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पद्य

आओ बच्चों
कविता

आओ बच्चों

========================================== रचयिता : श्रीमती मीना गोड़ "मीनू माणंक" आओ बच्चो, तुम आज की खुशहाली। आने वाले कल का भविष्य हो।। आस लगाए, तकती तुम्हैं धरती। प्रकृति है, देखो बाहें पसारे।। किया है हमने खिलवाड़ पर्यावरण से। तुम दो सम्मान धरती को हरियाली फैला के।। ओ नौनिहालों, फूलों से करो प्यार। पौधे तुम लगाओ, बारम्बार।। रूठ गई है जो चिरैया हमारी, देख, फल-फूल से लदी डाली वो भी लोट अएगी।। कल-कल करती बहेगीं, जब नदियाँ बूझेगी, तब प्यास धरती की।। मद-मस्त बादल, गरज कर शंखनाद बजाएगें। झूम कर बदली, रिमझिम बूंदों से घूंघरू की झनकार सुनाएगी।। इंद्रधनुषी ये चुनरी सतरंगी। जब चारों ओर छा जायेगी।। रंग-बिरंगें इन फूलों से। वसुंधरा, दुल्हन सी सज जायेगी।। आओ बच्चों, तुम आज की खुशहाली। आने वाले कल का भविष्य हो।।   लेखिका परिचय :-  नाम...
तेरे बिन
कविता

तेरे बिन

रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' =================================== कितनी राते कितने दिन   मैं जिया हूँ तेरे बिन मिलती थी तन्हाई मुझसे      मेरे यारा जब         तेरे बिन होकर द्रवित तन-मन मेरा बहस खुद से कर लेता था बनकर के लहू के आँशू मेरा दिल रो उठता था         तेरे बिन ख्वाब सजाए वो बैठा था कई भोरों से शामों तक शीशा जैसी बिखर गई थी    उसकी खामोशी फिर            तेरे बिन कई सपनें व वादे      टूटे थे लाखों पथिक निकल     चुके थे उसके दिल की राहें सूनी थीं        तेरे बिन लेखक परिचय : नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं रुचि :- अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को न...
विछोह की पीड़ा
कविता

विछोह की पीड़ा

============================================ रचयिता : सौरभ कुमार ठाकुर पता नही किस शहर में, किस गली तुम चली गई। मै ढूँढ़ता रह गया,तुम छोड़ गई। पता नही हम किस मोड़ पर फिर कभी मिल पाएँगे। इस अनूठी दुनिया में फिर किस तरह से संभल पाएँगे। पता नही तेरे बिन हम, जी पाएँगे या मर जाएँगे। हम बिछड़ गए उस दिन,जिस दिन तुम मुझसे मिलने वाली थी मै तुमसे मिलने वाला था। इस अंधी दुनिया ने कभी हमको समझा ही नही। काश समझ पाती दुनिया, तो हम कभी बिछड़ते ही नही। प्यार करते थे हम तुमसे, पर कभी कह ही न पाएँ। आज भी सोचता हूँ की, काश वो दिन वापस लौट आए। बहुत समय लगा दिया हमने इजहार में। कब तक भटकेंगे हम तेरे इन्तजार में। हम बिछड़ गए थे उस दिन,जिस दिन, तुम मुझसे मिलने वाली थी, मै तुमसे मिलने मिलने वाला था। परिचय :- नाम- सौरभ कुमार ठाकुर पिता - राम विनोद ठाकुर माता - कामिनी देवी पता - रतनपुरा, जिला...
खुद की खोज जारी रखो
कविता

खुद की खोज जारी रखो

======================================== रचयिता : शिवांकित तिवारी "शिवा" खुद की खोज जारी रखो, मरनें की रोज तैयारी रखो, कब कौन कहां बदल गया, इसकी पूरी जानकारी रखो, खुद पर यकीन करना सीखो, नियत सच्ची और जुबां प्यारी रखो, वहम और अहम मत पालों कभी, चुनिंदा लोगों से हरदम यारी रखो, हक के लिए सदा आवाज़ उठाओं, अपनी बातों  में  वजनदारी  रखो, अपने मां-बाप को कभी धोखें में मत रखो, उनके साथ हरदम ईमानदारी रखो, लेखक परिचय :- शिवांकित तिवारी "शिवा" युवा कवि, लेखक एवं प्रेरक सतना (म.प्र.) शिवांकित तिवारी का उपनाम ‘शिवा’ है। जन्म तारीख १ जनवरी १९९९ और जन्म स्थान-ग्राम-बिधुई खुर्द (जिला-सतना,म.प्र.) है। वर्तमान में जबलपुर (मध्यप्रदेश) में बसेरा है। आपने कक्षा १२ वीं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की है, और जबलपुर से आयुर्वेद चिकित्सक की पढ़ाई जारी है। विद्यार्थी के रुप में...
‘ताज’ वतन का वंदन कर 
ग़ज़ल

‘ताज’ वतन का वंदन कर 

======================== रचयिता : मुनव्वर अली ताज हर  दुख  का अभिनंदन  कर चिंता मत कर चिंतन  कर खुशियों के पल निकलेंगे दुख सागर का मंथन  कर हर मानव को गंध मिले तन मन धन को चंदन  कर जिन शब्दों से दिल ख़ुश हो उन शब्दों का चुंबन  कर भँवरा बन कर ग़ज़लों का सारे जग में गुंजन कर जाना है उस पार अगर मौजों का उल्लघंन कर प्यार का शुभ  संदेश है ये 'ताज' वतन का वंदन कर लेखक का परिचय :- मुनव्वर अली ताज उज्जैन आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने मोबाइल पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें...🙏🏻 आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरु...
कहावतों की कविता – 1
कविता

कहावतों की कविता – 1

=========================================== रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" हिंदी स्वर का प्रथम अक्षर "अ" को लेकर कहावतों को कविता में ढालना......एक प्रयास..  (१) अपनी नरमी दुश्मन को खाय, अधजल गगरी छलकत जाय, अमरौती खा के कौन है आय, अति का फूल सैंजना डाल पात से जाय। अर्थ :-- सुखद व्यवहार से शत्रु भी पराजित हो जाता है, अधूरी योग्यता छुपती नही, संसार मे कोई अमर नही, घमंडी का सदैव नुकसान होता है।              (२) अपना हाथ जगन्नाथ, अपने मन से पूछिए मेरे मन की बात, अब की अब के साथ, जब कि जब के साथ, अपनी जांघ उघारिये आपन मरिये लाज। अर्थ :-- आत्म निर्भरता, मेरे ह्रदय की बात तुम्हारा ह्रदय ही समझ सकता है, वर्तमान को महत्व देना, किसी अपने की बदनामी करने से आपकी भी बदनामी होगी। लेखक परिचय :-  नाम - विनोद वर्मा सहायक शिक्षक (शासकीय) एम.फिल.,एम.ए. (हिंदी साहित्य), एल.एल.बी., बी.टी., वैद्य विशार...
बिछुड़ना
कविता

बिछुड़ना

=================================================== रचयिता : कुमुद दुबे खडे़-खडे़ निहारती रही सोचती रही, कितना दुर्बल था वह जब मेरे हाथों में सौंपा था, गर्मी सर्दी बरसात हर संकट से बचाकर उसे पोषित किया, दिन प्रतिदिन बढ़ते देखती रही आनन्दित होती रही, आज भी मैं उस दिन को भूल नही पायी हूँ जिस दिन उसे छोड़कर जाने को मजबूर हुयी थी, दुखी हुयी थी दूसरों को सौंप कर उसे। अरसा बीत गया आज अचानक सामने से गुजरी, चुपके से निहारते न जाने कब उसके समीप पहुंच गई, फलों से लदा वह कटहल का पेड़ नतमस्तक हो जैसे कह रहा हो जो देकर ना ले वही तो प्यार है बाकी सब व्यापार है फिर मैं नम आँखे लिये अनमने मन से चल पड़ी अपने गन्तव्य को। लेखिका परिचय :-  कुमुद के.सी.दुबे जन्म- ९ अगस्त १९५८ - जबलपुर शिक्षा- स्नातक सम्प्रति एवं परिचय- वाणिज्यिककर विभाग से ३१ अगस्त २०१८ को स्व...
तुम गए
कविता

तुम गए

रचयिता : शशांक शेखर ============================================================= तुम गए सुबह और दिन गए और हम ओस बन कर घास पर बिछ गए और हम आसमान से टपकते रहे आँसू बनकर और हम आज भी बारिश की बूँदे छतरी से टकराती हैं गीत कोई तुम्हारे नाम की गाती हैं और हम भागते हैं यहाँ से वहाँ तुम्हारी तलाश में और हम सायों को पकड़ते हैं जैसे चिढ़ा कर हमें तुम चुप गयी हो कहीं ओट में और हम उँगलियाँ शाम की थामे हुए पुकारते हैं तुम्हें मासूम का चेहरा तुम्हारा आवाज़ देता है हमें और दूर से धड़कन अपनी आप ही सुनते हैं और हम   लेखक परिचय :- आपका नाम शशांक शेखर है आप ग्राम लहुरी कौड़िया ज़िला सिवान बिहार के निवासी हैं आपकी रुचि कविताएँ आलेख पढ़ने और लिखने में है।...
कहानी घर की
कविता

कहानी घर की

============================================ रचयिता : ईन्द्रजीत कुमार यादव कोई बताए कैसे बनेगा घर मेरा ? कुछ मिट्टी और कुछ गिट्टी का इंतेजाम कराना है, लेकिन इससे पहले पेट में लगी आग बुझाना है। कोई बताए कैसे बनेगा घर मेरा ? कुछ ईंट कुछ पत्थर का भी इंतेजाम कराना है, लेकिन उससे पहले कुछ कर्ज भी चुकाना है। कोई बताए कैसे बनेगा घर मेरा ? घर के किसी कोने में रशोईघर भी बनवाना है, लेकिन पहले आज केलिये रशोई का समान भी लाना है। कोई बताए कैसे बनेगा घर मेरा ? एक कमरे में हमे अपने भगवान को बसाना है, मगर मित्रों एक घर बनाने केलिये पहले पैसों को भगवान बनाना है। लेखक परिचय :-  नाम : ईन्द्रजीत कुमार यादव निवासी : ग्राम - आदिलपुर जिला - पटना, (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्र...
तो ईद हो
कविता

तो ईद हो

================================================ रचयिता : रशीद अहमद शेख पुण्य का विस्तार हो तो ईद हो! हर्ष का संचार हो तो ईद हो! हो सुलभ जन-जन को भोजन वस्त्र-वंचित हो नहीं तन कोई पथशायी नहीं हो, सबके हों अपने निकेतन आर्थिक आधार हो तो ईद हो! हर्ष का संचार हो तो ईद हो! संतुलित अभिव्यक्तियां हों नियंत्रित आसक्तियां हों शुभ समर्पित शक्तियां हों, चाहे ऊँची भित्तियां हों भावना का द्वार हो तो ईद हो! हर्ष का संचार हो तो ईद हो! अहिंसक धारा विषम है कहीं भय है, कहीं भ्रम है मांग शस्त्रों की अधिक है, संधियों की चाह कम है पुष्प का व्यापार हो तो ईद हो! हर्ष का संचार हो तो ईद हो!   लेखक परिचय :-  नाम ~ रशीद अहमद शेख साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी...
यह नदी अभिशप्त सी है
कविता

यह नदी अभिशप्त सी है

========================= रचयिता : रामनारायण सोनी यह नदी अभिशप्त सी है जल नही बहता यहाँ यह लगभग सुप्त सी है घाट सब मरघट बड़़े है प्यास पीते जीव जन्तु धार, लहरें लुप्त सी है यह नदी अभिशप्त सी है पालती थी सभ्यताएँ धर्ममय और तीर्थमय हो संस्कृति विक्षिप्त सी है यह नदी अभिशप्त सी है खेत बनती थी उपजती तरबूज, खरबूज ककड़ियाँ अब रेत केवल तप्त सी है यह नदी अभिशप्त सी है प्राण उसके पी गई लोलुपी जन की पिपासा वासनाएँ लिप्त सी है यह नदी अभिशप्त सी है हम विकासों के कथानक तान कर सीना दिखाते सब शिराएँ रिक्त सी है यह नदी अभिशप्त सी है बस बाढ़ ही ढोती रहेगी शेष दिन निःश्वास होंगे जिन्दगी संक्षिप्त सी है यह नदी अभिशप्त सी है   परिचय :- नाम - रामनारायण सोनी निवासी :-  इन्दौर शिक्षा :-  बीई इलेकिट्रकल प्रकाशित पुस्तकें :- "जीवन संजीवनी" "पिंजर प्रेम प्रकासिया", जिन्दगी के कैनवास लेखन :- गद्य, पद्य ...
तेरे बिन दर्पण लगता झूठा
कविता

तेरे बिन दर्पण लगता झूठा

============================== रचयिता : रीतु देवी झूठ को सच बयां करता दर्पण, सारे भाव हम अपना करते अर्पण, फिर भी तेरे बिन झूठा लगता दर्पन, हूँ बाबड़ी करूँ मुखमंडल तेरे नयनों में दर्शन। देख तेरे चक्षुओं में अपना मुख, प्राप्त होती मुझे सांसारिक अलौकिक सुख। गाऐं तू श्रृंगार रस , करूँ मोहिनी श्रवण तुझ बिन नीरस है जीवन करके श्रृंगार न देखूँ दर्पण, आ जाओ सनम करूँ तहे दिल अर्चन। दर्पण दिखा सब करते मेरे सौंदर्य का व   लेखीका परिचय :-  नाम - रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … औ...
रे माधो
कविता

रे माधो

रचयिता : लज्जा राम राघव "तरुण" ================================================ रे माधो! सुख है दुख के आगे।.. मन की तनिक लगाम खींच, फिर सोई आत्मा जागे। रे माधो सुख है दुख के आगे।.. मन तुरंग पर चढ रावण ने सीता जाय चुराई। हनुमत संग सुग्रीव लिए श्री राम ने करी चढ़ाई। देख सामने मौत दुष्ट को नहीं समझ में आई। फिर राम लखन ने जा लंका की ईंट से ईंट बजाई। लंका भस्म हुई सारी सब छोड़ निशाचर भागे। रे माधो! सुख है दुख के आगे।.. बाली ने कर घात भ्रात से पाप किया था भारा। भाई की घरवाली छीनी नाम सुमति था तारा। गदा युद्ध प्रवीण बालि सुग्रीव बिचारा हारा। राम सहायक बने तुरत पापी को जाय संहारा। बड़े बड़े बलवान सूरमा काल के गाल समागे। रे माधो! सुख है दुख के आगे।. भक्ति में हो लीन 'ध्रुव' तारा बन नभ में छाये। शबरी की भक्ति वश झूठे बेर राम ने खाए। भागीरथ तप घोर किया गंगा धरती पर लाये। दानव सुत प...
प्रकृति
कविता

प्रकृति

====================================== रचयिता : मित्रा शर्मा सूखते खेत खलिहानों से बंजर पड़े भूमि से बर्वाद होते जंगल से बेजार होते पेड़ पौधे से। पूछो उनकी अभिलाषा देखो बदलते परिभाषा । सुनो उनकी स्पंदन करते हुए क्रंदन। एक बूंद पानी की आस में ह्रास होते सम्बेदना के त्रास में। देख रही प्रकृति रोती बिलखती चीत्कार करती। भूल गया है तू अपना मानविय कर्तब्य पालना और सुरक्षा का फर्ज। खुदगर्ज हुआ है तू मानव समेटने में लगा है दानव । अब नही समझोगे तो कब मिटने वाला है तेरा अस्तित्व । प्रकृति प्रदत्त उपहार को बचाने के लिए अग्रसर होना पड़ेगा तुम्हे जीवन सँवारने के लिए। बचाना होगा पानी और पेड़ जंगल तय होगा तब जीवन मे सुकून और सम्बल। परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं...
जीत
कविता

जीत

============================== रचयिता : रीतु देवी अरमानों की ख्यालों में लगा पंख, सीढियाँ दर सिढियाँ चढ फूंक विजयी शंख, देखकर अस्ताचल-उदयमान रवि , अहर्निश पग बढा खिला छवि, सहस्त्रों बार चींटी भाँति गिर-गिरकर, प्रयास करते रहना न पीछे पलटकर। फंसना न कभी राहों के जाल में सागरों की झंझावतों से निकलते रहना हर हाल में कठोर तपस्या के लगाकर आसन, अपने चमन के गगन का बढाना शान, स्मरण कर कन्हैया संग मिश्री -माखन, थामे रहना प्रतिपल श्रेष्ठजनों का दामन।   लेखीका परिचय :-  नाम - रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर...
तो फिर क्यों आ रहे हो
कविता

तो फिर क्यों आ रहे हो

======================================== रचयिता : शिवांकित तिवारी "शिवा" मुझे क्यों आजमाने आ रहे हो, बताओं क्या जताने आ रहे हो, तुम्हीं ने मुझको ठुकराया था एक दिन, तो फिर क्यों अब मुझे वापिस मनाने आ रहे हो, क्यों पिंजरें में रखा था तुमने अब तक कैद करके, क्यों पिंजरें से मुझे अब तुम छुड़ानें आ रहे हो, गिराया था मुझे तुमने कभी नीचा दिखाकर, तो फिर क्यों आज तुम ऊँचा उठाने आ रहे हो, तुम्हीं ने था रुलाया मुझको पहले जख़्म देकर, तो अब क्यों जख़्म में मरहम लगाने आ रहे हो, तुम्हीं ने तो कहा था तुम न कोई काम के हो, तो फिर क्यों आज मेरी उपलब्धियाँ गिनानें आ रहे हो, मैं मतलब से नहीं मिलता न मतलब से मेरा रिश्ता, तुम्हीं थे मतलबी जो हाथ मुझसे फिर मिलाने आ रहे हो,   लेखक परिचय :- शिवांकित तिवारी "शिवा" युवा कवि, लेखक एवं प्रेरक सतना (म.प्र.) शिवांकित तिवा...
जल हम सब की जीवन रेखा है
कविता

जल हम सब की जीवन रेखा है

================================= रचयिता : मंजुला भूतड़ा मैंने पानी से रिश्ते बनते देखे हैं, मैंने पानी से रूठे मनते देखे हैं। मैंने देखा है पानी का मीठा कडवा खारा होना, मैंने देखा है इस का सबमें सबके जैसा हो जाना। घुलने मिलने आकार बदलने का गुण है, कोई नहीं ऐसा जो इसके बिना मौन या चुप है। यह हम सब की जीवन रेखा है, क्या इस का भविष्य हमने कभी सोचा है। क्यों नहीं दे पाते इसे कोई भाव, क्यों नहीं रखते इसे बचाने का भाव। एक दिन नहीं होने पर गृहयुद्ध छिड़ जाता है, इस से हम सब का गहरा नाता है। जल संरक्षण की बात प्रबल करनी होगी, जल संवर्धन की तकनीक अमल करनी होगी। तभी भविष्य- सुख सरल तरल हो पाएगा यह जल का नहीं अपना भविष्य बनाएगा। जो आज किया परिणाम वही फिर पाना है, वरना पानी की बर्बादी पर पानी पानी हो जाना है। बिन पानी क्या जीवन सम्भव हो पाना है  नई पीढ़ी के सम्मुख क...
हे मोदी!
कविता

हे मोदी!

================================================== रचयिता : भारत भूषण पाठक हे मोदी ज्ञान पयोधि तुम्हारा अभिनन्दन । है नरेन्द्र माँ भारती के मृगेन्द्र। तुम्हारा वन्दन माँ भारती के मान का करने वर्धन।। है विकासपुरुष ।स्वीकार हो स्नेहपुष्पगुच्छ।। धन्य हो पंकज संरक्षक।भयाक्रान्त रहते तुमसे आतंकपोषक।। धन्य हो तुम है महात्मन।भारत भक्ति को भारत करता है तेरे नमन।। है मोदी स्थापित रहे तेरा कीर्तिमान । बस अब और शहीद न हों रखना इतना सा ध्यान।। धन्य है तुम्हारी नेतृत्त्व शक्ति। स्वीकार हो शुभकामना भारत को बनाने विश्वशक्ति।। धन्य है तुम्हारी ओजस्विता ।धन्य तेरी दूरदर्शिता।। लेखक परिचय :-  नाम - भारत भूषण पाठक लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका(झारखंड) कार्यक्षेत्र :- आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठ...
माँ तुम मेरा जहान
कविता

माँ तुम मेरा जहान

======================================== रचयिता : शिवांकित तिवारी "शिवा" रास्ता तुम्हीं हो और तुम्हीं हो मेरा सफ़र, वास्ता तुम्हारा है हर घड़ी और हर पहर, तुम ही मेरे जीवन की सबसे मजबूत कड़ी, तुम ही मुश्किलों में सिर्फ मेरे साथ खड़ी, मुझको धूप से बचाने बनके आती छांव हो, तुम ही मेरा शहर और तुम ही मेरा गाँव हो, मेरी सारी उलझनों का एक सिर्फ तुम ही हल, मेरी जिंदगी की दुआ और तुम ही मेरा बल, मेरे सारे मर्जो का तुम ही माँ इलाज़ हो, तुम ही घर की लक्ष्मी जो रखती घर की लाज हो, मेरी जिंदगी का तुम सबसे बड़ा ईनाम हो, तुमसे ही मेरा जीवन माँ तुम ही तो चारोंधाम हो,   लेखक परिचय :- शिवांकित तिवारी "शिवा" युवा कवि, लेखक एवं प्रेरक सतना (म.प्र.) शिवांकित तिवारी का उपनाम ‘शिवा’ है। जन्म तारीख १ जनवरी १९९९ और जन्म स्थान-ग्राम-बिधुई खुर्द (जिला-सतना,म.प्र.) है। वर्तमा...
संन्यास
कविता

संन्यास

संन्यास =================================== रचयिता : राम शर्मा "परिंदा"  तुम्हें मुबारक धन-दौलत मैं भगतसिंह-सुभाष ले लूं । उथल-पुथल मची जग में अभी कैसे संन्यास ले लूं ।। भावों को शुद्ध करना है अपनो से युद्ध करना है जो है विकारों  से  युक्त जगा उन्हें बुद्ध करना है भूखों के लिए अन्न मांगू स्वयं हेतु उपवास ले लूं । उथल-पुथल मची जग में अभी कैसे संन्यास ले लूं ।। धर्मो में ठेकेदार आ गये करने को  प्रचार आ गये खुद धर्म का मर्म न जाने करने को सुधार आ  गये गीदड़ों को गले लगा कर शेरों के लिए घास ले लूं  ? उथल-पुथल मची जग में अभी कैसे संन्यास ले लूं ।। परिचय :- नाम - राम शर्मा "परिंदा" (रामेश्वर शर्मा) पिता स्व जगदीश शर्मा आपका मूल निवास ग्राम अछोदा पुनर्वास तहसील मनावर है। आपने एम काम बी एड किया है वर्तमान में आप शिक्षक हैं आपके तीन काव्य संग्रह १ परिंदा , २- उड़ा...
रिश्ते
कविता

रिश्ते

रिश्ते ====================================== रचयिता : मित्रा शर्मा बाग के हम फूल अलग अलग एक धागे में पिरोए है गुलशन हुआ चमन और हम कितने सलीके से मुस्कुराएं है। डूबती जा रही थी कस्तियाँ तूफानों में हर इंसान अकेला है रिश्तों के मेले में ज्यादा समझदारियाँ देना नही भगवान घटते अपनापन की अहसास होगा रिश्ते की नूर मासूमियत से ही है सदा अपनों की छांव से सीतलता का अनुभव होगा जीवन के अंधेरे और उजाले में हमने कई रिश्ते टूटते देखा इस उम्मीद पे दुनिया कायम है रात के बाद दिन आएगा परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर कॉ...
बस अपने काम से काम रखों
कविता

बस अपने काम से काम रखों

बस अपने काम से काम रखों ======================================== रचयिता : शिवांकित तिवारी "शिवा" आँखो में अक्सर अपने तूफान रखों, यहाँ सिर्फ अपने काम से काम रखों, दिल से नफरतें बाहर निकाल फेंको, तुम दिल में प्यार मोहब्बत तमाम रखों, कोशिशें करते रहों आखिरी साँस तक, गिर कर उठना हरबार है ये जान रखों, ये मत सोचों चार लोग क्या सोचेगें, अपनी सोच को खुलकर सरेआम रखों, खुद में खुद को जिंदा रक्खों, दोस्त कम मगर चुनिंदा रक्खों, एक ना एक दिन दुनिया में सबको मरना है, सर पे बांध कफन साथ मौत का सामान रखों, तुम काबिल हो,कर सकते हो हर लक्ष्य फतह, बस खुद पर करके यकीन कायम पहचान रखों,   लेखक परिचय :- शिवांकित तिवारी "शिवा" युवा कवि, लेखक एवं प्रेरक सतना (म.प्र.) शिवांकित तिवारी का उपनाम ‘शिवा’ है। जन्म तारीख १ जनवरी १९९९ और जन्म स्थान-ग्राम-बिधुई खुर्द (जिला-सतना,म...
अमर
कविता

अमर

रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि" वृक्ष के तले  चौपाल जहाँ बैठकर पायल की रुनझुन बहक जाता था दिल दिल जवां हो जाता था इश्क आज उसी वृक्ष तले चौपाल पर इश्क खोजते विकास के नए आयाम में खुद चुकी चौपाल वृक्ष नदारद धुंधलाई आँखों से घूम हुए का पता पूछते लोग कहते क्या पता? समय बदला घूम हुई पायल की रुनझुन इश्क हुआ घूम पास की टाल में लकड़ी का ढेर कटे  पेड़ की लकड़ी गूंगी हुई लकड़ी निहार रही लकड़ी के टाल से मौत आई उसी इश्क की लकड़ी से जलाया मुझे रूह तृप्त हुई हुआ स्वर्ग नसीब इश्क ऐसे हुआ अमर परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति...
सूने मकान 
कविता

सूने मकान 

सूने मकान  ========================================================= रचयिता : श्रीमती पिंकी तिवारी बड़े-बड़े घर के, रोशनदान हो गए हैं, घर अब घर कहाँ ? "सूने मकान' हो गए हैं । गलीचे हैं, खिलोने हैं, करीने से सजे हुए, घर में रहने वाले भी अब मेहमान हो गए हैं । घर अब घर कहाँ ? सूने मकान हो गए हैं। न सलवटें हैं बिस्तर पर, न बिछी कोई चटाई है, न रामायण-गीता पढ़ता कोई, न लगी कोई चारपाई है, बाहर से बुलवाये माली ही, अब बगिया के बाग़बान हो गए हैं, घर अब घर कहाँ ? सूने मकान हो गए हैं । न आती है कोई चिट्ठी अब, न बचा है दौर "बुलावों" का, बहन-बेटियां हो गईं दूर, दर्शन भी दुर्लभ उनके पावों का, हंसी-ठिठोली, गपशप करना, अब केवल अरमान हो गए हैं, घर अब घर कहाँ ? सूने मकान हो गए हैं । बड़ी-बड़ी हैं टेबलें, आसन पर कोई नहीं बैठता, खाने से पहले अब, भगवान् को कोई नहीं पूछता, किसी को नमक हैं ...
ये इश्क है इश्क 
कविता

ये इश्क है इश्क 

ये इश्क है इश्क  =================================== रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' साहब!  ये इश्क है इश्क  इसे दिशा निर्देश भी करना होगा,  अब मैं ही गवाही क्या दूँ  या खुद को खाली कमरा कर दूँ   साहब!  खून में जरा उबाल रखा करो √ साथ में जो हो उसका ख्याल रखा करो √ प्रेम का पौधा अक्रिय और सक्रिय दोनों रूप में मिलता है....  साहब!  जब भी पानी डालोगे तब ही वो हरा भरा हो जाएगा    हमने किया है क्या क्या किया है  मत पूछो  मेरे दिल ने क्या क्या सहा है  सोचना होगा मेरे दिल ने क्या  क्या सहा है  अब इसे भी हुकूमत कहोगे क्या जनाब  कि मेरी आँखो ने क्या क्या देखा है    हम गर्जी जिंदगी नहीं जीते है      गर्ज तुम्हारी होगी  हम तो हुकूमत भरी जिंदगी जिएगे  हुकूमत हमारी होगी    इन्शानियत की राह हमे निकालनी होगी  हम तुम्हारे जैसे नहीं हैं  साहब!  जो गर्ज पर गधे को ...