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पद्य

यदुवंशम : प्रभु श्रीकृष्ण
भजन

यदुवंशम : प्रभु श्रीकृष्ण

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** स्वर्ग से उतर आए भगवान विष्णु, माँ देवकी के गर्भ से लेने अवतार। युगपुरुष कृष्ण बनकर जन्म लिया, अत्याचारी कंस का करने संहार।। बालपन में राक्षसों का वध किया, वृंदावन में सखा संग गाय चराये। बजाकर मनमोहक सुरीली बाँसुरी, गोपियों को अपने संग में नचाये।। चौंसठ कलाओं के सर्वश्रेष्ठ ज्ञाता, द्वापरयुग के आदर्श देव दार्शनिक। निष्काम कर्मयोगी और स्थितप्रज्ञ, महान् विश्व गुरु प्रभु द्वारकाधीश।। विराट रूप तीन लोक, चौदह भुवन, कुरुक्षेत्र में अर्जुन को किया प्रेरित। त्रिकर्म, जीवन, सुख-दुःख के चक्र, गीता ज्ञान के गंगा करके प्रवाहित।। यादव वंश के शिरोमणि, कुलभूषण, युगों-युगों तक भारत में यदुवंशी राज। आपको जन्मदिन की बधाई हो कान्हा, हम पर कृपा बना कर देना आशीर्वाद।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) ...
मेहनत और किस्मत
कविता

मेहनत और किस्मत

महेन्द्र साहू "खलारीवाला" गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** मेहनत कर प्यारे, किस्मत के भरोसे ना बैठ, रुतबा अपने पास ही रख, यूँ ना ऐंठ, मेहनत हमेशा सबको उबारती है, मेहनत से हमेशा किस्मत हारती है।। परिश्रम कर, श्रमसीकर बहा, निठल्ला ना बैठ, तप कर कड़ी धूप में, यूँ चैन से ना बैठ, पेट की अगन सबको मारती है, मेहनत से हमेशा किस्मत हारती है।। परिश्रम से लिख दो अपने किस्मत की लकीर, श्रम के बूँद से चमकाओ अपनी तकदीर, तकदीर बदलने के लिए मेहनत पुकारती है, मेहनत से हमेशा किस्मत हारती है।। पथरीली राहों में चाहते हो पर्वतों को लाँघ जाना बादलों को चीरकर चाहते हो ऊँची मंजिल पाना स्याह रात में भी जलाते रहो चिरागों की आरती मेहनत से हमेशा किस्मत है हारती।। खींच दो लकीर आसमां की बुलंदियों पर बना लो आशियाना चमकते हुए चांँद पर परिंदा भी पापी पेट खातिर चों...
जीवन  है परिवर्तन
कविता

जीवन है परिवर्तन

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** शैशव को कर पार किशोरी की अरुणाई शनै शनै:तरुणाई में बदल गई। बालेपन की उन्मुक्त पवन सी चुनमुन चिड़िया की रफ्तार मीठी शहनाई में बदल गई। बचपन की एन .सी.सी.की ठक् ठक् करती कदमताल नूपुर की रुनझुन में बदल गई। दौड़ा करती भोली बिटिया जीवन संगिनी में बदल गई पायल की बेड़ी में बदल गई। नवपल्लव मृदुता को तज विशाल वृक्ष की काया बन शीतल छाया में बदल जाते हैं। ठुमक ठुमक नन्हें पग वृद्धि सिद्धि से हो उन्नत अपना कर्तव्य निभाते हैं। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्य...
उदित हुआ हूँ मैं
कविता

उदित हुआ हूँ मैं

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** उदित हुआ हूँ पुनः अंधकार का सीना चीर कर मृत्यु का भय नहीं, ना कुछ खोने का डर है, अनंतर चल पड़ा हूँ अपने अग्निपथ पर संघर्षशील चुनौतियों का सामना करने! निर्मित हुआ हूँ, विकसित हुआ हूँ लौटा हूं प्रकाश पुंज बनकर दिए की लौ की भांति नहीं, दिवाकर का तेज लेकर, कर्मों के समीकरण से सुलझा सकता हूँ शतरंज की इस पारी को, जो विधाता ने बिछाई थी, किन्तु मैं अजेय होकर निखरा हूँ लिखूँगा अब जीवों का भाग्य मैं स्वयं ही, ना होगा उसमें कोई छल समझौता, ना ही असफलता की होगी कोई परिभाषा उजियारा बन छा जाऊंगा इस विशाल नभ और थल पर, पराजय कोई विकल्प नहीं, अब जीत के मंत्र की जीवनी लिखूँगा! माना कि जीवन संघर्ष का नाम है परंतु स्वयं के पुरुषार्थ से पुरुषोत्तम बनूँगा जीवों के लिए नहीं है शेष कोई उधार मेरे ...
झूठ
हास्य

झूठ

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** इस जहां का एकमात्र शाश्वत सत्य है झूठ, जी हां झूठ, जिसे साबित करने के लिए न पत्ते बचते हैं, न डाली बचती है और न ठूंठ, गपोड़ काल से हंसोड़ काल तक, कपोल काल से ढपोर काल तक, सर्वत्र रहा है झूठ, झूठ बोलता है आस्तिक भी, बोलता है नास्तिक भी, और बोलता है वास्तविक भी, इस पर किसी की मिल्कियत नहीं है, जो है जैसा है सब यहीं है, वैसे ये सभी को बोलने चाहिए, मुंह सबको खोलने चाहिए, एक दुखिया भी, और देश का मुखिया भी, सब झूठ बोलने के लिए स्वतंत्र है, बोलेंगे भई भले ही देश में गणतंत्र है, क्या मंत्री क्या संतरी, क्या मौनी क्या जंतरी, झूठ सबका है, जिस पर यकीन करने वाला अंधभक्त, मध्यम व गरीब तबका है, बोलो बोलो खुलकर बोलो, देश में बोलो, परदेश में, करो दिन की शुरुआत या रात्रि का खात्मा, बस झूठ में ही बसा लो खु...
राखी पर दोहे
दोहा

राखी पर दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** राखी में तो धर्म है, परंपरा का मर्म। लज्जा रखने का करें, सारे ही अब कर्म।। राखी धागा प्रीति का, भावों का संसार। राखी नेहिलता लिए, नित्य निष्कलुृष प्यार।। राखी बहना-प्रीति है, मंगलमय इक गान। राखी है इक चेतना, जीवन की मुस्कान।। राखी तो अनुराग है, अंतर का आलोक। हर्ष बिखेरे नित्य ही, परे हटाये शोक।। राखी इक अहसास है, राखी इक आवेग। भाई के बाजू बँधा, खुशियों का मृदु नेग।। राखी वेदों में सजी, महक रहा इतिहास। राखी हर्षित हो रही, लेकर मीठी आस।। राखी में जीवन भरा, बचपन का आधार। राखी में रौनक भरी, देती जो उजियार।। भाई हो यदि दूर तो, डाक निभाती साथ। नहीं रहे सूना कभी, वीरा का तो हाथ।। यही कह रहा है 'शरद’, राखी का कर मान। वरना होना तय समझ, मूल्यों का अवसान।। राखी में आवेश है, राखी में उल्लास। राखी...
पीडाएँ
गीत

पीडाएँ

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** अंधकार छाया है जग में, संत्रासित हैं दसों दिशाएँ। घर-घर में दुर्योधन जन्मे, रोती रहती हैं माताएँ।। पीडाएँ ही पीडाएँ हैं, रक्षक ही अब भक्षक बनते। दीप वर्तिका काँपे थर-थर, वाणी से विष नित्य उगलते।। छाए बादल जात-पाँत के, लाल रक्त ही हैं बरसाएँ। चिंताओं में जकड़ा मानव, बढ़ती जाती है मृगतृष्णा। गठबंधन है सरकारों का, चीर-हरण से व्याकुल कृष्णा।। आतंकी रावण ने घेरा, मूर्छित लक्ष्मण हैं घबराएँ। विपदाएँ ही विपदाएँ हैं, झंझावातों ने भटकाया। दुष्ट सुनामी की लहरों से, तांडव जीवन में है आया। साहस संयम सब खो बैठे सपनों की अब लाश सजाएँ। धर्म सनातन ध्वस्त हुआ है, वेद -पुराणों को भूले हैं। टूटे घर के साँझे चूल्हे, संस्कार लँगड़े लूले हैं।। नए अग्निबाणों से बादल, महायुद्ध के हैं अब छाएँ। परिच...
हे प्राणप्रिय …
कविता

हे प्राणप्रिय …

शैल यादव लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज) ******************** जब-जब घर से जाना होता, बहुत दिनों पर आना होता, नत नयनों को नम करके, अंतिम दिन का खाना होता ! प्रिय से बोली प्राणप्रिया तब, बोझिल लगता कर्म क्रिया अब, अबकी लौट के ‌आना जल्दी, बिना आप के शून्य यहाॅं सब! बिना आप के मेरे आर्य, ठीक न लगता कोई कार्य, रजनी दिवस ‌स्वपन जागृत में, हो गये हैं आप अब अपरिहार्य! दो जिस्मों में एक है जान, सच कहती हूॅं झूठ न मान, तुम बिन मेरा अस्तित्व नहीं है, मेरी तो ‌केवल तुम शान ! बच्चों का भी यही है हाल, टिफिन बैग स्कूल बवाल, जाती हूॅं थक ताम झाम से, सब लगता जी का जंजाल! क्यों पढ़ना-लिखना छोड़ दिए, क्यों अपने मुंह को मोड़ लिए, पथ के कांटों को फूल बनाकर, क्यों अपनी राह को मोड़ लिए! नयन राह की ओर निहारे, सबकी आशा हो तुम प्यारे, ओ मेरे जीवन आधार, आ जाओ जी चाह पुकारे!! ...
राखी बनाम वचन पर्व
कविता

राखी बनाम वचन पर्व

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** थाल सजाकर बहन कह रही, आज बँधालो राखी। इस राखी में छुपी हुई है, अरमानों की साखी।। चंदन रोरी अक्षत मिसरी, आकुल कच्चे-धागे। अगर नहीं आए तो समझो, हम हैं बहुत अभागे।। क्या सरहद से एक दिवस की, छुट्टी ना मिल पायी? अथवा कोई और वजह है, मुझे बता दो भाई ? अब आँखों को चैन नहीं है और न दिल को राहत। एक बार बस आकर भइया, पूरी कर दो चाहत।। अहा! परम सौभाग्य कई जन, इसी ओर हैं आते। रक्षाबंधन के अवसर पर, भारत की जय गाते।। और साथ में ओढ़ तिरंगा, मुस्काता है भाई। एक साथ मेरे सम्मुख हैं, लाखों बढ़ी कलाई।। बरस रहा आँखों से पानी, कुछ भी समझ न आये। किसको बाँधू, किसको छोड़ू, कोई राह बताए? उसी वक्त बहनों की टोली, आई मेरे द्वारे। सोया भाई गर्वित होकर, सबकी ओर निहारे।। अब राखी की कमी नहीं है और न कम हैं भाई...
जंगल में चुनाव
कविता

जंगल में चुनाव

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** सुन चुनाव की बात समूचा जंगल ही हो उठा अधीर। माँस चीथनेवाले हिंसक खाने लगे महेरी खीर।। धर्म-कर्म का हुआ जागरण आलस उड़ कर हुआ कपूर। देने लगे दुहाई सत की असत हो उठा कोसों दूर।। बिकने लगे जनेऊ जमकर दिखने लगे तिलक तिरपुण्ड। जानवरों के मरियल नायक बन बैठे हैं सण्ड-मुसण्ड।। ऊपर से मतभेद भुलाकर भीतर भरे रखे मन भेद। तू-तू मैं-मैं करके सरके आसमान में करके छेद।। श्वान न्यौतने लगे बिल्लियाँ बिल्ली न्यौते मूषक राज। देखी दरियादिली चील की बुलबुल की कर उठी मसाज।। लूलों ने तलवार थाम ली लँगड़े चढ़ने लगे पहाड़। बूढ़े श्वान भूलकर भौं भौं बकने लगे दहाड़ दहाड़।। भालू भैंस भेड़िए गीदड़ गिद्ध तेंदुए चीते चील। बकरी बन्दर बाघिन बगुले साँवर गैंडे हिरन अबील।। एक दूसरे के सब दुश्मन हुए इकट्ठे वन में यार। चले...
आम सी लड़की
कविता

आम सी लड़की

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** सुन कर मोहब्बत के अधूरे किस्से सहम जाती है आम सी लड़की। अजनबी लोगों को देख घबराकर छुप जाती है आम सी लड़की। माँ के आंचल को, पापा के कंधे को अपनी ढाल समझती हैं आम सी लड़की। इश्क़ तो दूर उसके नाम से भी डर जाती है आम सी लड़की। इश्क़ लिखती है, इश्क़ पढ़ती है मगर इश्क़ करने से डरती है आम सी लड़की। मिलती नहीं, दिखती नहीं कहीं भी आजकल आम सी लड़की। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के ...
आ न सकूँगी इस राखी में भैया कुछ मजबूरी है
गीत

आ न सकूँगी इस राखी में भैया कुछ मजबूरी है

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** आस मिलन की माँ बापू से, फिर इस साल अधूरी है। आ न सकूँगी इस राखी में, भैया कुछ मजबूरी है।। पैरोकार नहीं है कोई, निष्ठुर यहाँ जमाने में।। सदय ससुर पर मिर्ची ननदी, शातिर है भड़काने में। कटुक करेले-सी सासू के, मुख में बस अंगारे है, माहिर हैं सब पास पड़ोसी, घर में आग लगाने में।। गऊ सरीखे जीजा तेरे, देवर मीठी छूरी है। आ न सकूँगी इस राखी में, भैया कुछ मजबूरी है।।१ बीज खाद की चढ़ी उधारी, गेह गिरस्थी है घायल। खेतों में हो सकी बुआई, जब गिरवी रख दी पायल। भैंस बियानी घर की जब से, बंद दूध की चंदी पर, मुझे दिहाड़ी मिल जाती है, पंचायत जो है कायल।। पेट पालने को सच भैया, कुछ श्रमदान जरूरी है। आ न सकूँगी इस राखी में, भैया कुछ मजबूरी है।।२ नाम लिखाया है काॅलिज में, बिटिया का रजधानी में। फेल हो गया गुड्डू ...
हम तेरे मधु-गीत बनेंगे
गीत

हम तेरे मधु-गीत बनेंगे

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** हे प्रिय! हम-तुम दोनों मिलकर, जीवन का संगीत रचेंगे। तुम मेरी कविते बन जाना, हम तेरे मधु-गीत बनेंगे ।। दर्द-दर्द जब उभरे होंगे, भाव-भाव जब निखरे होंगे, अक्षर-अक्षर आँसू बनके- शब्द-शब्द में बिखरे होंगे! तब हम ‌ छन्दों की माला में, बिरहा के सब रीत लिखेंगे! तुम मेरी कविते बन ‌ जाना, हम तेरे मधु-गीत बनेंगे।। जब लहर उठेगी यादों की, जब आह! उठेगी वादों की, 'कितना सुन्दर साथ हमारा, ज्यों मिलन दोपहर-रातों की!' सुखदा-संध्या के मौसम में- बारहमासा - प्रीत लिखेंगे। तुम मेरी कविते बन जाना, हम तेरे मधु-गीत बनेंगे।। कभी-कहीं सुर-साज मिलेंगे, तालों पे जब ताल चलेंगे, कैसे रोक - सकेंगे मन को, नर्तन को जब पॉव उठेंगे! तेरी लय पाने की खातिर- सरगम के कुछ नीत रखेंगे! तुम मेरी कविते बन जाना, हम तेरे मधु-गीत बनें...
छंदमुक्त – क्षणिकाएँ
कविता

छंदमुक्त – क्षणिकाएँ

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** छंदमुक्त - क्षणिकाएँ भूख- मासूमा खड़ी चौराहे पे हाथ में ले कटोरा एक साया खाना लिए ले गया अँधेरे में भरपेट खिलाया उसे सहलाया पुचकारा ख़ुद भी भूखा था जी भरकर मिटाई अपनी देह की भूख एक दीया- मत जलाना दीए किसी भी दिवाली पर न राहें या चौराहें न घर न बाहर न मंदिर या मस्ज़िद में न यहाँ न वहाँ व्यर्थ उजाले की न हो चाह याद से लगाना एक दीया सरहद के शहीदों के नाम क्या हो- प्रदूषित सृष्टि जल-थल-नभ अशुद्ध हरीतिमा विलुप्त मरुथल विस्तृत पशु संपदा संतप्त नदियाँ अतृप्त जल-जीव मृत दम घोटती मलय पंछी विहल बचे पर्यावरण क्या हो भवितव्य न से नः तक- न ना से नदी व नारी नि से निशदिन व्यस्त नी से नीयत शुद्ध नु से नुमाइश न करे नू से नूतन सदा ही ने से नेकी ही करे नै से नैतिकता निभाए नो ये कभी नहीं कहे नौ से नौनिहाल द...
चंचल लहरें
कविता

चंचल लहरें

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मचल उठे चंचल, लहरों के साथ कगारे। माझी के अधरों ने, नूतन गान सँवारे। ज्वार उठा सागर में, अनगिन घन मँडरायें। लहर लहर सागर में, ताँडव नृत्य दिखाये। घिर घिर कर आता, अम्बर में घोर अंधेरा, ज्वार उठा सागर में, मांझी दूर सवेरा। भीषण लहरों पर, तिरती आशा की कश्ती। कर में मांझी ने ली, बाँध प्रलय की मस्ती। गर्जन तर्जन में माँझी, मंजिल रहा निहारें। माँझी के अधरों ने, नूतन गान सँवारे। बिन्दु बिन्दु ने आज, सिंन्धु में विष फैलाया, करना है विषपान, सोच माँझी मुस्काया। देख प्रलय ने अपनी, भाषा में कुछ बोला, सुन माँझी ने अपने, मन में साहस तोला। प्रलय तुम्हारी लहरें, तट धरती के सारे। माँझी के अधरों ने, नूतन गान संवारे। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्...
मैं स्त्री
कविता

मैं स्त्री

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** पिता पति दो तटबंधों के मध्य, आजीवन नदी बन बहती रहूं। मैं स्त्री हर कदम पर वर्जनाएं, जन्म से मरण तक सहती रहूं। क्यूं नर जन्म पर बजती थाली, और मैं पराया धन सुनती रहूं। मेरे ही जल से सिंचित जीवन, सदियों से अबला बनती रहूं। मैं जिस आंगन में पली बढ़ी, वो घर बाबुल का सुनती रहूं। ठुमकी मचली जिस देहरी में, कब चिड़िया बन उड़ती रहूं। फल फूल खुश्बू से सरोबार, मैं तरु माफ़िक फलती रहूं। पिता पति के घर को भला, कैसे! मैं अपना बुनती रहूं। पापा रोती होगी तेरी काया, जब मैं दूजे घर जलती रहूं। कोख सिसकती रही मां की, लाल जोड़े में लटकती रहूं। मैं प्रकृति को संवार कर भी, नर से जीवन भर छलती रहूं। सीता अहिल्या द्रोपदी बन, सदा हर युग में बुझती रहूं। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) ...
आहट
गीत

आहट

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** आहट सुनकर बौराती हूँ, तकती निशिदिन द्वार। तुझ बिन सूना घर आँगन है, लगता जीवन भार।। स्वप्न सजाए लाखों मैने, पुष्प बिछाये पाथ। प्यास बुझाने मेह बुलाए, लगा न कुछ भी हाथ।। बंधन सारे तोड़ चला तू, मानी मैंने हार।। कंचन थाली काम न आई, भूखा सोया लाल। यम ने बाहुपाश में बाँधा, बलशाली है काल।। नयनों से बस नीर बहे है, उर जलते अंगार।। तंत्र- मंत्र सब खाली जाते, आया है अवसाद। मुरझाई प्रेमिल बगिया है, शेष रही है याद।। फेंक मौत का जाल मौन अब, बैठ गया करतार। पीड़ा माँ की कौन जानता, जाने बस सिद्धार्थ। ममता ने दी बस आशीषें, भूलो मत तुम पार्थ।। मानव केवल दास नियति का, बात करो स्वीकार। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पा...
हम सहेलियाँ
कविता

हम सहेलियाँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** हम सखियाँ, हम सहेलियाँ, हम हैं हमजोलियां, बात बहुत पुरानी है, पर प्यार, स्नेह, लगाव, परवाह अभी भी नया है जीवन की राह में मिलती हैं कई सखियाँ किन्तु कुछ ही प्रिय और अनमोल बन पाती हैं सहेलियाँ, हम भी हैं कुछ वैसी ही सलोनीयां बरसों साथ रहे, सुख दुख भी बांटे साथ-साथ बच्चे भी बन गए आपस में सहेलियाँ! कभी कहीं जाते कभी कहीं जाते, साथ थिरकते साथ गाते साथ ही साथ हर उत्सव मानते! कभी कोई रूठता कभी कोई टूटता, आपस में मिलकर उसे मनाते और फिर से जुड़ जाते गहरी सहेलियाँ! समय बीता, साल बीते, बच्चे बड़े हुए थोड़ा दूर निकल गए बालों में सफ़ेदी की चमक आई, चेहरे पर सिलवटें भी आ गयीं, थोड़ा कमर भी छुकी थोड़ा मध्यम हुए, जिम्मेदारी के बोझ तले कभी असहाय-लाचार भी हुईं हम सहेलियाँ, मगर सबको साथ लेक...
पंडित जी के मोक्ष
कविता

पंडित जी के मोक्ष

उत्कर्ष सोनबोइर खुर्सीपार भिलाई ******************** कंधे से कंधे मिला कर चलने वाला दोस्त, जब आपको कंधो पर बैठाकर समूचा बस्तर दशहरा दिखा दिया हो! एक ऐसा दोस्त जो हॉस्टल से घर जाने के बाद सेमेस्टर ब्रेक में भी आपको कॉल करता हो... और हर बार ये फोन लगाकर पूछता हो कि "कब आथस बे?" एक ऐसा दोस्त जिसे घर पहुँच कर बताना पड़े की "हां पहुँच गे हो बे" जो तुम्हें हॉस्टल आने की हर खबर सुनते ही बस स्टेशन पर हर बार लेने पहुँच जाए। वो हर एक दोस्त का बेस्ट फ्रेंड है पर उसके नज़र में हर एक दोस्त बेस्ट है। वो जंहा बैठे वंहा महफ़िल बन जाए मुझे वो कुछ इस तरह मिला गया जैसे देवभोग के खदान से हीरा बेस्ट सीआर, यारों का यार, सीनियरस का मान, कॉलेज की शान सभी के दिलों में राज करने वाला नाम है - मोक्ष परिचय :- उत्कर्ष सोनबोइर (विधार्थी) निवासी : खुर्सीपार भिला...
शिक्षक: एक भविष्य निर्माता
कविता

शिक्षक: एक भविष्य निर्माता

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** ज्ञान की पाठशाला में, जो सबको पढ़ाई करवाता है। वो शिक्षक ही तो है, जो बगिया में फूल खिलाता है।। सादे कोरे कागज में, शब्द लिखकर चित्र बनाता है। बच्चे कच्ची मिट्टी के समान, उन्हें आकार दे जाता है।। स्वयं चलता दुर्गम राह में, शिष्यों के लिए सुगम बनाने। स्वयं तपता है भट्टी में, कच्चे लोहे से औजार बनाने।। सड़क के जैसे पड़ा है, विद्यार्थी आते-जाते अनजाने। चले जा रहे रफ्तार से, मुसाफिर के मंजिल है सुहाने।। एक लक्ष्य, एक राह, मन में पैदा करता है सदा जुनून। हौसलों को बुलंद कर, अनुभव की चक्की से पीसे घुन।। शिक्षादूत, ज्ञानदीप, शिक्षाविद् ही दूर करता है अवगुन। जीत दिलाने अध्येता को, त्याग देता है चैन और सुकून।। कर्म औषधि जड़ी-बूटी को, अज्ञानियों को खिलाता है। ज्ञान गंगा प्रवाहित कर, ज्ञान अमृत सबको पिलाता है।...
शिक्षक ज्ञान का संसार …
कविता

शिक्षक ज्ञान का संसार …

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** जब था हमारा विद्यार्थी जीवन विद्यालय जाने की चढ़ती धुन समय शिक्षक संग बिताते थे हम मित्रों और शिक्षको के संग कैसे हंसी खुशी बीत जाता बचपन कक्षा में बैठकर पढ़ने में लीन होने की धुन कभी नहीं होती थी हममें कम पढ़ने की चढ़ती थी उमंग तरंग कतार में खड़े होकर नियमित प्रार्थना गाते थे हम तनमन से शिक्षक के समक्ष कुर्सी पर बैठ जाते थे हम घण्टी बजते ही शिक्षक खाता लेकर कक्षा में आते आते ही सम्मान करते, खड़े हो जाते हम हाजरी वे सबसे पहले लगाते, अपनी उपस्थिति हम बताते बचपन में वो हमें अक्षर ज्ञान के पाठ सिखने को संग बिठाते, पढ़ाने में लीन कराते अन्तर्मन से अक्षर बचपन में खूब समझाते पढ़ने की हर जिज्ञासा को पल में अन्तर्मन में रमाते रटा रटा कर लिखना पढ़ना हम बच्चो को खूब सिखाते नए नए ज्ञान की नितप्रतिदिन जीवन घुं...
दुनियादारी
कविता

दुनियादारी

शैल यादव लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज) ******************** सामाजिक संबंधों से जब मैं, हो जाऊंगा निराश और हताश, तब मेरे मुंह से निकलेगा अनायास, कि धोखे की नींव पर, टिकी है यह‌ सारी दुनिया, कि जिसकी नींव ही धोखा हो, हकीकत ‌हो सकती है, भला उसकी मंजिल कभी? फिर मैं कहूंगा, चिरस्थाई नहीं है, इस संसार के लिए जो, वह मेरे लिए कैसे स्थाई हो सकता है, जो भी आया है जीवन में किसी के, जाएगा तो अनिवार्यतः ही, यह परम सत्ता, तो प्रतिपल परिवर्तनशील है, उसने कहा था कि, परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है, और जो शाश्वत होता है, वह कभी भी अशास्वत कैसे हो सकता है? इसलिए उसका बदलना, उसके भीतर के दोषों को नहीं दिखता, बल्कि दिखाता है, उसके भीतर की दुनियावी सास्वतता...!! परिचय :- शैल यादव निवासी : लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज) सम्प्रति : शिक्षक- जीआईसी घोषणा ...
चंद्रयान पहुँचा चंदा पर
कविता

चंद्रयान पहुँचा चंदा पर

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** चंद्रयान पहुँचा चंदा पर, तीन रंग फहराये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। ज़ीरो को खोजा था हमने, आर्यभट्ट पहुँचाया। छोड़ मिसाइल शक्ति बने हम, सबका मन लहराया।। सबने मिल जयनाद गुँजाया, जन-गण-मन सब गाये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। मैं महान हूँ, कह सकते हम, हमने यश को पाया। एक महागौरव हाथों में, आज हमारे आया।। जिनको नहीं सुहाते थे हम, उनको हम हैं भाये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। जो कहते थे वे महान हैं, उनको धता बताया। भारत गुरु है दुनिया भर का, यह हमने जतलाया।। शान तिरंगा-आन तिरंगा, गीत लबों पर आये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। अंधकार में किया उजाला, ताक़त को बतलाया। जो समझे थे हमको दुर्बल, उन पर भय है आया।। जोश लिये हर जन उल्लासित, हम हर दिल...
बुरा क्या है …?
कविता

बुरा क्या है …?

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** बंदिशों का पिंजरा तोड़, उड़ जाने को जी चाहे। तो बुरा क्या है? अपने लिए कुछ वक्त, चुराने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? समझदारियों की बातें छोड़, नादानियाँ करने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? छोड़ बनावटी हँसी, रूठ जाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? न सुन जमाने की, मनमानी कर जाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? सपनों को सच करने, जी जान लगाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? जी हुजूरी छोड़, करने को बगावत जी चाहे, तो बुरा क्या है? अन्याय होता देख, आवाज उठाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? भीड़ से अलग, पहचान बनाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? हक के लिए, लड़ भिड़ जाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? दिखावे को छोड़, असलियत अपनाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : ...
मेरी माटी मेरा देश
कविता

मेरी माटी मेरा देश

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** मेरी माटी मेरा देश .. भारत का यही संदेश .. आओ मिल-जुल गाओ जी .. भारत का मान बढ़ाओ जी .. अमर शहीदों के कुर्बानी से, मिली है हमें आजादी जी। जय हिंद के नारा लगाकर, अमृत उत्सव मनाओ जी। तिरंगा का तो प्रतीक है, आन, बान और शान जी। आओ इन्हें नमन करें हम, भारतवासी हिंदुस्तान जी। मानव बनकर मानवता का, भाईचारा का भाव गढ़ों। इंसान बनकर इंसानियत का, देशप्रेम का पाठ पढ़ो। हिंदु मुस्लिम सिक्ख इसाई, संस्कृति का संवर्धन करो। जन-गण-मन गान कर सब, राष्ट्रीयता का पहचान करो। परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू निवासी : भानपुरी, वि.खं. - गुरूर, पोस्ट- धनेली, जिला- बालोद छत्तीसगढ़ कार्यक्षेत्र : शिक्षक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविता...