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पद्य

अधोगति होती मन की
कविता

अधोगति होती मन की

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** अधोगति होती पानी की, नदिया हो या झरना। गिरता है स्वभाव बस अपने, फिर क्यों चिंतन करना। नीचे से ऊपर को जाना, है उत्थान कहाता। पाने को उत्थान सदा ही, मानव स्वेद बहाता। झरना झर झर नीचे गिरता, अठखेली करता है। धुवाँधार है दृश्य मनोरम, सबका मन हरता है। हों कितनी कठोर चट्टानें, भले कोई बाधा हो। झरना कभी नहीं रुकता है, कभी न वल आधा हो। वसुधा से वसुधा पर गिरता, इसमें पीड़ा कैसी। ऊँच नीच इसमें ना होती, माँ की ममता जैसी। गिरता जो मंजिल पाने को, यह उसकी ऊँचाई। मंजिल पा जाना ही सबके, जीवन की सच्चाई। झरने सभी उतरते नीचे, ऊँचाई पाने को। ऊँचाई पाकर तत्पर हैं, फिर नीचे जाने को। यही प्रकृति का नियम साथियो, हरदम आगे बढ़ना। चींटी सम सौ बार गिरें पर, फिर फिर ऊपर चढ़ना। झरना तो गिरता उमंग से, पी...
संत शिरोमणि रविदास
कविता

संत शिरोमणि रविदास

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** स्वर्णयुग में निर्गुण धारा के भक्त कवि। अपनी वाणी से जनजागृति किया रवि।। लोक कल्याण करने जन्म लिया काशी। संतोख और कलसा के पूत अविनाशी।। कान्ता लोना, वत्स विजय से हुए विमुख। शिष्या झाला, मीराबाई के बने गुरु प्रमुख।। परहित, दयालु और आनंद का खजाना। ईश्वर-भजन, भक्ति और सत्संग दीवाना।। भवसागर पार कराने गुरु नाम है अग्रणी। रामानंद के शिष्य रैदास संत शिरोमणि।। मध्यकाल में कबीरदास के समकालीन। कार्य समय में करने हमेशा थे तल्लीन।। साधु-संतों की संगति से विज्ञान अर्जित। अध्यात्मिक ज्ञान जन-जन को अर्पित।। रैदास की वाणी समाज हित की भावना। मधुर, भक्तिमय भजनों की सुंदर रचना।। ऊंच-नीच की भावना निरर्थक यही संदेश। सबको प्रेमपूर्वक रहने का दिया उपदेश।। सतगुरु और जगतगुरु की मिली उपाधि। चित्तौड़गढ़ में है गुरुवर ...
मैं एक परिंदा हूँ
कविता

मैं एक परिंदा हूँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** मैं एक परिंदा हूँ इस जहां से ही शर्मिंदा हूँ, उड़ने को सारा आसमां है खाली पर कतर डाले मेरे फिर भी मैं जिंदा हूँ मैं एक परिंदा हूँ... हम परिंदे ऊंची उड़ान की ताक में हैं पर तीर आज हर मनुष की कमान में है सोचता था सब ठीक होगा एक दिन, पर मेरा भ्रम भ्रम ही रहा क्युकी मैं एक परिंदा ही तो हूँ....! मैं आजाद बेफिक्र सा पंछी, तुमने कैद कर चुरा डाली सांसे मेरी दिल पर मेरे क्या गुजरी ये तुम क्या समझो हे मानव कभी तूफ़ाँ ने उड़ा डाला घरौंदा मेरा, कभी टहनियों पर बसा उजाड़ डाला तुमने अभिलाषा उस नन्हें परिंदे सी तो थी, जो विशाल गगन में पखं फैलाने का दम भरता है क्योंकि मैं एक परिंदा हूँ...! लौट आता हूँ बार-बार उसी कूचे पर, रंग नया है पर मकां वही पुराना है, ये घर मेरा जाना पहचाना सा है, ...
युवाओं की झोली भर दो
कविता

युवाओं की झोली भर दो

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** सरकारी पद पड़े जो खाली देश में, उसको भर दो ए देश की सरकार, बेरोज़गारी कम होगी देश में हमारे, युवाओं को मिल पाऐगा रोज़गार , वादे जो तुमने किये सत्ता में आकर, वो भी कुछ पुरे हों जाएंगे, उम्मीद जगी थी जो युवाओं में, उनके चेहरे, दिल भी खिल जाएंगे, मजबूत होंगे जनता के संस्थान, सरकार भी मजबूती पाएगी, ना करो देश का प्राइवेटाइजेशन, देश की सम्पत्तियां बिक जाएंगी, शिक्षा, स्वास्थ बस मुफ्त तुम कर दो, हर घर रोशनी से यहांँ तुम भर दो, देकर रोज़गार युवाओं को देश में उनकी झोली ए मेरी सरकार भर दो, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्री...
मेरा वह परिवार कहाँ है
कविता

मेरा वह परिवार कहाँ है

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** अपनो की वह हंसी ठिठोली, कोयल जैसी मीठी बोली। सबका एक समूह में रहना, था अपना परिवार हीं गहना।। दिखता वह अधिकार कहाँ है। मेरा वह परिवार कहाँ है।। भरा पूरा परिवार था अपना, अब क्यों हुआ आज है सपना। दादी का शाही फरमान, दादा का अपना पहचान।। वह चिट्ठी का आना जाना, पढ़ने सुनने का दौर निराला। वह क्षण तो अद्भुत लगता था, प्रेम का था हर-पल उजाला।। सपनों का वह संसार कहाँ है। मेरा वह परिवार कहाँ है।। मानू सब कुछ बदल गया है, नया दौर सब निगल गया है। मोबाइल के दौर में अब तो, अपना सब कुछ फिसल गया है।। घर परिवार तो नजर न आता, इंटरनेट से जुड़ गया नाता। बदल गया इंसान यहाँ का, अलग-थलग सब हुआ विधाता।। मां बेटे में प्यार कहाँ है, मेरा वह परिवार कहाँ है।। वह राजा रानी की कहानी, सुनते थे नानी की जुबानी। मां ...
शिव शंकर भोले भंडारी
भजन, स्तुति

शिव शंकर भोले भंडारी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** शिव शंकर भोले भंडारी, भरते हैं भंडार । नीलकंठ कैलाश विराजे, देते वर उपहार।। हाथ रखें त्रिशूल हैं भोला, देते हैं सौगात। मोक्षदायिनी जटा जूट में, जैसे पुण्य-प्रभात।। शीश विराजत चंद्र प्रभो के, गल मुंडो की माल। तांडव जब करते शंकर हैं, काँपे फिर तो काल।। जीवन संगिनी पार्वती हैं, रहें नंदी सवार। प्रभु निष्कामी हैं अन्तर्यामी, त्रिलोकी महाकाल। सुखकारी हैं मंगलकारी, करते मालामाल।। बामदेव गंगाधर शंकर, त्रिपुरारी गिरिनाथ। भूतनाथ शशिशेखर देवा, रहें गणों के साथ।। व्योमकेश पशुपति पिंगल हैं, कर लो जयजयकार। ओम नमों का जाप करो सब, निराकार भगवान। सकल विश्व की रक्षा करते, ज्योति लिंग पहचान।। मोक्ष दिलाते भक्तो को प्रभु, हरते संकट नाथ। शिव महिमा गा रहे देवता, भस्म रखें सब माथ।। दुखभंजन हैं अलख निरंजन, प्रभु हैं ...
शीत लहर
छंद

शीत लहर

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** सोरठा छंद शीत लहर से आज, जूझ रहा संसार है। रूक गया सब काज, बचना इससे है कठिन।। पौष माघ की जाड़, लोग ठिठुरते ठंड से। कॅंपा रही है हाड़, बेबस हैं इससे सभी।। छायी धुंध अपार, चलना भी दूभर हुआ। ठंडी चली बयार, कहीं हुआ हिमपात है।। मौसम की है मार, इससे बच सकते नहीं। त्रस्त सभी नर नार, हैं इसके आगोश में।। बाल वृद्ध बीमार, खूब परेशाॅं हैं यही। जीना है दुश्वार, फिर भी है धीरज धरे।। मन में है विश्वास, बदलेगा मौसम कभी। है बसंत अब पास, आने को है द्वार पर।। सुखद सुहानी धूप, दिनकर लेकर आ गया। रंक रहे या भूप, सबको यह प्यारा लगे।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि स...
मरना किसलिए
कविता

मरना किसलिए

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मरना किसलिए जीने के लिए सिमट गया मानव अपने आप में ताशो के पत्तों सी फेटी जा रही है ज़िंदगी सिर्फ स्वयं के लिए, स्वयं के लिए पर सुनो तुम्हें बिखरना ही होगा बिखरना ही होगा चाहे छुपकर क्यों नहो बिखरना होगा वृक्ष के पत्तों की तरह पिलासपन लिए कहीं दूर बहुत दूर जा गिरना है अपनों से तू भूल गया की वृक्ष फल फूल लेते हैं दूसरों के लिए फिर तू क्यों सिमट रहा है अपनों में समाज देश में कुछ बाटता हुआ निकल जा ताश के पत्तों सा बादशाह बन निकल जा बेताज बादशाह। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय...
राष्ट्रीयता के मुक्तक
मुक्तक

राष्ट्रीयता के मुक्तक

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हिन्दू, मुस्लिम एक हैं, सभी एक इंसान। सिक्ख और ईसाईयत, सब में इक भगवान। जब सारे मिलकर रहें, तो गुलशन आबाद, देश प्रगति के पूर्ण तब, होंगे सब अरमान।। खेतों में जब श्रम करें, हलधर प्रखर किसान। सीमाओं पर हों डँटे, सारे वीर जवान। तभी देश आगे बढ़े, जीते हर इक जंग, तभी बनेगा वास्तव, भारत देश महान।। भारत माँ का लाल हूँ, दे सकता मैं जान। गाता हूँ मन-प्राण से, मैं इसका यशगान। आर्यभूमि जगमग धरा, बाँट रही उजियार, इसकी गरिमा, शान पर, मैं हर पल क़ुर्बान।। भगतसिंह, आज़ाद का, अमर सदा बलिदान। ऐसे पूतों ने रखी, भारत माँ की आन। जो भारत का कर गए, सचमुच चोखा भाग्य, ऐसे वीरों ने दिया, हमको नवल विहान।। जय-जय भारत देश हो, बढ़े तुम्हारा मान। सारे जग में श्रेष्ठ है, कदम-कदम उत्थान। धर्म, नीति, शिक्षा प्रखर, बाँटा सबको ...
अब इसी बात का डर है !
कविता

अब इसी बात का डर है !

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) ******************** अब शराबियों का कोई डर नहीं है बदमाशों के खौफ से भी गली नहीं कांपती शराब अपनी बोतल में ठंडी पडी होती है तिजोरियों के ताले बदमाशों के हाथ लगे हैं डर बंदूक का नहीं है डर तलवार का भी नहीं है अब मुझे रंगों से डर लगता है पड़ोस में रहने वाले पड़ोसी का अब पड़ोसी कट्टरता से हरा हो गया है धर्मांधता से भगवा हो गया है हठधर्मी से नीला हो गया है मुझे नहीं पता कि भारत में कितने गांव और कस्बे हैं लेकिन हर गांव में हर शहर में भारत है अब डर लगने लगा है की भारत का अंत हो रहा है यहां धर्मों की घोषणा के साथ विविधता से भरी गली हिल गई है और दिल्ली सोने का नाटक कर रही है और खर्राटे ले रही है दिल्ली क्या अब कभी जागृत नहीं होगी? मुझे अब इस बात का डर है नाथूराम गांधी की मूर्ति के सामने खड़े हैं लेकिन गांधी की ...
मित्रता के दोहे
कविता

मित्रता के दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मिले मित्रता निष्कलुष, मित्र निभाये साथ । मित्र वही जो मित्र का, कभी न छोडे़ हाथ ।। पथ दिखलाये सत्य का,आने नहिं दे आंच । रहता खुली किताब-सा, लो कितना भी बांच ।। मित्र सदा रवि-सा लगे, बिखराता आलोक । हर पल रहकर साथ जो, जगमग करता लोक ।। कभी न करने दे ग़लत, राहें ले जो रोक । सदा मित्र होता खरा, जो देता है टोक ।। बुरे काम से दूर रख, जो देता गुणधर्म । मित्र नाम ईमान का, नैतिकता का मर्म ।। नहीं मित्रता छल-कपट, ना ही कोई डाह । तत्पर करने को ‘शरद’, वाह-वाह बस वाह ।। खुशबू का झोंका बने, मीठी झिरिया नीर। मित्र रहे यदि संग तो, हो सकती ना पीर ।। मित्र मिले सौभाग्य से, बिखराता जो हर्ष । मिले मित्र का साथ तो, जीतोगे संघर्ष ।। भेदभाव को भूल जो, थामे रखता हाथ । कृष्ण-सुदामा सा ‘शरद’, बालसखा का साथ ।। ...
हिंदी जैसा शालीमार
कविता

हिंदी जैसा शालीमार

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** विश्वगुरु की ये भाषा हिंदी सारी भाषाओं की महारानी है। हिंदी को छोटा न बोल हिंदी ने हिंदुस्तान का नाम बढ़ाया है। हिंदी से संस्कृति जन्मी हिंदी ने संस्कारों का पाठ पढ़ाया है हिंदी की इस दुर्दशा के असली जिम्मेदार हम ही तो हैं। हिंदी छोड़ हमने इन अंग्रेजों की अंग्रेजी को सिर पर चढ़ाया है हिंदी अगर जहां में नहीं होती तो फिर ये हिंदुस्तान नहीं होता हिंदुस्तान में आकर विदेशियों ने हिंदी का मजाक उड़ाया है आक्रांताओ ने हिंदी को अपमानित करने का काम किया फिरंगीयो ने आकर हिंदुस्तानी भाषाओं को आपस में लड़ाया है हिंदी आन हिंदी शान हिंदी हिंदुस्तान के जीवन की शैली है हिंद देश के वासीयो ने मिलकर हिंदी को इनके चंगुल से छुड़ाया है धरती पे अगर हिंदी नहीं होती तो दुनिया दिशाहीन हो जाती आतताईयों ने ये भोली हि...
अभिनंदन है…. शब्द पुष्प
कविता

अभिनंदन है…. शब्द पुष्प

अखिलेश राव इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आप आए पुण्य धारा पर स्वागत वंदन अभिनंदन है। रोली कुमकुम हल्दी अक्षत संग सुभाषित चंदन भी है तुम आए हो पुण्य धारा पर स्वागत वंदन अभिनंदन है। महाकाल उज्जैन के राजे ओंकारेश्वर ओंकार विराजे खजराना की ख्याति राष्ट्र में पितरेश्वर,ऱंजीत सरकार विराजे अतिथि देवोभव, सहित पुण्य देव सादर नमन है स्वागत वंदन अभिनंदन है,... घर आंगन द्वार सजाये आगत पलक पावंड़े बिछाये मुदित मना स्वागत करते है बांरबार तुम्हे नमन है स्वागत वंदन अभिनंदन है ... पुलिस लगी है चप्पे चप्पे स्वाद बड़ा रहे गोल गप्पे ईमरती जलेबी उसलपोहा गीत गजल भजन दोहा भुट्टे का किश लेकर देखो बार बार ललचाये मन स्वागत वंदन अभिनंदन .... समिट मीट जो आगे बढेगी विकास का आकाश छुयेगी सुख समृद्धि पुष्पित होगी नभ से बरसेगा कुंदन स्वागत वंदन अभिनंदन। परिचय :- अखिल...
महामना पंडित मदन मोहन मालवीय
कविता

महामना पंडित मदन मोहन मालवीय

आशा जाकड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** माँ भारती की महान सन्तान महामना पंडित मदन मोहन मां मुन्नी देवी, पिता ब्रजनाथ उनके चरण शत-शत नमन शिक्षा के थे वह अनुपम प्रेमी ५ वर्ष आयु से विद्यारंभ किया बाधाएं आई, पढना नही छोडा अध्यापन किया और पढ़ाई की महात्मा गांधी जी के बहुुत प्रिय युग के आदर्श पुरुष कहलाते पंडित मदनमोहन को महामना इस उपाधि से सम्मानित किया बसंत पंचमी को स्थापना की बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की विश्वविद्यालय के कहलाए प्रणेता एनी बेसेंट ने भी दिया सहयोग प्राचीन सभ्यता-संस्कृति के साथ आधुनिक ज्ञान का किया समर्थन शिक्षा की समृद्धि के लिए किया पूरा जीवन देेश उत्कर्ष समर्पण बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में ज्ञान का अनुपम दीप जलाया भारत ही नहीं सम्पूर्ण जगत में कण-कण प्रकाशित कराया।। परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, साहित्यकार एवं समाजसेविका) शि...
वीर सैनिक वंदना
कविता

वीर सैनिक वंदना

राम स्वरूप राव "गम्भीर" सिरोंज- विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** धुन - बाबुल की दुआएँ लेती जा... हे सैनिक देश की सेना के, है सौ- सौ बार प्रणाम तुम्हें| है गर्व हमें तुम पर वीरों, अभिनन्दन, नमन प्रणाम तुम्हें। ... हे सैनिक देश... तुम को भी खुशियाँ दीं प्रभु ने, वह रास न आईं तुम्हारे लिए | परिजन ने तुमको समझाया, था वतन से प्रेम तुम्हारे लिए। साहस से खड़े सीना ताने, है आशिष, प्रीत प्रणाम तुम्हें। ... हे सैनिक देश.... जब-जब दुश्मन ने फुंकारा, फन कुचला उसका पावों से। ऐसा मारा इतना मारा, छू भागा हमरे गांवों से। हे काल हमारे शत्रु के, जग विजयी वीर प्रणाम तुम्हें।.. हे सैनिक देश की... सीने पे लगती है गोली, जय हिन्द के घोष निकलते हैं। जब तक न गिरा दें शत्रु को, नहीं तन से प्राण निकलते हैं। है विजयी तिरंगा हाथों में, या तन पे कफ़न प्रणाम तुम्हें। ह...
सैलाब
कविता

सैलाब

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** यादों के सैलाब में घूम गया कोई हवा के झोंकों सा छू गया कोई आया कोई तनहाई सा छा गया मंत्र सुमन सौरभ सा मन बहला गया कोई। सोचा यथार्थ है या स्वप्न कुछ समझ नहीं पाई कभी आभास होता बहुत करीब है कोई बहुत होता कभी आभास दूर बहुत दुर। चला गया कोई, चला गया कोई। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित क...
गणतंत्र दिवस
कविता

गणतंत्र दिवस

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** गणतंत्र दिवस हम मना रहे, लहर लहर लहराए तिरंगा देशप्रेम की अलख जगी है, भारत की हर साँस तिरंगा। भारत की सीमाएँ, रक्षित बनी रहें सदा, भारत की सेना के बल, लहराए तिरंगा सदा सदा। चाहे बम हो या मिसाइल, या चाहे हनुमान-गदा भारत की दसों दिशाएं रक्षित रहें सदा सदा। भारत की सीमाओं का, होता जाए विस्तार सदा वैदिक युग का, हिंद महासागर, जो आर्यावर्त की मूल धरा। अमर रहे, सम्मानित, भारत का संविधान सदा बन जाए हमारी गीता, भारतवासी का ज्ञान सदा। देववाणी, सनातन संस्कृति कर्तव्य भाव का ध्यान सदा उपनिषदों की व्याख्या हो, वेदों का हो मान सदा।। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी,...
ये मौसमी बहारें
कविता

ये मौसमी बहारें

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मौसम दे जाते संदेशें नसीहतें भी हैं दे जाते तालमेल रहे नियति से इसका सबको भान रहे बारी बारी से ये आते सारे नियम निभाते हैं आचरण से ही रहना है ये सबको सीख दे जाते गलतियाँ जो करोगे तुम भोगना तुमको ही होगा ये सारे बदलते मौसम प्रकृति के साथ चलते हैं झंझावात है आता तरु सब काँपने लगते हरित पल्लव सिहर जाते भय से रुग्ण हो जाते जो आया है उसे जाना झरकर उपदेश दे जाते ये सारे बदलते मौसम प्रकृति के साथ चलते हैं प्रस्फुटित नवकोपलें देखो स्वागत नवसृजन का है हलधर खेत में झूमे नदियाँ मल्हार हैं गाती सावनी बूंदे बरसकर के खुशियाँ धरा पर लाती ये सारे बदलते मौसम प्रकृति के साथ चलते हैं बसंत जब मुस्कुराता है सुहाने सफ़र सा अहसास माँ शारदे हो पुलकित वीणा तान झंकृत हो होता आल्हाद है चहुँ ओर नई उम्मीदें जगती है ये स...
जीने के कुछ सवाल
कविता

जीने के कुछ सवाल

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** वो शख़्स आज भी, उसी गली पर मिलता है, गांव जाता हूंँ जब, वो शख़्स मुझे वहीं मिलता है, जानता हूंँ उसे अपने, बचपन के दौर से, आज भी मगर वो, उसी हाल में मिलता है, तंग रखा है शुरू से, मुफलिसी ने उसको, उससे निकलने की वो शख़्स, जिद्द लिए मिलता है, पढ़ते थे साथ तब कहता था, बदलेगी तक़दीर, मगर आज भी वो शख़्स, वो ही ख़्वाब लिए मिलता है, तोड़ दिए हैं सब सपने, हालातों ने उसके, अब तो बस जीने के, कुछ सवाल लिए मिलता है परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते ह...
इस जमाने में
कविता

इस जमाने में

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** बहुत जोर लगाना पड़ेगा सदियों से खड़े खंभे को हिलाने में, बस प्रेम ही है एक आधार नफरत के जखीरे को मिटाने में, वजूद मिट जाने का न रख डर बन जा नींव अपने विचारों को सृजाने में, भिगो देना आसान है पर समय लगता है सूखने और सुखाने में, हाड़ मांस सुखा मेहनत किया हूं पेट भरने के लिए नहीं सेंध मारा निजी खजाने में, मेरी बातें उतनी बुरी भी नहीं फिर क्यों घिरा रहता हूं किसी के निशाने में, कोई कुछ भी कहे बोले जी जान लगाया है मैंने कमाने में, क्योंकि मुझे समझ आ गया कि पैसा बहुत जरूरी है इस जमाने में। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट...
स्वाभिमानी
कविता

स्वाभिमानी

देवप्रसाद पात्रे मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** विपरीत परिस्थितियों से लड़ने वाला। स्व-मान-सम्मान की रक्षा करने वाला।। हर जीवन की करे खुशियों की कामना। सहज ही कर लेते मुशीबतों का सामना।। नैतिक मूल्यों से सुरक्षित आत्मसम्मान। स्वाभिमानी जीवन की यही पहचान। छल-कपट, प्रपंच मन में कभी न आये। निश्छल सेवाभाव से व्यक्तित्व महान।। रिश्ते-नातों की समझते अहमियत। होते कर्तव्यनिष्ठ स्वभाव में वफादारी।। मान-मर्यादा इज्जत की करते परवाह। शिष्टाचार, सरल-व्यवहार, ईमानदारी।। स्वाभिमानी कर्तव्यनिष्ठता करे स्वीकार। संघर्ष राह में सदैव हार जीत को तैयार।। परिचय :  देवप्रसाद पात्रे निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्द...
धेनु हूँ मैं
कविता

धेनु हूँ मैं

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** माता हूँ मैं क्या माँ भी हूँ क्या हूँ पूजनीय, वंदनीय भी मैं या हूँ मनुष्य का साधन मात्र? जिसे साधते आए तुम, अपनी आस्था और धर्मों से कहते हैं भक्ति श्रद्धा का आधार हूँ मैं फिर भी सड़ती, कटती हूँ मैं, चित्कार कभी जो सुन पाओ राहों में तिल तिल मरती हूँ मैं होता नित्य प्रहार मुझ पर, घर-घर ने दुत्कारा मुझको मेरे बच्चे भूखे मरते पर मैं सबका उपकार करूँ रहे निरोगी काया जन की, नित घाव की पीड़ा सहती हूँ माँ बुढ़ी हो भारी लगती, निज स्वार्थवश ही प्यारी लगती जो ना हो आसरा श्रद्धा का माता से भी प्रेम नहीं पूजा जप-तप, और दान यज्ञ का भी कोई मोल नहीं है प्रश्न मेरे अन्तर्मन का क्या ऋण मेरा चुकाओगे??? नित-नित सहती इस पीड़ा को क्या तुम हर पाओगे???? तब उठो-उठो हे जन मानस माता को अगर बचाना है मानव सब कुछ भू...
पर्यायवाची शब्द चालीसा
दोहा

पर्यायवाची शब्द चालीसा

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* कृष्ण कंहैया श्याम अरु, मोहन बृज गोपाल। दीनबंधु राधारमण, दुखहारक नंदलाल।। पर्यायवाची में लखो, बहु शब्दों का ज्ञान । भाषा की कर साधना, कहत हैं कवि मसान।। सरस्वती भारति मां शारद। ब्रह्मासुत ज्ञानी मुनि नारद।।१ पवनतनय कपिपति हनुमाना। राघव रघुवर राजा रामा।।२ स्वामी पति नाथ अरू कंता। साधू मुनि यति ज्ञानी संता।।३ विष्णुपगा गंगा सुरसरिता। कुंजा उपवन बाग बगीचा।।४ सोम सुधाकर शशि राकेशा। राजा भूपति भूप नरेशा।।५ वानर बंदर मर्कट कीशा। ईश्वर भगवन प्रभु जगदीशा।।६ पुत्र तनय सुत बेटा पूता । कोकिल कोयल पिक परभूता।।७ विष्णु चतुर्भुज हरी चक्रधर। वारिद बादल नीरद जलधर।।८ गणपति गणनायक लंबोदर। भ्राता भाई बंधु सहोदर।।९ सर तालाब सरोवर पुष्कर। आशुतोष शिव शंभू शंकर।।१० जहर हलाहल विष की धारा। बैरी दुश्मन शत्रु ...
आज बारी तेरी आई
कविता

आज बारी तेरी आई

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** मान ले बात मात-पिता की आज बारी तेरी आई। पढ़ ले ,निखार ले खुद को वक्त को जानने की बारी आई । उठ प्रातः कर मेहनत पूरा दिन समय का सदुपयोग की बारी आई । भूल जा मस्ती, शरारतें, त्याग निंद्रा उज्जवल भविष्य करने की बारी आई। कम वक्त है पास तुम्हारे नसीहतें मानने की बारी आई । नहीं रहेंगे तुझे कहने वाले एक दिन तड़पाएगा वक्त ,समझने की बारी आई। अकेला रह जाएगा इस दुनिया में आज संभलने की बारी आई । कहीं पछताता ना रह जाए सीमा आज वक्त को जानने की बारी आई। परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हेतु प्रचार, रक्तदान शिविर में भाग लिया। उपलब्धियां : गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड से...
सुनो !! प्राणाधार!!!
कविता

सुनो !! प्राणाधार!!!

निरूपमा त्रिवेदी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सुनो !! प्राणाधार!!! तुम्हारे स्नेहिल स्पर्श से फूट पड़ते हैं मेरे मन में प्रेम के नव अंकुर स्नेहमयी रक्तिम कोपले नवागत किसलयो पर खिल उठते हैं परागमय सुमन सुरभि से सुवासित मेरी सांसे अधरो पर तुम्हारे मुस्कान चाहे सुनो !! प्राणाधार!! तुमसे जीवन की सार्थकता तुमसे ही पाती मैं पूर्णता तुम्हें हर्षित देखकर ही तो सजती है अधरो पर मेरे हर्ष भरी मधुरिम मुस्कान गहराई अमराई देखकर ज्यो कोकिल गा उठती है मधुर गान अनुभूति होती है सुखद प्रियतम ज्यो जीवन उत्सव- सा उल्लासमय सुनो !! प्राणाधार!!! सजा लो ना तुम भी मुखड़े पर अपने प्रेम विश्वासमयी एक मधुर मुस्कान तुम्हारी मुस्कान से सजता मेरा संसार हाँ ! तुम्हारा प्रेम करता है मेरा श्रृंगार परिचय :- निरूपमा त्रिवेदी निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत...