ज़िंदगी
आशीष तिवारी "निर्मल"
रीवा मध्यप्रदेश
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आपाधापी, भागादौड़ी, रेलमपेल हो गयी
ज़िंदगी मैट्रो शहर की कोई रेल हो गई ।
दो पाटों के बीच में पिस रहा हर कोई ऐसे
ज़िंदगी डालडा कभी सरसों का तेल हो गई।
बाबाजी के प्रवचन सुनके घर को लौटा हूं मैं
खबर चल रही है टीवी में, उनको जेल हो गई।
हुस्न के कारागृह में चक्की चला रहे कितने ही
मुझ निरापराधी की चंद दिनों में बेल हो गई।
टिकते कहां है मोबाइल युग के रिश्ते ऐ-निर्मल
कस्मे, वादे और मोहब्बत जैसे कोई सेल हो गई।
परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक सं...