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पद्य

बिखरे सपनें
कविता

बिखरे सपनें

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** बिखरते आये हैं सपनें सदा से, दुश्मन मोहते आये हैं अपनी अलग अलग अदा से, एक बार फिर बिखर गया तो कोई बात नहीं, फिर से मिला सौगात नहीं, लेकिन हम आंसू बहाने वालों में से नहीं, हौसले की महल खड़ी करेंगे यहीं, संघर्ष करेंगे फिर से, हर बार उठेंगे गिर गिर के, शत्रु का काम ही है तोड़ना, अपनी सहूलियत अनुसार हमारी दिशाएं मोड़ना, मगर हमने कभी हार मानी न मानेंगे, लक्ष्य भेदने सारा संसार छानेंगे, तब होंगे हमारे पास अत्यधिक अनुभव, जो तय करेंगे दिशा और दशा करने को करलव, देखते आये हैं और देखते रहेंगे सपनें बार बार, कर कर खुद में सुधार, हम थे ही नहीं कभी तंगदिल, एक दिन मिल ही जायेगी मंजिल। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वा...
प्रभु राम
गीत

प्रभु राम

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रभु राम का आभार है, हो सृष्टि पालन हार। निष्ठा रखें हैं न्याय में, प्रभु धर्म के आधार।। करुणा हृदय बसती प्रभो, करते तिमिर का नाश। रघुकुल शिरोमणि राम हैं, वो तोड़ दें यम पाश।। संबल हमें देते प्रभो, रामा गुणों की खान। मैं हूँ पुजारिन राम की, रघुवर मुझे पहचान।। रघुनाथ तेरी दास मैं, दे दो जरा उपहार। निष्ठा रखें हैं न्याय में, प्रभु धर्म के आधार।। टूटे नहीं विश्वास है, रघुवर रखो अब ध्यान। नारी अहिल्या तारते, करते सदा सम्मान।। देते सुखों की छाँव है, रघुवर प्रभो वरदान। पावन धरा की राम ने, करते सभी गुणगान।। नायक जगत के आप हैं, कर स्वप्न भी साकार।। निष्ठा रखें हैं न्याय में, प्रभु धर्म के आधार।। वंदन करें नित आपका, आकर प्रभो अब थाम। चरणों पड़े तेरे सदा, दातार प्यारे राम।। शबरी कहे रघुवर सुनो, पहुँचा...
मोह माया
कविता

मोह माया

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** अपना बनाते बनाते जीवन गुजर गया, कम और गम खाते खाते जीवन गुजर गया, मान और सम्मान के ख़ातिर, कितनी ठोकरे हे खाई, अपमान और तिरस्कार का घूँट पिते-पिते, क्या करे कमख्खत इन आदतो का, नही तो चेन नहीं आराम जीवन में, बस छूटता तो एक, बस प्रभु नाम जीवन मै, मिलता तो अपयश और अपमान है सहना, बस प्रभु अनुराग के कारण जीवन सार्थक हे तो करना। लगे रहे अच्छे कर्मो मे हम सदा, बस प्रभु ध्यान चरणो मे, नजर सदा उसकी रहे हम पर, यही आशीष हो उनका। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. १५००+ कव...
भीति … मराठी कविता
आंचलिक बोली

भीति … मराठी कविता

माधवी तारे लंदन ******************** मला वाटते ही कसली भीति, ना चोरा ची न अंधारा ची, अथाह साहित्य सागरातूनी गवसेल कसा मज सुषमानुकूल शब्द मोती? वालुकामयी समुद्र किनारी पाहुनी वेगमयी लाट उसळती, भय पतनाचे मम नेत्र मिटती. दुर्गम असे मज सादा शिंपला नी मोती. कुशल अशा रचनाकारांना नवे आव्हान मायमावशी देती होतं शब्दांची साहित्य निर्मिती त्यात कशी टिकावी हीच भीति पणती माझी मिणमिणती… परिचय :- माधवी तारे वर्तमान निवास : लंदन मूल निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु ...
कुछ भी नही
कविता

कुछ भी नही

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** न कोई शिकवा न कोई शिकायत। न कोई दर्द न कोई हमदर्द। न कोई अपना न कोई पराया। न कोई सुख न कोई दुख। न कोई चोर न कोई शोर। न कोई राही न कोई हमराही। न कोई जीत न कोई हार। न कोई रक्षक न कोई भक्षक। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी...
यहाँ की, वहाँ की ख़बर में नहीं है
ग़ज़ल

यहाँ की, वहाँ की ख़बर में नहीं है

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** यहाँ की, वहाँ की ख़बर में नहीं है। जो अब तक किसी की नज़र में नहीं है। सुने जो सभी की, करे अपने मन की, वो बन्दा किसी के असर में नहीं है। चला आ रहा है बराबर से लेक़िन, वो रस्ता किसी के सफ़र में नहीं है। उतारे जो दरिया में कश्ती अकेले, वो जज़्बा सभी के ज़िगर में नहीं है। निकलते ही सूरज रहे जिसमें गर्मी, मज़ा एक ऐसी सहर में नहीं है। जो नेकी के बदले इज्ज़त मिले वो, बुराई से जीती क़दर में नही है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है ...
नर्सेस
छंद

नर्सेस

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** आधार- हरिगीतिका छंद दीदी कहो सिस्टर कहो, या नाम दो परिचारिका। है नेक मन की भावना, जीवन समर्पित राधिका।। कहते इसी को नर्स भी, अब नाम आफीसर मिला। सम्मान से आह्लाद में, मुख दिव्य सा उपवन खिला।। सेवा बसी मन साधना, नित याचिका स्वीकारती। अपनी क्षुधा को मार के, वो मर्ज सबका तारती।। गोली दवाई बाँट के, नाड़ी सुगति लय साधती। मेधा चिकित्सक स्वास्थ्य के, ये रीढ़ के सुत बाँधती।। परिचारिका मन भाव से, सेवा सुधा मय घूँट दे । निज स्वार्थ को वह त्याग कर, परमार्थ का ही खूट दे।। ये दौर कितना है कठिन, नित काम ही है साधना। दिन रात का मत बोध है, बस मुस्कराहट कामना।। आओ करे शत् - शत् नमन, सेवा समर्पित भाव को। सम्मान से बोले वचन, नि:स्वार्थ कर्मठ नाव को।। पर रोग के उपचार में यह नींद अपनी त्याग दे। समत...
अभी संघर्ष शुरू हुआ है
कविता

अभी संघर्ष शुरू हुआ है

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** अभी तो संघर्ष शुरू हुआ है पसीने बहाना बाकी है। कोशिश अभी शुरू हुआ है मंजिल पाना बाकी है।। मंजिल की राहें बड़ी कठिन है अभी तो सफर बाकी है। बाधाएँ तो बहुत बहुत आएँगी इम्तिहान अभी बाकी है।। कोई सहारा हमसफ़र नही है पर अभी हौसला बाक़ी है। हौसलों का साहस बुलंद कर तेरा विश्वास अभी बाकी है।। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
मेरी मां
कविता

मेरी मां

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** जन्मदाता है मां जिंदगी उसी से शुरू होती हैं। चाहे हमारे बच्चे हो जाय फिर भी मां की जरूरत होती हैं। एक छोटा अक्षर है मां जिसमे पूरी दुनिया समाई है। धरती पर मां भगवान के रूप में आयी हैं। मां ही प्रथम शिक्षक मां ही भगवान है। मां के बिना यह दुनियां वीरान है। चोट मुझे लगती है दर्द उनको होता है। अगर मैं बीमार हो जाऊं तो उनका जीना हराम हो जाता हैं। जब तक न पहुँचूँ घर बार-बार फोन लगती है। मुझे कुछ भी हो जाय, तो रोने लग जाती हैं। मां डांट भी प्यार से लगती है। मेरे उज्जवल भविष्य के लिये, अपना वर्तमान दाव पर लगती हैं। अब नहीं रही मां उनकी यादें ही शेष है। अब मां की स्मृतियां ही मेरे लिये विशेष है। परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं ...
कितने रंग दिखाती है जिंदगी
कविता

कितने रंग दिखाती है जिंदगी

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** ना जाने कितने रंग दिखाती है जिंदगी कभी हंसाती कभी रुलाती है जिंदगी चरित्र के चादर मे रंग लगाती है जिंदगी ना जाने कितने रंग दिखाती है जिंदगी कभी तो अपनों का अपनेपन से ही कभी तो जीवन के झूठे सपनों से ही निज से साक्षात्कार कराती है जिंदगी ना जाने कितने रंग दिखाती है जिंदगी समय की पल-पल पड़ती मार से ही प्रवाहित नदी की अविरल धार से ही समयानुकूल जीना सिखाती है जिंदगी ना जाने कितने रंग दिखाती है जिंदगी समय-समय का अब क्या मोल होगा जीवन जाने कैसे अब अनमोल होगा हर समय की कीमत बताती है जिंदगी ना जाने कितने रंग दिखाती है जिंदगी जीवन के सुर, ताल, लय और छंद का प्रतिपल बदलती इसकी हर बंध का सरगम सा जीवन बतलाती है जिंदगी ना जाने कितने रंग दिखाती है जिंदगी परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुर...
दिल से- कहते हम आपसे… कायल
दोहा

दिल से- कहते हम आपसे… कायल

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कायल महक विशेष है, परखो मनुज सुजान। धर्म कर्म का मन वचन, हर पल की पहचान।। कायल घात विनाश में, करते अपना अंत। हो सकता कुछ देर हो, सुनते वाणी संत।। कायल उचित विकास का, डंका चारों ओर। संकल्प सिद्धि के लिए, थामे सेवा डोर।। कायल जन की राह में, आते बहुत तनाव। पर श्रम युक्ति चाल से, रखते बहुत लगाव।। कायल बनना अति सरल, जब मात्र निःस्वार्थ। पवित्र गंगा धार में, गुण सदा परमार्थ।। व्यर्थ जी हुजूरी छिपा, लाभ भरा ही भाव। कायल होते एक के, रखते अन्य दुराव।। ना थकते जो खुद कभी, गुनगानों में होड़। कायल बनकर भी सदा, बन जाते बेजोड़।। जब कायलता काज से, मिलते सही निशान। देश बढ़े तब अनवरत, शिखर चला परवान।। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता "मुन्ना" जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ ...
संरक्षण
कविता

संरक्षण

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** कभी कभी लगता है मन के भावों ने ठिकाना बदल दिया हो जैसे सभी शब्द भावनाओं के पिरोए जा चुके हैं सभी अश्रु धाराएं बह चुकी हो जैसे सामर्थ्य और ताकत आजमाए जा चुके हैं प्रेम और करुणा का रस सूख गया हो जैसे सभी विकल्प ढूंढे जा चुके हैं राहें भरमाई जा रही हो जैसे वक़्त का पहिया पूरा घूम चुका है समय अधिक शेष नहीं हो जैसे भाव शून्य, दिशा शूलय, ईच्छा शक्ति टूटती सी क्या अब पुकार सुनेगा कोई डर की, रूदन की, क्रंदन की, चीख और पीड़ा, आत्मबल झकझोर रहा, नए शब्द ढूंढे जाएंगे, हिम्मत नहीं हारेंगे नई ऊँचाइयों पर चढते जाएंगे, अश्रु नहीं आस्था के गीत गाएंगे हो भले बाधाएं अनगिनत, जीवों का जीवन सुगम बनाएंगे इतिहास बन जाएंगे करुणा और संरक्षण का इतिहास बनाएंगे!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा...
परदेशी साजन
गीत

परदेशी साजन

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** आजा सजन बने परदेशी, बरखा करे पुकार। पावस ऋतु मनभावन आई, रिमझिम बरसे प्यार।। नभ में गरज रहे बादल अब, वन में नाचे मोर। रिमझिम बूंदे शोर मचातीं, मनवा भाव विभोर।। श्यामल मेघ में चपला चमके, भ्रमर करेंं गुंजार। पावस ऋतु मनभावन आई, रिमझिम बरसे प्यार।। ढ़ोल नगाड़े गगन बजाता, बादल गाते गीत। साज संगीत नहीं सुहाता, भूले सजना प्रीत।। कोयल कू -कू पीर बढ़ाती, छूटा है शृंगार। पावस ऋतु मनभावन आई, रिमझिम बरसे प्यार।। अंग -अंग पुलकित धरती का, जागा है अनुराग। ओढ़ हरी चुनरिया सजी है, प्रियतम अब तो जाग।। हँसी ठिठोली सखियों की अब, चुभती है भरतार। पावस ऋतु मनभावन आई, रिमझिम बरसे प्यार।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्...
मानवता जगाएं
कविता

मानवता जगाएं

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** आओ हम मानवता लाएं आगे स्वतः बढ़ आएँ मानवता आगे बढ़ाएं, द्वंद, घृणा, बैर, क्लेश, जड़ से हटाएं मिटाए स्नेह प्यार सौहार्द आपस में बढ़ाएं खुलेमन से सबको गले लगाएं बढ़ाएं जन जन से प्रेम प्रीति और व्यवहार सेवा, सहयोग, सहायता हम खूब आपस में बढ़ाए प्रेमरिश्तों को निभाये रचाये मधुरता का मानवता का यह संसार संबंध व्यवहार का नाजुक न कहीं पड़ जाए रचती बढ़ती रहे देशसमाज में मानवता जगे मानव के ह्रदय से मानवीयता की मधुर आवाज बढ़ता जाए आपस में सबजन का मेलमिलाप वृहत रचे और रचती रहे मानवता का मधुरतम बढ़े ह्रदय में भरें हरदम मन में उच्चतम विचार मानवता का रचता रहे मानव का मधुर सम्बन्ध मानव का मधुर व्यवहार परिचय :- ललित शर्मा निवासी : खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) संप्रति : वरिष्ठ पत्रकार व लेखक घोषणा पत्र ...
प्रेम की गांठ
कविता

प्रेम की गांठ

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** ठंडी हवा मचल कर न चल ठंड की आबो हवा कही चुरा न ले जिया बेचैन तकती निगाहे मौसम में देखती दरख्तों को सोचता मन कह उठता बहारे भी जवान होती। धड़कने बढ़ जाती प्रेमियों की जाने क्यों जब जब बहार आती-जाती बांधी थी कभी मनोकामना के लिए प्रेम की गांठे। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान - २०१५, अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित सं...
श्रेय का खेल
कविता

श्रेय का खेल

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** श्रेय लेने देने का खेल जारी रहता है अनवरत, मरते को जीवन देता डॉक्टर तब चौक जाते हैं यकबयक, कि मरीज ठीक होकर धन्यवाद करता है उन मिथकीय पात्रों का जो किसी ने देखा नहीं, कण-कण में है कह तो देंगे पर किसी से कभी मिला नहीं, विज्ञान लगा है रात-दिन मनमाफिक जिंदगी जीने का मौका देने के लिए, पर एन वक्त आ जाता है जादू श्रेय लेने के लिए, ये तथाकथित कभी चुनावों में किसी को क्यों नहीं जिताते, प्रकट हो किसी को प्रतिनिधि क्यों नहीं बनाते, चुनने का अधिकार है सिर्फ और सिर्फ मतदाता को, चुनते नहीं देखा कभी खुदा या विधाता को, श्रेय का जो असली हक़दार है उन्हें दिया जाना चाहिए, क्योंकि वे सारी जिंदगी जूझते हैं लोगों को खुशनुमा जीवन देने के लिए, मगर उनके पास समय नहीं होता आगे आ श्रेय लेने के लिए। प...
मुट्ठी भर राख
कविता

मुट्ठी भर राख

डॉ. बीना सिंह "रागी" दुर्ग छत्तीसगढ़ ******************** नीले अंबर की लालिमा देखकर भाव से भाव का हम समर्पण करें सूरज उगते को सब ने नमन है किया डूबते को जी आओ नमन हम करें अभिलाषा उत्कंठा धन संपदा छल प्रपंच छद्म और उच्च शृंखलता अंतर्मन का ए मन मालिन सा हूआ शक्ति भक्ति प्रेम कर्महीन सा हुआ हर्षिता द्वार पे आ खटखटाती रही नवल रश्मियों का आओ आचमन हम करें नीले अंबर की वक्त अंजुरी से फिसलते गए हाथ में काल के हम सिमटते गये सत्यता सहजता दिव्यता छोड़कर चादर आडंबर का हम ओढ़े रहे कदम दर कदम राह झूठ की त्याग कर सत्य पथ का चलो अनुसरण हम करें नीले अंबर... बदचलन ख्वाहिशें उफान मारती रही सतरंगी लालसाएं तूफान लाती रही बेदर्द धड़कने इतराते रहे रूह निगोड़ी सांस संग मुस्कुराती रही मुट्ठी भर राख का सब खेल है जल अंजुरी में ले तर्पण हम करें नीले अंबर ... ...
लैंसडाउन की उॅचाइयों पर
कविता

लैंसडाउन की उॅचाइयों पर

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** लैंसडाउन की उॅचाइयों पर- टहलते हुए... 'शीतकालीन ठंडी-तीव्र हवाओं और सख्त चट्टानों के बीच ऊर्ध्व-वृक्षों की छाया तले दोपहर से तिरछे पड़ते सूरज की छुट-पुट किरणों के बीच- लहराते केशों के बीच मूर्तमान गौर वर्ण का 'श्वेत-फूल', दृष्टि निच्छेपित थोड़ा-नीचे पथ पर सखियों संग मुस्क्याता- अपनी श्वेत-दंत-प्रकाशित- लाल होठों की पंखुड़ियों के बीच- अंजाने ही लहराता है कौमार्य की लहर!' हृदय वहीं रुक जाता है.. एक युवा-यात्री, ठिठक-ठिठक-कर अपार आभा से गुजर जाता है... -घायल होकर ताउम्र के लिए...! -बस इक मुस्कान की याद के साथ... इक लम्बी ज़िन्दगी बीत जाती है... -नहीं बीतती है उस मुस्कान की याद...! ....नहीं लौटना होता है कभी उन पर्वतों पर... यह जान-बूझकर कि न वह फूल स्थिर होगा न वह मुस्कान, न जाने 'सम...
महफ़िल
कविता

महफ़िल

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जमी थी ख्वाबों की महफ़िल ज़मीं पर जिंदगी की हो गया खूशुबहों के पडाव में बचा गया दामन कोई शुबहे की आड़ में। चुप दरख्त चुप फासले चुप है, राहें कदम की जंजीर मकसद की मंजिल अभी दूर है तन्हाई का आवम अभी से क्यो है। और बढादी तन्हाई इस सन्नाटे ने रफ़्ता, बेरफ्ता चलना मुमकिन नहीं है मुमकिन है जिंदगी की फिसलन मैं फिसल जाऊ सम्हालो यारों मंजिल हासिल करना अभी बाकी है। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इं...
जिंदगी… बड़ी बेरहमी से सच दिखती है
कविता

जिंदगी… बड़ी बेरहमी से सच दिखती है

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जिंदगी ......बड़ी बेरहमी से सच दिखती है। कितना भी.... बहलाते रहे खुद को। ऐसा नहीं है...??? ऐसा हो नहीं सकता ...!!!! जबकि ..... ऐसा ही था!!!? साथ सच के बीते लम्हों की हर बात को बड़ी खामोशी से बयां कर जाती है। जिंदगी बड़ी बेरहमी से सच दिखती है। जिंदगी सच को बड़ी बेरहमी से दिखती है। झूठी उम्मीद को पाल-पाल कर। लाख कोशिश करें कोई टूटी उम्मीदों को फिर से संभाल कर। जिंदगी उम्मीद से भी उसकी उम्मीद छीन लेती है। जिंदगी बड़ी बेरहमी से सच दिखती है। जिंदगी सच को बड़ी बेरहमी से दिखती है। अपना-अपना कहकर जोड़ते रहे उमर भर छत और दीवारों को। जिंदगी बड़ी बेरहमी से उन घरों के दरवाज़े गिरा कर निकल जाती हैं। जिंदगी बड़ी बेरहमी से सच दिखती है। जिंदगी सच को बड़ी बेरहमी से दिखती है। मतलब तक जो मतलब र...
खण्डहर
कविता

खण्डहर

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** लोग मुझे खण्डहर कहते हैं कुछ अनजान से होते हैं, खण्डहर समझ कर मुझे ठुकरा कर, आगे बढ़ जाते हैं जानते नहीं वो, मैं भी था कभी एक आलीशान महल, राजसी ठाठ कभी मेरा भी था यौवन, मैं भी सिर उठा खड़ा अभिमान से देखता, हर कोई मुझमें झाँकने का साहस न बटोर पाता। किंतु, समय के गर्त ने मृत्यु के समान अपने अंक में मेरा रूप समेट लिया। आज सभी मुझे बाहर से देख कर आगे बढ़ जाते हैं ! मानव भी तो शव हो जाता है श्रद्धांजलियाँ अर्पित करते हैं हज़ारों, और मेरे इस शव की? उपेक्षा करते हैं, क़दम एक भी रखते नहीं जिससे वो मलिन न हो जाए। रूप दोनों का एक ही, पर स्वागत ? कैसा है प्रकृति का व्यंग्य !! परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी ...
मिलकर दीप जलायें 
कविता

मिलकर दीप जलायें 

डॉ. सत्यनारायण चौधरी "सत्या" जयपुर, (राजस्थान) ******************** आओ सभी मिलकर दीप जलायें इस दीपावली नवदीप जलायें । जो ज्ञान का दे प्रकाश, चलो ज्ञानदीप जलायें। जो जाति-पाति का मिटा दे अंधेरा, एक ऐसा धर्मदीप जलायें । जो अशुभ रूपी तम को हर ले, इक ऐसा शुभदीप जलायें। विज्ञान के दम पर हो भारत का नाम, एक ऐसा विज्ञानदीप जलायें। जनतन्त्र ना बदले, भीड़तन्त्र में, इक ऐसा जनदीप जलायें। चहुँ और हो प्रेम और सौहार्द, एक ऐसा प्रेमदीप जलायें। जन-जन हो प्रफुल्लित, इक ऐसा हर्षदीप जलायें। शूरवीरों की शहादत को ना भूलें, चलो एक शौर्यदीप जलायें। संस्कृति का परचम फहरे जग में, एक ऐसा संस्कृतिदीप जलायें। भारतभूमि का हो यशोगान, इक ऐसा यशदीप जलायें। मिट जाए भेद ग़रीबी-अमीरी का, एक ऐसा समदीप जलायें। अक्षर के ज्ञान से हों सभी परिचित, इक ऐसा साक्षरदीप जलायें। पर्यावरण को रखना है स...
पहाड़ तोड़ विजय
धनाक्षरी

पहाड़ तोड़ विजय

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** देश में दिवाली रंग, दरक गई सुरंग, मजदूर बदरंग, बुरा वक्त होश का। सिलक्यारा टनल में, दबे हुए श्रमिक के धैर्य को करें नमन, रक्षा कर्म जोश का। मुसीबत राज करे, चहुं ओर सब घिरे, कोई थके कभी गिरे, लोग घबराते हैं। मुसीबत पहाड़ का, बंद सब किवाड़ भी, विकल्प संकल्प बल, हौसला दिलाते हैं। सुई संग तलवार, थे छोटे बड़े औजार, मशीन जवान धार, देश करे प्रार्थना। मेला रेला कष्ट आए, टूट फूट खूब लाए, श्रमिक बातचीत से, भूलते कराहना। सत्रह दिवस तक, दोनों ओर भरसक, तरकस के तीर से, ढूंढते संभावना। घंटे चार शतक में, खाना पीना दवाई से, सत्ता जनता देश की, देखो सदभावना। तमस भरी दुनिया, उमस रही बगिया, प्रयास वाली कलियां, सतत खिलाते हैं। रक्षा जीवनदायिनी, सुकर्म वरदायिनी, पहाड़ तोड़ विजय, वापसी सौगातें हैं। परिचय :- विजय कुमार गुप्...
उजड़ जाती जिंदगी
कविता

उजड़ जाती जिंदगी

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** शराब क्या होती है ख़राब कोई कहता गम मिटा ने की दवा जिंदगी में कितने गम और कितने ही कर्म दोस्तों की शाम की महफ़िल जवां होती ,हसीं होती बड़े दावे बड़ी पहचान के दावे सुबह होते हो जाते निढाल रातो को राह डगमगाती जैसे भूकंप आया या फिर कदम लड़खड़ाते हलक से नीचे उतर कर कर देती बदनाम जैसे प्यार में होते बदनाम शराबी और दीवाना एक ही घूमती दुनिया के तले मयखाने करते मेहमानों का स्वागत जैसे रंगीन दुनिया की बारात आई तमाशो की दुनिया में देख कर हर कोई हँसता/दुबकता दारुकुट्टिया नामंकरण हो जाता रातों का शहंशाह सुबह हो जाता भिखारी बच्चे स्कूल जाते समय पापा से मांगते पॉकेट मनी ताकि छुट्टी के वक्त दोस्तों को खिला सके चॉकलेट फटी जेब और खिसयाती हंसी दे न पाती और कुछ कर न पाती बच्चों के चेहरे की हंसी छीन लेती इ...
घर को घर ही बनाएं
कविता

घर को घर ही बनाएं

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** स्वर्ग बनाने से अच्छा है घर को घर ही बनाएं, मिथ्या स्वर्ग-नरक में न उलझाएं, सिर्फ बेटी में ही दोष न देखें, उनकी भावनाओं को भी सरेखें, घर को मकान ही रहने देने का जिम्मेदार नशेड़ी बेटा भी हो सकता है, लालची भाई भी सुख शांति का धनिया बो सकता है, बहू से कुढ़ती-नफरत करती सास भी घर का माहौल बिगाड़ सकती है, उच्छलशृंख ननदें संबंध उखाड़ सकती है, संयुक्त परिवार की बेटी भी बहू बन एकल परिवार खोजती है, एकता मधुरता को तह तक नोचती है, घर सबसे मिलकर बनता है, तब मुखिया का सीना तनता है, दहेज शब्द घर का नहीं धनलोलुपों के स्वार्थ का नाम है, ये अकड़ दिखा भीख मांगने का काम है, घर में तनाव लेकर न जाएं, सभी अपनी जिम्मेदारी उठाएं, मिलजुलकर समस्याओं का समाधान खोज घर को घर ही बनाएं। परिचय :-...