नव वर्ष कहाँ
आनंद कुमार पांडेय
बलिया (उत्तर प्रदेश)
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जब रोम-रोम गुलाम लगे,
बहे सर्द हवाएँ सन सन सन।
घर के अंदर भी ठिठुरन है,
कहे चीख-पुकार के अंतर्मन।।
पल भर भी नहीं है हर्ष यहां।
नव वर्ष कहाँ नव वर्ष कहाँ।।
अपना नव वर्ष तो बाकी है,
नव अंकुर आने वाले हैं।
सूखे पत्ते गिर जाएंगे,
खुलने वाले सब ताले हैं।।
केसरिया सब हो जाएगा,
होगा तब अमृत पर्व यहाँ।
नव वर्ष कहाँ नव वर्ष कहाँ।।
जैसे बसंत ऋतु आएगी,
कलियाँ कलियाँ खिल जाएगी।
हर्षित तब घर आंगन होगा,
मन में उमंग नव आएगी।।
तब हरा-भरा उपवन होगा,
कोयल नव तान सुनाएगी।
ऐसी अद्भुत ऋतु में लगता,
खुद पर सबको है गर्व यहाँ।
नव वर्ष कहाँ नव वर्ष कहाँ।।
अंग्रेजो की लाई हुई,
संस्कृति को क्यों अपनाना है।
हम हिंदू हिंदुस्तान के हैं,
हिंदू नव वर्ष मनाना है।।
अरमानो के नव पर होंगे,
खुशियों के पल घर-घर होंगे।
आनन्द कलम भ...