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कविता

मेरी पहचान
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मेरी पहचान

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** लक्ष्मी सी मेरी पहचान। देता देव और इंसान।। भ्रमित कर स्वयं को हर लेता इक दिन प्राण।। मेरी ही कोख से निकल.... पलता वो वक्ष स्थल से.... खोट भर नैनों में फिर... दामन भरता अश्रुजल से।। कभी अग्नि में स्वाह तो कभी पत्थर होना पड़ा ।। कभी टुकड़े हुए हज़ार, तो कभी बेघर होना पड़ा।। क्रोध करूं या हास्य करूं। या स्वयं का परिहास करूं।। निर्णय तो करना होगा.... मौन रहूं या विनाश करूं।। सोचती हूं उठा लूं कोरा कागज़, दिखा दूं अपनी कलम की ताकत। ताकि जन्में, जब-जब "कविता".. "दिनकर" आकर छंदों से करें स्वागत।। परिचय :- इंदौर (मध्य प्रदेश) की निवासी अपने शब्दों की निर्झर बरखा करने वाली शशि चन्दन एक ग्रहणी का दायित्व निभाते हुए अपने अनछुए अनसुलझे एहसासों को अपनी लेखनी के माध्यम से स्याह रंग कोरे कागज़ पर उतारतीं हैं, जो उन्ह...
एतबार नहीं इस जीवन का
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एतबार नहीं इस जीवन का

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** कर ले लाख दिखावा सब अपना होने का जीवन के पल मे साथ हँसने और रोने का जख्म अपनो का दिया अब भरता ही नहीं एतबार भी अपनेपन का मै करता ही नहीं दो दिन का है यहाँ रिस्तेदारों का जमघट जाना पड़ता है सभी को अकेले ही मरघट मरना अकेले ही कोई साथ मरता ही नहीं एतबार भी अपनेपन का मै करता ही नहीं क्या रखा है महज इस मिट्टी की काया मे बना रखा है रिस्ते नाते मोह और माया मे दिल के दरवाजे तक कोई पहुँचता ही नहीं एतबार भी अपनेपन का मै करता ही नहीं जाना अकेले है तो अकेले ही जीना सीखे जीवन के अनुभव चाहे खट्टे हो या हो मीठे बिना अनुभव जीवन सफर चलता ही नहीं एतबार भी अपनेपन का मै करता ही नहीं जीवन सफर है तो अब इसका मजा लेते है इसके हर पल मे जीवन की नई सदा लेते है जीवन सफऱ बिना संघर्ष के चलता ही नहीं एतबार भी अपनेपन का मै करता ...
प्रथम सभ्यता
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प्रथम सभ्यता

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** प्रथम सभ्यता इसी धरा पर इसके सीने पर हुई हलचल इस धरती पर पग रखा प्रथम मनु ने साक्षी बनकर। प्रथम वांग्मय इसी धरा पर वेदों की वाणी बनी धरोहर उपनिषदों ने की इनकी व्याख्या गाईं पुराणों ने गाथाएं मनोहर। कैस्पियन सागर और इर्दगिर्द वर्तमान लेबनान के राजा बलि फैली थी मानव संस्कृति जनक थे इसके कश्यप ऋषि। इस विकसित संस्कृति के रहवासी आर्य यहां कहलाए नाम धरा का आर्यावर्त था विष्णुभक्त प्रहलाद ईरान (आज का) का राजा था। अवतरित आदि तीर्थंकर ऋषभदेव जी श्रीराम के ६७ वें पूर्वज ऋषिराजा उनके ग्रंथों में दर्शन जो आज है केल्ट सभ्यता। पूज्य ऋषभदेव के पुत्र भरत चक्रवर्ती नरेश महा यशस्वी राज्य चहुं दिशि फैलाया 'भारतवर्ष' देश यह कहलाया। (वर्ष का अर्थ है भूमि अर्थात् भरत की भूमि)। हुए यशस्वी राजा दुष्यंत ...
अनजाना रिश्ता
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अनजाना रिश्ता

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** एकाएक जिंदगी में अनजान सा कोई आता है, जो दोस्त भी नहीं, हमसफ़र या हमराज़ भी नहीं फिर भी उस से एक अनोखा रिश्ता जुड़ जाता है !! उस के साथ सुख दुःख साझा करने का दिल करता है, वो सब कुछ सुनता और समझना चाहता है ! हमारी उलझने उसके पास आके कहीं भटक जाती हैं, कुछ पल जिंदगी के सूकून से कट जाता है वो अनजाना होकर भी दिल के करीब बस जाता है !! उस रिश्ते का कोई नाम नहीं उस रिश्ते को नाम के बंधनों से दूर ही रखा है, वो सबकी खुशी में खुश और बहते आंसुओं के दर्द को समझता है !! कोई अधिकार नहीं उसके जीवन पर हमारा, फिर भी उस पर हक जताने को दिल करता है ! वो खुदा की बनाईं प्रकृति का अनमोल हिस्सा है, उसका लाड दुलार हमसे उसके लिए कुछ करने का संकल्प दिलाता है ! वो और कोई नहीं खुदा का प्रतिनिधि है ...
उम्र भर
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उम्र भर

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** वो देता रहा उम्र भर दिलासा, और मरने के समय का नहीं हुआ खुलासा, उसने कहा था कि सुधार देंगे तुम्हें या तुम्हारे समाज को, खत्म कर देंगे चली आ रही रिवाज़ को, बाद में पता चला कि असल में सुधारने की बात तो धमकी थी, धोखे में रखने से उसकी किस्मत चमकी थी, वो तब भी वंचित था, आज भी है और आगे भी रहेगा, लफ्ज़ो की मीठी चाशनी में डूबा सब सहेगा, इधर पूरा कौम जीवित है इस उम्मीद में कि उम्र के किसी दौर में तो आएगा सवेरा, सब सम हो न हो कोई लंपट लुटेरा, मगर आस और आश्वासन तो सदा से वंचितों को वो देता आया है, अपनी वादों,बातों को कभी नहीं निभाया है, क्योंकि वो बना रहना चाहता है औरों से उच्च और रहबर, दे दे कहर, क्योंकि उन्हें फर्क नहीं पड़ता कोई ठोकरें खाये दर दर, जब जब किसी ने आस के फूल खिलाना चाहा, व...
शंकराचार्य अवतार-बागेश्वर सरकार
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शंकराचार्य अवतार-बागेश्वर सरकार

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** आदि शंकराचार्य के रूप में, जन्मे है सरकार, सनातन की धर्म ध्वजा, लहराए महाराज (बागेश्वर सरकार)। हिला दिया है विश्व को, सोचने पर मजबूर, जागा हिंदुस्तान का हिंदू एकता मजबूत। जात-पात का कर रहे, समूल नाश महाराज, बागेश्वर सरकार तो शंकराचार्य अवतार। अपना हिंदू राष्ट्र तो, हिंदू का है देश, वंदे मातरम से परहेज है, छोड़े वह अब देश। भारतवर्षे जम्बू द्विपे, पुराणो का यह मंत्र, किस शास्त्र में आता है, भारत का यह मंत्र। सनातन धर्म आदि है, नहीं इसका कभी अंत, कब इस धर्म की नींव रखी? खोदे जन-जन थक। बड़े चलो, चले चलो, मंजिल नहीं अब दूर। सनातन का परचम यहां, लहराएगा जरूर। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन वि...
रिश्ते कभी रिसने न पाएं
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रिश्ते कभी रिसने न पाएं

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** रिश्ते कभी न रिसने पायें, रिश्ते सभी निभाएं। चलो बचा लें हर रिश्ते को, हर रिश्ता अपनायें। रिश्ते हैं अनमोल धरोहर, रिश्ते कभी न टूटें। प्यार भरे रिश्ते जीवन में, जीते जी मत छूटें। नेह प्यार दें हर रिश्ते को, हर रिश्ता है प्यारा। कभी न रिसने पाएं रिश्ते, हर रिश्ता है न्यारा। संबंधों में भरें मधुरता, इनको देखें भालें। सूख गए जो प्यारे रिश्ते, उन में पानी डालें। सब मतभेद भुला कर अपने, मन को पावन कर लें। गंगाजल डालें रिश्तों में, खुशी हृदय में भर लें। नेह प्यार विश्वास भरा हो, मानव का हर रिश्ता। सदा काम आए जो सबके, कहते उसे फरिश्ता। जब रिश्तों में टूटन होती, हर रिश्ता रिस जाता। रुकती नहीं रिसन रिश्ते की, साँस नहीं ले पाता। रिसन रोक कर हर रिश्ते को, प्रेम डोर से बाँधें। रिश्...
करुणामयी पुकार
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करुणामयी पुकार

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** थक चुका हूँ इंसानी रिश्ते निभाते-निभाते शिथिल हो गया हूँ करुणा मयी पुकार लगाते-लगाते, इंसान से दोस्ती, मेरी मजबूरी नहीं थी विश्वास, निःस्वार्थ प्रेम से सजाया था इस रिश्ते को परन्तु लगता है इंसानो के लिए बोझ बन रहा ये स्नेहिल रिश्ता मैं ही समझ ना पाया प्रेम, दया, करुणा मांग-मांग के थक गया बहुत गुहार लगाई, मेरी दर्द भरी चीख की आवाज उनके कानो तक नहीं पहुची धूमिल हो रहा है ये रिश्ता! जानवर और इंसान" के रिश्ते का अंत हो रहा है, पर हमारी ओर से ये अनंत हो रहा है!! इसी आस के सहारे चल रहा है कुछ तो इंसान, जो "इंसान होंगे" शायद वही जीवित रख पाएंगे अनंत से अंत की ओर जाते इस रिश्ते को!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ व...
बंजर सोच
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बंजर सोच

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जिंदगी जीने के लिए जरूरी है एक सकारात्मक सोच, जो काम करता है सतत आगे बढ़ने-बढ़ाने के लिए रोज, सोच दो तरह के होते हैं, एक जो सकारात्मक मानवतावादी है जिसमें आपसी प्रेम भाईचारा सहयोग और सदा मिलकर चलने पर आधारित होता है, दूसरी सोच बिल्कुल इसके उलट नकारात्मकता वाला जो सिर्फ प्रचारित होता है, मगर कुछ लोग केवल भ्रमित रहते हैं, कभी मानवीय मूल्यों को तो कभी हिंसात्मक विचार को सही कहते हैं, जब खुद पर मुसीबत हो तो हर किसी से सहयोग की अपेक्षा रखते हैं, जब सहायता देने का वक़्त आता है तो ईर्ष्यावश मन में भाव उपेक्षा रखते हैं, उत्कृष्ट सोच खुद के साथ ही औरों के लिए भी एक नये मार्ग पर निरंतर हंसते हुए चलना सिखाता है, पर दूसरी तरफ विपरीत प्रभाव में जा दूसरों की प्रगति पर जलना सिखाता है, परंतु कई ...
सुख का सपना सब रीत गया
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सुख का सपना सब रीत गया

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** सुख का सपना सब रीत गया, ऐसे ही जीवन बीत गया।। सुबह की सुषमा से विभोरित, सँग तेरी यादों के पथपर... चला किया मधु की आशा में, सूरज की लाली को पाकर‌... जानें किरणें प्रखर हुईं कब, मन हार गया, दुख जीत गया। सुख का सपना सब रीत गया। ऐसे ही जीवन बीत गया।। कभी नहीं हँस पाया मैंने, आहत समय गंँवाया मैंने। चेहरे पर मुस्कान लिया कब, कोई भी अरमान जिया कब? कब 'मुर्छित-मौसम' दे पाया... सोये फूलों पे गीत नया।। सुख का सपना सब रीत गया, ऐसे ही जीवन बीत गया।। पर्वत के ऊपर ठहरे थे, पानी के अन्दर गहरे थे। सभी जगह मेरी आँखों में, उनकी छवि के ही पहरे थे। फिर भी कब मैं जान सका हूँ; निष्फल हो कैसे प्रीत गया। सुख का सपना सब रीत गया , ऐसे ही जीवन बीत गया।। गहन कुहासा धरा पे आए, वारिद नहीं गगन में गाए। फीकी पड़तीं...
क्या हिन्दू-हिन्दू भाई भाई?
कविता

क्या हिन्दू-हिन्दू भाई भाई?

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** घर-घर में भारत पाकिस्तान, कैसे बनेगा हिंदू राष्ट्र। भाई-भाई मै नहीं है प्यार, पडोसी बन गये रिश्तेदार, नही शर्म नही कोई लाज, बैठ के खाये ये पकवान, भाई भाई को नही जानते, रावण विभीषण बर्ताव मानते, शत्रु एक दिन करेगा राज, पड़ जायेगी जंजीरे (गुलामी) हाथ। आपस में प्यार मोहब्बत को लो, शत्रु को ना घर मे भर लो, नही तो! लंका ध्वस्त हो जाएगी आज, ताल बजायेगा दुश्मन यार। बन्द मुट्ठी एकता का पाठ, खुल जाये तो पत्ता साफ, जीवन जियो सीना तान के साथ, नही तो........ कौन? दुश्मन बैठा है दर पर आज। फूट डालो और राज करो का करेगा काम। हाथ मल के रह जाओगे यार। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंत...
सफर
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सफर

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मंज़िल तक पहुंचने में किसी के मोहताज नहीं कदम दर कदम कोई हमसफ़र मिलेगा सुकुन से कदम बढा ऐ दोस्त आगे तुझसे कारवां जुड़ेगा। सुकुने दिल को कचोटती है चुनौती अपनों की आंखों से अश्क नहीं बहते दिल रोता है कहने को हम सब हैं अपनों के बीच हर शख्स अपने सफर में अकेला होता हैं। ख्वाहिशों के दरख्तों के साये बहुत लम्बे हैं सायो के सहारे ख़्वाहिशों की फ़ेहरिस्त पूरी नही होती ज़माने की नजरें ऐसी बदली कि हम देखते रह गए वक्त गुजरता रहा हम ख्वाब बुनते रहें। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेव...
शब्दो की खामोशी
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शब्दो की खामोशी

सुरभि शुक्ला इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक न एक दिन सब बदल जाते हैं अपने पराए हो जाते हैं रिश्ते-नाते टूट जाते हैं दोस्त-यार छूट जाते हैं धीरे-धीरे रास्ते बदल लेते हैं तुमसे अपने सारे बंधन तोड़ देते है हवा चलते-चलते रुक जाती हैं कली टूट कर जमीं पर बिखर जाती है फूलों से खुशबू उड़ जाती है हरी भरी पत्तियां पीली पड़ जाती है मुलायम नर्म घास सूख जाती है एक दिन उपजाऊ मिट्टी भी बंजर हो जाती है हाथों की लकीरें मिट जाती है चेहरे पर झुर्रियां आ जाती है एक दिन ज़िंदगी भी धोखा दे‌ देती है जिस्म से रूह साथ छोड़ देती है और मौत अपने दामन में लपेट लेती है। ताउम्र के लिए अपना हमसफर बना लेती है परिचय :-   सुरभि शुक्ला शिक्षा : एम.ए चित्रकला बी.लाइ. (पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान) निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) जन्म स्थान : कानपुर (उत्तर प्रदेश) रूचि : ल...
हम जानवर बेजुबान नहीं हैं
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हम जानवर बेजुबान नहीं हैं

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** हम जानवर बेजुबान नहीं हैं, पर इंसानो की नीयत से अंजान है हमे मरता छोड़ देते ये तो हैवान है, ना जाने क्या है! हमे घर लाते, खूब लाड प्यार दिखाते जब हम बूढे और लाचार हो जाते हमको अंजाने रास्तो पर मरने को छोड़ जाते हम कुछ समझ ही नहीं पाते ठगे से रह जाते ! अपना अपना त्यौहार मनाते खुश होते खुशियां बांटते मग़र ना जाने क्यूँ हमारी बलि चढ़ाते जंगलों में हमारा शिकार करते हमारे बच्चों को अनाथ कर जाते खुद के स्वाद के लिए हमको हलाल करते ये कौन सा और कैसा त्यौहार मनाते हम कुछ समझ नहीं पाते ! हम में से किसी को माता मानते पूजा अर्चना करते उसी के सहारे अपना परिवार चलाते उसके दुधमुंहे बच्चों का दूध खुद पी जाते जब वो बूढी और लाचार हो जाती तब कसाई के हाथों में कटने को सौप देते इंसानी स्वार...
सोचूँ तेरे प्यार को
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सोचूँ तेरे प्यार को

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** सभी ढूँढ़ते रूप रंग को, मैं सादे व्यवहार को। साज-शृंगार मुझे न भाए, सोचूँ तेरे प्यार को।। बहुत अधिक सुखकारी लगती, प्रिय, अमृत बोली तेरी। जैसे स्वाती की बूँदों से, चू रही घर की ओरी।। पपीहा जब अलाप लगाए, तड़पूँ सुखद विहार को। साज शृंगार मुझे न भाए, सोचूँ तेरे प्यार को।। सूरत जैसे धूप शिशिर की, खिली-खिली सरसों आए। जैसे कासों के खेतों में, 'सूप', कर्ण सँजों पाएँ।। लहराते आँचल में देखूँ सहज गोमती धार को। साज शृंगार मुझे न भाए, सोचूँ तेरे प्यार को।। गहरी-सिन्दूरी आँखों में, सँझवती लाली छाए। जैसे पलकों की छोरों पर, मदिर-नींद चली आए।। गगन फैलती काली रेखा... खुलते-केश बयार को। साँझ शृंगार मुझे न भाए, सोचूँ तेरे प्यार को।। बँसवार-लचकती बाहों में, हरा हुआ तना महके। बनफूल-बहकती साँसो में, हिय...
चमत्कारी काव्य – द्वयक्षरीय रचना
कविता

चमत्कारी काव्य – द्वयक्षरीय रचना

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** द्वयक्षरीय रचना प्रिय मित्रो ! पूर्व में आपको मैंने अपनी एकाक्षरीय रचनाओं से परिचित कराया था। आज भी मात्र दो वर्णों "त" तथा "ल" के मेल से रची अपनी एक ताजी रचना से परिचय कराता हूँ। इसे चित्र काव्य के अन्तर्गत लिया जाता है। रचना की किसी भी पँक्ति को द्रुत गति से आवृत्त करऩे से वक्ता की स्वयं के दाँतों से जीभ कटने का डर रहता है। अनुप्रास के अनुशासन में बँधी द्वयक्षरीय रचना का आनन्द लीजिए। १- तुतला तुतला तुल्लू तेली तेल तौलता तौल तिली। तुलती तिली तुलाती तातिल लता तुलाती तेल लली।। आशय - तुल्लू नाम का एक तेल का व्यापारी तुतलाते तुतलाते तिल्ली तौलने के बाद तेल तौल रहा है।तातिल नाम की महिला तिली तुला रही है और लता नाम की बालिका तेल तुलाती है। २- ताती तिली तोतले तुल्लू लूली ललिता लोल लली। तोला तोला तिल्ल...
जिस दिन वे अपने घर आ गए
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जिस दिन वे अपने घर आ गए

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** छुपा नहीं पा रहे हो, गाहे बगाहे अपनी धृष्टता दिखा रहे हो, आज के इस सभ्य कहे जाने वाले युग में, हांक रहे हो मानव अब भी जातिय चाबुक में, महामहिम बनकर भी, माननीय बनकर भी, दिखा दे रहे हो अपनी जाति का चेहरा, बलात कब्जा किये पद और पॉवर को बनाकर मोहरा, अब तो जता दो मंशा चाहते क्या हो, सड़ी गली व्यवस्था बनी रहे और कुछ भी न नया हो, संवैधानिक, लोकतांत्रिक देश में रह रहे हो मत जाओ भूल, हर दिन हर पल हर सांस दिये जा रहे हो शूल पर शूल, ओछी नीतियों ने देश को कितना तड़पाया होगा, पल पल आंखों से आंसू छलकाया होगा, तिल तिल मर मर चिंतन मनन कर पुरखों ने ये नियम नए लाया होगा, पर आपके भूख और हवस ने कितने बार व्याख्या भटकाया होगा, सारे दुर्गुण काट व्यवस्था जमाया होगा, मत भूलो आप पर भी कोई भारी पड़ सकता ...
जीवन के आश्रम चार
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जीवन के आश्रम चार

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** पचीस-पचीस वर्षों में बांटा अपने ऋषि मुनियों ने जीवन को प्रथम नाम है ब्रह्मचर्य आश्रम पूर्णरूप से शिक्षित होने को। गृहस्थ आश्रम नवसृजन कर सृष्टि के कर्तव्य निभाने को, नवजीवन का पालन कर संस्कार दे, शिक्षित करने को। तृतीय वानप्रस्थ आश्रम में गृहस्थ जीवन के दायित्व निभाकर,शनै:शनै: जीवन की आकांक्षाओं से मोहभंग-दशा में जाने को। संन्यासआश्रम चतुर्थ स्थिति है मान, अपमान, लोभ, क्रोध की हर सीमा को कर पार इच्छाओं से मुक्ति, त्याग, विरक्ति मन में ईश भक्ति अंतिम यात्रा पूरी करने को। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट को...
नैनों में प्यार है कितना
कविता

नैनों में प्यार है कितना

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** नीर भरी आंखे किस-किस से छीपाये स्व की अफलता का कैसे पता लगाये उम्र बढ़ी और बढ़ती गई जिम्मेदारी भी नैनों में प्यार है कितना किसको बताये हृदय की सरलता कैसे समझ पायेगा जितना दिया है उतना ही अब पायेगा अंतर्मन का द्वन्द कोई कैसे जान पाये नैनों में प्यार है कितना किसको बताये अपने ही अपने ना रहे फिर आस कैसी सम्मान नहीं फिर उसपर विश्वास कैसी स्वभिमान बेच कर कोई कैसे जी पाये नैनों में प्यार है कितना किसको बताये कोई जी भी पाया है क्या खुद के लिए जीवन कुर्बा किया जो अपनों के लिए उस शख्स की पीड़ा कोई जान ना पाये नैनों में प्यार है कितना किसको बताये दावानल लगी है जीवन कानन मे अब करुणा का भाव ही नहीं आनन मे अब आप ही बताये जग मे कैसे जीया जाये नैनों में प्यार है कितना किसको बताये स्वार्थ से सजा है रिश्तों के बा...
पांडे की प्राण
कविता

पांडे की प्राण

मानाराम राठौड़ जालौर (राजस्थान) ******************** वह भावना शौर्य की जो पहले गई, ना रही राष्ट्र प्रेम और आजादी की स्मृति, नयनाभिराम घटना देखने को आंखें तरसती, कहीं हाड़ी रानी का सिर कटा, वह रानी लक्ष्मी गई, फिर भी इस देश की मेहमानी रही, सन् सत्तावन का संवत्सर, खीज गए सेनानी, पांडे की उग्रता चली, लेफ्टिनेंट की प्राण गई, पहचान रही चिरस्थाई पांडे ने भी प्राण गंवाई, स्वर गूंजा किसानों का, ब्रिटिश का राज हिला, जुड़े गुजराती गांधी, भारत में लाई नई आंधी, अंग्रेजों से लिया लोहा, न था उसमें वज़न, कौड़ी भाव बिका दिया, जनता ने बनाई तलवार, शीश काटे उग्रवादी, उन पर भारी वार, सब बन गए देश के महान पहरेदार, जगह-जगह खेली खून की होली, अंत समय में टूट गई ब्रिटिश राज की झोली, छोड़ निंदिया जाग उठे हिंदुस्तानी, भागने को विवश ब्रिस्टानी।। कुछ सीखना है, इस कलम से सीखो। ...
साँसों का क्या ठिकाना
कविता

साँसों का क्या ठिकाना

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** कब रुक जाएं चलती साँसें, कोई नहीं ठिकाना? चलते रहना तुम जीवन भर, कहीं नहीं रुक जाना। जब तक साँसें, तब तक जीवन, दिल की धड़कन चलती। जब रुक जाती दिल की धड़कन, तब काया है जलती। साँसों से जीवन चलता है, बिना साँस रुक जाता। नहीं ठिकाना है साँसों का, मानव समझ न पाता। मानव गर्भ छोड़कर ज्यों ही, बाहर आ जाता है। चलने लगती साँसें उसकी, जीवन पा जाता है। निर्धारित साँसें मिलती हैं, प्रभु प्रदत्त जीवन में। साँसें ही ऊर्जा भरती हैं, मानव के तन-मन में। साँसों का आना-जाना ही, जीवन कहलाता है। साँसों के रुकते ही मानव, मुर्दा बन जाता है। साँसों का सब लेखा जोखा, परमपिता रखता है। जो जैसा करता जीवन में, वैसा फल चखता है। तूने जितना जीवन पाया, उतनी साँसें तेरी। रखना साँसों को सँभाल कर, हो ना ज...
रहें ना रहें हम
कविता

रहें ना रहें हम

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** रहें ना रहें हम फिर भी हमारा निशान रह जाएगा! जो बीज रोपे थे बड़े अरमानों के साथ, उनमें खिलते पुष्पों की खुशबू में मेरा पता मिल जाएगा। उसमे सिंचे थे कुछ संवेदनाएं, कुछ भावनायें उन्हीं में मेरा निशान मिल जाएगा!! जिस वृक्ष को सींचा था जतन से उसका एक भी आखिरी पत्ता जो हरा रह जाएगा, उसकी निर्मलता में मेरा निशान मिल जाएगा!! कभी जो बैठना सूकून से पंछियों के कलरव और तान सुनना उनके सुर के संगीत में मेरा निशान मिल जाएगा! कल कल बहती रही जीवन भर एक नदी की तरह जो कभी बैठो उसके तट पर, चंद लम्हों के लिए, उसकी गहराईयों में मेरा निशान मिल जाएगा।। खुद के भीतर इन्सानियत को जिंदा रखना कभी जो सुनना किसी जीव की दर्द भरी कराहटें, उनकी करुणा भरी पुकार, उस दर्द में मेरा पता मिल जाएगा!! अपने ...
चीखें
कविता

चीखें

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** दीपोत्सव के बाद श्वानों की दुर्दशा देख दिल रो पड़ा, और कुछ शब्द निकल आए बचपन से अवसाद और कष्ट से पीड़ित रहा हूँ मैं समझ नहीं पाता था ये क्या और अखिर क्यों है मैं अपने रक्त रिसते घाव में चीख रहा हूँ क्या कोई मेरी पुकार सुनेगा??? मेरी खामोश चीखें भी समझ पाएगा जो मैं लाचार हो कर अंदर ही अंदर क्रंदन करता हूँ क्या कोई उसे समझ पाएगा???? हे मानव तुम्हारे मुस्कराते चेहरों के पीछे एक अंधेरी सड़क मिलों चलती है जिसपर नफरत, क्रोध, घृणा, नृशंसता रहती है मेरी सालो साल खामोश चीखें वहां तक नहीं पहुंचती हैं मुझे आग में जीते जी जलाते हो मुझे आग से नहलाते हो पाप पुण्य की भाषा नहीं समझता मगर ये इंसान का कौन सा रूप दिखाते हो???? मैं गलियों, रस्ते, काली धुंध भरी दुनिया मे रहता हूँ मैं क्या बिगाड़ प...
प्रवासी दुनिया
कविता

प्रवासी दुनिया

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** समुंदर का नीलापन आकाश का नीलापन उड़ रहे क्रेन पक्षी एक नया रंग दे रहे प्रकृति को। सुंदरता दिन को दे रही सौंदर्यबोध रात में ले रहा समुंदर करवटे लहरों की। तारों का आँचल ओढ़े चंद्रमा की चाँदनी निहार रही समुंदर को क्रेन पक्षी सो रहे जाग रहा समुंदर। मानों कह रहा हो प्रवास की दुनिया पर जाने से ही दुनिया और भी सुंदर लगती है। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व क...
कानून की चक्की
कविता

कानून की चक्की

हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** कानून की चक्की में रिश्ते - नाते, सगे - संबंधी सब पीस जाते हैं। अदालत की चक्कर काटते-काटते, जूता - जूती सब घिस जाते हैं।। मौका देख सुनसान गली - चौराहों में, शातिर जुर्म करते हैं रात के अंधेरे में। जोर है पक्ष - विपक्ष के दलीलों में, अदालत को सबूत चाहिए सवेरे में।। कभी - कभी कानून की चक्की, चलते - चलते जाम हो जाती है। लोगों को इंसाफ मांगते - मांगते, सुबह से लेकर शाम हो जाती है।। अच्छा वकील ढूंढने के लिए, खुद को वकील बनना पड़ता है। काले - कोट वालों की भीड़ से, एक को ही चुनना पड़ता है।। वकीलों को भगवान समझकर, नोटों का चढ़ावा देना पड़ता है। अपने दिल पे पत्थर रखकर, रिश्वतखोरी को बढ़ावा देना पड़ता है।। परिचय :-  हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' निवासी : डंगनिया, जिला : सारंगढ़ - बिलाईगढ़ (छत्तीसगढ़) ...