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पद्य

दो लालो का जन्म
कविता

दो लालो का जन्म

********** संजय जैन मुंबई २ अक्टूबर का दिन, कितना महान है। क्योकि जन्मे इस दिन दो भारत मां के लाल है।। सोच अलग थी दोनों की, पर थे समर्पित भारत के लिए। इसलिए दिनों को हम लोग याद करते है। और दोनों के प्रति, श्रध्दा सुमन अर्पित करते है। और उन्हें दिल से आज याद करते है।। सत्य अहिंसा के बल पर हमे दिलाई आज़दी। और सत्यग्रह करके मजबूर कर दिया अंग्रेजो को। और उन्हें छोड़ना पड़ा भारत देश को। और मिल गई हमे आज़दी सत्य अहिंसा के पथ पर चलकर।। याद करो उन छोटे कद वाले इंसान को। जो सोच बहुत बड़ी रखते थे। और हर कार्य भारत के हित मे करते थे। तभी तो उन्होंने नारा दिया था, जय जवान जय किसान। ये ही है भारत की आन मान और शान।। दोनों के प्रति आदर भाव रखते हुए। हम उन्हें श्रध्दांजलि अर्पित करते है। और भारत माँ को प्रणाम करते है। कि ऐसे लालो को आपने जन्म दिया हिंदुस्तान में।। .लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्र...
“माँ – बाप” के चरणों की खुशी
कविता

“माँ – बाप” के चरणों की खुशी

********** विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) जिस तरह ये रोज - रोज सारी कलियां खिलती है, बहुत खुशी माँ-बाप के चरणों मे मुझे मिलती हैं। ईश्वर से भी बढ़कर करता इन दोनों का सेवा मैं, तभी तो रोज पाता हूँ आशीर्वाद का मेवा मैं। हम बच्चों के खातिर देखो ,कितने दुःख उठाये है, कदर उनकी सदा ,जो इस दुनिया को दिखाये है। मानो मेरी बात सभी तुम हाथ जोड़कर विनती है बहुत खुशी माँ-बाप के चरणों मे मुझको मिलती हैं। तुम सोचो माँ-बाप ने तुमसे, कितना आस लगाया है, हाथ पकड़कर चलना जिसने, इस जग में सिखाया है। पूछ लेना उनलोगों से जिन्होंने ठोकर खाया है, माँ-बाप को छोड़ कोई, दूजा काम न आया है। मानो मेरी बात सभी तुम हाथ जोड़कर विनती है बहुत खुशी माँ-बाप के चरणों मे मुझको मिलती हैं। सुन मुसाफिर तू कही जो इनका दिल दुःखायेगा, भटकेगा इस जग में और दर-दर ठोकर खायेगा। ये फरेबी दुनिया जिस दिन, तुमको खूद बदनाम करेगी, माँ-बाप क...
चाय गरम
कविता

चाय गरम

********* विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) चाहे कोई मरे चाहे भाड़ ही में जाए हमको तो मिले बस गरमागरम चाय चुस्कियां भरें और बांचे अखबार दोसौ मरे, दो घायल, चार बलात्कार खुद के बचे रहने का जश्न हम मनाए।। हादसों को देखे सिर्फ बन तमाशबीन इमदाद की बात पर हो जाएं उदासीन फोकट में कौन साल्ला थाने कोर्ट जाए! हमदर्दी के चंद जुमले दोहराये वायदों के लॉलीपॉप जन को थमाए पांच साल के लिए फिर सबको भूल जाए चाय गरम चाय, गरमागरम चाय।। . लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दुबई में आयोजित मराठी साहित्य सम्मेलन में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व, वरिष्ठ कला समीक्षक, रंगकर्मी, टीवी प्रस्तोता, अभिनेता के रूप ...
बापू जी
कविता

बापू जी

********** शाहरुख मोईन अररिया बिहार बापू जी कैसे समान करूं मैं तेरी उन सीखों का, मुल्क तो कर्जदार है अब भी भगत सिंह के चिखो का। जवान लाशों के सौदागर थे तब भी सियासतदान, बेईमानों ने बेईमानी की कब बदला हिंदुस्तान। जहरीली सियासत में देखो बांग्लादेश और पाकिस्तान, बेटे आज दुश्मन हो गए, जो थे ज़िगर ए हिंदुस्तान। आजाद भारत का पहला आतंकी कौन था, अहिंसा प्रेमी बापू का कातिल था वो, गोडेस उसका नाम। मुल्क के ज़र्रे ज़र्रे में वीरों ने प्राण गंवाए, ज़िक्र उसका ही हो,ता जो थे बेरिस्टर सियासतदान। आज के दौर में चंद नाम ही दिखते हैं शाहरुख़, तगमे के हकदार थे जो, वो ही दिखते हैं गुमनाम। .लेखिक परिचय :- नाम - शाहरुख मोईन अररिया बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ...
जो मैने कहा दिया
ग़ज़ल

जो मैने कहा दिया

********** नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. जो मैने कहा दिया कहना नहीं था। मुझे इस बात का हर्जा नहीं था। मेरीआसानियाँ थी किस तरहाँ की क़दम भर का जहाँ रस्ता नहीं था। अग़र वो खूबसूरत है तो सोचो, क्यों उसके सामने पर्दा नहीं था। समन्दर है खफ़ा इन कश्तियों से, यूँ उनका डूबना अच्छा नहीं था। जताती है ये आँखें भूल अपनी, हमें इस रात से लड़ना नहीं था। लेखक परिचय :- नाम ...नवीन माथुर पंचोली निवास.. अमझेरा धार मप्र सम्प्रति... शिक्षक प्रकाशन... देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन। तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान... साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें ...
क्या है व्यवस्था
ग़ज़ल

क्या है व्यवस्था

********** संजय जैन मुंबई दिया जिन्होंने छोड़, अपने लोगो को। तभी लड़खड़ाई हमारी, देश की व्यवस्था। मुझे लग रहा है कि, कही लुप्त न हो जाये। हमारे देश की वो प्यारी संस्कृति, तभी पढ़े लिखे लोग, जा रहे विदेशों को।। पढ़े लिखे लोग बेच रहे है, देश में लाटरी के टिकेट। अनपढ़ लोग पढ़ा रहे है, बच्चो को स्कूलों में । लगा सकते हो तुम, अंदाजा हमारी व्यवस्था का। तभी विध्दामान लोग, चले जा रहे विदेशों को।। सुधारना होगा हमे अपनी, देश की व्यवस्था को। वरना अकाल पड़ जाएगा, पढ़े लिखे लोगो का। क्योंकि सब कुछ बदल रहा है, लोगो की सोच से। इसलिए तो हम रो रहे है, अपनी व्यवस्था पर।। .लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-...
यही है मेरी राय…
कविता

यही है मेरी राय…

********** दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) दुनिया के अनुरूप रहिये, यही है मेरी राय। ज़रूरी नही की पसंद आपकी, दुनिया को पसंद आये। जब कोई ना मांगे आपसे, तो राय कभी मत दे देना। बिना वजह तुम लोगो से कोई दुश्मनी मत ले लेना। इधर उधर तब देखना जब कोई तुम्हे बताये- दुनिया के अनुरूप रहिये, यही है मेरी राय। ज़रूरी नही की पसंद आपकी, दुनिया को पसंद आये। वैसे तो इस दुनिया मे कोई किसी को नही पूछता। सबको बुराइयों के अलावा कोई काम नही सूझता। सही कहने वाले को ही, सारे गलत बताये- दुनिया के अनुरूप रहिये, यही है मेरी राय। ज़रूरी नही की पसंद आपकी, दुनिया को पसंद आये। में तो बस जानू इतना कि रखो खुदी का ध्यान। जब तक कोई ना मांगे मत देना तुम कोई ज्ञान। बेवजह गाली खाने की नौबत ना आ जाये- दुनिया के अनुरूप रहिये, यही है मेरी राय। ज़रूरी नही की पसंद आपकी, दुनिया को पसंद आये। पड़ोसी का हो झगड़ा और दोस्तो का ह...
बापू तेरे तीन बंदर
कविता

बापू तेरे तीन बंदर

********** विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) बापू तेरे तीन बंदर। पड़े कैद में देखो अंदर।।... बुरा मत बोलो बुरा बोलने वाले आगे, सत्य बोलने वाले भागे। गुरूओं का अपमान हो रहा, चेलो के अब भाग्य जागे। मतलब में सब तैर रहे हैं। बिन हाथों के पैर रहे हैं । बुरा मत देखो बुरा देखना ही पड़ता है। अच्छा घूरे पर सड़ता है।। एक तरफ मानवता रोती, छप्पन भोग श्याम चड़ता है। पत्थर से आशाऐं जोड़ी। लालच की चूनर ओढ़ी।। बुरा मत सुनो बड़ा मजा है, निंदा करना । अपनों को शर्मिदा करना।। गंगा को मैली बतलाकर, दाग दिखाकर चंदा करना।। अच्छा है तू आज नहीं है। बेशर्मों को लाज नहीं है।। राम वेश में रावण यहां पर। लक्ष्मण नजरें सीता मां पर।। पैसे के सब आज पुजारी। दया भाव ना, बस गद्दारी।। गांधी जी शत नमन तुम्हें है। सत्य हिंद से दमन तुम्हें है।। परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा मे...
बापू का भारत
कविता

बापू का भारत

********* सुश्री हेमलता शर्मा इंदौर म.प्र. जहां मंदिरों में पढी जाती है कुरान, जहां हिल-मिल रहते है हिन्दु-मुसलमान, गाई जाती है आरतियां मस्जिदों में, देश हित के लिए सभी होते हैं कुर्बान, उस देश का नाम है हिन्दुस्तान।। वैसे तो हिन्दुस्तान में, है बहुत विभिन्नता, जहां वास करते हैं छत्तीस करोड देवता, कई तरह के धर्म, भाषा,लोग हैं देश में, नारा है जिस देश का, अनेकता में एकता, यही है विशेषता कि दृष्टि रखें समान, उस देश का नाम है हिन्दुस्तान।। मिटाया अस्वच्छता का कलंक, स्वच्छता का बापू का सपना, साकार जगत में हमने किया, आओ हम गांधी-सुभाष बन जाये, और विवेकानंद बनकर, जगत में छाये, जिस देश में बापू का सबसे उंचा स्थान, उस देश का नाम है हिन्दुस्तान।।   लेखिका परिचय :-  सुश्री हेमलता शर्मा निवासी : इंदौर मध्यप्रदेश जन्म तिथि : १९ दिसम्बर १९७७ जन्मस्थान आगर-मालवा शिक्षा : स्नातकोत्तर, पी.ए...
सोचा न था …
कविता

सोचा न था …

********** मित्रा शर्मा महू - इंदौर सोचा न था ... सोचा न था कभी बदल जाओगे फूल की जगह कांटे बन जाओगे। आहत है यह दिल मिले तुम्हे अपनी मंजिल। आंसुओं के समंदर में गोता लगाती यह जिंदगी मुबारक हो तुम्हे मिल गई है तसल्ली। वक्त है हमेशा की तरह अपनी रफ्तार में चलता है दिन और रात का चक्र चलता ही रहता है। रात ढलेगा तब सवेरा आएगा आएगा कल सवेरा आएगा प्यासे के पास समंदर भी आएगा राहगीर को राह भी मिल जाएगा। रोक न पाएगा कोई अनवरत बढ़ता जाएगा बढ़ता ही जाएगा , सब पीछे छोड़ता जाएगा .... परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमेंhindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (...
काश …
कविता

काश …

********** रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. काश ... कि तुम समझ पाते मेरे मजबूर दिल के हालात काश ... की तुम देख सकते वो लहरों के तुफानो को कि वो भावनाओ को किस तरह, विचलित करते जा रहे काश ... कि तुम महसूस कर सकते मेरे इश्क़ की गहराइयों को जिसकी कोई सीमा नहीं काश ... कि तुम डूब सकते उस प्यार के दरिया में जो वक़्त के साथ साथ बढ़ते ही जा रहा, और बहते ही जा रहा काश ... कि ये काश ही न होता, बल्कि होती एक खूबसूरत सी हकीकत और होते सिर्फ 'हम' लेखिका परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं,...
नदी बहती नहीं, है कुछ कहती
कविता

नदी बहती नहीं, है कुछ कहती

********** श्याम सुन्दर शास्त्री (अमझेरा वर्तमान खरगोन) नदी बहती नहीं, है कुछ कहती शब्द बोलते नहीं, है आपका दिमाग तौलते बिल्ली रास्ता काट, काटती है आपका अपशकुन। मुसीबत है आती अकेली नहीं, सफलता का मार्ग लाती है साथ अपने। मुहावरे का मतलब, नहीं मुंह आवारा वह तो गागर में है सागर सारा। कहावत नहीं है कोई शिकायत, वह तो है जन की हिफाजत । एक चना भाड़ फोड़ता नहीं, चिंगारी की आग का नहीं मोल। दोस्त,दुश्मन से बड़ा होता है, हर काम में आगे खड़ा होता। अपनी लकीर बढ़ी है करना, प्रगति के पथ पर है चलना। प्रकृति के अनुशासन को स्वीकार करे वसुधैव कुटुंबकम् को अंगीकार करे स्वालंबन ही है जीवन, निज पथ में कुछ करें समर्पण .... . लेखक परिचय :- श्याम सुन्दर शास्त्री, सेवा निवृत्त शिक्षक (प्र,अ,) मूल निवास:- अमझेरा वर्तमान खरगोन शिक्षा:- बी,एस-सी, गणित रुचि:- अध्यात्म व विज्ञान में पुस्तक व साहित्य वाचन मे...
छोड़ दिया है
कविता

छोड़ दिया है

********** बाबा बुद्धेश्वर शुक्ल गोपालगंज (बिहार) दर्द सीने का पैसों से दबा कर छोड़ दिया है, मशीन आदमी को बना कर छोड़ दिया है। चमक है पर महक नहीं बनावट के इस कलाकारी में, नये घर में नई झालर सजा के छोड़ दिया है। चुनावी पान भी गजब का लाल कर जाती है, अभी जनता को बस चुना लगा कर छोड़ दिया है। तलब लगा जो भवँरा को बगीचा घूम कर आया, जरूरत के थे रिश्ते सभी निभाकर छोड़ दिया है। अब तो रिश्वत का ही है बोलबाला इस दुनिया में, मंदिर में भगवान को भी पैसा चढ़ाकर छोड़ दिया है। दर्द सीने का पैसों से दबा कर छोड़ दिया है, मशीन आदमी को बना कर छोड़ दिया है। लेखक परिचय :-  नाम :- बाबा बुद्धेश्वर शुक्ल संप्रति :- लेखन में रुचि है, समाज के लिए एक ऊर्जावान लेखक है। निवासी :- नरहवाँ शुक्ल - गोपालगंज (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते ह...
कभी सोचा न था
गीत

कभी सोचा न था

********** सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. “दिन ऐसे भी आयेंगें, ये कभी सोचा न था, झूठी शिकायत पर जेल जायेंगें, ये भी कभी सोचा न था, अब निवाले भी छीने जायेंगे, सपने में भी ये सोचा न था, नोकरी से खदेड़े जायेंगें, ऐसा भी सोचा न था, नोकरी मिल भी गई तो, पदोन्नति में रोके जायेंगें, गजब, ऐसा कभी सोचा न था, प्रारब्ध में क्या लिखा, नहीं पता, ऐसे अच्छे दिनों को देखेंगें, भूलकर भी कभी सोचा न था, गंगा जमुनी तहज़ीब केे देेेश मेँ, जात पांत में ऐसे जकड़ जायेंगें, ये तो कभी भी सोचा न था” लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) मे...
आप है मेरे…..
गीत

आप है मेरे…..

********** संजय जैन मुंबई कही कोई मेरा दोस्त कही कोई मेरा दुश्मन मगर मुझको है सच में सभी लोगो से बहुत प्यार। करे क्या हम अब, उन सभी लोगो का। जिन्होंने दिया है, हमे बहुत प्यार। इसलिए कविता गीत और लेख, मोहब्बत पर ज्यादा लिखता हूँ। और लोगो के दिलो में, बसने की कोशिश करता हूँ।। निभाता हूँ दिल से हर रिश्ता, तभी तो जल्दी अपनो का बन जाता हूँ। बड़े ही प्यार से हर पल, याद उन्हें सदा करता हूँ। क्योकि में अपने मित्रों को, संदेश स्नेह प्यार का सदा देता हूँ। इसलिए उनके हृदय में बस जाता हूँ।। आप क्या रखते है, मेरे बारे में अपनी राय। और कुछ तो सोचते होंगे। की किस तरह का ये इंसान है। जो लोगो के दिलो में बहुत जल्दी बस जाता है। और प्यार मोहब्बत के, गीतों से लोगो का दिल बैहलाता। और सच्चे सपने लोगो को दिखता है।। .लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में का...
बापू मेरे
कविता

बापू मेरे

********** शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) राष्ट्र पिता थे बापू मेरे राष्ट्र धर्म सिखलाया सत्य अहिंसा के पथ पर चलना भी सिखलाया शान्ति और स्वाभिमान से जीवन जीने की राह दिखाई ऐसे थे महान पुरुष मेरे बापू तब जाकर उन्होंने राष्ट्र पिता की उपाधि पाई . लेखक परिचय :-  नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु...
बापू का सपना
कविता

बापू का सपना

********** मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. आओ मिलकर करें संकल्प, राम राज्य फिर लायेगें, बापू के जो स्वपन अधूरे हम साकार बनायेगें। गाँव बनें सब राज दुलारे, चमकें जैसे नभ के तारे, लड़े न झगड़े आपस मे हम, भेद भाव सब ढा़येगें। छुआ छूत न भेद भाव हो, जनमन के मन प्रेम भाव हो, स्नेह सने आपस में दिखें मिल सद भाव जगायेंगे। बापू के जो स्वपन अधूरे, हम साकार बनायेगें। राम राज्य का पावन मेला भर जाये घर घर यह मेला, सुख संपन्न रहे जन जीवन, ऐसे जतन जुटायेगें। सत्य अहिंसा दिन दूनी हों फूले फले नहीं जूनी हो, ये सब तो सिद्धांत अमर हैं, जग को पाठ पढ़ायेंगे। बापू के जो स्वपन अघूरे, हम साकार बनायेगें। प्रातः भजन राम और सीता, संध्या में रामायण गीता, रघुपति राघव राम भजन से, मोक्ष धाम पा जायेगें, बापू के जो स्वपन अधूरें हम साकार बनायेगें। . लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौ...
मां बाप “अभिशाप या वरदान”
कविता

मां बाप “अभिशाप या वरदान”

********** हरिनंदन यादव गोपालगंज जन्म देकर जिसने हमें इस दुनियां को दिखाया । बोलना, चलना,पढ़ना और लिखना जो हमें सिखाया ।। उनके हाथ भी कुछ ना लगी वो हाथ मलते रह जाते हैं। कैसी ये दुनिया है लोग मां- बाप को भूल जाते हैं।। दिन रात मां मेहनत करती करती नहीं आराम सही। बेटे के लालन पालन में बाप भी कुछ कम नहीं।। बेटे को भरपेट खिला वो बिन खाए सो जाते हैं। कैसी ये दुनिया है लोग मां- बाप को भूल जाते हैं।। बेटा जब बड़ा हो जाता अपने दम खड़ा हो जाता। फिर बड़े खुशी से मां- बाप बेटे की शादी रचाते हैं। कैसी ये दुनिया है लोग मां- बाप को भूल जाते हैं।। बेटे बहू अब यह कहते बहुत किए आप काम सारा, करिए अब आराम जरा। फिर कुछ ही दिन में मां बाप को लात मार भगाते हैं।। कैसी ये दुनिया है लोग मां- बाप को भूल जाते हैं।। दर दर मां बाप भटकते हरिनंदन है ये बात सही। ६० और ७० की उम्र में हो ना पाए काम कोई।। पेट की आग बुझती...
जीवन प्रवाह है
गीत

जीवन प्रवाह है

********** सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. विधा:-गीतिका समांत:-आर पदांत:--भी ============ "जीवन प्रवाह है,तो मजधार भी. एक सपना जो होता साकार भी. माना कि तूफान भी आएंगे मगर, होसले की चाहिये, पतवार भी, मौसम भी ज़ब आयेंगे खुशनुमा, करेंगेँ हम प्यार का इज़हार भी, जीतने का रहेगा हमारा लक्ष, गले से लगायेंगे हम हार भी, सीमा पर डटे रहेंगे सदा हम, दुश्मन पर करेंगे हम प्रहार भी. लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुये है...
आओ चलें पारियों के गांव में
कविता

आओ चलें पारियों के गांव में

********** लक्ष्मीकांत मुकुल रोहतास (बिहार) आओ चलें पारियों के गांव में नदिया पर पेड़ों की छाँव में सूखी ही पनघट की आस है मन में दहकता पलास है बेड़ी भी कांपती औ’ ज़िन्दगी सिमटी लग रही आज पांव में अनबोले जंगल बबूल के अरहर के खेतों में भूल के खोजें हम चित्रा की पुरवाई बरखा को ढूँढते अलाव में बगिया में कोयल का कूकना आँगन में रचती है अल्पना झुटपुटे में डूबता सीवान वो रिश्ते अब जलते अब आंव में डोल रही बांसों की पत्तियां आँखों में उड़ती हैं तीलियाँ लोग बाग़ गूंगे हो गए आज टूटते रहे हैं बिखराव में लेखक परिचय :- लक्ष्मीकांत मुकुल जन्म – ०८ जनवरी १९७३ निवासी – रोहतास (बिहार) शिक्षा – विधि स्नातक संप्रति - स्वतंत्र लेखन / सामाजिक कार्य। किसान कवि/मौन प्रतिरोध का कवि। कवितायें एवं आलेख विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित, पुष्पांजलि प्रकाशन, दिल्ली से कविता संकलन “लाल चोंच वाले पंछी’’ प्रक...
प्रेम धुन सुन रही
कविता

प्रेम धुन सुन रही

*********** भारती कुमारी (बिहार) कुछ उम्मीदें बुन रही, शरद चाँदनी पी रही, मन हीं मन जी रही, प्रिये तुझे चुन रही, प्रेम धुन सुन रही। खुद में सिमट रही, हृदय कुछ कह रही, धरती से अम्बर तक, तुझे हीं मन ढूंढ रही, प्रेम धुन सुन रही। नयन प्रेम पथ निहारती, बस पल-पल पुकारती, आ जाओ अब प्रिये, मन मधुर प्रीत में खो रही, प्रेम धुन सुन रही। . लेखक परिचय :-  भारती कुमारी निवासी - मोतिहारी , बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें...
हिन्दी की अभिलाषा
कविता

हिन्दी की अभिलाषा

********** कंचन प्रभा दरभंगा, बिहार हिन्दी की अभिलाषा है ये सम्पूर्ण एक भाषा है हिन्दी मे सादगी है हिन्दी मे है अपनापन हिन्दी हमारी आशा है हिन्दी की अभिलाषा है हिन्दी के है छन्द निराले लगते जैसे रस के प्याले हिन्दी नही तो निराशा है हिन्दी की अभिलाषा है गद्य पद्य दोनों रूप अनोखे लगते ठंडी हवा के झोंके हिन्दी छात्र की जिज्ञासा है हिन्दी की अभिलाषा है होता पूर्ण व्याकरण ज्ञान बढाता है जग में सम्मान हिन्दी स्वर्ण तराशा है हिन्दी की अभिलाषा है कभी कविता कभी कहानी सुनते कवियों की जुबानी हिन्दी बिना हताशा है हिन्दी की अभिलाषा है ये सम्पूर्ण एक भाषा है . लेखिका का परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ...
तुम आओगे बस आंखों में ये ख्वाब पालते रहते हैं
कविता

तुम आओगे बस आंखों में ये ख्वाब पालते रहते हैं

********** वंदना शर्मा झालावाड़ (राजस्थान) यादों का बिछौना करके हम, दिन -रात तड़पते रहते हैं। तुम आओगे बस आँखों में, ये ख्वाब पालते रहते हैं।। माना कि मैं सुन्दर तो नहीं, तुम चाहो जिसे मैं वो भी नहीं। मैं मीराँँ सी दीवानी नहीं और गोपियों सी मस्तानी नहीं। फिर भी मन-मंदिर में प्रियतम, हम तुझे सजाते रहते है।। तुम भूल गए उन यादों को, पहली बरसात की बूँदों को । वो मिलना -जुलना छुप-छुपकर, सावन के प्यारे झूलों को । हम आज तलक उन झूलों पर, बस तुम्हें झुलाते रहते हैं।। तुझको जो दिए उन वचनों पे, अब तक भी यार समर्पित हैं। सास-ससुर ,परिवार की सेवा, में हर स्वाँस समर्पित है। तुझको जो थी कसम सदा, हम दिल से निभाते रहते हैं।। आँखों के अश्रु जमते गए, जम जमकर प्रिय पहाड़ बने। इस पर्वत से नदियां निकलेगी ,और बाड़ कहीं आ जाएगी । बनके मोरनी बिलख-बिलख बादल को निहारा करते हैं।। हम भोर सँवर कर के प्रियतम, हर रोज...
अपने पथ पर बढता चल
कविता

अपने पथ पर बढता चल

********** स्वाति जोशी पुणे समर नहीं ये महायज्ञ है अर्घ्य नहीं ये अभिषेक है तृण नहीं ये समिधाएं है अपनी आहुति देता चल, अपने पथ पर बढता चल।। प्रणव नाद का स्पंदन सुन श्वास मधुर सरगम की धुन हृदय ताल पर कर नर्तन नाद ब्रह्म में बह अविरल अपनी लय में गाता चल, अपने पथ पर बढता चल।। कर विशेष अब जो है शेष मन-मानस में हो संवेद कृति व कृत्य का दुर्गम मेल जीवन तत्वों का सारा खेल तू अपने पटल पर खेलता चल अपनी धुन में रमता चल।। अपने पथ पर बढ़ता चल... अपने पथ पर बढता चल... . लेखीका परिचय :-  नाम - स्वाति जोशी निवासी - पुणे शिक्षा - स्नातकोत्तर ( प्राणिशास्त्र), पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से स्नातक (एकवर्षीय पाठ्यक्रम) लेखन कार्य - स्वतंत्र लेखन आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच ...
पानी है अनमोल
कविता

पानी है अनमोल

********** संजय जैन मुंबई पानी है अनमोल, समझो इसका मोल। जो अभी न समझोगे, तो सिर्फ पानी नाम सुनोगे। आने वाले वर्षों में, पानी बनेगा एक समस्या । देख रहे हो जो भी तुम, अंश मात्रा है विनाश का। जो दे रहा तुमको संकेत। जागो जागो सब प्यारे, करो बचत पानी की तुम। बूंद बूंद पानी की बचत से, भर जाएगा सागर प्यारा।। बिन पानी कैसे जीयेंगे, पड़े पौधे और जीव जंतु। और पानी बिना मानव, क्या जीवित रह पाएगा। बिन पानी के मर जायेगा। और भू मंडल में कोई, नजर नही आएगा। इसलिए संजय कहता है, नष्ट न करो प्रकृति के सनसाधनों को।। बचा लो पानी वृक्षो और पहाड़ों को। लगाओ और लगवाओ, वृक्षो को तुम अपनो से। कर सके ऐसा कुछ हम, तभी मानव कहलाओगे। पानी विहीन भूमि में, पानी को तुम पहुँचोगे। और पड़ी बंजर भूमि को, फिरसे हराभरा कर पाओगे। और महान कार्य करके, दुनियां को दिखाओगे।। .लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवास...