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पद्य

सरल कहानी है
गीत

सरल कहानी है

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** २२१ १२२२ २२१ १२२२ डा डा र ड रा रा डा डा डा र ड रा रा डा ई काफ़िया, है रदीफ़ धुन - इस मोड़ से जाते हैं कुछ सुस्त कदम रस्ते सरल कहानी है सरकार इनायत हो दरकार हमारी है हर दिन यह दावत हो इज़हार हमारी है ये महफ़िले अपनी नायाब करिश्मा है आदाब करें तुमको तक़दीर शुमारी है तुम कुछ न कहो तो भी हर बात इशारा है तस्वीर बसी दिल में कसमें हम खाई हैं तेरे खत पढ़ती हूँ रो रोकर सोती हूँ क्यूँ ख़्वाब न देखूँ मैं ये सरल कहानी है परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्री...
आराधना की ऋतु
कविता

आराधना की ऋतु

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** बारिश के पानी से देखो। भर गये नदी नाले तलाब। सूखी उखड़ी भूमि भी अब हो गई है गीली-गीली। वृक्षों पर भी देखो अब नये हरे पत्ते आने लगे। चारो तरफ पानी-पानी अब जमा हो गया बारिश का।। रास्ते पहाड़ और टीले आदि शीतल और नम होने लगे। बारिस की गिरती बूंदे से पेड़ फूल पत्ते खिल उठे। रुका हुआ पानी भी देखो वह भी अब बहने लगा। पशु पक्षी जीव जंतु आदि उछल कूद करने लगे।। दूर दराज गये पक्षी भी अब घरों को लौटने लगे। छोड़ छाड़कर अपने कामों को प्रभु आराधाना अब करने लगे। शरीर की शिथिलता भी अब मानव का साथ देने लगी। व्रत नियम संयम आदि लेकर ध्यान प्रभु का करने लगे।। चार माह का ये चौमासा साधु संत आदि को भाता है। स्थिर एक जगह रहकर के खुद का और जन कल्याण करते है। जियो और जीने दो के लिए एक स्थान को ही चुनते है। और ये सब हम और आप भी...
बेबसी
कविता

बेबसी

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** मां से स्नेह पाया पिता ने दुलार लुटाया, मैं घड़ी की सुई की तरह कभी इधर , कभी उधर प्यार समेटती, सहेजती दोनों में एक अनचाहा रिश्ता जोड़ती। संपूर्ण प्यार की चाह जीवन की इकलौती आस, बंटी हुई ज़िंदगी के क्या मायने जब माता पिता नदी के दो किनारे? हॉस्टेल की खिड़की से किसे देखती मेरी मायूस निगाहें छन-छन कर सूर्य की किरणें उदास करती मेरी राहें मम्मी डैडी को लगाने गले तड़पती मेरी छोटी छोटी बांहें। गले लगती पिता से जब मां याद आती हर पल, मां के चरण जब छूती पिता कैसे होंगे मैं सोचती, क्या सोचा मेरे मां बाप ने कभी बेटी किन दौरों से गुजरी? होठों पर मुस्कान है फीकी आंखें हैं उसकी गीली गीली, अगर तुम ना बिछड़ते रहते हमेशा साथ-साथ तो क्या बेटी होती दुखी? क्या बेटी होती दुखी? यहीं है बेटी की बेबसी। परिचय :- ...
पानी ही पानी है
कविता

पानी ही पानी है

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** धरती से अम्बर तक, एक ही कहानी है। छाई पयोधर पै, कैसी जवानी है।। सूखे में पानी है, गीले में पानी है । आँख खोल देखो तो, पानी ही पानी है।। पानी ही पानी है, पानी ही पानी है।। नदियों में नहरों में, सागर की लहरों में। नालों पनालों में, झीलों में तालों में।। डोबर में डबरों में, अखबारी खबरों में। पोखर सरोबर में, खाली धरोहर में।। खेतों में खड्डों में, गली बीच गड्ढों में। अंँजुरी में चुल्लू में, केरल में कुल्लू में।। कहीं बाढ़ आई है, कहीं बाढ़ आनी है। मठी डूब जानी है, बड़ी परेशानी है।। सोचो तो पानी है, घन की निशानी है। जानी पहचानी है, यही जिन्दगानी है।। पानी ही पानी है, पानी ही पानी है।। हण्डों में भण्डों में, तीर्थ राज खण्डों में।। कुओंऔर कुण्डों में, हाथी की शुण्डों में। गगरी गिलासों...
ब्रम्हमुहूर्त की हनुमत्कृपा
भजन, स्तुति

ब्रम्हमुहूर्त की हनुमत्कृपा

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** आज ब्रम्हमुहूर्त की हनुमत्कृपा। अगर सोते जगते है प्रभु याद आता, तो समझो कि भक्ति पनपने लगी है। तेरा मन भी यदि प्रभु में रमने लगा है, तो ईश्वर की करुणा बरसने लगी है। अगर सोते जगते....... तू प्रभु नाम सुमिरन की आदत बना ले, स्वयं होगा अनुभव,है ये मन को भाया। तू प्रभु दर को अपने कदम दो बढ़ा ले, तू देखेगा वो ,चार पग दौड़ आया। प्रभु से तेरी प्रीति बढ़ने लगी तो, जगत माया खुद ही सिमिटने लगी है। अगर सोते जगते..... तुझे प्रभु ने भेजा है,सृष्टि सृजन मिट, मगर मुख उद्देश्य है प्रभु का सुमिरन। जगत कार्य हाथों से करता रहे पर, तेरे मन मे होता रहे प्रभु समर्पण। तू पतवार को सौप दे यदि प्रभु को, तो नैय्या भँवर में भी चलने लगी है। अगर सोते जगते........ अगर भूल उद्देश्य माया में चिपका, तो ईश्वर की करुणा को तूने गँवाया। जब अं...
अपना गम
कविता

अपना गम

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** पास आकर बैठो तो बताएंगे अपना गम दूर से पूछोगे तो कहेंगे बहुत खुश है हम..!! घर की तलाश में घर छोड़ आए है हम, अपने ही घर से मानो बेघर हो गए हम..!! चार पैसे कमाने गांव से शहर क्या आ गए लोगों की नजरों में मेहमान बन गए हम..!! न गांव के रहे अब ना शहर के रहे हम मेहमान की तरह जिंदगी बिता रहे है हम…!! शहरों तक नहीं आती मिट्टी की खुशबू, गांव की मिट्टी से बहुत दूर आ गए हम..!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी...
भीतर की बारिश
कविता

भीतर की बारिश

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भीग रही है धरती सारी झूम रहा है नील गगन हर तरफ है छटा निराली नाच रहा मयूर हो मगन तेरे करम की बारिश में तर बतर है सारा चमन मुझ पर भी रहम कर मालिक धोकर मेरे अंतर का अहम मुझको भी कर तू निर्मल बहाकर मेरे सारे अवगुण कि तुझमें ही रम जाऊ मैं भूलकर सारे रंज ओ गम कर दे तेरे करम की बारिश बाहर भी और भीतर भी तर हो जाए और तर जाएं अबकी बारिश में फिर हम।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपन...
शोषण और महंगाई
कविता

शोषण और महंगाई

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** जिधर देखो उधर शोषण और महंगाई भुखमरी और गरीबी में जीते हर बहन भाई कैसे सच हो सपना गांधी के ग्राम स्वराज का न जाने क्या होगा इस समाज का भ्रष्ट नेता भ्रष्ट सिस्टम भ्रस्ट पॉलिसी सारी भ्रष्टाचार की अगन में जलती भारती प्यारी जैसे बज रहा हो यहां हर स्वर बिना साज का न जाने क्या होगा इस समाज का बेरोजगारी की कगार पर खड़ा हर युवक चाहत नौकरी की या बने नेता का सेवक चिंता कल कि नहीं उसे फिक्र है आज का न जाने क्या होगा इस समाज का निजी स्वार्थ में जुटे जब देश के ही रक्षक कैसे हो विकास जब बने रक्षक ही भक्षक ऐसे बेईमान कर रहे हैं सौदा मां की लाज का जाने क्या होगा इस समाज का जवानों सुनो पुकार भारत भारत मां की रक्षा करनी है बलि देकर अपने जां की संकल्प ले करेंगे, रक्षा भारत मां की लाज का तभी सुधार होगा इस समाज का पर...
ज़ुल्म और दर्द
कविता

ज़ुल्म और दर्द

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** होती जब-जब अस्मिता की हानि, उठती ज़ुल्म और दर्द की आंधी, पौरुष तो रहता जन्मजात अंधा, स्त्रियाँ भी नेत्रों पर पट्टियां बांध लेती हैं।। भीष्म प्रतिज्ञा लेने वाले गंगा पुत्र भी भरी सभा बीच मौन हो पछताते हैं.., गुरुजन और नीति श्रेष्ठ विदुर भी,, हाथ पे हाथ धरे फफकते रह जाते हैं।। झूठी दुनिया के संगी साथी देव पुत्र, हर कर अपना सब कुछ हाय कैसे, ये दांव अपनी ही स्त्री को लगाते हैं, बाजुओं के बल पर धिक्कारे जातें हैं।। खींचता है जब साड़ी दुर्शासन., झूठे रिश्तों से भीख मांग हरती अस्मिता, तब कृष्णा को फिर कृष्ण ही याद आते हैं, और अम्बर से चीर बढ़ा वो..., रेशम के एक धागे का मोल चुकाते हैं..।। कटी थी जब ऊंगली केशव की.., कृष्णा ने अपने आंचल का चीर फाड़, कृष्ण की ऊंगली पर बांधा था..., कृष्ण एक भाई का फर्ज निभाने आते हैं...
उद्यमशील पिता की बेटी
कविता

उद्यमशील पिता की बेटी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** खनन उपकरण काँधे पर रख, खेती करने जाती। पढ़ी-लिखी, शिक्षित श्रमिका है, हरसाती मुस्काती। खेतों में श्रम बिंदु बहाते, बाबुल थक जाते हैं। लिए कुदाल हाथ में अपनी, बेटी को पाते हैं। निकल पड़ी है वीर यौवना, मेहनत गले लगाने। हँसती और मुस्कुरा गाती, है बरसाती गाने। स्वयं पिता का हाथ बटाने, खेतों पर जाती है। खेती के सब काम देखती, हरबोला गाती है। नारी को जो अबला कहते, उनको है बतलाती है। कुछ भी कर सकती है नारी, जब अपने पर आती। कठिन परिश्रम करके तन से, जब श्रम बिंदु बहाती। उद्यमशील पिता की छाती, गजभर फूली जाती। साहस और समर्पण लख कर, युवा शर्म खाते हैं। चुल्लू भर पानी में कायर, डूब मरे जाते हैं। बिटिया की मेहनत रँग लाई, फसल लहलहाती है। हरे भरे खेतों को लखकर, बिटिया मुस्काती है। हम सबको श...
आगे दिन किसानी के
आंचलिक बोली

आगे दिन किसानी के

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** काँटा खूंटी ल बिन ले सँगी मेड़ पार ल चतवार ले। आगे हे दिन किसानी के सँकेल के आगी बार दे। चारो कोती खातु कुड़हा टेपरी डोली भर म पाल दे। बाढ़े सब कांदी-कचरा ल खन-खन के ओला टार दे। परछी उतरे हे मेड़ पार म तीरे-तार ल ढेलवानी दे-दे। खेत के भोरका डबरा ल खन के रापा-रापा पाट दे। मेड़ बनगे हे रोठ-रोठ मुही ओ मेड़ जम्मो ल सुधार दे। मेड़ जम्मो म माटी भर के सुग्घर मेड़-पर ला सवाँर दे। बिजहा तिल राहेर हिरवा ल मेड़-पार सब्बो कती छिंच दे। खेत के सुग्घर जोताई करके धान बिजहा ल बोवाई कर दे। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आद...
अपनी ख्याति में
कविता

अपनी ख्याति में

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** व्यक्ति व्यक्ति का निर्बल संगम कर रहा मानवता को कायर बढ़ रही आज अमानवता कर रहे मानवता में दानवता। सत्य, स्पूर्ति स्पंदन गया आज उड़ मानवता से जागे आज अनेक रावण करवातेे नित नए क़दम। एक पुरुष का पौरूष जागे करें क्या एक अकेला इस नर्तन में। रक्त देख रक्त खौलता था शिराएं थी तनजाती वर्कका मनु, मनु सानहीहै मग न केवल अपनी छाती में। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तम...
बरसात
कविता

बरसात

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन के नवगीत मनोहर, चारों ओर सुनाने आई। प्यासी धरती की आशाएँ, फिर बरसात जगाने आई। बूँदों की मोती मालाएँ, अंबर से भू तक आएँगी। गहन घाटियों से शिखरों तक, चाँदी की पर्तें छाएँगी। तपते कण-कण को सुखदाई, शीतलता पहुँचाने आई। प्यासी धरती की आशाएँ, फिर बरसात जगाने आई। सावन में रिमझिम झड़ियाँ तो, भादौ में घनघोर घटाएँ। वन-उपवन में मेघपुष्प की, बिखराएँगी रम्य छटाएँ। नयनों को आकर्षक सुन्दर, अनुपम दृश्य दिखाने आई। प्यासी धरती की आशाएँ, फिर बरसात जगाने आई। मतवारी बदरी के पीछे, कजरारे बादल आएँगे। गाज गिरेगी जब अलगावी, नीर नयन से बरसाएँगे। प्रेमी युगलों को अनुरागी, पाठ कठिन सिखलाने आई। प्यासी धरती की आशाएँ, फिर बरसात जगाने आई। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१...
रिति गागर
कविता

रिति गागर

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मन की रीति गागर में आ गया समंदर का घेरा इन अलको में इन पलकों में भटक गया चंचल मन मेरा। कंपीत लहरों सी अलके है। ्दृगके प्याले भरे भरे। तिरछी चितवन ने देखो कर दिए दिल के कतरे कतरे,। द्वार खुल गए मन के मेरे मनभावन ने खोल दिए बैठे किनारे द्वारे चौखट दृग पथमे है बिछा दिए परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्...
हमर छत्तीसगढ़
आंचलिक बोली

हमर छत्तीसगढ़

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** गाँव-गाँव म शीतला बिराजे, मन मयारुक उजागर हे । हमर छत्तीसगढ़ आगर हे, देवता धामी के सागर हे ।। दंत्तेवाड़ा म तही बिराजे हस, दंत्तेश्वरी महारानी । आंनद मंगल भरें जंगल म, बरसावत हस बरदानी ।। रतनपुर म महामाया बिराजे, महिमा जेकर हे भारी । गंगरेल म अंगार मोती दाई, दु:ख दरिद्रा ल संघारी ।। डोगरगढ़ म बम्लेश्वरी ह बैइठें, चूरी कंगना साजे । राजनांदगाँव म पताल भैरवी, सबों के मन ल भाते ।। राइपुर के दुंधाधारी, बंजारी हे पावन जेकर धाम । धमतरी म बिलाई माता, जेला मेहां करव प्रणाम ।। झलमला म सुग्घर बिराजे हावे, जय हो गंगा मैय्या । चैंत कुंवार म मेला भराथे, पापी मन के पाप धोवइय्या ।। राजिम म राजीव लोचन, अरपा, पैरी के सुग्घर धार हे । मया-दुलार मिले आशीष सुग्घर, डोमू के इंही गोहार हे।। परिचय :- डोमेन्द्र ने...
कुंडलियाँ
कुण्डलियाँ

कुंडलियाँ

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** देख शिकारी आदमी, बिना लिए हथियार। तन पर उजला चैल है, मन में काली धार।। मन में काली धार, चले हैं वो व्यापारी। बिना लगाए दाँत, डसे है ये विषधारी।। कोमल होती दंग, फँसे जनता बेचारी। नेता करते घात, धूर्त हैं देख शिकारी।। बैठ शिकारी राह में, घात लगाए एक। सरल लक्ष्य को ताकता, आँख वहीं पर टेक।। आँख वहीं पर टेक, बालिका सुंदर प्यारी। जाल बिछाता देख, कलुष देखो व्यभिचारी।। कोमल करती क्रोध, पाप की ये बीमारी। हरो दुष्ट के प्राण, राह में बैठ शिकारी।। बनो शिकारी साधकों, शब्द बिछाओ जाल। रचो काव्य की योजना, छंद सोरठा माल।। छंद सोरठा माल, नाथ को करना अर्पण।। सुनो ध्वनि करताल, दमकना फिर तुम दर्पण।। कोमल बड़ी प्रसन्न, महालय है हितकारी। श्रोता से पा मान, शब्द के बनो शिकारी।। बनी शिकारी आज मैं, देखूँ कर की ताल। टेढ़ी-म...
तेरी तलाश में
कविता

तेरी तलाश में

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मैं आज भी तुमको ढूंढता हूं तेरी अनकही बातों में, मैं आज भी तुमको ढूंढता हूं तेरी खामोश हुई चुपी में, मैं आज भी तुमको ढूंढता हूं इन बरसती हुई बरसातों में, मैं आज भी तुमको ढूंढता हूं इन मखमली सी शामों में, मैं आज भी तुमको ढूंढता हूं इन बहती हुई हवाओं में, मैं आज भी तुमको ढूंढता हूं इन गुमशुम रातों में, मैं आज भी तुमको ढूंढता हूं तुम से हुई मुलाकातों में, मैं आज भी तुमको ढूंढता हूं तुम से हुई छोटी-छोटी बातों में। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि र...
कोई तो चीत्कार  सुने उसकी
कविता

कोई तो चीत्कार सुने उसकी

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** भरी बरसात के मौसम में भी नदियाँ वीरान सी लगती है कोई तो चीत्कार सुने उसकी वह खाली-खाली लगती है। सारी नदियाँ दूर-दूर तलक बंजर जमीन सी लगती है बन गई शहर का कूड़ादान इसे देख नदियाँ सिहरती है। आज नदियाँ मैली लगती है नाली सी वह काली हो गई गंदे पानी से हुई वह कुत्सित मीठे जल से वंचित हो गई। सारे घाटों का बंदरबाट हुआ सुना-सुना पनघट घाट हुआ सब जीव-जंतु पानी को तरसे पूरी नदियाँ श्मशान घाट हुआ। यह नदियाँ हमेशा चीख रहीं कोई तो उसकी पुकार सुनो गङ्गा की तरह यह भी लहराए कोई तो उसकी गुहार सुनो। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, क...
माँ मै दौडूंगा
कविता

माँ मै दौडूंगा

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** माँ मै तुम्हारे लिए दौडूंगा जीवन भर आप मेरे लिए दौड़ती रही कभी माँ ने यह नहीं दिखाया कि मै थकी हूँ। माँ ने दौड़ कर जीवन की सच्चाइयों का आईना दिखाया सच्चाई की राह पर चलना सिखाया। अपने आँचल से मुझे पंखा झलाया खुद भूखी रह कर मेरी तृप्ति की डकार खुद को संतुष्ट पाया। माँ आप ने मुझे अँगुली पकड़कर चलना बोलना लिखना सिखाया और बना दिया बड़ा आदमी मै खुद हैरान हूँ। मै सोचता हूँ मेरे बड़ा बनने पर मेरी माँ का हाथ और संग सदा उनका आशीर्वाद है यही तो सच्चाई का राज है। लोग देख रहे खुली आँखों से माँ के सपनों का सच जो उन्होंने मेहनत भाग दौड़ से पूरा किया माँ हो चली बूढ़ी अब उससे दौड़ा नहीं जाता किंतु मेरे लिए अब भी दौड़ने की इच्छा है मन में। माँ अब मै आप के लिए दौडूंगा ता उम्र तक दौडूंगा दुनिया को ये दिखा संकू ...
खुशबू
ग़ज़ल

खुशबू

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** पलकों पर ठहरी है रात की खुशबू अनकही अधूरी हर बात की खुशबू साँसों की थिरकन पर चूड़ी का तरन्नुम माटी के जिस्म में बरसात की खुशबू पतझड़ पलट गया दहलीज तक आकर जीत गई अंकुरित ज़ज्बात की खुशबू अहसास-ऐ-मुहब्बत तड़प तड़प के मर गया जिंदा रही पहली मुलाकात की खुशबू पलकें झुका के कैफियत कबूल की मगर ज़वाबों से आती रही सवालात की खुशबू जुल्फों की कैद में कुछ अरसा ही रहे उम्र भर आती रही हवालात की खुशबू कली रो पड़ी हूर के गजरे में संवर कर भूल ना पाया पड़ोसी पात की खुशबू I परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अ...
दोहाष्टक
दोहा

दोहाष्टक

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** यौवन रस बरसा मगर, हुई न प्रीति प्रगाढ़।। मृदु चुंबन की आस में, दुर्बल हुआ असाढ़।।१ चितवन ने होकर मुखर, बिछा दिया है जाल। चुग्गा चुगने को प्रणय, खग सा भरे उछाल।।२ मदिर नैन झुकते गये, रक्तिम हुए कपोल। चुंबन का प्रतिसाद पा, थिरक उठे रमझोल।।३ हृदय पृष्ठ पर प्रीति के, उग आये जलजात। नैनो से झरने लगे, प्रियता युक्त प्रपात।।४ ले स्वरूप संकल्पना, जोड़ - जोड़ संदर्भ। शब्द-बीज का प्रस्फुटन, हो जब कवि के गर्भ।।५ धरा मेघ मिल रच रहे, प्रियता के अनुबंध। रोम-रोम से आ रही, मदिर पावसी गंध।।६ जला दिये तारीफ कर, हीरामन ने दीप। रत्नसेन मन जा बसा, प्रिय के सिंहल द्वीप।।७ सम्बन्धों के दुर्ग की, कवच बने प्राचीर। मोती रखे सहेज कर, पड़ी सीप ज्यों नीर।।८ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र...
किताब मैं तस्वीर
कविता

किताब मैं तस्वीर

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** किताबों मैं तेरी तस्वीर छुपा दी थी कभी तस्वीर नहीं दिखती खोजता हूँ तुझे अब किताबों में। हाथों की लकीरों में तेरा नाम देखूं अब यादों में कहीं उनका जिक्र हो । भीगी पलकों से याद करते हुए तुम्हें खोजा चाहत ही रही । तुम्हें पाने की ... किताबों में छुपी तस्वीरें अब सपने में ही देखता अब तो अनजान रिश्तों के लिए बेचैन हूं। ढूंढता हूँ तस्वीर को जो किताबों में छुपा दी। परिचय :- संजय कुमार नेमा निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि...
काश पंख होते मेरे…
कविता

काश पंख होते मेरे…

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** काश पंख होते मेरे, उड़ जाता, काश पंख होते मेरे, उड़ जाता। मनचाही जगह पर मैं, चला जाता, काश पंख होते मेरे, उड़ जाता। काश पंख होते मेरे, उड़ जाता।। कोई अपना दूर सही, याद सताती है, जिस पल में याद करूं, याद आती है। दिल जितना याद करे, मुझको रुलाती है, मेरा दिल धड़के यूं, मिल जाता। मनचाही जगह पर मैं, चला जाता, काश पंख होते मेरे, उड़ जाता। काश पंख होते मेरे, उड़ जाता।। दिन याद करूं दूनी, रात चौगुनी आती है, आकर मेरे सपनों में, समां जाती है। एहसान किया ऐसा, सपनों में आकर सही, मेरा सपना चाहे यूं, मिल जाता। मनचाही जगह पर मैं, चला जाता, काश पंख होते मेरे, उड़ जाता। काश पंख होते मेरे, उड़ जाता।। हर पल मैं याद करूं, एहसास मुझे ऐसा, जुदाई भी क्या ऐसी, मुझे तड़पाती है। देखो छलके आंसू मेरे, क...
तीन वर्ष के नीम तुम
कविता

तीन वर्ष के नीम तुम

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** तीन वर्ष के नीम तुम, तुमको मैं कैसे मिटने दूँ ? "वैद्य" मानव के नीम तुम, तुमको मैं कैसे मिटने दूँ ? तीन वर्ष के...... लगाये थे अभी उन्नीस में तुम , बाइस में कैसे मिटने दूँ ? अस्सी-नब्बे आयु प्रमाणी तुम, तीन में ही कैसे मिटने दूँ ? तीन वर्ष के....... प्रकृति की अद्भुत शोभा तुम , अस्तित्व कैसे मिटने दूँ ? एक अनिल ने गिराया तो, उठवा तुम्हें मैं "अनिल" से दूँ ||तीन वर्ष के........ मानव प्रकृति की औषधि तुम , तुमको मैं कैसे मिटने दूँ ? मेरी तो आत्मा हो तुम , तुमको मैं कैसे मिटने दूँ ? तीन वर्ष के....... तीन वर्ष के नीम तुम , तुमको मैं कैसे मिटने दूँ ? वैद्य मानव के नीम तुम , तुमको मैं कैसे मिटने दूँ ? तुमको मैं कैसे मिटने दूँ ? तुमको मैं कैसे ............... परिचय :- सुरेश चन्द्र जोशी शिक्षा : आचार्य, बीएड टीजी...
आप गुजरे जिस गली से
कविता

आप गुजरे जिस गली से

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** डा र डा डा डा र डा डा डा र डा डा डा र डा २१२२ २१२२ २१२२ २१२ आप गुजरे जिस गली से महफ़िलें गुलज़ार हैं चाँदनी बिखरे ज़मीं पे खुशनुमा अहसास है ये फ़िज़ाएँ गा रही हैं बानगी तारे दिखाते हर तऱफ छाया सुकूँ है रहनुमा भगवान हैं तू कदम रख दे जहाँ पर फूल खिलकर महकते हैं तू सभी का चहेता है दिलरुबा का मान है आज मेरे आँगना में माँडने की शान छाई दीप जोया साँझ आई शुभ घड़ी की शान है परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, ल...