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कविता

चतुरंग
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चतुरंग

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** जब अपने ही शतरंज का खेल-खेलने लगते हैं तो पराया भी अपने लगने लगते है। जब हमदर्द ही दर्द देने लग पड़ते हैं तो बेदर्द भी हमदर्द लगने लगते हैं। जब फूल भी चुभने लगते हैं तो दर्द भरे कांटे भी अपने लगने लगते हैं। जब बिना कसूर के भी लोगों नासूर जैसे चुबने लगे तो कसूर भी अपने लगने लगते हैं। जब मिठास भरे लोग भी कड़वाहट उगलने लगते हैं तो कटु वाणी भी मधुर स्वर लगने लगती हैं। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी र...
झंझावात
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झंझावात

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** जब वायुमंडल में प्रचंड रूप से आंधी और तूफान आता है। यही मौसम झंझावात कहलाता है। ******* चमकती है आकाश में बिजली और ओले भी बरसते है। चारों तरफ होता है पानी पानी बादल भी गरजते है। ******* जब जब झंझावात आता है मुल्क में बर्बादी आती है। और हमारे जीवन को अस्त व्यस्त कर जाती है। ******* झंझावत प्रकृति का प्रकोप है जब हम प्राकृतिक साधनों का दुरुपयोग करते है तो झंझावत आता है। और यही फिर प्रकृति का प्रकोप कहलाता है। ******* रखें पर्यावरण का ध्यान तभी हम झंझावात से बच पायेंगे। नहीं तो व्यर्थ में जन-धन की हानि पायेंगे। ********* झंझावात कभी कभी हमारे जीवन में भी आते है। यदि हम सावधान न रहें तो बड़ी तबाही कर जाते है। ******** परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड...
गिनते रहिये दिन
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गिनते रहिये दिन

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जिंदगी में एक वक्त ऐसा भी आता है जब कुछ कुछ खालीपन महसूस होता है, दिल गुजरे जमाने को याद कर रोता है, जो सिर्फ यादों में ही रहेगा, दुबारा आ जाऊं वक्त नहीं कहेगा, इधर समय गुजरता जाएगा, आयु साल दर साल घट जाएगा, कम होता जाता है दबदबा, कोई बचता नहीं मुंहलगा, आपको आपसे ही कोई नहीं मिलायेगा, गुजरा पल-पल पल तड़पायेगा, रहने लगेंगे सिर्फ यादों के सहारे, एक छोर में खुद तो दूसरे छोर में बाकी सारे, समझना न समझना खुद के ऊपर होगा क्योंकि बतियाएंगे रोज नदी के धारे, यदि किया है कुछ ऐसा काम, जो रख दे बरसों तक नाम, तो सफल रहेगा किसी का भी जीना, कब भागना पड़े सब छोड़ तब तक गिनते रहिये दिन, साल, महीना। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाण...
तर्क
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तर्क

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* दुनिया के सबसे सुन्दर फूल की तरह खिलता है, एकदम मानवीय प्यार की तरह, मेहनत की ज़मीन पर उगे अनुभव के पौधे पर शोभा पाता है तर्क मेहनत करने वालों के पास। तर्क सुन्दर होता है क्योंकि वह बताता है कारण का कार्य से सम्बन्ध वह बताता है चीजों के होने के बारे में, गतियों के रहस्यों के बारे में। बताता है वह रहस्य, अन्धकार और कृत्रिमता तथा निरुपायता से मुक्ति के बारे में इसलिए ज़रूरी है तर्क करना और लोगों को बताना तर्क के बारे में। जो चाहते हैं दुनिया को चलाना ऐसे ही जैसे कि वह चल रही है वे डर जाते हैं जब हम शुरू करते हैं तर्क करना I परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इं...
होली में हो ली
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होली में हो ली

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** होली में हो ली, कौन किसके साथ हो ली, सास, ससुर के साथ हो ली, जेठानी, जेठ के साथ हो ली, नंदन, नंदोई के साथ हो ली, भाभी, भैया के साथ हो ली देवरानी, देवर के साथ हो ली, और बाकी जिसका मन पड़ा वह उसके साथ हो ली, बचे हम दोनों हम महाकाल की गैर देखने इनके साथ हो ली मिल गए सब महाकाल की गैर में, खुली पोल सबकी, कौन किसके साथ होली में हो ली, कोई ठंडाई, कोई भांग, कोई रगड़ा, कोई गोली होली में गोली और गोली में हो ली, आया नशा होली के रंगों में महाकाल की टोली। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन...
शक्ति
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शक्ति

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** मकड़ियों के जालो में बैठी भूखी मकड़ियां इंतजार करती कीट पतंगों का कब फंसेंगे ये जाल में ठग लोग भी बनाते ठगने का जाल कोई न कोई फंसेगा झूठ फरेबों के जाल में। मकड़ियां सूने घरों में ज्यादा बनाती जाले ठग भी कुछ ऐसा ही करते जहाँ हो सूनी सड़क हो या घर मकड़ियों का किसी से वास्ता नहीं होता उन्हें अपने काम से मतलब ठगो से बुद्धिजीवी इंसान कैसे ठग जाते ? और फंस जाते कीट पतंगों की तरह उनके रचे हुए जाल में। दीपावली पर सफाई में महिलाये कर देती मकड़ियों के जाले साफ़ इंतजार है महिलाएं कब करेगी इन ठगो को साफ़ क्योंकि कुछ मर्दो को मेहनत करना नहीं आता मेहनत की रोटी क्या होती उन्हें मालूम नहीं जबकि ठगी रोकने का काम बुद्धिजीवी मर्दो का है ठगी पर अंकुश नहीं लगा पाए जब मर्द महिलाओं पर ही अब विश्वास बचा है शेष उनक...
मुक्त होने का समय
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मुक्त होने का समय

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** अब किस बात का इंतजार है, क्या आपका दिल नहीं बेकरार है, हजारों वर्षों तक दबे कुचले हो जीने से घुटन महसूस नहीं हो रही, आधी आबादी क्यों चिरनिद्रा सो रही, अब और कितने समय तक खुद से जोर नहीं लगाओगे, हाथ जोड़े-घूंघट काढ़े कब तक चुप रह पाओगे, प्रभात आपके लिए भी हो गया है, देखी भाली हो इस दुनिया को आपके लिए कुछ भी नहीं नया है, लूटा गया मान सम्मान, हक़ अधिकार, देखो आज भी यहीं है, बदले स्वरूप सारी देनदारियां एक-एक कर गिनने का समय है, एकपक्षीय सोच वालों से सब कुछ छीनने का समय है, इतनी बदल चुकी दुनिया क्या आज से स्वयं जुड़ने का मन नहीं करता, उड़ रही है नारियां अन्य देशों की क्या आपका मन उड़ने को नहीं करता, साम, दाम, दंड, भेद से है जो बिछाया गया जाल उसे आगे आ खुद से काटो, ड्योढ़ी लांघने का ये अच्छा समय है ...
बू
कविता

बू

विष्णु बैरवा भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** (लोगों की ईर्ष्या की दुष्प्रवृति पर प्रहार) जिस दिन मिला पुरुस्कार बू आ रही थी मिली नौकरी जिस दिन मुझको बू तब भी आ रही थी कुछ जलने की एक दिन चौपहिया क्रय कर लाया मानो, आग भभकने लगी बू सातवें आसमां पर थी कल हो गई कल दुर्घटना मुझपे माहौल सुगंधित है मानो खिल गए सैकड़ों पुष्प साथ में। परिचय :  विष्णु बैरवा निवासी : गांव- बराटिया, ब्लॉक- भीलवाड़ा, (राजस्थान) कथन : मैं कल्पनाओं को शब्दों में पिरोने का प्रयास करता हूँ । हिंदी साहित्य की विशालता का बखान किया करता हूँ । घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी...
उपहार
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उपहार

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** मानव तन का मोल है जाना? ईश्वर की रचना को पहचाना, अनमोल कीमती शरीर की संरचना, आँख, नाक और कान की रचना, अंग-अंग की कीमत है जानी? इसकी कीमत नही पहचानी, प्रभु का उपहार बडा़ अनमोल। लाख करोड़ अरबो भी कम, अपने को नि:शुल्क अर्पण है, करे इफाजत इस तन मन की, कंचन से कोमल तन-मन की, नही मिलेगा यह दोबारा, चाहे कर ले जतन तू सारा, धन्यवाद दे प्रभु को आज, मुक्ति का साधन ये हे महान। शीशे का देखो यह तन, रखे जतन से जैसे रत्न, अच्छे कर्मो का ज्ञान तू रख ले, प्रभु का हरदम ध्यान तू कर ले, धन्यवाद दे सौ-सौ बार, कितना कीमती मानव तन का उपहार। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय स...
व्याख्या होली की
कविता

व्याख्या होली की

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** फागुन में होली का त्योहार पड़े रंग गुलाल की बौछार स्नेह के रंगों का परिवार स्नेहिल पिचकारी की मनुहार। होली न रंगों का हुडदंग होली का है विशेष प्रसंग प्रहलाद होलिका की गाथा है बुराई पर अच्छाई की जय है। नई फसल कटकर आती‌ है नई बहार आ जाती है बर्फी, गुझिया, पूरन पोली नई उमंग छा जाती है । मौसम परिवर्तन का पर्व है होली कार्तिक से फाल्गुन तक उपजे रोग जीवाणु होते भिन्न-भिन्न गलियों और चौराहों पर मिलजुल कर होलिका दहन रोगमुक्त करता वातावरण। हर ओर है रंगों की टोली खिलने का पर्व है होली। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्ट...
संघर्षो से घबराना क्या
कविता

संघर्षो से घबराना क्या

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** संघर्ष विजय की जननी है, संघर्ष तो जीवन के साथ रहा, संघर्ष से घबराहट केसी, हर मानव के यह साथ रहा। संघर्ष के कारण जीवन में, कुछ गलत कदम उठाए ना, महापुरुषों का चरित्र देखकर, पथ उनके चल जाए सदा। मातृभूमि को आजाद है करना, संघर्षों से भरी कहानी है, संघर्ष करके है जीवन में, आजादी की यही कहानी है। देश के वीरों और वीरांगनाओं का, कितना संघर्ष भरा जीवन है रहा, तभी तो गुलामी की जंजीरों से, आजादी को हासिल हे किया, संघर्ष से शिखर हे पाना, जीवन का औचित्य रहा, जिसने संघर्ष का किया सामना, जीवन में वह अडिग रहा, वह विजय स्तंभ बनकर के इतिहास रचा इतिहास बना। जिसने संघर्ष को पार किया, जीवन में अग्रसर वो हे रहा, "जीवन तो एक संघर्ष है" चलता ही रहा चलता ही रहेगा है। जिसने संघर्ष को पार किया, जीवन में ...
गोरैया
कविता

गोरैया

चेतना सिंह प्रकाश "चितेरी" प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** मैं नन्ही-सी जान, ऊंँची है मेरी उड़ान। भला मैं कैसे? थक के हार जाऊंँ, मेरी भी बने पहचान। मेरी भी चाह है! नन्हें-नन्हें कदमों से चलती जाऊंँ, पंख पसारे गगन में उड़ती जाऊंँ। माना कठिन है दौर, कहीं नही है मेरा ठौर, रुकेंगे वहीं पे मेरे कदम, जहांँ में होगा मेरा स्थान। मैं नन्ही-सी जान, चेहरे पर है मुस्कान। परिचय :- चेतना सिंह प्रकाश "चितेरी" निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कव...
अंतरिक्ष से बेटी वापस आई है
कविता

अंतरिक्ष से बेटी वापस आई है

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** अंतरिक्ष में एक भारतीय बेटी, सितारों के बीच उड़ान भरती, आज धरती पर वापस आई है ! चुनौतियाँ ही जीवन को रोचक बनाती हैं , उनपर विजय पाना ही जीवन को सार्थक बनाता है जहां को ये संदेश देती है! उसकी मनमोहक मुस्कान से विश्व भर मे खुशियाँ छाई हैं ! ९ महीने लंबे अंतराल के बाद धरती माँ की गोद में रौनक आई है ! धैर्य- सहनशीलता-आत्मविश्वास की परिभाषा बन चुकी है, सृष्टि के प्रति समर्पण और अदम्य साहस से गौरवशाली इतिहास लिख रही है ! जीवों को प्रेम करने वाली, आज दुनिया की मुस्कान बनी है ! आकाश से सूरज का तेज, सितारों की चमक, और चांद की शीतलता साथ लाई है , आज धरती माँ की बेटी माँ की गोद में वापस आई है!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १...
विद्यालय स्मृति
कविता

विद्यालय स्मृति

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** आओ कभी फिर विद्यालय की दहलीज पर दोबारा तुम्हें वह सब नये -पुराने ख्वाब मिलेंगे। आओ कभी फिर शिक्षालय की देहली पर दोबारा तुम्हें शिक्षक की डांटा के बाद प्यार की परछाई नज़र आएगी। आओ कभी फिर ज्ञानमंदिर की डेहरी पर दोबारा तुम्हें जीवन को राह दिखाती शिक्षक की आवाज आएगी। आओ कभी फिर विद्या मंदिर की चौखट पर दोबारा तुम्हें ज्ञान का दीप जलाते हुआ शिक्षक की कर्मठता नज़र आएगी। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्ष...
अहसानफरामोश
कविता

अहसानफरामोश

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हक अधिकार मिला? हां मिला। किसकी बदौलत? पता नहीं। आरक्षण से नौकरी मिला? हां मिला। किसकी बदौलत? पता नहीं। और इस तरह से महामानवों को लोग भुला देते हैं, उनके योगदानों को भुलाकर समाज को पे बैक करने के जगह पत्थरों पर रकम लुटा देते हैं, और घूमते रहते हैं इस स्थान से उस स्थान, इस पहाड़ से उस पहाड़, देखते ही नहीं न गर्मी न बरसात न जाडा, वह महसूस करने लगता है कि नौकरी मैंने मेहनत से पाया, जिसके लिए भरपूर समय लुटाया, वो भूल जाता है उनका होना न ऊपर वाले को पसंद है और न ही नीचे वाले को, पग पग पीना पड़ता है विष के प्याले को, बंदा पद के नशे में मदहोश है, तभी तो समाज के प्रति अहसानफरामोश है। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ...
स्त्री
कविता

स्त्री

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** सच में अगर हम कविता रचते स्त्री पर रचे वो प्रकृति का साक्षात् रूप होती कविता और स्त्री दोनों ही सृजन करती और दोनों के बिना तो यह धरती बंजर होने में देर नहीं लगती I कविता और स्त्री जगह पर तमाम मोहक रूपों में दिखती और हम अभिभूत होते जाते जीवन चक्र की भाति । सुना था पहाड़ भी गिरते स्त्री पर पहाड़ गिरना समझ आया। कुछ समय बाद पेड़ पर पुष्प हुए पल्ल्वित जिन्हें बालों में लगाती थी कभी वो बेचारे गिर कर कहरा रहे और मानो कह रहे उन लोगो से जो शुभ कामों में तुम्हे धकेलते पीछे स्त्री का अधिकार न छीनो बिन प्रकृति और स्त्री के बिना संसार अधूरा हवा फूलों की सुगंध के साथ गिरे हुए पुष्प का कर रही समर्थन| परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आ...
कामदेव सहचर बसंत के
कविता

कामदेव सहचर बसंत के

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** प्रथम बार रति कामदेव ने, दिल में प्यार जगाया। थी बसंत पंचमी पावन, मदनोत्सव कहलाया। यह बसंत उत्सव कहलाता, सब मिल इसे मनाते। कामदेव सहचर बसंत के, ज्ञानी गुणी बताते। जब बसंत आता बागों में, बौर आम पर आता। कोयल कुहू-कुहू करती है, मोर खुशी से गाता। यौवन में हिलोर आती है, पोर-पोर मदमाती। बासंती ऋतु में बिरहन को, पिय बिन नींद न आती। कामदेव रति बाण चला कर, दिल में आग लगाते। विरह चौगुना हो जाता जब, मोर पपीहे गाते। नख-शिख सजी यौवना कहती, अब बसंत मदमाता। निष्ठुर बेदर्दी आ जाओ, अब दुख सहा न जाता। दस कुमार चरित में होली, मदनोत्सव कहलाती। हुड़दंगों की टोली कर में, रँग गुलाल ले आती। सबको रंग लगायें दिल से, सबको गले लगायें। रंग प्यार का सब पर डालें, सब पर प्यार लुटायें। सच्चे अर्थों...
भूतकाल
कविता

भूतकाल

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** धीरे-धीरे बहुत से चेहरे आलोप हो रहे हैं देखता था जिनको बचपन से। धीरे-धीरे वो सब आवाज़े खामोश हो रही है सुनता था जिनको लड़कपन से। धीरे-धीरे वो सब अपने-पराये खोते जा रहें है मिलता था जिनको बाल्यावस्था से। धीरे-धीरे वो सब गाँव शहर में बदलते जा रहे हैं घूमता था जिनकी पगडंडियों के किनारे। धीरे-धीरे वो सब मानव दानव में बदलते जा रहे हैं समझता था जिनको विश्व का महामानव। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्ष...
जब कुछ लिख कहेंगी
कविता

जब कुछ लिख कहेंगी

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** कहां गया नारी सम्मान के लिए कुछ दिन पहले तुम्हारा किया गया संकल्प, या निकाल चुके हो अपने दिल से इस बात का विकल्प, वैसे भी इतिहास गवाह है कि तुमने अपने स्वार्थ के बारे में ही सोचा है, जब,जहां,जैसे पाये नारियों के हक़ अधिकार को जब तब नोचा है, आज फिर अपनी मनमानी दोहराओगे, धूमधाम से नारी को जलाओगे, दिन भर हुड़दंग करोगे रंग गुलाल उड़ाओगे, मुझे यकीन नहीं है तुम्हारी लिखी कहानी कथाओं पर, आधी आबादी को हासिये पर धकेल कुछ नहीं दिये हो प्रथाओं पर, हां जितना जलाना है जला लो आज जमाना तुम्हारा है, मुझे इंतजार उस दिन का रहेगा जब नारियां तुम्हें जलायेगी कुछ लिख और कहेंगी अब सारा जमाना हमारा है। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ ...
दरमियां हम दोनों के दीवार
कविता

दरमियां हम दोनों के दीवार

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** दीवार बंटवारा करती है। दो लोगों को अलग-अलग करती है। ******* काम ऐसे करें कि आपस में दीवार न पड़ जाय। अच्छा भला रिश्ता खाक में न मिल जाय। ******* टूटे धागे को जोड़ने पर उसमें गठन पड़ती है। दो दिलों के बीच की दीवार बड़ी मुश्किल से हटती हैं। ******* प्यार में विश्वास जरूरी है। उसके बिना दिल की दास्तान अधूरी है। ******* दो दिलों को अलग होकर बंटना नहीं है। दिलों के दरमियां दीवार अच्छी नहीं है। ******* तोड़ दो उस हर दीवार को जो तुम्हारे रास्ते में आती है। और तुम्हारी हसीन जिंदगी को बर्बाद कर जाती है। ******* परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अ...
ये असमंजस क्यों ….?
कविता

ये असमंजस क्यों ….?

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** ये भी चुप वो भी चुप ना विवाद ना संवाद समझें कैसे मन की बात रूठा कौन किसे मनायें समझाये कौन प्रिये फिर मौन ये फैला क्यों...? अनहद नाद मन उन्माद रूठे संवेदन मूक स्पन्दन सपन गढ़े धड़कन बढ़े हूक उठे क़दम रुके झुकी पलक प्रिये फिर सन्नाटा ये पसरा क्यों....? यौवन श्रृंग मन उमंग बिजुरी चमके तन तरंग बिना भंग मन मलंग कैसी जंग रंग में भंग मन मदमाये प्रिये मगर धूप ये चुप क्यों....? कैसी उलफ़त नहीं शरारत ना ही नफ़रत कैसी हिमाक़त ना ही शिकवा कहाँ शिकायत गुज़र गई रात बनी नहीं बात भोर सुहानी हाय प्रिये फिर फ़िज़ा ये ख़ामोश क्यों...? परिचय :- छत्र छाजेड़ “फक्कड़” निवासी : आनंद विहार, दिल्ली विशेष रूचि : व्यंग्य लेखन, हिन्दी व राजस्थानी में पद्य व गद्य दोनों विधा में लेखन,...
होली के रंग
कविता

होली के रंग

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** अजूबे होते है ये होली के रंग लाल पीले नीले प्यारे-न्यारे, ये होते प्रेम बरसाने के सुनहरे रंग। रंग में होते अपने अपने मन पसंदीदा रंग नीले पीले गुलाबी मन को लुभाते रहते होली के सुनहरे प्यारे न्यारे रंग।। हरे-भरे उड़ाकर यत्र-तत्र रंग सुनहरे सजाते माहौल होली के रंग। मस्तमग्न सबको करते केशरिया, लाल, पीले, हरे, नीले रंग मौसमी गुलाबी बनकर होली के रंग।। रंग की बरसात की बौछार में प्यारे न्यारे दिखते ये रंग गुलाबी आसमान बादल में । सुनहरा सुहावना चढ़ाते मिश्रित होकर आनंदित करते ये होली के रंग ।। सुगंध में भरे होते होली के ये रंग सुनहरा रूपरंग में अलबेले बसन्त ऋतु पर खींचते ये रंग कवि के मन में शब्द के रंग राग भरते बेसुमार खुशियों में होली की मस्तीभरे ये रंग रंग में घुलने मिलने के फाल्गुन मौसम करते है जब ...
निराकार ही साकार
कविता

निराकार ही साकार

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** निराकार है साकार वही ब्रह्मांड को जिस परमशक्ति ने मनमोहक इक रुप दिया प्रकृति रूप में प्रस्फुटित किया रचे जीव लाख चौरासी हर कण को एक स्वरूप दिया वसुधा हित मनुज रूप में स्वयं को स्वयंभू ने साकार किया उसी परमशक्ति ने प्रकृति को आकार दिया वह स्वयं आकार ले सकता है मूर्त रूप में आ सकता‌ है समस्त विश्व को साकार बनाया साकार हो स्वयं भी आया निराकार ‌साकार रूप लेसकता है निर्जीव को जीवन दे सकता है निराकार ही साकार वही दोनों में न भेद कोई चाहे वह अदृश्य हो जाए चाहे दृश्य रूप में आए निराकार का साकार है भेद रचता है वह रूप अनेक भाव है केवल एक यही 'कण-कण में तू ही भगवान समाया है'। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियाप...
मौन
कविता

मौन

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************  मौन वाचाल, मौन चपल मौन मे बोलो मौन मे चलो शून्य हो चलो, मौन मे गा ओ मौन मे है मन का मन्थन मौन मे अविरल, मौन मे स्वच्छद मौन मे उठती मौन मे गिरती जैसे सरिता च्न्चल। मौन मे उढान भरो शक्ती से अपने मौन विचारो के पंख फैलाकर जैसे उडान भरने को उत्सुक पक्षी बार, बार पंख फैलाकर मौन मे उछलता अपने लक्ष्प की ओर। नौन आकाश मौन धरती सारी प्रकृति मौन फिर भी फिर भी देती है, देती रहेगी मानव को अवलम्बन। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरक...
होली-हुडदंग
कविता

होली-हुडदंग

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** रंग से भरी नादें होंगी, अबीरा रहेगा झोली में। अबकी तुम जो आए साजन, रंग डालूंँगी होली में।। बाला थी, अब नारि भई मैं, बीस-बसन्तन पार गयी मैं। वय से अपने हारी प्रियतम, यौवन का शृंगार भई मैं। इक दिन तूने रँग डाला था, जब थी बहुत ही भोली मैं। उसका बदला आज मैं लूंँगी, याद रखूँगी इस होली में। अबकी तुम जो आए साजन, रंग डालूंँगी होली में।। अनंग, अंग में तपन बढ़ाए, तुम्हें मिलन को जी ललचाए। अबकी 'फगुन' बही है ऐसी, 'हिय-जलना, अब सही न जाए'। वर्षों याद करीं हूँ तुमको, ग्रीष्म-शीत की हमजोली 'मैं'। सिहरन की बारात चली है, देखो, बसन्त की डोली में। अबकी तुम जो आए साजन, रंग डालूंँगी होली में।। होली की अब धूम उठेगी, रंगों की बौछार सजेगी। आना बरसाने में साजन, मुझ सी मोहक कौन मिलेगी? अबकी बार करुँगी प्रियतम, ...