मध्य प्रदेश) ******************** निज की लेखनी से कहती है, अपने दिल की एक एक बात। मन में तेरे भय न किसी का, करती सदा है हक़ की बात।। डरती नहीं अंधेरों से भी, न करती डरने की बात। सच्चा पथ अपनाकर कहती, दिन को दिन व रात को रात।। मेरे साथ तू हर पल रहती, हमराही सा मिलता साथ। मेरे मष्तिष्क में है बसती, अपनों संग रहती है साथ।। दोस्तों पर यदि आता संकट, सदा तू बांटे उनका हाथ। अपना खास समझती सबको, हर पल देती सबका साथ।। तेरे मन में केवल रहती, हरदम अपनों की परवाह। तू ही सदा निकाला करती, उत्तम पथ चलने की राह।। तू पी जाती है दुख अपने, खुशियां बांटे सबके संग। तू प्रभु का वरदान है लगती, खुद व सबको भरे उमंग।। तेरे सब विचार अलबेले, चिंता मुक्त हो जाते अपने। तू हरदम करती प्रयास है, सब अपनों के सच हों सपने।। नन्हे परिंदों की खातिर ही, तेरे मन...
सहेजना
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सहेजना

अर्चना तिवारी वड़ोदरा (गुजरात) ******************** हम औरतें सहेजने का हुनर खुद ब खुद सीख जाती है बचपन की यादों को सहेज मायके से विदा होती हैं जिंदगी के सुखद पलों को दोस्तों के संग बिताए किस्सों को सहेजती किसी खजाने की तह में नहीं होती है ऊब कभी उन्हें पुरानी यादों में डूबने पर घंटों खुद से खुद ही बातें करती हैं खुद की तलाश में विचरती हैं सहेज न पाती है वह अपनों से मिली उपेक्षा को बेवजह के दिए उनके पीड़ा को उस दर्द को असह्य हो निकल पड़ती जब सैलाब आ जाता अश्कों का तरती उबरती रहती उसमें सहेज न पाती बिखरती सागर की लहरों को दिखा न पाती अपने नासूर को परिचय :- अर्चना तिवारी निवासी : वड़ोदरा (गुजरात) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय ...
दायित्व
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दायित्व

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** बकरी चराने गई बिटियाँ को जरा सी देरी हो जाने पर पढने जाने की फिक्र को लिए माँ पुकार रही बिटियाँ को। आवाज पहाड़ों से टकराकर गुंजायमान हो रही नदी भी ऐसे लग रही मानो वो भी बिटियाँ को ढूंढ़ने में बहते हुए अपना दायित्व निभा रही हो। शिक्षा से ही बिटियाँ ने पा लिया एक दिन बड़ा ओहदा माँ की याद आने पर आज बिटियाँ ने पहाड़ों पर से पुकारा जब अपनी माँ को। तब पहाड़ हो चुके थे मोन नदी भी हो चुकी थी सूखी बकरियां भी हो गई गुम। सूना लगने लगा घर। क्योकि इस दुनिया में नहीं है माँ बिटियाँ को शिक्षा का दायित्व देते हुए देखा था इसलिए ये सभी मोन होकर दे रहे माँ को श्रद्धांजलि। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभ...
अभिलाषा
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अभिलाषा

मधु अरोड़ा शाहदरा (दिल्ली) ******************** अभिलाषा है मेरी प्रभुवर, श्वास श्वास में तेरा नाम रहे। सांसो की माला हो मेरी, राम नाम में ध्यान रहे। जपती रहूं तेरे नाम की माला। जैसे सरोवर का हंस जपत, जलधर जपत मोर को जैसे, हम तुमको जपे जैसे चंद्र चकोर, अभिलाषा है मेरी प्रभुवर, श्वास श्वास में तेरा नाम रहे। कोई ना रहे दुखारी, हर जीव हो सुखारी। संकट सबके ही टल जाए, जब हो कृपा तुम्हारी। देश पर संकट आया अति भारी, संभालो तुम गिरधारी। अपनी कृपा की बारिश कर दो, अभिलाषा है मेरी, उर में सबके शांति भर दो। लड़ाई झगड़े सबके हर दो, सतयुग की स्थापना कर दो। अभिलाषा है मेरी प्रभु वर। श्वास श्वास में तेरा नाम रहे परिचय :- मधु अरोड़ा पति : स्वर्गीय पंकज अरोड़ा निवासी : शाहदरा (दिल्ली) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौल...
जन्मदिन पर विशेष बधाई
कविता

जन्मदिन पर विशेष बधाई

महेन्द्र सिंह राज मैढी़ चन्दौली (उत्तर प्रदेश) ******************** सुधीर श्रीवास्तव नाम है जिनका, बरसैनियां है जिनका सुख धाम। थाना-मनकापुर जनपद गोण्डा, साहित्य साधना जिनका काम।। श्री ज्ञान प्रकाश पिता है जिनके, माता हैं स्वर्गीय श्री.विमला देवी। बहुत सरल स्वभाव था जिनका, परम धर्मणी,निज संस्कार सेवी।। एक जुलाई उन्नीस सौ उनहत्तर, जनम लिए विमला के कोख। बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के, देते थे सब न उनका परितोख।। बचपन बीता खेल कूद में, पठन-पाठन के ही रंग में। कुछ बड़े हुए तो कूद पडे़, संघर्ष युक्त जीवन रण में।। पन्द्रह फर. दो हजार एक में, शादी हुई अंजू के साथ। दो बच्चों के पिता बन गए, सर पर था बस माँ का हाथ।। बचपन से थी रुचि लेखन में, जो जीवन संघर्ष में पीछे छूटी। दो हजार बीस में पक्षघात लगा, निज स्वास्थ्य की बगिया लूटी।। पर पक्षघात ने साहित्य प्रेम को, उन...
तिरंगे की अभिलाषा
कविता

तिरंगे की अभिलाषा

डॉ. सत्यनारायण चौधरी "सत्या" जयपुर, (राजस्थान) ******************** चाह नहीं मैं फरेबी नेता के हाथों में इठलाऊँ। चाह नहीं मैं झूठे लोकतंत्र के मंदिर पर फहराया जाऊँ। चाह नहीं मैं भगवा और हरे में बंट जाऊँ। चाह नहीं मैं किसी वीआईपी की गाड़ी की शोभा बन पाऊँ। चाह नहीं मैं विरोध स्वरूप लालकिले पर चढ़ जाऊँ। चाह नहीं मैं किसी लालची नेता के तन पर लपेटा जाऊँ। चाह नहीं मैं किसी खेल की शोभा बन पाऊँ। चाह नहीं मैं किसी धर्म-ध्वज के साथ लहराया जाऊँ। है अभिलाषा यही मेरी भारत माता की शान बढाऊँ। है अभिलाषा यही मेरी केसरिया से शौर्य को दिखलाऊँ। है अभिलाषा यही मेरी हरे रंग से विकास को दर्शाऊँ। है अभिलाषा यही मेरी सफ़ेद से शांति का पाठ पढ़ाऊँ। है अभिलाषा यही मेरी चक्र से मानव धर्म को सिखलाऊँ। है अभिलाषा यही मेरी मैं सबके मन मंदिर में बस जाऊँ। बाहर भले ही न फहराओ सब के अन्तर्...
मुस्कान
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मुस्कान

निरूपमा त्रिवेदी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रिये ! मधुर मधु-सी तुम्हारी मुस्कान सजाने लगी आकर अधरन बंधनवार स्मृति विथियों से ध्वनित तुम्हारी पदचाप हृदय बसी छवि ले आई यादों का मधुमास जूही-सी सुकुमार कली चंपे सी सुवास तन-मन महका गई महकी-सी हर सांस हिय हिलोर नित-नित निहारन की आस सांझ सवेरे रहती हरदम दिल के पास मैं तितलि अजान-सी तुम भ्रमर बन गाते गान फूल-फूल मंडराते हम दिखलाते अपना मान सुमन रस पगी तुम्हारी कोमल सुरभित गात उपवन खिल उठता था मानो पाकर हमारा साथ तरु-तरु शाख-शाख थी झूमती-सी डोलती अल्हड़ समीर मस्ती में मस्त सी हर्षित हो बरसाती थी अपने झर-झर पात प्रिये!! तुम संग मधुर मिलन फिर आया याद परिचय :-  निरूपमा त्रिवेदी निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना,...
गर्भ में बेटी की पुकार
कविता

गर्भ में बेटी की पुकार

सुनील कुमार बहराइच (उत्तर-प्रदेश) ******************** गर्भ में बेटी करे पुकार मेरी मैया मुझे न मार। दिल में मेरे है अरमान मैं भी देखूं जग-संसार पाऊं मैं सब का प्यार मेरी मैया मुझे न मार। पाकर तुम्हारा स्नेह-दुलार मैं भी भरूंगी ऊंची उड़ान छू कर मैं अनंत आकाश सपने सभी करूंगी साकार सुन ले तू मेरी मनुहार मेरी मैया मुझे न मार। ऊंचा करूंगी कुल का नाम पूरा करूंगी सबका अरमान जीने का दो तुम अधिकार मेरी मैया मुझे न मार। परिचय :- सुनील कुमार निवासी : ग्राम फुटहा कुआं, बहराइच,उत्तर-प्रदेश घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिय...
माँ
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माँ

डॉ. मोहन लाल अरोड़ा ऐलनाबाद सिरसा (हरियाणा) ******************** जिसने मुझे लिखा उसके लिए मै क्या लिख दुँ कोई पुछे मुझ से रब का तो मै बस माँ ही लिख दुँ वतन के लिए जिन्होंने कुर्बान किए अपने बेटे सबसे पहले उन्ही माताओ का नाम लिख दुँ जिन की आँखो से देखी मैने दुनिया वो नाम बस माँ लिख दुँ कही झोपड़ी तो कही सड़क पर रो रही थी माताऐ मोहन कैसे मै लिख दुँ मेरी माँ खुश थी जिस ने मुझे लिखा उसके लिए मै क्या लिख दुँ...। परिचय :- डॉ. मोहन लाल अरोड़ा कवि लेखक एवं सामाजिक कार्यकर्ता निवासी : ऐलनाबाद सिरसा (हरियाणा) प्रकाशन : ३ उपन्यास, ७२ कविता, ७ लघु कथा १२ सांझा काव्य संग्रह प्रकाशित, काव्याअंकुर मे ३७ रचना प्रकाशित उपलब्धियां : मुलतानी साहित्य मे प्रसंशा पत्र, हिंदी रचनाओ मे बहुत प्रसंशा पत्र घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एव...
आओं तुम्हें राजस्थान दिखाता हूँ।
कविता

आओं तुम्हें राजस्थान दिखाता हूँ।

नरपत परिहार 'विद्रोही' उसरवास (राजस्थान) ******************** आओं तुम्हें राजस्थान दिखाता हूँ। विज्ञान धरती और पोकरण दिखाता हूँ। शाश्वत समाधि रामा पीर दिखाता हूँ। आओ तुम्हें खनिजों का भण्डार दिखाता हूँ। इन रेतीले धोरों में मृगतृष्णा का संसार दिखाता हूँ। भेड़-बकरी, ऊँट और गोडावन का घर दिखाता हूँ। आओ तुम्हें केर-काचरी, कुमट-सांगरी का साग खिलाता हूँ। जबरौ जैसलमेर अर जवानों की देवी तमाम दिखाता हूँ।। ख्वाइशें हैं मन के भीतर, तुम्हें पुरा राजस्थान दिखाता हूँ। आओ तुम्हें राजस्थान दिखाता हूँ। गढ़ चिंतामणि चिडि़याटूँक दिखाता हूँ। परि-देवताओं से निर्मित मेहरानगढ़ दिखाता हूँ। आओ तुम्हें बलिदानी रखिया राजाराम दिखाता हूँ। मण्डोर, ओसिया अर जसवन्त थडा़ तमाम दिखाता हूँ। भली धरती जोधाणे री, आओ तुम्हें सूर्यनगरी और घंटाघर दिखाता हूँ। सुवर्णनगरी में काहन्ड़देव का शौर्य ...
करते है चिकित्सक का सम्मान
कविता

करते है चिकित्सक का सम्मान

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** पढ़ लिखकर जो पाए ज्ञान, सेवा करें जो जीव कल्याण। मरीजों की जो बचाएँ जान, बनता वही चिकित्सक महान। करते हैं चिकित्सक का सम्मान। सचमुच में हैं वे धरती के भगवान।। कोई मन की इलाज करते हैं, कोई रोगियों की सेवा करते हैं। कोई मीठी बोली ही बोलते हैं , कोई धैर्य का पालन करते हैं। स्वस्थ हो जाते हैं आखिर इंसान। सचमुच में हैं वे धरती के भगवान।। मरीजों से करते हैं जो प्यार, मिट जाते हैं सब मनो विकार। अस्वच्छता से होते हैं बीमार, जांच परख से करते हैं उपचार। तंदुरुस्त कर देते हैं जीवन महान। सचमुच में हैं वे धरती के भगवान।। योद्धा बनकर सेवा करते, रात दिन मेहनत वो करते। शल्यक्रिया समय देख करते, संयम नियम का पालन करते। श्रवण करते हैं चिकित्सक का मान सचमुच में हैं वे धरती के भगवान।। परिचय :...
प्रेम और स्पर्श
कविता

प्रेम और स्पर्श

श्वेता अरोड़ा शाहदरा (दिल्ली) ******************** किसी के साथ की जरूरत होती है जब हम पूरी तरह टूट जाते है, चाहते है किसी ऐसे पवित्र स्पर्श को जो हमे अहसास दिलाए कि टूटे दिल भी जुड जाते है! तपती धूप मे थोडी सी सहानुभूति भी जरूरी है, सच्चे प्रेम और स्पर्श की अनुभूति भी जरूरी है! कभी-कभी तो अनजान भी अपनो से ज्यादा गहरा रिश्ता निभाते है, दिलासा के दो बोल मरहम का काम करते है, जब दिल पर गहरे घाव आते है! जब हो भीड मे हम अकेले, तो प्यार भरा स्पर्श पाकर आनंदित हम हो जाते है, नीर भरे नैना भी समंदर बन जाते है, जब हम सच्चा प्रेम और स्पर्श किसी का पाते है! परिचय :-  श्‍वेता अरोड़ा निवासी : शाहदरा दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्...
नूर गुलाबी ओढ़कर
कविता

नूर गुलाबी ओढ़कर

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** नूर गुलाबी ओढ़कर, प्रभु करे निवास, मनोकामना पूर्ण हो, आये सबको रास, उसकी कृपा से ही, आये जन को सांस, उसके ही आधीन, बनकर उनका दास। नूर गुलाबी ओढ़कर, करता है इंसाफ, दोषी को सजा मिले, निर्दोष हो माफ, उसके ही प्रताप से, करते सभी जाप, पापी कितने ही हो, कर देता है साफ। नूर गुलाबी ओढ़कर, जन को देता बल, गरीब इंसान सदा, बन जाता है सबल, हर समस्या का वो, करता पल में हल, हर जगह मिलता है, वायु हो या जल। नूर गुलाबी ओढ़कर, दिखलाता है रूप, इज्जत मान बढ़ जाये, बेशक हो कुरूप, पूजा सभी हैं करते, लेकर हाथ में धूप, उसके ही आधीन है, रंक हो या भूप। नूर गुलाबी ओढ़कर, भर दे मन में जोश, उसकी लाठी जब पड़े, खो देता है होश, जिसने नाम ना जपा, उसे है अफसोस, अंतिम सत्य रूप में, ले लेता आगोश। नूर गुलाबी ओढ़कर, बूझा देता है प्य...
आओ फिर लौट चले बचपन की ओर
कविता

आओ फिर लौट चले बचपन की ओर

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जब लड़ते थे झगड़ते थे, बात बात पर यारों से अकड़ते थे। सहेली की गुड़ियों की शादी में, जब सज-धज कर जाते थे और दावत भी उड़ाते थे। तब माँ का ये कहना कुछ रास नहीं आता था, कि जल्दी आना। अभी तो घर से निकले ही कहाँ थे, कि माँ का ये फ़रमान सुनाना। शाम के वक़्त का इन्तज़ार, जब मिलेंगे यार और खेलेंगे बेशुमार। बड़ों की दुनियाँ से दूर, अपनी ही मस्ती में चूर। खेलने का वक़्त ख़त्म होने पर, माँ का बुलावा आना और कहना। अगर वक़्त का ख़याल नहीं तो, घर मत आना अपने दोस्त के घर ही सो जाना। नज़दीक आता इम्तिहान का वक़्त और बढ़ती बेचैनी, किसी का पास तो किसी का फेल हो जाना। होली के रंगों की ख़रीदारी लिए, साथ में बाज़ार जाना। छत पर संक्रांति की पतंग साथ उड़ाना। जन्मदिन पर मावे का केक, और ढेर सारी भेंट और न जाने क्या ...
बदरा घिर आये
कविता

बदरा घिर आये

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** गगन घन घिरे, पवन फिर उड़े, घटा बन छायों रे, सावन आयो रे। उगेगीं अब नयी कोपलें, लहरायेगी बैले, अठखेली कर रही रशमियां, हरियाली खेले, घरती ने श्रृंगार किया है, रुप अनोखा पायो रे। सावन आयो रे। गुन-गुन कर रहीं चिरैयां, नया संदेशा लाये, भंवरें की गुंजन सुनके, कलियां भी मुस्काये, फूलों से सज गया बगीचा राग मल्हार सुनाये रे सावन आयो रे। चैती की गर्मी से उबरे, जीवन नया मिला है, दुखः के बौने पाँव हुऐ है, सूरज मुखी खिला है, धरती से अंबर तक किसने धानी रंग बगरायो रे, सावन आयो रे। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। ले...
ये देखो कैसा आया जमाना है।
कविता

ये देखो कैसा आया जमाना है।

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** घराती को पानी खरीद कर लाना है, ये देखो कैसा अब आया जमाना है। बारात में यदि खाना हमें खाना है, तो खाना खड़े होकर ही खाना है। रसोई में खाना खड़े-खड़े बनाना है, ये कैसा देखो अब आया जमाना है। खुद थाली व खाना लेकर आना है, खड़े-खड़े सबको खाने को खाना है। ये देखो कैसा अब आया जमाना है, प्लेट कूड़ेदान के ठिकाने लगाना है। पानी स्वयं निकाल कर ही पीना है, चाहे शादी का कोई भी महीना है। खड़े खाना व खड़े ही पानी पीना है, भला व्यक्ति का जीना कोई जीना है। अब बारात नौटंकी नाच के बिना है, बारात में अब केवल नाच नगीना है। ये देखो कैसा अब आया जमाना है, खड़े-खड़े ही सबको खाना खाना है। परिचय :- विरेन्द्र कुमार यादव निवासी : गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक ह...
पनघट पे नीर भरेगा कौन
कविता

पनघट पे नीर भरेगा कौन

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** भक्ति दान नेह धर्म कर्म, जन्मों तक साथ निभाते हैं, परिपाटी, घर देह चौपाटी, माटी में मिल जाते हैं, पूरी आहुति सांसों से, खुद को ही देनी होती है, अवशेष धर्म की बागडोर, सबको मिल लेनी होती है, गंभीर समय की सीमा में, अधीर हो, पीर हरेगा कौन, अभीष्ट ईष्ट के स्वागत को, पनघट पे नीर भरेगा कौन, रैन सुखचैन, दे सेन लुभाने, छुप छुप नयनन में उतरे, अमर प्यार की ज्योति जगाने, बनके बाती घृतधार जरे, थके हंस की हार मिटाने, निश दिन पांवों में विचरे, प्रेम कहानी, मीठी वाणी, हियभर अधरों से उचरे, गहरे घावों पर भावों से, धीरे मधुचीर धरेगा कौन, अवशेष समर, सरसाने को, पनघट पे नीर भरेगा कौन ।। शरदरात्रि को अक्षय पात्र में, चँदा से अमृत लाते थे, व्रत घृत मधु करवा घरवा, दीपों की थाल सजाते थे, होली मंगल कर जल झलका, रंग चंग त्योहार मना...
अभिलाषा
कविता

अभिलाषा

ओंकार नाथ सिंह गोशंदेपुर (गाजीपुर) ******************** सृजन तो दिल की उद्गार है। दिनों दिन बढ़े, सब लिखे सब पढ़े, आदान-प्रदान होता रहे यही जगत व्यवहार है।। कौन हारा कौन जीता, अभी सभी है रीता रीता, सीखने को ही तो सभी तलब गार है। नर्सरी के ही सब सही, उच्च शिक्षा में सब नहीं, सरस्वती की याचना में ही सबका उद्धार है।। ना तेरा है ना मेरा है दिल से हो सृजन कह रहा ओंकार है। परिचय :-  ओंकार नाथ सिंह निवासी : गोशंदेपुर (गाजीपुर) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं...
सुख के क्षण
कविता

सुख के क्षण

दीपानिता डे दिल्ली यूनिवर्सिटी (दिल्ली) ******************** जीवन में समस्या कितनी हैं सुख में दिन बीत रहे हो तो सब साथ है दुख में दिन बीत रहे हो तो अपना ना कोई सुख में दिन इतनी जल्दी बीते प्रतीत हुआ क्षण भर दुख के क्षण भी ऐसे गुजरे जैसे वर्ष समान सुख में इतने खो जाए कि कोई याद ना आए दुख में ईश्वर स्मरण पहले आए सुख में बिन बुलाए महमान घर आए दुख में सब साथ छोड़ जाए सुख में अहम भाव आ जाए दुख में अवसाद घेर जाए मनुष्य मौन हो जाए अपना भी उसे कोई ना भाए सुख के क्षण मानव जल्द भूल जाए परंतु दुख के क्षण सर्वत्र याद आये परिचय :- दीपानिता डे निवासी : दिल्ली यूनिवर्सिटी (दिल्ली)  घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, र...
पिता की छांव
कविता

पिता की छांव

अभिजीत आनंद बक्सर, (बिहार) ******************** ग़र कर सकूँ समर्पित कुछ बंद उस त्याग की प्रतिमूर्ति को, जो ग़र परिभाषित कर सकूँ उतरदायित्व की उस कृति को, मेरी लेखनी आज धन्य हो जाए पितृत्व रचना से अलंकृत होकर... हर कदम पर अपने संतान के रहनुमा होते हैं पिता, परिवार की बगिया के बागबान होते हैं पिता.. संपूर्ण जीवन की धरी पूंजी संतान पर न्यौछावर कर देते हैं पिता कर्ज का आवरण ओढ़े भी बिटिया को विदा कर देते हैं पिता... विपदा में सतत संघर्ष की आँधियों में हौसलों की दीवार हैं पिता, पूरे परिवार की अटूट विश्वास, उम्मीद, और आस हैं पिता.. जिंदगी की धूप में बरगद की गहरी छांव होते हैं पिता, बेटे के लिए राजा तो बेटी के सर का ताज होते हैं पिता.. खुद के अरमानों को परे रख हर फर्ज निभाते हैं पिता, संस्कार और अनुशासन की बीज संतान में पनपाते हैं पिता... मेरी शोहरत,...