धुन
राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
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हम थिरक रहे हैं
उनके भक्ति
भरे धुनों पर,
हम गर्व कर रहे हैं
उनके बनाये
नमूनों पर,
तांडव, विरह,
विवाह, मिलन
सारे के सारे
धुन उनके,
सत्ता, ताकत,
धमक है जिनके,
हमारे धुन है
बेबसी के,
मदहोशी के,
खामोशी के,
लाचारी के,
दुत्कारी के,
चित्कारी के,
मनुहारी के,
बदहाली के,
कंगाली के,
सामाजिक
दलाली के,
पता नहीं कब
रच पाएंगे धुन,
समता के,
ममता के,
टूटती विषमता के,
न्याय के,
इंसाफ के,
अत्याचारियों के
पश्चाताप के,
सम्मान के,
संविधान के,
ज्ञान के, विज्ञान के,
देश के विधान के,
एक-एक अनुच्छेद
के संज्ञान के,
तैयार करने ही
होंगे एक ऐसा धुन
जिससे थिरके सारा देश,
भूला के सारा द्वेष व क्लेश,
जिसमें से न आए
धर्म व जातिय गंध
की कर्कश आवाज,
हमें रचना होगा,
सृजना होगा ऐसा साज।
परिचय :-...