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कविता

मैं एक शिक्षक हूं
कविता

मैं एक शिक्षक हूं

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** आज मैं एक शिक्षक हूं । शिक्षा देने का दायित्व है । मुझ पर मैं अपने । दायित्व का निर्वाह । पूर्ण ईमानदारी और निष्ठा से । कर रही हूं । मैं बहुत सौभाग्यशाली हूं । मुझे शिक्षक होने पर । बहुत गर्व है,ईश्वर ने मुझे विद्यार्थियों का जीवन । संवारने का अवसर । प्रदान किया । मेरे शिक्षक बनने के पीछे । मुझे ज्ञान प्रदान करने वाले । समस्त शिक्षकों को मैं शत-शत। नमन करती हूं,जिन्होंने मेरे । जीवन में ज्ञान का प्रकाश भर । मुझे शिक्षक पद योग्य बनाया । शिक्षक से बचपन में डांट भी । खाई अब समझ आया। मेरे शिक्षक मुझे और मेरे जीवन । गढ़ने का भरपूर प्रयास करते थे । मेरे जीवन में आए समस्त शिक्षकों का। मैं हृदय तल से बहुत-बहुत आभारी हूं । मेरे शिक्षकों की निस्वार्थ । ज्ञान भरने का परिणाम । मेरे सम्मुख है...
गुरु
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गुरु

डॉ. सत्यनारायण चौधरी "सत्या" जयपुर, (राजस्थान) ******************** शिक्षक वह जो करें मार्ग प्रशस्त। जिसके सीख से अज्ञान हो अस्त। जीवन को मिलता नव संगीत। वही सद्चरित और उन्नति का मीत। गुरु ही तो होता है खेवनहार। वही पार लगाए अपनी पतवार। गुरु दीये सा खुद ही जलता। खुद जलकर अँधियारा हरता। गुरु का ज्ञान मिले जो हम को। सफल बना दे जीवन को। गुरु ही मिलाये गोविंद को। कर दो न्यौछावर तन मन को। जिससे सीख मिले वह शिक्षक। वही हमारा है जीवन रक्षक। कोरे कागद का वह चित्रकार। वही गीली मिट्टी का कुम्भकार। गुरु संदीपन की कृपा से कान्हा से श्रीकृष्ण कहलाये। गुरु वशिष्ठ की शिक्षा पाकर, भगवान राम भी मर्यादा पुरूषोत्तम कहलाये। जो है हमारा पथप्रदर्शक। वही गुरु है, वही है शिक्षक। गुरु की महिमा का न कोई पार। उसके बिन अधूरा जीवन संसार। गुरु की गरिमा के आगे, मैं लघु मानव क्या-क्या ...
शिक्षक/ सद्गुरु
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शिक्षक/ सद्गुरु

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** ओजस्वी दीपक, युग दृष्टा होते है शिक्षक। नवचेतना, ज्ञान, वैभव के धारक होते है शिक्षक। वर्ण विधान, भाषा अलंकरण होते है शिक्षक। आत्मनिर्भर, स्वाध्याय के संबल होते है शिक्षक। ज्ञान उद्दीपक, अंत प्रेरणा के विश्लेषक होते है शिक्षक। हर युग के नायक, अद्भुत चित्रकार होते है शिक्षक। कर्तव्यनिष्ठा, सृजनशीलता के परिचायक होते है शिक्षक। कच्ची मिट्टी से महलों के सृजक होते है शिक्षक। खाद और जड़ विषय संम्प्रेषक होते हैं शिक्षक। अमूर्त भावी पीढ़ी के मूर्तिकार होते है शिक्षक। ज्ञान के आलोक से अज्ञान विनाशक होते है शिक्षक। वाष्प कण से मेघों के शिल्पकार होते है शिक्षक। मां का वात्सल्य, पिता का आशीर्वाद होते है शिक्षक। नेह का अहसान, बहन का आलिंगन होते है शिक्षक। वशिष्ठ, विश्वामित्र, चाणक्य, राधाकृष्णन होते है शिक्षक। द...
स्त्री मन
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स्त्री मन

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भीगे कपड़े पसारते हुए छू जाता है गीले कपड़ों का अपनापन कुछ पलों के निजीपन याद आते ही बज उठता है संगीत मन का उतरते ही छत से खिसक आता है पास बच्चों के आने का पल संगीत भूल, मन हो जाता उद्वेलित शाम के खाने की जुगत में तभी याद आता छत पर भीगेगा अचार मन का संगीत हो जाता कुछ खट्टा सुनाई देती है बुजुर्गों की खाँसी तीतर बितर हो जाता मन का संगीत चांवल चढ़ाते चूल्हे पर दाल छोंकते खनकती है चूड़ियां कलाई में बजती है पैरों की पायल नहीं गूंजती मन में फिर कविताओं की स्वर लहरियाँ महसूस नहीं होते आकाश में गीतों के मन्द मधुर स्वर सृजित हुए थे जो उषा के प्रकाश में पूरब के रुपहले तन से अलग होकर जो दूर कहीं खनकता है मन का संगीत।। परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्...
शिक्षक जीवन की आत्मा है
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शिक्षक जीवन की आत्मा है

रूपेश कुमार चैनपुर (बिहार) ******************** शिक्षक जीवन की आत्मा है, शिक्षक ही जीवन के परमात्मा है, बिन शिक्षक जीवन कहाॅं, शिक्षक जीवन की प्राणवायु है, शिक्षक बिन जीवन है अधूरा, खाली-खाली, सुना-सुना, शिक्षक जीवन की रोशनी है, शिक्षक जीवन का उजाला है, शिक्षक दुनियाॅं को राह दिखलाते, शिक्षक जीवन की मंजिल बनाते, शिक्षक जीवन के लिए मूल्यवान होते, शिक्षक जीवन को संवारते है, शिक्षक बिन जीवन की कल्पना नही होती, शिक्षक बिन ज्ञान की प्राप्ति नही होती, शिक्षक हमें चलना सिखलाते, शिक्षक हमारे ज्ञान की ज्योति जलाते हैं ! परिचय :- रूपेश कुमार छात्र एव युवा साहित्यकार शिक्षा : स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली यूपी) वर्तमान-प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी ! निवास : चैनपुर...
राज हंसिनी
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राज हंसिनी

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** सोनू! कभी आओ फुर्सत में मेरे पास मिल बैठें एक जान हम तुम कुछ तुम अपनी कहो कुछ मैं अपनी कहता हूं सुख-दुःख को साझा करते हैं मेरी खुशी तुझमें रहती है मेरे सारे गम मेरे अंदर कैद है मेरी चिन्ता तेरे अंदर सुलगती है तेरे बिन मैं मेरे बिना तुम जी ना पाएंगे हम तुम दो काया माया एक हैं हम दिल की धड़कन हैं एक दूजे के सांसों से जब सांस मिले नई साँसे उत्तपन्न होती है तुझे चोट लगती है तो दर्द मुझे होता है तेरे दर्द का सिलसिला मेरे दिल से ही गुजरता है सारा का सारा अस्तित्व मेरा आहत हो कराहता रहता है ये एहसासों का एहसास हम दोनों से जुड़कर प्यार का अहसास जगाता रहता है एक दूजे के बिन एक पल ना गुजरता है ना मैं तन्हा रह सकता हूँ ना ही तन्हा तुम एक पल गुजार सकती हो मिलकर कर जिंदगी चल सकती है जिस्म नही दिल हमारा अ...
शिक्षक
कविता

शिक्षक

मनीषा जोशी खोपोली (महाराष्ट्र) ******************** ईश्वर का प्रतिरूप हैं शिक्षक। श्रद्धा रूप अनूप है शिक्षक। संघर्ष से लड़ना सिखाते शिक्षक। राहों को सरल बनाते शिक्षक। हर अँधेरे में रोशनी दिखाते शिक्षक। कभी प्यार से, कभी डांट से हमको ज्ञान देते शिक्षक। हर पल बच्चो का भविष्य बनाते शिक्षक। जीवन के हर पथ पर सही गलत की राह दिखाते शिक्षक। जीवन जीने का पाठ पढ़ाते हैं शिक्षक। बच्चो के भाग्य बनाते है शिक्षक। परिचय : मनीषा जोशी निवासी : खोपोली (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहा...
गुरु
कविता

गुरु

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** गुरु! तुम हो सृजनहार धरा पर! और माटी के लोंदे हम!! रौंध-रौंध के...थाप-थाप के... सजग प्रहरी-सी संभाल से... देकर भीतर से सहारा! रचा तूने ओ सृजनहारा!! सारी खर-पतवार निकाली... जितने भी खोट के थे उगे! सारे कंकड़-पत्थर बीने... जो घट की सुंदरता छीने!! अहंकार की गांँठ कुचल के! दी विनम्रता की लुनाई!! अज्ञानता की गहन कारा से ले चला निकाल, पकड़ बाहें.. ज्ञान के आलोकमय पथ पर.. निज साँसों की ऊर्जा देकर!! प्रभु ने तो बस जन्म दिया! गुरु ने जीवन को अर्थ दिया!! आहार निद्रा भय मैथुन से उठा... धर्म कर्तव्य का पाठ पढ़ाया!! पशुता की कोटी से निकाल... मनुजता के आसन पर बिठाया!! लोभ मोह ईर्ष्या द्वेष स्वार्थ से ऊपर स्नेह सौहार्द्र त्याग परोपकार बताया!! बताया: हम हैं कुल से विखण्डित जीवात्मा! सर्वोपरि है सृष्टि कर्ता ग...
नारी का सम्मान
कविता

नारी का सम्मान

पुजा गुप्ता बुढार (शहडोल) ******************** मुझे कुछ करना है, आत्म निर्भर बनना है।२ घर को खुब सज़ा लिया है।२ अब खुद को साबित करना है। मुझे कुछ करना है, आत्म निर्भर बनना है। कैसे- तुम यहां मत जाना, तुम वहां मत जाना।२ बचपन से टोका जाता है। तुम दो घर की इज्ज़त हो, बस यही तो सिखाया जाता है। बस हमारे पास आस है।२ मुझे कुछ करना है, आत्म निर्भर बनना है। सब रोक टोक सह के मै आज ससुराल को चली।२ मायके की इज्ज़त सम्भाल के, ससुराल की इज्ज़त बनाने चली। हो गई बेटी पराई-२ उसे भी कुछ करना है, आत्म निर्भर बनना है। मुझे कुछ करना है, आत्म निर्भर बनना है। किचन से लेकर बेडरूम तक,२ तुमने अपना हर काम निभाया है। पर- पर वाह रे नारी अपना सम्मान नही बना पाया है। देके उनको चिराग उनका,२ यह तुमने जतलाया है। कमी नहीं तुम्हारे कोख में,२ बस यही तो बतला पाया है। हां अब हमें इन सब ...
गुरु के ओ ज्ञान लिखूंँ
कविता

गुरु के ओ ज्ञान लिखूंँ

राम रतन श्रीवास बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ******************** शिक्षक या गुरु के ओ ज्ञान लिखूंँ, गागर में सागर के ओ बात लिखूँ। जीवन में हर सोपान बहुत , ज्ञान के अजस्त्र प्रकाश लिखूँ ।। गुरु के ओ ज्ञान लिखूंँ.... हर शब्द में ताप के विवेक लिखूँ, सामान्य विषय के संवाद लिखूँ। जीवन में गणित के विभाग रहे, या जीव उत्पत्ति के सार लिखूँ।। गुरु के ओ ज्ञान लिखूंँ.... प्रिज्म के ओ सब रश्मि लिखूँ , पदार्थ तत्व में गुरु के ज्ञान लिखूँ। इस जहांँ में भूगोल के भाग रहे, इतिहास के ओ विशेषज्ञ लिखूँ।। गुरु के ओ ज्ञान लिखूंँ.... नागरिकता में उनके प्रतिभा लिखूँ, राजनीति के ओ आख्यान लिखूँ । अंतस के हर बसंत शाख में, गुरु बिन ज्ञान कैसे सौभाग्य लिखूँ।। गुरु के ओ ज्ञान लिखूंँ.... ललित कलित हर बात लिखूँ, हर खेल के हर दांव लिखूँ। नयन के बदले हर भाव बहुत, गुरु के नेह भरे स्वभाव लिखूँ।। ग...
सैनिक
कविता

सैनिक

आशीष कुमार मीणा जोधपुर (राजस्थान) ******************** आओ उनका यश गान करें। हारी बाज़ी मौत से लेकिन अमर कहानी लिखी गई। रक्षा को भारत माँ की इक कुर्बानी लिखी गई। हर सैनिक का मान करें। आओ उनका यश गान करें। सरहद की पहरेदारी में आतंक की इस बीमारी में तिरंगे की लाज बचाने को माटी का कर्ज चुकाने को। जब तक थी जान लड़े तब तक। कुछ उन पर भी अभिमान करें। आओ उनका यश गान करें। सरहद से युद्ध निकलकर जब रिश्तों तक आ फैला है। बेटे की अर्थी ढोकर बूढा बाप अकेला है। राखी वाले हाथ नहीं अब किससे जिद, अरमान करें। आओ उनका यश गान करें। मां की आंखों में सूनापन बिखर गए हैं कितने बचपन सिंदूर मिटा है माथों से मेहंदी छूटी है हाथों से। उनका भी कुछ ध्यान करें। आओ उनका यश गान करें। परिचय :- आशीष कुमार मीणा निवासी : जोधपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रच...
अभिमान के कारण
कविता

अभिमान के कारण

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** मान अभिमान के कारण में, उजड़ गए न जाने कितने घर। हँसते खिल खिलाते परिवार, चढ़ गये इसकी भेंट। फिर न मान मिला, न ही सम्मान मिला। पर आ गया अभिमान, जिसके कारण रूठ गये परिवार।। हमें न मान चाहिए, न सम्मान चाहिए। बस आपस का, प्रेम भाव चाहिए। मतभेद हो सकते है, फिर भी साथ चाहिए। क्योंकि अकेला इंसान, कुछ नहीं कर सकता। इसलिए आप सभी का, हमें साथ चाहिए।। यदि आप सभी आओगें, एक साथ एक मंच पर। तो मंच पर चार चाँद, निश्चित ही लग जायेंगे। भिन्न भाषाओं और क्षैत्र जाती, होने के बाद भी। जब एक साथ मिलेंगे, तभी हम हिंदुस्तानी कहलायेंगे।। छोड़ दे जो तू अभिमान तो तेरी ये काया बदल जायेगी। मन प्रसन्न और दिल खिला हुआ होने से नया स्वरूप दिखेगा। तब तेरी जीवन शैली सच में तुझसे कुछ नया करवाएगी। जिसके कारण ही तुझे समाज में मान सम्मान...
मन में खटके बात
कविता, छंद

मन में खटके बात

गाज़ी आचार्य 'गाज़ी' मेरठ (उत्तर प्रदेश) ******************** रीत यहाँ की देख के, मन में खटके बात | मनुज विवेकी कौन थे, जिसने बाँटी जात || [१] पीड़ा जग की देख के, मन में खटके बात | कौन कर्म है आपके, व्यथा भोग दिन-रात || [२] गुड से मीठे बोल है , थाम चले है हाथ | पग - पग मेरे साथ है, देत गैर का साथ || [३] बेमतलब है ये हँसी, मन में खटके बात | पर्तें मुख पर लाख है, दिखते है जज़्बात || [४] ऊँचे उसके बोल है, वार्ता करे अकाथ | आन शीश विपदा खड़ी, जोड़ फिरे जग हाथ || [५] माथे पर है सिलवटें, मन में खटके बात | डोल रहे करते भ्रमण, साँझ न देख प्रभात || [६] परिचय :- गाज़ी आचार्य 'गाज़ी' निवासी : मेरठ (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय ए...
प्रायश्चित्त
कविता

प्रायश्चित्त

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** हो सुधार असत्य इतिहास का, राष्ट्रीय, प्रायश्चित हो अब तो | जो अधिकारी सम्मान के, वे सम्मानित राष्ट्र में हों अब तो || तिरंगा पहला सुभाष ने, लहराया जाने सब अब तो | हो इतिहास में नेहरू से पहले, सम्मान सुभाष बोस का अब तो || झूले सहर्ष मृत्यु के झूले पर, जानें उनकी सत्यता राष्ट्र अब तो | भगत सिंह-राजगुरु-सहदेव का, हो सम्मान प्रतीक राष्ट्र का अब तो || योगदान सभी क्रांतिकारियों का, करें राष्ट्र अवश्य स्वीकार अब तो | नहीं हुए हम स्वतंत्र बिना अहिंसा से, करे आभास राष्ट्र अवश्य अब तो || टैगोर-तिलक-सावरकर आदि, क्यों सीमित पंक्तियों में अब तो | जागो मनीषियो-शिक्षाविदो, प्रसारित ग्रंथों में करो अब तो || था न विशेष योगदान जिनका, लिखवाया इतिहास उन्हीं पर तो | करें सुधार अब-भूलों का | लिखाओ इतिहास सही अब तो || हो इतिहा...
तेरी बांसुरी
कविता

तेरी बांसुरी

पूजा त्रिवेदी रावल 'स्मित' अहमदाबाद (गुजरात) ******************** कान्हा तेरी बांसुरी की धुन सुनी पड़ रही है, आकर देख, राधा और द्रौपदी दोनों पीस रही है। कोई नहीं अब सुलझाने वाला यहां कोई, उलझनें सब और बढ़ रही है। भगवद्गीता के भी मतलब नीकलते इन्सानी मर्ज़ी से, हम सब की अर्जियां तेरे पास कबसे पड़ी है। जेहाद चल रही है पर कारण पता नहीं है, यहां सबकी खुद की अक्कल बिक रही है। ना उतरने दिया था सम्मान द्रौपदी का तुमने भरे दरबार में पर, हर मोड़ हर चौराहे पर द्रौपदी बिक रही है। भूल चुकी है वह ताकत अपनी और शस्त्र की, तुझे बुलाते हुए चूपचाप बैठी है। भरोसा नहीं इस पूरी दुनिया में किसी पर फिर भी, सिर्फ़ तुझपर भरोसा टिकाये बैठी है। एक बार आकर याद दिला दे मुरलीधर, 'स्मित' अपनी मुठ्ठी में बांधकर बैठी है। खोलना मुठ्ठी उसकी ताकत की सिखा जा बंसीधर, अपने सीने में हिम्मत बे...
मर्यादा
कविता

मर्यादा

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तुम सीता हो, इस समाज में स्थापित हर मर्यादित राम की देती रहोगी परीक्षा यहाँ हर निर्धारित काम की। प्रिय हो तुम भी अपनी सीता के बिल्कुल राम की तरह पर राम की तरह सहना भी पड़ेगा अपनी सीता से विरह। बैर उन दोनों के बीच था ही कहाँ बस किया दोनों ने वही जो समाज ने कहा। रघुकुल के स्थापित मूल्य भला समाज ने भी कहाँ माने हैं पर तुम्हें वो सारे नियम व संस्कार निभाने हैं। अछूते तो वो भी नहीं रहे जो ख़ुद मर्यादा की सूरत थे सहना पड़ा अपमान उन्हें भी जो ख़ुद ईश्वर की मूरत थे। संस्कारों की बलिबेदी पर तुम्हें ख़ुद की आहुति देना है लोगों के मन की ज़ंग लगी ज़ंजीरों में जकड़े रहना है। परिचय :- कीर्ति सिंह गौड़ निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वर...
अखंड भारत
कविता

अखंड भारत

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नही चलेगा यहा पाखंड भारत था, है, रहे अखंड पावन भूमि है ये राम की नंदलाल के कर्मधाम की करते ऋषि मुनि यहाँ तपस्या हो क्षण में दूर हर समस्या अधम को नही है स्थान यहाँ चूर-चूर हो उसका घमंड नही चलेगा यहाँ पाखंड भारत था, है, रहे अखंड।। भूमि है ये कर्मवीरों की शिवा प्रताप जैसे विरो की अधर्म पर उठाए जो शस्त्र दूजे हाथ रखते वो शास्त्र समर्थ है ज्ञान विज्ञान में कला संस्कृति का है ये खंड नही चलेगा यहाँ पाखंड भारत था, है, रहे अखंड।। गुरु महावीर बुद्ध वाणी है त्याग अहिंसा निर्वाणी कर्मयोग में रमने वाले जिओ और जीने दो वाले चले साथ है धर्म पताका जो रखे हाथ मे न्याय दंड नही चलेगा यहाँ पाखंड भारत था, है, रहे अखंड।। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म...
मन के स्वप्न
कविता

मन के स्वप्न

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक धुंध भरी शाम उदास थी किसी ने पूछा क्यों उदास हो मुरझाए फूल ने कहा मन मरुस्थल हो चुका है वह देखो मेरी इच्छाओं की चिता जल रही है क्या मैं जिवित हूं कहा मन प्राण आधार ने आओ मैं तुम्हें समेट लूं अपनी बाहों में तुम्हारे उजड़े मन को महका दूं स्नेह से अनगिनत फूल खिला दूं एक बार अधिकार दे दो ले लो मेरा दूलार रखूंगी तुम्हें प्राण समझ कर मन कैसा भीग गया देखा मैंने उसे अ विश्वास से किंतु वहां था गहरा सागर मन डूब गया मधु जल में एक का एक किसी ने मधुर स्वर घोल दियेे कानों में मैंने जाना सुबह हो चुकी स्पनभंग हो गए मन के परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित ...
स्नेह के बंधन
कविता

स्नेह के बंधन

दुर्गादत्त पाण्डेय वाराणसी ******************** सावन की रिमझिम फुहारें हरियाली मौसम में, खिल उठे पुष्प सारे.. भाई-बहन के अटूट प्रेम पवित्रता का बंधन है भैया की कलाई पर बहना का रक्षाबन्धन है बड़े स्नेह से बहन ने भाई को मंगल-तिलक लगाए अटूट-प्रेम, व स्नेह की रखी भाई के हाथों में भाए बहना की ख्वाहिश है, ये ज़ब कभी रोऊँ मैं, तो भैया मेरे मुझे मनाएं नहीं मोल इस प्रीति का इस प्रीति को नमन व वंदन है भैया की कलाई पर बहना का रक्षाबन्धन है बहना इस राखी के संग बहोत से आस लगाए हुए है भाई की ख़ुशी की खातिर गमों को हमेशा छुपाए हुए है अगर भैया हो परदेश उनकी वापसी में पलकें बिछाए हुए है, इस पावन प्रेम के धागों का सादर, आभार व नमन है भैया की कलाई पर बहना का रक्षाबंधन है इस प्यार-स्नेह के बदले भैया का जवाब है बहना हर मुश्किल समय में तेरा भाई तेरे साथ है सागर सा उमड़ते अट...
हरसिंगार
कविता

हरसिंगार

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** हरसिंगार की खुश्बू रातों को महकाती निगाहे ढूंढती फूलों को जो रात भर खुश्बू बाटते रहे बन दानकर्ता गिरे फूल बिछ जाते कालीन की तरह छाले ना पड़ जाए मेरे चाहने वालों के पावों में मौसम के संग कुछ समय रहेंगे दिन में हो जाएंगे बेघर मासूम हरसिंगार खुश्बू का उपहार देते रातों को मोहब्बत करने वालों के लिए जिन्हें है सिर्फ मोहब्बत खुश्बूओं से अनजान भोरे भी सो गए दिन के उजालो में वे खुश्बुओं का पता पूछ रहे डाली -डाली पत्तों से बेचारे भ्रम में पड़े,भ्रमर सोचते हरसिंगार की खुश्बू क्या रातों से ही प्यार करती। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व ...
पधारे हैं नंदलाला
कविता, भजन

पधारे हैं नंदलाला

नंदिता माजी शर्मा मुंबई, (महाराष्ट्र) ******************** मुक्त करने जननी को, पावन करने अष्टमी को, जोड़ने कर्ता से करनी को, देखो ! पधारे हैं नंदलाला... यशोदा के चंचल लला, बांधे मोर, मुकुट, छल्ला, गोकुल में मचाने हो-हल्ला, देखो ! पधारे हैं नंदलाला... हाथ में बिराजे हैं बंसी, हर्षित हो झूमे पशु पंछी, अधरो में मुस्कान यदुवंशी, देखो ! पधारे हैं नंदलाला... धेनूओं के निशदिन रखवाले‌, गोपियों के नटखट ग्वाले, नित नव लीला धरने निराले, देखो ! पधारे हैं नंदलाला... राधिका के सखा मुरलीधर, रुक्मिणी के पति परमेश्वर, मीरा के इष्ट देव गिरिधर, देखो ! पधारे हैं नंदलाला... सिखाने जग को प्रेम का रास, भरने जन-जन में उल्लास, सबको रंगने प्रेम, दया,विश्वास, देखो ! पधारे हैं नंदलाला... परिचय :- नंदिता माजी शर्मा सम्प्रति : प्रोपराइटर- कर्मा लाजिस्टिक्स निवासी :...
तुम हो अपरिभाषित
कविता, भजन

तुम हो अपरिभाषित

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** कारागार में जन्म लिया, गोकुल का ललना बनकर, देवकी मां की गोद मिली, यशोदा मां का मिला दुलार, वासुदेव के तनय बने तुम, नंद के गोपाल कैसे लिखूं!! क्या लिखूं!! तुम तो हो अपरिभाषित, चाहे मैं जितना लिखूं ।। हे नंद के लाल ।। गोपियों के प्रिय बने, राधा के प्रियतम , रुक्मिणी के श्री हो, सत्यभामा के श्रीतम, राक्षसों का वध किया, संसार को निर्मल किया, हर जन जन को मोहित किया, अपना सबकुछ त्याग दिया, कैसे लिखूं !! कितना लिखूं!! तुम रहोगे अपरिभाषित चाहे मैं जितना लिखूं ।। हे नंद के लाल ।। आत्म तत्व के चिंतन तुम, परमेश्वर परमात्मा तुम स्थिर चित्त योगी तुम्हीं, परमार्थ का अर्थ तुम्हीं। नभ जल अग्नि वायु, बनकर प्राण तुम्हीं बन जाते हो, पंचतत्व में विलीन हो, अजर अमर कहलाते हो, क्या लिखूं, कितना लिखूं त...
कृष्ण जन्माष्टमी
कविता

कृष्ण जन्माष्टमी

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** भाद्रपद कृष्ण अष्टमी जन्में कृष्ण कन्हाई। नन्द घर आनन्द भयों घर - घर बजे बधाई।..... आततायी कंस ने ऐसा मचाया अत्याचार। द्वापरयुग मथुरा नगरी में छायी चहुंदिशा हाहाकार। पिता उग्रसेन को राजगद्दी से दिया उतार। बहन देवकी-वसुदेव को बंदी किया कारागार। हो व्यथित नर-नार ने प्रभु को पुकार लगाई। भाद्रपद कृष्ण अष्टमी.....। श्रीविष्णु के अष्टम रूप में अवतरित हुए मदन मुरार। दुश्वार घड़ी में रक्षा खातिर था श्यामसुंदर का इन्तजार। घनघोर घटाटोप मध्यरात्रि सर्वपालक ने अवतार लिया। नवजात शिशु रूप में अथाह यमुना को पार किया। वृंदावन में यशोदा आँगन बजे ढ़ोल शहनाई। भाद्रपद कृष्ण अष्टमी......। नटखट नटवर नागर ने बालपन में लीला रचाई। बालसुलभ स्तनपान मस्ती में पूतना राक्षसी मार गिराई। बाल सखाओं के संग माखन मिश्री...
निर्धनता
कविता

निर्धनता

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** गरीबी में गरीब बेहाल कोरोना ने किया लाचार, कमाने कहाँ जाए बाजार यही है, गरीब का हाल !!.. कमाते थे जो हाथ हजारो अब घर बैठ गए है, राशन पानी सारा खत्म सरकार की तरफ मुँह देख रहे !!.. सब्जी भाजी बेचकर पेट पाला बच्चो को किताब कॉपी दिलाया, बेटी का ब्याह भी एक साड़ी में किया हर गरीब की यही है, आत्मकथा !!.. आओ हम सब शपथ खाये कोई भी खाली पेट न सोएं, नही मारेंगे उसका हक गरीब भी है, समाज का अंग !!.. परिचय :-  शैलेष कुमार कुचया मूलनिवासी : कटनी (म,प्र) वर्तमान निवास : अम्बाह (मुरैना) प्रकाशन : मेरी रचनाएँ गहोई दर्पण ई पेपर ग्वालियर से प्रकाशित हो चुकी है। पद : टी, ए विधुत विभाग अम्बाह में पदस्थ शिक्षा : स्नातक भाषा : हिंदी, बुंदेली विशेष : स्वरचित रचना, विचारो हेतु विभाग उत्तरदायी नही है, इनका संबंध स...
दीवाना हो गया
कविता

दीवाना हो गया

मनीष कुमार सिहारे बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** पंछी देखा सोंचा मन में कुछ तो ख्याल करुं इसे ही पुरी कविताओं में सोलह श्रृंगार करूं मन की कई सवालों के पिछे मैं खुद गुंथता चला जो था मन में बातें वो सारी मैं भुलता चला देख दिवाना हो गया मानो की मैं कान्हा बना पहली दफा जो देखी राधा बांवरा कान्हा हुआ नीले नीले चमक थी उसकी मानो गगन तर आयी हो गिरने को खुब बारिश घनघोर बिजली छायी हो कल तलक जो ख्वाब थे हकिकत में वैसा आ गया देख दिवाना हो गया देख दिवाना हो गया करूं क्या तारिफ उसकी शब्द भी फीकी लगे इस कारवां में फना़ हो जाने को मन मेरा मचलने लगे ढलती सुरज की रक्त किरण उसके वस्त्र पर पड़ने लगे नील वस्त्र धारण वो कन्या मोती सा चमकन लगे लगे आईने कपड़ों पे उसके तर-बदर अर्चि चलने लगे अचानक वो अर्चि आंखों के मेरे सामने कहीं खो गया जैसा सोंचा ना था वैसा संग म...