दर्शन दो दुर्गा माँ
प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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दुर्गा माँ तुम आ गईं, हरने को हर पाप।
संभव सब कुछ है तुम्हें, तेरा अतुलित ताप।।
बढ़ता ही अब जा रहा, जग में नित अँधियार।
करना माँ तुम वेग से, अब तो तम पर वार।।
भटका है हर आदमी, बना हुआ हैवान।
हे माँ! दे दो तुम ज़रा, मानव-मन को मान।।
सद्चिंतन तजकर हुआ, मानव गरिमाहीन।
दुर्गा माँ दुर्गुण हरो, सचमुच मानव दीन।।
छोटी-छोटी बच्चियाँ, हैं तेरा ही रूप।
उन पर भी तुम ध्यान दो, बाँटो रक्षा-धूप।।
हम सब हैं तेरा सृजन, तू सचमुच अभिराम।
दुर्गा माँ तू तो सदा, रखती नव आयाम।।
ये पल पावन हो गए, लेकर तेरा नाम।
यह जग दुर्गे है सदा, तेरा ही तो धाम।।
दुर्गा माँ तुम वेगमय, तुम तो हो अविराम।
धर्म, नीति तुमसे पलें, साँचा तेरा नाम।।
दुर्गा माँ तुमने किया, मार असुर कल्याण।
नौ रूपों में तुम रहो, पापी खाते बाण।।
सिंहव...