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कविता

हिंदी भाषा निराली
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हिंदी भाषा निराली

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** हिंदी भाषा सबसे अच्छी, लगती हमको प्यारी हैं। सारे जग में देख लिया, यह सबसे बड़ी निराली हैं।... हिन्दोस्तां की ज़ुबान है, भारतवंशी का अभिमान है। प्यारें वतन की शान है, हम सबकी पहचान है। हिंद राष्ट्र की आशा हिंदी, हम सब मातृभाषी है। सारे जग में बोली जाये, बस इसके अभिलाषी है। हिन्दी भाषा सबसे अच्छी....। गणराज्य की अधिकारिक भाषा, हमारी संस्कृति का प्रतीक है। राष्ट्रभक्ति को प्रेरित करती, धारा प्रवाह में बड़ी सटीक है। दुनिया में सम्मान है इसका, हमें स्वाभिमान दिलाती है। गौरव भाव जगाती सब में, निम्न उच्च का भेद मिटाती है। हिन्दी भाषा सबसे अच्छी....। परिचय :- महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' निवासी : सीकर, (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रच...
बिखरती पंखुड़ियों की आह!
कविता

बिखरती पंखुड़ियों की आह!

रजनी झा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कली-सी कोमल कन्या थी वो, खिल भी अभी ना पाई थी, हाय रे! तेरा पापी मन जिसमें हैवानियत छाई थी, कैसे तेरे हाथ ना कापें, उस कोमल कपोल को तोड़ने में, हैवानियत की हद पार कर दी तूने, अपने चित्त को भरने में, था कसूर उस किशोरी का क्या, ये आज बड़ा सवाल है, क्या बेटी बनकर जन्मी थी इसलिए हुआ उसका ये हाल है? क्यों हिय पे वश नही था तेरे, क्यों राक्षस बन उजाड़ा, उस कन्या का उज्ज्वल सवेरा, दिया है जख्म उसे जो तूने, कभी ना भर पाएगी, दुनिया की कोई दवा उस पे असर ना दिखलाएगी, तुझको फांसी मिलने पर भी हमें तरस ना आएगी, उस बाला की बदहाली पर ये, उठता बड़ा सवाल है, क्या बेटी बनकर जन्मी थी इसलिए हुआ उसका ये हाल है....??? परिचय :  रजनी झा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलि...
हिन्दी है भारत की पहचान
कविता

हिन्दी है भारत की पहचान

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** (१४ सितम्बर २०२१ को हिंदी दिवस पर राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता सृजन प्रतियोगिता प्रतियोगिता विषय हिंदी और हम में तृतीय स्थान प्राप्त कविता।) पंक्तियाँ - १९ हिंदी है गौरव गान की भाषा ... हिंदी है हिदुस्तान की आशा ... वाचन में बेहद सरल हैं, लेखन में बहुत आसान हैं ... पठन में सहज सुबोध हैं, हिंदी ही मेरी पहचान हैं ... हिंदी है जन-संपर्क की भाषा.... हिंदी हमारी मान है, हिन्दी में ही राष्ट्रीय गान है ... हिंदी हमारी शान हैं, हिन्दी ही मानस वरदान हैं ... हिंदी है जन-संपर्क की भाषा.... हिंदी हमारी आत्मा है जो भावनाओं की साज़ है ... हिंदी विचारों की माला हैं जो अंतर्मन की आवाज़ है ... हिंदी है जन-संपर्क की भाषा.... हिंदी ही हमारी सहारा हैं, जो प्राणों में बहती धारा हैं ...
हिंदी की महत्ता
कविता

हिंदी की महत्ता

डॉ. उमेश पटसारिया डबरा, ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** १४ सितम्बर २०२१ को हिंदी दिवस पर राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता सृजन प्रतियोगिता प्रतियोगिता विषय हिंदी और हम में द्वितीय स्थान प्राप्त कविता। पंक्तियाँ - १२ विधा - मुक्तक मापनी - १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ सनातन और है सबसे पुरातन सभ्यता हिंदी। धरा पर बह रही बनके त्रिपथगा और कालिंदी। करे मां भारती के भाल को ऐसे सुशोभित ये, चमकती नववधू के भाल पर जैसे लगी बिंदी। रखे जो जोड़कर सबको वही इक डोर है हिंदी। मिटा दे जो तमस को वो सुहानी भोर है हिंदी। बहे हर भाव को लेकर धरा पर इस तरह से ये, जहां साहिल मिले सबको कि पावन छोर है हिंदी। जहां तुलसी कबीरा ने बढ़ाया मान हिंदी का। वहीं पर आज क्यूं धूमिल हुआ सम्मान हिंदी का। उठाएं आज हम मिलकर कसम ये देश के वासी, करेंगे हम सभी मिलकर सदा उत्थान ...
हिन्दी और हम
कविता

हिन्दी और हम

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** (१४ सितम्बर २०२१ को हिंदी दिवस पर राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता सृजन प्रतियोगिता विषय हिंदी और हम में प्रथम स्थान प्राप्त कविता।) पंक्तियाँ - १२ गोमुख से जैसे आकर गंगा निर्मल निकली देवभाषा संस्कृत से पावन हिन्दी प्रबल निकली।।१।। धरा को सरस सुहावन, पतित पावन बनाती सुरसरी सरकती सचल निकली।।२।। भाव-भाषा, ज्ञान-विज्ञान को संग लेकर हिन्दी प्रमुदित, हर्षित, चहुँदिश सजल निकली।।३।। जन-मन को हरषाती, अति पुलक बढाती देश-विदेश बढती, सरसाती सकल निकली।।४।। गद्य-पद्य में कवि व लेखकों को अपनाती गौरव-गान गाती, गीतों में मचल निकली।।५।। गाय, गंगा, गीता सी परम पावनी हिन्दी जन-मन भाती हिन्दी, सर्वत्र सबल निकली।।६।। परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखन...
मेरा प्यारा घर
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मेरा प्यारा घर

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक प्यारा सा है घर मेरा, जहाँ है मेरे अपनों का बसेरा।। यहाँ महकते हैं रिश्ते, धड़कता है दिल मेरा, खिड़की पर है चिड़ियों की गुंजन, आँगन में तुलसी की छाया।। सर्दी, गर्मी, बारिश, हर मौसम की मार से, यही है बचाता, त्योहारों की गरिमा को भी, हर बार यह बखूबी निभाता।। कभी लहराता तिरंगा ऊपर, कभी दीवाली के दीपों से जगमगाता, कभी गूंजता शंखनाद, तो बच्चों की हँसी से खिलखिलाता।। मिलता है जो सुक़ून घर पर, उसे न कोई कहीं ओर है पाता, ईंट, पत्थरों, सीमेंट का मकान नहीं, यह हमारा प्यारा घर है कहलाता।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा पत्र : मैं...
सिद्धि विनायक
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सिद्धि विनायक

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** जय जय जय गणपति बप्पा तुम्ही हो सबके पालन कर्ता, सिद्ध सबके काज कराते मूस की सवारी करते ..!! जय जय जय गणपति बप्पा तुम्ही हो सबके पालनकर्ता ..!! मात-पिता के आप सेवक बुद्धि के आप हो प्रेरक, लड्डू को जो भोग लगावे रिद्धि-सिद्धि संग पधारे ..!! जय जय जय गणपति बप्पा तुम्ही हो सबके पालनकर्ता ..!! घर-घर मे पूजन होवे बप्पा की सब जय जय गावे, पिता महादेव और माता पार्वती संग पधारो जल्दी मेरे अविनाशी ..!! जय जय जय गणपति बप्पा तुम्ही हो सबके पालनकर्ता ..!! प्रथम आपका पूजन होवे बाद आपके इष्ट बुलावे, जो भी द्वार तुम्हारे आता खाली हाथ कभी ना जाता जय जय जय गणपति बप्पा तुम्ही हो सबके पालनकर्ता ..!! देवलोक के तुम सरताज सुन ले गजानन मेरी पुकार, मनोकामना पूर्ण करो दुःखो से नैया पार करो ..!! जय जय जय गणपति बप्पा त...
आज की हिन्दी
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आज की हिन्दी

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कछुआ कदमों की चाल कथा, बचपन से ही जानी है। नए भारत की हिन्दी प्रथा, पुल बनी राजधानी है। तब बचपन का चंदा मामा, अब चन्द्रलोक यात्रा है। शोधपरक हिन्दी वृत्तांत में, भाव शब्द की मात्रा है। आजादी रण के सहयोगी साहित्य पात्र पात्रा है। पुरातन ज्ञान सभ्यता रीति, बहुत प्रखर निशानी है। कछुआ कदमों की चाल कथा, बचपन से ही जानी है। नए भारत की हिन्दी प्रथा, पुल बनी राजधानी है। गति प्रगति चाल सदा दिखती, वांछित जगह निराली है। अनेक राज्य संघ क्षेत्र में, हिन्दी छटा हरियाली है। अंग्रेजी वर्चस्व के साथ, हिन्दी प्रेम तो आली है। जीवन-मूल्य संस्कारों की, सच पहचान करानी है। कछुआ कदमों की चाल कथा, बचपन से ही जानी है। नए भारत की हिन्दी प्रथा पुल बनी राजधानी है। जो यौगिक मौलिक भौतिक है, सारी दुनिया गूंजा ह...
मुहब्बत
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मुहब्बत

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** आंखों में थी आरज़ू मुलाकात की। सागर जानता है बेबसी बरसात की। न सही मैं बनूं हमसफ़र आपका, क्यों हुई यूं बेदखली जज़्बात की। याद आपकी आई नदी बाढ़ सी, भूलने का तरीका बता ख्यालात की। लौट के सो गए परिंदे शाम के, मैयखाने से खबर नहीं रात की। सुना हूं दीवारों के कान होते हैं, करूं किससे चर्चें इस बात की। इतनी बेगैरत नहीं मुहब्बत हमारी, चांद से पूछ्ते है तारें औकात की। रिश्तों के अदब की नजीर रह गई, नहीं दुनिया देती दाद मेरी बिसात की। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी ...
मेरे साथ
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मेरे साथ

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** जब योवन पर आती नदियाँ मछलियाँ तब नदी के प्रवाह के विपरीत प्रवाह पर तेरती छोटी-छोटी धाराओं पर चढ़ जाती सीधे नदियाँ मिलना चाहती समुद्र से मछलियाँ देखना चाहती नदियों का उदगम सागर से मिलती जब नदियाँ लाती साथ में कूड़ा करकट सागर को बताने ऐसे हो जाती है दूषित प्रदूषण फ़ैलाने वालों इंसानों से जल को स्वच्छ बनाने के लिए बहकर जाती नदियाँ मछलियों से कहती बस तुम ही तो हो मुझे स्वच्छ बनाने वाली और तुम्हारे सहारे ही मै रहूंगी भी कुछ समय जीवित तब तक जब तक तुम रहोगी मेरे जल में मेरे साथ परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों मे...
चांद पर पग
कविता

चांद पर पग

आकाश सेमवाल ऋषिकेश (उत्तराखंड) ******************** करने वाले कर गये। चांद पर पग धर गये। थी विफलता अनगिनत, पर अंततः,उतर गये। चांद पर पग धर गये। क्या भला उनका नहीं, ऊंचाईयों से मन कांपा होगा? जब धरा के सब समंदर, पर्वतों को लांघा होगा। पर संभाला उर को निज, नित नया कुछ कर गये। चांद पर पग धर गये।। जब आसमां की गोद ने, उनका पथ, भटकाया होगा। क्या उमडते, मेघों से, मन उनका न, घवराया होगा? पर धरा धीरज हृदय में, धीर होकर चल गये। चांद पर पग धर गये।। परिचय :- आकाश सेमवाल पिता : नत्थीलाल सेमवाल माता : हर्षपति देवी निवास : ऋषिकेश (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र क...
जीवन
कविता

जीवन

नीलू कानू प्रसाद उदलाबारी (पश्चिम बंगाल) ******************** जीवन है हमारा इंसान का पर अहंकार है समुंद्र सा बड़ा! "मैं" कुछ ऐसे भी गरीबी देखी हूं! जिसके पास पैसे के सिवा कुछ नहीं है! किसी को इज्जत यह देखकर मत करो! कि वह कितना बड़ा महान पुरुष है ! बल्कि यह देखकर करो कि वह उसके काबिल है या नहीं यह नहीं होना चाहिए कि रास्ता सही हो! "बल्कि हमारे साथ कुछ ऐसा हो जहां पांव रखे वो रास्ता सही हो जाए" परिचय :- श्रीमती नीलू कानू प्रसाद निवासी : उदलाबारी (पश्चिम बंगाल) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताए...
पतझड़ के बाद बसंत
कविता

पतझड़ के बाद बसंत

जगदीशचंद्र बृद्धकोटी जनपद अल्मोड़ा (उत्तराखंड) ******************** हरे भरे वृक्षों की छाव में वह कोयलों की बोलियां, सुन खिल उठा आनंद से मन मुग्ध होने है चला। पतझड़ में मौसम टूटता सा लगे सब कुछ छूटता सा, वृक्ष की हर एक डाली पतझड़ में हो जाती है खाली। लेकिन बसंत बहार लाया मौसम में पूरा प्यार लाया, खिल उठे हैं प्रत्येक वृक्ष कर रही कोयल आज नृत्य। हो पुनः विकसित वृक्ष होकर यह हमें बतला रहा है , क्यों भागता है मूर्ख प्राणी अब बसंत तो आ रहा है । जीवन में आए अगर पतझड़ मार्ग ना छोड़ो कभी, नित रोज के संघर्ष में एक दिन बसंत तो आएगा। बिन ज्ञान जीवन के सफर का आज या कल अंत है, पतझड़ के बाद बसंत है पतझड़ के बाद बसंत है परिचय :- जगदीशचंद्र बृद्धकोटी निवासी : जनपद अल्मोड़ा (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेर...
छत्र-छाया में
कविता, स्मृति

छत्र-छाया में

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** होता परिवार छत्रछाया में, कितने निश्चिंत रहते आज | पिता होते नब्बे वर्ष के आज, माताश्री होती तिरासी वर्ष की आज || जीने नहीं दिया बावन वर्ष भी, सपने देखता नब्बे वर्ष का | जननी भी तो जी नहीं सकी, जीवन अपना नब्बे वर्ष का || मूल्य आदर्शो के धनी पिता का, अनुशासन हम पर सदा रहता | वैदिक नियम के दृढ पालन से, अनुशासित मन सदा रहता || जीवन संघर्ष की प्रबल शिक्षा, मिलती पिता के जीवन से | संस्कार संयम की संयुक्त शिक्षा, मिलती रहती माँ के जीवन से || यदि होते दोनों सिर पर आज, परिवार हमारा अलौकिक होता | चलता शासन पिता का आज, समाज हमारा अलौकिक होता || न होती जयंती-पुण्यतिथि की चर्चा, जन्मोत्सव घर में होता आज | होती लधूनेश्वर महादेव की पूजा, पूजनोत्सव घर में होता आज || होता परिवार छत्रछाया में, कितने निश्चिंत रहते आज | ...
एक कदम
कविता

एक कदम

नितेश मंडवारिया नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** सुनो-सुनो-सुनो, ध्यान लगाकर सुनो। स्वच्छ भारत का सपना था, गांधी जी के ध्यान में।। स्वच्छ रहो-स्वच्छ रहो, गांधीजी के पथ पे चलो। भवन-गली या मोहल्ला, कही भी ना हो कचरे का हल्ला। हम सबको आगे आना है स्वच्छता को अपनाना है।। पर्यावरण को बचाना है, कूड़ा-करकट गंदगी को हटाना है। सुनो-सुनो-सुनो, ध्यान लगाकर सुनो। विद्यालय-मंदिर हो या सार्वजनिक क्षेत्र, सबको साफ रखना है। हर घर आंगन को चमकाना है, स्वच्छता को अपनाना है।। हर घर जन्मोत्सव पर एक पेड़ लगाना है। प्रकृति को बचाना है, पॉल्यूशन को हटाना है।। सुनो-सुनो-सुनो, ध्यान लगाकर सुनो। हर घर शौचालय का करे उपयोग, बच्चे-बूढे और जवान। हम सबको बात समझनी है, भयंकर बीमारियों से बचना है।। स्वच्छ रहो-स्वच्छ रहो, गांधीजी के पथ पे चलो। हम सबको प्रतिज्ञा...
जीने का सलीका
कविता

जीने का सलीका

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** तुम शब्दों की बात करते हो हम तुम्हें निशब्द ही घायल कर देंगे। तुम खूबसूरती की बात करते हो हम तुम्हें सादगी से ही कायल कर देंगे। तुम हमें आधुनिकता के बोझ तले दबाते आये हो हम तुम्हें अपनी परंपराओं के बल पर ही उठ कर दिखा देंगे। तुम हमें दिखावे में पनपनमा सिखाते हो हम तुम्हें सादगी से ही तुम्हें जीना सिखा देंगे। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
रिमझिम-रिमझिम
कविता

रिमझिम-रिमझिम

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** रिमझिम-रिमझिम बारिश है छिमछिम, भीगने से अपने को, सदा ही बचाइए। बारिश में लेलो छाता, बहुत जरूरी नाता, इसको कभी भी मत, भूल से भुलाइये। भूले यदि तुम छाता, बने सरदी से नाता, जान बूझ कर कभी, रोग न बुलाइये। मानो तुम मेरी बात, कितनी हो बरसात, घर मे रहकर ही, पकौड़ी बनाइये।। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : तिलसहरी कानपुर नगर संप्रति : शिक्षक विशेष : अध्यक्ष राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच उत्तरीभारत इकाई, रा.उपाध्यक्ष, क्रांतिवीर मंच, रा. उपाध्यक्ष प्रभु पग धूल पटल, रा.मीडिया प्रभारी-शारदे काव्य संगम, प्रभारी हिंददेश उत्तरप्रदेश इकाई साहित्यिक गतिविधियां : विभिन्न ...
दो शब्द
कविता

दो शब्द

राजीव रावत भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** जिंदगी और मोहब्बत की ऊंचाइयों में एक बहुत ही अजीब अंतर होता है-- एक का पैमाना छूना आकाश के तारों को और दूसरे का समुन्दर होता है- जब जिंदगी में सीढ़ियों को चढ़ते हुए चांद तारों को तोड़ लाते हैं, सफलता के झंडे जब हमारे चारों ओर फहराते हैं- यही पैमाना ही जिंदगी की तब ऊंचाइयों का नाप होता है-- और मोहब्बत में जितना डूबो देते हैं अपने आप को उतना ही उसके इश्क की बुलंदियों का माप होता है-- मोहब्बत शरीर से हो या नश्वर से कोई अंतर नहीं होता है-- बस डूब कर उबरना ही इसका मंतर होता है- जितना डूब जायेंगे और थाह ले लेगें गहराईयों की- उतनी सीढ़ियों अपने आप चढ़ जायेगें आस्था और मोहब्बत की ऊंचाइयों की- माना की मोहब्बत की राह कटंको और रूकावटों और बंधनों से भरी दुरूह होती है- लेकिन मात्र तन की अभिलाषा प्यार-इश्क-म...
हमारी आन बान शान है हिन्दी
कविता

हमारी आन बान शान है हिन्दी

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** हमारी आन बान शान है हिन्दी हमारी अपनी पहचान है हिन्दी आँग्ल भाषा आये या कि जाये यही हमारी भूषित भाल बिन्दी कलेवर भाव भाषा व ज्ञान के अप्रतिम क्षमता हैं पहचान के नित नये आयाम को गढती सरकती, बहती और बढती विविध बोलियों को अपनाती अपनी छाप सर्वत्र छोड़ आती यही तो कैलाशपति की नन्दी यही है हमारी अपनी हिन्दी इसमें तुलसी सूर कबीर मीरा केशव भूषण मतिराम धीरा प्रसाद, पंत, महादेवी, निराला दिनकर मैथिली शरण आला अनगिन मनीषियों के विचार व्यक्त हुये हैं लेकर सदाचार वहन करती ज्ञान की गंगा इसमें रहते मुरलीधर त्रिभंगा यह भाषा नहीं वरदान है हिन्दी स्वदेश का स्वाभिमान है हिन्दी हृदय में बसी हुई आन है हिन्दी हमारी यही पहचान है हिन्दी। परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखनऊ शिक्षा : एम....
अभिवादन
कविता

अभिवादन

डॉ. सरोज साहू भिलाई, (छत्तीसगढ़) ******************** हिंदी से प्रेम है तो, अभिवादन करना सीख जाइए, सॉरी सॉरी कह कर, गलतियां न दोहराइये, माफ कीजिए कहकर, माफी ले जाइए, हिंदी से प्रेम है तो, अभिवादन करना सीख जाइए, गुड मॉर्निंग बोलकर, अंग्रेज न बनते जाइये, सुप्रभात कहकर, दिन को सुंदर बनाइए, हिंदी से प्रेम है तो, अभिवादन करना सीख जाइये, गुडबाय से लगता है ऐसे, जैसे जल्दी नाता छुडाइये, फिर मिलेंगे कहकर, आत्मीयता बढाइये, हिंदी से प्रेम है तो, अभिवादन करना सीख जाइए..!! परिचय :- डॉ. सरोज साहू निवासी : भिलाई, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्...
नहीं शर्म मुझे कहने में
कविता

नहीं शर्म मुझे कहने में

रिंकी कनोड़िया सदर बाजार दिल्ली ******************** नहीं शर्म मुझे कहने में, यह मेरी भाषा है! जिससे मेरा आधार बना, मेरी संस्कृति से जिसका नाता है! खूब सीखा है मैने इसके अस्तित्व से, यह सबसे प्यारी है! सोचू जिस भाषा में, तो बोलने में क्यों हिचक जारी है? बना था जिससे और हूँ जिससे, वो मेरी हिंदी न्यारी है! इतिहास और साहित्य की जुड़ी कड़ी इससे भारी है, आज हिंदी दिवस पर इसके सम्मान की बारी है! गर्व से कहता हूँ, यह हिंदी हमारी है! यह हिंदी हमारी है!. परिचय :- रिंकी कनोड़िया निवासी : सदर बाजार दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अ...
श्री सरगम महान
कविता

श्री सरगम महान

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** श्री सरगम गुरु सबसे महान नितिन कहे श्री की कथा महान है सबसे महान गुरु गुणगान तर जाए जगत कर गुरु अमृत पान प्रशंसा गूंज रही चहुं दिशाओं से बरस रहा श्री ज्ञान बड़ी दुआओं से छात्र पहुंच रहे बड़े मन भाव से ताकि हो शीतल उस अमृत पान से प्रशंसा मेरे कानों तक भी पहुंच गई कानों में मधु मन में इच्छा छोड़ गई मैं भी श्री सरगम दर्शन पाऊं तुच्छ जीवन को भव पार लगाऊं सो जा ग्राम में शरण में उनकी किए बिना कोई सोच विचार तब मिली शांति मुझको मनकी शांत हो गया मन का हाहाकार हाथ रख कर श्री ने सिर पर मेरे कोमल स्वर में ऐसे बोले मधु झड़ रहा हों घर से उसके ले लेकर मंद पवन के झटके पुत्र तेरे सारे कष्ट कट जाएंगे तेरी ही मेहनत के कारण तेरे मार्ग प्रस्त हो जाएंगे मैं कुछ नहीं करूंगा फिर भी अपनी ही मेहनत के कारण तू समस्त लक्ष्य पा जाएग...
राष्ट्र का मान
कविता

राष्ट्र का मान

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** हिंदी है हमारे, राष्ट्र का मान, जग मेँ मिला है इसे सम्मान, गति इसकी कभी न रुक सकी, इसकी प्रगती का हमेँ अभिमान, बहुत दम्भ था आंग्ल भाषा को, हिंदी को मिल गया तीसरा स्थान, नहीँ वो दिन, अब अधिक दूर, हिंदी को मिलेगा सर्वोच्च स्थान, मृग मरीचिका है, विदेशी भाषा, रक्खो सदा तुम, इसका ध्यान, नासा मानता इस शक्ती का लोहा, होना चाहिये सबको इसका भान, सँगणक की अब भाषा,होगी हिंदी, गर्व से करो, इसका मान सम्मान करनी है शुरुवात नये पहल की, गर्व से गाओ हिंदी के सब गान परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक ...
उभर आती हो तुम ग़ज़ल बनकर
कविता

उभर आती हो तुम ग़ज़ल बनकर

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** अपने अल्फाजौं को सजाया है तुम्हारे लिए खुबसूरत ग़ज़ल के रूप में, सामने जब भी आते हो एक नये अंदाज में संवर जाती हैं जिन्दगानी मेरी, बन के लबौं पर आ जाती हो ग़जल बनकर । आरज़ू यही है बस तुम्हारी खुशी में ही है छिपी मेरी खुशी, उल्फत में जलजाने की परवाने की तरह चाहत लिए संवर जाती है जिन्दगी मेरी एक नई ग़ज़ल बनकर । परिंदों की उड़ान भरने लगती जब मेरी तमन्नाएं खूबसूरत असमान के क्षितिज पर नई तस्वीर बन जाती हो तुम मेरी ग़ज़ल बनकर। खिलते कुसुम पर मुस्कुराती शबनम, उषा की किरणों की हंसीन लालीमा लिए गगन अल्फ़ाजौं में उनकी मासूमियत संवर जाती हैं, एक नये अन्दाज लिए और लबौं पर उभर आती हो तुम ग़ज़ल बनकर । परिचय :- गगन खरे क्षितिज निवासी : कोदरिया मंहू इन्दौर मध्य प्रदेश उम्र : ६६वर्ष शिक्षा : हा...
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कविता

हिंदी भाषा

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हिंदी का गुणगान निरन्तर, करता रहता है जग सारा। जय बोलो हिंदी भाषा की, हिंदी से सम्मान हमारा। कोटि-कोटि कंठों को प्यारी, बिटिया है वैदिक भाषा की। हिंदी तो सस्वर प्रतिमा है, भारत माँ की अभिलाषा की। देवनागरी लिपि है अनुपम, सरल व्याकरण इसका न्यारा। जय बोलो हिंदी भाषा की, हिंदी से सम्मान हमारा। ब्रज, अवधी या बुन्देली हो, अथवा कन्नोजी हो बोली। मुखरित होती हैं भारत में, हिंदी की हैं सब हमजोली। भारत के जन-जन ने इसको, अपनाया है बहुत दुलारा। जय बोलो हिंदी भाषा की, हिंदी से सम्मान हमारा। दूर देश में भी हिंदी ने, विजय पताका फहराई है। कहाँ नहीं हिंदी की महिमा, कहाँ नहीं हिंदी छाई है। सभी दिशाएँ हुईं साक्षी, गूँज रहा हिंदी का नारा। जय बोलो हिंदी भाषा की, हिंदी से सम्मान हमारा। परिचय -  रशीद अहमद शे...