अधोगति होती मन की
अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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अधोगति होती पानी की,
नदिया हो या झरना।
गिरता है स्वभाव बस अपने,
फिर क्यों चिंतन करना।
नीचे से ऊपर को जाना,
है उत्थान कहाता।
पाने को उत्थान सदा ही,
मानव स्वेद बहाता।
झरना झर झर नीचे गिरता,
अठखेली करता है।
धुवाँधार है दृश्य मनोरम,
सबका मन हरता है।
हों कितनी कठोर चट्टानें,
भले कोई बाधा हो।
झरना कभी नहीं रुकता है,
कभी न वल आधा हो।
वसुधा से वसुधा पर गिरता,
इसमें पीड़ा कैसी।
ऊँच नीच इसमें ना होती,
माँ की ममता जैसी।
गिरता जो मंजिल पाने को,
यह उसकी ऊँचाई।
मंजिल पा जाना ही सबके,
जीवन की सच्चाई।
झरने सभी उतरते नीचे,
ऊँचाई पाने को।
ऊँचाई पाकर तत्पर हैं,
फिर नीचे जाने को।
यही प्रकृति का नियम साथियो,
हरदम आगे बढ़ना।
चींटी सम सौ बार गिरें पर,
फिर फिर ऊपर चढ़ना।
झरना तो गिरता उमंग से,
पी...