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पद्य

हिंदी की कहानी
कविता

हिंदी की कहानी

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** अंग्रेजी बोलने वाले भी अपने घर में हिंदी बोला करते हैं इसमें मानहानि नहीं होती। कहने वालों की जुबानी नहीं होती वरना भारत में हिंदी की कहानी कहां नहीं होती। हमारा दिल हिंदी के लिए नहीं धड़कता तो दुनिया हिंदी की दीवानी यहां नहीं होती। कामयाब तो हुई थी अंग्रेजी यहां अंग्रेजों के राज में हिंदी का कुछ बिगाड़ नहीं पा। हिंदी दिल से निकलती हैं व दिलों तक पहुंचती है बोलने वालों की नादानी नहीं होती। हिंदी भारत की संस्कृति मे रची बसी है इसलिए हिंदी ही हमारी असली पहचान है, अंग्रेजी बोलने वाले भी अपने घर में हिंदी बोला करते हैं इसमें मानहानि नहीं होती। संतान गर्भ में हिंदी सिखती हैं गर्भ से बाहर आके पहले मां का उच्चारण करती है। भारत माता की संतान हिंदी बोलने वाली है हिंदी बोलने वाले में बदगुमानी नहीं होती।...
हिन्दी हूँ मैं
कविता

हिन्दी हूँ मैं

शकील अहमद शेख़ 'नीलकंठ' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हिन्दी हूँ मैं हिन्दी में पला हिन्दी में बढ़ा हिन्दी को सुना हिन्दी में सोचा हिन्द में जन्मा, हिन्दी हूँ मैं... हिन्दी को बोला हिन्दी को लिखा हिन्दी को पढ़ा हिन्दी को पढ़ाया हिन्द में जन्मा, हिन्दी हूँ मैं... हिन्दी को बढ़ाया हिन्दी को बनाया हिन्दी को चाहा हिन्दी को सराहा हिन्द में जन्मा, हिन्दी हूँ मैं... हिन्दी भारत माँ की बिन्दी है भाषाओं में श्रेष्ठतम हिन्दी है सदा ही यह प्रकाशित रहे, हिन्दी के लिए प्रभु से विनती है हिन्द में जन्मा, हिन्दी हूँ मैं... परिचय :- शकील अहमद शेख़ 'नीलकंठ' निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आ...
हिंदी है पहचान हमारी
कविता

हिंदी है पहचान हमारी

निरूपमा त्रिवेदी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हिंदी हिंदजन का है ललित अलंकरण हिंदी भाषा का है वृहद-समृद्ध व्याकरण हिंदी सरस-सरल सम्मोहिनी शक्ति हिंदी है सहज स्वाभाविक अभिव्यक्ति शब्दों-अर्थों में है भावों का रस माधुर्य हिंदी घनवन मन मयूर-सा करता नृत्य हिंदी सूर-तुलसी के वात्सल्य की मिठास हिंदी हैं देवभूमि का मधुर मधु-सा उल्लास हिंदी महादेवी का विरह सुभद्रा का ओज गीत हिंदी राष्ट्र गौरव आओ बने हम इसके मीत कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक सूत्र में बांधती फिर क्यों न वाणी हमारी इस सच को स्वीकारती हिंदी शिव के डमरू से निसृत स्वरों का ज्ञान हिंदी है पहचान हमारी हिंदी हिंद का है मान परिचय :- निरूपमा त्रिवेदी निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
खुदगर्जी
कविता

खुदगर्जी

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** गिर रही है न ये जो आसमा से तड़फती बूंदे कभी तुम इनसे मज़ा लेते हो तो कभी ये डुबकर तुम्हारे अस्तित्व को मज़ा लेती है। बह रही है न ये नदियाँ कभी खुद बहती है अपनी ही मस्ती में तो कभी तूफ़ान बन तुम को बहा ले जाती है समुंदर में। बर्फ से ढके है न जो ये पर्वत कभी तुम इनका आरोहण करते हो तो कभी ये दबा देते हैं तुम्हारी जिद्दी शख्सियत को। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सक...
आओ हिन्दी अपनाए
कविता

आओ हिन्दी अपनाए

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** माँ भारती के माथे की बिन्दी, ऐसी भाषा हमारी हिन्दी। सरस, सरल और प्राचीन, प्रमुख भाषाओं में नामचीन। संस्कृति संस्कारों को देती मान, हिन्दी भाषा हमारा अभिमान। परिपूर्णता की परिभाषा है, उज्जवल भविष्य की आशा है। हिन्दी सचमुच खास है, विदेशियों को भी इसका एहसास है। हिन्दी को मिली नई पहचान है, "नमस्ते भारत "कहना हमारी शान है। इससे झलकता है अपनापन, सहज बनाती है ये जीवन । काम काज में इसे अपनाए, हिन्दी का हम मान बढ़ाए। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते ...
राष्ट्र का सम्मान है हिंदी
कविता

राष्ट्र का सम्मान है हिंदी

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** राष्ट्र का मान है सम्मान है हिंदी...! भारत की आन है पहचान है हिंदी...!! मीरा की कृष्ण के प्रति भक्ति है हिंदी...! सुरदास के सूर में शक्ति है हिंदी...!! निराशा में भी आशा की किरण है हिंदी...!! कभी शब्द तो कभी शब्दों का अर्थ है हिंदी...!! राधा कृष्ण के परिशुद्ध प्रेम की परिभाषा है हिंदी...! प्रकृति का मधुर स्वर है हिंदी..!! मानव की मानवता का अस्तित्व है हिंदी...! 'निराला' की कविताका रस है हिंदी...!! पवन की पुरवाई में समाई है हिंदी...! नभ की काली घटाओ में है हिंदी...!! माटी की खुशबू में महकती है हिंदी...! वीरों के लहू में धडकती है हिंदी...!! परिचय :- कु. आरती सुधाकर सिरसाट निवासी : ग्राम गुलई, बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरच...
हिंदी के दोहे
दोहा

हिंदी के दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हिंदी में तो शान है, हिंदी में है आन। हिंदी का गायन करो, हिंदी का सम्मान।। हिंदी की फैले चमक, यही आज हो ताव, हिंदी पाकर श्रेष्ठता, रखे उच्चतर भाव।। हिंदी में है नम्रता, देती व्यापक छांव। नवल ताज़गी संग ले, पाये हर दिल ठांव।। दूजी भाषा है नहीं, हिंदी-सी अनमोल। है व्यापक नेहिल 'शरद', बेहद मीठे बोल।। हिंदी का बेहद प्रचुर, नित्य उच्च साहित्य। बढ़ता जाता हर दिवस, इसका तो लालित्य।। हिंदी प्राणों में बसे, यही भावना आज। हर दिल पर करती रहे, मेरी हिंदी राज।। हिंदी नित गतिमान हो, सदा करे आलोक। इसी तरह हरदम प्रथम, फिर मन कैसा शोक।। हिंदी मेरा ज्ञान है, यह मेरा अभिमान। रोक सकेगा कौन अब, इसका तो उत्थान।। हिंदी में संवेग है, हिंदी में जयगान। सारे मिल नित ही करें, हिंदी का गुणगान।। हिंदी पूजन-यज्ञ है,...
भारत माँ के मस्तक की बिंदी है हिंदी
कविता

भारत माँ के मस्तक की बिंदी है हिंदी

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** भारत माँ के मस्तक की बिंदी है हिंदी। भारत माँ का अलंकार है हिंदी, भारत माँ का शीश सुशोभित करती है हिंदी, देव-भाषा की अनमोल कृति है हिंदी, भारत माँ के मस्तक की बिंदी है हिंदी। जन-गण मन की शक्ति है हिंदी, भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति है हिंदी, नन्हे मुन्नों की बोली है हिंदी, विद्वानों की विद्वता परिभाषित करती है हिंदी, जब जब संकट की परछाईं भी दिखती, कलमकार की कलम से निकली हर हुंकार हिंदी रक्षण में आंदोलन करती दिखती, भारत माँ के मस्तक की बिंदी है हिंदी। भाषाओं में सर्वोपरि राष्ट्रभाषा है हिंदी जन गण मन में रची बसी है हिंदी हर भारतवासी को एक सूत्र में बांधती है हिंदी, भारत माँ के मस्तक की बिंदी है हिंदी। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त...
आंखों की मर्जी
कविता

आंखों की मर्जी

नरेंद्र शास्त्री कुरुक्षेत्र ******************** आंखों की भी अब अपनी मर्जी होने लगी है। बात खुशी की हो या गम की हर बात पर रोने लगी है।। सूरज ढला चांद निकला तारे चमके। दिन की तो बात छोड़िए ये आंखें अब रातों में भी जगी है।। पानी पिया शरबत पी चाय तक पी डाली। ये कैसी प्यास है जो अभी तक लगी है।। तेरे अल्हड़ स्वभाव में नादानियां बहुत हैं। तुझे समझाने में मुझे एक मुद्दत लगी है।। वक्त है सावन का और हवा भी ठंडी चली है। पता करो जंगल में यह बेवफाई की आग क्यों लगी है।। तेरा मिजाज भी मेरी हरकतों से मिलने लगा है। यह तेरी हंसी मेरी मुस्कुराहट से मिलने लगी है।। जिंदगी ने छीना मुझसे मेरा चैन मेरा सकुन मेरे सपने। यहां तक कि मेरी सांसे भी ठगी है।। आंखों की भी अब अपनी मर्जी होने लगी है। बात खुशी की हो या गम की हर बात पर रोने लगी है।। परिचय :- न...
बातें हैं
कविता

बातें हैं

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** बातें हैं, बातों का क्या, बातें तो चूड़ी की तरह होती है, जो घूमकर फिर वही आ जाती है, बातें है, बातों का क्या। तुम जितना उसे समझना चाहोगें, जितना उन पर घोर करोगें, वो उतनी ही तुम्हें उलझती नजर आयेंगी, बातें हैं, बातों का क्या। बातें पेंच की तरह होती हैं, उसे जितना कसो वो कसती ही जाती हैं, उसे जितना मोड़ो वो मुड़ती ही जाती हैं, बातें हैं, बातों का क्या। बातें हैं, बातों का क्या। यें बातें ही तो, क्या कुछ करवाती हैं, किसको झुठा, किसको सच्चा बतलाती हैं, बातें हैं, बातों का क्या। परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए. हिन्दी निवास : भीलवाड़ा (राजस्थान) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि...
क्या है हिन्दी …?
कविता

क्या है हिन्दी …?

शैलेन्द्र चेलक पेंडरवानी, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** हमारी आत्माभिव्यक्ति की भाषा है हिंदी, मां की ममता, पिता की आशा है हिंदी, दिल की तार जो छेड़ दे वो मधुर गान है, मैत्री की, प्रीति की परिभाषा है हिंदी, सखी है, बहन है, माता है, प्रिया है, डूबा है इसमें वें जो इसको जिया है, हल्कू है, झूरी है, धनिया है, होरी है, सुहाग की साड़ी को मरती एक गोरी है, धनपत राय को मुंशी की पहचान है, ग्रामीण जीवन को दिखाता गोदान है, आँसू है, लहर हैं, झरना का पानी, विनाश में नवनिर्माण दिखाती कामायनी, प्रसाद है, पंत है, महादेवी की गान है, गद्य को आधार देते, भारतेंदु महान है, तिलस्मी अय्यारी है, चंद्रकांता प्यारी है, देवकीनंदन की करामाती, अलगू जुम्मन की यारी है, कुरुक्षेत्र की भूमि में पड़े पितामह अवधूत है, रश्मीरथी का कृष्ण सिखाते शान्ति दूत है, विषमता को दूर करने मुक्तिबोध उठाय...
हिंदी पखवाड़ा
कविता

हिंदी पखवाड़ा

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** सितंबर का यह महीना लो फिर आ गया भाई हिंदी दिवस, खूब मनेगा फिर नई खुशी फिर छाई सबका होगा फिर जमकर जमावड़ा जमकर हिंदी का मनुहार होगा जमकर चलेगा पखवाडा विकसित करने को हिंदी कामयाब करेंगे पखवाडा दिवस हिंदी पर लगाया जाएगा समृद्ध करने का गहरा झाड़ा हिंदी के समृद्ध की गहराई तनमन से ढूंढी जायेगी खुशियां अन्तर्मन में खूब जोरों पर हिंदी को प्रचारित प्रसारित की लहरायेगी हिंदी की तरक्की में दिमागी कसरतें नई नई तरकीबें कागज कलम में पखवाड़े में लिपिबद्ध होती आएगी हिंदी दिवस मनाने की याद दिल में सबजन को सितंबर में अक्सर सताती है कार्यशाला गोष्ठी प्रतियोगिता खूब दिलचस्प कर दी जाती है जमकर होता है आयोजन हिंदी को मजबूत करो हिंदी विकसित करो बोलो हिंदी करो समृद्ध जमकर भाषण में सारी बातें सबजन उठाते है जन ...
जिन्दगी
कविता

जिन्दगी

देवप्रसाद पात्रे मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** सुख और दुख का डेरा है जिंदगी। उजाला तो कभी अंधेरा है जिंदगी।। छांव कहीं तपती धूप है जिंदगी। माथे चंदन कहीं धूल है जिंदगी।। मशहूर कहीं बदनाम है जिंदगी। सुबह तो कहीं शाम है जिंदगी।। टूटना हारना और है बिखरना जिंदगी। गिरकर खुद ही सम्भलना है जिंदगी।। कहीं छल-कपट से घिरी है जिंदगी।। दुश्मन कहीं अपनों से भिड़ी है जिंदगी।। झूठी आशाओं से उदास है जिंदगी। कहीं उम्मीदों की आवाज है जिंदगी।। खुशियाँ तो कहीं गमों का भंडार है जिंदगी। कड़वाहट तो कहीं मीठे रस की धार है जिंदगी।। माना कि हर कदम इम्तिहान है जिंदगी। पर फर्ज निभाते रहें तो आसान है जिंदगी।। परिचय :  देवप्रसाद पात्रे निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
आज तेरी बारी आई
कविता

आज तेरी बारी आई

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** मान ले बात मात-पिता की आज बारी तेरी आई। पढ़ ले, निखार ले खुद को वक्त को जानने की बारी आई। उठ प्रातः कर मेहनत पूरा दिन समय का सदुपयोग की बारी आई। भूल जा मस्ती, शरारतें, त्याग निंद्रा उज्जवल भविष्य करने की बारी आई। कम वक्त है पास तुम्हारे नसीहतें मानने की बारी आई। नहीं रहेंगे तुझे कहने वाले एक दिन तड़पाएगा वक्त ,समझने की बारी आई। अकेला रह जाएगा इस दुनिया में आज संभलने की बारी आई। कहीं पछताता ना रह जाए सीमा आज वक्त को जानने की बारी आई। परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हेतु प्रचार, रक्तदान शिविर में भाग लिया। उपलब्धियां : गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड से...
वीर का संदेश
कविता

वीर का संदेश

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** जब तिरंगे में घर आऊं, ओ पापा धीरज मत खोना, आंसू जो आंखों में छलके, पलकों के भीतर में रखना। युद्ध भूमि में घायल हूं मैं, कुछ सांसों का साथ बचा है, पर तेरे बेटे से पापा, यहां पे हाहाकार मचा है। नहीं बचा सीमा पर दुश्मन, मां का आंचल स्वच्छ हुआ, अपने तिरंगे की रक्षा का, मेरा सपना पूर्ण हुआ। ओ पापा मैं फिर आऊंगा, जब जब देश पुकारेगा, सौगंध तुम्हे इस बेटे की, मैं अपना वचन निभाऊंगा। परिचय :- निरुपमा मेहरोत्रा जन्म तिथि : २६ अगस्त १९५३ (कानपुर) निवासी : जानकीपुरम लखनऊ शिक्षा : बी.एस.सी. (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) साहित्यिक यात्रा : दो कहानी संग्रह प्रकाशित। अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था द्वारा प्रति वर्ष प्रकाशित कहानी संकलनों में कहानियां प्रकाशित। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, कविता, यात्रा वृत...
शिक्षा है अनमोल रत्न-सी
कविता

शिक्षा है अनमोल रत्न-सी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** सदा मुक्त करती बंधन से, शिक्षा ज्ञान बढ़ती। ज्ञानी-गुणी बना मानव को, जग में मान दिलाती। शिक्षा देना पुण्य कार्य है, जो भी देकर जाने। शिक्षा देने वाले गुरु को, जगत विधाता माने। शिक्षा पाकर ही हर मानव, शिक्षित है कहलाता। ज्ञान-चक्षु जब खुल जाते हैं, तब दीक्षित हो जाता। शिक्षा को व्यवसाय बनाकर, जो शिक्षा देते हैं। शैक्षणिक व्यवसाय समझ कर, ही भिक्षा देते हैं। शिक्षक की छवि, धूमिल होती, शिक्षा ज्ञान न देती। ऐसी शिक्षा बन जाती है, कम उत्पादक खेती। शिक्षा को, व्यवसाय बनाना, पाप कर्म है भारी। शिक्षा सहित, कलंकित खुद को, करने की तैयारी। और अधिक, पाने की चाहत, ही लालच कहलाती। लालच, तृष्णा ही मानव का, है ईमान गिराती। शिक्षा है अनमोल रत्न- सी, खुशियों भरा खजाना। सुचिता, सात्विकता से हमको, श...
यदुवंशम : प्रभु श्रीकृष्ण
भजन

यदुवंशम : प्रभु श्रीकृष्ण

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** स्वर्ग से उतर आए भगवान विष्णु, माँ देवकी के गर्भ से लेने अवतार। युगपुरुष कृष्ण बनकर जन्म लिया, अत्याचारी कंस का करने संहार।। बालपन में राक्षसों का वध किया, वृंदावन में सखा संग गाय चराये। बजाकर मनमोहक सुरीली बाँसुरी, गोपियों को अपने संग में नचाये।। चौंसठ कलाओं के सर्वश्रेष्ठ ज्ञाता, द्वापरयुग के आदर्श देव दार्शनिक। निष्काम कर्मयोगी और स्थितप्रज्ञ, महान् विश्व गुरु प्रभु द्वारकाधीश।। विराट रूप तीन लोक, चौदह भुवन, कुरुक्षेत्र में अर्जुन को किया प्रेरित। त्रिकर्म, जीवन, सुख-दुःख के चक्र, गीता ज्ञान के गंगा करके प्रवाहित।। यादव वंश के शिरोमणि, कुलभूषण, युगों-युगों तक भारत में यदुवंशी राज। आपको जन्मदिन की बधाई हो कान्हा, हम पर कृपा बना कर देना आशीर्वाद।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) ...
मेहनत और किस्मत
कविता

मेहनत और किस्मत

महेन्द्र साहू "खलारीवाला" गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** मेहनत कर प्यारे, किस्मत के भरोसे ना बैठ, रुतबा अपने पास ही रख, यूँ ना ऐंठ, मेहनत हमेशा सबको उबारती है, मेहनत से हमेशा किस्मत हारती है।। परिश्रम कर, श्रमसीकर बहा, निठल्ला ना बैठ, तप कर कड़ी धूप में, यूँ चैन से ना बैठ, पेट की अगन सबको मारती है, मेहनत से हमेशा किस्मत हारती है।। परिश्रम से लिख दो अपने किस्मत की लकीर, श्रम के बूँद से चमकाओ अपनी तकदीर, तकदीर बदलने के लिए मेहनत पुकारती है, मेहनत से हमेशा किस्मत हारती है।। पथरीली राहों में चाहते हो पर्वतों को लाँघ जाना बादलों को चीरकर चाहते हो ऊँची मंजिल पाना स्याह रात में भी जलाते रहो चिरागों की आरती मेहनत से हमेशा किस्मत है हारती।। खींच दो लकीर आसमां की बुलंदियों पर बना लो आशियाना चमकते हुए चांँद पर परिंदा भी पापी पेट खातिर चों...
जीवन  है परिवर्तन
कविता

जीवन है परिवर्तन

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** शैशव को कर पार किशोरी की अरुणाई शनै शनै:तरुणाई में बदल गई। बालेपन की उन्मुक्त पवन सी चुनमुन चिड़िया की रफ्तार मीठी शहनाई में बदल गई। बचपन की एन .सी.सी.की ठक् ठक् करती कदमताल नूपुर की रुनझुन में बदल गई। दौड़ा करती भोली बिटिया जीवन संगिनी में बदल गई पायल की बेड़ी में बदल गई। नवपल्लव मृदुता को तज विशाल वृक्ष की काया बन शीतल छाया में बदल जाते हैं। ठुमक ठुमक नन्हें पग वृद्धि सिद्धि से हो उन्नत अपना कर्तव्य निभाते हैं। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्य...
उदित हुआ हूँ मैं
कविता

उदित हुआ हूँ मैं

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** उदित हुआ हूँ पुनः अंधकार का सीना चीर कर मृत्यु का भय नहीं, ना कुछ खोने का डर है, अनंतर चल पड़ा हूँ अपने अग्निपथ पर संघर्षशील चुनौतियों का सामना करने! निर्मित हुआ हूँ, विकसित हुआ हूँ लौटा हूं प्रकाश पुंज बनकर दिए की लौ की भांति नहीं, दिवाकर का तेज लेकर, कर्मों के समीकरण से सुलझा सकता हूँ शतरंज की इस पारी को, जो विधाता ने बिछाई थी, किन्तु मैं अजेय होकर निखरा हूँ लिखूँगा अब जीवों का भाग्य मैं स्वयं ही, ना होगा उसमें कोई छल समझौता, ना ही असफलता की होगी कोई परिभाषा उजियारा बन छा जाऊंगा इस विशाल नभ और थल पर, पराजय कोई विकल्प नहीं, अब जीत के मंत्र की जीवनी लिखूँगा! माना कि जीवन संघर्ष का नाम है परंतु स्वयं के पुरुषार्थ से पुरुषोत्तम बनूँगा जीवों के लिए नहीं है शेष कोई उधार मेरे ...
झूठ
हास्य

झूठ

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** इस जहां का एकमात्र शाश्वत सत्य है झूठ, जी हां झूठ, जिसे साबित करने के लिए न पत्ते बचते हैं, न डाली बचती है और न ठूंठ, गपोड़ काल से हंसोड़ काल तक, कपोल काल से ढपोर काल तक, सर्वत्र रहा है झूठ, झूठ बोलता है आस्तिक भी, बोलता है नास्तिक भी, और बोलता है वास्तविक भी, इस पर किसी की मिल्कियत नहीं है, जो है जैसा है सब यहीं है, वैसे ये सभी को बोलने चाहिए, मुंह सबको खोलने चाहिए, एक दुखिया भी, और देश का मुखिया भी, सब झूठ बोलने के लिए स्वतंत्र है, बोलेंगे भई भले ही देश में गणतंत्र है, क्या मंत्री क्या संतरी, क्या मौनी क्या जंतरी, झूठ सबका है, जिस पर यकीन करने वाला अंधभक्त, मध्यम व गरीब तबका है, बोलो बोलो खुलकर बोलो, देश में बोलो, परदेश में, करो दिन की शुरुआत या रात्रि का खात्मा, बस झूठ में ही बसा लो खु...
राखी पर दोहे
दोहा

राखी पर दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** राखी में तो धर्म है, परंपरा का मर्म। लज्जा रखने का करें, सारे ही अब कर्म।। राखी धागा प्रीति का, भावों का संसार। राखी नेहिलता लिए, नित्य निष्कलुृष प्यार।। राखी बहना-प्रीति है, मंगलमय इक गान। राखी है इक चेतना, जीवन की मुस्कान।। राखी तो अनुराग है, अंतर का आलोक। हर्ष बिखेरे नित्य ही, परे हटाये शोक।। राखी इक अहसास है, राखी इक आवेग। भाई के बाजू बँधा, खुशियों का मृदु नेग।। राखी वेदों में सजी, महक रहा इतिहास। राखी हर्षित हो रही, लेकर मीठी आस।। राखी में जीवन भरा, बचपन का आधार। राखी में रौनक भरी, देती जो उजियार।। भाई हो यदि दूर तो, डाक निभाती साथ। नहीं रहे सूना कभी, वीरा का तो हाथ।। यही कह रहा है 'शरद’, राखी का कर मान। वरना होना तय समझ, मूल्यों का अवसान।। राखी में आवेश है, राखी में उल्लास। राखी...
पीडाएँ
गीत

पीडाएँ

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** अंधकार छाया है जग में, संत्रासित हैं दसों दिशाएँ। घर-घर में दुर्योधन जन्मे, रोती रहती हैं माताएँ।। पीडाएँ ही पीडाएँ हैं, रक्षक ही अब भक्षक बनते। दीप वर्तिका काँपे थर-थर, वाणी से विष नित्य उगलते।। छाए बादल जात-पाँत के, लाल रक्त ही हैं बरसाएँ। चिंताओं में जकड़ा मानव, बढ़ती जाती है मृगतृष्णा। गठबंधन है सरकारों का, चीर-हरण से व्याकुल कृष्णा।। आतंकी रावण ने घेरा, मूर्छित लक्ष्मण हैं घबराएँ। विपदाएँ ही विपदाएँ हैं, झंझावातों ने भटकाया। दुष्ट सुनामी की लहरों से, तांडव जीवन में है आया। साहस संयम सब खो बैठे सपनों की अब लाश सजाएँ। धर्म सनातन ध्वस्त हुआ है, वेद -पुराणों को भूले हैं। टूटे घर के साँझे चूल्हे, संस्कार लँगड़े लूले हैं।। नए अग्निबाणों से बादल, महायुद्ध के हैं अब छाएँ। परिच...
हे प्राणप्रिय …
कविता

हे प्राणप्रिय …

शैल यादव लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज) ******************** जब-जब घर से जाना होता, बहुत दिनों पर आना होता, नत नयनों को नम करके, अंतिम दिन का खाना होता ! प्रिय से बोली प्राणप्रिया तब, बोझिल लगता कर्म क्रिया अब, अबकी लौट के ‌आना जल्दी, बिना आप के शून्य यहाॅं सब! बिना आप के मेरे आर्य, ठीक न लगता कोई कार्य, रजनी दिवस ‌स्वपन जागृत में, हो गये हैं आप अब अपरिहार्य! दो जिस्मों में एक है जान, सच कहती हूॅं झूठ न मान, तुम बिन मेरा अस्तित्व नहीं है, मेरी तो ‌केवल तुम शान ! बच्चों का भी यही है हाल, टिफिन बैग स्कूल बवाल, जाती हूॅं थक ताम झाम से, सब लगता जी का जंजाल! क्यों पढ़ना-लिखना छोड़ दिए, क्यों अपने मुंह को मोड़ लिए, पथ के कांटों को फूल बनाकर, क्यों अपनी राह को मोड़ लिए! नयन राह की ओर निहारे, सबकी आशा हो तुम प्यारे, ओ मेरे जीवन आधार, आ जाओ जी चाह पुकारे!! ...
राखी बनाम वचन पर्व
कविता

राखी बनाम वचन पर्व

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** थाल सजाकर बहन कह रही, आज बँधालो राखी। इस राखी में छुपी हुई है, अरमानों की साखी।। चंदन रोरी अक्षत मिसरी, आकुल कच्चे-धागे। अगर नहीं आए तो समझो, हम हैं बहुत अभागे।। क्या सरहद से एक दिवस की, छुट्टी ना मिल पायी? अथवा कोई और वजह है, मुझे बता दो भाई ? अब आँखों को चैन नहीं है और न दिल को राहत। एक बार बस आकर भइया, पूरी कर दो चाहत।। अहा! परम सौभाग्य कई जन, इसी ओर हैं आते। रक्षाबंधन के अवसर पर, भारत की जय गाते।। और साथ में ओढ़ तिरंगा, मुस्काता है भाई। एक साथ मेरे सम्मुख हैं, लाखों बढ़ी कलाई।। बरस रहा आँखों से पानी, कुछ भी समझ न आये। किसको बाँधू, किसको छोड़ू, कोई राह बताए? उसी वक्त बहनों की टोली, आई मेरे द्वारे। सोया भाई गर्वित होकर, सबकी ओर निहारे।। अब राखी की कमी नहीं है और न कम हैं भाई...