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पद्य

अस्तित्व खोकर
कविता

अस्तित्व खोकर

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** अस्तित्व खोकर, गुमनाम जीवन जी रहे हैं। अनमोल मिला जीवन, अंधेरे में ढो रहे हैं।। कर गुनाह सब यहाँ, गुमनाम बन जी रहे हैं। जहर घोल जीवन में, अब कर्मों पर रो रहे हैं।। रिश्तो को बिखेर, हर शख्स अधूरे लग रहे हैं। एकांकी जीवन जीने, मजबूर अब हो रहे हैं।। बरसों लगे मुकाम पाने में, पल में गिर रहे हैं। पहचान छुपा सबसे, ऐसे जीवन जी रहे हैं।। जैसा बोया वैसा ही, अपनों संग काट रहे हैं। गलत कार्य गलत नतीजा, देखो वो पा रहे हैं।। राह मालूम नहीं, गुमनाम राहों पर जा रहे हैं। फस रहे दलदल, क्यों रोका नहीं कह रहे हैं।। दूध जले छाछ भी, फूंक-फूंक अब पी रहे हैं। शेष जीवन उजाले में, इस तरह जी रहे हैं।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप ...
त्यौहारों को विराम
कविता

त्यौहारों को विराम

संजय जैन मुंबई ******************** दो महीनों के लिए अब, बंद हुए धार्मिक त्यौहार। नये साल से फिर आएंगे, हिंदुओ के त्यौहार। तब तक मौज मस्ती, तुम सब कर लो। हम भी करते है आराम। क्योंकि प्रकृति ने दिया है, मौका हम सब को इसका।। कितना धर्म कर्म किया है खुद करो, अब अपना मूल्यांकन। क्या खोया और क्या पाया है, खुद ही जान लो इन दिनों में। सच्ची श्रध्दा और भक्ति का, फल हर किसी को मिलता है। क्योंकि भगवान भक्तों पर, दया करुणा भाव रखते है।। अहंकारियों का नाश सदा, स्वंय मनुष्य ही करता है। और दोष विपत्तियों का, वो भगवान पर मढ़ता है। किया नही दान धर्म और फिर भी पाने की चाहात रखता है। अब तुम ही बतलाओ लोगो, क्या बिना कर्म किये कुछ मिलता है? इसलिए ज्ञानी कहते है, श्रध्दा भाव रखो मन मे। फल की चिंता छोड़ कर, गुण गान प्रभु का किया करो।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन ...
मै खुश थी
कविता

मै खुश थी

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** मै खुश थी अपनी तन्हाई में, क्यो स्वप्न दिखाए बहारो के। तन्हाई संग हॅसना रोना या बाते करना बस तन्हाई से, भाई थी मुझको अपनी दुनिया, क्यो स्वप्न दिखाए बहारो के, बही जब जब नयनो से अश्रु धार, गले लगाया तन्हाई ने, जीवन के खट्टे तीखे क्षण मे साथ निभाया तन्हाई ने जब भूख लगी तो गम खाये जब प्यास लगी अश्रु पिये मैने, जब दर्द हुआ दिल तड्प उठा, साथ निभाया तन्हाई ने, कुछ पल को मै जब भटक गयी, आ राह दिखाई तन्हाई ने, मै खुश थी अपनी तन्हाई ने, क्यों स्वप्न दिखाये बहारो के, रोका मुझको बहुत था उसने, पल पल समझाया तन्हाई ने कोई किसी का नही यहाँ कितना बतलाया तन्हाई ने बोली थी ठोकर खा जायेगी रोडे़ है पग पग बिछे यहाँ, महफिल न आये रास तुझे फिर क्यो ख्वाब सजाये तू, मै तेरी ,तू मेरी साथी और न कुछ अब समझे तू, न ही कोई संगी साथी कह गले लगाया तन्हाई ने मै खुश थी अपनी तन्हाई ...
महाभारत छ्ल का विज्ञान
कविता

महाभारत छ्ल का विज्ञान

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** महाभारत तो छ्ल का विज्ञान यह कैसा धर्म ज्ञान? माँ कुंती ने ली कसम इंद्र ने ले ली कवच यह कैसा इंसाफ? किसी ने ले ली पहचान, अर्जुन ने ले ली जान। यह कैसा धर्म ज्ञान महाभारत छ्ल का विज्ञान। अभिमन्यु ने ली मां के गर्भ में ज्ञान। इस खातीर बलिदान दिया, कर्ज चुकाया उसने गर्भ में ना रखा तूने, दीया गंगा की मझधार गंगा पुत्र ने पिता की खातिर, मैंने मां की खातिर बलिदान दिया। कर्ण हूँ मैं सूत पुत्र यही पहचान मिला। ना दिया था जन्म मृत्यु देना क्या उचित हुआ एक मां का कर्तव्य क्या समुचित हुआ। मैंने रुकावटों मे भी अपना पराक्रम दिखाया। तुम्हारे बेटों ने, ज्ञानी गुरुओं से, हमसे क्या ज्यादा सीख पाया। यहां तक की श्री कृष्ण कहे जाते हैं भगवान, कि किया भगवता का अभिमान। अपने पार्थ को दिया गुरु ज्ञान। गलत हो या सही, भगवान कहे वही धर्म रही हम अधर्म के सलाहकार। ना म...
जीवन क्या है
कविता

जीवन क्या है

भारत भूषण पाठक धौनी (झारखंड) ******************** जीवन क्या है एक बहता सागर है झंझावातों में हिलकोरता नाव है कोई अपने अक्ष पर घूमता कोई ग्रह है जीवन हथेली से नितदिन फिसलता रेत है एक समरभूमि है जीवन जब तक प्राण तब तक कर्म कर दो अर्पण कर्म ऐसा हो जिससे अंकुरित हो सके नवजीवन बन कर एक शिक्षक खुद अपना और औरों का अज्ञान मिटा तू स्वरचित . लेखक परिचय :-  नाम - भारत भूषण पाठक लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका(झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास - साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान मिल चुकी है काव्य प्रतियोगिता में। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने ...
करूँ समर्पित
कविता

करूँ समर्पित

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** माँ को करूँ समर्पित जीवन, देश हमारा सुखी रहे। धर्म सभी हों फलदायी, जगह जगह पर ख़ुशी रहे। अमन रहे और चमन रहे, नेह नीर बढ़ता जाये। संदेह भावना नहीं रहे, अलगाव भाव घटता जाये। सरयू के घाट, ठाठ अनुपम, राजा राम सभी के हों। पर्व प्रकाश ह्रदय में हो, पावन कार्य जमीं पर हों। मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में, समभाव प्रीति के दीप जलें। जो भी दुख हों भारत के, हम मिलकर उनको दूर करें। साख़ यूँ ही बढ़ती जाये....पूरी दुनिया में मान रहे। जय हो भारत माता की, बिजू का चर्चित गान रहे।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साह...
क्या तुम सचमुच खुश थी?
कविता

क्या तुम सचमुच खुश थी?

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** पग पग पर दिया साथ तूने पल पल कष्ट सहे दे कर भी अग्नि परीक्षा परित्याग मिला सच सच बताओ सिया क्या तुम सचमुच खुश थी। स्वप्न आंखों में लिए रात रात भर जागी हो कर सुहागन काटा जीवन जोगन सा सच सच बताओ उर्मिला क्या तुम सचमुच खुश थी कोई भाया मन को कह दिया उस को सच बोलने की इतनी बड़ी सजा सच सच बताओ मीनाक्षी (शूर्पणखा) क्या तुम सचमुच खुश थी त्रिलोक विजेता जिसका पति था सुख स्वर्ण का अम्बार फिर भी झुलस गया घर संसार सच सच बताओ मंदोदरी क्या तुम सचमुच खुश थी देवो ने ठगा तुझे ऋषि ने ठुकराया वर्षों रही पाषाण बन तेरा दोष क्या था सच सच बताओ अहल्या क्या तुम सचमुच खुश थी मन रम गया सरिता किनारे क्या मन का रमना पाप है किंचित क्या देर हुई सिर हो गया धड़ से पृथक सच सच बताओ रेणुका क्या तुम सचमुच खुश थी सेवा से बिन मांगे मिला वरदान वरदान बन गया अभिशाप बन कर रह ...
गर्वोक्ति
कविता

गर्वोक्ति

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. ******************** गर्वोक्ति है नही, कोई उचित उक्ति. हो सके तो पा लेँ इससे शीघ्र ही मुक्ति, इसके गर्भ मेँ छिपे हैँ, कमजोर आधार, ढह जायेँगे कभी भी, ये होकर निराधार, इससे ही निकलते हेँ, ऐसे अप्रिय उदगार, सुनने वाले के दिल को करते हेँ तार तार, इतिहास की गहराईयोँ मे हेँ अनेक प्रसँग, गर्वोक्ति का होता है, हमेशा सिरे से मोहभँग, समय रहते सुविचारोँ की बना लेँ, अभेध्य ढाल, ज़ो भेद दे मन के, गर्वोक्ति के सारे मकड्जाल . लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत...
मेरे साथी बनो
कविता

मेरे साथी बनो

शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) ******************** साथ तेरा मिला आज मुझको यहाँ अपने सारे ख्वाबों से तुम्हें मिलाऊँगा यहाँ साथ तेरा मिला मुझको कितना प्यारा तूने आकर है सँभाला तू ही है मेरा आसरा यहाँ तुम मेरे साथी बनो हम साथ निभाएँगे तुम मेरी जिंदगी की अब इबादत हो यहाँ . लेखक परिचय :-  आपका नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहा...
प्यारा भारत
कविता

प्यारा भारत

संजय जैन मुंबई ******************** जन्म लिया है भारत में, तभी तो प्यारा लगता है। विश्व में सबसे न्यारा, देश हमारा दिखता है। कितने देवी देवताओं ने, जन्म लिया इस भूमि पर। धन्य हो गए वो सभी जन, जिन्हें मिला जन्म इस भूमि पर।। कण कण में बस्ते है भगवान, वो भारत देश हमारा है। कितनी नदियां यहां पर बहती, जिनको माता कहकर बुलाते है। जिनके जल से लोग यहां पर, अपने पापो को धोने आते है। तभी तो लोग कहते है, की भारत सबसे प्यारा है।। भाषा का भी आदर भाव, यहां पर बहुत दिखता है। सुख दुख में भी साथ खड़े, लोग यहां पर दिखाते है। अपनी मूल संस्कृति से, नही ये करते समझौता। तभी तो आस्थाओं में, विश्वास करते लोग यहां।। इसलिए तो विश्व में सबसे, न्यारा भारत हमारा दिखता है।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक ल...
रिश्तो की रस्सियां
कविता

रिश्तो की रस्सियां

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** न जाने कितने रिश्तो की रस्सियां, मेरी तरफ है आ रही। बचपने की गिरह खोल, एक लड़की दुल्हन बनने जा रही। अरमानों की डोली सजाती सपनों में मुस्कुरा रही। सब कुछ होगा अच्छा यह दिल को समझा रही। सभी बड़े उस नन्ही सी जान को अपनी-अपनी समझ समझा रहे हैं। गीत और संगीत में भी कर्तव्य व ज्ञान गाए जा रहे हैं। उबटन लगाकर तन व ज्ञान देकर मन संवारा जा रहा है। एक लड़की दुल्हन के ढांचे में ढ़ाली जा रही है। शादी तक ये दुल्हन तैयार होनी चाहिए। एक में ही सुंदरता संस्कार प्रतिभावान यह सभी गुण विद्यमान होने चाहिए। घबराए मुस्कुराए सब को ये कैसे बताए। आधी उम्र गुजर गई आप सभी को अपनाने में, आधी उन गैरों को अपना बनाने में। पता ही नहीं चलता हमें हमारा वजूद, इस जमाने में। . लेखक परिचय :-  नाम - चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कवि...
होके तुमसे जुदा
कविता

होके तुमसे जुदा

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** होके तुमसे जुदा हम यार कहां जाएंगे। होके मजबूर तेरे पास चले आएंगे। होके मजबूर... तेरी गुस्ताखियों को हमने किया अनदेखा। तेरे संग ही जुड़ी है मेरे हाथों की रेखा। तुम जो रूठोगे तो दुनिया से चले जाएंगे... होके तुमसे जुदा हम यार कहां जाएंगे। होके मजबूर तेरे पास चले आएंगे। होके मजबूर... तेरी वजह से मेरी ज़िंदगी खुशहाल हुई। मेरी किस्मत तेरे आने से मालामाल हुई। जाने अनजाने में तुझे न अब सताएंगे... होके तुमसे जुदा हम यार कहां जाएंगे। होके मजबूर तेरे पास चले आएंगे। होके मजबूर... मुझपे रखना यकीन ये तुझे है कसम। मेरी हर बात में तेरा नाम रखता हूँ सनम। सातों जनमो का तुझसे रिश्ता हम निभाएंगे... होके तुमसे जुदा हम यार कहां जाएंगे। होके मजबूर तेरे पास चले आएंगे। होके मजबूर... तेरे एहसानों को मैं भूल नही पाऊंगा। तेरी ख़ाहिश के लिए खुद ही बिक...
जागो गुरुजन एक बार
कविता

जागो गुरुजन एक बार

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** जागो गुरुजान एकबार। भारत में मच गई हाहाकार। फिर से तांडव नर्तन कर जितना समर्थ हो उतना कर तू प्रलय बन प्रकंपित कर रावण दल पर टूट पड़। तू चाणक्य और विश्वामित्र बन फिर से नई नई सृष्टि रच। कौटिल्य और कणाद बन, अर्थ नीति, अणुनीति रच। तू सर्वज्ञ पूर्ण समर्थ बन, तू ब्रह्मा विष्णु महेश बन, ज्ञान प्रकाश को फैलाकर अज्ञानता का भक्षण कर। तू दधीचि बन अस्थि दान दे, फिर से आशीष असीम प्यार दे, तू समर्थ गुरु रामदास बन, शेर शिवा को फिर उतार दे। शिष्ययो मे ऐसा ज्ञान भर, मिट जाए जिससे प्रपंच, नई कोपले ,नई उमंग फिर, गुंजित हो वंदे मातरम वंदे मातरम।। . लेखक परिचय :-  नाम - ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाश...
फिर कभी न पाते
कविता

फिर कभी न पाते

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** कर अभिमान, पतन को पाते। स्वयं हाथ, विनाश न्योता देते।। समझाने से वो, समझ न पाते। ठोकर लगे, सत्य पथ अपनाते।। अभिमनी यश, कभी न पाते। मन ही मन, मियां मिट्ठू बनते।। अनीति पैसे कमा, जश्न मनाते। बच्चों के जहन, गलत बीज बोते।। एकांकी जीवन, सदा वह जीते। दर-दर ठोकर, जग में रह खाते।। दुर्योधन गलत कार्य, जो दोहराते। अपनों को भी, गर्त वो ले जाते।। साथ नहीं जब, कुछ भी ले जाते। फिर क्यों, समाज जहर फैलाते।। इतिहास साक्षी, दंभी प्रलय मचाते। मनुष्य जन्म, फिर कभी न पाते।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर...
आग जो मेरे अंदर है
कविता

आग जो मेरे अंदर है

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** आग जो मेरे अंदर है आंखों से बहती निर्झर है। आंसू ना होते तो, जल गए होते हम शायद मर गए होते हम कसक होने पर फूट-फूट के रोते हैं हम आंसू ना होते तो, घुट घुट के मर गए होते हम आंसू वो है - जो अंदर की आग बुझाते है। दिल बेचैन हो तो समझाते हैं। सीने की आग पिघलाते है। जीने का सबब बतलाते है। उलझन को छम-छम बरस सुलझाते हैं आंसू अकेले में भी साथ निभाते हैं। कभी अपने से लगते हैं आंसू तो कभी छलनी से लगते हैं आसूँ आग जो मेरे अंदर है । आंखों से बहती निर्झर है। . लेखक परिचय :-  नाम - चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ...
मौत  या  जिन्दगी
कविता

मौत या जिन्दगी

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** ऐ जिन्दगी ठहर जरा, तुझसे कुछ बात करना है। तुझे तेरी असलियत को, विस्तार से समझाना है। क्या मुकाबला है तेरा, और इस हॅसी मौत का, इससे तुझे रूबरू कराना है। कभी गर आया खुशी का, अबसर तेरे रहते तो अन्तर मे समाया रहा गम का अजब डर, डर रहता है तेरे रहते, न जाने कब पलट जाये पल, तू तो बढ़ जाती है साथ वक्त के, और हम रह जाते बिखरे से। किसी से मिलन तो किसी से जुदाई, ऊँचे ऊँचे महलो को कर दे धराशाई। पकड़ा बड़े जतन से किसी मन्जिल को जब जब, आगे है मन्जिल कह, सपने दिखाये तब तब। कभी किसी मन्जिल पर तू न रुकी है, बढती सदा आगे ही आगे रही है। आज गर लबों की मुस्कान बनी तो, कल नयनो से अश्रुधारा बही है। दिन के उजाले मे मिले, कुछ पल सुकूँ के तो, रात को नीद की दुश्मन बनी है। तुझसे इतर देख इस मौत को तू, यह देती है बस नीद सुकूँ की। जिन्दगी से हारे थके हैं जो, मौत नीद देती उनक...
ओस की बूंद
कविता

ओस की बूंद

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** जीवन क्या है, सोचो अगर, ओस की बूंद ही तो है, जो झड़ जाती है, रात को, किसी भी चौड़े या छोटे पत्ते पर, अस्तित्व रहता है उसका, रात भर, लगता है ऐसे, जैसे सांस चल रही है, मानव की, लेकिन प्रातकाल जब, सूर्य बिखेरता है, अपनी किरणों को, ओस की बूंद, ना जाने, गिर जाती है कब, लगता है यूं, जैसे सब समाप्त हो गया, वह ओस की बूंद, मानव जीवन, ले गई अपने साथ, अतीत के उन मधुर क्षणों को, जिनका अस्तित्व जुड़ा हुआ था, उस बूंद के साथ..... जीवन बूंद ही तो है, ओस की....!! . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (h...
जीवन इक रैन बसेरा है
कविता

जीवन इक रैन बसेरा है

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़(हरि) ******************** जीवन इक रैन बसेरा है, जिसमें सुख-दुख का डेरा है। कहीं खुशियाँ खिलखिल हँसती हैं, कहीं गम का घोरअंधेरा है।। हर पल बदलता रूप है ये, कभी छाँव कभी धूप है ये। चालक इंसां के तन मन का, रखता अपने अनुरूप है ये। ॠतुओं की भांति अलग-अलग, आता ये बदलकर चेहरा है। कहीं खुशियाँ खिलखिल हँसती हैं, कहीं गम का घोरअंधेरा है।। कभी खुशियों का सूरज चमके, हृदय में प्रेम, प्यार पनपे। अनुराग ख्वाब छेड़े रुक-रुक, हँस-हँसके फूल खिलें मन के। नहीं समझ सका कोई इसको, गिरगिट का तात चचेरा है। कहीं खुशियाँ खिलखिल हँसती हैं, कहीं गम का घोरअंधेरा है।। कहीं अपनों से बिछड़ा देता, कहीं औरों से पिछड़ा देता। कभी सफलता दे-देकर ये, बेहद मन को इतरा देता। लोहे से जब हालात बनें, बनता उस वक्त ठठेरा है। कहीं खुशियाँ खिलखिल हँसती हैं, कहीं गम का घोरअंधेरा है।। कहीं लहर...
भारत भूमि
कविता

भारत भूमि

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** ये धरा है सनातनी अजर अविनाशी, इसी धारा से उपजे थे वेद और पुराण, इसी पर कहा जाता है, वसुधै कुटुम्बकम, जन्मे थे यहाँ राम, कृष्ण ये सत्य है महान। जो भी आया देश विदेश से रम गया यहाँ पर परदेशी को भी स्वदेशी मान लिया यहाँ पर सभी ने निज आस्था से पूजन किया यहाँ पर हिंसा का उत्तर अहिंसा दे दिया गया यहाँ पर सत्य छुप नही सकता जान गयी दुनिया जहान आओ करे उसका वंदन गाये स्वागत गान जन्मे थे यहाँ राम, कृष्ण ये सत्य है महान।। अयोध्या व सरयू की आज दूर हुई पीर सदियों से बह रहा था उनके नयनो से नीर आओ सब मिल कर धर्म निभाएं मानवता का हम पुजारी अहिंसा के दो परिचय सदाशयता का तहजीब के लिए कर रही गंगा, जमुना आव्हान करो साथ साथ अब चल कर पूरे भारत के अरमान। जन्मे थे यहाँ राम, कृष्ण ये सत्य है महान।। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा :...
बस थोड़ा सा इन्सान बनो
कविता

बस थोड़ा सा इन्सान बनो

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** बस थोड़ा सा इन्सान बनो कभी तो तुम भगवान बनो गरीबों पर जरा रहम करो बस थोड़ा सा इन्सान बनो मजहब सबका एक है झगड़ो ना परेशान बनो भीड़ भरी इस दुनिया मे बस थोड़ा सा इन्सान बनो ये धरती है बड़ी खूबसुरत तुम ऐसे ना शैतान बनो दो पेड़ लगा दो फूलों के बस थोड़ा सा इन्सान बनो नारी का चीर हरण करके तुम ऐसे ना हैवान बनो स्त्री का सम्मान करो तुम बस थोड़ा सा इन्सान बनो . . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३...
साथ-साथ
कविता

साथ-साथ

अंजना झा फरीदाबाद हरियाणा ******************** आम जन नहीं है परेशान मन्दिर और मस्जिद से कब सोच में आती उसे राम लला की जन्मभूमि और कब याद आता बाबरी का मस्जिद।। उसकी सोच में तो है मंहगाई का अस्तित्व।। पत्नी डूबी इस फिक्र में क्या बने रोटी के साथ सब्जी या फिर दाल क्योंकि इस भाव में नहीं दे सकती दोनो साथ-साथ ।। पति की सोच सिमटी है ईद और दिवाली पर क्या दिलाउं परिवार को उपहार के नाम पर।। काफी मशक्कत के बाद भी दे नहीं सकता नये कपड़े और मिठाइयों के डब्बे पूरे परिवार को साथ साथ ।। बेटा भी तो समझ नहीं पा रहा क्या करें कम व्यय में कौन सी डिग्री कर पायेगी उसका उद्धार मां की ईच्छा अभिलाषा पिता के ईमानदार सपने कैसे पूरे होंगे साथ साथ।। अचानक मिला एक समाचार रामलला को भूमि मिल गई मस्जिद को भी मिला जमीन बस इक पल थम गई सबकी सोच और विचार मिले साथ साथ।। अचानक घर की लक्ष्मी का स्वर गुंजायमान...
कसक
कविता

कसक

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** व्यक्ति के अंदर स्वयं से टकराने की अहम भावना जो उसके उत्तेजित स्वर द्वारा व्यक्त होती हैं वह हैं ‘कसक' मनुष्य के असमर्थता का भाव समर्थता में प्रदर्शित करने की गतिविधि की क्रियान्वित विधि हैं ‘कसक' वर्ग विहीन समाज की कल्पना में गतिशील मानव के विकास की बाधा में उत्पन्न होने वाले टकराव का भाव हैं ‘कसक' धनलोलुपता निरीह जनता के शोषण के विरुद्ध उठने वाली आवाज को दमन करती हुई रेखा में प्रस्फुटित ना हो पाने वाला स्वर् हैं ‘कसम' हृदय के उद्गार को स्वच्छंद रूप से अभिव्यक्त ना दे पाने का भाव हैं ‘कसक' अपने और अपनों के बीच स्पष्ट दृष्टिकोण ना रख पाने का भाव हैं ‘कसक' छल और प्रवचन में ऐश्वर्यवादी मनुष्य का दास बनने का भाव हैं ‘कसक' सामंती व्यवस्था को देर तक ना सहन कर पाने का भाव हैं ‘कसक' दंडनीय कार्यों का न्याय न कर पाने पर विध...
रोशन कर लूं
कविता

रोशन कर लूं

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** गर तू आए मुझसे मिलने, तो ये रास्ते रोशन कर लूं। गर आकर, हाथ थामे मेरा, तो दिल में छिपे जज्बात, रोशन कर लूं। तेरा इंतजार है मुझको, तू आए तो ये रास्ते, फूलों से भर दूं। गर तुझे थोड़ा सा भी, अंधेरा लगे, अनगिनत दीप जलाकर, तेरे रास्ते रोशन कर दूं। बिछा कर बैठी है "सुरेखा" पलके तेरे इंतजार में, तू कहे तो चरागों से, तेरी राहें रोशन कर दूं। गर तू आए मुझसे मिलने.... तो ये रास्ते रोशन कर लूं...!! . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य त...
मन दिखता है….
कविता

मन दिखता है….

संजय जैन मुंबई ******************** मुझे राह दिख, लाने वाले मेरे मन। कभी राह खुद तुम, यूही न भटकना। मुझे राह....…...। मोहब्बत में जीते, मोहब्बत से रहते। मोहब्बत हम सब, जन से है करते। स्नेह प्यार की दुनियां, हम हैं बसाते। मुझे राह........।। न भेद हम करते, जाती और धर्म में। न भेद करते, ऊंच और नीच में। में रखता हूँ समान भाव, अपने दिल में। मुझे राह..........।। हमे अपनी संस्कृति, को है बचना। दिलो में लोगो के, प्यार है जगाना। अपनी एकता और अखंता बचाना। मुझे राह .........।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रह...
जीवन साकार करूंगी मैं
कविता

जीवन साकार करूंगी मैं

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** पितु -मात आशीष को, सफल सदा करूंगी मैं। शूल को फूल बना, जीवन साकार करूंगी मैं।। नेक कर्म कर जगत में, यश को प्राप्त करूंगी मैं । छल कपट से दूर रह, जीवन साकार करुंगी मैं।। वसुधैव कुटुंबकम भावना, सदा अपनाऊंगी मैं। मर्यादा को अपनाकर, जीवन साकार करूंगी मैं।। मन निराकार सपने साकार, कड़ी मेहनत करूंगी मैं। अपनी हर गलती स्वीकार, जीवन साकार करूंगी मैं ।। खुशियों का दमन कर, आशियाना ना बनाऊंगी मैं। सत्य पथ अपनाकर, सदा जीवन साकार करूंगी मैं।। पेड़ आदर्श बना, देश हित सर्वस्व न्योछावर करूंगी मैं। देश को प्रगति पथ पहुंचा, जीवन साकार करूंगी मैं।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक म...