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पद्य

सई कै रये कछु बदलो ना है
ग़ज़ल

सई कै रये कछु बदलो ना है

*********** रचयिता : प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" बुंदेली ग़ज़ल सई कै रये कछु बदलो ना है। खूब गात रओ, बा से का है? कीच भरे गाँवन के रस्ता, घूँटन खच रए, हालत जा है। फसल खेत में, गैया ग्याबन, जब सच्ची, जब मौं में आ है। अते-पते नइं है, बिजली के कल की गई है, कब नों आ है? "प्रेम" दूर के ढोल सुहाने, भुगतो, जबइं समझ में आ है। लेखक परिचय :-  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ - "पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक पत्रिका...
बेटियां
कविता

बेटियां

********** रचयिता : मित्रा शर्मा पापा की सहजादी होती है बेटियाँ माँ की  परछाई होती है बेटियां। मिलती है   बड़े नसिबवालों को बेटियां  आंगन की रौनक  घर की मान होती है बेटियां ।  चार दिवारी से निकलकर  कदम ताल में  बढ़ रही है आगे  दे रही है साथ  सुगम चाल में । बनकर योद्धा  जय की नारा के हुंकार से   उड़ रही है विजय की ध्वजा  लेकर आसमान पे ।  विदुषी के उपमा लेकर  दे रही है रोशनी   शिक्षा रूपी बीज को कर रही है बोबनी । दूर हो अंधियारा  कलम की हथियार से   चहुं ओर  उजियारा हो बेटियों के नारा से परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६०...
राष्ट्रनिर्माता
कविता

राष्ट्रनिर्माता

*********** रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" शिक्षक होता है राष्ट्रनिर्माता, वह कभी नही चेन से खाता कभी निर्वाचन नामावली बनाता, कभी बीएलओ बन घर-घर जाता। कभी छात्रवृद्धि करवाता फिर भी, उसे (लोग) फोकट खोर कहा जाता। कुछ लोग कहते यह कभी स्कूल जाता, कभी स्कूल नही है जाता, फोकट का वेतन पाकर मस्ती से खाता, वह जनता को इस पर कुछ नही बता पाता। शिक्षक कभी पशु, कभी दिव्यांग गणना करता, कभी मकान कभी अज्ञान की गणना करवाता, हर हाल में अनेक-अनेक चुनाव करवाता, गरीब,अति गरीब का लेखा-जोखा बनवाता। वह रोज बर्तन साफ व मध्यान्ह भोजन करवाता, प्रतिदिन स्कूल की दो बार घण्टी बजाकर, स्कूल खुलने और बन्द होने का एहसास कराता, भला आप बताएं क्या शिक्षक फोकट की खाता? वैसे सब शिक्षक को कहते राष्ट्र निर्माता, शासन आदेश पर आदेश देकर काम है करवाता, शासन की हर योजना में, यही काम काम करवाता, वह न पढा पाता, न बच्चों को आगे बढ़ा पाता।...
चाणक्य छला जाता है
छंद

चाणक्य छला जाता है

*********** रचयिता : अंजुमन मंसूरी' आरज़ू' आधार छंद - सार/ललित छंद जलता है खुद दीपक सा पर, ज्ञान प्रकाश दिखाता । बांट के अपना सब सुख जन में, आनंदित हो जाता । इसके बदले शिक्षक जग से, देखो क्या पाता है । हर युग में चाणक्य सा कोई, हाय छला जाता है ॥ इंद्रासन ना ले ले तप से, मधवा भय से बोला । अहिल्या गौतम के अमृत से, जीवन में विष घोला । विश्वामित्र की भंग तपस्या, छल से करवाई थी । सत्ता रक्षा को पृथ्वी पर, इंद्र परी आई थी । काम क्रोध मद लोभों का फिर, दोष मढ़ा जाता है । हर युग में चाणक्य सा कोई, हाय छला जाता है ॥ नेतृत्व से परिपूर्ण बनाके, गढ़ता कितने नेता । मंत्री हो या भूप सभी को, रुप यही हे देता । पर सत्ता धारी बनते ही, लोग मदांध हुए हैं । काट दिए सिर उनके जिनके, झुक कर पांव छुए हैं । शस्त्र निपुण कर देने वाला, वाण यहां खाता है । हर युग में चाणक्य सा कोई, हाय छला जाता है ॥ नंद वंश ने एका ...
गुरु की महिमा अगर ना होती
कविता

गुरु की महिमा अगर ना होती

********* रचयिता : दीपक्रांति पांडेय मेरा मार्ग था कांटों पूर्ण, जीवन मेरा था अपूर्ण, मार्ग था मेरा कितना छोटा मैं यों थी ज्यों सिक्का खोटा। राहों में भटक सी जाती, मेरी कीमत कुछ ना होती। मिलता ना सानिध्य आपका, दुनियां बस ताने देती। गुरुवर आपको करूं प्रणाम, मिला मुझे जो भी सम्मान, तुच्छ था मेरा सारा ज्ञान, मै थी मेंढक कूप समान। जीवन मेरा व्यर्थ हीं जाता, ज्ञान सृजन ना होने पाता। महिमा अगर कहीं ना होती, बिन प्रकाश सम मैं ज्योती। मातु-पिता से जीवन पाया, अपनों से हर स्नेह कमाया, जीवन का हर मंत्र बताया, सच्चा ज्ञान आपसे पाया। बदली मेरी हर एक काया, पूर्ण ज्ञान है आपसे आया। गद-गद हो मैं वंदन करती, ह्रदय से अभिनंदन करती। नित नूतन उमंग है मिलती, धूल चरण की माथे धरती। हुआ सार्थक जीवन मेरा, गुरु वंदन मैं नित्य हीं करती। अंधकार जीवन से हर ते, जीवन ज्योत उजागर कर दे। यह जीवन था निसप्राण, मिल...
परवाना
ग़ज़ल

परवाना

********** रचयिता : डाॅ. हीरा इन्दौरी परवाना सरकारी रख। राग सभी दरबारी रख।। दाल रखी तरकारी रख। रोटी गरम करारी रख।। चाहे दिल में आग लगे। होठों पर फुलवारी रख।। जैसे मिसरी घोली हो। बोली ऐसी प्यारी रख।। करजा लेने दैने की। दूर अलग बीमारी रख।। नंगा नाचे सङकों पर। कुछ तो परदादारी रख।। बात सही तेरी लेकिन। कुछ तो बात हमारी रख।। गीत गजल पढना है तो। "हीरा" फिर तैयारी रख।। परिचय :- नाम : डाॅ. "हीरा" इन्दौरी  प्रचलित नाम डाॅ. राधेश्याम गोयल जन्म दिनांक : २९ - ८ - १९४८ शिक्षा : आयुर्वेद स्नातक साहित्य लेखन : सन १९७० से गीत, हास्य, व्यंग्य, गजल, दोहे लघु कथा, समाचार पत्रों मे स्वतंत्र लेखन तथा विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाओं का पचास वर्षों से प्रकाशन अखिल भारतीय कविसम्मेलन, मुशायरों में शिरकत कर रचना पाठ, आकाशवाणी तथा दूरदर्शन पर रचना पाठ विभिन्न साहित्यिक सामाजिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित विषेश : आध्यात्...
है सलाम
कविता

है सलाम

*********** रचयिता : किशनू झा "तूफान" है सलाम, है सलाम, है सलाम, है सलाम। दे गये देशहित, प्राण उनको सलाम। जां लुटा दी उन्होंने, वतन के लिए । चुन लिया है तिरंगा, कफन के लिए। कतरा कतरा बहाकर के अपना लहू, कर गये हैं समर्पित, चमन के लिए। उनके घर बन गये, जैसे तीरथ के धाम। है सलाम, है सलाम, है सलाम, है सलाम। धरातल, गगन ये, समय रुक गया। जब गये छोड़कर, हर ह्रदय झुक गया। हो गये जो अमर, अब युगों के लिए। हम जपें सुबह शाम, उन शहीदो का नाम। है सलाम, है सलाम, है सलाम, है सलाम। राष्ट्र ध्वज था कफन, यह भी अर्ग मिल गया। यह धरा छोड़ दी उनको, स्वर्ग मिल गया। जब गये होंगे ईश्वर के, घर पर शहीद। झुक शहीदों का स्वागत किये, होंगे राम। है सलाम, है सलाम, है सलाम, है सलाम। राष्ट्र के सामने था, धर्म झुक गया। घाव को देखकर, के मरहम झुक गया। हिन्दुओं, मुस्लिमों ने किया था नमन, छोड़कर देश को जब गये थे कलाम। है सलाम...
आधार है गुरु
कविता

आधार है गुरु

*********** रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' शिष्य की योग्यता का   आधार है गुरु... पावन बहती गंगा की   धार है गुरु... सत्य,न्याय,निष्ठा,प्रकाश की ओर ले जाने वाला मार्ग है गुरु... उतार-चढ़ाव की स्थिति में अपने लक्ष्य से विचलित न होने देने वाला साहस भी देता है गुरु... हार और जीत को समदर्शी दृष्टि से देखने वाली दृष्टि भी देता है गुरु... कोयले की खान में हीरे   को पहचानने की परख भी देता है गुरु... यहाँ तक की सारी दुनियाँ के गुरु का भी होता गुरु... लेखक परिचय :-  नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन " आप ...
हिन्दी
कविता

हिन्दी

*********** रचयिता :  दिलीप कुमार पोरवाल "दीप"  यदि हम कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक एक रहना चाहते हैं, तो इसका माध्यम सिर्फ हिंदी ही हो सकता है। हिंदी हिंद कंद छंद वृंद, मंद द्वंद नंद बस आनंद ही आनंद सप्तसुरो के कलरव से सरोबार हुई हिंदी वीणा के तारों से झंकृत हुई हिंदी मानसपुत्रों के स्वरों से अलंकृत हुई हिंदी कश्मीर के किरीट से कन्याकुमारी के तट तक उपकृत हुई हिंदी। लेखक परिचय :- नाम :- दिलीप कुमार पोरवाल "दीप" पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल माता :- श्रीमती कमला पोरवाल निवासी :- जावरा म.प्र. जन्म एवं जन्म स्थान :- ०१.०३.१९६२ जावरा शिक्षा :- एम कॉम व्यवसाय :- भारत संचार निगम लिमिटेड आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी रचनाएँ प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद ...
गुरुजी
कविता

गुरुजी

************ रचयिता : सौरभ कुमार ठाकुर अज्ञानता दूर करके गुरुजी ने, ज्ञान की ज्योती जलाया है। गुरु जी के चरणों में रहकर, हमने सब शिक्षा पाया है। गलत राह पर भटके जब हम, गुरुजी ने ही राह दिखाया है। सत्य मार्ग पर चलने को, गुरुजी ने दिशा दिखाया है। गुरुजी का आदर करके, हमने आशीर्वाद पाया है। क्या है दुनिया, कैसी है दुनिया? गुरुजी ने हमें बताया है। असाक्षरता के अंधरे में, गुरुजी ने शिक्षा का दीप जलाया है। पढ़-लिखकर क्या करें हम, गुरुजी ने यह भी हमें बताया है। इस भरी-पूरी दुनिया का, गुरुजी ने महत्व समझाया है। बीच धार से बाहर निकलना, गुरुजी ने हमें सिखाया है। मुश्किलों के सामने डटना, गुरुजी ने यह भी हमें बताया है। लाख मुसीबतों में डट कर खड़े रहना, गुरुजी ने हमें सिखाया है । हमेशा बड़ों की आदर करना, गुरुजी ने हमें सिखाया है । हमें आगे बढ़ने का रास्ता, गुरुजी ने ही दिखाया है । सबको ज्ञान बाँटते ...
तीज विशेष -खटमल की सरगही
कविता

तीज विशेष -खटमल की सरगही

************ रचयिता : भारत भूषण पाठक उठकर अहले सुबह तीज के दिन। घड़ी में बजे थे तभी साढ़े तीन।। बोली खटमल की तब पत्नी । जानूँ ...सरगही लेट्स राॅक्स। खटमल प्यारा धीरे- से बोला जानूँ..... सरगही हाऊ यू राॅक्स।। बोली फिर से खटमल की पत्नी। बनकर थोड़ी -सी मीठी चाश्नी।। प्यारे प्रियतम पति देव जी हमारे। यह बात नहीं समझ आती तुम्हारे।। दिन भर करना है मुझे उपवास। होता नहीं है क्या तुम्हें विश्वास ।। जाओ मानव का ला दो खून। चौंक गया यह पति फिर सुन।। बोला आई एम सो शाॅक्ड। वाट डू यू से ओ माई गाॅड।। बोली फिर भी खटमल की पत्नी। जानूँ ,इट्स नॉट ए प्राॅब्लेम। सरगही तो राॅक्स सो राॅक्स। सो जानूँ सरगही लेट्स राॅक्स।। लेखक परिचय :-  नाम :- भारत भूषण पाठक लेखनी नाम :- तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी :- ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका(झारखंड) कार्यक्षेत्र :- आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग...
कुछ लोग दूसरो को मिटाते मिटाते खुद ही मिट जाते है
कविता

कुछ लोग दूसरो को मिटाते मिटाते खुद ही मिट जाते है

*********** जीतेन्द्र कानपुरी जिसमे कुछ करने का साहस नही होता वो लोग दूसरों पर उगलियॉ उठाते है ।। धूल मे उड़ जाती है सारी जिन्दगी । फिर भी अपनी पीठ थपथपाते है ।। याद रखना जिन्दगी बहुत कीमती है जो नही समझते , वही मात खाते है ।। जिन्हें खबर नहीं होती सूरज निकलने की वो दिन को भी रात बताते है ।। रोशनी मे रहकर भी ,अधेरा खाते है । इनका भरोसा नहीं ,किसी से भी उलझ जाते है कुछ लोग होते ही है ,,,,,,ऐसे बेपरवाह । दूसरों को मिटाते मिटाते ही खुद मिट जाते है ।। लेखक परिचय :- राष्ट्रीय कवि जीतेन्द्र कानपुरी का जन्म ३०-०९-१९८७ मे हुआ। बचपन से कवि बनने का कोई सपना नही था मगर अचानक जब ये सन् २००३ कक्षा ११ मे थे इनको अर्धरात्रि मे एक कविता ने जगाया और जबर्जस्ती मन मे प्रवेश होकर सरस्वती मॉ ने एक कविता लिखवाई। आर्थिक स्थित खराब होने की बजह से प्रथम कविता को छोड़कर बॉकी की २०० कविताऐ परिस्थितियों पर ही ...
जाम लब से छलकता नही है
कविता

जाम लब से छलकता नही है

************ रचयिता : मुनीब मुज़फ्फ़रपुरी मैकदों भूल जाओ मुझे तुम जाम लब से छलकता नही है तेरी आँखों में अब प्यार हमदम पहले जैसा झलकता नही है यूँ बग़ीचे में हैं फूल इतने कोई तुझसा महकता नही है तुम मुझे याद आते नही हो अब मेरा दिल धड़कता नही है पहले थी कुछ ख़यालों की उलझन फ़र्क़ अब मुझको पड़ता नही है बारिशों में जो ख़ुशबू थी पहले अब वो बादल बरसता नही है से सबा उससे जा कर के कहना तेरा आशिक़ तड़पता नही है मैं उसे याद करता नही हूँ वो भी मुझमें उलझता नही है यूँ ग़ज़ल मैंने कहली है लेकिन हाथ मेरा बहकता नही है वो सफ़र से परिशाँ है लेकिन हमसफ़र साथ रखता नही  है यूँ ‘मूनीब’ उससे दूर होगए हम वो निगाहों में जंचता नही है। लेखक परिचय :- नाम: मुनीब मुजफ्फरपुरी उर्दू अंग्रेजी और हिंदी के कवि मिथिला विश्वविद्यालय में अध्ययनरत, (भूगोल के छात्र)। निवासी :- मुजफ्फरपुर कविता...
अब मेहनत को फल तौ निकरैे ?
ग़ज़ल

अब मेहनत को फल तौ निकरैे ?

=============== रचयिता : प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" अब मेहनत को फल तौ निकरैे ? दो नइं, एक फसल तौ निकरैे ? ट्यूबवेल तौ, सौ खुदवा लो, जा जमीन में जल तौ निकरैे ? जस के तस हैं, प्रश्न जुगन सें, इन प्रश्नों कौ, हल तौ निकरै ? सन्नाटे से खिंचे गांव में, थोड़ी चहल-पहल तौ निकरै ? "प्रेम" मुनाफ़ा गओ चूल्हे में, लग्गत लगी, असल तौ  निकरै ? लेखक परिचय :-  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ - "पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  पाक्षिक, मासिक, त्रैमासि...
आज तीज है तुम्हारा
कविता

आज तीज है तुम्हारा

*********************** रचयिता : शशांक शेखर अच्छा आज तीज है तुम्हारा निर्जल उपवास रखोगी मेरी लम्बी उम्र के लिए तो इसके बदले उपहार चाहिए तुम्हें व्रत के बहाने मेरी जेब ढीली चाहिए तुम्हें उपहार में सदमा दूँ तुम्हें हृदय को बेधड़क कर दूँ तुम्हारी चलो रहने दो तुम्हारे पापा को हृदय रोग है कहीं अनुवंशिकता हुयी और कुछ हो गया तुम्हें तब तो मेरे बुढ़ापे की शाम अधूरी रह जाएगी क्या करूँ बहुत पेट में दर्द हो रहा है इच्छा हो रही है बता ही दूँ तुम्हें अपने पेट का दर्द कम कर ही लूँ अच्छा सदमे की तरह नहीं कहानी की तरह सुनाता हूँ तुम्हें एक बात बतानी है हौले से बता ही देता हूँ तुम्हें तुम्हें याद हैं चलचित्र निर्माता यश चोपड़ा जिनकी कई अनमोल कृतियाँ हैं सिलसिला अभिमान और ना जाने कितनी उनमें से एक है दिलवाले दुल्हनियाँ ले जाएँगे भी है हमारे किशोरावस्था के चलचित्र यूँ तो हम हम हैं ...
टकरा गईं आँखें
कविता

टकरा गईं आँखें

*************************** रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' हुस्न की दीवार से वो तो टकरा गई चाँदनी चाँद से भी है शरमा गई मज़हबी लोग भी मोहब्बत को करने लगे तेरी मोहब्बत ही मज़हब पर असर कर गई तेरी चाहत ने उसपर कयामत है ढाई आंखों से आंखें  लड़कर भी हैं मुस्कुराईं चाह में दर बदर तेरा इस कदर मिलना तू शाम थी या सुबह मेरे समझ में न आई लेखक परिचय :-  नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन " आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प...
शिक्षक पर मुक्तक
मुक्तक

शिक्षक पर मुक्तक

******************************* रचयिता : रशीद अहमद शेख 'रशीद' सृष्टि के सारे उत्सव शिक्षक होते हैं! प्रकृति के विस्तृत वैभव शिक्षक होते हैं! जीवन शाला में अनंत शिक्षक हैं किन्तु, कभी-कभी अपने अनुभव शिक्षक होते हैं! युगों-युगों से करता है वह ज्ञान-दान जग में अविराम! चरण कोई छूता है उसके कोई करता उसे सलाम! धर्म-जाति, भूगोल से परे उसका शुभ इतिहास, गुरूदेव,शिक्षक,अध्यापक,व्याख्याता उसके उपनाम। हितकारी अपरिमित गुणों का सुखदाई भंडार है शिक्षक! ज्ञान दीप है, सकारात्मक अनुभव का संसार है शिक्षक! प्रमुख परामर्श दाता, पंडित, पारंगत, निज विषय प्रवीण, राष्ट्ररूपी उच्चतम दुर्ग का अविचल दृढ़ आधार है शिक्षक! लेखक परिचय :-  नाम ~ रशीद अहमद शेख साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अ...
मैं सावन के गीत लिखू पर
कविता

मैं सावन के गीत लिखू पर

********** रचयिता : विनोद सिंह गुर्जर मैं सावन के गीत लिखू पर अभी लिखे ना जाऐंगे। झूलों और मधु गीतों के शब्द संवर ना पाऐंगे।। मन में एक सैलाब उठा है जन-गण-मन के क्रंदन  का। भ्रष्टाचार से दूषित वायु और मांटी के चंदन का। आज भुजाऐं कवि की कंपित और लेखनी बोल रही। भारत मां के गद्दारों के, छुपे राज वो खोल रही।। नेताओं के वादे सुनकर पाँच साल कब बीत चले। इनकी मीठी चुपड़ी बातों के, घट अब सारे रीत चले।। रोड हमारी बनी नहीं, पानी घर तक ना पहुँचाया। किसको व्यथा सुनायें अपनी, किसने हमको समझाया। अपराधों को जन्म दे रहे नित नूतन परिवेश में। कल फिर बनकर आयेंगे भाग्य विधाता देश में।। जिसके कानो में जन की पीड़ा का, दर्द अरे कुछ कहता हो। किसी गरीब के आंख का आंसू , जिसकी आंखों बहता हो।।... वही शास्त्री जैसा नेता आज हमें नहीं दिखता है। अपनी जेब को भरने वाला सफेद पोश में दिखता है।। नेहरू कट टोपी पहन युवाओं क...
परिश्रमि राहि
कविता

परिश्रमि राहि

============================= रचयिता : राजेश कडोले "मिली है, जिंदगी इसे तू बेकार मे मत गवाना। थोड़ा सब्र रखना और बहुत पसीना बहाना। आज नहीं तो कल तू जीत जाएगा। यही भरोसा तू अपने आपको दिलाना। मिली है जिंदगी इसे तू बेकार में मत गवाना। और एक बात याद जरूर रखना। भला दूसरों का करना और अपना कर्तव्य मत भूलना। भले ही कछुए की चाल चलना पर खरगोश की तरह मत उछलना। मिली है जिंदगी से तू बेकार में मत गवाना। लोग तुझे रोकेंगे, तू मत रुकना और उनको कुछ मत समझाना। बस तू चलते रहना और लोगों से किताबों से सीखते रहना। विश्वास रखना कि एक न एक दिन मंजिल मिलना है, यही हौसला रखना। बस तू चलते रहना और आगे बढ़ते रहना। मिली है जिंदगी इसे तू बेकार में मत गवाना। लेखक परिचय :-  राजेश कडोले उपनाम :- कविराज जन्मतिथि :- २६/०६/१९९८ भाषा ज्ञान :- हिंदी, अंग्रेजी शिक्षा :- इंजीनियरिंग  ट्रेड  (आईटीआई),बीएससी, जर्नलिज्म (...
हिंदी रक्षक  मंच तुम्हें नमन
कविता

हिंदी रक्षक  मंच तुम्हें नमन

============================= रचयिता : श्याम सुन्दर शास्त्री हिंदी रक्षक  मंच तुम्हें नमन करते हम अभिनन्दन विश्व पटल  भारत धरा पर स्थित तेरा सदन लेखक,कवि, रचनाकार का हो रहा यहां सम्मिलन वेद ऋचाओं से जहां होता पूजन ,हवन मातृ , पितृ, देवों का जहां होता चरण वंदन गद्य,पद्य , साहित्य रचना  तुम्हें सुमन समर्पण नव उपवन सृजन पाता छत्रछाया में मार्गदर्शन सब पाते सम्मान अलंकरण, पुलकित जन मन लेखक परिचय :- श्याम सुन्दर शास्त्री, सेवा निवृत्त शिक्षक (प्र,अ,) मूल निवास:- अमझेरा वर्तमान खरगोन शिक्षा:- बी,एस-सी, गणित रुचि:- अध्यात्म व विज्ञान में पुस्तक व साहित्य वाचन में रुचि ... आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करन...
क्या लाए ? क्या ले जाओगे ?
ग़ज़ल

क्या लाए ? क्या ले जाओगे ?

=========================== रचयिता : प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" क्या लाए ? क्या ले जाओगे ? क्या खोया है, जो पाओगे ? जिस दिन मौत तुम्हें घेरेगी, जाग रहे हो, सो जाओगे ? ठहरो, एक सांस तो ले लूं, इतनी भी मोहलत पाओगे ? अभी पड़ा है पूरा जीवन, कब तक ख़ुद को बहलाओगे ? बोझ बढ़ाते ही जाते हो, इतना बोझा ? ढो पाओगे ? "प्रेम" बता दो, कुछ बदलोगे ? या सब जैसा दुहराओगे ? लेखक परिचय :  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ -"पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  ...
मै कल भी अकेला था आज भी अकेला हूँ
कविता

मै कल भी अकेला था आज भी अकेला हूँ

============================= रचयिता : जीतेन्द्र कानपुरी खतरो से खेला हूँ बहुत दर्द झेला हूँ ।। मै कल भी अकेला था आज भी अकेला हूँ ।। लोग मिलते है हजारो मगर सब स्वार्थ से बस इसी बात का गम बहुत झेला हूँ ।। मै कल भी अकेला था आज भी अकेला हूँ ।। लेखक परिचय :- राष्ट्रीय कवि जीतेन्द्र कानपुरी का जन्म ३० -०९ १९८७ मे हुआ। बचपन से कवि बनने का कोई सपना नही था मगर अचानक जब ये सन् २००३ कक्षा ११ मे थे इनको अर्धरात्रि मे एक कविता ने जगाया और जबर्जस्ती मन मे प्रवेश होकर सरस्वती मॉ ने एक कविता लिखवाई। आर्थिक स्थित खराब होने की बजह से प्रथम कविता को छोड़कर बॉकी की २०० कविताऐ परिस्थितियों पर ही लिखीं, इन्हे सबसे पहले इनकी प्रथम कविता को नौएडा प्रेस क्लब द्वारा २००६ मे सम्मानित किया गया।इसके बाद बिवॉर हीरानन्द इण्टर कॉलेज द्वारा हमीरपुर मे, कानपुर कवि सम्मेलन द्वारा, अरमापुर पुलिस द्वारा, प्रकाश मह...
मेरा मन
कविता

मेरा मन

======================== रचयिता : अनुपम अनूप "भारत" कई दिनों से पूछँ रहा मैं, भूले भटकें मेरे मन से। कहा गई शरारते क्यूँ, खुश रहता यूँ बेमन से। कभी हुआ करती थी बातें, क्लास रूम फुल्की ठेले में। कितना मजा आया करता था, सब संग जाते थे जब मेले मे। बेल्ट मे रस्सी बाधँ बाधँ कर, फिर सबकी पूछँ बनाते थे। बिना बताए हसँ हसँ कर, सब अपना पेट दुखाते थे। कितनी बारी ही सबसे ज्यादा, नम्बर लाने की शर्त लगाई थी। प्रभू कृपा दुआ मेहनत से, हर बार सफलता पाई थी। बड़ा मजा आया करता था, थके हुए कोमल बचपन मे। कई दिनों से पूँछ रहा मैं, इस भूले भटकें मेरे मन से। लड़ते थे खुब ताल ठोककर, खूब शरारत करते थे। काम पड़े तो बड़े प्यार से, भाई भाई कहते थे। नादानी थी मनमानी थी, कुछ हरक़त बचकानी थी। कितनी भी करें गलतियाँ, पर दिल मे न बेमानी थी। आज सोचता कभी कभी मैं, कितना बदल चुका सच से। कई दिनों से पूछँ रहा मैं, भूले ...
लगा मैं हवा हूँ
कविता

लगा मैं हवा हूँ

======================== रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' लिखूँ मौसम की क्या ताकत   तेरे कदमों में लाने को    मुशाफ़िर बन चुका हूँ मैं      तेरी चाहत को पाने को... बना हूँ सिरफ़िरा खुद मैं अभी आज़ाद बनने को लगा मैं हूँ हवा की बारिश खुद को भिगाने को...   यहाँ की भीड़ बस्ती को मैं हवा का झोंका लगता हूँ यहाँ की ख्वाब खामोशी के बदले ज़रा सा प्यार दो मुझको... लेखक परिचय : नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन " आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं...
इतना आसान नहीं की कोई मेरी जड़ों को खोद लेे
कविता

इतना आसान नहीं की कोई मेरी जड़ों को खोद लेे

============================= रचयिता : जीतेन्द्र कानपुरी आज भी मै अपने हालातो से लड़ रहा हूँ । कोई मेरी जड़े खोद रहा है मै और भी गहरा हो रहा हूँ ।। इतना आसान नहीं की कोई मेरी जड़ो को खोद ले । क्योंकि मै पाताल के पानी से सिंचित हो रहा हूँ  ।। लेखक परिचय :- राष्ट्रीय कवि जीतेन्द्र कानपुरी का जन्म ३० -०९ १९८७ मे हुआ। बचपन से कवि बनने का कोई सपना नही था मगर अचानक जब ये सन् २००३ कक्षा ११ मे थे इनको अर्धरात्रि मे एक कविता ने जगाया और जबर्जस्ती मन मे प्रवेश होकर सरस्वती मॉ ने एक कविता लिखवाई। आर्थिक स्थित खराब होने की बजह से प्रथम कविता को छोड़कर बॉकी की २०० कविताऐ परिस्थितियों पर ही लिखीं, इन्हे सबसे पहले इनकी प्रथम कविता को नौएडा प्रेस क्लब द्वारा २००६ मे सम्मानित किया गया।इसके बाद बिवॉर हीरानन्द इण्टर कॉलेज द्वारा हमीरपुर मे, कानपुर कवि सम्मेलन द्वारा, अरमापुर पुलिस द्वारा, प्रकाश महि...