चीखें
श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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दीपोत्सव के बाद श्वानों की दुर्दशा देख दिल रो पड़ा, और कुछ शब्द निकल आए
बचपन से अवसाद और
कष्ट से पीड़ित रहा हूँ
मैं समझ नहीं पाता था
ये क्या और अखिर क्यों है
मैं अपने रक्त रिसते
घाव में चीख रहा हूँ
क्या कोई मेरी पुकार सुनेगा???
मेरी खामोश चीखें भी समझ पाएगा
जो मैं लाचार हो कर
अंदर ही अंदर
क्रंदन करता हूँ
क्या कोई उसे
समझ पाएगा????
हे मानव तुम्हारे
मुस्कराते चेहरों के पीछे
एक अंधेरी सड़क मिलों चलती है
जिसपर नफरत, क्रोध,
घृणा, नृशंसता रहती है
मेरी सालो साल खामोश
चीखें वहां तक नहीं पहुंचती हैं
मुझे आग में जीते जी जलाते हो
मुझे आग से नहलाते हो
पाप पुण्य की भाषा नहीं समझता
मगर ये इंसान का
कौन सा रूप दिखाते हो????
मैं गलियों, रस्ते,
काली धुंध भरी
दुनिया मे रहता हूँ
मैं क्या बिगाड़
प...