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पद्य

कशमकश का मंजर
कविता

कशमकश का मंजर

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** प्रकृति का मस्त मंजर, न आंधी तूफान का डर न पास में समंदर, कुदरत का दिया खाना कुदरत का दिया पानी, स्वछंद जिंदगी की स्वछंद कहानी, नीला आकाश, जंगल की मिठास, मिलजुलकर रहना, जीवन का हर पल उजास, आम, अमरूद, पीपल, पलाश, प्रकृति का बिछौना फैले दूर तक घास, प्राकृतिक निवासी, जंगल के रहवासी, कुछ आक्रांताओं की नजरें अब शांत जंगलों पर पड़ी है, पर्यावरण को दुहने काली नीयत आज खड़ी है, जंगल को बचाने वो हर दम सजग खड़े, कशमकश देखिए बाहरी से तो लड़ लेंगे लेकिन अपनी सरकार से कैसे लड़ें। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी ...
संस्कार
कविता

संस्कार

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** बच्चों के आप दोस्त बने, करे दोस्त सा व्यवहार, मजा उसी मै आयगा, सदा साथ व्यवहार। खुलकर रहे वो भी सदा, करे मन-तन की हर बात। अब मात-पिता पर आती है, कैसे दिये संस्कार। नींव यदि मजबूत हे, डिगा ना सके कोई माय का लाल। मात-पिता दृढ़ निश्चय हे, चले कदम वह साथ। हिम्मत मेहनत दिन रात कर, बढता समय के साथ। साथ रहे वह हर पल, हर दम उसके साथ। दुख सुख की सब बात करे, दोस्त बने रहे साथ। संस्कार और संस्कृति का, मान और सम्मान का, आदर और सत्कार का, प्यार और व्यवहार का। दिया हे तुमने ज्ञान, सबके मन को जीतेगा, उसका यह व्यवहार। चाहे (प्यार करे) उसको, हर पल हर दम, उसका ही व्यवहार। आगे बढाते जायेगा, उसका यह स्वभाव। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :...
विध्वंकमाला छंद
छंद

विध्वंकमाला छंद

आचार्य नित्यानन्द वाजपेयी “उपमन्यु” फर्रूखाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** पानी बचाओ न फेंको बहाओ। मानो कहा आप हे! मित्र आओ।। पृथ्वी हमारी तभी ही बचेगी।। सातों अकूपाद धारे रहेगी।। रोपो नए वृक्ष प्यारे सखाओं। वर्षा करें मेघ न्यारे सखाओं।। पर्याप्त वर्षा से भूमि प्यारी। फूले फले हो नई पुष्प क्यारी।। मित्रों यही धर्म भी है हमारा। सच्चा सही कर्म भी है हमारा।। आओ उठो बाल वृद्धों युवाओं। व्याही कुवाँरी धरित्री सुताओं।। मैं आपको धर्म सच्चा बताऊँ। दो हाथ से वृक्ष बीसों लगाऊँ।। लो आपभी धर्म का मर्म पाओ। दो-चार-छः वृक्ष नए उगाओ।। नीरांजली तृप्त पृथ्वी बनेगी। वृक्षाम्बरी नृत्य न्यारा करेगी।। ऊर्जा धरा में है नीर लाता।। माँ मेदिनी को सुधा है पिलाता।। सौभाग्य से मानवी देह पाई। निष्णात है कर्म की कौशलाई।। क्या द्वंद क्यों आप नहीं बताते। आनंद क्यों 'नित्य' तु...
परछाई
कविता

परछाई

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वह खड़ी थी द्वार के बाहर अनमनी ही, परित्यक्ता सी झूम-झूम कर बरसते मेघ को देखते उसकी चुनर भी चुकी थी पानी से। शायद शायद भविष्य में उसे परित्यक्ता होना पड़े वह वहां दृढ़ खड़ी थी कुछ सीखने के लिए पदृह वर्ष पूर्व श्रास झेल रही है जो उसे दृढ़ बना देगा, ताने सुनने के लिए जल बना देगा जलने के लिए सहन शक्ति देगा समाज से लड़ने के लिए उसका चुपचाप खड़े रहना उसको दृढ़ बना रहा है भींगी चूनर को निचोडना मजबूत बना रहा है। भूखे पेट मां की बाट जोहना आसक्ति है मां के प्रति टूटे हुए द्वार की चौखट पर खड़ी, फिर भी वह मुस्कुरा रही थी खुश थी कि मैं माता-पिता की छत के नीचे खड़ी हूं जहां मुझ अबोध का शोषण कोई नहीं कर पाएगा क्योंकि मैं रक्षित हूं अबोध, अनजान मां की परछाई हूं। जिसे कोई छू नहीं सकता। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतक...
हमरौ खान-पान
आंचलिक बोली

हमरौ खान-पान

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** (अवधि भाषा) तालमेल रखिहौ तनिक, खानपान व्यवहार। मान प्रतिष्ठा बाढ़िहै, चहुँ हुयिहैं , सत्कार। चहुँ हुयिहैं सत्कार, जीभु भलु स्वादु चखेगी। खट्टा-मीठा संगु, मीठु पकवानु मिलेगी।। "मधुरस" भलु समझायि, इसारा करतु भली के। बनबावउ चौसारु, जेंवाबउ बैठि कुली के।। चला चली रसोई बनाई हो भल पाहुनु हँ आबत। भाँति-भाँति व्यंजनु सजाई हो भलु पाहुनु हँ आबत।। आई चतुर्थी गनेसा मनाई लडुवा ढ़ूढी से भोगु लगाई रिद्धी औ सिद्धी बुलाई हो भलु पाहुनु हँ आबत।। भाँति---- दीपावली मा मावा मँगाये होरी आई त गुझिया छकाये दसहरा रसगुल्ला भाये हो भलु पाहुनु हँ आबत।। भाँति--- कृष्ण जन्माष्टमी हलुवा ही हलुवा गुरुपर्व दिना कड़ा प्रसदुवा नरियर खीरु बिहू सजाये हो भल पाहुनु हँ आबत।। भाँति--- ठण्डी म दाल बाटी चोखा खियाइब दाल ...
पुरुष तुम
कविता

पुरुष तुम

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** पुरुष तुम पैदा होते हो स्त्री से, पुरुष तुम बेटे बनते हो माँ से, पुरुष तुम पति बनते हो पत्नी से, पुरुष तुम भाई बनते हो बहन से, पुरुष तुम बाप बनते हो बेटे-बेटी के, पुरुष तुम सखा बनते हो द्रौपदी के कृष्ण से! पुरुष तुम्हारी पहचान है स्त्री से... और स्त्री की पहचान है तुमसे... तो फिर ये भेद किसने बनाये है हुए? तुम क्यों इसके जिम्मेदार हो ठहराए गए? धुआं देखा है वहीं से निकलते हुए! जहाँ आग कोई है लगाए हुए! परिचय :- डॉ. संगीता आवचार निवासी : परभणी (महाराष्ट्र) सम्प्रति : उप प्रधानाचार्य तथा अंग्रेजी विभागाध्यक्ष, कै सौ कमलताई जामकर महिला महाविद्यालय, परभणी महाराष्ट्र घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक ...
नीलान्चल
कविता

नीलान्चल

अर्चना लवानिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बारिश की बूंदों से धूलकर मटमेले बादलों की कैद से मुक्त होकर गगन भी नीलांबर बन मुस्कुराया है। सुदूर पर्वत की चोटियां लगती है नीलमणि सी, फैला रही नीलिमा चारों ओर। ओढ़ लिये है पेड़ों ने भी नीले दुशाले धरती की हरीतिमा और नभ की नीलिमा रच रही जादू रंगों का अवर्णित संयोजन। नीलांग पवन उड़ रही ओढ़ नील वसन तट बंधो तक भरे हुए यह नीलक्ष सरोवर नीली आंखों से तकते हैं चहूँ ओर। खिल उठे हैं सपनों से अनगिनत निलांबुज प्रेम पराग बिखेरते नीलोत्पल। नीलांजन भरे नेत्र वसुधा लगती नीलांजना, शनै-शनै फैलता नीलाभ बिखरता यह नींल रंग का जादू नील कृष्ण सा चित्त को हर्षाता हो। मानौ समेट रहा हो अपने बाहुपाश में वसुधा को अपने नील रंग में रंग कर।। परिचय :- अर्चना लवानिया निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती ...
हम भेड़ हैं
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हम भेड़ हैं

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** हाँ, हम भेड़ हैं हमारी संख्या भी बहुत अधिक है सोचना-विचारना भी हमारे वश में नहीं न अतीत का दुःख न भविष्य की चिंता बस वर्तमान में संतुष्ट क्रियाशील, लगनशील, अनुगामी अगुआ के अंध फॉलोवर अंध भक्त, अंध विश्वासी अनासक्त सन्यासी क्योंकि हम भेड़ हैं। हाँ, हम भेड़ हैं किंतु खोज रहे हैं उस भेड़िये को उसके साथ मिले गड़ेरिये को जो लाया था- भेड़ की खाल में भेड़िया हाय रे! छली-कपटी गड़ेरिया दोनों ने किया था वादा लेकर थोड़ा, देंगे ज्यादा अबकि जाड़े में लाएंगे कंबल हमारी समस्याओं का निकालेंगे हल बदले में चाहिए हमसे थोड़े-थोड़े बाल हम सबको मिलेगी एक-एक शाल हम अपने गड़ेरिये की बात में आ गए बहुरुपये भेड़िये को देख जज्बात में आ गए। चिल्ला जाड़ा पड़ रहा है न कंबल, न शाल बुरा है हमारा हाल हमारी संख्या भी पहले से कम है ...
कच्ची मिट्टी सा बचपन
कविता

कच्ची मिट्टी सा बचपन

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** मात्रा भार १६--१४ नन्हे मुन्नों के मन में अब, शुभ संस्कार जगाना है। कच्ची माटी से बचपन को, गढ़-गढ़ कुंभ बनाना है।। बच्चों का मन निर्मल होता, द्वेष कपट से दूर बहुत। शुद्ध सरल निश्छल दिल वाले, करें शरारत वे अद्भुत।। चंचल चपल मधुरता इनकी, हमको इसे बचाना है कच्ची माटी से बचपन को, गढ-गढ कुंभ बनाना है होंठों की मुस्कान मनोहर, देख पुष्प भी शरमाए। इनका रुठना और मचलना, जो देखे उसको भाए।। खुशी भरा हो इनका जीवन, ऐसा कदम उठाना है कच्ची माटी से बचपन को, गढ-गढ कुंभ बनाना है शिक्षा का माध्यम हो ऐसा, जिसमें हो संस्कार भरा। पढ़ लिख कर ऐसे बन जाऍं, कुंदन जैसे लगें खरा।। जग के सभी विकारों का नित, इनको ज्ञान कराना है कच्ची माटी से बचपन को, गढ-गढ कुंभ बनाना है नैतिक शिक्षा नैतिकता का, दिल में भाव जगा...
कर्म क्रोध
कविता

कर्म क्रोध

डाॅ. मिनाक्षी अनुराग डालके मनावर जिला धार (मध्य प्रदेश) ******************** कर्म करो पर ध्यान रहे कि यह पथ छूटे ना इतनी भरो हवा के गुब्बारा फूटे ना और तोलो ना कभी तुम कर्मों को बस यही कमाई है जीवन की और यही सच्चाई है मानव जन्म की क्रोध करो पर ध्यान रहे कि होना बोध नष्ट इस क्रोध की आंधी से ना हो किसी को अनजाने में कष्ट यदि क्रोध के समंदर में तू डुबता चला जाएगा तो किनारा होकर भी तुझे किनारा नहीं मिल पाएगा इसीलिए प्रेम ही परछाई है जीवन की और यही सच्चाई है मानव जन्म की स्वार्थ करो पर ध्यान रहे भ्रम टूटे ना विपत्तियों में साथ हमारा छूटे ना यदि शब्दों की माला को तु प्रेम के मोती के साथ सजाएगा तो ध्रुव तारे के समकक्ष तू अपना प्रतिबिंब जगमगाएगा बस यही ऊंचाई है जीवन की यही सच्चाई है मानव जन्म की परिचय : डाॅ. मिनाक्षी अनुराग डालके निवासी : मनावर जिला धार मध्य प्रद...
तू बढ़ता चल
कविता

तू बढ़ता चल

उषाकिरण निर्मलकर करेली, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** हरदम कोशिश करता चल। बाधाओं से तू लड़ता चल।। मन में रख विश्वास अटल। तू बढ़ता चल, तू बढ़ता चल।। अनवरत तू अभ्यास कर। कमियों का आभास कर।। फिर नया प्रयास करता चल। तू बढ़ता चल, तू बढ़ता चल।। अर्जुन सा लक्ष्य भेदन कर। एकलव्य सा गुरुध्यान कर।। एकाग्रता का पाठ पढ़ता चल। तू बढ़ता चल, तू बढ़ता चल।। बाधाएँ अनगिनत जो तुझे टोके। पर्वत बन तेरा राह जो रोके।। तू नदियाँ बनकर बहता चल। तू बढ़ता चल, तू बढ़ता चल।। धैर्य, उत्साह, साहस बटोर। तूफानों को भी दे झकझोर।। हौसला खुद में तू गढ़ता चल। तू बढ़ता चल, तू बढ़ता चल।। अपने लक्ष्य से परिचय कर। अपनी जीत तू निश्चय कर।। हर दिन नयी उड़ान भरता चल। तू बढ़ता चल, तू बढ़ता चल।। परिचय :- उषाकिरण निर्मलकर निवासी : करेली जिला- धमतरी (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ ...
श्रृंगार
कविता

श्रृंगार

अनुराधा शर्मा रायगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** तेरे झुमके संग, मेरा दिल भी झूल रहा है । लेकिन अच्छा है, इसी बहाने तेरे गालों को चूम रहा है । तेरी पाजेब के साथ, मेरी धड़कन भी थिरकती है। लेकिन इसी बहाने, मेरी सांसे तो चल रही है। तेरे नाक़ की नथनी, जो तुम्हारे नखरे उठा रही है। लेकिन इसी तरीके से, मेरी ख्वाहिशें जता रही है। तेरा मंगलसूत्र, जो गले लग शोभा दे रही है। लेकिन अच्छा है, तुझे मेरा हमसफ़र बता रही है। तेरे नगीने वाली अंगूठी, मेरे आंखों में चमक ला रही है। लेकिन, मेरे जीवन के हर लम्हे को दमका रही है। तेरी चूड़ियां, जो कलाइयों को थामे हुए है। लेकिन अच्छा है, मेरे जीवन को खनका रही है। तेरी बिछिया, जो क़दमों को चूम रही है। अच्छा है मेरे दिल-ओ-जहां, में दस्तक दे रही है। तेरी मेंहदी, जो हथेली को महका रही है। लेकिन मेरे ज़िंदगी को, प्यार के रंग से सजा...
शरणागति
कविता

शरणागति

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** शरणागत हो जा हनुमत की , संकल्प पूर्ण हो जाएंगे। यदि थकने लग गया मध्य तू, वो शक्ति देने आएंगे। शरणागत हो जा......... हैं राम कथा के रसिक बड़े, हर कथा उपस्थित रहते हैं। सत्कार्यों का संकल्प उठा, निज भक्तों से वो कहते हैं। शिशु रूप शरण जा हनुमत की, वो माँ बनके दुलरायेंगे। शरणागत हो जा........ बुद्धि शक्ति के दाता हैं वो शक्ति तेरी बढ़ा देंगे। तेरे विवेक को जाग्रत कर, तुझे राम शरण पहुंचा देंगे। दो अश्रु बहे यदि हनुमत मित, वो स्वयं पोछने आएंगे। शरणागत हो जा ........ तू भाई, सखा, स्वामी माने, वो सब बनने को राजी है। रिश्ता पक्का हो गया अगर, तो जीत ली तूने बाजी है। करुणा के सागर है हनुमत, वो करुणा ही बरसायेंगे। शरणागत हो जा........ परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं ...
नीयत
कविता

नीयत

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** संविधान दिवस आया तो जिम्मेदार लोग दो चार शब्द बोलेंगे, एक जगह कार्यक्रम होगा अतिथि को फूल मालाओं से तोलेंगे, ऐसे समारोहों में सत्तारूढ़ सिर्फ कार्यक्रम कराएंगे, संविधान के बारे में किसी को भी न कुछ सिखाएंगे न पढ़ाएंगे, हक़ अधिकार की बातें हमें खुद जानना होगा, एक एक अनुच्छेद छानना होगा, उनकी नीयत शुरू से खराब है, उनका अलग ख्वाब है, वो लोगों को अंधविश्वास और पाखंड के साये में हरदम रखना चाहते हैं, संविधान की शिक्षा न देकर पीढ़ी दर पीढ़ी सत्ता का सुख चखना चाहते हैं, गलती उनकी नहीं, पर संविधान की शिक्षा हम अपने लोगों को दे सकते हैं, पर क्या सही नीयत से हमने प्रयास किये हैं? कुछ लोग संविधान मिटाने की बात करते हैं, मिथकीय राज लाने की बात करते हैं, उन्हें बताना होगा कि संविधान मिटाना इतना आसान नहीं ह...
पहला कदम
कविता

पहला कदम

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** विजय के लिए लक्ष्य पर ध्यान हो, नित्य कर्म में हो लगन खा कसम। एक ठौर रख सोच और समझ कर, जीवन जंग जीत का पहला कदम।। सही दिशा में पतवार को घुमाते चल, नदी की धारा तीव्र हो रही है प्रवाहित। मत छोड़ पालों को हवाओं के भरोसे, नाव डूबाने बैठा जल भंवर सन्निहित।। पर्वत शिखर दुर्गम, अटल, विकराल, आगे बढ़ तू फहराने जीत का झण्डा। चढ़ेगा,गिरेगा कई-कई बार फिसलेगा, ध्येय पाने अपना अनेक हथकण्डा।। जीवन कुरुक्षेत्र युद्ध का खुला मैदान, चक्रव्यूह भेदने धनुर्धारी अर्जुन बन। रख पास सदा गीता ज्ञान दाता कृष्ण, फिर लगा दे अपने कर्म में तन-मन।। जंग लड़ने के लिए खुद को तैयार कर, ध्यान से लगा एक तीर से एक निशाना। दृढ़ संकल्पित हो वैमनस्य को कर ढेर, जयन में शामिल होगा सारा जमाना।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसग...
बिटिया जब अपना मुकाम बनाओगी
कविता

बिटिया जब अपना मुकाम बनाओगी

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** प्यारी-प्यारी बिटिया प्यारी, तुम हो जग में न्यारी-न्यारी, हंसती खेलती दुनिया तेरी, सबकी हो तुम दुलारी, मम्मी-मम्मी रखती हो तुम, पापा की हो सबसे प्यारी, तुम बिटिया मेरी आंखों की दुनिया हो, जग में मेरे लिए हो न्यारी-न्यारी, पढ़ना-लिखना जाकर स्कूल, बन कर रहना होशियार है तुम, एक दिन अफ़सर बन जाओगी, अपना नाम फिर कमाओगी, हमारा सीना चौड़ा होगा जायेगा, बिटिया जब अपना मुकाम बनाओगी, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविता...
चाँदनी रात
कविता

चाँदनी रात

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चाँदनी रात तो खिली होगी आपसे बात भी तभी होगी इक मुलाकात आज है तुमसे शर्म से फ़िर पलक झुकी होगी बन्द आँखें दिखा रही सपने धड़कनें आपने सुनी होगी भोर होते चली कहाँ तुम हो धूप तो आज गुनगुनी होगी ख़्वाब में खो गए भुला मुझको राज की बात तो सुनी होगी दरमियाँ दूरियाँ न हो साजन पास बैठो ज़रा खुशी होगी रूठना आपको नहीं भाता यार मुझमें कहीं कमी होगी बेटियाँ रोज क्यों छली जाती खोट नियमों में ही रही होगी परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अप...
माँ के दर्द का अहसास है
कविता

माँ के दर्द का अहसास है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है सामान्य सी दिखती लड़की, सब से खास है दर्द में पली लड़की, जिसे दर्द का अहसास है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है उसकी सोच सामान्य लड़कीयों से भिन्न है उसकी गम माँ के गम से सदैव अभिन्न है जिसे माँ मे ही करनी, बाप की भी तलाश है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है उमड़ आते है गम के, आंसू आँखों में अक्सर सोचती है क्या आयेगी कभी खुशी के अवसर कितने गम है मगर, अभी भी जीने की आश है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है अजीब से सवाल उसके जहन में उठती है जवाब के तलाश में, अपने आप से रूठती है जवाब मिलने का, अब भी उसे आश है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है किसी के सब कुछ रहकर कुछ भी नहीं होता है ऐसा अजीब इत्तेफाक दुनिया में क्यूंकर होता है तब से अब तक हमें उसके उत्तर की...
शोर विभोर करे अँगना
गीत

शोर विभोर करे अँगना

आचार्य डाॅ. वीरेन्द्र प्रताप सिंह 'भ्रमर' चित्रकूट धाम कर्वी, (उत्तर प्रदेश) ********************  "छंद परिचय" छंद का नाम-  शैल सुता वर्णिक छंद वर्णवृत-  नगण, जगण, जगण, जगण, जगण, जगण, जगण, लघु गुरु। अंकावलि -  १११, १२१, १२१, १२१, १२१, १२१, १२१, १२। शिल्प-  प्रति चरण २३ वर्ण, दो-दो चरण समतुकांत। नायिका की स्वप्निल कल्पनाओं का चित्रण पुहुप पलाश निकुंज निमीलित नैनन ओझल सांझ ढले। प्रिय पुलकावलि निर्भय निश्छल निर्मल भाव उजास मले।। मधुमय गंधिल याद पुरातन अक्षर-अक्षर प्रीति पढ़ें। प्रियतम प्यार पगी गलियाँ पथ आज निशीथ दुलार गढ़ें।। तन मन की अभिलाषित आकृति आतुरता सँग साथ चले। प्रिय पुलकावलि निर्भय निश्छल निर्मल भाव उजास मले।। अधर धरे अधरोष्ठ परागित स्वप्निल भव्य वितान बने। थर-थर काँप रहे अधराधर भावुकता पुरुषार्थ जने।। मधुरिम मादकता ऋतु कीअति भीतर बाहर नित्य ...
नदावत हे
आंचलिक बोली

नदावत हे

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता खेत-खेत भारा राखे, कोठार बनाई नदावत हे, थ्रेसर के जमाना आगे, गाडा-बइला के मिजाई नदावत हे.! पहली लइका मन सीला बिने ला जाये, सीला बिने अउ बेचे मुर्रा अउ लाडु लाके खाये, अबके लइका स्कुल ले आये मोबाइल मा बीजी हो जाये.! पाठ चुड़ी बोईर काटा घलो नदावत हे, कोठार मा झाला बनाई सब्बो माजा बुलावत हे.! अब खेते मा मिन्जे अउनचे ले धान ला सोसाइटी ले जावत हे, हमर संस्कृति परम्परा नदावत हे, सुर कलारी नेग जोग सब मजाक बनावत हे.!! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी : मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्...
पुरुष
कविता

पुरुष

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** विधाता ने रचा मुझे स्त्री के स्वाभिमान ने संवरा माँ की ममता भी है है पिता का गौरव भी पूरे संसार की सख्ती भी है मुझमें खुद के ज़ज्बात भी छुपा लेता हूँ रो मैं नहीं सकता, हर कुछ सह भी नहीं सकता ऊपर से शिला हूँ मैं, पर भीतर से हूँ मोम मैं हूँ एक "पुरुष".... परिवार, समाज, देश का जिम्मेदार हूँ हर पल हर समय के लिए मददगार हूँ सबके सपनों का आधार हूँ किन्तु खुद के सपने बुनने का गुनाहगार भी हूँ क्युकी मैं हूँ एक "पुरुष"... पाँव थकते हैं तो क्या, थकान होती भी है तो क्या पत्नी की उम्मीद हूँ, बच्चों का हूँ भाग्यविधाता कर्म करता चल रहा हूँ, सबकी सुखद मुस्कान के लिए कर्मशील, धर्म-परायण, हर पल ध्यानी हूँ मैं हूँ एक "पुरुष "!... बहुत अधिक कुछ नहीं लिखा मेरे बारे में पर इस सृष्टि की रचना का रचनाकार...
मर्यादा
कविता

मर्यादा

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** इतिहास गवाह है, जब-जब तोड़ी गई है मर्यादा लेकर आई है धरती पर एक नए युग की परिभाषा रावण ने तोड़ी जब मर्यादा, सर्वनाश हुआ था असुरों का दुशासन के दुष्कृत्य से विध्वंश हुआ फिर कौरव का मर्यादा पालन कर श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए श्री कृष्ण गीता के द्वारा, मर्यादा की सीमा बता गए समुद्र भी रहे मर्यादा में जब तक, शरण जीवों को देता है जब तोड़ता है मर्यादा तो, विध्वंश का रूप ले लेता है। मन भी हमारा मर्यादा में रहकर ही कर्तव्य निभा सकता है अगर भटकाव हो ज्यादा तो, जीवन व्यर्थ फिर होता है। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्...
मुकाम ए दौर
कविता

मुकाम ए दौर

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मत सोच ऐ शातिर अगर हार गया मैं तेरी खातिर। मुक़ाम-ऐ-दौर अभी बाकी है। आसमां को अपने हौसलों से थर-थराना तो अभी बाकी है। मत देख बहते हुए मेरे अश्कों को अश्क-ऐ-दरियाँ में नाँव बना अभी पार लांघना बाकी है। मत देख मेरे बिखरे लफ्ज़ो को इन्हें आगो़श में लेकर अभी अल्फ़ाज बनाना बाकी है। मत दिखा कि मुझसे भी बड़े बड़े अदीब हैं यहाँ इन सब को आदाब में लेकर अपना मुरीद बनना अभी बाकी है। मत बता कि मेरा अफ़सना भी अधूरा है अभी मुक़ाम-ऐ-पन्नों में नए अल्फ़ाज जोड़ आवाज़ह बटोरना अभी बाकी है। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
बात नहीं बन रही
कविता

बात नहीं बन रही

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** देख लिया मेहनत करके, मैं अभी भी खड़ा हूं वहीं। अब क्या करूं तू ही बता? मेरी बात नहीं बन रही।। दावानल सदृश भ्रष्टाचार, निगल गया करके खाक। मृदु मांस के लोथे के लिए, चील, कौए रहे थे ताक।। बिखर गया चिता, भस्म धरा, आत्मा उड़ गयी नील गगन। चला गया एक प्रतिद्वंदी कह, भेड़िए नाच रहे थे हो मगन।। देख रहा था बनकर भूत-प्रेत, लेन-देन का था झोलम-झोल। नौकरी के नाम पर लुटाते जन, मची थी चहूं ओर हल्ला बोल।। यहां फले-फूले प्रभुत्व वनराज, निरीह प्राणी हो गए घर से बेघर। अंधी दौड़ में भाग रहे हैं कर्मवीर, सब डर से कांप रहे हैं थर-थर।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : सहायक शिक्षक सम्मान : मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण 'शिक्षादूत' पुरस्कार से सम्मानित। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता ...
नेताओ का त्यौहार
कविता

नेताओ का त्यौहार

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** नेताओ के दिन आ गए देखो अब चुनाव आ गए... गली मोहल्ला साफ मिलेगा गरीब के घर भी अनाज मिलेगा सारे काम ये निपटा देंगे विवाह बेटियों का करवा देंगे नेताओ के दिन आ गए देखो अब चुनाव आ गए... बिना गारंटी लोन मिलेगा युवाओ को रोजगार मिलेगा देखो अब चुनाव होंगा घोषणाओं का अंबार होगा नेताओ के दिन आ गए देखो अब चुनाव आ गए... वोटर अब ठगा जाएगा दारू साड़ी मुफ्त मिलेंगा जात धर्म पर बाटेंगे फिर वोट मांगने आएंगे नेताओ के दिन आ गए देखो अब चुनाव आ गए... कच्चे पक्के कर्मचारी भी बातो में आ जाएगे बड़ी-बड़ी घोषणाओं से लालच में आ जाएगे नेताओ के दिन आ गए देखो अब चुनाव आ गए... सरकार बनाना जैसे भी हो सरकार गिराना आसान हो गया खरीद फरोख्त आम हो गया लोकतंत्र भी बाजार हो गया नेताओ के दिन आ गए देखो अब चुनाव आ गए...... जनता...