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पद्य

मजाक न बनाये
कविता

मजाक न बनाये

संजय जैन मुंबई ******************** तेरी यादों को अब तक, दिल से लगाये बैठा हूँ। सपनो की दुनियां में, अभी तक डूबा हुआ हूँ। दिल को यकीन नही होता, की तुम गैर की हो चुकी हो। और हकीकत की दुनियां से, बहुत दूर निकल गई हो।। मूनकिन नहीं की, मोहब्बत परवान चढ़ेंगी। तुम तो उसे दिल से, चाह रहे हो। पर उसकी निगाह, किसी ओर पर लगी हैं। और उसे लुभाने के लिए, तुम्हारे दिल से खेल रही हो।। अक्सर ऐसा देखा गया, मोहब्बत किसी और से। और दिल्लगी किसी, ओर से करते है। और अपनी निगाहों से दो को घायल करते है। ऐसे लोग प्यार मोहब्बत को खेल समझते हैं। और जमाने के लोग इन्हें मूर्ख समझते है।। क्योकिं ऐसे लोग, प्यार का मतलब जानते नहीं। फिर भी दिल की बातें करते हैं। और मोहब्बत को मजाक बनाते हैं। और अपनी जग हासाई खुद करवाते है।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करी...
बौनी उड़ान
कविता

बौनी उड़ान

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** ये उड़ान अभी बौनी है मुझे ऊपर बहुत ही जाना है । ये थकान अभी थोड़ी है मुझे अन्त समय तक निभाना है। आसमां को छूने की तमन्ना नही है दिल मे अनपढ़ो को आसमान से मिलवाने ले जाना है। ये उड़ान अभी बौनी है मुझे ऊपर बहुत ही जाना है.... पर्वतों पर चढ़ जाऊँ ये चाहत नही है मन मे माँ पिता के चरणों तक ही जा कर रुक जाना है। ये उड़ान अभी बौनी है मुझे ऊपर बहुत ही जाना है.... ये सोचती नही हूँ कि भगवान मिले मुझको हँस कर मिलूँ मै सब से और मुझे जिन्दगी से चले जाना है। ये उड़ान अभी बौनी है मुझे ऊपर बहुत ही जाना है.... लिखती हूँ मैं शब्दों को पिरोती हूँ मोतियों की तरह ये तो बस एक झोपड़ी है मुझे कविताओं का महल बनाना है। ये उड़ान अभी बौनी है मुझे ऊपर बहुत ही जाना है.... ये थकान अभी थोड़ी है मुझे अन्त समय तक निभाना है.... . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लह...
हम दोनों
कविता

हम दोनों

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** हम दोनों में कोई विशेष फर्क नही है । तू स्वार्थी मैं भी तू लालची मैं भी तू धूर्त मैं भी तू कमीना मैं भी तू दगा बाज़ मैं भी तू कपटी मैं भी तू अवसरवादी मैं भी तू झगड़ालू मैं भी तू ईर्ष्यालू मैं भी बस एक ही बात में हम अलग है तेरी प्राथमिकता धर्म है मेरी देश। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com प...
बना के ग़ज़ल तुझको
गीत

बना के ग़ज़ल तुझको

दीपक्रांति पांडेय (रीवा मध्य प्रदेश) ****************** इक बना के ग़ज़ल तुझको हम गाएंगे। छोंड़ करके शहर तेरा हम जाएंगे।। कर ले दो चार प्यारी मधुर कोई बात। फिर ना आऐगी ऐसी सुहानी सी रात।। दूर रह के भी नज़दीक हम पाएंगे। छोड़ कर के शहर तेरा हम जाएंगे।। प्यार मे यूँ बिछड़ना ज़रूरी भी है। दूर रह के महकना ज़रूरी भी है।। लाख कर ले तू कोशिश हम याद आएंगे। छोड़ कर के शहर तेरा हम जाएंगे।। यह परीक्षा तुम्हारी हमारी भी है। कितनी मीठी मधुर अपनी यारी भी है।। वादा है तेरी महफ़िल मे हम छाएंगे। छोड़ कर के शहर तेरा हम जाएंगे।। कुछ यूं हीं दूर रहकर भी जीते हैं हम। यह जहर भी जुदाई का पीते हैं हम।। सब्र कर मिलने के दिन, भी हम लाएंगे। छोड़ कर के शहर तेरा हम जाएंगे।। . परिचय :- दीपक्रांति पांडेय निवासी : रीवा मध्य प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोट...
खुशखबरी
कविता

खुशखबरी

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** उसका गुनाह इतना सा जब जुल्म हुआ तब ख़ामोश थी शायद इसलिए कि आज्ञापालन की उम्र थी सोच में उसके भावना कि प्रबलता थी हम उम्र की संख्या भी शून्य थी जीवन में सन्नाटा इतना था कि खुद की सांसों से डर लगता था उसे धूत्तकार, धिक्कार, बन्दी सा बचपन मैं एक बोझ हूँ, कोई इंसान नहीं उसकी कोई चाहत नहीं, कोई सपने नहीं इस बात से परेशान होकर हर दिन थोड़ा–थोड़ा सा हृदय आह्लादित करती एकाकीपन में खुद से बातें करती किसी ने बताया एक दिन! मुस्कुराहट हर मर्ज की दवा हैं उसने मुस्कुराना भी सीख लिया आदत ऐसी डाली मुस्कुराने कि हर लब्ज पर अब मुस्कान हैं उसके उस मुस्कान ने उसे महान बना डाला लोगों की नजरों में गुनेगार बना डाला वह ‘वह’ नहीं रही आदर्श की प्रतिमूर्ति उसे बना डाला मुस्कान ने उसे हर दिन ऐसा पाला अब लगता हैं वह मुस्कान भी बूढ़ी हो गई हैं मुस्कुरात...
नव वर्ष
कविता

नव वर्ष

वन्दना पुणतांबेकर (इंदौर) ******************** नव पल्लव, नववर्ष आया। सुख-समृद्धि छोली भर लाया। खिले पुष्प सा जीवन सबका। मन की आशा हो पूरी। कभी न हो नीरवता जग में। द्वेष नही कोई मन में रखना। मिलो तो सदा अपनो से लगना। जीवन है, यह सुन्दर सपना। हो हर आशा पूरी। घर चहके पल-पल महके। हर दिल में मुस्कान खिले। अरमान के फूल खिले। खुशियॉ सबकी हो पूरी। यही मंगल कामना मेरी । आशा और विश्वास रखो तुम। निराशा मन कि दूर करो तुम यही जीवन की धुरी। हँसो, खिलो ख़िला- खिलाओ स्वजन। नव वर्ष नई आशा, नई खुशियों का संसार खुला हो। हर घर मंगल गीत बजे। घर, आँगन में दीप जले। सबकी आस हो पूरी। यही कामना मेरी। नव पल्लव, नववर्ष आया। खुशियों की सौगात लाया। किसी चहरे पर मुस्कान खिला सको तो। जीवन सार्थकता हो पूरी। यही कामना मेरी। . परिचय :- वन्दना पुणतांबेकर जन्म तिथि : ५.९.१९७० लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कव...
तूफान अंतर्मन का
कविता

तूफान अंतर्मन का

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** कभी तो वो तूफान उठेगा मेरे अंतर्मन में, जो बहा ले जायेगा अपने साथ हर विरोधाभास और बचेगा सिर्फ विश्वास खत्म हो जाएगा हर दोहराव और सिर्फ रह जायेगा एक ही पड़ाव फिर ये हर राह की भटकन न होगी सिर्फ एक राह ही मंजिल तक होगी कभी तो वो शीतल चांदनी फैलेगी मेरे अंदर के गगन में, जो भर देगी मन को असीम आनन्द में फिर न कोई उन्माद होगा बस अनाहत का नाद होगा अब बस इंतजार है मुझे उस तूफान का जो हर लहर के साथ एक उम्मीद छोड़ जाता है और दे जाता है इंतज़ार, इंतज़ार और इंतजार . परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फ...
प्रेम-संचार
कविता

प्रेम-संचार

भारती कुमारी मोतिहारी (बिहार) ********************** प्रेम भरी रात में प्रिये पी लेती हूँ मधुमास बंसी की धुन से मन को टटोल लेती हूँ प्रेम में अनुराग-मय अर्थ को पा लेती हूँ जब हृदय से प्रेम पर जीत जाती हूँ तब मन को नयी धुन से सजाती हूँ हृदय को समझा कर एकान्त मन में प्रेम जगाती हूँ बहते नीर को पीकर उस प्रेम अर्थ को ढूंढती हूँ, जो प्रिये के प्राण को संचार कर सके मेरे प्रिये उस दिशा की ओर जा रहे है जहाँ मेरे लिये फूलों की बरसात होगी कान्हा का प्रेम कष्ट हरने वाली हर दिशा को कल्याण करने वाली है सूने मन में जीवन भर के लिए नई तरंग भरने वाली है होगा प्रभात नये उमंग से प्रभु के संग से निष्ठा के प्रेम अंग से अनंत प्याले मधुमय बनेंगे आँसू रुपहले सुनहली मुस्कान में बदलेंगे बंसी की धुन जब नुपूर-झंकार में बदलेंगे।। . परिचय :-  भारती कुमारी निवासी - मोतिहारी , बिहार ...
बरगद की छांव
कविता

बरगद की छांव

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** मां-बाप बरगद की छांव, से होते है। जिंदगी देते है। और जिंदा , रखने के लिए, अपनी टहनियों को, अपनी जड़ें तक दे देते है। मां बाप बरगद की, छांव से होते है। उनकी घनी छाया में, सारा परिवार, पल जाता है। जो भी आता, बड़े प्यार से, खुली बांहों में, समेट लिया जाता है। मां-बाप बरगद की छांव, से होते है। कोई भेद-भाव नही, बच्चों को अपनी, जड़ों से, मजबूती का, स्तम्भ दिये रहते है। जिंदगी के साथ, जिंदगी के बाद भी, जड़ों और टहनियों से, जुड़े रहते है। मां-बाप, बरगद की छांव से, हमेशा हरे रहते है। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं,...
फन कुचलो इस विषधर का
कविता

फन कुचलो इस विषधर का

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** फन कुचलो इस विषधर का। जो विष वमन नित करते हैं भारत मां की गौरवमयी भूमि पर नित्य नई कुचक्र को रचते हैं। इस महापापी को धराशायी कर फिर से तू नई सृजन कर। जहां प्रेम हो आपस में हर आर्य वंशी हो भाई-भाई फन कुच लो इस विषधर का जो विष वमन नित करते हैं। अपनी कुकृत्यो से भारत मां की जिसने आंचल मैली की। अबलाओं की इज्जत पर जो लाठी तंत्र की वर्षा की। जिसे दंभ है भ्रष्टाचार पर दुशासन के शासन पर रक्षक की मूरत में भक्षक इसे अब तू सर्वनाश कर फिर तू नवसृजन कर हर माता है सीता राधेय हर बालक है राम कृष्ण तू है अर्जुन, भीम, नकुल, धृतराष्ट बनकर है जिसने कुशासन का नींव डाला। उंघ रहा है मद में यह छिछोरेपन करता करता। . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
यश वो ही पाएगा
कविता

यश वो ही पाएगा

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** नि:स्वार्थ भाव से काम कर, तो तू यश को पाएगा। आ गया स्वार्थ, तो पाया सम्मान भी खो जाएगा।। दोस्त का हमदर्द बनकर, जो उसका दर्द बटाएगा। जख्मों पर हकीकत में, वो ही मरहम लगाएगा।। मतलबी दुनिया, जीवन चरितार्थ ना हो पाएगा। करता रह नि:स्वार्थ कार्य, तू सफलता पाएगा।। प्रभु घर देर अंधेर नहीं, तू सार्थक कर पाएगा । आँखों के अंधों को, आईना तू ही दिखाएगा।। नि:स्वार्थ भाव रख, तू जग में अमर हो जाएगा। बाकी स्वार्थ में डूबा, दर दर ठोकर खाएगा।। सब कुछ पाकर स्वार्थी जन, सम्मान न पायेगा। एक झूठ छुपाने में, जीवन उसका गुजर जाएगा।। कहती वीणा नि:स्वार्थ रह, जग नहीं बिसराएगा। अपने श्रेष्ठ भावों से वो, जग में अमरता पाएगा।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी ...
मैं भी तो शहीद था
कविता

मैं भी तो शहीद था

दीपक मेवाती 'वाल्मीकि' सुन्ध - हरियाणा ******************** बारिशों के बाद जो बीमारियों की घात हो जंग का ऐलान तब मेरी ख़ातिर हो चुका मानकर आदेश को मन में सोच देश को ना ख़याल आज का ना फ़िकर बाद का सिर्फ़ एक लक्ष्य है जो मुझे है भेदना सीवर हो जहाँ रुका वो मुझे है खोलना बाल्टी, खपच्ची, रस्सी ली उठा हाथ में दो मेरे संगी भी चल-चले थे साथ में सुबह-सुबह की बात है थोड़ी पर ये रात है खोला ढक्कन जैसे ही बदबू आई वैसे ही । कुछ नहीं था सूझता कुछ नहीं था बूझता बदन से कपड़े दूर कर कमर में रस्सी बांधकर सुरक्षा की ना बात है ईश्वर का ही साथ है आसपास मेरे सब नाक-भौंह सिकोड़कर साथ मे खड़े हैं सब पास में ना कोई अब मैं अकेला ही भला हूँ जो भी हो देखेगा रब काली-काली गंदगी कितनों का ये मल है और कितनो की ये लेट्रिन दुश्मन से लड़ना है अब सोच छोड़ उतरना है अब एक को पकड़ा के रस्सी देह नरक की ओर बढ़ दी गर्दन तक मल में हू...
विरह की ज्वाला
कविता

विरह की ज्वाला

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** कहीं विरह की ज्वाला ने, मेरे अंतस से निकस तुम्हारे मन में डेरा डाला होगा। आह! आज दिन काला होगा।...। तुमने तो मुड़कर नहीं देखा, शब्दों में बस भाव पिरोए। यादों में नीरस गए सावन, नैन, मेघ बन दिन भर रोए।। क्या-क्या स्मृति लाऊं तुमको, आह! रुदन में हाला होगा ...। उस पथ पर मैं आज खड़ा हूँ जहां चैन पाते थे नैना। निरख-निरख कर भेद छुपाते, नहीं बताते थे मन बैना।। ऑखो में पल तैर गए हैं, आह! हृदय मतवाला होगा।...। अंदर तक झकझोर रही है, धड़कन भी सहमी-सहमी है। अब तक कह पाये ना तुमसे, आज मगर, कहनी-कहनी है।। पिछले जन्मों का कुछ तूने, आह ! नेह संभाला होगा।...।। . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा...
मां शारदे
कविता

मां शारदे

डॉ. संध्या जैन इन्दौर म.प्र ******************** मां शारदे! मां शारदे! तुमको पुकारतीऽऽ मैं। इस धरती पर तुम्हें आना होगा हम सबको मां तारना होगा मां शारदे! मां शारदे! तुमको पुकारतीऽऽ मैं। विद्या के मंदिर में देखो कैसा छा गयाऽऽ तमस अब दूर करो सारा तमस लाओ मां उजास अब मां शारदे! मां शारदे! तुमको पुकारतीऽऽ मैं। हमसे हुई क्या भूल अब? हमें जो चुभ रहे हैं शूल इस बगिया में खिला दो फूल रहे जिससे सब ही प्रफुल्ल। मां शारदे! मां शारदे! तुमको पुकारतीऽऽ मैं। मीठी वाणी, कलम, कागद क्या खो गए मां अब ये सब? अच्छे-अच्छे प्रियजन क्या सो गए मां सब? मां शारदे! मां शारदे! तुमको पुकारतीऽऽ मैं। आओ मां! आओ मां! वीणा के तारों के संग कर दो हृदतंत्री को मां आज तुम झंकृत। मां शारदे! मां शारदे! तुमको पुकारतीऽऽ मैं।   परिचय :- डाॅ. श्रीमती संध्या जैन पिता का नाम : डाॅ. नेमीचन्द जैन जन्म दिनांक : ३० अक्टूबर, ...
क्षमा वीररस्य भूषणम्
कविता

क्षमा वीररस्य भूषणम्

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** दुख देने से दुख बढ़ेगा, फिर क्यों दुख देते हैं। अमन प्रेम विस्तार कर, चहुँओर यश पाते हैं।। बरसे हृदय से करुणा, ऐसा काम सब करते हैं। हो जाए भूल वश गलती, उनको क्षमा करते हैं।। द्वंद अगर हो जाए तो, थोड़ी दूरी रख लेते हैं। मन वचन अगर क्लैश हो, माफी वो मांगते हैं।। आगे जीवन क्लेस मुक्त हो, प्रयास करते हैं। बड़े हैं, क्षमा करने से बड़े ही सदा बनते हैं।। कोई नहीं दोषी, अनजाने में गुनाह सब होते हैं। इस चक्रव्यूह से, क्षमा मांग ही सब बचते हैं ।। स्वयं करता नहीं कोई, कर्मों का ताना-बाना है। सब इस जग में रह, कर्मों का कर्ज चुकाते हैं।। क्षमा वीररस्य भूषणम, अपना महान बनते हैं। क्षमा दान देकर ही, वह अहंकार को हरते हैं।। कहती वीणा उत्तम क्षमा, क्यूं अवसर गवांते हैं। एक क्षमा शब्द से, कितने जीवन संवर जाते हैं।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्...
सवाल दर सवाल है
कविता

सवाल दर सवाल है

मिर्जा आबिद बेग मन्दसौर मध्यप्रदेश ******************** सवाल दर सवाल है, सबका एक जैसा हाल है। रिश्ते आजकल वहां बनते जिसके पास माल है। सरकार कैसे चली गई, सब पूछ रहे हैं ये सवाल है। उससे तुम्हें हो गई मोहब्बत, क्या उसे इसका ख्याल है। माँ-बाप का साथ जरूरी है, उनके बिना बुरा हाल है। समझ ना सके वहां मुझे आबीद, बस इस बात का मलाल है। . परिचय :- ११ मई १९६५ को मंदसौर में जन्मे मिर्जा आबिद बेग के पिता स्वर्गीय मिर्जा मोहम्मद बेग एक श्रमजीवी पत्रकार थे। पिताश्री ने १५ अगस्त १९७६ से मंदसौर मध्यप्रदेश से हिंदी में मन्दसौर प्रहरी नामक समाचार पत्र प्रकाशन शुरू किया। पिता के सानिध्य में रहते हुए मिर्जा आबिद बेग ने कम उम्र में ही प्रिंटिंग प्रेस की बारीकियो को समझते हुए अखबार जगत कि बारीकियों को कम उम्र में ही समझ लिया और देखते-देखते इस क्षेत्र में निपुणता हासिल कर मात्र २१ वर्ष की ...
चांदनी
कविता

चांदनी

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** एक रात यूं ही नील गगन में' नीलकमल सी चांदनी ने। मुस्कुराई थी अचानक़़ थोड़ी सीहर कर चांदनी ने, अचानक दर्द छेड़ थोड़ी सी पवन सिसक कर बिखर गई। मरमराती रात में सुनहली सी चांदनी। इस पूर्णता की विछोह में, अपूर्णता की भ्रांति टिमटिमाती जुगनू की, गूंज रही थी क्रांति। इस धरा की सरहदों पर, बिखेर दी थी क्रांति। घटाटोप अंधकार में, जंगली गुफाओं में, समुंद्री गर्जनाओ मे, होगी अनेकों क्रांति अंधकार में प्रकाश की, होगी महाआरती। स्वर्ण युग आएगी गुनगुनाती चांदनी। सभी हंसेगे साथ-साथ। मुस्कुराती चांदनी। . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, क...
चन्द्रमा पर चार मुक्तक
मुक्तक

चन्द्रमा पर चार मुक्तक

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** पलायन सांझ को कर मुख छिपाया जब दिवाकर ने! निशा को कर दिया चिन्तित अंधेरे के बड़े डर ने। सभी जड़ और चेतन प्रतीक्षारत थे उजाले के, प्रकाशित कर दिया धरती को तब आकर निशाकर ने। ढला दिन सांझ सरकी तो कहीं से यामिनी आई। कहा कवि उर ने "भू पर सांवरी सी कामिनी आई।" धरा चिंतित थी उसके सांवरे तन को संवारे कौन, अचानक चन्द्रमा से चांदनी सुखदायिनी आई। ख़ूब सोलह सिंगार करती है। चौथ व्रत निराहार करती है। उसका चेहरा है चाँद-सा फिर भी, चाँद का इन्तज़ार करती है। चाँद-सूरज की चमकती रोशनी सबके लिए है! धूप सबके वास्ते है, चाँदनी सबके लिए है। चन्द्रमा का साथ देते हैं सितारे अनगिनत पर, भानु नभ में नित्य एकल यात्री सबके लिए है! . परिचय - साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्द...
हाँ मैं वही सिपाही हूँ
कविता, छंद

हाँ मैं वही सिपाही हूँ

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़ (हरि) ******************** मैं ध्रुव तारे सा अचल, अटल, सदियों से खड़ा स्थाई हूँ। निश्चिंत हिंद जिस दम सोता, जी हाँ मैं वही सिपाही हूँ।। घर,परिवार व प्यार त्याग मैं, सरहद पर तैनात खड़ा हूँ। करुँ मौत से मस्ती हरदम, खतरों से सौ बार लड़ा हूँ। हिंद नाम लिखा जिसने हिम पर, मैं उसी रक्त की स्याही हूँ। निश्चिंत हिंद जिस दम सोता, जी हाँ मैं वही सिपाही हूँ।। है धरती सा धीरज मुझमें, व आसमान सा ओहदा है। हिम्मत हिमालय सी रखता, सदा किया मौत से सौदा है। अपनों पर जान गँवाता हूँ, दुश्मन के लिए तबाही हूँ। निश्चिंत हिंद जिस दम सोता, जी हाँ मैं वही सिपाही हूँ।। बाहों में सिसके दर्द सदा, आँखों में निंदिया रोती है। सपनों में दिखता दुश्मन को, चिंता मुझको ना खोती है। मैं लक्ष्य हेतु जितना थकता, होता उतना उत्साही हूँ। निश्चिंत हिंद जिस दम सोता, जी हाँ मैं वही सिपाही हू...
शीत
कविता

शीत

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** शीत बड़ी.....!!!! क्यों चीख पड़ी ? क्या दुखद घड़ी..? ना, ...... मेघों की दड़ी। बारिश की झड़ी। बूंदों के संग-संग, हिम तुहिन लड़ी।। कैसा भय है...? कुछ नव क्षय है...? सदियों से ही, प्रकृति लय है।। इस बार सजन, घबराये मन । धक-धक धड़कन, अंग-अंग जकड़न।। पावक ना दहक, बर्फीली महक। नस-नस में चहक, बहे रक्त बहक।। . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता रही है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवान...
सभ्यता और संस्कृति का जन्मदाता
कविता

सभ्यता और संस्कृति का जन्मदाता

सलिल सरोज नई दिल्ली ******************** मैं पावापुरी का जैन मंदिर हूँ। मैं तुम्हारी सभ्यता और संस्कृति का जन्मदाता हूँ, मुझे पहचानो। अब मैं वृद्ध और रुग्ण हो चला हूँ, मुझे संभालो। मैं विलाप करता हूँ अपनी वर्तमान स्थिति पर, मुझे सँवारो। मैं रेत में पड़ा ठंडा हुआ राख हूँ, मुझे फिर जला लो। जिस तरह मिलते हो अपने बच्चे से, मुझे भी गले लगा लो। शरीर सारा जलता हैं ग्रीष्म में मेरा, मुझे आँचल में छुपा लो। मेरे हृदय के कमल कुम्भलाने लगे हैं, प्यास तुम बुझा दो। मैं ठूँठ सा मंज़िल हुआ पड़ा हूँ, राह तुम बना लो। मैंने सदियाँ दी हैं सौगात में तुम्हें, मेरा भी अस्तित्व जिला दो। महावीर ने निर्वाण लिया मेरे ही प्रांगण में, उसकी तो लाज बचा लो। मैं पावापुरी का जैन मंदिर हूँ, तुमसे गुहार लगाता हूँ- मेरा भी सिंचन करो, मेरी भी सम्मान करो। मैं तुमसे वादा करता हूँ, बिहार को मस्तक पर धरता हूँ, आलौकिक इतिह...
विरह का रोग
ग़ज़ल, दोहा

विरह का रोग

रजनी गुप्ता "पूनम" लखनऊ ******************** मुझको देखो आज फिर, लगा विरह का रोग। पिय बिन सूना साज फिर, लगा विरह का रोग। जोगन बनकर फिर रही, गाऊँ विरहागीत, भूल गई सब काज फिर, लगा विरह का रोग। बिसरी जग की रीत सब, खुद से हूँ अनजान। छुपा रही सब राज फिर, लगा विरह का रोग। प्रियतम जब से दूर हैं, बिखरा सब शृंगार। हृदय पड़ी है गाज फिर, लगा विरह का रोग। 'रजनी' तेरी याद में, तड़प रही दिन-रात। भूल गई सब लाज फिर, लगा विरह का रोग।। . परिचय : नाम :- पूनम गुप्ता साहित्यिक नाम :- रजनी गुप्ता 'पूनम' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि :- १६जुलाई १९६७ शिक्षा :- एम.ए. बीएड व्यवसाय :- गृहणी प्रकाशन :- हिंदी रक्षक मंच इंदौर म.प्र. के  hindirakshak.com पर रचना प्रकाशन के साथ ही कतिपय पत्रिकाओं में कुछ रचनाओं का प्रकाशन हुआ है सम्मान :- समूहों द्वारा विजेता घोषित किया जाता रहा है। ...
हंगामा है…
कविता

हंगामा है…

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** हंगामा मचाया है..... सियासत के झमेले में। ज़रा तुम पूँछ लो भाई, खुद से खुद अकेले में। बना कानून संसद में, तब मैदान छोड़ा क्यों? महज़ नाटक किया करते, काम अच्छे में रोड़ा क्यों? बिन पेंदी के लोटे हैं, उन्हें साथी बनाया क्यों? माया और शिवसेना? भरोसा यूँ जताया क्यों? लगाकर आग खुश हो तुम, संपत्ति बाप की है क्या? गंदी सोच और तिकड़म मंशा आपकी है क्या? सारे काम कर डाले (मोदी जी ने) जो जितने जरूरी थे। ठोकर ख़ाकर ना सुधरे (राहुल जी) गुरूरी हो गुरूरी थे। अमन और चैन की भाषा, तुम्हें शायद पता है क्या? सोचते क्यों नहीं प्यारे, जलाकर यूँ नफ़ा है क्या? बिजू बहुत अच्छे हैं..... वो सच्चे पथ के अनुगामी। (मोदी,शाह) सपा, बसपा और पंजे की, समझ न आती नादानी। गद्दारों से देश घिरा है, भृम जो भी थे टूट गये। है श्रंगार भाव ना दिल में, इक़ झटके में भूल गये। बिंद...
गुलाबी धूप
कविता

गुलाबी धूप

रंजना फतेपुरकर इंदौर (म.प्र.) ******************** गुलाबी सुबह की गुलाबी धूप में पलकें जब नींद से जाग जाती हैं तुम्हारे खयाल सिरहाने आकर सो जाते हैं और मैं तलाशती रहती हूं तुम्हारी यादों को सुबह के झीने कोहरे में डरता है मन कहीं तुम खो न जाओ रोशनी के धुंधले साए में लेकिन फिर चांदनी रात मेरे ख्वाबों की देहलीज़ पर हौले से दस्तक दे जाती है और तुम्हारे खयाल आकर फिरसे पलकों पर ठहर जाते हैं . परिचय :- नाम : रंजना फतेपुरकर शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य जन्म : २९ दिसंबर निवास : इंदौर (म.प्र.) प्रकाशित पुस्तकें ११ सम्मान ४५ पुरस्कार ३५ दूरदर्शन, आकाशवाणी इंदौर, चायना रेडियो, बीजिंग से रचनाएं प्रसारित देश की प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएं प्रकाशित रंजन कलश, इंदौर अध्यक्ष वामा साहित्य मंच, इंदौर उपाध्यक्ष निवास : इंदौर (म.प्र.) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी ...
रिश्ता बेच दिया
कविता

रिश्ता बेच दिया

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** देखो ना मुझे रिश्ता बेच गया, खुशी बताकर दर्द बेच गया, पराया था फिर भी अपना बना कर, मेरे जज्बात बेच गया, जर्रे जर्रे में तुझको सोचा, तूने हर बार नया रिश्ता बेच दिया, तकलीफों को जब भी भूला, तूने हर बार दर्द का नया रिश्ता बेच दिया, नमजों में सर झुका कर, दुआ हर बार नहीं मांगी, तूने रूह तक कपाकर, मेरा विश्वास हर बार बेच दिया, मिलता है मुझे वो अपनों की तरह, करता है वही कत्ल मेरे दिल का सरेआम, लाती हैं हवाएं भी मेरी जान, मेरी जान में, उसने बहारों से लाकर, मेरा चमन बेच दिया, आए वो मेरे घर पर, किस्मत तो मेरी देखो, ऐसे वक्त पर लाकर, मेरी मुरादों को बेच दिया, रखती हूं सलामत उसे, हर बला से आज भी, देखो तो जालिम ने हमें, दुआओं में बेच दिया, झुकते थे हम क्योंकि, हमें रिश्ता निभाना था, देखो ना... ज़ालिम ने हमें, गलत बताकर बेच दिया....!! . ...