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पद्य

ए चांद! जरा जल्दी आना
कविता

ए चांद! जरा जल्दी आना

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ए चांद! जरा जल्दी आना साजन का दीदार जल्दी कराना हाथों में देख मेहंदी लगाई है तेरे नाम की मेहंदी रचाई है माथे पर बिंदिया लगाई है मैंने पूजा की थाल सजाई है ए चांद! जरा जल्दी आना साजन का दीदार जल्दी कराना हाथों में चूड़ी और कंगना है कानों में झुमका पहना है सजना ही मेरा गहना है सजना के लिए ही सजना है ए चांद! जरा जल्दी आना साजन का दीदार जल्दी कराना करवा चौथ में चांद का इंतजार रहता है चांद के साथ में सजना का दीदार होता है उसके हाथ से पानी पीकर व्रत मेरा टूटता है हमारा प्यारा रिश्ता और परवान चढ़ता है ए चांद! जरा जल्दी आना साजन का दीदार जल्दी कराना।। परिचय :- दीप्ता मनोज नीमा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप...
नैन बिंबित हैं
गीत, छंद

नैन बिंबित हैं

आचार्य डाॅ. वीरेन्द्र प्रताप सिंह 'भ्रमर' चित्रकूट धाम कर्वी, (उत्तर प्रदेश) ******************** छंद : मधुरागिनी छंद (वर्णिक) गीत विधान : वर्णवृत :- तगण, भगण, रगण, तगण, भगण, गा। शिल्प : १६ वर्ण, १०/६ वर्ण पर यति, समपाद वर्णिक छंद, दो-दो चरण समतुकांत। संकल्प से मन की मयूरी, नाचती वन में। सामर्थ से सपने सजाती, स्वयं के तन में।। आराधिके बन दामिनी की, नृत्य है करती। निर्विघ्न चंचल चंचला-सी, चूमती धरती।। आकाश से चुनती अपेक्षा, साधना घन में। सामर्थ से सपने सजाती, स्वयं के तन में।‌। अम्भोज-सा बिखरा पड़ा है, दिव्यता छहरे। दे ताल अंबर को पुकारे, धारणा लहरे।। झूमें लता तरु पुष्प डाली, प्रेम अर्चन में। सामर्थ्य से सपने सजाती, स्वयं के तन में।। प्रत्यूष की अभिलाष में द्वै, नैन बिंबित हैं। कौमार्य की वन वीथिका में, बिंब चिह्नित हैं।। वातास गंधिल शोभती है, प्...
मैं खुद पर अमल नहीं करता हूं
कविता

मैं खुद पर अमल नहीं करता हूं

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** मैं लोगों को बहुत ज्ञान बांटता हूं उदाहरण सहित नसीहतें देता हूं सचेत रहने की सलाहें देता हूं पर मैं खुद पर अमल नहीं करता हूं खास व्हाट्सएप ग्रुप में अच्छी पोस्ट डालने की सलाह देता हूं डर्टी बातें मीडिया में नहीं देखने की बातें जोर देकर बोलता हूं पर मैं खुद उस पर अमल नहीं करता हूं आध्यात्मिक वाणी वाचन बहुत करता हूं संगत को अमल करने की सलाह देता हूं बुरी चीजों से दूर रहने को बोलता हूं पर मैं खुद उस पर अमल नहीं करता हूं भाषणों में मैं विकास की बातें बहुत करता हूं याद से मेरे चिन्ह पर ठप्पा लगाने को कहता हूं जनता जनार्दन हित की बातें बहुत करता हूं पर मैं खुद उस पर अमल नहीं करता हूं समाज को प्रगति पथ पर चलने को कहता हूं उत्साह से उच्च पद कायम करने कहता हूं गरीबों की सेवा करने सबको उत्साहित करता ह...
मर गया
कविता

मर गया

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** पैदा हुआ, उठा बैठा, खेला कूदा, पढ़ा लिखा, पढ़ाया कभी नहीं, परिवार बनाया, खाया पीया, खिलाया कभी नहीं, सोकर जगा, जगाया कभी नहीं, न बोला, न चीखा न चिल्लाया, न हक़ बचाने सामने आया, ताउम्र मृत रहा, बस बेनाम मौत मर गया। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डा...
पितृ अभिव्यक्ति
दोहा

पितृ अभिव्यक्ति

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** पिता कह रहा है सुनो, पीर, दर्द की बात। जीवन उसका फर्ज़ है, बस केवल जज़्बात।। संतति के प्रति कर्म कर, रचता नव परिवेश। धन-अर्जन का लक्ष्य ले, सहता अनगिन क्लेश।। चाहत यह ऊँची उठे, उसकी हर संतान। पिता त्याग का नाम है,भावुकता का मान।। निर्धन पितु भी चाहता, सुख पाए औलाद। वह ही घर की पौध को, हवा, नीर अरु खाद।। भूखा रह, दुख को सहे, तो भी नहिं है पीर। कष्ट, व्यथा की सह रहा, पिता नित्य शमशीर।। है निर्धन कैसे करे, निज बेटी का ब्याह। ताने सहता अनगिनत, पर निकले नहिं आह।। धनलोलुप रिश्ता मिले, तो बढ़ जाता दर्द। निज बेटी की ज़िन्दगी, हो जाती जब सर्द।। पिता कहे किससे व्यथा, यहाँ सुनेगा कौन। नहिं भावों का मान है, यहाँ सभी हैं मौन।। पिता ईश का रूप है, है ग़म का प्रतिरूप। दायित्वों की पूर्णता, संघर्षों की ...
मृगनयनी के दृग चटुल, छोड़ रहे ब्रह्मास्त्र….
दोहा

मृगनयनी के दृग चटुल, छोड़ रहे ब्रह्मास्त्र….

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** मृगनयनी के दृग चटुल, छोड़ रहे ब्रह्मास्त्र। बचना हैं तो आप भी, पढ़ें प्रीति का शास्त्र।।१ चंचरीक मन खोलकर, बैठा हृदय गवाक्ष। पढ़े प्रीति की पत्रिका, गोरी के पृथुलाक्ष।।२ भुजपाशों में कैद हो, विहँस उठा शृंगार। जीत गया तन हार कर, मन का वणिक विचार।।४ मेघावरियाँ प्रीति की, बरस रही रस धोल। नर्तन करे कपोल पर, कुंतल भी लट खोल।।४ अवगुंठन कर यामिनी, पढ़े प्रणय के गीत। निक्षण की अभ्यर्थना, स्वीकारो मन मीत।।५ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं...
प्रभु की चाह
स्तुति

प्रभु की चाह

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** ईर्ष्या नहीं ईश्वर चाहिए, द्वेष नहीं द्वारकाधीश चाहिए। कपट नहीं कन्हैया चाहिए, छल नहीं छलिया श्री कृष्ण चाहिए। राग नहीं राघवेंद्र चाहिए, भेद नहीं भगवान चाहिए। घृणा नहीं घनश्याम चाहिए, क्रोध नहीं कान्हा चाहिए। मन में मेल नहीं कृष्ण सुदामा सा दोस्त चाहिए। लोभ नहीं लट घुंघराले श्याम चाहिए, मोह नहीं मोहन चाहिए, मद नहीं मन मोहक कृष्ण चाहिए। तृष्णा नहीं तीराने वाला राम चाहिए। अंधकार नहीं किरण चाहिये, गम नहीं मुस्कान चाहिये। युद्ध नहीं गीता का ज्ञान चाहिये, हार नहीं विजय चाहिये। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी...
जले हैं दीप खूब झिलमिलाने दो
ग़ज़ल

जले हैं दीप खूब झिलमिलाने दो

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जले हैं दीप इन्हें खूब झिलमिलाने दो ख़ुशी को पास में आकरके गीत गाने दो चमन को आज विरासत में जो मिली खुश्बू उसे दिलों में हर मकाम पे लुटाने दो ग़रीब और अमीरी में फ़र्क छोड़ो जी सभी से हाथ मुस्कुराके अब मिलाने दो ये जिंदगी तो तीन दिन का बुलबुला ही है इसे बेख़ौफ़ होके और खिलखिलाने दो न रोककर उसे मायूस करो अब रंजन उसे भी अपना क़दम एक तो बढ़ाने दो परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रकाशन के अधीन, तीन साझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित, १० से ज्यादा कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, ५० से ज्यादा गीत के चल पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, २०१६ से लेखन में अभिरुचि विशेष : आध्...
बचपन की देहरी
कविता

बचपन की देहरी

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बचपन की देहरी पार हो गई जिंदगी के द्वार से क्या खेले क्या पाए कुछ याद नहीं होता है क्षोभ, क्यों क्षणिक सा बचपन बिदा हो गया ना समझ पाए न अनभिज्ञता मैं भोग पाये घृणा, देव्ष से सरोकार न था ना भेद था, ना मुखोटे ओढ़े हंसने वाली हंसी थी क्यों चला गया बिन बताए पुनः वापस ना आने के लिए। अतीत की स्मृतियों को जोड़ने के लिए आती है याद आज पगडंडी बचपन की भागते दौड़ते थे छत मुंडेल की इमली, बेर याद आते हैं आते हैं याद मिट्टी के घरोदे रुठ गई हमसे वह पीपल नीम की छाया देखो तो, लौटकर वह आज तक नहीं आया। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर ...
चुनाव
कविता

चुनाव

गुरप्रीत सिंह कोबरा कुरूक्षेत्र  ******************** जित चुनाव आता देखा, शहर गया गाँव आता देखा, लगी-बुझी का मेल होते देखा, चुनाव में अपना गैर होता देखा, गुरप्रीत गेल गैर प्यार होता देखा, जित चुनाव आता देखा.... दो मते, मत पा एक होता देखा, बीच गांम-गाल्ल गल्लियारा देखा, कोई बांटता अर कोई लेता देखा, कोई लूटता ओर लूटाता देखा, जित चुनाव आता देखा.... कर्मठ, शिक्षित, सेवक इमानदार प्रत्याशी देखा, झूठ, फरेब, नशा, राशन बंटता देखा, मजमा बुथ के भीतर बाहर देखा, उंगल स्याही से सना देखा, जित चुनाव आता देखा.... हार-जीत की पूछ कर देखा, जवाब मिला, मत बेचा, प्रत्याशी नहीं देखा, चुनाव नहीं सौदेबाजी होता देखा, नशा, प्रलोभन देने वाला देखा, ना कोई प्रचा रद्द, ना सजा होता देखा, जित चुनाव आता देखा.... प्रलोभन, नशा, निषेध निष्फल होता देखा, अयोग्य, योग्य को मात द...
टुरी खोजाई
आंचलिक बोली, कविता

टुरी खोजाई

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता ऐ गाँव ले वो गाँव चलत हाबे घुमाई, जेला कथे छत्तीसगढ़ मा टुरी खोजाई.! एक सियान हे ता दो नवजवान हे, गाडी मा बइठे नशा करे बिगडे जुबान हे.! कोनो सच बतात हे खेती किसानी इही मोर अभिमान हे, ता कोनो जुट गाडी बंगला कई ऐकड खेत कही कही के बतात हे.! जुठ लबारी तोर काम नई आये, काम अही तोर व्यवहार हा, टुरी (लडकी) मत खोजो, खोजना हे ता घर बर बेटी खोजो.! पइसा वाले जन देख-देख ले वोकर घर परिवार व्यवहार ला, पइसा वाले मारही पीटही झगडा करही व्यवहारवान बेटी ला सम्मान दीही.! ! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी : मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भ...
बचपन मे लौट जाये
कविता

बचपन मे लौट जाये

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** निश्छल प्रेम की नित बहती हो धारा मोहक और हम सबका अति प्यारा दोस्तों के संग खेलखुद मे जुट जाये आओ हम सब बचपन मे लौट जाये बच्चे सदा सब के मन को लुभाते है सपनों की सारी बातें सच हो जाते है आओ सपनो की नई दुनिया सजाये आओ हम सब बचपन मे लौट जाये पिता जिसमे खुशियों का खजाना है माँ की आँखों में ममता का तराना है माँ के आँचल मे छुप, गम भुला जाये आओ हम सब बचपन मे लौट जाये ना फिक्र कोई,ना जिम्मेदारी की बोझ खुशियों की बारातें जीवन मे हर रोज पापा के कांधे बैठ सपने सजा जाये आओ हम सब बचपन मे लौट जाये खुशियों का समंदर हरपल पास हो जीवन का यह पल हमेशा खास हो आओ बचपन में फिर से घूम आये आओ हम सब बचपन मे लौट जाये परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भो...
हवा महसूस होती है हवा देखी नहीं जाती।
ग़ज़ल

हवा महसूस होती है हवा देखी नहीं जाती।

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** सदा जिसकी हक़ीक़त में सुनी, समझी नहीं जाती। हवा महसूस होती है हवा देखी नहीं जाती। घटा से दोस्ती रखकर, हवा में उड़ चलें लेक़िन, ज़मीं से दुश्मनी हमसे बड़ी रख्खी नहीं जाती। उठाई है ख़ता हमनें वफ़ा देकर सभी उनको, करें हम लाख कोशिशें लगी अपनी नहीं जाती। बड़ा ही ख़ौफ़जादा है जहाँ का क़ायदा लेक़िन, हँसी को देखकर हमसे हँसी रोकी नही जाती। उड़ें चाहे कहीं ऊपर, उठे हम आसमानों तक, ज़मीं पाँवों तले जो थी कभी छोड़ी नहीं जाती। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित क...
हमारा हौसला इश्क़ था
ग़ज़ल

हमारा हौसला इश्क़ था

डॉ. वासिफ़ काज़ी इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** याद ने उनकी जहां-जहां क़दम बढ़ाये हैं । अश्कों ने मेरे वहां वहां ग़लीचे बिछाये हैं ।। क्या करें.. हम अपनी आँखों का हमदम । ख़्वाब इसने हमें बेहद हसीन दिखाये हैं ।। डर लगने लगा है अब तो वस्ल से हमको । हम बदनसीब....... तो हिज्र के सताये हैं ।। हमारा हौसला इश्क़ था... सफ़र में यारों । रास्ते के पत्थर....... ख़ुद हमने हटाये हैं ।। लेते हैं इम्तिहान मेरी दोस्ती का "काज़ी" । दुश्मनों से भी रिश्ते शिद्दत से निभाये हैं ।। परिचय :- डॉ. वासिफ़ काज़ी "शायर" निवासी : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते ह...
हे सुंदर निशि
कविता

हे सुंदर निशि

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** ना धोवो मुख अपना, शीतल ज्योत्सना से। तमस की काया लिये, लगती तुम सुंदर निशि।...... थके हुए तन मन लिये, खोते जो सपनो में। गोद तुम्हारी पाकर, पाते स्फूर्ति तनो में। करते विदा रवि तुम्हे जब आते प्राची दिशि। तमस की काया लिये, लगती तुम सुंदर निशि।..... ले मलिनता पुष्पो से, देती तुम उन्हें शांति। तारो ने भी तुमसे, पाइ हैं टिम टिम कांति। सकुचा क्यों जाती हो, छाते जब नभ में शशि। तमस की काया लिए, लगती तुम सुंदर निशि।...... परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ ...
धरती पर हरयाली होगी
कविता

धरती पर हरयाली होगी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** तस्वीरों में वृक्ष बने हैं, दीवारों के ऊपर। काटकाट वीरान किया है, बचे नहीं हैं भू पर। अंधाधुंध कटाई जारी, कोइ नहीं रखवाला। सुंदर वन संपदा मिटाते, दुख में, ऊपर वाला। प्राणवायु जो हमको देते, जीवन के संसाधन। देते शीतल छाँव सभी को, सब फल फूल सुपावन। केवल अपने हित की खातिर, वृक्ष काटते मानव। मानवता को रखें ताक पर, बन जाते हैं दानव। अरे अभागो अब मत काटो, मिलकर इन्हें बचा लो। वृक्ष मित्र बन कर जीवन को, अपना स्वयं संभालो। वरना वह दिन दूर नहीं है, पल पल पछताओगे। प्राण दायिनी जीवन वायु, बिल्कुल ना पाओगे। बिना वृक्ष के जीवन जीना, संभव कभी ना होगा। सुखमय जीवन अगर चाहते, इन्हें बचाना होगा। आने वाली पीढ़ी को हम, कैसे समझाएंगे। नहीं रहेंगे पेड़ धरा पर, फोटो दिखलाएंगे। जब जागे तब हुआ सवेरा,...
गूँज रहीं बूँदों की सरगम
गीत

गूँज रहीं बूँदों की सरगम

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** गूँज रहीं बूँदों की सरगम, पावन हिय गलियारों में। चलो सखी झूला झूलें हम, शीतल सी बौछारों में।। छोड़ घोंसलें भीगे-भीगे, पंछी आए आँगन में। नहीं मिला दाना चुगने को, अब के देखो सावन में।। चल झरनों से बात करें हम, झम-झम करें फुहारों में। गूँज रहीं बूँदों की सरगम, पावन हिय गलियारों में।। धरती मिलने चली गगन से, नयनों में काजल डाले। आलिंगन को व्याकुल सरिता, प्रीति समंदर-सी पाले।। सुधि-बुधि खो कलिकाएँ बैठी, भ्रमरों की गुंजारों में। गूँज रहीं बूँदों की सरगम, पावन हिय गलियारों में।। मादक अधर मिलन को व्याकुल, मोहे पुरवाई प्यारी। सुलगे देह प्रीत में साजन, काम-बाण से मैं हारी।। यौवन प्रेम मगन हो नाचे, चाहत की झंकारों में। गूँज रहीं बूँदों की सरगम, पावन हिय गलियारों में।। परिचय :- मीना भट्ट "स...
यात्रा
कविता

यात्रा

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** स्त्री की यात्रा सुगम नहीं होती। पीढ़ी-दर-पीढियों ने जिसे प्रताड़ित किया हो। अस्तित्व को हमेशा ही चिन्हित किया हो। असितत्व की ऐसी लड़ाई सुगम नहीं होती। स्त्री की यात्रा सुगम नहीं होती। हर दिन जीने की कोशिश में आये दिन मरती। सबके लिए करते हुए भी सुनतीं हैं.... कुछ नहीं वो करती। अपने अधिकार भूला सपनों को, खुद को भूल जीती। बोझ की एक गांठ बन अपमानित हो स्त्री होने से डरती। स्त्री की यात्रा सुगम नहीं होती। परम्पराओं , रीति -रिवाजों रूढिय़ों की भेंट चढ़तीं। सृजन की अधिष्ठात्री खामोशी से सिसकियां भरती। जन्मों की बेडियों को जो तोडऩे की कोशिश करती। अपमानित हो अपनों से जीवन जहर हैं पीती। स्त्री की यात्रा सुगम नहीं होती। अपने स्वार्थवश समाज ने ढ़ोग रच लिया है। देकर "देवी" की कारा। अपना जीवन सुगम कर लिया है। बैठी रह...
बेटी
कविता

बेटी

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** प्रेम पूजा रिश्तों का बीज होती है बेटी बड़े ही नाजों से घरों में पलती है बेटी बाबुल की हर बात को मानती है बेटी घर में माँ के संग हाथ बटाती है बेटी छोटें भाइयों को डांटती समझाती है बेटी माता-पिता का दायित्व निभाती है बेटी संजा, रंगोली, आरती को सजाती है बेटी घर में हर्ष, उत्साह, सुकून दे जाती है बेटी ससुराल जाती तो बहुत याद आती है बेटी पिया के घर रिश्तों में उर्जा भर जाती है बेटी इंसानी जिन्दगी का मूलमंत्र होती है बेटी दुनिया होती है अधूरी जब न होती है बेटी परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प...
एक राष्ट्र एक पथ
कविता

एक राष्ट्र एक पथ

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** संवेदना एक पथ, विवेचना रखो दूर स्वदेश को संभालने, कैसी है विडंबना। सांत्वना मुखर होगी, संतुलन के भार से, जरूरी है भाई साब, शीघ्र ही संवारना। सहेजकर था रखा, सराहना भाव खोया गुजरेगा वर्तमान, व्यर्थ फिर सिसकना। सरसता सरकना, सनकना पीर बना, देश मांगे सदभाव, सोचिए संभावना। सहना ही सिखा गया, संवाद फिजूल हुआ डरना स्वभाव नहीं, फिर भी डराइए। खतरों को भांपकर, कछुआ छिपाए अंग अनहोनी यादकर, हाशिये पे जाइए। तो भूलोगे पहचान, अरमान भी जलेगा दायरे में रहने का, तरीका जताइए। समय की साझेदारी, समंदर को आइना मान स्वाभिमान संग, भारत को जानिए। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्र...
वास्तविकता
कविता

वास्तविकता

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ ******************** इंसानियत हैवानियत से गलबहियां डाले घूम रहा है गली गली, इंसाफ मुजरा करने को एलान करते करते चली, नैतिकता उल्टियां कर रहे हैं, करुणा और दया खास लोगों के घर सुबह शाम पानी भर रहे हैं, सहयोग नोटों के सहारे स्वसहायता खुल के कर रहे हैं, आस और विश्वास कोने में बैठकर दिन रात सिहर रहे हैं, खेलों में कुर्सियां भाग ले रहे हैं, पदकों के बजाय खुशी खुशी दाग ले रहे हैं, खुशियां पैरों तले कुचला जा रहा, बदमाशियां अश्लील गाने गा रहा, जिससे सबको आस है, कसम से वो खुद निराश है, भीड़ को फैसला करने का हो गया हक़, जिन्हें आत्मविश्वास से डट कर बोलना था वो बोलने से क्यों रहा हिचक, नोट छाप छाप कर विश्वगुरु बनना है, व्यवस्था को पता है किसके आगे कब कब अकड़ना और तनना है। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ घोषण...
मेरा नाज़ुक सा दिल है
कविता

मेरा नाज़ुक सा दिल है

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** मेरा नाज़ुक सा दिल है, कोई पत्थर तो नहीं, चोट इतनी ना दे मुझे, कि टुकड़ों में बिखर जाऊं, ना बना मुझको अनजान पहेली, कि फिर मैं कभी सुलझ ना पाऊं, धीरे-धीरे से दर्द दे मुझको, एक साथ सहने की हिम्मत तो नहीं, मेरा नाज़ुक सा दिल है, कोई पत्थर तो नहीं, वक्त क्या था जब साथ थे तुम मेरे, अब घेरे रहते हैं मुझको ये अंधेरे, कुछ रहम खा कुछ तरस रख मुझ पर, प्यार ही तो किया था कोई दगा तो नहीं, मेरा नाज़ुक सा दिल है, कोई पत्थर तो नहीं, गम देते हो क्यों मुझको रूलाकर, क्या मिलता है मेरा दिल दुखाकर, क्यों दिया था भरोसा साथ रहने का मुझको, अब मैं कहां जाऊं ये बता तो सही, मेरा नाज़ुक सा दिल है, कोई पत्थर तो नहीं परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करत...
बच्चों में भगवान बसते हैं
कविता

बच्चों में भगवान बसते हैं

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** हर छल कपट दांव पेंच से दूर रहते अबोध बच्चे खिलखिलाकर हंसते हैं किसी के ऊपर ताने तंज़ नहीं कस्ते हैं क्योंकि बच्चों में भगवान बसते हैं बच्चे न कोई शिकायत गिले-शिकवे करते हैं वह बेटी या बेटा हूं अनजान रहते हैं ना किसी की बुराई ना गुणगान करते हैं क्योंकि बच्चों में भगवान बसते हैं नारी को मां बनने का सम्मान देते हैं पिता के गौरव और अभिमान होते हैं मत मारो कोख में वह एक नन्हीं सी जान है बच्चों मैं समाए होते भगवान होते हैं घर की चौखट चहकती है बच्चे जब हंसते हैं महकता है घर जिसमें बच्चे बसते हैं संस्कारवान बच्चे धन सम्मान सेवा के रस्ते हैं बच्चों में भगवान बसते हैं गम खुशी नहीं समझते हमेशा हंसते हैं दिल जुबां में कुछ नहीं बस हंसते हैं स्कूल जाते पीठ पर भारी बस्ते हैं तकलीफ़ नहीं बताते बस हंस्तें है...
इम्तिहान
कविता

इम्तिहान

बबीता कुमारी आसनसोल (पश्चिम बंगाल) ******************** जीवन में कभी खत्म नहीं होता है इम्तिहान एक के बाद एक आता रहता है इम्तिहान वाकई जिन्दगी भरी हुई है इम्तिहानों से। यूजी के बाद हो पीजी सेट हो या हो नेट हमें देना पड़ता है इम्तिहान वकई जिंदगी भरी है इम्तिहानों से। जीवन में आगे बढ़ते रहने के लिए हमें पार करनी पड़ता है हर एक इम्तिहान सच के लिए तो कभी सच सामने लाने के लिए हमें गुजरना पड़ता है इम्तिहानों से वाकई जिंदगी भरी हुई है इम्तिहानों से। परिचय :- बबीता कुमारी निवासी : आसनसोल (पश्चिम बंगाल) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिया...
चाँद को देखा मन बहला
ग़ज़ल

चाँद को देखा मन बहला

दीपक अनंत राव "अंशुमान" केरला ******************** चाँद को देखा मन बहला चाँदनी में तेरा चहरा खिला कितनी अकेली रातों में खोयें न मेरी मंजिल तेरे बिना, चाँद को देखा... न कोई राहें भाती नहीं है न कोई मौसम कटती नहीं है साथ हमेशा छाया हो तेरी तुझ से बनी है तकदीर मेरी, चाँद को देखा... ग़म से भरी है राहें हमारी बिखरी हुई है ख्वाबें हमारी छावों में तेरी सजाते रहूँ मैं जन्नत्‍त मेरी तब होगी पूरी, चाँद को देखा... बगियन के फूल शरमा रहे हैं जब तुम को देखें शरमा रही हैं नूर तुम्हारी नज़रों में बोये रंगें हज़ारे दुनिया में मेरी, चाँद को देखा... परिचय :- दीपक अनंत राव अंशुमान निवासी : करेला घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्...