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पद्य

तक़दीर
ग़ज़ल

तक़दीर

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** लेकर अपने घर का सारा बोझ मुंख पर सूकून रखते है .... वो शहर में रहने वाले खुद का गाँव में मकान रखते है .... कोई कैसे पढ़ पाएंगा दर्द -ए- दिल हमारा, हम दिल में जख़्म और चेहरे पर मुस्कान रखते है .... जिनकी सारी इच्छाएँ पूरी कर चूंकि है तकदीर वह फिर भी दिल में अब भी कई अरमान रखते है .... जो रख देते है दिल पर हमारे हाथ अपना, फिर हम भी उनके हाथ में अपनी जान रखते है .... किस्मत वालों को भला कौन याद रखता है, मेहनत करने वालों से पूछिए वोह पैरों में जमीन और मुठ्ठी में आसमान रखते है .... परिचय :- कु. आरती सुधाकर सिरसाट निवासी : ग्राम गुलई, बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि ...
विजय अभियान
कविता

विजय अभियान

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** जागो! सफलता की राह है दुर्गम और कठिन। सुबह का सूरज शंखनाद कर रहा है प्रतिदिन।। निद्रा की देवी कोई स्वप्न दिखा रही काल्पनिक। जीवन उद्देश्य से भटका रही करके दिग्भ्रमित।। प्रेम पाश में बांध तुम्हें, मधुर प्रेम गीत गवाएगी‌। विरान बगिया में सुन्दर, सुवास फूल खिलाएगी।। निकलना होगा रहस्यमयी सपनों की दुनिया से। स्वयं की आवाज सुन, घबराओ मत दुविधा से।। विश्वास का डोर पड़कर, लक्ष्य पर्वत पर चढ़ना है। धीरे-धीरे ही होगी तैयारी, नित दिन आगे बढ़ना है।। पढ़ता चल ज्ञान ग्रंथ को, समय का थामकर हाथ। ध्यान और एकाग्रचित से स्वयं मंथन कर हर बात।। मन के घोड़े सजाकर, कर्मरथ में हो जाओ सवार। अस्त्र-शस्त्र कलम और पुस्तक, कर वार-पे-वार।। जीत मिलेगी भव्य जब समर्पण का दोगे बलिदान। ज्ञान युद्ध के लिए छेड़ तू निरंतर विजय अभियान।। पर...
गौ माता
कविता

गौ माता

पूनम ’प्रियश्री’ प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश) ******************** ’गौमाता’ एक प्यारा सा शब्द एक अटूट सा रिश्ता पर हो जाता व्यथित मन देख इनकी दुर्दशा । एक गहरा ज़ख्म एक रिसते घाव घूमती गली–गली होकर लाचार । देती थी जब दूध तो पाती लाड दुलार अब देखो खाती कितनों की ही मार। माना किसान का करती फसल नुकसान पर उसकी ऐसी सजा तूं जानवर है या इंसान । माना कि नहीं हैं सब एक से पर होनी चाहिए गौ रक्षा देश से । ’गाय बचाओ’ का जब गूंजेगा संदेश तभी मिटेगा गौ माता का क्लेश। परिचय :-  पूनम ’प्रियश्री’ निवासी : प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश) सम्प्रति : प्रधानाध्यापिका काव्य विशेषता : काव्य में स्त्री प्रधानता और प्रेम की प्रगाढ़ता। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
सब जग शीश झुकाता है
कविता

सब जग शीश झुकाता है

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** तब चूमेगी कदम सफलता, जब प्रयास होगा मन से। खुशियाँ आएंगी दामन में, दुख जाएगा जीवन से। उन्हें सफलता हरदम मिलती, जो मन से प्रयास करते। जो हर पल प्रयासरत रहते, खुशियाँ जीवन में भरते। स्वाद सफलता का चखना हो, श्रमरत भी रहना होगा। दुख हो भले पहाड़ों जैसा, उसको भी सहना होगा। उनको सदा सफलता मिलती, जो निज काम सदा करते। कर्मों के बल पर जो खुशियाँ, अपने दामन में भरते। सदा सफलता वे पाते जो, गागर में सागर भरते। उनके कदम चूमती मंजिल, जो मन से प्रयास करते। मंजिल तक तुमको जाना हो, नहीं राह में रुक जाना। नहीं आपदाओं के सम्मुख, कभी हार कर झुक जाना। श्रमरत रहने वाला मानव, जगवंदित हो जाता है। सृजनशील श्रमरत मानव को, सब जग शीश झुकाता है। कदमों में नतमस्तक होकर, सदा सफलता आएगी। कामयाब मानव ...
हमसफ़र
कविता

हमसफ़र

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मेरी खुशियाँ हो तुम्हीं, हो मेरा उल्लास। तुमसे ही जीवन सुखद, लब पर खेले हास।। जीवन का आनंद तुम, शुभ-मंगल का गान। सच, तुमने रक्खी सदा, मेरी हरदम आन।। ऐ मेरे प्रिय हमसफ़र! तुम लगते सौगात। तुमसे दिन लगते मुझे, चोखी लगतीं रात।। हर मुश्किल में साथ तुम, लेते हो कर थाम। तुमसे ही हर पर्व है, और ललित आयाम।। संग तुम्हारा चेतना, देता मुझे विवेक। मेरे हर पल हो रहे, तुमसे प्रियवर नेक।। तुमको पाकर हो गया, मैं सचमुच बड़भाग। तुम सुर, लय तुम गीत हो, हो मेरा अनुराग।। तुम ही जीवन-सार हो, हो मेरा अहसास। और नहीं आता मुझे, किंचित भी तो रास।। तुमने आकर हे ! प्रिये, जीवन दिया सँवार। तुम तो प्रियवर, प्रियतमा, प्यार-प्यार बस प्यार।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) ...
खोदिए …रुकिए मत
कविता

खोदिए …रुकिए मत

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* खोदिए! मस्जिद के नीचे खोदिए मिलेंगी मूर्तियां यक्ष, किन्नर, गंधर्व, देवों देवियों की मूर्तियां उसकी भी जिसका मंदिर ऊपर नहीं है. मूर्तियों के नीचे खोदिए मिलेंगे मिट्टी के बर्तन खिलौने उसके नीचे खोदिए पत्थर के औज़ार बर्तन और हथियार भी सिर्फ़ पत्थर के. उसके भी नीचे खोदिए अस्थियां खोपड़ी ठठरियां बचे-खुचे दांत मिलेंगे. उसके भी नीचे खोदिए रुकिए मत अभी भी आपके नीचे उतरने की ख़त्म नहीं हुई है संभावना. हालांकि ज़िंदगी की शर्त थी ऊपर उठने की कींच में धंसने की नहीं फिर भी जितना नीचे गिर सकते हैं गिरिए और खोदिए. अब मिलेंगे फ़ॉसिल्स उन पेड़-पौधों जीव-जंतुओं के जिनकी कब्र पर इस वक्त खड़े हो तुम. तुम्हारी सभ्यता तुम्हारे मंदिर-मस्जिद गिरजे ख़ानकाह सब खड़े हैं गर्व से जबकि शर...
वो थे इसलिए….
कविता

वो थे इसलिए….

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** प्रकृति ने पैदा किया इस धरती में जरूर, इंसान होकर भी इंसान नहीं बन पाये क्योंकि कुछ लोगों को था जाति का सुरूर, था उस सनक में इतना ज्यादा घमंड, अमानवीय अत्याचार करते थे प्रचंड, वो रहने को तो मुट्ठी भर थे, पर अपने लाभ के लिए सदा प्रखर थे, जिनके लिए जरूरी था साम, दाम, दंड, भेद, हत्या जैसे अपराध पर थे नहीं जताते खेद, था सबके लिए जरुरी उनकी हंसी, सब त्याग देते थे मन में उमड़ी खुशी, ऐसा नहीं है कि किसी ने उनकी करतूत किसी को बताया नहीं, जाल में उलझे लोगों ने जिसे समझ पाया नहीं, उनका प्रमुख काम था स्वयं पढ़ना, उलझाये रखने के लिए कथाएं गढ़ना, सब पड़े थे जैसे हो आदिमानव, मिथकों को तोड़ने आया एक महामानव, सारे विरोधों के बाद भी जिसने भरपूर पढ़ा, मानवता के लिए जिसने संविधान गढ़ा, महाग्रंथ में जिसने लिख डाले इंसा...
काल्पनिक स्त्री
कविता

काल्पनिक स्त्री

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** एक काल्पनिक सी स्त्री, जो सदैव नवीन होती, नए नए रूप धरती, कभी ना उम्मीद ना होती! काम काज में निपुण होती पाक कला में सिद्ध हस्त होती, सबके नाज़ो नखरे सहती हर कुछ परिपूर्ण करती! फ़ूलों की खुशबु की तरह हरदम तरोताजा रहती अपने प्राणों को मुट्ठी में दबा कर जीती बटोर कर हर टुकड़ों को, संजोकर रखती विवश हो, खामोशी से सबकी चाहतों को पूरा करती उसे नहीं पता स्वयं के सूकून-दर्द-और सपनो की परिभाषा नहीं मालूम गहरे कुएं के तल से बाहर आकाश देखना वो है एक काल्पनिक स्त्री जिसकी चाहत सभी को होती!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार) निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश) सम...
भारत तीर्थ मेरा
कविता

भारत तीर्थ मेरा

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** भारत तीर्थ मेरा मेरा मन और कहां जाए मेरे बचपन की स्मृतियां बालपने की वो सखियां भारत की वो गलियां सपनों की वो रतियां भाई बहन की गलबहियां खेले धूप-छांव-पहाड़ और नदियां छुटाई खूब पटाके की लड़ियां भारत तीर्थ मेरा। मेरा सपना हो गया पूरा सबको घर भोजन पानी बिजली मनाए भारत का हर रहवासी ईद, दिवाली, होली, संक्रांति, लोहड़ी गिद्दा, भंगडा, गरबा, कुचीपुड़ी तिल-लड्डू, पोंगल-खिचड़ी गुड़ी-पड़वा पर पूरन पोली भारत तीर्थ मेरा। सबके मन हों वेद उपनिषद् सबके हाथों कंप्यूटर आंध्र कर्नाटक तेलंगाना केरल तमिलनाडू के देवालय सबका हो अपना शोधालय, सत्संग की महिमा और मैत्री त्याग भावना रामायण सी सबके मानस में गीता सभी समस्याएं मिट जाएंगी न हो जीवन रीता-रीता भारत तीर्थ मेरा। गंगासागर असम, जगन्नाथ पुरी मिजोरम नागधरा ...
समय
कविता

समय

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कहते हैं समय बदलता है करवट लेता है समय बहता है सरिता सा समय दौड़ता है रवि की भांति पल, क्षण समय की शाखाएं बांट जोहतीं हैं मानव की कि शायद मानव क्षण को पकड़ ले जकड़ ले और सोपानों पर चढ़ कर शिखर को छू लें पर, पर क्षण की भंगुरता ने मानव को पिछे छोड़ आगे चल दिया। हंसते हुए कि मानव को समय महत्व समझाना कठिन हैं क्यों कि उसकी उलझनों, झंझटों के जाल में छटपटा हैं समय बित जाने के बाद। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती...
मेरी पहचान
कविता

मेरी पहचान

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** लक्ष्मी सी मेरी पहचान। देता देव और इंसान।। भ्रमित कर स्वयं को हर लेता इक दिन प्राण।। मेरी ही कोख से निकल.... पलता वो वक्ष स्थल से.... खोट भर नैनों में फिर... दामन भरता अश्रुजल से।। कभी अग्नि में स्वाह तो कभी पत्थर होना पड़ा ।। कभी टुकड़े हुए हज़ार, तो कभी बेघर होना पड़ा।। क्रोध करूं या हास्य करूं। या स्वयं का परिहास करूं।। निर्णय तो करना होगा.... मौन रहूं या विनाश करूं।। सोचती हूं उठा लूं कोरा कागज़, दिखा दूं अपनी कलम की ताकत। ताकि जन्में, जब-जब "कविता".. "दिनकर" आकर छंदों से करें स्वागत।। परिचय :- इंदौर (मध्य प्रदेश) की निवासी अपने शब्दों की निर्झर बरखा करने वाली शशि चन्दन एक ग्रहणी का दायित्व निभाते हुए अपने अनछुए अनसुलझे एहसासों को अपनी लेखनी के माध्यम से स्याह रंग कोरे कागज़ पर उतारतीं हैं, जो उन्ह...
एतबार नहीं इस जीवन का
कविता

एतबार नहीं इस जीवन का

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** कर ले लाख दिखावा सब अपना होने का जीवन के पल मे साथ हँसने और रोने का जख्म अपनो का दिया अब भरता ही नहीं एतबार भी अपनेपन का मै करता ही नहीं दो दिन का है यहाँ रिस्तेदारों का जमघट जाना पड़ता है सभी को अकेले ही मरघट मरना अकेले ही कोई साथ मरता ही नहीं एतबार भी अपनेपन का मै करता ही नहीं क्या रखा है महज इस मिट्टी की काया मे बना रखा है रिस्ते नाते मोह और माया मे दिल के दरवाजे तक कोई पहुँचता ही नहीं एतबार भी अपनेपन का मै करता ही नहीं जाना अकेले है तो अकेले ही जीना सीखे जीवन के अनुभव चाहे खट्टे हो या हो मीठे बिना अनुभव जीवन सफर चलता ही नहीं एतबार भी अपनेपन का मै करता ही नहीं जीवन सफर है तो अब इसका मजा लेते है इसके हर पल मे जीवन की नई सदा लेते है जीवन सफऱ बिना संघर्ष के चलता ही नहीं एतबार भी अपनेपन का मै करता ...
प्रथम सभ्यता
कविता

प्रथम सभ्यता

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** प्रथम सभ्यता इसी धरा पर इसके सीने पर हुई हलचल इस धरती पर पग रखा प्रथम मनु ने साक्षी बनकर। प्रथम वांग्मय इसी धरा पर वेदों की वाणी बनी धरोहर उपनिषदों ने की इनकी व्याख्या गाईं पुराणों ने गाथाएं मनोहर। कैस्पियन सागर और इर्दगिर्द वर्तमान लेबनान के राजा बलि फैली थी मानव संस्कृति जनक थे इसके कश्यप ऋषि। इस विकसित संस्कृति के रहवासी आर्य यहां कहलाए नाम धरा का आर्यावर्त था विष्णुभक्त प्रहलाद ईरान (आज का) का राजा था। अवतरित आदि तीर्थंकर ऋषभदेव जी श्रीराम के ६७ वें पूर्वज ऋषिराजा उनके ग्रंथों में दर्शन जो आज है केल्ट सभ्यता। पूज्य ऋषभदेव के पुत्र भरत चक्रवर्ती नरेश महा यशस्वी राज्य चहुं दिशि फैलाया 'भारतवर्ष' देश यह कहलाया। (वर्ष का अर्थ है भूमि अर्थात् भरत की भूमि)। हुए यशस्वी राजा दुष्यंत ...
दूर रहो थोड़ा
गीत

दूर रहो थोड़ा

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** ख्याल रखो कुछ बिरादरी का, दूर रहो थोड़ा। अभी-अभी तो चोंच निकाली, बाहर अंडे से। लड़ने को तैयार खड़े हो, पोथी पंडे से।। आदमयुग की सभ्य रीति को, कहते जो फोड़ा।। अक्षर चार पढे क्या बच्चू, बनते हो खोजी। अमरित पीकर आरक्षण का, हरियाये हो जी।। मत दौड़ाओ, तेज हवा-सा, अक्षर का घोड़ा।। ढोल गँवार नारियों जैसे, तुम पर कृपा रही। ब्रह्मा जी ने आ सपने में, हम से बात कही।। बचो पाप से मानस के पथ, बनो नहीं रोड़ा।। मिथकों की सच्चाई पर जो, प्रश्न उठाओंगे। कानूनी पंजों में जबरन, जकड़े जाओंगे।। अब भी चोटी के हाथों हैं, कब्जे का कोड़ा।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्री...
अनजाना रिश्ता
कविता

अनजाना रिश्ता

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** एकाएक जिंदगी में अनजान सा कोई आता है, जो दोस्त भी नहीं, हमसफ़र या हमराज़ भी नहीं फिर भी उस से एक अनोखा रिश्ता जुड़ जाता है !! उस के साथ सुख दुःख साझा करने का दिल करता है, वो सब कुछ सुनता और समझना चाहता है ! हमारी उलझने उसके पास आके कहीं भटक जाती हैं, कुछ पल जिंदगी के सूकून से कट जाता है वो अनजाना होकर भी दिल के करीब बस जाता है !! उस रिश्ते का कोई नाम नहीं उस रिश्ते को नाम के बंधनों से दूर ही रखा है, वो सबकी खुशी में खुश और बहते आंसुओं के दर्द को समझता है !! कोई अधिकार नहीं उसके जीवन पर हमारा, फिर भी उस पर हक जताने को दिल करता है ! वो खुदा की बनाईं प्रकृति का अनमोल हिस्सा है, उसका लाड दुलार हमसे उसके लिए कुछ करने का संकल्प दिलाता है ! वो और कोई नहीं खुदा का प्रतिनिधि है ...
माँग का सिंदूर
गीत

माँग का सिंदूर

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर। जिसमें रौनक बसी हुई है, जीवन का है नूर।। जोड़ा लाल सुहाता कितना, बेंदी, टिकुली ख़ूब शोभा बढ़ जाती नारी की, हर इक कहता ख़ूब गौरव-गरिमा है माथेकी, आकर्षण भरपूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। अभिसारों का जो है सूचक, तन-मन का है अर्पण लाल रंग माथे का लगता, अंतर्मन का दर्पण सात जन्म का बंधन जिसमें, लगे सुहागन हूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। दो देहें जब एक रंग हों, मुस्काता है संगम मिलन आत्मा का होने से, बनती जीवन-सरगम जज़्बातों की बगिया महके, कर देहर ग़म दूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। चुटकी भर वह मात्र नहीं है, प्रबल बंध का वाहक अनुबंधों में दृढ़ता बसती, युग-युग को फलदायक निकट रहें हरदम ही प्रियवर, जायें भले सुदूर।। नग़मे ...
उम्र भर
कविता

उम्र भर

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** वो देता रहा उम्र भर दिलासा, और मरने के समय का नहीं हुआ खुलासा, उसने कहा था कि सुधार देंगे तुम्हें या तुम्हारे समाज को, खत्म कर देंगे चली आ रही रिवाज़ को, बाद में पता चला कि असल में सुधारने की बात तो धमकी थी, धोखे में रखने से उसकी किस्मत चमकी थी, वो तब भी वंचित था, आज भी है और आगे भी रहेगा, लफ्ज़ो की मीठी चाशनी में डूबा सब सहेगा, इधर पूरा कौम जीवित है इस उम्मीद में कि उम्र के किसी दौर में तो आएगा सवेरा, सब सम हो न हो कोई लंपट लुटेरा, मगर आस और आश्वासन तो सदा से वंचितों को वो देता आया है, अपनी वादों,बातों को कभी नहीं निभाया है, क्योंकि वो बना रहना चाहता है औरों से उच्च और रहबर, दे दे कहर, क्योंकि उन्हें फर्क नहीं पड़ता कोई ठोकरें खाये दर दर, जब जब किसी ने आस के फूल खिलाना चाहा, व...
संभव
कुण्डलियाँ

संभव

हेमलता भारद्वाज "डाली" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** संभव है सब योग से, करते रहना योग। नित होगी जब साधना, मिट जाएँगे रोग।। मिट जाएँगे रोग, अगर तुम अपनाओगे। तन को मन के साथ, जोड़कर फल पाओगे।। "डाली" चढ़ इस नाव, पार सुख सागर भव है। दुख होंगे सब दूर, यहाँ पर सब संभव है।। संभव आसन सिद्ध हो, काया बनती पुष्ट। तन से मन का मेल हो, कैसे होंगे रूष्ट।। कैसे होंगे रूष्ट, सोच सुंदर भर जाए। ऊर्जा शुभ हृद भाव, शांत जल सा मन पाए।। कह "डाली" कर ध्यान, नित्य अविलंबव हो। साँसों पर हो जोर, काज जीवन संभव हो।। परिचय : हेमलता भारद्वाज "डाली" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) सम्प्रति : योग प्रशिक्षिका, कवियित्री एवं लेखिका रुचि : संगीत, नृत्य, खेल, चित्रकारी और लेख कविताएँ लिखना। साहित्यिक : "वर्णावली छंदमय ग्रंथ"- (साझा संकलन), आगामी साझा संकलन- "छ...
शंकराचार्य अवतार-बागेश्वर सरकार
कविता

शंकराचार्य अवतार-बागेश्वर सरकार

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** आदि शंकराचार्य के रूप में, जन्मे है सरकार, सनातन की धर्म ध्वजा, लहराए महाराज (बागेश्वर सरकार)। हिला दिया है विश्व को, सोचने पर मजबूर, जागा हिंदुस्तान का हिंदू एकता मजबूत। जात-पात का कर रहे, समूल नाश महाराज, बागेश्वर सरकार तो शंकराचार्य अवतार। अपना हिंदू राष्ट्र तो, हिंदू का है देश, वंदे मातरम से परहेज है, छोड़े वह अब देश। भारतवर्षे जम्बू द्विपे, पुराणो का यह मंत्र, किस शास्त्र में आता है, भारत का यह मंत्र। सनातन धर्म आदि है, नहीं इसका कभी अंत, कब इस धर्म की नींव रखी? खोदे जन-जन थक। बड़े चलो, चले चलो, मंजिल नहीं अब दूर। सनातन का परचम यहां, लहराएगा जरूर। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन वि...
रिश्ते कभी रिसने न पाएं
कविता

रिश्ते कभी रिसने न पाएं

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** रिश्ते कभी न रिसने पायें, रिश्ते सभी निभाएं। चलो बचा लें हर रिश्ते को, हर रिश्ता अपनायें। रिश्ते हैं अनमोल धरोहर, रिश्ते कभी न टूटें। प्यार भरे रिश्ते जीवन में, जीते जी मत छूटें। नेह प्यार दें हर रिश्ते को, हर रिश्ता है प्यारा। कभी न रिसने पाएं रिश्ते, हर रिश्ता है न्यारा। संबंधों में भरें मधुरता, इनको देखें भालें। सूख गए जो प्यारे रिश्ते, उन में पानी डालें। सब मतभेद भुला कर अपने, मन को पावन कर लें। गंगाजल डालें रिश्तों में, खुशी हृदय में भर लें। नेह प्यार विश्वास भरा हो, मानव का हर रिश्ता। सदा काम आए जो सबके, कहते उसे फरिश्ता। जब रिश्तों में टूटन होती, हर रिश्ता रिस जाता। रुकती नहीं रिसन रिश्ते की, साँस नहीं ले पाता। रिसन रोक कर हर रिश्ते को, प्रेम डोर से बाँधें। रिश्...
करुणामयी पुकार
कविता

करुणामयी पुकार

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** थक चुका हूँ इंसानी रिश्ते निभाते-निभाते शिथिल हो गया हूँ करुणा मयी पुकार लगाते-लगाते, इंसान से दोस्ती, मेरी मजबूरी नहीं थी विश्वास, निःस्वार्थ प्रेम से सजाया था इस रिश्ते को परन्तु लगता है इंसानो के लिए बोझ बन रहा ये स्नेहिल रिश्ता मैं ही समझ ना पाया प्रेम, दया, करुणा मांग-मांग के थक गया बहुत गुहार लगाई, मेरी दर्द भरी चीख की आवाज उनके कानो तक नहीं पहुची धूमिल हो रहा है ये रिश्ता! जानवर और इंसान" के रिश्ते का अंत हो रहा है, पर हमारी ओर से ये अनंत हो रहा है!! इसी आस के सहारे चल रहा है कुछ तो इंसान, जो "इंसान होंगे" शायद वही जीवित रख पाएंगे अनंत से अंत की ओर जाते इस रिश्ते को!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ व...
बंजर सोच
कविता

बंजर सोच

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जिंदगी जीने के लिए जरूरी है एक सकारात्मक सोच, जो काम करता है सतत आगे बढ़ने-बढ़ाने के लिए रोज, सोच दो तरह के होते हैं, एक जो सकारात्मक मानवतावादी है जिसमें आपसी प्रेम भाईचारा सहयोग और सदा मिलकर चलने पर आधारित होता है, दूसरी सोच बिल्कुल इसके उलट नकारात्मकता वाला जो सिर्फ प्रचारित होता है, मगर कुछ लोग केवल भ्रमित रहते हैं, कभी मानवीय मूल्यों को तो कभी हिंसात्मक विचार को सही कहते हैं, जब खुद पर मुसीबत हो तो हर किसी से सहयोग की अपेक्षा रखते हैं, जब सहायता देने का वक़्त आता है तो ईर्ष्यावश मन में भाव उपेक्षा रखते हैं, उत्कृष्ट सोच खुद के साथ ही औरों के लिए भी एक नये मार्ग पर निरंतर हंसते हुए चलना सिखाता है, पर दूसरी तरफ विपरीत प्रभाव में जा दूसरों की प्रगति पर जलना सिखाता है, परंतु कई ...
सुख का सपना सब रीत गया
कविता

सुख का सपना सब रीत गया

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** सुख का सपना सब रीत गया, ऐसे ही जीवन बीत गया।। सुबह की सुषमा से विभोरित, सँग तेरी यादों के पथपर... चला किया मधु की आशा में, सूरज की लाली को पाकर‌... जानें किरणें प्रखर हुईं कब, मन हार गया, दुख जीत गया। सुख का सपना सब रीत गया। ऐसे ही जीवन बीत गया।। कभी नहीं हँस पाया मैंने, आहत समय गंँवाया मैंने। चेहरे पर मुस्कान लिया कब, कोई भी अरमान जिया कब? कब 'मुर्छित-मौसम' दे पाया... सोये फूलों पे गीत नया।। सुख का सपना सब रीत गया, ऐसे ही जीवन बीत गया।। पर्वत के ऊपर ठहरे थे, पानी के अन्दर गहरे थे। सभी जगह मेरी आँखों में, उनकी छवि के ही पहरे थे। फिर भी कब मैं जान सका हूँ; निष्फल हो कैसे प्रीत गया। सुख का सपना सब रीत गया , ऐसे ही जीवन बीत गया।। गहन कुहासा धरा पे आए, वारिद नहीं गगन में गाए। फीकी पड़तीं...
मतलब का गीत
गीत

मतलब का गीत

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** बल-विद्या क्या बुद्धि ठगी का, चलन पुराना नया नहीं है। मतलब की दुनिया में मतलब, मात्र स्वार्थ है हया नहीं है।। पल-पल छलना धोखा खाना। पिंजरे में आकर फँस जाना।। फिर मुश्किल बचकर जा पाना, कहीं सुरक्षित नहीं ठिकाना।। तुम भी उड़ो पखेरू बचकर, बली बाज है बया नहीं है।। असहनीय सी पीर दिखा लो। या रोती तस्वीर दिखा लो।। कोई नहीं पसीजेगा तुम, बेशक छाती चीर दिखा लो। यह क्रूरों गाँव यहाँ पर, सिर्फ सजा है दया नहीं है।। यहाँ भूलकर भी मत आना। शेष न होगा फिर पछताना।। आने का मतलब है मतलब, मरने से पहले मर जाना ।। देख रहा हूँ यहांँ आदमी, आकर वापस गया नहीं है।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित...
क्या हिन्दू-हिन्दू भाई भाई?
कविता

क्या हिन्दू-हिन्दू भाई भाई?

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** घर-घर में भारत पाकिस्तान, कैसे बनेगा हिंदू राष्ट्र। भाई-भाई मै नहीं है प्यार, पडोसी बन गये रिश्तेदार, नही शर्म नही कोई लाज, बैठ के खाये ये पकवान, भाई भाई को नही जानते, रावण विभीषण बर्ताव मानते, शत्रु एक दिन करेगा राज, पड़ जायेगी जंजीरे (गुलामी) हाथ। आपस में प्यार मोहब्बत को लो, शत्रु को ना घर मे भर लो, नही तो! लंका ध्वस्त हो जाएगी आज, ताल बजायेगा दुश्मन यार। बन्द मुट्ठी एकता का पाठ, खुल जाये तो पत्ता साफ, जीवन जियो सीना तान के साथ, नही तो........ कौन? दुश्मन बैठा है दर पर आज। फूट डालो और राज करो का करेगा काम। हाथ मल के रह जाओगे यार। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंत...