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कविता

हिंदी
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ज्योति लूथरा लोधी रोड (नई दिल्ली) ******************** हिंदी है ही इतनी प्यारी, जितना जानो कम है, इसमे इतना दम है, क्योंकि हिंदी से ही हम है। हिंदी ने ही मुझे बनाया बढ़ाया, मुझे सिखाया सवारा सुधारा, हिंदी है अनुपम माया, इसकी है शीतल छाया। हिंदी न मेरी न तेरी वो है सबकी, हिंदी में कुछ बात है हिंदी हमारे साथ है, हिंदी है ज्ञान का भंडार इसमें है अनेक विचार, हिंदी को बनाओ प्यार हिंदी है मेरी यार। हिंदी को बनाओ प्यार हिंदी है मेरी यार। परिचय :- ज्योति लूथरा संस्थान : दिल्ली विश्वविद्यालय निवासी : लोधी रोड, (नई दिल्ली) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अ...
मन की आँखे खोल
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मन की आँखे खोल

योगेश पंथी भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश ******************** चहरे का तो रंग उड़ा है नस नस में है कपट भरा। चला ठाट से तीरथ करने घरमें है अंधकार पड़ा॥ चार जीव का दिल जलता हैं चला है शान दिखाने को। यारों के संग मौज मनाता घर में नही हैं खाने को॥ घर की परवाह उसे कहाँ सिर्फ दिखावा प्यारा है। जब पैसे की खनक बड़े तब हो जाता न्यारा है॥ लगा सके न जहा रुपईया तंग हाल में, वो घर प्यारा हैं। सिर छुपाने जगह नही तो तब होता वहीं गुज़ारा है॥ कटे विधुत खंडहर हो घर उसकी आँख नही झुकती। नाक कटे दुनिया भर में पर डिन्गा फांक नही रुकती॥ दिल दुखते हो लोगों के तो खुद खुशहाल नही होते। तीरथ कर लेने से केवल खुश भगवान नही होते॥ दुराचार की संगत से तो यज्ञ भी नष्ट हो जाते हैं। मन मे छल हो तीरथ से क्या दूर कष्ट हो जाते हैं॥ जितना कष्ट देता सब को तेरा परिवार भी झेल रहा। ईश्वर खेल ...
देश के राज्यों की विशेषता
कविता

देश के राज्यों की विशेषता

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** सुनों सुनता हूँ तुमको देश की कहानी। जिसमें हैं २९ राज्यों का समावेश। राज्यों कि भी है अपनी अपनी कहानी। कोई विकसित है तो कोई है जंगल। पर सभी का ह्रदय है तो भारत। परंतु एकबात समान है सभी राज्यों में। अलग अलग राज्यों की भाषाएँ हैं। खाने और पहाने का तरीका भी अलग है। रीति रिवाजो का तरीका भी अलग है। परंतु तिरंगा के प्रति बहुत सम्मान है। तभी तो एक सूत्र में सभी राज्य बंधे हैं। और सभी का है एक ही संविधान। जो हर धर्म जातियों को समानता देता है। अनेकता में एकता जिसकी सबसे बड़ी विशेषता है। चलो आज प्रदेश के अनुसार सुनता हूँ। आपको देश के प्रदेशों की कहानी। तभी जान पाओंगे राज्यों को तुम। प्रथम में हम बात करते है कश्मीर की। जहाँ रहते है कश्मीरी पंडित। और वहां पर बहुत पैदा होती है केशर। बात करते है अब हिमाचल प्रदेश की। जहाँ के पू...
चलो तो सही
कविता

चलो तो सही

श्वेतल नितिन बेथारिया अमरावती (महाराष्ट्र) ******************** मत बैठना थक कर के वरना कहोगे मंजिल मिली ही नही अपने सपनों को पंख देकर उड़ान के अब तुम चलो तो सही। कौन भला क्या जीत पाया है यहाँ खुद के मन को यूं मार के रखो यकीन सब जीत जाओगे इक दिन सब कुछ हार के। हों यदि हौसले बुलंद तो क्या डरना किसी आंधी या तूफान से पर दिल न दुखे किसी का, खाली हाथ लौटना भी है जहाँन से। हो यदि मीठी जुबान तो मनुष्य का हर जगह गुणगान होता है वाणी ही बोध कराती सदा नेह का इससे ही सम्मान होता है। परिचय - श्वेतल नितिन बेथारिया निवासी - अमरावती (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र - मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच ...
आँसुओं के मोती
कविता

आँसुओं के मोती

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** सोनू! तुमने जो प्यार दिया मेरे इस दिल को वो प्यार कहीं ना अब तलक मुझे मिला जिंदगी का कोई अर्थ नही था अब तक तेरे प्यार ने मुझे नई जिंदगी का अर्थ दे दिया मेरी सोनू! तूने जब से थामा है मेरा हाथ मेरा हर लम्हा-लम्हा सुलझा-सुलझा रहता है बेअदबी इल्जाम लगाया दुनिया ने मुझ पे तुम्हारे प्यार पाकर रिहा हुआ इल्जामों से अब तो तेरे प्यार पे ही भरोसा है मुझको बिना सोचे समझे एतबार किया है मुझे मैंने आँसुओं से मोती की माला पिरोया मैंने अपने गले का तुझको हार बनाया है तेरे खूबसूरती के सागर में जब से खोया फिर खुद को खुद से कभी मिल नही पाया किस्मत भी खफा हो तो कोई गम नहीं अपने प्यार से कभी भी कोई शिकवा नहीं पर सोनू तेरा हर इल्जाम का गंवारा है मुझे फिर भी मैं तूझसे ही प्यार करता रहूंगा जब-जब भी मैंने आईना को देखता हूँ ...
शिक्षक है दीपक
कविता

शिक्षक है दीपक

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** शिक्षक है दीपक की छवि जो जलकर दे दूसरों को रवि वही तो राष्ट्र निर्माता कहलाता है.... तन-मन-वचन से कर्तव्य निभायें जो प्रतिभा की आभा बिखरायें वही तो ज्ञानदाता गुरू कहलाता है.... ईश्वर से महान तो गुरू बतलाये जीवन शैली की तो गुर सिखलाये वही तो भाग्य विधाता कहलाता है.... शिक्षक सद्ज्ञान की ज्योति है वो प्रकाश पुंज की मोती है वही तो दिव्यदाता कहलाता है... सत्-असत् पथ पर चलना सिखायें विद्यार्थी जीवन का मार्ग बतलायें वही तो सुविधादाता कहलाता है ... शैक्षिक सह-शैक्षिक पाठ पढ़ाये सबक सिखाकर आगे बढ़ाये वही तो सीख प्रदाता कहलाता है.... सर्वांगीण विकास कर धन्य बनाये पढ़ा लिखाकर नागरिक बनाये वही तो जीवनदाता कहलाता है .... हर कला क्षेत्र में पारंगत बनाये प्रशंसनीय प्रयास अनुसरण कराये वही तो स...
पहली शिक्षक माँ होती है।
कविता

पहली शिक्षक माँ होती है।

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** पहली शिक्षक माँ होती है। प्रारम्भिक पाठशाला माँ होती है फिर, पिता और घर-परिवार वाले अडोस पड़ोस और सब दुनियाँ वाले सब होते हैं शिक्षक जिन्दगी को समझाने वाले शिक्षक कल -कल बहती नदिया चलते रहना सिखाती सखियाँ पत्थरों से टकराते झरने सिखाते गिर कर उठने ऊपर फैला विस्तीर्ण आकाश कहता ऊँचे उठो, भर लो मन में उजास ऊँचे कठोर पर्वत बनाते संकल्प मजबूत यह विशाल धरती सँभाले है जगती लहराती कोमल पत्तियाँ आशाओं की जगाती लहरियाँ शिक्षा का अनुदान सर्वत्र फैला है निधान प्रकृति अखिल शिक्षक है जीवन सदा नत मस्तक है। परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखनऊ शिक्षा : एम.ए.,पी एच डी, बी.एड., स्नातक कक्षा और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में अध्यापन साहित्य सेवा : दूरदर्शन एवं आकाशवाणी में काव्य पाठ...
मैं शिक्षक हूं
कविता

मैं शिक्षक हूं

गीता देवी औरैया (उत्तर प्रदेश) ************* मैं शिक्षक हूँ मैं शिक्षक हूँ, नई पीढ़ी को सजाता हूँ। भरूँ मैं ज्ञान का सागर, नई गागर बनाता हूं।। बनाऊँ देश का भविष्य, मैं अनुभव पढ़ाता हूँ। रहेगी दूर अब हर बुराई, मैं नेक इंसान बनाता हूँ।। पढ़े मेरे देश के बच्चे, यही स्वप्न सजाता हूँ। करें हर क्षेत्र में नाम, ऐसा पथ दिखाता हूँ।। ना हो विचलित उनका, लक्ष्य मैं अर्जुन बनाता हूं बनूँ में स्वयं द्रोणाचार्य, मैं कर्तव्य सिखाता हूँ।। चलूँ साथ साथ हर कदम, छात्र के डर को भगाता हूं । उलझन हो अगर जीवन में, तो उसको सुलझाता हूँ।। आए जो रास्ते में जो शूल, उन्हें में फूल बनाता हूं। मेरे छात्रों के पग में न, चुभे कंकड़ हटाता हूँ।। चाहे हो गर्मी या वर्षा, सभी की मार सहता हूँ। करें आज्ञा मेरा विभाग, मैं वह काम करता हूं।। मैं शिक्षक हूँ मैं शिक्षक हूँ, छात्र के म...
शिक्षक क्या है?
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शिक्षक क्या है?

गाज़ी आचार्य 'गाज़ी' मेरठ (उत्तर प्रदेश) ******************** शिक्षक निराकार है शिक्षक का नाम संस्कार है शिक्षक फ़ज़ल है शिक्षक कोरे कागज़ को ज्ञान रूपी शब्दो से सवारनें वाली एक कलम है शिक्षक जीवन की उम्मीद अच्छे भविष्य की आस है शिक्षक चिराग है शिक्षक संगतराश है शिक्षक जलते दिये की लॉ जीवन को उज्ज्वल करती मशाल है शिक्षक अदब की पहचान है शिक्षक कोई इन्सान नहीं इन्सान रूपी भगवान है परिचय :- गाज़ी आचार्य 'गाज़ी' निवासी : मेरठ (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी...
राष्ट्र निर्माता
कविता

राष्ट्र निर्माता

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** शिक्षक होता शीतल नीर समान। देता हमें जीवन जीने का ज्ञान । कैसे? करें हम उसकी महिमा बखान। माँ के बाद जग में दर्जा सबसे महान। सही राह पर चलना सीखाता। शिष्यों को लोहे से स्वर्ण बनाता। सकारात्मक नजरिया अपनाता। ज्ञान आभा से अस्तित्व चमकाता। नित चहरे पर रहती मुस्कान। शिक्षक होता शीतल नीर....। निस्वार्थ भाव से सेवा करता। कर्तव्यपरायणता से फ़र्ज़ निभाता। कार्य चाहे सीधा हो या जटिल जैसा। आदर्श छवि का इनका पेशा। पाता जग में सदा गौरव मान। शिक्षक होता शीतल नीर.....। राष्ट्र निर्माता ज्ञान प्रदाता। अंतर्मन में उजियारा लाता। अनुशासन की अलख जगाता। गुरु शिष्यों का भाग्य विधाता। हृदयपट से करें उनका सम्मान। शिक्षक होता शीतल नीर....। परिचय :- महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' निवासी : सीकर, (राजस्थान) घोषणा पत्...
शिक्षक
कविता

शिक्षक

संध्या नेमा बालाघाट (मध्य प्रदेश) ******************** उन शिक्षको मैं प्रणाम करती हूं उन शिक्षकों में शुक्रिया करती हूं जिन्होंने जीवन का मार्गदर्शन करवाया दीपक की तरह जीवन को रोशन बनाया संसार रूपी दुनिया से कुछ ऐसे रूबरू कराया जैसे नादान परिंदो को उड़ान भरना सिखाया कभी नारियल तो कभी फूल जैसा समझाया आत्मबल स्वाभिमान के साथ जीना सिखाया किताबी ज्ञान एवं अनुभव का पाठ पढ़ाया हर मुसीबत से निकालने का मार्ग बताया उस शिक्षक को कैसे भूल जाऊं जिससे मुझे हर पल जीना सिखाया परिचय : संध्या नेमा निवासी : बालाघाट (मध्य प्रदेश) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मं...
अनुभव ही सर्वश्रेष्ठ शिक्षक
कविता

अनुभव ही सर्वश्रेष्ठ शिक्षक

नंदिता माजी शर्मा मुंबई, (महाराष्ट्र) ******************** शिक्षक की है परिभाषा अनेक, एक शिक्षक अनुभव में भी देख, स्कूलो में पढ़ते हैं पठन-पाठन, कालेज में दिखता प्रत्यक्ष उदाहरण, किताबों ज्ञानसे अलंकृत होता मन, असल शिक्षा तो देती है यह जीवन, ज्ञान का भी है खेल, अजब निराला, अज्ञानी यहां जपते हैं, ज्ञान की माला, असफलताएं देती है बहुमूल्य अनुभव, संघर्ष है सफलता का स्वर्णिम सौरभ, आजीवन यह अनुभव रहता है संग, निरंतर प्रयत्नों से ही जीत जाते है जंग, जीवन के कठिनाईयां होती है, असल समीक्षक, अनुभव ही होता है, हमारा सर्वश्रेष्ठ शिक्षक। परिचय :- नंदिता माजी शर्मा सम्प्रति : प्रोपराइटर- कर्मा लाजिस्टिक्स निवासी : मुंबई, (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपन...
मैं एक शिक्षक हूं
कविता

मैं एक शिक्षक हूं

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** आज मैं एक शिक्षक हूं । शिक्षा देने का दायित्व है । मुझ पर मैं अपने । दायित्व का निर्वाह । पूर्ण ईमानदारी और निष्ठा से । कर रही हूं । मैं बहुत सौभाग्यशाली हूं । मुझे शिक्षक होने पर । बहुत गर्व है,ईश्वर ने मुझे विद्यार्थियों का जीवन । संवारने का अवसर । प्रदान किया । मेरे शिक्षक बनने के पीछे । मुझे ज्ञान प्रदान करने वाले । समस्त शिक्षकों को मैं शत-शत। नमन करती हूं,जिन्होंने मेरे । जीवन में ज्ञान का प्रकाश भर । मुझे शिक्षक पद योग्य बनाया । शिक्षक से बचपन में डांट भी । खाई अब समझ आया। मेरे शिक्षक मुझे और मेरे जीवन । गढ़ने का भरपूर प्रयास करते थे । मेरे जीवन में आए समस्त शिक्षकों का। मैं हृदय तल से बहुत-बहुत आभारी हूं । मेरे शिक्षकों की निस्वार्थ । ज्ञान भरने का परिणाम । मेरे सम्मुख है...
गुरु
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गुरु

डॉ. सत्यनारायण चौधरी "सत्या" जयपुर, (राजस्थान) ******************** शिक्षक वह जो करें मार्ग प्रशस्त। जिसके सीख से अज्ञान हो अस्त। जीवन को मिलता नव संगीत। वही सद्चरित और उन्नति का मीत। गुरु ही तो होता है खेवनहार। वही पार लगाए अपनी पतवार। गुरु दीये सा खुद ही जलता। खुद जलकर अँधियारा हरता। गुरु का ज्ञान मिले जो हम को। सफल बना दे जीवन को। गुरु ही मिलाये गोविंद को। कर दो न्यौछावर तन मन को। जिससे सीख मिले वह शिक्षक। वही हमारा है जीवन रक्षक। कोरे कागद का वह चित्रकार। वही गीली मिट्टी का कुम्भकार। गुरु संदीपन की कृपा से कान्हा से श्रीकृष्ण कहलाये। गुरु वशिष्ठ की शिक्षा पाकर, भगवान राम भी मर्यादा पुरूषोत्तम कहलाये। जो है हमारा पथप्रदर्शक। वही गुरु है, वही है शिक्षक। गुरु की महिमा का न कोई पार। उसके बिन अधूरा जीवन संसार। गुरु की गरिमा के आगे, मैं लघु मानव क्या-क्या ...
शिक्षक/ सद्गुरु
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शिक्षक/ सद्गुरु

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** ओजस्वी दीपक, युग दृष्टा होते है शिक्षक। नवचेतना, ज्ञान, वैभव के धारक होते है शिक्षक। वर्ण विधान, भाषा अलंकरण होते है शिक्षक। आत्मनिर्भर, स्वाध्याय के संबल होते है शिक्षक। ज्ञान उद्दीपक, अंत प्रेरणा के विश्लेषक होते है शिक्षक। हर युग के नायक, अद्भुत चित्रकार होते है शिक्षक। कर्तव्यनिष्ठा, सृजनशीलता के परिचायक होते है शिक्षक। कच्ची मिट्टी से महलों के सृजक होते है शिक्षक। खाद और जड़ विषय संम्प्रेषक होते हैं शिक्षक। अमूर्त भावी पीढ़ी के मूर्तिकार होते है शिक्षक। ज्ञान के आलोक से अज्ञान विनाशक होते है शिक्षक। वाष्प कण से मेघों के शिल्पकार होते है शिक्षक। मां का वात्सल्य, पिता का आशीर्वाद होते है शिक्षक। नेह का अहसान, बहन का आलिंगन होते है शिक्षक। वशिष्ठ, विश्वामित्र, चाणक्य, राधाकृष्णन होते है शिक्षक। द...
स्त्री मन
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स्त्री मन

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भीगे कपड़े पसारते हुए छू जाता है गीले कपड़ों का अपनापन कुछ पलों के निजीपन याद आते ही बज उठता है संगीत मन का उतरते ही छत से खिसक आता है पास बच्चों के आने का पल संगीत भूल, मन हो जाता उद्वेलित शाम के खाने की जुगत में तभी याद आता छत पर भीगेगा अचार मन का संगीत हो जाता कुछ खट्टा सुनाई देती है बुजुर्गों की खाँसी तीतर बितर हो जाता मन का संगीत चांवल चढ़ाते चूल्हे पर दाल छोंकते खनकती है चूड़ियां कलाई में बजती है पैरों की पायल नहीं गूंजती मन में फिर कविताओं की स्वर लहरियाँ महसूस नहीं होते आकाश में गीतों के मन्द मधुर स्वर सृजित हुए थे जो उषा के प्रकाश में पूरब के रुपहले तन से अलग होकर जो दूर कहीं खनकता है मन का संगीत।। परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्...
शिक्षक जीवन की आत्मा है
कविता

शिक्षक जीवन की आत्मा है

रूपेश कुमार चैनपुर (बिहार) ******************** शिक्षक जीवन की आत्मा है, शिक्षक ही जीवन के परमात्मा है, बिन शिक्षक जीवन कहाॅं, शिक्षक जीवन की प्राणवायु है, शिक्षक बिन जीवन है अधूरा, खाली-खाली, सुना-सुना, शिक्षक जीवन की रोशनी है, शिक्षक जीवन का उजाला है, शिक्षक दुनियाॅं को राह दिखलाते, शिक्षक जीवन की मंजिल बनाते, शिक्षक जीवन के लिए मूल्यवान होते, शिक्षक जीवन को संवारते है, शिक्षक बिन जीवन की कल्पना नही होती, शिक्षक बिन ज्ञान की प्राप्ति नही होती, शिक्षक हमें चलना सिखलाते, शिक्षक हमारे ज्ञान की ज्योति जलाते हैं ! परिचय :- रूपेश कुमार छात्र एव युवा साहित्यकार शिक्षा : स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली यूपी) वर्तमान-प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी ! निवास : चैनपुर...
राज हंसिनी
कविता

राज हंसिनी

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** सोनू! कभी आओ फुर्सत में मेरे पास मिल बैठें एक जान हम तुम कुछ तुम अपनी कहो कुछ मैं अपनी कहता हूं सुख-दुःख को साझा करते हैं मेरी खुशी तुझमें रहती है मेरे सारे गम मेरे अंदर कैद है मेरी चिन्ता तेरे अंदर सुलगती है तेरे बिन मैं मेरे बिना तुम जी ना पाएंगे हम तुम दो काया माया एक हैं हम दिल की धड़कन हैं एक दूजे के सांसों से जब सांस मिले नई साँसे उत्तपन्न होती है तुझे चोट लगती है तो दर्द मुझे होता है तेरे दर्द का सिलसिला मेरे दिल से ही गुजरता है सारा का सारा अस्तित्व मेरा आहत हो कराहता रहता है ये एहसासों का एहसास हम दोनों से जुड़कर प्यार का अहसास जगाता रहता है एक दूजे के बिन एक पल ना गुजरता है ना मैं तन्हा रह सकता हूँ ना ही तन्हा तुम एक पल गुजार सकती हो मिलकर कर जिंदगी चल सकती है जिस्म नही दिल हमारा अ...
शिक्षक
कविता

शिक्षक

मनीषा जोशी खोपोली (महाराष्ट्र) ******************** ईश्वर का प्रतिरूप हैं शिक्षक। श्रद्धा रूप अनूप है शिक्षक। संघर्ष से लड़ना सिखाते शिक्षक। राहों को सरल बनाते शिक्षक। हर अँधेरे में रोशनी दिखाते शिक्षक। कभी प्यार से, कभी डांट से हमको ज्ञान देते शिक्षक। हर पल बच्चो का भविष्य बनाते शिक्षक। जीवन के हर पथ पर सही गलत की राह दिखाते शिक्षक। जीवन जीने का पाठ पढ़ाते हैं शिक्षक। बच्चो के भाग्य बनाते है शिक्षक। परिचय : मनीषा जोशी निवासी : खोपोली (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहा...
गुरु
कविता

गुरु

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** गुरु! तुम हो सृजनहार धरा पर! और माटी के लोंदे हम!! रौंध-रौंध के...थाप-थाप के... सजग प्रहरी-सी संभाल से... देकर भीतर से सहारा! रचा तूने ओ सृजनहारा!! सारी खर-पतवार निकाली... जितने भी खोट के थे उगे! सारे कंकड़-पत्थर बीने... जो घट की सुंदरता छीने!! अहंकार की गांँठ कुचल के! दी विनम्रता की लुनाई!! अज्ञानता की गहन कारा से ले चला निकाल, पकड़ बाहें.. ज्ञान के आलोकमय पथ पर.. निज साँसों की ऊर्जा देकर!! प्रभु ने तो बस जन्म दिया! गुरु ने जीवन को अर्थ दिया!! आहार निद्रा भय मैथुन से उठा... धर्म कर्तव्य का पाठ पढ़ाया!! पशुता की कोटी से निकाल... मनुजता के आसन पर बिठाया!! लोभ मोह ईर्ष्या द्वेष स्वार्थ से ऊपर स्नेह सौहार्द्र त्याग परोपकार बताया!! बताया: हम हैं कुल से विखण्डित जीवात्मा! सर्वोपरि है सृष्टि कर्ता ग...
नारी का सम्मान
कविता

नारी का सम्मान

पुजा गुप्ता बुढार (शहडोल) ******************** मुझे कुछ करना है, आत्म निर्भर बनना है।२ घर को खुब सज़ा लिया है।२ अब खुद को साबित करना है। मुझे कुछ करना है, आत्म निर्भर बनना है। कैसे- तुम यहां मत जाना, तुम वहां मत जाना।२ बचपन से टोका जाता है। तुम दो घर की इज्ज़त हो, बस यही तो सिखाया जाता है। बस हमारे पास आस है।२ मुझे कुछ करना है, आत्म निर्भर बनना है। सब रोक टोक सह के मै आज ससुराल को चली।२ मायके की इज्ज़त सम्भाल के, ससुराल की इज्ज़त बनाने चली। हो गई बेटी पराई-२ उसे भी कुछ करना है, आत्म निर्भर बनना है। मुझे कुछ करना है, आत्म निर्भर बनना है। किचन से लेकर बेडरूम तक,२ तुमने अपना हर काम निभाया है। पर- पर वाह रे नारी अपना सम्मान नही बना पाया है। देके उनको चिराग उनका,२ यह तुमने जतलाया है। कमी नहीं तुम्हारे कोख में,२ बस यही तो बतला पाया है। हां अब हमें इन सब ...
गुरु के ओ ज्ञान लिखूंँ
कविता

गुरु के ओ ज्ञान लिखूंँ

राम रतन श्रीवास बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ******************** शिक्षक या गुरु के ओ ज्ञान लिखूंँ, गागर में सागर के ओ बात लिखूँ। जीवन में हर सोपान बहुत , ज्ञान के अजस्त्र प्रकाश लिखूँ ।। गुरु के ओ ज्ञान लिखूंँ.... हर शब्द में ताप के विवेक लिखूँ, सामान्य विषय के संवाद लिखूँ। जीवन में गणित के विभाग रहे, या जीव उत्पत्ति के सार लिखूँ।। गुरु के ओ ज्ञान लिखूंँ.... प्रिज्म के ओ सब रश्मि लिखूँ , पदार्थ तत्व में गुरु के ज्ञान लिखूँ। इस जहांँ में भूगोल के भाग रहे, इतिहास के ओ विशेषज्ञ लिखूँ।। गुरु के ओ ज्ञान लिखूंँ.... नागरिकता में उनके प्रतिभा लिखूँ, राजनीति के ओ आख्यान लिखूँ । अंतस के हर बसंत शाख में, गुरु बिन ज्ञान कैसे सौभाग्य लिखूँ।। गुरु के ओ ज्ञान लिखूंँ.... ललित कलित हर बात लिखूँ, हर खेल के हर दांव लिखूँ। नयन के बदले हर भाव बहुत, गुरु के नेह भरे स्वभाव लिखूँ।। ग...
सैनिक
कविता

सैनिक

आशीष कुमार मीणा जोधपुर (राजस्थान) ******************** आओ उनका यश गान करें। हारी बाज़ी मौत से लेकिन अमर कहानी लिखी गई। रक्षा को भारत माँ की इक कुर्बानी लिखी गई। हर सैनिक का मान करें। आओ उनका यश गान करें। सरहद की पहरेदारी में आतंक की इस बीमारी में तिरंगे की लाज बचाने को माटी का कर्ज चुकाने को। जब तक थी जान लड़े तब तक। कुछ उन पर भी अभिमान करें। आओ उनका यश गान करें। सरहद से युद्ध निकलकर जब रिश्तों तक आ फैला है। बेटे की अर्थी ढोकर बूढा बाप अकेला है। राखी वाले हाथ नहीं अब किससे जिद, अरमान करें। आओ उनका यश गान करें। मां की आंखों में सूनापन बिखर गए हैं कितने बचपन सिंदूर मिटा है माथों से मेहंदी छूटी है हाथों से। उनका भी कुछ ध्यान करें। आओ उनका यश गान करें। परिचय :- आशीष कुमार मीणा निवासी : जोधपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रच...
अभिमान के कारण
कविता

अभिमान के कारण

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** मान अभिमान के कारण में, उजड़ गए न जाने कितने घर। हँसते खिल खिलाते परिवार, चढ़ गये इसकी भेंट। फिर न मान मिला, न ही सम्मान मिला। पर आ गया अभिमान, जिसके कारण रूठ गये परिवार।। हमें न मान चाहिए, न सम्मान चाहिए। बस आपस का, प्रेम भाव चाहिए। मतभेद हो सकते है, फिर भी साथ चाहिए। क्योंकि अकेला इंसान, कुछ नहीं कर सकता। इसलिए आप सभी का, हमें साथ चाहिए।। यदि आप सभी आओगें, एक साथ एक मंच पर। तो मंच पर चार चाँद, निश्चित ही लग जायेंगे। भिन्न भाषाओं और क्षैत्र जाती, होने के बाद भी। जब एक साथ मिलेंगे, तभी हम हिंदुस्तानी कहलायेंगे।। छोड़ दे जो तू अभिमान तो तेरी ये काया बदल जायेगी। मन प्रसन्न और दिल खिला हुआ होने से नया स्वरूप दिखेगा। तब तेरी जीवन शैली सच में तुझसे कुछ नया करवाएगी। जिसके कारण ही तुझे समाज में मान सम्मान...
मन में खटके बात
कविता, छंद

मन में खटके बात

गाज़ी आचार्य 'गाज़ी' मेरठ (उत्तर प्रदेश) ******************** रीत यहाँ की देख के, मन में खटके बात | मनुज विवेकी कौन थे, जिसने बाँटी जात || [१] पीड़ा जग की देख के, मन में खटके बात | कौन कर्म है आपके, व्यथा भोग दिन-रात || [२] गुड से मीठे बोल है , थाम चले है हाथ | पग - पग मेरे साथ है, देत गैर का साथ || [३] बेमतलब है ये हँसी, मन में खटके बात | पर्तें मुख पर लाख है, दिखते है जज़्बात || [४] ऊँचे उसके बोल है, वार्ता करे अकाथ | आन शीश विपदा खड़ी, जोड़ फिरे जग हाथ || [५] माथे पर है सिलवटें, मन में खटके बात | डोल रहे करते भ्रमण, साँझ न देख प्रभात || [६] परिचय :- गाज़ी आचार्य 'गाज़ी' निवासी : मेरठ (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय ए...