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कविता

क्या तुम लक्ष्मण बन पाओगे
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क्या तुम लक्ष्मण बन पाओगे

विकास शुक्ला दिल्ली ******************** राम सा भाई सब चाहें, क्या तुम लक्ष्मण बन पाओगे, जो चौदह वर्ष भार्या से दुर रहा, क्या तुम एक वर्ष रह पाओगे... निज राम चरण की धूल बना, वह धुप छाँव बन साथ चला, अरण्य में अपने भाई के, जो बिन स्वार्थ खिदमत को चला गया... उस भरत के ह्रदय को तो देखो, जो अनुराग का सागर बन आया, राज पाठ सब छोड़-छाड़ कर, तात चरण में खुद आया... चरण पादुका को सर लेकर, सिंहासन पर शोभित कर आया, निज भ्रात के कारण योगी बन, खुद भी अरण्य में पड़ा रहा... बोलो ऐसे भरत बनोगे, क्या वही लक्ष्मण बन पाओगे, राम सा भाई सब चाहें, क्या भरत या लक्ष्मण तुम बन पाओगे... क्या भरत या लक्ष्मण तुम बन पाओगे...।। परिचय :- विकास शुक्ला निवासी : दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि...
अच्छा लगा
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अच्छा लगा

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** तेरा ज़िंदगी में आना, अच्छा लगा हँसना, रुठना, मनाना, अच्छा लगा। जरा जरा सी बातों पर तुनक कर तेरा मुँह को फुलाना, अच्छा लगा। महफ़िल में या यूँ ही अकेले कहीं तेरा गले से लगाना, अच्छा लगा। सौंपकर मुझको खुशियाँ अनमोल तेरा यूँ नखरे दिखाना अच्छा लगा। तुझ पे लिखा हूँ जितनी भी नज़्में तेरा उनको गुनगुनाना अच्छा लगा। वहशी तरीके तुम टूटती हो मुझ पर मुझे सितमगर बताना अच्छा लगा। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष त...
अनहदें…
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अनहदें…

सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ रूद्रप्रयाग (उत्तराखंड) ******************** अनहदों से होकर तुम्हें महसूस किया है, मैंने सरहदों के दायरों में रहकर ये जीवन जिया है, मैंने शिखरों की चाह नहीं थी, सरहदों की परवाह थी हमें, गुजर गयी वो हदें जिनकी परवाह थी हमें, वो अनहदों के दायरे आज भी गूँज रहे हैं। वो नयनों की रोशनी कहीं खो गयी है, पर तुम्हारी खुशबू चंदन की तरह महसूस हो रही है वो शिरोमणि चमक रही है कानों में तुम्हारी आवाजें गूँज रही हैं।। मैं शान्त और शालीनता से तुम्हें महसूस कर रही हूँ, अभी भी अनहदों से गुजर रही हूँ, वो हल्की सी मुस्कराती हुई सुबह, वो शीतल होती हुई शाम, बन्द नयनों से महसूस किये जा रही हूँ,। बन्द कानों से तुम्हारी आहटों का अहसास जम़ी पे तुम्हारे कदमों को इस मखमली दूब के सहारे महसूस किये जा रही हूँ,।। अनहदों से होकर तुम्हें महसूस किया है मैंने, सरह...
जरा देख के चलो
कविता

जरा देख के चलो

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** फूल हैं कम, कांटे हैं ज्यादा, जरा देख के चलो। भरोसा कम है, धोखा ज्यादा, जरा देख के चलो। मुस्कान कम, तनाव है ज्यादा, जरा देख के चलो। आधी हक़ीक़त, आधा फ़साना, जरा देख के चलो। आसमां कम, औ ऊँचे मकां ज्यादा, जरा देख के चलो। फायर ब्रिगेड कम, शार्टसर्किट ज्यादा, जरा देख के चलो। परिन्दे हैं कम, बहेलिए ज्यादा, जरा देख के चलो। खरे इंसान कम, खोटे ज्यादा, जरा देख के चलो। सूरज है क़ैद, सितारे सोये, जरा देख के चलो। ये रंग-रलियां औ वो कहकहे, जरा देख के चलो। जिस्म का बाज़ार, उड़ते पैसे, जरा देख के चलो। रेशमी आँचल, अश्क़ से भींगा, जरा देख के चलो। रेंग रही मौत, उड़ते वायरस, जरा देख के चलो। ये तूफ़ान, वो बाढ़ का पानी, जरा देख के चलो। पलभर की जवानी, लंबी जुदाई, जरा देख के चलो। अम्न, तहज़ीब की बिगड़े न खुशबू, जरा देख के चलो। ...
देशप्रेम
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देशप्रेम

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आज हम सब को एक साथ आना होगा मिलकर ये सौगंध सभी को लेना होगा, देशप्रेम का चढ़ रहा जो छद्म आवरण उससे हम सबको बचना बचाना होगा। ओढ़ रहे जो देश प्रेम का छद्म आवरण नोंच कर वो आवरण नंगा करना होगा, देशप्रेम के नाम पर भेड़िए जो शेर हैं ऐसे नकली शेरों को बेनकाब करना होगा। देशभक्तों पर उठ रही जो आज उँगलियाँ उन उँगलियों को नहीं वो हाथ काटना होगा, देश में गद्दार जो कुत्तों जैसे भौंकते है, ऐसे कुत्तों का देश से नाम मिटाना होगा। जी रहे आजादी से फिर भी कितने हैं डर डर का मतलब अब उन्हें समझाना होगा, देश को नीचा दिखाते आये दिन जो गधे हैं रेंकते, ऐसे गधों को अब उनकी औकात बताना होगा। उड़ा रहे संविधान का जब तब जो भी मजाक भारत के संविधान का मतलब समझाना होगा, समझ जायं तो अच्छा है देशप्रेम की बात वरना समुद्र...
दर्द की सज़ा
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दर्द की सज़ा

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** हुआ न दर्द मुझे भी हुआ करता था, जब तुम बेमतलब मुझे तकलीफ देते थे। आए न आंखों में आंसू मेरी आंखों में भी आते थे, जब तुम बिना मेरे कुछ बोले मुझे दर्द दिया करते थे। टूटा न दिल मेरा भी टूट जाता था, जब तुम पास होकर भी अनजान बन निकल जाते थे। हुई न तकलीफ मुझे भी हुआ करती थी, जब तुम औरों के लिए मुझे छोड़ चले जाते थे। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्...
पिता
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पिता

ज्योति लूथरा लोधी रोड (नई दिल्ली) ******************** जो अपने पूरे परिवार के लिए है हर समय जीता, जो अपने सपनों को छोड़ बच्चो के ख्वाब है सिता, जो कभी न बताए की उस पर क्या-क्या है बिता, वो दुनिया का अनमोल रत्न है पिता। मेरा स्वाभिमान, मेरा सम्मान, मेरा अभिमान, है मेरे पिता। अपने बारे में कभी न सोचते, बस हमारे ही सपने संजोते, मेरा मान मेरी उड़ान, है मेरे पिता। गलती होने पर तुरंत कर देते माफ, उनका दिल है कितना साफ़, बाहर से सख्त अंदर से नरम, उनकी डाट भी है कितनी अनुपम। मेरी जान है मेरे पिता, दुनिया का अनमोल रत्न है पिता, जो हमेशा सब को देता, पर खुद के लिए कभी कुछ न लेता। वो महान इंसान है पिता, वो भगवान है पिता। परिचय :- ज्योति लूथरा संस्थान : दिल्ली विश्वविद्यालय निवासी : लोधी रोड, (नई दिल्ली) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ...
सावन का आगमन
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सावन का आगमन

आरती यादव "यदुवंशी" पटियाला, पंजाब ******************** आगमन सावन का देख है हर्षचित्त सारा वन हुआ, खिल उठी हैं पुष्प कलियां है प्रमुदित हमारा मन हुआ। भवरों की गुंजा शोर करती चढ़ा पत्तियों पर नव-यौवन है, तितलियां नित्य नृत्य हैं करतीं आया झरता देख सावन है। मयूरी की नुपुरें छम हैं करती देखो झूमें ये सारा उपवन है, पंछियों के मीठे स्वरों से देखो हुई सुगंधित ये शीतल पवन है। सरिता की धारा बहती वेग से उल्लासित हुआ ये गगन है, आकाश से देखो धरा मिल गई कैसे इक होकर लागे मगन है। मेढ़कों की गुंजा है सुनती कोयल की कू-कू को नमन है, बगियों में झूले पड़ गए हैं देखो झूमता ये सावन है। परिचय :- आरती यादव "यदुवंशी" निवासी : पटियाला, पंजाब घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आ...
मेरी यह अभिलाषा है…
कविता

मेरी यह अभिलाषा है…

आचार्य राहुल शर्मा फिरोजाबाद (उत्तर प्रदेश) ********************                लावणी छंद में कविता मेरे मन की यह अभिलाषा, प्रेम बढे जग खिल जाये । राग द्वेष से हटकर प्राणी, प्रेम गले से मिल जाये ।। प्रेम से बढकर कौन जहां मे, मुझको प्यारे बतलाओ । नम्र निवेदन यही करूँगा, पाठ प्रेम का सिखलाओ ।। १ बिना प्रेम के जग की रचना, मन कैसे हो पायेगी । प्रेम रूप ही ईश्वर का है, देख अक्ल आ जायेगी ।। सच्चा ज्ञान प्रेम है मानो, काली रातें कहतीं हैं । ये कटतीं हैं प्रेम मग्न हो, अंधकार को सहतीं हैं ।। २ तुलसी सूर कबीर कहें सब, प्रेम ड़गर चलते जाना । ईश्वर तुम से दूर नहीं हैं, जाओ तो मिलते जाना ।। मीरा गाये प्रेम मग्न हो, मैं तो हरि की हो गई रे । हरि की चादर ऐसी ओढ़ी, प्रेम गली में सो गई रे ।। ३ नारद वींणा वादन करते, भज नारायण कहते हैं । जगत सार बस हैं नारायण, प्रेम गली में रहते हैं ।।...
समर्पण रिश्तो का
कविता

समर्पण रिश्तो का

श्वेता अरोड़ा शाहदरा (दिल्ली) ******************** किसी भी रिश्ते को निभाने के लिए पूर्ण समर्पण जरूरी है, कमियो को करके नजर अंदाज, खूबियो को अपनाना जरूरी है! कटु वाणी को नियंत्रण मे रखकर, मृदु भाषी होना जरूरी है! गैर भी हो जाते है अपने, बस वाणी मे मिठास जरूरी है, सिर्फ लेने का भाव ना होके, देने का भाव जरूरी है! झूठ से ना जीती गई कोई लडाई, साथ सच का होना जरूरी है! गलत की भीड मे ना होकर शामिल, साथ सच्चाई के चलना जरूरी है! आईना दूसरो को दिखाने से पहले, अंतर्मन मे झांकना जरूरी है! षड्यंत्रो से रची जाती है महाभारत, मधुर संबंधो के लिए निष्पक्षता जरूरी है! भूल जाएंगे सब तेरी जिन्दगी भर की अच्छाई, बस तेरी एक गलती होना जरूरी है! किसी भी रिश्ते को निभाने के लिए पूर्ण समर्पण जरूरी है! परिचय :-  श्‍वेता अरोड़ा निवासी : शाहदरा दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित क...
साहित्य और समाज
कविता

साहित्य और समाज

सुनील कुमार बहराइच (उत्तर-प्रदेश) ******************** साहित्य और समाज का आपस में गहरा नाता है साहित्य समाज का दर्पण कहलाता है। मनोभावों को शब्द रूप दे साहित्य रचा जाता है सत्य झलक समाज की साहित्य ही दिखलाता है साहित्य समाज का दर्पण कहलाता है। नई दिशा समाज को साहित्य ही दिखलाता है सजक कर समाज को अपना कर्तव्य निभाता है साहित्य समाज का दर्पण कहलाता है। निराशा में भी आशा की किरण दिखलाता है सोच-समझकर कर चलना सिखलाता है साहित्य समाज का दर्पण कहलाता है। कालजयी सृजन समाज ही करवाता है साहित्य संरक्षण भी समाज करवाता है समाज साहित्य का आधार कहलाता है। कालजयी सृजन कर साहित्यकार सम्मान पाता है मर कर भी अमर हो जाता है साहित्य समाज का दर्पण कहलाता है। परिचय :- सुनील कुमार निवासी : ग्राम फुटहा कुआं, बहराइच,उत्तर-प्रदेश घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है...
आशा की किरण
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आशा की किरण

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** आशा की किरण, दिखाती कविता। मुझको मुझ तक, लाती कविता। अन्तर्भावों की, अभिव्यक्ति कविता। हमें भावाभिभूत, बनाती कविता। परोपकार और परहित कर, खुशियां लेना सिखाती कविता। निस्वार्थ सेवा भाव से, हर्षित सदा करती कविता। हृदय व्यथित जब होता है, भाव अंकुरित करती कविता। मन भावोन्मत्त जब होता है, नवकाव्य सृजन करती कविता। परिचय :- महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' निवासी : सीकर, (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी क...
कर्म में शर्म कैसी ?
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कर्म में शर्म कैसी ?

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** एक छोटी सी चीटी भी, करती रहती कर्म यहाँ हाथी को भी मेहनत करने में, आती नहीं है शर्म यहाँ याचक भी जी लेता है, करते-करते कर्म यहाँ राजा को भी कभी न आई, राजपाट में शर्म यहाँ नन्ही चिडिया दानों के लिए, करती रहती कर्म यहाँ जंगल का राजा शिकार में, नहीं किया कभी शर्म यहाँ इस दुनिया मे भगवान ने, आकर किया कर्म यहाँ फिर इन्सान को आती है, क्यो करने में शर्म यहाँ सासें भी तब तक चलती है, हृदय करे जब कर्म यहां निर्जीव हो जायेगी काया, धडकनें करे जो शर्म यहाँ जीवन का है सार यही कि, करते रहो कर्म यहाँ मानवता से बढ़ कर दूजा, "सुकून" नहीं है कोई धर्म यहाँ स्वर्ग नरक का खेला कह कर, छलते रहते कर्म यहाँ यहीं किया है यहीं मिलेगा, जीवन का है यही मर्म यहाँ परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पद...
दुर्योधन नही सुयोधन
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दुर्योधन नही सुयोधन

दशरथ रांकावत "शक्ति" पाली (राजस्थान) ******************** मैं समय ठहर सा गया युद्ध जब भीम सुयोधन बीच हुआ, उस रणभूमि का कण-कण साक्षी क्या उसका परिणाम हुआ। अंत समय तक वीर लडा़ सौ बार गिरा फिर खड़ा हुआ, हो धर्म विजेता या पाप पराजित पर वीर सुयोधन अमर हुआ। क्षण मृत्यु का निकट हुआ माधव को निकट बुलाकर बोला, संतप्त हृदय से पीड़ा निकली तत्काल संभलकर यु बोला। हे गिरिधर एक बात सुनो मैं नीच नराधम दुर्योधन हूं, मैं पाप मूर्ति में कली रूप मैं अधर्म का संचित धन हूं। मैं विषघट हूं कुलनाशक मैं अनीति का वृहद वृक्ष हूँ। भातृशत्रु मैं कुटिल कामी मैं क्रोध लोभ का प्रबल पक्ष हूं। है कितने ही अवगुण अपार मैं महाभारत का हूँ आधार, मेरे कारण गीता कही मैं पाप स्वयं सत का आधार। तुम धर्म स्वयं को कहते हो सत्य सनातन बनते हो, पापों का दमन ध्येय तेरा इस हेतु देह नर धरते हो। क्या पाप कहो ...
भौतिकतावादी संसार
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भौतिकतावादी संसार

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भौतिकता का प्रेमी यह जग रंग-रूप आकार सराहे करे सदा भौतिक सत्यापन दृश्य, गंध, स्पर्श, नाद से करता है पहचान सभी की चमक-दमक का सतत प्रशंसक कृत्रिम गंध से भ्रम का पोषक कोमल सतहों को शुभ माने स्वर की सरगम में डूबा है ठाट-बाट के पीछे पड़ता महलों के शिखरों को देखे कुटिया उसके लिए उपेक्षित धन से तोले मान-प्रतिष्ठा बाहर-बाहर परखे सबकुछ देख नहीं पाए अंतर्मन भौतिकतावादी संसार परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा लेखन विध...
मिलन यामिनी
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मिलन यामिनी

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कहीं बादल गरज रहे कहीं दमक रही दामिनी तुम कहीं हम कहीं यह कैसी मिलन यामिनी तरु पल्लव भी मुखरिततो हो गए पागल लताओं का संबल दूर कहीं भाग रहे मेघों के संगम तुम तुम आए नहीं मैं बांट रही जोहती तुम कहीं हम कहीं यह कैसे मिलन यामिनी तराजू में पंकज भी सिर झुकाए बैठ गए खग वृंद भी अपने घरों को लौट गए मैं खड़ी द्वार पर प्रतीक्षा थी कर रही तुम कहीं हम कहीं यह कैसी मिलन यामिनी नीरज तरंगे भी टकरा रही कूल से अभी भी झूम रहे पाकर मधुपुष्प से कुमकुम रोली लिए मैं सजा रही आरती तुम कहीं हम कहीं यह कैसे मिलन यामिनी दामिनी की धमक से मेघ बोखला गए बरसा कर अमृत करण इंद्र छटा दिखा गए मैं भी गाती रही पुष्प लिए सारथी तुम कहीं हम कहीं यह कैसे मिलन यामिनी देखो अब मैंघो ने प्रृषठ् भाग दिखा दिया इंद्र धर्म के सप्तरंग लि...
गुरु महिमा
कविता

गुरु महिमा

सुनील कुमार बहराइच (उत्तर-प्रदेश) ******************** गुरुदेव के पावन चरणों में जो शीश झुकाते हैं ज्ञान का अनमोल खजाना वो ही तो पाते हैं। गुरुदेव की अमृतवाणी निज जीवन अपनाते हैं सारे जहां की खुशियां अपने कदमों में पाते हैं। दिव्यज्ञान की ज्योति जला उर का तम मिटाते हैं सही-गलत का भेद पूज्य गुरुदेव ही बताते हैं। मां-बाप तो देते जन्म गुरुदेव पहचान दिलाते हैं भवसागर से पार उतरना गुरुदेव ही सिखाते हैं। गुरुदेव के पावन चरणों में जो शीश झुकाते हैं जीवन की बाधाओं से सहज ही मुक्ति पाते हैं। परिचय :- सुनील कुमार निवासी : ग्राम फुटहा कुआं, बहराइच,उत्तर-प्रदेश घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के स...
गुरू
कविता

गुरू

मनीषा जोशी खोपोली (महाराष्ट्र) ******************** गुरु वही जो जीवन के अंधेरों में प्रकाश बन कर आते हैं। ईश्वर के बाद हमें ज्ञान की सीख सिखाते हैं। जीवन पथ पर जो राह दिखाते हैं। मन के भीतर वो विश्वास का दीपक जलाते हैं। हमें इंसानियत और धैर्यता का पाठ पढ़ाते हैं। गुरू वही जो संकट से लड़ना सिखाते हैं। गुरु वही जो हमें संपूर्ण मानव बनाते हैं। गुरु पुस्तक गुरु अरदास हुए। परिचय : मनीषा जोशी निवासी : खोपोली (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें ...
गुरु जीवन है
कविता

गुरु जीवन है

रूपेश कुमार चैनपुर, सीवान (बिहार) ******************** विश्व मे सबसे पहले पूजें जाते है गुरु, विश्व मे सबसे महान होते है गुरु, गुरु बिन ज्ञान कि कल्पना नही कि जाती, गुरु बिन मानवता का कोई अस्तित्व नही होता, गुरु हमें ज्ञान कि शिक्षा, दीक्षा देते है, गुरु हमारे सपनों को हमेशा साकार करते है, जीवन के सबसे पहले गुरु माँ-बाप होते है, जीवन के सबसे पहली पाठशाला हमारी घर होती है, सबके लिए गुरुओं कि जरुरत होती है, भले शिक्षा हो या कला, खेल, अभिनय, गुरु बिन कुछ नही है सकारमय, गुरु बिन जीवन है अंधकारमय, गुरु बिन जीवन है अशिक्षित, गुरु बिन जीवन है पशुओं के समान, जहां गुरु नही होते वहाँ बुद्धि नही होती, जहां गुरु नही होते वह जगह जंगल के समान है, गुरु से ज्ञान कि उत्पति होती है, ज्ञान से विज्ञान, साहित्य, कला, अभिनय, समाजिक रहन सहन कि उत्पति हो...
हे गुरु!
कविता

हे गुरु!

डॉ. सरोज साहू भिलाई, (छत्तीसगढ़) ******************** मन के अंधेरे रौशन करते, अज्ञानता में प्रकाश भरते, शब्दों के सहारे चलना सीखाते हो..!! हे गुरु तुम ही तो मार्ग बताते हो..!! अटक गया जो कहीं, भटक गया जो कभी, मोह जाल से निकलना सीखाते हो..!! हे गुरु तुम ही तो मार्ग बताते हो..!! बैर भाव भूला कर, भेद भाव मिटाकर, प्रेम भाव भरना सीखाते हो जीवन सरल बनाते हो..!! हे गुरु तुम ही तो मार्ग बताते हो..!! कदम-कदम बढ़ाकर, सफलता की सीढ़ी चढ़ाकर, शिखर पर पहुंचाते हो..!! हे गुरु तुम ही तो मार्ग बताते हो..!! हो कर हमसे दूर, महान रत्नों के बीच, अपनी कमी का अहसास कराते हो, निराकार हो कर भी, ज्ञान को साकार बनाते हो..!! हे गुरु तुम ही तो मार्ग दिखाते हो..!! साथ नहीं फिर भी, सम्बल दे जाते हो, इन भयावह परिस्तिथियों से लड़ना सीखाते हो..!! हे ग...
गुरु महिमा
कविता

गुरु महिमा

नन्दलाल मणि त्रिपाठी गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** गुरु जीवन आधार गुरु आत्म बोध गुरु कर्म धर्म गुरु मर्यादा मर्म गुरु तमश का प्रकाश।। गुरु नीति नियत का आशीर्वाद गुरु ब्रह्म गुरु देव गुरु आदि अनंत जीवन सिद्धान्त।। गुरु ज्ञान गुरु जीवन मार्ग गुरु महिमा का मानव गुरु मानवता का मूल्य संस्कृति सांस्कार।। गुरु संकल्प है गुरु गुरु साध्य साधना आराधना ईश वंदना गुरु स्वर गुरु अन्तर्मन गुरु आस्था विश्वास।। गुरु ईश्वर मार्ग है गुरु ईश्वर साक्षात गुरु प्रत्यक्ष प्रमाण है प्रथम वंदन पूजा पात्र है।। गुरु काल प्रवाह है गुरु नैतिकता आचरण व्यवहार है।। गुरु अहं भाव गुरु शिष्य की पहचान है गुरु द्रोण है गुरु परशुराम है गुरु विशामित्र गुरु राम कृष्ण परमहंसः आदि अनादि है।। अर्जुन भीष्म राम विवेका का ईश्वर वरदान है।। गुरु ब्रह्म ब्रह्मा ब्रह्मांड ...
गुरू चरणों मे  समपिॅत
कविता

गुरू चरणों मे समपिॅत

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** गुरू चरणों मे बहती अमृत धार जन-जन का अज्ञान मिटाकर गुरू दिखाते सच्ची राह हैः बरसती है जिस पर गुरू कृपा उनको देते है गुरू ज्ञान अपार एक लश्य गुरू भेदन हैं सुखमय हो सारा संसार गुरू चरणो में बहती अमृतधार पा जाएं वो भव सागरपार ज्ञान ज्योति हम सब पाएं खूद जलकर करतै है सपने साकार गुरू चरणोकी अनूकंपा से सत्य पथ पर बढते जाए गुरू चरणो मे बहती अमृतधार कभी न थकै कभी न रूकै हो आभायमान सारा संसार तपती धूप ढ़लती ये छाया जब पाये आश्रय ये संसार झुके ये नतमस्तक "मोहन" गूरू चरणो मै हो भवसागर पार परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वर...
घौंसला
कविता

घौंसला

सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ रूद्रप्रयाग (उत्तराखंड) ******************** इक चिड़िया घूमती बार-बार, घर आँगन अर द्वार। रोज पिताजी दाना डालते माँ पानी की धार।। चिड़िया रोज़ सबेरे आकर कहती है उठ जा गुड़िया रानी। में कहती रूक जा महारानी।। चिड़िया का घौंसला था दूर घौंसले आज पिताजी घर में ही ले आये। चिड़िया रानी को घौंसले बहुत सुहाये।। अपनी सखी सहेलियों को घर ले आई। आज खुशी से फूली न समाई।। सावन की घनघोर घटाएँ हैं छाई। मेरे घर आँगन चिड़िया चहचहाई, पिता जी की मेहनत रंग लाई।। मुझे इक नयी राह है दिखाई, इक चिड़िया घूमती बार-बार। मेरे घर आँगन अर द्वार।। खुशहाली से है चिड़िया का परिवार। प्रभात की बेला पर मुझे पुकारती बार-बार।। वो भी दाना चुगने जाती में भी, पापा मम्मी के आस पास मंडराती, उड़ान जब ये भरती है, इक नयी सीख मिलती है हर बार। कितना सुन्दर है चिड़िया का घर द्वार।। ...
धरती का स्वर्ग
कविता

धरती का स्वर्ग

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मत काटो तुम ये पहाड़, मत बनाओ धरती को बीहाड़। मत करो प्रकृति से खिलवाड़, मत करो नियति से बिगाड़।।१।। जब अपने पर ये आएगी, त्राहि-त्राहि मच जाएगी। कुछ सूझ समझ न आएगी, ऐसी विपदाएं आएंगी ।।२।। भूस्खलन और बाढ़ का कहर, भटकोगे तुम शहर-शहर। उठे रोम-रोम भय से सिहर, तुम जागोगे दिन-रात पहर।।३।। प्रकृति में बांटो तुम प्यार, और लगाओ पेड़ हजार। समझो इनको एक परिवार, आगे आएं हर नर और नार।।४।। पर्यावरण असंतुलित न हो पाए, हर लब यही गीत गाए। धरती का स्वर्ग यही है, पर्यावरण संतुलित यदि है।।५।। निर्मल नदिया कलकल बहता पानी, कहता है यही मीठी जुबानी। धरती का स्वर्ग यही है, पर्यावरण संतुलित यदि है।।६।। परिचय :- दीप्ता नीमा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरच...
तुम से नज़र मिली
कविता

तुम से नज़र मिली

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** तुम से नज़र मिली बाग में कलियां खिलीं रंग बदलने लगा आकाश सुनहरा श्रंगार करने लगी वसुंधरा चमकने लगें पीपल के पत्ते सजे है मँजिल से खूबसूरत रस्ते तुम से नज़र मिली शब्दों ने अपनी जुबां सिली बोलने लगी खामोशी मौसम में भी छाने लगी मदहोशी होने लगी दिल की बातें करने लगी यादें मुलाकातें तुम से नज़र मिली बाग में कलियां खिलीं खिल उठा हो जैसे बचपन मेरा लगने लगा सारा जहान मेरा पलकों पर तुम्हें सजाना है काजल नही आँखों में तुम्हें बसाना है तुम से नज़र मिली आँखें ये हो गयी गीली जागने लगी रातें प्यारे वो पल सतातें अंनत प्रेम है तुम से, इसमें मेरी ख़ता नही किताबों में छूपाने लगी हूँ आँसू है या स्याही पता नही तुम से नज़र मिली खुद को भी मैं भुली बस गये ध्यान में तुम बन गये प्राण तुम आ गयीं हो जैसे पत्थरों ...