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कविता

भाई हो तो कृष्णा जैसा
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भाई हो तो कृष्णा जैसा

नन्दलाल मणि त्रिपाठी गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** भाई हो कृष्ण जैसा बहना की चाह-राह विश्वासों जैसा भाई बहन का प्यार कृष्ण और सुभद्रा जैसा।। बचपन की अठखेली ठिठोली संग साथ जीवन की शक्ति जैसा बहना की मर्यादा रक्षक सिंह काल गर्जना जैसा।। नन्ही परी बाबुल घर अंगना भाई बड़ा या हो छोटा, धूप छांव में स्वर सम्बल जैसा।। भाई बहना का रिश्ता जीवन की सच्चाई, सच्चा रिश्ता माँ बापू की प्यार परिवश भाई की संस्कृतियों जैसा।। भाई बहना कि आकांक्षो का मान जीवन के संघर्षों में शत्र शास्त्र हथियारों जैसा ।। भाई बहन का प्यार संस्कार अक्षय अक़्क्षुण, धन्य धान्य बहना अस्मत आभूषण जैसा।। भाँवो के गागर का सागर भाई बहना की खुशियां भाई बहना के सुख दुःख में युग मौलिक मूल्यों जैसा।। कच्चे धागे का बंधन रिश्तो का अभिमान भाई बहन दुनियां में दो...
जब तुम्हें प्रेम हो जाएगा
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जब तुम्हें प्रेम हो जाएगा

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** तुम्हें नफ़रत से भी प्रेम हो जाएगा......! जब तुम्हें प्रेम हो जाएगा......!! छोड़ दोगें जिद्द हमें पाने की.......!!! जब तुम्हें प्रेम हो जाएगा......!!!! ना रहेगा जीवन में तुम्हारे......! किसी भी मोह का साया......!! ना कोई दर्द तुम्हारे जीवन में आएगा......!!! जब तुम्हें प्रेम हो जाएगा......!!!! चाहोगे देकर आजादी हमें......! ना किसी बंधन में बाँधने की कोशिश करोगें......!! सारा समां तब प्रेम के रंग में रंग जाएगा......!!! जब तुम्हें प्रेम हो जाएगा......!!!! सुनाई देगी तुम्हें बातें भी वो सारी......! जो हमनें मन में कहीं होगी......!! तुम्हारा दिल भी तब गीत हमारा गाएगा......!!! जब तुम्हें प्रेम हो जाएगा......!!!! समझ जाओगे प्रेम का अर्थ......! बंद आँखों से भी हमें तब देख पाओगे......!! एक दिन समय ऐसा भी आएगा.......
प्यारी बहना
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प्यारी बहना

योगेश पंथी भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश ******************** संग रहती थी जब बहना सब कितना मनभावन था। प्यारी बहना संग में थी तो हर दिन जैसे सावन था॥ बचपन से दो दशको तक जो साथ रही संग में खेली। मेरी प्यारी सी बहना की बचपन की यादों की थैली॥ लिए साथ में सोता हूँ करके सारी यादें भेली। चहल पहल सी थी घर में जब बेहना घर रहती थी॥ माँ की प्यारी परी, पिता की सोन चिरैया रहती थी। सब बातों में साथ थी मेरे वो तो मेरी हमजोली थी॥ बात बात पर गुस्सा होती बहना कितनी भोली थी। सजा धजा घर अँगना था वो तो थी घर का गहना॥ बचपन में ये कहाँ पता था कुछ हि दिन हैं संग रहना। हमको ये मालूम नही था शीतल पवन का झोंका हैं॥ जीवन भर वो साथ रहेगी ये तो बस इक धोका हैं। इसी बात को समझा कर होंटों को खोला करते थे॥ वह अमानत गैर की हैं बाबूजी बोला करते थे। विदा हुई तो छूप...
रक्षाबंधन में पीहर की याद
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रक्षाबंधन में पीहर की याद

संध्या नेमा बालाघाट (मध्य प्रदेश) ******************** आज मैं बहुत उलझन में हूं पीहर की याद ससुराल की जिम्मेदारी में फंसी हूं ये सावन की रिमझिम बारिश मुझे पीहर के संदेश दे रही है भैया ने बुलाया है यह जता रही हैं मेरा मन पीहर में, मै ससुराल में भाई तेरा प्यार तेरी नोकझोंक वो प्यार में मेरा इतराना बहुत याद आता है चंदन, तिलक, राखी, मिठाई से सजी थाली बहुत याद आएगी पवित्र रक्षाबंधन के दिन तेरी बहुत याद आएगी तेरी याद मुझे बहुत आएगी तेरी कलाई मुझे पुकार रही होगी बहन की मजबूरी समझ लेना भैया राखी कलाई में सजा लेना भैया आज मैं बहुत उलझन में हूं पीहर की याद ससुराल की जिम्मेदारी में फंसी हूं परिचय : संध्या नेमा निवासी : बालाघाट (मध्य प्रदेश) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कव...
लगा अक़्ल पर ताला
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लगा अक़्ल पर ताला

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** ये कैसा है दौर यहाँ पर लगा अक़्ल पर ताला निज सुख सर्वोपरि हो बैठा तन उजला मन काला तालिबानी सोच में जीते आज भी कतिपय लोग लूट पाट दुष्कर्म है धंधा सुरा सुंदरी भोग रह-रह के बन जाता है क्यों मज़हब हथियार मरने और मारने को लाखों हो जाते है तैयार तालिबानी सोच के कारण भारत हुआ विभक्त लाखों लोग शहीद हो गए बहा सड़क पे रक्त ख़तरनाक मंसूबा इनका संभलो बबलू बँटी गजवाये हिंद का मक़सद है ख़तरे की घंटी मानवता और महिलाओं का दुश्मन तालिबान इंसानों के शक्ल भेड़िए सब के सब हैवान जिन्नावादी सोच के पोषक तजो कबीली चोला खाक में वरना मिल जाएगा अरमानों का डोला साहिल चलो एक हो जाओ हारेगा अपकारी वरना हमें चुकानी होगी क़ीमत काफ़ी भारी परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प...
रक्षाबंधन पर्व पर हमें गर्व
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रक्षाबंधन पर्व पर हमें गर्व

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** देखो-देखो सावन मास। पूर्णिमा दिवस आया। रक्षाबंधन पर्व संग लाया। अपार हर्ष रक्षाबंधन पर्व पर। प्रति भारतीय उर होता। अपार गर्व। रक्षाबंधन पर्व हर्षोल्लास। सहित मनाते बहन-भाई। बहन भाव स्नेह धागे की । राखी बांधे भाई को रोली-अक्षत। तिलक लगाकर कर नारियल। माथे वसन डाल दीर्घायु । कामना अभिलाषा करें। भाई अपनी बहन को। आशीर्वाद देवे सदा रक्षा करने। अरू खुश रहने का भाई प्रतिवर्ष। प्रतिक्षा करे रक्षाबंधन पर्व पर। बहन का भाई गृह आना। भाई-भाभी प्रतिवर्ष बहन का। वंदन अरू अभिनन्दन। करते हर्ष संग मनाते रक्षाबंधन। पर्व और करते गर्व। ऐसा आता रक्षाबंधन पर्व। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक...
रक्षा बंधन
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रक्षा बंधन

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** राखी प्रीत के धागों, का त्योहार। अपनत्व भाव का प्यार, स्नेह से सना उमड़ रहा भाई बहन का प्यार। मस्तक पर तिलक, लगा कर बहना करती, प्यार की मनुहार कभी, न आये रिशतों में दरार। भाई फिर देता उपहार, न सोना न चाँदी माँगू, न महल अटरियां सदा खुशहाल रहें मेरा भैया। बस दिल में एक कोना मांगू यह मेरा गहना। समय समय पर आकर, द्धारे रखना मेरी शान, तुम मेरा अभियान। तुमसे रौशन गहरा है परिवार, सदा सुखी फूलें फलें, भैया भावज का परिवार। उमंग और उत्साह जगायें रक्षाबंधन का पावन त्योहार। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में ...
क्या कसूर
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क्या कसूर

पिंकी कुमारी राय तिनसुकिया, (असम) ******************** क्या कसूर उन आँखों का जिनकी चमक छीन ली जाती है चमकने से पहले? बुझा दिए जाते हैं वे दीप जलने से पहले। थोड़ी सी देर हुई थी थोड़ा ही हुआ था अंधेरा सूने रास्ते में पड़ गई थी अकेली...। रोया था उसके पिता ने उस दिन भी जब नन्हें पैरों चल गोद में आई रो रहा है आज भी जब उस नन्ही परी के मिटते अस्तित्त्व की देकर दुहाई। बस फर्क थोड़ा सा उन आँसुओं में इसलिये है क्योंकि उस दिन तुने पिता बनाया और आज पिता तुझे बचा न सका। आज हर तरफ दुर्योधन हैं उनका अट्टहास है तांडव है। हे कृष्ण! आ एक बार फिर कलयुग में बन जा सखा, मित्र और भाई बाँधूगी राखी एक नहीं हज़ार बचा ले आकर इस कल्युग की द्रोपदी का संहार। परिचय :- पिंकी कुमारी राय निवासी : ज्योतिनगर तिनसुकिया, (असम) पत्र। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिका...
रक्षाबंधन का त्योहार
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रक्षाबंधन का त्योहार

डॉ. रश्मि शुक्ला प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** मंगल करने आया सब का, रक्षाबंधन का त्योहार, पुलकित हो रहे सभी जन, भर अंतस में प्यार। विश्वास का सूत्र बाँधकर, बहन भावना भरती, सुरक्षित हो मेरा जीवन, यही बहना प्रार्थना करती, हम जैसे भी है भैया! तुमने, हमें सदा दुलराया है, सुख-दुःख सब जीवन के भूले, इतना प्यार लुटाया है, स्नेह के इस महत्वपूर्ण पर्व पर, हरियाली विकसाएँ, नष्ट हुई जो प्राकृत सुषमा, उसको पुनः बढ़ाएं, धरती माँ के बन संतान हम, कर दें यह उपकार। मंगल करने आया सबका, रक्षाबंधन का त्योहार।। भैया साथ बिताये थे जो पल, उसका एहसास ह्रदय में, पुलकन यादों की हर क्षण में, अनुभूति अनेकों मन में, सब कुछ बसता भावों में, अनुभव रहता हर क्षण है, रूठना, मनाना, इतराना, कर याद स्वयं पर गर्वित हैं, श्रावण के इस महापर्व पर, आओ करें विचार। मंगल कर...
रक्षा बंधन
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रक्षा बंधन

मईनुदीन कोहरी बीकानेर (राजस्थान) ******************** सदियों से रक्षाबंधन का पर्व जात-पांत से ऊपर उठकर पुनीत पर्व को मनाते हैं। राष्ट्रहित में समाज के हर वर्ग के लोग हिल मिल कर इस पर्व को मनाते हैं बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी का धागा बांध पवित्र पर्व मनाते हैं। भाई से ये कामना करती हैं संकट की घड़ी मे जब भी होती है बहन याद दिलाने को यह पर्व मनाते है। रक्षा भाई करेंगे, इतिहास गवाह है रानी कर्णावती ने हुमायूँ को राखी भेजी थी पर अपवाद साबित हुआ। बहन-भाई यह पर्व संकल्प के रूप में मनाते है। यह पर्व भाई बहन के पावन पवित्र बंधन को उनके प्यार को अक्षुण रखता है यह पर्व धागे को प्रतीक मान मनाते है। परिचय :- मईनुदीन कोहरी उपनाम : नाचीज बीकानेरी निवासी - बीकानेर राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचि...
धर्म आस्था और फल
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धर्म आस्था और फल

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** सृष्टि के निर्माता ने उसे बनाया ही कुछ ऐसा था। जिसमें सभी लोगों का समावेश होना था। ऊपर से लाखों देवी और देवताओं का समावेश। और सबकी अलग अलग सोच और विचारधारा। कौन कैसे और कब प्रसन्न हो जाते है। और खुश होकर देते अपने भक्तों को वरदान। फिर वरदानों को पाकर करते पृथ्वी पर अत्याचार। और भक्तजन फिर करते प्रभु से बचाने की गुहार। तभी तो रामायण महाभारत और भी... रचना पड़ा उस निर्माता को। जिससे बची रहे आस्था धर्म और मानव का कर्म। और पापीयों को मिले उनकी करनी का दंड। तभी सुख शांती से रह पायेंगे पृथ्वी पर सबजन।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं र...
बुलेटप्रूफ कांच
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बुलेटप्रूफ कांच

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पहले शीशे पत्थर से चकनाचूर हो जाते थे अब नही होते बुलेट प्रूफ जो आ गए है शीशे के घरों में बैठे लोग मजे से खेलते है अब पत्थरो से जब उनका दिल करता है उछाल भी देते है वे नही घबराते अब पथराव से जनआक्रोश देख वे भी आक्रोशित होते है और लेते है संकल्प जन को निपटाने का विजयी होने पर बुलेटप्रूफ कांच बचाव कर लेता है शरीर का परंतु आत्मा को मरने से नही बचा पाता मृत आत्मवाले शरीर उसके सुरक्षा घेरे में सुरक्षित होते है बुलेटप्रूफ कांच होते तो पारदर्शी है परंतु उस पर चढ़ा दी जाती है काली फ़िल्म ताकि मृत आत्मा धारक लोगो को न दिखे परंतु उसे दिखते रहे लोग और शरीर इस निर्णय पर पहुँच सके किसे पालना है किसे निपटाना है। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर ...
वजह
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वजह

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मुस्कुराहट की वजह हो तुम मुस्कुराने की हसरत हो तुम। चाहत की वजह हो तुम दिल लगाने की हसरत हो तुम। आशिक बनने की वजह हो तुम इश्क करने की हसरत हो तुम। दर्द मिलने की वजह हो तुम दवा बनने की हसरत हो तुम। जिंदा रहने की वजह हो तुम ता उम्र साथ रहने की हसरत हो तुम। चाहत की वजह हो तुम चाहने की हसरत हो तुम। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कवित...
वक्त की जंजीर
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वक्त की जंजीर

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आफताब का शुबहा ना करो किरणों से पल भर की बादलों के कारवां तंज करते हैं ढक कर उसे करने को करता है कोई शुबहा भले ही पाकेदामन हो तो मायूस क्यों हो कोई दहलीज पर इंतहा की कब कोई खंजर भोंके सीने में पता नहीं बना ले अपने को बूत सा ए जमीर शायद दोस्तों का खंजर सीने में उतर जावे गम नहीं खूने दिल हो जावे वादे दोस्ती में ना कोई दाग लगे गम है सिर्फ इतना कि इंसाबदगुमा हो गया है बेरहम दोस्तों ने ऐसा सबक दिया अब जहां में दोस्त न बनाएगा कोई वक्त जंजीर का गम जिंदगी में ना भूल आएगा कोई समझ बैठे जिसे शानेआंचल उस बदरंग आंचल में सिर ना छुपावेगा कोई परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्र...
एक अधूरा रिश्ता
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एक अधूरा रिश्ता

मनीष कुमार सिहारे बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** ये सच है, हकिकत है, या कोई कहानी तो नहीं करते थे मिट्ठे बातें तुम, वो फरे बानी तो नहीं तेरे सजदे में कहते मैंने लाखों से सुना है क्या वो सच है, या झुठी जुबानी तो नहीं क्या खता थी मेरा जो तुम ऐसे कहर दें रहे हो ना कुबुली थी तो ना कुबुली कह देते हाँ क्यों कह गए हो अब क्या कहूं जाकर उनसे होंठों पे ख़ुशी जो छायी है क्या छिन लेगा वो सारी खुशियां बदनामी की कहर जो आयी है ईश्वर का खेल बड़ा निराला क्यों होता है जो बाहर से हंसता है वो अंदर ही अंदर क्यों रोता है इस कदर है स्थिति हमारी किससे मैं ये बयां करुं कर गई जो घर इस दिल में कैसे उसको विदा करुं मैं तो मैं था अपनों की सोची होती बचपन से पाला जिसने कुछ तो रहम की होती क्या खता रही उन बेबस नादानो की जो तुम ऐसे कहर दें रहे हो ना कुबुली थी तो ना कुबुली कह देत...
रक्षाबंधन
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रक्षाबंधन

गीता देवी औरैया (उत्तर प्रदेश) ************* तर्ज- (प्यार हमारा अमर रहेगा) वीर हमारा, प्राणों से प्यारा, जाने ये सारा जहाँ जहां तू रक्षक है, प्यारी बहना का, भाई सा कोई कहाँ। तुम को लगे ना, किसी की नजर, फूलों भरा हो तेरा सफर। प्यारा त्यौहार है, रक्षाबंधन राखी बांधे भाई को बहन है। मेरी दुआ है, रहे तू सलामत, चाहे बहन और क्या। तू रक्षक है प्यारी बहनों का। भाई सा कोई कहां। वीर हमारा प्राणों से प्यारा... तू रक्षक प्यारी बहनों का... तू है अमानत, मात-पिता की। भाई मेरे तू, जान मेरी है। मान रखे तू, मेरी राखी की, बहन तेरी बस इतना चाहे। इस रिश्ते का, मूल्य ना कोई, दे पाएगा जहां। तू रक्षक है प्यारी बहना का... वीर हमारा... तू रक्षक है... परिचय :- गीता देवी पिता : श्री धीरज सिंह निवासी : याकूबपुर औरैया (उत्तर प्रदेश) रुचि : कविता लेखन, चित्रकला करना शैक्षणिक योग्य...
रक्षाबंधन
कविता

रक्षाबंधन

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** रक्षाबंधन है आज! कई बार कह देते हैं लोग "दो और लो" का पर्व इसे! लेकिन नहीं, मैं नहीं मानती यह!! आज तो "बहना" ने अपने हृदय की अनंत शुभेच्छाएंँ... उज्ज्वलतम स्नेहिल भावनाएँ... अनंत आशीष... दिव्य प्रार्थनाएँ... "भाई" के प्रति रेशम की पावन डोर में पिरो कर बांँध डाली है उसकी कलाई पर!! अपने उत्कट स्नेह की अभिव्यक्ति की है उसने!! "परीक्षा" भी लेती है वह अपने "स्नेह" की!! जब पीहर सूना हो जाता है बाबुल की समर्थ दुलार से... और माँ की विकल प्रतीक्षा से...!! भाई का भी प्रण कुछ उपहारों के रूप में आया है बहना के समक्ष! उसकी हर परिस्थिति में रक्षा की... बरगदी छत्रछाया देने का आश्वासन बनकर! वह रक्षा करेगा उसकी तमाम विपदाओं और प्रतिकूलताओं से... उबारेगा उसे तमाम दुर्बलताओं से... भरेगा अकूत विश्वास उसके मन में बनेगा हर सु...
काले साये
कविता

काले साये

डॉ. उपासना दीक्षित गाजियाबाद उ.प्र. ******************** क्यों बढ़ रहे, हमारी ओर यह काले-गोरे हाथ क्यों मिल रहा इन्हें अमानवीय सभ्यता का साथ यह नोंच लेना चाहते मानवता की कोमलता बच्चों की मुस्कराहटें स्त्रियों की सहजता.....। यह हाथ नहीं हैं यह है क्रूर छाया नष्ट करते आस्था मिटाते मनुज काया पाषाण हृदय, वहशी आंतक के यह पुतले युद्ध की विभीषिका को देख खूब हँसते फैल रही यह काले रंग की हानिकारक फंगस और न फैल सके इसलिए बढ़ानी होगी सीमाओं की चौकसी छोड़नी होगी, पैर फैला कर सोने की आदत पडो़सी के घर संगीनों की आहट खुद के घर पर भी देती अनचाही बुलावट रोकने होंगे, ड़राते पंजों के बढ़ते अहसास चौकन्ने होकर देखने होंगे विरोधियों के आघात हम युद्ध नहीं चाहते हम चाहते हैं शांति धैर्य की कसौटी पर होगी, हमारी घोषित क्रांति परिचय :- डॉ. उपासना दीक्षित जन्म ...
अटल व्यक्तित्व के धनी “अटल”
कविता

अटल व्यक्तित्व के धनी “अटल”

डॉ. अर्चना राठौर "रचना" झाबुआ (मध्य प्रदेश) ******************** अटल रहा हर लक्ष्य जिनका अटल थे सब इरादे, कथनी करनी एक थी जिनकी, सभी निभाये वादे वाणी की प्रखरता करती मानव मन को झंकृत अलंकृत कर भारत रत्न से राष्ट्र हुआ है उपकृत। राजनीतिक षड्यंत्रों सेे थे दूर रहते वे सदा, बोलने से पहले थे, सौ बार वे सोचते सदा। कवि थे निराले, कभी भावुक हो जाता था मन, सीधे- सादे शब्दों में वे खोल देते थे अपना मन। देश के मुखिया थे हमारे, अटल थे जिनके इरादे भारत मां के लिये जियेे, थे सेवा में प्राण त्यागे। परिचय :- डॉ. अर्चना राठौर "रचना" (अधिवक्ता) निवासी : झाबुआ, (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के ...
भारत के वीर सपूत
कविता

भारत के वीर सपूत

श्वेता अरोड़ा शाहदरा (दिल्ली) ******************** हे भारत मां के वीर सपूतो, बलिदान तुम्हारा अतुल्य, साहस के आगे तुम्हारे हमने अपना शीश झुकाया, बारंबार नमन है तुमको, भारत को आजाद करवाया, हमको आजादी का मतलब समझाया! नमन है उन माताओ को जिसने मातृभूमि की रक्षा के लिए लाल अपने न्यौछावर किए, शीश श्रद्धा से झुकाऊं उन शूरवीरो को, जिनके खून के कतरे देश के लिए बहे, भारत मां के उन वीर शूरवीरो ने, वीरता अपनी दिखाई है, तब कही जाकर ब्रिटिश साम्राज्य से, आजादी हमने पाई है! १५ अगस्त एक तारीख नही, ये स्वर्णिम युग मे अंकित एक अविस्मरणीय पल है! करो कल्पना उस अदभुत पल की, जब विदेशी झंडा उतारकर तिरंगा ध्वज अपना फहराया होगा, हर हिन्दुस्तानी ने गर्व से भारत की मिट्टी को मस्तक पर सजाया होगा! परिचय :-  श्‍वेता अरोड़ा निवासी : शाहदरा दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्र...
प्रकृति की गोद
कविता

प्रकृति की गोद

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** फिर से उठ कर धारा को हरियाली से सराबोर करते हैं, आओ चलो प्रकृति की गोद में लौट चलते हैं । इन्हीं से सीखा है जीवन का सार मानव ने पर्वत से ऊंचाई, सागर से गहराई, चांद से शीतलता, सूरज से चमक वायु है प्राण, अग्नि तपाकर सोना बनाती है अग्नि धारा, जल, वायु, जीवन का रहस्य समझते हैं पेड़ों पौधों में भरी हैं खुशगवार जिंदगी को हवा से मिलकर मधुर संगीत सुनाती हैं झरनों नदियों की कल-कल से सुहाने स्वर उभरते हैं, आओ फिर से समंदर की मस्ती भरी लहरों पर चलते हैं बारिश की बूंदों से भी, ऊंचे उठकर धारा पर वापस आना भी सीखते हैं। कैसे कैद कर सकता है कोई प्रकृति की इन मजबूत दीवारों को !! हे मनुष्य मत करो प्रकृति पर प्रहार, मत ध्वस्त करो, ये पर्वत, ये धारा, ये जीव, इनका जीवन मत क्रूर बनो इतना कि हर जीवन सम...
मेरी रामायण (भाग-१)
कविता

मेरी रामायण (भाग-१)

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** प्रथम वंदन आपको हे मां शारदे उत्तम रामायण मैं वर्णन करूं अपनी कला को मुझपे वार दें फिर वंदन देव तेंतीस करोड़ करूं मेरी कलम आप भव से तार दे ब्रह्मा विष्णु महेश हृदय में आए मेरी रामायण में राम को उतार दे अब वंदन गुरु करू और मात पिता हे राम भक्त हनुमत आप स्वयं आओ दो मुझे रामायण रचने की विद्या हे गुरुदेव मन चिंतित और हिय व्यथित तन-मन-धन सब मेरा व्यर्थ रानियों सहित हे राजन ऐसे क्यों दुखी सुखे वृक्ष समान अयोध्या के राजा हों क्यों ना सुखी हो राज पाठ वैभव मेरा सब है बेकारी क्यों नहीं करता कोई नन्हा मम पीठ सवारी कब गुंजेगी गुमगाम महल में कोई किलकारी क्या मेरी चिता को अग्नि देने वाला नहीं आएगा रघुकुल का सूर्य मेरे साथ ही अस्त हो जाएगा व्यथा मेरी मुझे जर-जर कर रही गोद सुनी ना रह जाए रानियां भी डर रही क्या मुझे कोई पिता य...
चाहते हैं सब हल निकले
कविता

चाहते हैं सब हल निकले

विष्णु दत्त भट्ट नई दिल्ली ******************** चाहते हैं सब हल निकले आज नहीं तो कल निकले। अहंकार की माया है, युद्ध भयंकर छाया है। स्वार्थ साधने की ख़ातिर, आतंकी अब दल निकले। हाहाकर है चारों ओर मारो -मारो का है शोर। इस खूनी मार-काट का ना जाने क्या फल निकले? बच्चे-बूढ़े नर और नारी संकट सब पर है ये भारी। जान निरीहों की बन्धु, ना जाने किस पल निकले? चारों तरफ़ बस डर ही डर जीवन काँपे थर, थर, थर। जान बचाने को अपनी भागे रक्षक दल निकले। युद्ध भला किसका करता, बस जीवन तिल-तिल मरता। अहंकार तुष्टि की खातिर, लाशें अब हर पल निकले। दुष्ट दुष्टता छोड़े ना मुँह हिंसा से मोड़े ना। लाशों के बाजार में चाहे हर हाल दुकां ये चल निकले। सुनो सत्य ओ तालिबानी! धरती किस के संग न जानी। सत्य छोड़ फिर खून बहाने, बेहूदों के दल निकले। वैमनस्य अब छोड़ो भी, स्नेह सूत्र को जोड़ो जी। ...
महावीर चन्द्रबरदाई
कविता

महावीर चन्द्रबरदाई

विमल राव भोपाल मध्य प्रदेश ******************** महावीर बलिदानी था वो निडर गया था गज़नी में। पृथ्वीराज का मान बचाने शौर्य दिखाया गज़नी में॥ समकालीन बहुत थे शासक क्षत्रित्व नही था उनमे भी। पृथ्वीराज को बचा सके जो वह शौर्य नही था उनमे भी॥ बाल सखा सामंत चन्द्र नें तब अपना शौर्य जगाया था। जा गज़नी की धरती पर उस गौरी को मरवाया था॥ नैत्रहीन उस पृथ्वीराज को सखा चन्द्र नें समझाया। शब्द भेदी विधा से उसनें गौरी को था मरवाया॥ ऐसे वीर बलिदानी को देश भूल ना पायेगा। हैं कवि चन्द्रबरदाई तुमको जन मानस शीश नवायेगा॥ परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) विशेष : कवि, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव - अ.भा.वंशावली संरक्षण एवं संवर्द्धन संस्थान म.प्र, रच...
घी त्यार-ओगली संक्रांति
कविता

घी त्यार-ओगली संक्रांति

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** आई सिंह संक्रांति तो, घी त्यार ओल्गी मनाई | पकाकर बेडू रोटी तो, घी में भिगोकर खाई ||१|| नव पल्लवित हरित प्रकृति, खेतों में पत्तियां सुंदर बनाई | मिलाकर अरबी की बाबा को, सुंदर सब्जी क्या बनाई ||२|| त्याग कर खेती-बाड़ी को अब, तुमने धनिया जब नहीं जमाई | दैंअब कैसे तुम्हें परम स्नेहियो, घी संक्रांति की बधाई ||३|| बने सब गरीबी रेखा के लोग, बीपीएल बना सहाई है | निष्क्रिय बने बंधु बंधुओं को, घृत- संक्रांति की बधाई है ||४|| त्याग रहे संस्कृति और सभ्यता, पर्वोत्सवों में मतिहीनता दिखाई है | देवभूमि के सभी प्रिय बंधुओं को, घृत संक्रांति की बधाई है ||५|| शिक्षायुक्त लोगों ने रोजगार लेकर, समाज में अपनी जगह बनाई है | बाकी सदा बने निष्क्रियों को भी, घृत संक्रांति की बधाई है ||६|| घृत संक्रांति की बधाई है, घृतसंक्रांति क...