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पद्य

बंद करो अब जयकार
कविता

बंद करो अब जयकार

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** असत्य पर सत्य की विजय का, पर्व है दशहरा, छूपा निज ह्रदय में रावण कहते गर्व है दशहरा। जन-जन का अंर्तमन लगता, दशानन जैसा ही, क्षण-क्षण पर छल-कपट करते रावण वैसा ही। जला रहे सिर्फ़ पुतले असली रावण तो जिंदा है, देख मनुज का दोगलापन लगे रावण शर्मिंदा है। सत्य खड़ा पहरेदारी में, कैसे संभव होगा न्याय, पाखंडी पग-पग प्रतिष्ठित, कैद हैं लाखों बेगुनाह। कथनी-करनी का अंतर, स्पष्ठ दिखे कण-कण में, बगुले-सा लिया रूप धर, विष भरा है तन-तन में। निज ह्रदय बैठे रावण की बंद करो अब जयकार, सत्य न्याय ईमान धर्म से, करो सुरभित ये संसार। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आ...
चाहे जितनी पीड़ा दे दो
कविता

चाहे जितनी पीड़ा दे दो

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** चाहे जितनी पीड़ा दे दो, हे! निर्मम, मुझमें बसती हो। नैनों नीर भरा रहता मैं, तुम इतना कैसे हँसती हो। कल तक उर में समा रही थी, आज नदी सी निकल पड़ी हो। मैं पर्वत सा रुका वहीं हूँ, तुम सागर से पहुँच मिली हो। बस एकम अब ध्येय तुम्हारा, एक ही इच्छा बस बाकी है.. 'कुछ अतीत की बात रहे ना, वर्तमान ही बस साथी है।' जुड़े न तुम सँग नाम हमारा... षडयन्त्रों को यों रचती हो। चाहे जितनी पीड़ा दे दो, हे! निर्मम, मुझमें बसती हो।। मैं गीतों के फूल बिछाऊँ, काँटो के तुम तानें रखती। मैं वाणी मधुरस बरसाता, चुभी-बात से तुम हो डसती। कोयल की जब ‌ तान सुनाऊँ, तुम दादुर के ढोल बजाओ! मेरे सम्मुख हर विरोध में कुटिल भाव से फिर मुस्काओ! लाज नहीं अब रही हमारी, क्या कहती हो, क्या करती हो? चाहे जितनी पीड़ा दे दो, हे! निर्मम, ...
सफ़र
कविता

सफ़र

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कश्ती चलती हैं पतवार के सहारे सागर मचलता हैं लहरों के सहारे दर्दे दिल रोता हे अतीत के सहारे कहां खोजे हम किनारा समन्दर में पत्थरों की फिसलन के मारैं। दरख्तो के सायों का हुजुम चलता हैं साथ-साथ पगडंडी के सफ़र मे कांटे जो हैं साथ आसमां से झांकता आफ़ताब हंस रहा था हम पर कह रहा था मानों मुड़ हो अब निकले हों सफ़र पर। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं आप राष्ट्री...
हुआ क्या … ?
कविता

हुआ क्या … ?

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** खुली आँख थी या कि तुम सो रहे थे, कहीं उड़ गया था तुम्हारा सुआ क्या ? घटना घटी देखकर पूछते हो ! हुआ क्या? हुआ क्या? हुआ क्या? हुआ क्या?? निजी स्वार्थ में इस तरह रंँग गए हो, किसी दूसरे रंग में जी न पाए। सदा दूसरों को दिया कष्ट तुमने, सुखी जिन्दगी को समझ भी न पाए।। कपट लोभ लालच छुपाया सभी से, बताते सभी को बताती बुआ क्या? बहाने बना कर उलट पूछते हो! हुआ क्या? हुआ क्या? हुआ क्या? हुआ क्या?? नशे के विकट जोश में होश खोकर, स्वयं को स्वयंभू गुणागार माना। परम वैभवी दिव्यता छोड़ बैठे, दुराचार को ही सदाचार जाना।। अकड़ में तने ही रहे हिमशिखर से, तुम्हारे अहम ने कभी नभ छुआ क्या? तुम्हें सब पता है मगर पूछते हो! हुआ क्या? हुआ क्या? हुआ क्या? हुआ क्या?? विषय की विकारी मनोरम्यता में, रमे तो किसी की ...
आवाज
कविता

आवाज

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** सशक्त बनो शक्तिशाली बनो, लक्ष्मीबाई तलवार की धार बनो एक हाथ में पुस्तक हो, दूसरे मे तलवार सा हथियार भी हो। यह वक्त न बहस, मोमबत्ती का, यह समय हे हाथो मे हथियारो का, अब क्लास लगा दो बालिकाओ की, अब दे दो छूट महिलाओं को, बालिकाओ को उन किशोरीयो की, अपनी सुरक्षा और मान सम्मान की। तलवार सीखे, वह बंदूक सीखे, वह अत्याचारीयो पर वह भारी बने, तन और मन से शक्तिशाली बने। फांसी के फंदो पर झूला दो उन्हें, जो अत्याचार करे जो जुल्म करे। कोई भी धर्म मजहब का हो, कोई भी रिश्ते नाते हो। ना छोडो अत्याचारो को इन राक्षस दानव दुष्टो को, नही दया दिखाओ इन दानवो पर भूखे ही मरने दो इन राक्षसो को, यह हर महिलाओ की आवाज भी है, यह हर बालिकाओ की ललकार भी है। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन...
बहुमूल्य योगदान
कविता

बहुमूल्य योगदान

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** बड़े गुस्से से वो निकले थे पूरे लाव लश्कर के साथ उस मतदाता के हाथ पांव तोड़ने, तभी चुनावों की तारीखों का एलान हो गया, त्वरित नेताजी परेशान हो गया, अब वो उसी लाव लश्कर के साथ घूम रहे हैं हाथ पांव जोड़ते, चंद घंटे पहले की अकड़ छोड़ते, ये किस्सा गिरती हुई नैतिकता का पूरा हाल बता गया, और सब जान गए कि मौकापरस्त राजनीति का ये खूबसूरत दौर है नया, तो अब नेताजी घर-घर जा सही काम का भरोसा दिलाएंगे, गिर पैरों पर गिड़गिड़ाएंगे, पिला चार पेटी, खिला दो बोटी, फिर अपनी ईमानदार छवि के दम पर वहीं सीट फिर से जीत लाएंगे, तथा देश की उन्नति में अपना बहुमूल्य योगदान दे पाएंगे, हमें भरपूर भरोसा है कि यह नेता संविधान को खत्म होने से बचाएंगे, और वोटरों के घर वहीं पुराने गरीबी व भुखमरी के दिन ला पाएंगे। ...
शक्ति का त्यौहार
गीतिका, छंद

शक्ति का त्यौहार

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** गीतिका छ्न्द शक्ति का त्यौहार है हम शक्ति का संचय करें। शक्ति के अस्तित्व को हम भक्ति से अक्षय करें।। लक्ष्य क्या उपलक्ष्य क्या है हम प्रथम यह तय करें। ध्यान रखकर शुभ-अशुभ का पन्थ का निर्णय करें।। साधना का एक ही यह मूल है निश्चय करें। कर्म को निष्काम सेवा मानकर तन्मय करें।। बात अनुभव सिद्ध गहरी है न कुछ संशय करें। धर्म की बस धारणा हर कर्म है निर्भय करें।। आइए स्वागत सहित संसार से परिचय करें। तामसी व्यवहार‌ को सब दम्भ तज विनिमय करें।। द्वेष त्यागें शुभ हृदय अनुराग का आलय करें। आपसी सम्बन्ध गाढ़े और करुणामय करें।। आइए करबद्ध परहित के लिए अनुनय करें। पुण्य को बोएँ परस्पर पापियों का क्षय करें।। देश दुर्गुण से बचे अच्छाइयांँ अतिशय करें। विश्व का कल्याण करते "प्राण"‌ ज्योतिर्मय करें।। प...
मत जाना तुम कभी छोड़ कर
गीत

मत जाना तुम कभी छोड़ कर

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** मत जाना तुम कभी छोड़ कर, रात दिवस मैं जगता हूँ। तुम ही तुम हो इस जीवन में,त याद तुम्हें बस करता हूँ।। प्रिये सामने जब तुम रहती, मन पुलकित हो जाता है। लेता है यौवन अँगडाई, माधव फिर प्रिय आता है।। प्रेम सुमन पल पल खिल जाते, भौरों सा मैं ठगता हूँ। मत जाना तुम कभी छोड़ कर, रात दिवस मैं जगता हूँ।। नेह डोर तुमसे बाँधी है, जन्म जन्म का बंधन है । साथ कभी छूटे ना अब ये, प्रेम ईश का वंदन है ।। मेरे हिय में तुम बसती हो, नाम सदा ही जपता हूँ । मत जाना तुम कभी छोड़ कर, रात दिवस मैं जगता हूँ।। रूप अनूप बड़ा मनमोहन, तन में आग लगाता है । आलिंगन को तरस रहा मन, हमें बहुत तडपाता है।। चंचल चितवन नैन देख कर, ठंडी आहें भरता हूँ। मत जाना तुम कभी छोड़ कर, रात दिवस मैं जगता हूँ।। परिचय :- मीना...
देवी-वंदना
मुक्तक

देवी-वंदना

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** अम्बे मैया करूँ वंदना, शांति-सुखों का वर दे। भटक रहा मैं जाने कब से, मुझको अब तू दर दे। जीवन में अब खुशहाली हो, हरियाली हो, मंगल हो, मैं बन जाऊँ सच्चा मानव, मेरे सिर कर धर दे।। सद् विवेक अब रहे नित्य ही, जीवन सुमन खिलें। कभी न विपदा आये मुझ पर, कंटक नहीं मिलें। मैं तो तेरा लाल लाडला, अम्बे करो दया तुम, पर्वत जो भी हैं राहों में, वे सब आज हिलें।। सुखद चेतना के पल पाऊँ, कभी नहीं क्षय हो। हे अम्बे माँ ! सच तू देना, करुणा की लय हो। कभी कपट मैं ना लिपटूँ मैं, लोभ से दूरी पाऊँ, सदा मनुजता के पथ जाऊँ, माँ तेरी जय हो।। करूँ कामना शुभ की नित ही, मंगल को सहलाऊँ। गरिमा से माता में रह लूँ, सब पर प्यार लुटाऊँ। इस जग में अब तो हे माता!, तेरा ही शासन है, मन की पावनता से महकूँ, गंगा रोज़ नहाऊँ।। मानव दीन हो गया म...
मॉं कुष्मांडा
स्तुति

मॉं कुष्मांडा

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** नवरात्र चतुर्थ दिवस, मॉं कुष्मांडा आती हो, भक्तों को हर्षाती हो, जय हो कुष्मांडा। गंभीर रोगों से मुक्त कराती हो, ग्रहों के अशुभ प्रभाव से बचाती हो, राग,द्वेष,दुख की देवी हो, भक्तों को देती हो सहारा। तेरे दर्शन पाकर, खुल जाता किस्मत का ताला, भय दूर करती हो माता, सृष्टि की रचना तुम ही तो करती हो। मंद मुस्कान से ही की, समस्त ब्रह्मांड की रचना, जीवन समृद्ध-सुखी बनाती हो, भक्त करे मॉं तेरा पूजन अर्जन। गुड़हल पुष्प अर्पित करें, मालपुआ का भोग लगावे, हाथ जोड़ संगीता सूर्यप्रकाश, शीश झुकावे वंदन, अभिनंदन प्रणाम करें बारम्बार। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
डर यहां है
कविता

डर यहां है

सीताराम सिंह रावत अजमेर (राजस्थान) ******************** मुझे डर लगता है लिखने से, बोलने से, प्रदर्शनों में जाने से। क्यों लगता है? इसके जवाब कई हैं- ट्रॉलिंग, मार-पिटाई, देशद्रोही का समाजिक टैग, रिश्तेदारों के तानों का, विवाह न हो पाने का, दोस्तों से दूर हो जाने का। झूठे मुकदमे में पुलिस, सीबीआई, या ईडी द्वारा फंसाए जाने का, फिर उस मुकदमे को लड़ने के लिए कर्ज लेने का, या बिना धन के जेल में सड़ने का। अदालतों की तारीखों से, उनके निर्णय से, मीडिया की चीखों से, मृत्यु के खौफ से। मुझे डर लगता है हर उस व्यक्ति से, जो भले उस विचारधारा से दूर हो, लेकिन धार्मिक हो, और मेरे लिखने, बोलने से मेरी मॉब लिंचिंग कर देगा। इस डर के कारण यह लिखते हुए भी हाथ कांप रहे हैं, कि मुझे डर लगता है आज़ाद भारत में बोलने से, लिखने से- आजादी के पचहत्तर व...
औरत नदी होती है
कविता

औरत नदी होती है

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** औरत नदी होती है, जो बहती रहती है। वात्सल्य से पूरित, स्नेह में परिपूर्ण हो। पहाड़ों से ढलानों में, घाटियों से मैदानों में। असंख्य पत्थरों को, भावों से ठेलती हुई। पिता से पति तक, उतार चढ़ावों से गुजरती पहुंचती है ज्वार भाटे सी, सागर तक बहती हुई। बचपन की वर्जनाएं वह भूलती नहीं है। "शोभा नहीं देती तेरी यह मुंह फाड़ू हंसी", अगले घर जायेगी, तू लड़की है। बालपन से किशोरी होने तक, कितनी ही बार सुनती है। अदब से रहना सीख ले, तेरे संग बंधी है घर की इज्जत। जैसे यह घर उसका नहीं, पिता का घर, माता का घर, जहां उसका जन्म हुआ, वो उसका ठिकाना नहीं है। समझती है वो सत्य को, वो तो सृष्टि की सृजक है, उसे तो पराएं घर जाना है। पहाड़ों से जंगलों में बहकर, मिलना है सागर के खारेपन में। खपाकर जीवन को फिर से, वाष्प बनकर...
सत के लिए ही लड़ना
भजन

सत के लिए ही लड़ना

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** मन को ही मार करके तन को खुवार करके जीवन में आगे बढ़ना सत के लिए ही लड़ना धर्म की ध्वज के लिए खुद को अर्पित करना असत्य से कभी डरना सत के लिए ही लड़ना मानव में समभाव जगे सदाचरण का भाव जगे लोकहित काज करना सत के लिए ही लड़ना शक्ति व साधना संग मे जगत के बिखरे रंग मे उम्मीद से आगे बढ़ना सत के लिए ही लड़ना उदवेलित मन में आश जीवन में दिव्य प्रकाश धर्म को नहीं है छलना सत के लिए ही लड़ना एक आश एक विश्वास जग में सब कुछ खास उस पर विश्वास करना सत के लिए ही लड़ना परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्षक शिक्षा : बी.एस.सी.(बायो),एम ए अंग्रेजी, डी.एल.एड. कम्प्यूटर में पी.जी.डिप्लोमा रूचि : काव्य लेखन, आ...
हे महागौरी माता
स्तुति

हे महागौरी माता

रूपेश कुमार चैनपुर (बिहार) ******************** हे महागौरी माता, चार भुजा धारिणी माँ, वृषभ की सवारी करती, अभय मुद्रा धारिणी, दाहिने भुजा त्रिशूल, बाएँ मे डमरू,वर धारिणी, तेरी महिमा है अपरम्पार, तू सबको देती आशीर्वाद। श्वेतांबर धारण करतीं, गौर वर्ण से प्रसिद्ध है तू, भगवान शिव की तू अर्धांगिनी से जानी जाती माँ तू, धवल चाँदनी की छाया में, माँ तुम्हारा स्थान है अनमोल, शांति, सौम्यता का प्रतीक, तू करती है सबका कल्याण। माँ तेरे मस्तक पर सजा है, चंद्रमा की तेज आभा, दुष्टों का नाश करती, देती भक्तों को जीवन की राह, कमल पर बैठी है तू, सौम्य और नीरस तेरा है शैली, भक्तों के दिल में बसी, तेरा अद्भुत अलौकिक चमत्कार। शक्ति और भक्ति का संगम तू है साक्षात स्वरूप माँ, हर दुख-दर्द को मिटाती तू है, सच्ची आस्था का धूप माँ, तेरे चरणों की धूल से माँ, मिलता मन मस्ति...
ज़िंदा हूॅं जी रहा मेरी मंज़िल क़रीब है
ग़ज़ल

ज़िंदा हूॅं जी रहा मेरी मंज़िल क़रीब है

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** वज़्न- २२१ २१२१ १२२१ २१२ अरकान- माफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन ज़िंदा हूॅं जी रहा मेरी मंज़िल क़रीब है। आ जाए कब बुलावा सफ़र ये अजीब है।। ऐसी गुज़ारी उम्र की गुमनाम हो गए। अपना न कोई दोस्त न कोई रक़ीब है।। नफ़रत उगल रहा है जबाॅं से जो रात दिन। कैसे कहूॅं उसे कि वो अच्छा नजीब है।। लाशों का ढेर देख के आता नहीं तरस। होता है क़त्ल-ए-आम तो हॅंसता मुहीब है।। कैसा फ़क़ीर है ये जो घूमे विमान से। किस्मत हो सबकी ऐसी की फिर भी ग़रीब है।। आवाज जो उठाते थे ख़ामोश हो गए। दरबारी बन गया जो वो अच्छा अदीब है।। जिसको मैं ढूॅंढता रहा दुनिया की भीड़ में। वो पास है न दूर ये कैसा नसीब है।। जैसा करेगा जो वहाॅं वैसा भरेगा वो। मैदान-ए-हश्र सबका ख़ुदा ही हसीब है।। जन्नत निज़ाम उसकी है जो है रसूल का। ...
जगदंबा स्तुति
स्तुति

जगदंबा स्तुति

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** सदा प्रसन्ना मां जगदंबा मम ह्रदय तुम वास करो। लेकर खड़ग त्रिशूल हाथ में मम शत्रुदल संहार करो। चड-मुंड के मुंड धारण कर्ता मम संकट का भी हरण करो। तंत्र विद्या की प्रारंभा देवी शत्रु तंत्र, मंत्र, यंत्र का शमन करो। चौसठ योगिनी संगी कर्ता मम योग विद्या उत्थान करो। रक्तबीज का रक्त पान कर्ता मम शत्रुदल रुधिर पान करो। भैरव के संग नृत्य कर्ता मम शत्रुदल अटहा्स कर ध्वंस करो। जय जय जय मां जगदंबा काली मम ह्रदय तुम सदैव वास करो। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी ...
वक्त की दिवार
कविता

वक्त की दिवार

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वक्त की दिवार ने कुछ ऐसा रोका मानो आते-आते तुफान रुक गया हो वक्त का साथी कोई नहीं होता। बीच राह मे छोड़ जाने के लिए। अपना आत्म बल साथ होता हैं। वक्त की आवाज दब जाती हैं जीवन की आपाधापी में वक्त बढ़ता जा रहा है अपनी लीक पर इन्सान का मुंह चिढ़ाते हुए उसे मूढ़ कहते हुए। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं आप राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "हिंदी रक्षक ...
प्रकृति के अंश
कविता

प्रकृति के अंश

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** एक पत्थर से जैसे ही उसने ठोकर खाया, उस पाषाण को उसने उठाया, हृदय और माथे से लगाया, और बोला कि अच्छा हुआ कि मेरा पैर आपमें लगा यदि आप खुद आकर मेरे पैर में लगे होते तो आज मेरा पग टूट गया होता, कहीं बैठे-बैठे मैं उस पल को रोता, प्रकृति के नियमों से चलने वाला हूं, स्वार्थ के लिए उसे नहीं छलने वाला हूं, इस तरह से हुई होगी पत्थरों को पूजने की शुरुआत, प्रकृति को पूजने की आगाज, जो आज भी जारी है आदिवासियों में, धरती के मूलनिवासियों में, तब कुछ चालाकों के मन में आया होगा विचार, पाषाणों को दे दिया होगा आकर, और बोला होगा साक्षात साकार, जो है दुनिया को चलाने वाला निराकार, फिर डर-डर कर रहने वालों पर हुआ होगा पहला प्रहार, तब प्रारंभ हुआ होगा डर का व्यापार, इस तरह लोग मानने हो गए मशगूल,...
जाने आजाद कब होंगें
कविता

जाने आजाद कब होंगें

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* ना जाने आजाद कब होंगें जात-पात के झगड़ों से, धर्म-धर्म के दंगों से, जहर बुझे वाणी के तीरों से, बढ़ते अपराधों से, ना जाने आजाद कब होंगें, बढ़ती बेरोजगारी से, रूठ चुके अफसानों से, भुखमरी, कालाबाजारी से, टूट रहे अरमानों से, ना जाने आजाद कब होंगें बारूद की पहरेदारी से, नफरत की चिंगारी से, घोटालों- धांधली से, भाषाओं की चार दीवारी से, ना जाने आजाद कब होंगे दहशत के अंगारों से, धर्म के ठेकेदारों से, मजहब की दीवारों से, अंग्रेजी की गुलामी से, ना जाने आजाद कब होंगे, रंग नस्ल की बोली से, रूढ़िवादी जंजीरों से, जहरीली तकरीरों से, क्षेत्रवाद की दीवारों से, ना जाने आजाद कब होगें परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (म...
कर्मों का बहीखाता
कविता

कर्मों का बहीखाता

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** हम सब जानते हैं जैसा कर्म करेंगे, वैसा ही फल पायेंगे गीता का यही ज्ञान, है जीवन का विज्ञान। कौरव पांडव का उदाहरण सामने है रावण विभीषण, सुग्रीव बाली के बारे में हम सब जानते हैं कंस का भी ध्यान है या भूल गए। सबका बहीखाता चित्रगुप्त जी ने सहेजा, किसी को राजा तो किसी को प्रजा तो किसी रंक बनाकर भेजा अमीर गरीब का खेल भी मानव का नहीं कर्मानुसार उसके बहीखातों का खेल है। यह और बात है कि हमें अपने पूर्व जन्म या जन्मों का ज्ञान नहीं होता, इसीलिए अपने कर्मों का भी हमें पता नहीं होता। और हम सब इस जन्म के साथ ही पूर्वजन्मों के कर्मों का फल पाते हैं। क्योंकि हमारे कर्मों का बही खाता निरंतर भरता रहता है, उसी के अनुसार कर्म फल का निर्धारण होता है और हमें अच्छा बुरा कर्म फल मिलता है। वर्...
भारत के सिपाही
कविता

भारत के सिपाही

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** तिरंगा आन-बान-शान है वतन के। इसके वास्ते, मर मिटूँगा कसम से।। सीमा में जान की आहुति देने मैं चला। मेरे रहते माँ तू फिक्र करती क्यों भला? वर्दी खून से लाल-लाल लथपथ है। मातृभूमि की रक्षा करूँगा शपथ है।। तेरे लिए गोलियाँ खा लूँगा बदन पे। तिरंगा आन-बान-शान है वतन के।। न कभी हारा था, न ही अब हारूँगा। न कभी रूका था, न ही अब रूकूँगा।। मन में साहस भर के मैं लड़ता रहूँगा। लेकर हाथ में तिरंगा आगे बढ़ता रहूँगा।। मर जाऊँ तो, राष्ट्र ध्वज हो कफन के। तिरंगा आन-बान-शान है वतन के।। नव जीवन पा फिर जिंदा हो जाऊँगा। जन्म लेकर मैं भारत भूमि में आऊँगा।। सिपाही बन प्राण अर्पित करने तत्पर। तुम्हारी सेवा करने के लिए आगे सत्वर।। वंदे मातरम बोलूँगा गीत देश सदन के। तिरंगा आन-बान-शान है वतन के।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगे...
आधुनिक घुसपैठिए
कविता

आधुनिक घुसपैठिए

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** सदियों का संताप अब ठहर सा गया है। घरौंदो से निकल कर आधुनिकता की दहलीज़ पर बह सा गया है। तराशा हुआ आदमी महानगर की गुलामगिरी में ढह सा गया है। भौतिकता का घुसपैठिया नगर से गांव तक छा सा गया है। विश्वबंधुत्व मुआयने के शिखर में बंगड़ मेघ की भांति रह सा गया है। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिया...
शिक्षक
कविता

शिक्षक

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** शिक्षक की वाणी अनमोल शब्द सिखाते बिना मोल गुरु शिष्य परंपरा के प्रतीक होते है जैसे होती दिया और बाती ज्ञानार्जन का प्रकाश फैलाते शिष्य तभी तो आगे चलकर बड़ी पदवी पाते कर्म निर्माणकर्ता बन कर शिक्षक ने शिष्यों के जीवन आबाद किये जीवन बन गया स्वर्ग सफलता के उपवन में उन्नति के फूल खिलाये शिक्षक बिना ज्ञान अधूरा जैसे बिना सूरज के गहराता अंधेरा। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंत...
देश की शान है गाँधी
कविता

देश की शान है गाँधी

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** सत्य के राह पर भले कांटे हो सही चलना पड़ेगा हमें जो राह हो सही डर जाये ऐसी कोई आंधी नहीं है देश की पहचान गाँधी ही सही है गाँधी की तपस्या को ना भूले हम सत्य की राह, चले कदम दर कदम सत्य जैसा कोई चमत्कार नहीं है देश की पहचान गाँधी ही सही है सच की लाठी को हम सब जाने उसकी ताकत को भी तो पहचाने बराबरी में उस जैसा दूजा नहीं है देश की पहचान गाँधी ही सही है अहिंसा सदा जिसका ढाल बना जो सबके लिए एक मिसाल बना जिससे अब कोई अनजान नहीं है देश की पहचान गाँधी ही सही है स्वच्छता से उन्हें सम्मान दीजिये राष्ट्रपिता को आज मान दीजिए सत्य अहिंसा ही पहचान सही है देश की पहचान गाँधी ही सही है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़...
प्यारा सजा है दरबार
कविता

प्यारा सजा है दरबार

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** गली-गली गूंजी मैया की, प्रेम भरी जय जयकार, आई नवरात्रों की घड़ियां, प्यारा सजा है दरबार। शेरावाली, मेहरावाली की, लीलाएं हैं अपरम्पार, जो निर्मल मन जपे माता, छटे विपदाएं बेसुमार। अप्रितम छवि मैय्या की, तन मन धन वारी जाऊं, सदा करूं माँ का चिंतन, सदा ही माँ को में ध्याऊँ। सौहार्द, समर्पण, भरा हुआ, होता है नवरात्रा पर्व, मुखरित करें मानवता हम, त्याग छदम छल गर्व। विविध भांति धर स्वरूप, दुष्टन का कियो संहार, मैय्या से ही जीवंत जमी, मैय्या से ही यह संसार। करे नमन सकल सृस्टि, जगजननी महारानी को, करना क्षमा हुई मुझसे, भूल सभी अनजानी को। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...