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पद्य

उपहार नवरात्रि का
कविता

उपहार नवरात्रि का

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** त्रेता में सीता हरण हुआ, दशमुख ने रूप छुपाया है, अब कलयुग में कितने सीता हरण हुए ,कितने दुष्टो ने नाम छुपाया है। श्री राम ने रावण मारा है, अब कौन राम पैदा होंगे इन दुष्टों के संहार ने को? इन आतताईयों के मारने को? सीता ने मृग की गलती की, अब तुम कितनी गलती करती हो, अपने दिल से तुम भी पूछो, तुम भी तो गलती करती हो? पैसा सोना सौंदर्य ऐश इसके खातिर तुम बिकती हो। क्यों मां की कोख लजाती हो, क्यों अपने धर्म से विचलित होती हो। धर्म ग्रंथों को पढ़कर देखो, तुम सीता राधा द्रोपति बनो। अपने धर्म का आदर करना, तुम शास्त्र से पढ़कर हे सीखो। अपनी शान से तुम जियो, रोशन कर दो तुम मातृभूमि को, जग में नाम "उज्ज्वल" कर दो। बन जाओ झांसी की रानी अहिल्या रजिया द्रोपति प्रतिभा। छूने ना दो इन दुष्टों को, बन जाओ रणचंडी ...
सांस का सफर …
कविता

सांस का सफर …

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** ये साथ तेरा मेरा तो, सांस का सफर है। तेरी नजर है मेरी, मेरी तेरी नजर है, ये साथ तेरा मेरा तो, सांस का सफर है। है दूर ना किनारा, जब साथ हो तुम्हारा- २ अनमोल है ये रिश्ता, तू बन चुकी सहारा- २ जज्बा गजब है तेरा, दुनिया का भी ना डर है, ये साथ तेरा मेरा तो, सांस का सफर है। तेरी नजर है मेरी, मेरी तेरी नजर है, ये साथ तेरा मेरा तो, सांस का सफर .... हमराही मेरे हमको, उस छोर तक ले जाना- २ जिस ओर ना पहुंचता, बेदर्द ये जमाना- २ अनजान इस सफर में, बस दर्द का कहर है, ये साथ तेरा मेरा तो, सांस का सफर है। तेरी नजर है मेरी, मेरी तेरी नजर है, ये साथ तेरा मेरा तो, सांस का सफर ... आनंद के कलम की, कड़ियां कभी रुके ना- २ जो प्रण है मेरे दिल में, वो प्रण कभी चुके ना- २ दरिया के बीच से हीं, मेरे प्रेम की डहर है,...
इन्तजार
कविता

इन्तजार

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** अधर बनी गुलाब पंखुरी नयन बने कमल से नयन भी करते इशारे प्रेम के बालो से निकली लट से छुप जाते नयन माथे पे बिंदिया सजी लगती प्रभात किरण कंगन की खनक पायल की रुनझुन कानो में घोल देती मिश्री कमर तक लहराते लटके बालों से घटा भी शरमा जाए हाथो में लगी मेहंदी खुशबू हवाओं को महकाए सज धज के दरवाजे की ओट से इंतजार में आँखों से आँसू इन्तजार टीस के बन जाते गवाह इन्तजार होता सौतन की तरह बस इतनी सी दुरी इन्तजार की कर देती बेहाल प्रेम रूठने का आवरण पहन शब्दों पर लगा जाता कर्फ्यू सूरज निकला फिर सांझ ढली फिर वही इंतजार दरवाजे की ओट से समय की पहचान कर रहा कोई इंतजार घर आने का तितलियाँ उडी खुशबू महकी लबो पर खिल, उठी गुलाब की पंखुड़ी समय ने प्रेम को परखा नववर्ष में चहका प्यार। परिचय :- संजय वर्मा "द...
राजनीति की चिल्ल पों
कविता

राजनीति की चिल्ल पों

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** राजनीति प्रवक्ता के बोल, रटे रटाए दिखते हैं। आड़ा तिरछा पूछ लिया तो, प्रति प्रश्न ही करते हैं। बोलने से कमाई होती, पर दिशाहीन चलते हैं। संस्कारी भारत की गरिमा, मचा चिल्ल पों हरते हैं। अच्छा बोलने वाले का तो, हुनर दिलाता है मौका। गलत बात टकरा जाए, वक्ता जड़ते छक्का चौका। बस तारीफों के पुल बांधों, भले नहीं सोना चोखा। गुजरे समय में खूब जिनसे, पार्टी ने खाया धोखा। उन चतुरों की खातिर देखो, बस अंगार चमकते हैं। संस्कारी भारत की गरिमा, मचा चिल्ल पों हरते हैं। वकील कानूनी भाषा से, रखें तर्क वितर्क कुतर्क। अदालत फैसला रहे एक, पर वक्ता दलील में फर्क। अपने मतलब का जोड़-तोड़, दिखाकर ही पाते हर्ष। आरोप अपराध अंतर में, करते कई बार विमर्श। कागज सबूत फोटो अनेक , पैरवी में दमकते हैं। संस्कारी भारत की गरिमा, मचा चिल्ल पों हरते ह...
रघुराम कहाँ से लाऊँ
कविता

रघुराम कहाँ से लाऊँ

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** दुनिया में चारों तरफ रावण-ही-रावण है, मैं मर्यादा पुरुषोत्तम रघुराम कहाँ से लाऊँ। असत्य, अधर्म और पाप का बोलबाला है, सत्य, धर्म दृढ़ कर राम राज्य कैसे बनाऊँ।। बहन-बेटियों के चैन और सुकून को छीनने, दस सिर लिए कई रावण घूमते गली-गली। बहला-फुसलाकर, जोर-जबरदस्ती करते, गौरव नारी को हर कर मचाते हैं खलबली।। कौन कहता है लंका पति रावण मारा गया, वह तो लोगों के मन में अभी भी है जिंदा। बुरे विचारों को शातिर मस्तिष्क में पनपाते, कहीं बलात्कार और हत्या करते हैं दरिंदा।। यदि कोई मनुष्य फिर बन गया रावण कहीं, हर साल दशहरे के दिन आग से जलाएंगे। बुराई पर अच्छाई की जीत सदा होती रहेगी, कलियुगी रावण को, राम बन मार गिराएंगे।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : सहायक शिक्षक सम्मान : मुख्यमंत्री शिक्...
जिंदगी की रेलगाड़ी
कविता

जिंदगी की रेलगाड़ी

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हां जिंदगी एरोप्लेन या रेलगाड़ी नहीं, पर घिसट-घिसट कर चल रही, एक्सप्रेस, सुपरफास्ट तो नहीं कह सकता, पर पैसेंजर रेल सा ही बहता, कभी सिग्नल नहीं मिल पाता, कभी टाइमिंग के इंतजार में खड़ी रह जाती है जिंदगी, कभी जबरन जीवन में घुस आये नेता या रिश्तेदारों की तरह खड़ी कर दी जाती है घंटों जंगल में, नहीं पड़ रहा रंग में भंग पर रुकावटें रौद्र रूप लिए खींच रही अपनी ओर फुफकारते बाधा डाल रहे अपने मंगल में, समझ ही नहीं आ रहा जियें, जीने की आस छोड़ दें, या जिये जायें घिसटते कीड़ों जैसे, बचे उम्र दिखाएंगे रंग कैसे कैसे, कभी चल पड़ती है जिंदगी तो पता नहीं क्यों भयंकर दर्द का अहसास करने लगते हैं सारे के सारे रिश्तेदार, क्या मालूम ये वेदना है या खुशी की खुमार, एक बात तो जान पाया कि कहने के लिए होती है जिंदगी हसीं,...
दीवारें
कविता

दीवारें

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** दीवारें सब सुनती हैं, सहती है आत्मसात करती हैं खिलखिलाहट और दर्द की राज़दार होती हैं घर की दरकती दीवारें, रिश्तों के टूटन का आभास कराती हैं कभी बुने थे हजारों सपने कई आकांक्षाये कुछ कढ़ गए हैं कहानी में कशीदाकारी की तरह पुरखों की यादे समेटे स्वयं में ये दीवारें हमसे तुमसे कुछ कहना चाहती हैं समय मिले तो जरूर आकर मिलना, इन दीवारों से जिसकी नींव चुनी थी पूर्वजों ने अपने खून पसीने से संदेश सुनने को तरस रही हैं आज ये दीवारें झुक चुकी हैं, फिर भी टूटी नहीं हैं, खड़ी हैं गर्व से सिर उठाए अपने दम पर हैं इंतजार में कि गूंजेगी खिलखिलाहट और संगीत के स्वर फिर एक बार किलकारियों से सुखद अनुभूति कराएंगी नई फसले फिर से आंगन रोशनी से जगमगा उठेंगे इस कल्पना ने नए प्राण फूंक दिए हैं मानो इन...
अपने-अपने रावण
कविता

अपने-अपने रावण

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हर जीवात्मा में होते सदा रावण या सदाचारी श्रीराम बुराई का प्रतीक है रावण तो अच्छाई दर्शाते श्रीराम काम, क्रोध, लोभ, मोह व मद जो दे देते तिलांजलि इनको वे हैं राम जैसे ही चरित्रवान लिखा जाते इतिहास में नाम पाँच विकारों के वशीभूत जो बन जाते दुष्ट दुराचारी सिया-हरण सा पाप करते जग में कहलाते हैं ये रावण मानव स्वकर्मो से ही बनता जो भी चाहे, रावण या राम क्यूँ न हरा दें इस रावण को बन जाएँ मर्यादा पुरुषोत्तम हराकर दशाननी विकारों को दशरथसुत राम ही बन जाएँ करके स्थापना रामराज्य की धरा पर स्वर्ग ही अब उतार दें आज सबके हैं अपने रावण रिश्तों, कुर्सी की मारामारी में अत्याचार, अनाचार, आतंक में महाभारत का ही बोलबाला है परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि ...
पावन विजय-दशहरा
कविता

पावन विजय-दशहरा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** है असत्य पर सत्य की, विजय दशहरा पर्व। पराभूत दुर्गुण हुआ, धर्म कर रहा गर्व।। है असत्य पर सत्य की,विजय और जयगान। विजयादशमी पर्व का,होता नित सम्मान।। जीवन मुस्काने लगा, मिटा सकल अभिशाप। है असत्य पर सत्य की, विजय दशहरा ताप।। है असत्य पर सत्य की, विजय लिए संदेश। सदा दशहरा नम्रता, का रखता आवेश।। है असत्य पर सत्य की, विजय लिए है वेग। विजयादशमी पर्व है, अहंकार पर तेग।। नित असत्य पर सत्य की, विजय खिलाती हर्ष। सदा दशहरा चेतना, लाता है हर वर्ष।। तय असत्य पर सत्य की, विजय बनी मनमीत। इसीलिए तो राम जी, लगते पावन गीत।। नारी का सम्मान हो, मिलता हमको ज्ञान। है असत्य पर सत्य की, विजय दशहरा आन।। है असत्य पर सत्य की, विजय सुहावन ख़ूब। राम-विजय से उग रही, धर्म-कर्म की दूब।। यही सार-संदेश है, यही मान्यता न...
प्रेम है अनमोल न्यारा
कविता

प्रेम है अनमोल न्यारा

डॉ. भावना सावलिया हरमडिया, राजकोट (गुजरात) ******************** छंद मनोरम २१२२ २१२२ प्रेम है अनमोल न्यारा, ईश का उपहार प्यारा।। प्रीत बिन जीवन अधूरा, विश्व हो रस सिक्त पूरा। प्रेम रस जिसने पिया है। धन्य जीवन को किया है। नित्य बरसे स्नेह धारा। प्रेम है अनमोल न्यारा।। पियु सुहाना प्यार ऐसा। रस अमिय का सार जैसा। चार नैना बात करते। प्रीत हिय की दाह हरते। साँस में अनुराग सारा। प्रेम है अनमोल न्यारा।। हो हृदय में भाव निर्मल। तब पनपता प्रेम हरपल। बाग खुशियों का महकता। मोर मन का है गहकता। प्रीत बिन संसार खारा। प्रेम है अनमोल न्यारा।। प्रिय बहुत मुझको सुहाता। प्यार उनका है लुभाता। मीत जब-जब बात करता। दिव्य झर-झर प्रेम झरता। नैन का है मीत तारा। प्रेम है अनमोल न्यारा।। परिचय :- डॉ. भावना नानजीभाई सावलिया माता : वनिता बहन नानजीभाई सावलिया पिता : नानजीभाई ...
जान तेरी
कविता

जान तेरी

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** बिछुड़न तेरी तड़प मेरी धड़कन तेरी आह! मेरी सौदाई तेरी मोहब्बत मेरी यादें तेरी इंतजार मेरा बेवफाई तेरी वफ़ा मेरी भूलना तेरा यादें मेरी लड़ाई तेरी प्रेम मेरा धोखा तेरा विश्वास मेरा फटकार तेरी मिलान मेरा महबूबा तेरी हमदर्द मेरा जान तेरी दिल मेरा सांसे तेरी तू मेरा .... परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हेतु प्रचार, रक्तदान शिविर में भाग लिया। उपलब्धियां : गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड से प्रशंसा पत्र, दैनिक भास्कर से रक्तदान प्रशंसा पत्र, सावित्रीबाई फुले अवार्ड, द प्रेसिडेंट गोल्स चेजमेकर अवार्ड, देश की अलग-अलग संस्थाओं द्वारा कई बार सम्मानित बीएसएफ द्वारा सम...
शिक्षा और चेतना
कविता

शिक्षा और चेतना

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** लोग इस धरा पर आते गए, अपनी पहचान खातिर कुछ न कुछ बनाते गए, पर बुद्धि और विज्ञान के अनुयायी अपने किये कराये पर धरे रह गए, कैसे भयंकर बदलाव सह गए, आर्यों का हुजूम इस धरती पर आया, अपने लिए मंदिर बनाया, मुगल लोग आये, अनेकों मस्जिद बनाये, गोरे भी आये, साथ में चर्च भी लाये, पर शोषितों, वंचितों के जीवन में ज्योतिबा आया, ज्योति पुंज लाया, मां सावित्री आई, स्त्री शिक्षा लाई, बाद भीमरावआया, संघर्षों से तपकर संविधान लाया, इंडिया इज भारत बताया, जिनके कारण हम ऊंचा सर करते हैं, हाथों में किताबें और तन में कपड़े धरते हैं, और फिर कांशी आया, सत्ता से दूर बैठे सहमें अभागों में राजनीतिक चेतना जगाया। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि ...
कृष्ण पथ
कविता

कृष्ण पथ

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** प्रेम पथ पर मुझे भी चलना है चल कान्हा मुझे भी अब तेरे संग चलना है। रंग जाऊं तेरे रंग में सांवरिया ऐसा प्रेम अब मुझे भी तुमसे करना है। मिट जाए अब मन की हर अभिलाष मुझे भी तेरे संग ऐसा योग नाद करना है। अपने पराये का भेद मुझे भी अब नहीं करना है सुनकर तुमसे गीता का ज्ञान अब महा ध्यान करना है। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
नहीं बनो तुम बेरहम
दोहा

नहीं बनो तुम बेरहम

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** दुनिया कितनी बेरहम, दया-धर्म से दूर। मानवता ने खो दिया, अपना सारा नूर।। जो होता है बेरहम, पशु के जैसा जान। ऐसे मानव को कभी, नहीं मिले सम्मान।। नहीं बनो तुम बेरहम, रखो नेह का भाव। पर-उपकारी जीव में, होता करुणा-ताव।। रखो प्रकृति औदार्य तुम, तभी बनेगी बात। रहम जहाँ है पल्लवित, वहाँ पले सौगात।। जो होता है बेरहम, बनकर रहे कठोर। करे पाप, अन्याय वह, बिन सोचे घनघोर।। नरपिशाच बन बेरहम, करता नित्य कुकर्म। सत्य त्यागकर अब मनुज, गहता पंथ अधर्म।। हिटलर था अति बेरहम, किया बहुत संहार। ऐसे मानुष से सदा, फैले बस अँधियार।। कोमलता को रख सदा, बंदे अपने पास। मत बनना तू बेरहम, वरना टूटे आस।। जो होता है बेरहम, होता सदा कुरूप। सूरज भी देता नहीं, उसको अपनी धूप।। टेरेसा बनकर रहो, करुणा रखकर संग। कभी न बन तू बे...
भुखमरी
कविता

भुखमरी

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** चरम पर कलियुग है भावनाओं की भुखमरी है पुरुषार्थ बदल रहा है ह्रदय की आराजकता, बिखरी हुई मानसिकता मानवता को खाया जा रहा‌ है लोलुपता की दृष्टि भी लोलुप है उदात्तभाव की भुखमरी है जिधर देखो उधर खाया ही जा रहा है रिश्वत तो आराम से खाया जा रहा है। वस्त्र, राशन, अखबार, इंसान सबको मिलावट का रंग खाएं जा रहा है वासना स्वच्छंद है पुरुषार्थ निर्बाध, निर्द्वंद्व है उठते थे हाथ असहाय, दीन, मातृशक्ति की रक्षा पर वहीं हाथ उनके भक्षक‌ नजर ही नजर में गिर गई मर चुकी है आत्मा स्त्रीत्व को खाया जा रहा है पुरुषार्थ का अर्थ बदल रहा है । किताबें तो अब पढी‌ नही जातीं वो भी दीमक खाए जा रहा है कामना नहीं है वश में भौतिकता पूर्णतः हावी है आध्यात्मिकता की भुखमरी है इंसान इंसान को, इंसान को घुन खाए जा रहा है इ...
मेरे मालिक
कविता

मेरे मालिक

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** इनकार न कर पाएंगे, स्वीकार न कर पाएंगे। मेरे मालिक इससे ज्यादा, हम प्यार न कर पाएंगे। इनकार न कर पाएंगे, स्वीकार न कर पाएंगे। हम अज्ञानी ये क्या जाने तू कितना निराला है..2 मिल गया तू जिसको वो तो समझो किस्मत वाला है..2 कितना दयालु है इसका उदगार न कर पाएंगे, इनकार न कर पाएंगे, स्वीकार न कर पाएंगे। मेरे मालिक इससे ज्यादा, हम प्यार न कर पाएंगे। इनकार न कर पाएंगे, स्वीकार न कर पाएंगे। सबकी जीवन नैया तो तेरे हीं सहारे है...2 हार-फूल कुछ पास नहीं ले हृदय पधारें हैं...2 सब कुछ तेरा ही है दिया अधिकार न कर पाएंगे। इनकार न कर पाएंगे, स्वीकार न कर पाएंगे। मेरे मालिक इससे ज्यादा, हम प्यार न कर पाएंगे। इनकार न कर पाएंगे, स्वीकार न कर पाएंगे। दया करो हे दयानिधि हम दर पर आए हैं...2 कब होगा दर्शन तेरा ये आ...
रूठे-रूठे सजन
गीत

रूठे-रूठे सजन

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** रूठे-रूठे सजन हमारे, हमको आज मनाने हैं। वो हैं चाँद चकोरी मैं हूँ, सपने नये सजाने हैं।। अधर गुलाबी प्राणप्रिये ये, मोहक रूप दिखाएँगे, रति सा कर श्रृंगार मनोहर, साजन तुम्हें रिझाएंँगे।। साथ साँवरे प्रियतम प्यारे, कई बसंत बिताने हैं। रूठे-रूठे सजन हमारे, हमको आज मनाने हैं।। तुम कान्हा में तेरी राधे, खिंचे पास चले आएँगे। रास रचाएंगे मधुवन में, गीत मिलन के गाएँगे।। सम्मोहित तन मन ये होगा, यौवन-रस छलकाने हैं। रूठे-रूठे सजन हमारे, हमको आज मनाने हैं।। तुम कान्हा मैं मीरा तेरी, प्रभु जोगन बन जाऊँगी। दीवानी में जन्म जन्म की, मोहन के गुण गाऊँगी।। प्रेम रतन पाकर जीवन में, सपने लाख सजाने हैं। रूठे-रूठे सजन हमारे, हमको आज मनाने हैं।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर ...
40 साल बाद
दोहा

40 साल बाद

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* कपिलदेव नायक बने (विश्वकप विजय २५.६.१९८३) तरासी के साल में, आया था भूचाल। कपिलदेव नायक बने, भारत मां के लाल।। साठ साठ के मेच में, करते बेड़ा पार। किरकेट के बजार में, भारत की सरकार। पौने दो सौ रन बना, नया रचा इतिहास। विश्वकप को जीत के, लीनी थी फिर सांस।। टी-ट्वन्टी की क्या कहूँ, चौकों की बौछार। छक्के भी तो छूटते, बालर हा हा कार।। दो हजार अरु सात में, आया धोनी राज। बीस-बीस के मेच में, भारत के सिर ताज।। दो हज्जार एकादशा, बरस अठाइस बाद। तेंदुलकर की टेक थी, भारत कप निर्बाध।। हसन का बंगला ढहा, अंग्रेजन टकरार। आयरिश भी चले गये, डच भी भये किनार।। अफरीका भारी पड़ा, फिर भी कटी पतंग। इंडीजवेस्ट पिट गया, रहा नहि कोइ संग।। पोंटिंग आउट भये, अफरीदि गये हार। संगकारा संघर्ष में, छूट गई तलवार।। ...
नौजवानों उठो, जागो
कविता

नौजवानों उठो, जागो

महेन्द्र साहू "खलारीवाला" गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** हे नौजवानों उठो, जागो अपने शौर्य को जानो तुम। तुम ही देश के हो कर्णधार अपनी प्रतिभा पहचानो तुम।। तुमसे ही देश समृद्ध, गुलज़ार है तुमसे ही देश का बेड़ापार। तुम ही देश की ताकत हो हो तुम ही देश का आधार।। कश्मीर से कन्याकुमारी तक हो तुम ही देश के पहरेदार। कच्छ से कामरूप तक हो तुम ही देश के चौकीदार।। तेरे हिम्मत से दुनिया टिकी है हो तुम ही देश के असल कर्मवीर। तुमसे ही देश की नींव सुदृढ़ है, निचोड़ सकते हो पत्थर से नीर।। तुम ही कृषक उत्साही हो तुम ही देश के सिपाही हो। हो तुम ही देश के पालनहार हो भाग्यविधाता, तारणहार।। परिचय :-  महेन्द्र साहू "खलारीवाला" निवासी -  गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरच...
मुक्तक
मुक्तक

मुक्तक

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** देशभक्ति के मुक्तक ================ (१) भारत माँ का लाल हूँ, दे सकता मैं जान। गाता हूँ मन-प्राण से, मैं इसका यशगान। आर्यभूमि जगमग धरा, बाँट रही उजियार, इसकी गरिमा, शान पर, मैं हर पल क़ुर्बान।। (२) भगतसिंह, आज़ाद का, अमर सदा बलिदान। ऐसे पूतों ने रखी, भारत माँ की आन। जो भारत का कर गए, सचमुच चोखा भाग्य, ऐसे वीरों ने दिया, हमको नवल विहान।। (३) जय-जय भारत देश हो, बढ़े तुम्हारा मान। सारे जग में श्रेष्ठ है, कदम-कदम उत्थान। धर्म, नीति, शिक्षा प्रखर, बाँटा सबको ज्ञान, भारत की अभिवंदना, दमके सूर्य समान।। (४) तीन रंग की चूनरी, जननी की पहचान। हिमगिरि कहता है खड़ा, मैं हूँ तेरी शान। केसरिया बाना पहन, खड़े हज़ारों वीर, अधरों पर जयहिंद है, जन-गण-मन का गान।। (५) अमर जवाँ इस देश के, भरते हैं हुंकार। आया जो इस ओर य...
छीन लो अपना हिस्सा
कविता

छीन लो अपना हिस्सा

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जगह जगह रख छोड़े हैं इंसानों ने गुलाम, जिसके अंग-अंग पर नजर आ जाती है प्रतीक गुलामी के, मस्तिष्क में सजा हुआ है आस्था के ताज, जिसे वे मान रहे रिवाज, माथे पर सुहाग की निशानी, नाक में नकेल, गले में सुहाग सूत्र, बांह में बहुटा, कमर में करधन, पैरों में बेड़ियां, क्षमा कीजिये प्यारा नाम पायल, तन को पूरी तरह लपेटते, ढंकते साड़ी, घूंघट, बुरखे, किसी से सीधे नजर न मिलाने की ताकीद, और भी बहुत सारी बंदिशें, जिन्हें जरूरी और कीमती बता धकेला गया कई बरस पीछे, ताकि न मिला सके वो कदम से कदम, की गई है बराबरी न कर पाने की अनेक कुत्सित साजिशें, हतप्रभ हूं उधर से क्यों नहीं की जा रही है विद्रोह की रणभेरी का आगाज, जबकि उनके साथ खड़ा है अशोक स्तंभ की तरह संविधान, पढ़ो, जानो और वैधानिक तरीकों से छीन ...
ज़ल
कविता

ज़ल

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** दोगले दाग़दार होते हैं। फिर भी वे होशियार होते हैं।। सावधानी यहाँ जरूरी है, चूकते ही शिकार होते हैं।। आप जितने सवाल करते हो, तीर से धारदार होते हैं।। जिन पलों में कमाल होता है, बस वही यादगार होते हैं।। दाँत होते नहीं परिन्दों के, क्यों कि वे चोंचदार होते हैं।। चोर शातिर मिजाज ही होंगे, या कहो आर - पार होते हैं।। शूल क्या आजकल बगीचे के, फूल भी धारदार होते हैं।। वार करते न सामना करते, इसलिए ही शिकार होते हैं।। नोंक तीरों की रगड़ पत्थर पर, तब कहीं धारदार होते हैं।। बालकों को अबोध मत समझो, वे बड़े होनहार होते हैं ।। "प्राण" कहते न बोलते उनके, हर जगह इन्तजार होते हैं।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाण...
शक्ति आराधना
कविता

शक्ति आराधना

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शक्ति सिध्दि की बात से दम्भी रावण हुआ प्रसन्न व्यथित राम हुए हार से सारे शमशीर हुए विफल जामवंत इक युक्ति सुझाई कमल एक सौ एक लेकर मन में धारे अटल विश्वास राम बैठे करने देवी- जाप रात्रि से भोर तक प्रभु किए पद्म अर्पण चरण कमल में पुष्प एक की कमी हुई जब प्रभु की चिंता गहराने लगी माँ शक्ति ने परीक्षा के लिए युक्ति से एक कमल छुपाया प्रभु को माँ कौशल्या सर्वदा राजीवलोचन ही बुलाती थी तीर उठाया यही सोच प्रभु ने क्यूँ न नयन ही अर्पण कर दूँ माँ शक्ति ने तब दर्शन देकर थामा हाथ स्व प्रिय भक्त का अमर शक्ति का वरदान पाकर प्रभु किया दुष्ट दशानन संहार आओ हम सब फ़िर मिल करके करें माँ शक्ति का आज आव्हान परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित...
सौगात
गीत

सौगात

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** दीन दुखियों का सदा कल्याण होना चाहिए। भूख की तो आग धधके त्राण होना चाहिए।। भोर की कहती किरण है पीर हिय अविराम है। ये अधर भी सूखते मुस्कान का क्या काम है।। अब व्यथा किससे कहें निर्वाण होना चाहिए। दीन दुखियों का सदा कल्याण होना चाहिए।। घाव पर मरहम लगाता है यहाँ कोई नहीं। हैं विकल संस्कार भी सब रक्त की नदिया बहीं।। काल को भी अब नहीं पाषाण होना चाहिए। दीन दुखियों का सदा कल्याण होना चाहिए।। रोशनी बंधक बनी अब है अमावस रात भी। हिल रहीं बुनियाद सब है नीर की सौगात भी।। फट रहे ज्वालामुखी निर्माण होना चाहिए। दीन दुखियों का सदा कल्याण होना चाहिए।। स्वप्न घायल हो गए सब चूर दर्पण आज है। ढेर लाशों का लगा है रावणों का राज है।। भेदियों को मारने भी वाण होना चाहिए। दीन दुखियों का सदा कल्याण होना चाहिए।। ...
चंदा मामा
गीत, बाल कविताएं

चंदा मामा

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" आमला बैतूल (मध्यप्रदेश) ******************** तर्ज-: चंदा मामा दूर के चंदा मामा पास है, हम सबके साथ है। भारत माँ के बच्चे गाएं, हम सबको एहसास है। चंदा मामा खुश है, भारत माँ भी खुश है। संसार सारा खुशियां मनाएं, हम सबको विश्वास है। चंदा मामा प्यारा है, भारत माँ का दुलारा है। विश्वगुरु भारत बन जाए, हम सबको यह आस है। चंदा मामा भाई है, भारत माँ की कलाई है। रक्षासूत्र चंद्रयान ले गए, भारत का प्रेम संदेश है। चांद ने फहराया तिरंगा है, हिंदुस्तान की शान तिरंगा है। इसरो ने चंद्रयान- ३ चलाए, भारत में हर्षोल्लास है। चंदा मामा पहले दूर थे, भारत माँ के अब पास है। "हरिप्रेम" सदा गुण गाएं, जन-जन में मिठास है। परिचय :-  हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" निवासी : आमला बैतूल (मध्यप्रदेश) गोविन्द कॉलोनी, आमला वार्ड : रानी लक्ष्मी बाई (क्र....