वाह क्या नजारा था
वाह क्या नजारा था
रचयिता : वंदना शर्मा
एक दिन
घर से निकलते ही
दिखा
वाह क्या नजारा था?
एक आदमी
एक हाथ में खंजर लिए
दूसरे को काट रहा था |
पहले तो
देखकर कुछ समझ नहीं आया |
फिर सोचा
कि
शायद कोई पागल है
या कोई जादूगर,
क्योंकि एेसा अचम्भा जीवन में पहली बार देखा था |
देखकर रहा नहीं गया,
जाने लगी उसे रोकने
तो
सहेली ने मुझे रोक दिया
कि रहने दो
क्यों व्यर्थ के पचड़े में पड़ती हो |
पर समस्या गम्भीर है
स्त्री स्वभाव
और कवि हृदय
पूछना आवश्यक हो गया था |
नहीं पूछें तो पेट दर्द |
मुझसे
रहा नहीं गया |
पास जाकर बोली ,
कि चाचाजी
क्या कर रहे हो?
अपने ही हाथों स्वंय
अपने ही हाथ क्यों
काट रहें है ?
आप शक्ल से
पागल भी तो नहीं लगते
तो ये पागलपन क्यों?
त्यौरियाँ चढ़ाते हुए
उन्होने
मुझे घूरा|
क्षण भर
ठहर कर फिर कहा,
कि
बिटिया बात तो
समझ की करती हो|
पर ये नहीं दे...